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किरण २]
तौलव के जैन पालेयगार-- नरेश
उस अवसर पर
सर्प देखा । उसी रोज रात्रि में स्वप्न में एक कन्या के रूप में देवी पद्मावती ने प्रत्यक्ष हो मंत्री कृष्णष्य की यह आश्वासन दिया कि थोड़े ही दिनों में आप लोगों की चिर कामना पूर्ण होकर यह कष्ट अवश्य दूर होगा । साथ ही साथ देवीने उसे यह भी आशा दी कि जहाँ पर हजाम का श्रीजार गायव हुआ था वहाँ पर मन्दिर निर्माण कराकर मेरी मूर्ति को स्थापित कर देना । प्रातः काल होते ही मन्त्री ने सहर्ष सबको अपने स्वप्न का समाचार सुनाया । इस शुभ समाचार से सभी प्रसन्न हुए । इसके बाद थोड़े समय में विष्णुवर्धन का पुत्र त्रिभुवनमल्ल भुजबल वीरगंग प्रथम नरसिंह अपने प्रान्त के संदर्शन के लिये बंगवाडि में आया । राजा चन्द्रशेखर के मन्त्री, पुरोहित श्रादि राजकर्मचारी राजकुमार को साथ लेकर उससे जाकर मिले और अपना कुल दुःख राजा बल्लाल को सुनाया। इस दुग्वद समाचार से राजा वीरनरसिंह बा खिन्न हुआ और सनेह राजकुमार को अपनी गोदी में बैठाकर नोंदी के बरतन में दूध मँगाकर अपने ही हाथ से उसे पिलाया। बाद कतिपय शुभ चिन्हों से राजकुमार को होनहार समझकर समुद्र तक के नेमावती नदी के दोनों टी २० बल्लालो के अधीनस्थ बंगवाडि, बेलतंगड, पुत्तुक, चटवाल, मंजेश्वर, मंगलूर आदि प्रान्त धारापूर्वक राजा वीरनरसिंह राजकुमार को दिये गये । इतना ही नहीं, राजा वीरनरसिंह ने राजकुमार को अपना ही समझकर के नाम atraafia वंगराजा इस अपने ही नाम से उसे संबोधित किया। तब से अभी तक पट्ट राज्य के साथ ही के आदि में प्रायः airfie शब्द को जोड़ने की प्रथा चली आ रही है। साथ बंगराजा को पालकी, रत्नकंबल, छत्र, नामर, पट्ट का मोटा पट्ट का हाथी, पट्ट की तलवार, पट्ट की अंगूठी और tara fद सभी राजचिन्हों की सिंह बल्लाल ने राजाबग को सम्मानपूर्वक प्रदान किया ।
द्वारा
इस
उपरान्त बंगवाड में नेत्रावती के तीर में एक महल निर्माण कराया गया और शा० श० १०७६. में फाल्गुन कृष्णा दशमी को धूम का शुभ कार्य संपन्न हुआ । पट्टाभिषेक के शुभावसर पर सभी प्रान्तों का गण्यमान्य प्रतिष्ठित प्रजावर्ग सानन्द एकत्रित हुआ था | एकत्रित इन प्रतिष्ठित बलिष्ट व्यक्तियों में नद्गुतु. नालरुगुन् यदि चार गुत्तुवाले राजा के प्रधान सहायक या अधिकारी घोषित किये गये। पट्टाभिषेक के समय में इन गुत्तवालों में से एक को सिंहासन पर बैठाने का दूसरे की पट्ट की अंगूठी पहनाने का, तीसरे की पट्ट की तलवार राजा के हाथ में देने का और चौथे की पट्ट का नाम घोषित करने का अधिकार वंशपरंपरा के लिये दिया गया । अनन्तर पूर्व सूचनानुसार जहाँ पर हजाम का बीजार गायब हुआ था वहाँ पर देवालय निर्माण कराकर देवी की प्रतिमा स्थापित की गयी । भी मौजूद है । बाद इस देवालय के अतिरिक्त सोमनाथ, गणपति, वीरभद्र, शान्तीश्वर, क्षेत्रपाल, aurant आदि के लिये प्रत्येक प्रत्येक श्रालय बनवाकर प्रत्येक प्रत्येक मूर्तियों की
चंगवाड में वह देवालय ग्राज