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किरण १]
विविध विषय
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देवली के ऊपर एक तीर्थकर मूर्ति अङ्कित है, जिसके नीचे सर्प चिन्ह बना हुमा है। लेख निम्न प्रकार है :
२ "संवत् १०७६ पौष शुदि १२ श्री पद्मलेनाचार्य देवलोकं गतः ॥ चित्रनंदिना प्रतिष्ठेयं ।" .. ३ "संवत् १०३६. पौष वदि १ श्री पद्मपेनाचार्य देवनोकंगतः । देवनंदिना प्रतिष्ठेयं।"
एक अन्य शिलालेख इस प्रकार है :
४ स्वाती श्री महाराजाधिराज श्री वासुदेवरा नः ॥ संवत् १२१६ माघपुदि १३ सन दिने नाहमेल वछम गोत्र सीह सुनः रागेजन स्वर्ग गतः ॥ वेरुणल ग्रामश्च ।" विजोलिया ( मेवाड़ ) का एक शिलालेख भी निम्न प्रकार उद्धृत किया है :- .
"श्री गुरुभ्यो नमः। श्री मारमगंभीरं स्याद्वादमोघलांछनं। जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥१॥ श्री वलात्कारगणे । सरस्वतीगच्छे। श्री महिसंघे । (?) कुन्दकुन्दावार्यन्वये भट्टारक श्री...... ..कीर्तिदेवा....चन्द्रदेवास्ताट्टे भट्टारक श्रीरलकीर्तिदेशातस्पट्टे भट्टारक श्री राम देवास्तपट्टे भट्टःरक श्री पद्मानंदि देवास्तपट्टे भट्टारक श्री भानुचन्द्र देवाः । कस्य तीर्थकरस्पेव महिमा भुवनानिगः । रलतियां न तुत्यः स न के षाम... ......१॥ अहंकार स्फारो भवदमित वे......विवधो लसरलां नश्रेणी क्षपण निधनोक्तिद्युति चुरः। अत्रीती जैनेन्द्रे जनि र निन्गय प्रतिनिधिः प्रभा चन्द्रः सांद्रोदय शमितताय व्यतिकरः ॥२। श्रीमसभाचंद्र मुनींद्रपट्ट लब्ध प्रतिष्ठः प्रतिभागरिष्ठः । विशुद्ध सिद्वांतरहस्य रत्नरत्ना करो नंदतु पद्मनन्दी ॥३॥ पद्मनंदि मुणे पट्टे शुभचन्द्रो यतीश्वरः। तर्कादिकविद्य'सु गच्चं धारोक्ति सांगतं ॥४। पट्टे श्री यति पद्मनंदि विदुषश्चारित्र चूड़ामणिः सयाम्या (?) मृतम (१) घ कैरव कुलं तुष्टिं परां नीतवान् । वाणीलब्ध ...... ..वः प्रसाद महिमा श्रमच्छुभे दुर्गुणी मिथ्याध्वांत विनाशनेक सुकरः स......घ चिन्तामणिः ॥......
वई लोक .....विनय सिरि तस्याः शिक्षणी वाई चारित्रसिरि ॥ वाई चारित्र को शिक्षणी ६ वाई भागमसिरि वाई श्चरि..........तस्या इयं निषेधिका आचंद्र तारकाक्षयं ॥ संवत् १४८३ वर्षे फल्गुन शुदि ३ गुरौ ॥ शुभमस्तु ॥" __ श्री शिलालेख से विजोलिया ( मारवाड़) में १५ वीं शताब्दि तक दिगम्बर जैनआर्यिकाओं की एक परम्परा का अस्तित्व प्रमाणित है। ऐसी ही एक मार्यिका का यह निषधिका लेख है।