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हर
[ भाग १७
विधिवत् प्रतिष्ठा करायी गयी और उन देवालयों की पूजा आदि के लिये नियमतः भूदान आदि
श्रावश्यक दान दिये गये
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भास्कर
बाद बंगवाडि में पगडेसाले नामक स्थान पर नगर बसाया गया। यह नगर क्रमशः बढ़ता गया और इसमें एक हजार से ऊपर मकान बन गये । सेना के लिये राजमहल से उत्तर में एक विशाल किला बनवा लिया गया । आज भी उपयुक्त देवस्थान, जिनालय, मकानों के खंडहर, विस्तृत राजमार्ग यादि चीजों को हम देख सकते हैं। राजमहल का भग्नावशेष लगभग एक एकड़ जमीन में फैला हुआ है। राजमहल की उत्तर दिशा में इस समय जहाँ पर जंगल नजर आता है वहाँ पर मिट्टी का बना हुआ विशाल किला मौजूद था। राजमहल के सामने का विस्तृत राजाङ्गण अब खेत बना लिया गया है। वीरनरसिंह चंगराजा को पाँच रानियाँ थीं । यह ई० स० १२०८ में स्वर्गासीन हुआ। इसके बाद इस वंश में क्रमशः निम्न व्यक्तियों ने सुचारुरूप से राज्यशासन किया : (२) चन्द्रशेखर चंगराजा ( ई० स० १२०८-१२२४ ), ( ३ ) पांड्य चंगराजा ( ई० स० १२२४-१२३६ ) ( ४ ) विल देवी ( ई० म० १२३६ - १२६४ ) (५) कामराय प्रथम ( ई० ० १२६४१२७४ ) ( ६ ) मदुल देवी ( ई० स० १२७४-१२८७ ) ( ७ ) दावलि बंगराजा प्रथम ( ई० स० १२०-१३२३ ) ( ८ ) शंकरदेवी ( ई० स० १३२४१३४६ ), ( ६ ) हावलि वंगराजा द्वितीय (३० स० १३४६-१४०० ), (१०) लक्ष्मपरम अंगराजा प्रथम ( ई० स० १४००-१४३५) ( ११ ) शंकरदेवी द्वितीया ( ई० स० १४५५-१ १४६१), ( १२ ) कामराय द्वितीय ( ई० स० १४६१-१५३३), (१३) दावलि बंगराजा तृतीय ( ई० स० १५३३ - १५४५), (१४) लक्ष्मपरम बंगराजा द्वितीय ( ई० स० १५४५. १५५६ ), ( १५ ) कामराय तृतीय ( ० ० १५५६ १६१२ ), (२६) लक्ष्स बंगराजा तृतीय ( ई० स० १६१२१६२६ ), ( १७ ) दावलि वंगराजा चतुर्थ (३० म० १६२६-१६३१), (१८) शंकर देवी तृतीया ( ई० स० १६३१ – १६५३), (१६) हा यंगराजा पंचम (६० म० १६५३ - १६६६ ), ( २० ) लक्ष्मप्परस बंगराजा चतुर्थ (३० म० १६६६६७६७) (०१) कामप्परस चतुर्थ (३० स० १७६७१७६६ ), (२२) लक्ष्मनरस बंगराजा पंचम (० ० १८००-१८३८)
लक्ष्मप्परस के बाद क्रमशः कामराज (पंचम), संतराज और पद्मराज ये तीन यहाँ की गद्दी पर यासीन हुए । यद्यई०म० १७६७ से ही इस वंशवालों के हाथ में राज्य छूट गया है। फिर भी इसके बाद भी यहाँ पर शास्त्रोक रीति से होता है। इस समय नंदावर का महन एकदम नष्ट हो चुका है । तो भी राजमहल के बिन्द, किला, बाजार, राजमार्ग, देवालय, जिनमन्दिर, मसजिद यादि प्राचीन स्मारक यहाँ के गत वैभव को स्पष्ट व्यक्त कर रहे हैं । दक्षिण कन्नड जिले में नगर के चारों और किला सिर्फ इस नंदावर में ही है। बंगवादि में
वंशज भी मौजूद हैं। अस्तु, राजा वीरनरसिंह को छोड़कर जिसका परिचय ऊपर दिया जा चुका है चन्द्रशेखर आदि शेष पूर्वोक बंग शासक एवं शामिकाओं का संक्षिप्त परिचय भी 'भास्कर' की अगली किरण में अवश्य दिया जायगा ।
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