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भास्कर
कम्बोज नाम से प्रसिद्ध था' | जैनों की आबादी इन देशों में भी थी । सम्राट् चन्द्रगुप्त और उनके पौत्र अशोक एवं प्रत्र सम्पति ने अहिंसा और जैनधर्म का प्रचार इन देशों में किया था । यही कारण है कि जब सातवीं शताब्दि में चीनी पर्यटक gratसांग वहाँ आये तो उन्हें वहाँ पर बहुत से दिगम्बर जैनी मिले थे । शङ्कराचार्य के विषय में भी कहा जाता है कि उन्होंने बाल्डीक में जाकर दिगम्बर जैनों से शास्त्रार्थं किया था। इसके बहुत पहले इंडोग्रीक राजाओं में मेनेन्डर के विषय में बौद्धग्रन्थ 'मिलिन्दप' से प्रकट हैं कि जैन श्रमणों से उसने शङ्कासमाधान किया था । किन्तु अठवीं के पश्चात् अफगानिस्तान में जब मुसलमान शासक राज्याधिकारी हो गये, तब भारत से उसका सम्पर्क टूट सा गया । जैनधर्म का स्थान वहाँ पहले से ही बौद्धधर्म लेता आ रहा था। यही कारण है कि वहाँ जैनधर्म का ह्रास हो गया और जैन कीतियाँ बौद्ध बना ली गयीं ।
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पेशावर से उत्तर पूर्व में चालीस मील की दूरी पर युसुफजाइ नामक प्रदेश में शाहबाजगद्दी नाम के स्थान पर सन्नाट अशोक ने ठीक वहीं शासन लेख उत्कीर्ण कराया था जो उन्होंने जैनतीर्थ गिरिनार में खुदवाया था। इसमें उन्होंने भिन्न मतों, साधुओं और गृहस्थों का उल्लेख किया है और उनसे यही आशा की है कि वे स वचनगुप्ति का पालन करेंगे और एक दूसरे पर आक्षेप नहीं करेंगे। इस उल्लेख से भी स्पष्ट है कि अशोक के समय में भी कवि से पुरुषपुर (पेशावर) तक अनेक मत मतान्तर प्रचलित थे । किन्दर को भी तत्क्षशिला में कई भारतीय साधु मिले थे, जिनमें नग्न जैन श्रमण भी थे। यूनानियों ने उनको (Gymnosophist ) नाम से पुकारा था । अफगानिस्तान में समनी देश नामक राजा ने सन व्ह से हहह तक सभी इस्लामी राज्यपर शासन किया था। उसके विषय में कहा जाता है कि उसने 1 lbid, p. 292.
2 "There are some ten temples of the Devas and thousand or so of heretics; there are naked ascetics and other........" (Yuan Chwang). Thus Digambara Jainas, Pashupats, and Kapaladharing flourished in the north of Kabul, -Modern Review, 1927, p. 138
"प्रतिपद्य तु बालिकामा विनविभ्यः प्रविवृति स्वभाष्यम् । श्रवदन्नसद्दिवः प्रवीणाः समये केचिदादाभिमाने || १४२||
[ भाग १७
-श्री मच्छंकर दिग्विजय
४ अशोक के शिलालेख
5 Encyclopaedia Britannica, Vol. XXV, 11th ed.