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[ भाग १७
हथेलियों और तलवों पर ही नहीं छाती पर उनके चिह्न अंकित रहते हैं। अधिकतर बुद्ध-मूर्तियों की तरह उनके बाल भी छोटे छोटे, घुँघराले और दाहिनी ओर मुड़े हुए पेचदार होते हैं । परन्तु कुछ पहले को मूर्तियों के बाल लच्छों में कंधों पर लटके रहते हैं। पहले की मूर्तियों में बुद्ध के समान उणीव और ऊर्ण नहीं होते थे, परन्तु मध्य काल के अन्त से उनके सिर पर एक प्रकार का जूड़ा मिलता है
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भास्कर
जैन लेखों और साहित्य में सर्वतोभद्रिका प्रतिमा के नाम से प्रसिद्ध चतुमुखी प्रतिमाओं का उस काल के मथुरा में पाया जाना रोचक है। मथुरा के कंकाली टीले पर दो चतुर्मुखी प्रतिमाएँ मिली हैं। एक दिगम्बर प्रतिमा पर कोई चिह्न नहीं है । उसके लेख से विदित होता है कि वह मुनि जयभूति की प्रशिष्या वसुला के कहने पर किसी वेणी नामक सेठ की प्रथम पत्नी कुमारमिता के द्वारा दान की गयी थी 1 लिपि के आधार पर यह कुप काल को सिद्ध होती है। उसी स्थान पर उसी काल की दूसरी प्रतिमा सर्पों के छत्र के चिह्न से पार्श्वनाथ की जान पड़ती है। यह स्थिरा नामक किसी महिला के द्वारा सभी जीवों की भलाई की इच्छा से भेंट की गयी थी । यह भी कुषण काल की है ।
अब इस काल के पहले की कुछ प्रतिमाओं का विवरण दिया जाता है। फर्वरी १८६० में कॉकली में एक प्राचीन शिला मिली है, जिसपर एक आसीन जैनमूर्ति अंकित है । अभाग्यवश इस प्रतिमा का सिर गायव है। उनकी सेवा में अनेक देव तथा आसन पर दो सिंह और दो वृषभ अंकित हैं। वृषभ की स्थिति इसे आदिनाथ या ऋषभदेव की मूर्ति सिद्ध करती है। नीचे की लिपि प्राचीन जान पड़ती है। आदिनाथ की दूसरी कुपणकालीन मूर्ति मथुरा म्यूजियम के शिला पर न लेख के अनुसार कुषण नृपति शाही वसुदेव के राज्य के चौरासिवें वर्ष वह मूर्ति एक मठ में स्थापित की गयी थी। सामने के श्रासन पर कई पुरुष और नारियों से पूजित एक स्तंभ पर स्थित चक्र है ।
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अंकित है ।
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सन १८९० में प्राप्त एक कुपणकालीन शिला में अनन्तनाथ की विकृत मूर्ति मिलती है। इसमें बायें हाथ में कपड़े का एक टुकड़ा लिए और त्रिशूल पर स्थित एक चक्र के बगल में खड़ी हुई जिनमूर्ति अंकित है । उसी काल के एक खुदे हुए पत्थर पर, जो किसी जैन-मठ के तोरण का भाग रहा होगा, पार्श्वनाथ और महावीर की मूर्तियाँ अंकित जान पड़ती हैं। नेमिनाथ की एक सुन्दर मूर्ति मथुरा म्यूजियम में है जिसका वन बोगल (Vogal) ने अपने "मथुरा म्यूजियम के पुरातत्व" में किया है। दो स्तंभों और सिंहों के जोड़े पर स्थित एक सिंहासन पर नेमिनाथ ध्यानावस्था में विराज