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भास्कर
[ भाग १७
अवदान कल्पलता में क्षेमेन्द्र ने भी सम्पद्दी ( सम्प्रति ) को अशोक का पौत्र और
उत्तराधिकारी माना है। इसने लिखा है
तत्पौत्रः संपदी नाम, लोभान्धस्तस्य शासनम् । दानपुण्यप्रवृत्तस्य, कोषाध्यक्षैरवारयत् । ॥ दाने निषिद्धे पौत्रेण, संघाय पृथ्वीपतिः । भैषज्यामलकस्यार्ध, ददौ सवस्वतां गतम् ॥६॥
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- बोधिसत्त्वावदान कल्पलता पल्लव ७४ पृ० ५६७ तस्मिंश्च सनये कुनालस्य संपदी नाम पुत्र युवराज्ये प्रवर्तते । तस्यामात्यैरभिहितं कुमार ! अशोको राजा स्वल्पकालावस्थायी इदं च द्रव्यं कुर्कुटारामं प्रेपवते कोशयलिनश्च राजानी निवासि तव्यः । यावत् कुमारेण भांडागारिकः प्रतिषिद्धाः । या राशीकस्याप्रतिषिद्धाः ( ? ) तथ्य सुवर्णभाजने श्राहारमुपनाम्यते, मुक्ता तानि सुवर्णभाजनानि कुक्कुटारामं प्रेपयति ।............. अथ राजाऽशांक, सादुदिननयनवदनोऽमात्यानुवाच दाक्षिण्यात श्रनृतं हि किं कथय
वयम् शेषं त्वामलकार्धमन्यवसितं यत्र प्रत्यं मम । ऐश्वर्यमुद्धतनदीतीययवेशं पस
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मत्येन्द्रस्य ममापि यत् प्रतिभयं दारिद्रयमभ्यागतम् ॥
अर्थात- राजा अशोक की बौद्धको सो करोड़ दान देने की इच्छा हुई और उसने दान देना शुरु किया । ३६ वर्ष में उसने ६६ करो तो दे दिया, पर अभी करोड़ देना बाकी था, तब वह बीमार पड़ गया, जिंदगी का मरीना न समझकर उसने अवशेष नार करोड़ की
चुका देने के लिये खजाने से कुक्कुटाराम में भिक्षुओं के लिये द्रव्य भेजना शुरु किया । मन्त्रियों ने कुनाल पुत्र संपदी से कहा- राजन राजा अशोक ग्रथ थोड़े दिन ही रहनेवाला है, राजाश्री का खजाना बल है, अतः कुकुटाराम जो द्रव्य भेजा जा रहा है, उसे रोकना चाहिये। मां त्रयों की सलाह से युवराज संपदी ने कोशाध्यक्ष का धन देने से रोक दिया। इस पर अशोक ने अपने भोजन करने के सोने, चांदी और अन्य धातुओं के पात्रों को भी दान कर दिया जा के पास श्राधा श्रवला शेष रह गया। उसने मन्त्रियों और प्रजागा को एकत्रित कर कहाताश्री इस समय पृथ्वी में सत्ताधारी कौन है ? सभी ने एक स्वर से कहा--पी ईश्वर सत्ताधारी राजा है । अशोक -- तुम दाक्षिण्य से झूठ क्यों बोलते हो ? इस समय हमारा प्रभुत्व अधामलक पर है। इतना कह कर अशोक ने उसे भी पास के एक व्यक्ति द्वारा कुट राम संघ के पास भेज दिया। संघ ने यूपमें मिलाकर आपस में बांट लिया । राजा अशोक ने अन्तिम समय में राधगुम श्रमान्य के समक्ष चार करोड़ स्वर्णदान के बदले में समस्त पृथ्वी का दान कर दिया। अशोक की मृत्यु के उपरान्त श्रमात्यों ने संघ में ४ करोड़ सुवर्ण देकर पृथ्वी को छुड़ाया और वाद में संपदी का राज्याभिषेक किया गया ।
दिव्यावदान २६