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फिरा १]
श्री जैन सिद्धान्त भवन, आरा का वार्षिक विवरण
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संस्कृत - (१) महाराज संस्कृत पाठशाला पत्रिका |
इस प्रकार कुल ६० पत्र-पत्रिकाएँ भास्कर के परिवर्तन में आती रही हैं । इनके अतिरिक्त (१) Indian Historical Quarterly (२) विशाल भारत (३) सरस्वती (४) साप्ताहिक संसार (५) दैनिक संसार (६) श्रज (७) विश्वमित्र (८) प्रदीप (ह) नवीन भारत (१०) नवराष्ट्र (११) आर्यावर्त ( १२ ) The Indian Nation (१२) अमृतबाजार पत्रिका; ये पत्र भवन से मूल्य देकर मंगाये जाते रहे हैं। इधर कुछ महीनों से इन्डियन नेशन, सर्चलाइट और अमृतवावार पत्रिका देवाश्रम से तथा नवराष्ट्र और आर्यावर्त श्री बा० रघुनन्दन प्रसाद जी से भवन को निःशुल्क मिल रहे हैं। एतदर्थ भवन उनका आभारी है।
पाठक5- भवन के सामान्य पाठक वे हैं, जो भवन में ही बैठकर अभीष्ट प्रन्थों का अध्ययन करते हैं, क्योंकि सर्वसाधारण जनता को ग्रन्थ घर ले जाने के लिये नहीं दिये जाते । इन पाठकों के अतिरिक्त विशेष नियम से कुछ लोगों को घर ले जाने के लिये भी ग्रन्थ दिये गये हैं । इन ग्रन्थों को इस वर्ष की संख्या ४०५ है । इनमें स्थानीय व्यक्तियों के अतिरिक्त श्रीमान् पं० कैलाशवन्द्र जी शास्त्री, प्रिंसिपल स्याद्वाद महाविद्यालय काशी, श्रीमान् पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्य, संयुक्त मन्त्री दि० जैन विद्वत्परिषद् सागर, श्रीमान् बाबू कामता प्रसाद एम० आर० ए० एस० अलीगंज, श्रीमान् डा० ए० एन० उपाध्ये एम० ए०, डी० लिट्० कोल्हापुर, श्रीमान् अगरचन्द नाहटा बीकानेर, श्रीमान् प्रो० शेषय्यंगार एम० ए० मद्रास यूनीवर्सिटी, श्रीमान कविवर रामधारी सिंह 'दिनकर' पटना, श्रीमान् पं० बालचन्द जी शास्त्री, जैन साहित्योद्धारक कार्यालय अमरावती, श्रीमान् बाबू रामबालक प्रसाद साहित्यरत्न पुलिस विभाग सेक्रेटेरियट पटना, श्रीमान् उमाकान्त प्रेमचन्द शाह घड़ियालो पोल बड़ौदा, श्रीमान् प्रो० राजकुमार जी साहित्याचार्य बड़ौत, श्रीमान् फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री वर्णी प्रन्थमाला काशी, श्री० पं० परमानंद जी शास्त्री वीरसेवा मन्दिर सरसावा, श्री० पं० सुखनन्दन जी शास्त्र दि० जैन गुरुकुल हस्तिनापुर ।
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इस वर्ष शान्ति सम्मेलन के अवसर पर कलकत्ते में होने वाली जैन प्रदर्शनी के लिये " भवन" की अनेक महत्वपूर्ण वस्तुएँ गयी थीं । श्री १०८ आचार्य देश भूषण महाराज का आरा में चातुर्मास हुआ, उन्होंने कन्नड़ एवं संस्कृत के हस्तलिखित ग्रन्थों का विशेष अवलोकन किया तथा रत्नाकरशतक और धर्मामृत इन दोनों ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद 'भवन' की प्रतियों से किया है । ताडपत्रीय प्रायः सभी ग्रन्थों का वाचन अपने चातुर्मास में किया, जिससे पुरानी सूची में कुछ संशोधन किये गये ।