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भास्कर
[भाग १७
विहार बनवाये, वहां ही बाज जनों का एक भी चिन्ह शेष नहीं है। बौद्धधर्म ने अपना
आधिपत्य लंका में जमा लिया । यही हाल अन्य देशों में हुआ। फिर भी साहित्य में ऐसे उल्लेख मिलते हैं जिनके आधार से यह निस्सन्देश मानना पडना है कि भारत के बाहर दूर-दूर देशों तक जैनधर्म का प्रचार किया गया था। प्रस्तुत लेख में हम अफगानिस्तान, अरब और ईरान के देशों में जनधम के अस्तित्व को सिद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं। पाठक दरग कि धमकिस प्रकार इन देशों में प्रचलित था। अफगानिस्तान
अग्वएड भारत की पश्चिमोत्तर मामा का पार कर जब हम हिदकश पर्वत के उस और खैबर के दर को लांघकर पहंका है ना अमाता का भूम में जा रई होते हैं। प्राचीन काल में यह भूमि ईरान की सामान : भारतवर्ष का है: एक भाग मानी जाती थी। जैन धर्मानुयायी नौयमन्त्रद चन्द्रगुप के बदन मात्राज्य की पचि मांतर सोमा अफगानिस्तान के बरं कान को मामा के साथ साथ सरेया में चल थी। बहुत समय तक अफगानिस्तान भारत के आधीन रहा ग उम्मको उत्तरीय भारत' कहते थे । किन्तु आज अफगानिस्तान ना दूर रहा: भारत र नापने हा अंग सिंध-पंजाब यदि भी पसरवन गये। उस समय अगानिम्नान ५.८, वर्गमाल में फैला हुआ है और उनमें पचास नाव नारन बमने है । मन से ५:८. वर पहले दाग पिलार के (Dis tirst. p. ; । समय में
व सुंधअभिव. मानगिदीय, अपारन, दतिक. न्यारी और पाम नाम जानियां अलग गय करता थीं। गन्न कान में इडोक राजाओं का शासन अफगानिम्नान पर पाया। इन राजाओं में मंत्रिक (Denix its और मनेन्दर (Melinder) उल्लेखनीय थे । कनिष्क के साम्राज्य का विस्तार अफगानिस्तान से भी आगे नफ फैला हुअा था। मन ६३० ६.१५ ई. में चीनी पटक हानन्यांन ने तुर्की पोर भारतीय राजाओं का अफगानिस्तान में गज्य करते हुए पाया था। किन्तु मुबुक्तगीन ने दसवों शताब्दि में हिन्दू १ जैन मिदान भास्कर ना० १६०६-१८ २ चीनी यात्री फाह्यान (३६-४१३ ई.) ने वही जिया है: -
"The country of Wuchang commences North India. The language of nud India is used by all". इस पर श्री रनजीत पंडिन ने लिखा था:
The eminent Chinese Buddhist pilgrim Fabien, who visited India passed through Alghanistan, which he calle = 'North India' -Modern Review, 927. pp. 132