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किरण १]
साहित्य-समीक्षा
छपाई सफाई अच्छी है। प्रूफ में दो-चार अशुद्धियाँ रह गयी हैं। प्रत्येक स्वाध्याय प्रेमी को इस पुस्तक को मंगाकर लाभ उठाना चाहिये ।
सभाष्य रत्न मंजुषा (छन्दो प्रन्थ) - सम्पादकः प्राध्यापक हरि दामोदर, वेलणकर, विल्सन महाविद्यालय, मुम्बती ; प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ काशी; पृष्ठ संख्या : ७+/+23; मूल्य : दो रुपये ।
यह छन्द विषयक जैन ग्रन्थ है। आदि में सम्पादक की प्रस्तावना है, जिसमें ग्रन्थ के सम्बन्ध में पूरा प्रकाश डाला गया है। सिंगल छन्दशास्त्र के समान या सूत्रों में लिखा गया है। इसमें आठ अध्याय हैं। सूत्रों पर जैनचार्य की टीका है । नैयायिक शैली की इस टीका से ग्रन्थ का विषय सष्ट हो जाता है । सम्पादक ने ग्रन्थ को सर्वाङ्ग सुन्दर बनाने का पूर्ण यत्न किया है । जहाँ-तहाँ संशोधनात्मक टिप्पण भी दिये हैं । ग्रत्थ के अन्त में प्रत्येक अध्याय पर अतो भाषा में पृथक पृथक नोटस दिये हैं। यदि इन नोटों का हिन्दी अनुवाद भी दे दिया जाता तो संस्कृत के विद्यार्थियों का ज्यादा उपकार होता; छन्द शास्त्र के प्रेमी एवं संस्कृत के ज्ञाताओं को इसे मंगाकर लाभ उठाना चाहिये | छपाई - सफाई- गेटप आदि सुन्दर हैं ।
नाममाला समय ग्रन्थकर्त्ता : धनञ्जय;
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भाध्यकार : अमरकोति; संपादक : श्री पं० शम्भुराय त्रिपाठी व्याकरणाचार्य. सप्ततीर्थ; प्रकाशकः भारतीय ज्ञानपीठ काशी; पृष्ठ संख्या: १४ + १४० मूल्य : ३|| ये ।
महाकवि धनञ्जय ने २०० श्लोकों में ही संस्कृत के प्रमुख शब्दों का चयन कर गागर में सागर भर दिया है। शब्द से शब्दान्तर बनाने की विचित्र पद्धत्तियाँ भी दी हैं, जिससे यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा प्रमियों के लिये निवास उपयोगी बन गया है। ज्ञानपीठ ने इस उपयोगी ग्रन्थ का अमरकीर्त्ति विरचित भाष्य प्रकाशित कर संस्कृत के विद्यार्थियों का बड़ा भारी उपकार किया है । प्रस्तुत संस्करण के आरम्भ में न्यायचार्य श्री पंत्र महेन्द्रकुमार जी की १४ पृष्ठों में प्रस्तावना है, जिसमें आपने महाकवि धनञ्जय के जीवन वृत्त और नाममाला भाग्य के सम्बन्ध में अनेक ज्ञातव्य बातों पर प्रकाश डाला है ।
ग्रन्थ को सर्वाङ्ग सुन्दर और उपयोगी बनाने के लिये सम्पादक ने टिप्पण दिये हैं; जिनसे शब्दों की उत्पति का पूर्ण ज्ञान हो जाता है । सम्पादन में पर्याप्त श्रम किया गया है, जिससे यह मन्य अत्यधिक पठनीय हो गया है । ग्रन्थ के अन्त में अनेकार्थ निघण्टु और एकाक्षरी नाममाला ग्रन्थ भी दिये गये हैं । शब्दानुक्रमणिकाएँ, जो कि