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किरण १
विविध-विषय
"इति श्री तपगच्छ मध्ये चन्द्रमाषायां ( चन्द्र शाखायां ) पंडिन मुक्तिचंद्र तत् शिप्य पंडित श्री षेमचन्द्र विरचितायां गुण नाला-चौपई संम्पूर्ण । संवत् १७८८ वर्षे मिति चैत्रसुदि ५ दिन जात कुसला लिपिकृतं श्रीमालपुर मध्ये । श्रीरस्तुः कल्याणमातुः ।"
इससे यह भी स्पष्ट है कि प्रस्तुत प्रति को यति कुशल ने चैत्र सुदी ५ संवत् १७८८ में श्रीमालपुर में लिखा था। इस प्रकार यह प्रति लगभग २२० वर्ष पुरानी है। यद्यपि इसमें गज-सिंह गुणमाल का प्राचीन पाख्यान दिया गया है, परन्तु कविने उसमें अपने ममय के समाज, सम्प्रदाय और राज्य का भी चित्रण किया है। कवि जम्बूद्वीप में २५।। आर्य देशों का उल्लेख करता है-शेष सभी अनार्य देश थे। (पारिजदेश साढापचवीस, तिहाँ रहै धरमतराल अधीस। अवर सहु अनारिज देश । तिहां नहि धरमतौं लवलेस ॥२॥,) वह लिखता है कि पूर्वदेश में १२ योजन विस्तार की गोरखपुरी नामक नगरी थी, जिसमें ८४ जातियों के लोग रहते थे। ' उनमें ३२ जातियां जुदी
और पूर्ण थीं। खेद है, कवि ने इनके नाम नहीं लिखे हैं। नगर में जैनों और शैवों के मंदिर थे तथा बड़े २ हाट बाजार थे। सब लोग धर्मात्मा थे। इस गोरखपुरी में अरिमर्दन राना राज्य करता था, जिसकी कनकावती रानी की कोख से गजसिंह नामक राजकुमार का जन्म हुआ था। उसकी शिक्षा का प्रारम्भ 'ॐ नमः सिद्ध अनुरूप बारह खड़ी से हुआ था। वह जैनधर्म का श्रद्वालु था। राजा रानी ने पुत्र का विवाह किया और राज्यभार उसको सौंप कर स्वयं चरित्र पालने के लिये वनवासी हो गये। गोरखपुरी में सेठ-कन्या गुणमाला के रूप पर मोहित होकर गजसिंह ने उसके साथ विवाह किया था। इससे स्पष्ट है कि उस समय क्षत्रिय वैश्यादि जातियों में परस्पर विजातीय विवाह होते थे। कारण यश गजसिंह गुणमाला से रूठ गये । गुणमाला अकेली रहने लगी। एक विद्याधर ने उसे शीलधर्म से डिगाना चाहा, परन्तु गुणमाला अपने धर्म पर दृढ़ रही। विद्याधर ने प्रसन्न होकर कतिपय विद्यायें गुणमाला को भेंट की। उपर गतसिंह उससे सशक रहने लगा। वह किसी सिद्ध-पुरुष की तलाश में रहा और यंत्र-मंत्र के चक्र में पड़ गया। देवी, भैरव, यक्ष को बलि देने को उयत हुआ। मंत्रवादी योगी अवधूत ने अपनी करतून से उसको मोह लिया। इस वर्णन मे तत्कालीन तांत्रिकों और गुरु गोरखनाथ के योगियों के कार्यों का परिचय मिलता है। उधर एक जोगिन के द्वारा गुणमाला की परीक्षा कराई गई। गुणमाला शील शिरोमणि थी-किसी को उसके आगे कुछ भी न चली । गजसिंह और गुणमाला सप्रेम रहने लगे। एक दिन एक विद्याधरी गजसिंह को हरले गई और उसीका पति