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किरण २] जिनचन्द्रसूरिजो को महाराजा अनूपसिंहजी के दिये हुए दो पत्र
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प्रभावशाली रहे हैं अतएव उनका यहां के राजाओं पर विशेष प्रभाव रहा है। जब कोई श्रीपूज्य जी की पद स्थापना होती, राज्य की ओर से दुशालादि भेंट मिलते । उनके नगर प्रवेश में हाथी, घोड़े, रथ आदि लवाजमा मिलता। अन्य भी खास २ प्रसंगों पर उन्हें कहीं जाना होता तो राज्य की ओर से उनके लिये रक्षादि सवारी मिलती; इस प्रकार के विविध सम्मान अवतक प्राप्त हैं। ___ महाराजा रायसिंह जी से पहले के राजाओं के जैनाचार्यों के सम्बन्धों के विपय में तो कुछ निश्चित ज्ञात नहीं। पर महाराजा रायसिंहजी के (कुं दलपति के साथ सं. १६४६ के फाल्गुन मु० २ को लाहोर में) जिन चन्द्रसूरिजी को वहराई हुई कई हस्तलिखित जैन ग्रन्थों की प्रतियां प्राप्त है। आपके सुपुत्र अनूपसिंहजी बड़े विद्याविलासी नरेश थे जिन्हों ने स्वयं संस्कृतादि में अनेक ग्रन्थ बनाये व उनके आश्रित विद्वानों के महत्व. पूर्ण अनेक ग्रन्थ उपलब्ध है। बीकानेर की अनूप मंस्कृत लाइब्रेरी आपके असाधारण विद्यानुराग का परिचायक है। आपके समय में खरतरगच्छ में जिनचन्द्रमूरि नामक विद्वान आचार्य थे जिनके साथ आपका पक्रयवहार होता ही रहता था। इनमें से महाराजा अनुपसिंह के जिनचन्द्रमूरिजी को दिये हुये दो पत्र और सूरिजी के महाराजा को दिये ४ पत्रों की नकलें हमारे संग्रह में हैं । प्रस्तुत लेख में उनकी नकलें दी जा रही हैं। यह पत्र व्यवहार संस्कृत में ही हुआ है। महाराजा के दोनों पत्रों में नंबन नहीं है, केवल तिथि ही दी है। अतः इनमें पहले का पत्र कोन सा है. निश्चित नहीं कहा जा सकता। मृरि जी के दिये हुये पत्रों में एक का अंतिम अंश त्रुटित है। दूसरे का प्रारम्भिक थोडासा अंश त्रुटिन है । दो पत्रों में संवत् का उल्लेख पाया जाता है। सूरिजी के एक पत्र में महाराजा के पुत्र होने का अन्य में ३ पुत्रों का उल्लेख है। इसी पत्र में टूढियों के प्रचार को रोकने के लिये महाराजा को लिखा गया है। इससे एक ऐतिहासिक तणय का पता चलता है कि उस समय ढूंढियों का प्रचार काफी तेजी से बढ़ रहा था। जोधपुरादि में भी उसको रोकने का प्रयत्न किया गया था ऐसा उलोग्य अन्यत्र प्राप्त है । परम विद्यानुरागी महाराजा अनुपसिंह के पश्चात् जिनसुग्वसूरि को दिये गये सुजान सिंह के दो सुन्दर पत्र भी हमारे संग्रह में हैं, जिन्हें अन्य लेग्व में प्रकाशित किया जायगा।
प्रसंगवश जिनका पत्र व्यवहार यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है उनका संक्षिप्त परिचय भी यहाँ दे देना आवश्यक समझता हूं। इनमें से महाराजा अनुपसिह जी तो
१ देग्वें हमाग युग प्रधान जिनचंद्र मूर नामक ग्रन्थ ।।
२ जिनका विशेष परिचय श्रीझा जी के इतिहास माधवकृष्ण शमा के लेखों में एवं मेरा महाराजा अनूप सिंह जी के आश्रित हिन्दी कवि लेख में दिया गया है।