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किरण २j
जैन सिके
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कनिंघम साहब के साथ भारतीय सिकों का अध्ययन कैम्ब्रिज कालेज के अध्यापक रेप्सन, एलेन, गार्डनर, बुहलर, विसेन्टस्मिथ, सिउएल, हाइटेड, राखालदास वन्द्योपाध्याय, डा. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा आदि विद्वानों ने किया है। कनिंघम साहब के अतिरिक्त अन्य समस्त विद्वानों ने वैदिक, वैष्णव, शैव और बौद्धधर्म की धार्मिक भावनाएँ ही प्राप्त मुद्राओं में व्यक्त की हैं। यदि ये विद्वान जैन प्रतीकों से सुपरिचित होते, तो अवश्य ही अनेक सिक्कों को जैन सिद्ध करते। कारण स्पष्ट है कि सिक्कों में तद् तद् धर्मानुयायी राजाओं ने अपनी-अपनी धर्म भावना को प्रतीकों द्वारा अभिव्यक्त किया है। प्राचीन काल में अनेक जैन राजा हुए हैं, जिन्होंने अपनी मुद्राएँ प्रचलित की हैं। इन जैन राजाओं ने अपनी मुद्राओं में जैन प्रतीकों द्वारा अपनी धर्मभावना को व्यक्त किया है। पुरातन राजाओं में ऐसे भी अनेक राजा हुए हैं, जो
आरम्भ में वैदिक या बौद्ध धर्म का पालन करते थे, पर पीछे जैन आचार्यों से प्रभावित होकर जैनधर्म में दीक्षित हो गये अथवा प्रारम्भ में जैनधर्म का पालन करते थे, पीछे किसी कारणवश वैदिक या बौद्धधर्म का पालन करने लगे। ऐसे राजाओं के सिक कई प्रकार का धर्म भावनाएँ मिलता है। जब तक ये वैदिकधर्म या बौद्धधर्म का पालन करते रहे, उस समय तक की मुद्राओं में इन्होंने वैदिक या बौद्ध धर्म की भावना को व्यक्त किया है। जैन धर्मानुयायी बन जाने पर उत्तरकालीन मुद्राओं में जैनधर्म की भावना को प्रतीकों द्वारा प्रकट किया है। इसी प्रकार जो प्रारम्भ में जैन थे, उन्होंने उस समय में चलाई मुद्राओं में जैन भावना और उत्तर काल में धर्म परिवर्तन कर लेने पर उस परिवर्तित धर्म की भावना को व्यक्त किया है। उन विदेशी सिक्काओं में भी जैनधर्म के प्रतीक मिलते हैं, जिन देशों में जैनधर्म के प्रचारकों ने वहाँ के राजाओं को अपने धर्म में दीक्षित कर लिया था।
भारत में अब तक के प्राप्त सिकों में लोडिया देश के सोने और चाँदी से मिश्रित श्वेत धातु के सिक्के सबसे प्राचीन हैं। इन सिकों को भारत में माल खरीदने के लिये वहाँ वाले यहाँ लाये थे। कई वर्ष हुए पंजाब के बन्न जिले में सिन्धु नदी के पश्चिमी तट पर लीडिया के राजा क्रीसस का सोने का एक सिक्का मिला है। रंगपुर जिले के सद्यः पुष्पकारिणी नामक गाँव के प्रसिद्ध जमीन्दार श्रीयुत् मृत्युञ्जय राय चौधरी ने यह सिका खरीद लिया है। इस सिक्क में एक ओर एक वृषभ और एक सिंह का मुंह बना है तथा दूसरी ओर एक छोटा और एक बड़ा पंच मार्क चिन्ह अंकित है।
| According to Herodotus the earliest stamped money was made by the Lydians--Coins of Ancient India P. 3