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किरण १]
रूप और कर्म - एक तुलनात्मक वैज्ञानिक विवेचन
और पुद्गल की रचना भी निर्जीव ही है। स्वयं बिजली के यन्त्रों की तरह ये रचनाएं कुछ नहीं कर सकतीं, जबकि उनमें विद्युतप्रवाद या जीवन न हो । विद्युतयन्त्रों में और मानव शरीर मैं भेद केवल यह है कि इन यन्त्रों का निर्माण करके उनमें बिजली का प्रवाह जारी किया जाता है जबकि मानव शरीर में आत्मा या जीवनी शक्ति और शरीर साथ ही साथ श्रारंभ से ही रहते हैं और शरीर का परिवर्तन सर्वदा साथ साथ ही होता रहता है। ह्रास या वृद्धि भी साथ ही साथ होती है। इससे हम दोनों को अलग अलग अनुभूत नहीं कर पाते। केवल मृत्यु के समय ही ऐसा लगता है कि सारे शरीर की बनावट ज्यों की त्यों होते हुए भी जो चालू शक्ति थी वह अब नहीं रही । जैसे बिजली के चलते यन्त्र से बिजली का आवागमन हटा लिया जाय तो वह यन्त्र एक दम कार्य बंद कर देगा। फिर भी बिजली का यन्त्र स्थिर या स्थायी दीखता है जबकि हांड़-मांस का बना शरीर तुरंत सड़ने गलने लगता है । इन हाड़ मांस को निर्माण करने वाली वर्गणाओं का असर एवं गुण ही ऐसा है जिसके कारण यह सब होता है । हाड़ मांप ही क्यों, निर्जीव धातुओं और रसायन (chemicals) के साथ भी ऐसी कितनी वस्तुएं हैं जो जल्दी नष्ट होनेवाली (perishable) होती हैं और कुछ काफी स्थायी । मानव शरीर पिन धातुओं और रसायनों से चना है उनकी बनावट ऐसी है कि वायु ( atmosphere) की वर्गणात्रों के साथ मिल कर जीवन रहने पर उनमें परिवर्तन चालू रहता है जब कि जीवन रहित हो जाने पर वे ही ऐसी वस्तुओं में परिणत होजाती हैं जिन्हें हम दुर्गन्धिमय या सड़ा गला कहते हैं। पर होता सब कुछ वर्गणाओं की बनावट, आपसी क्रिया-प्रक्रिया एवं गुण इत्यादि के कारण ही है | यह सब कुछ स्वाभाविक रूप से अपने आप ही आप-सी क्रिया-प्रक्रिया द्वारा होता है ।
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मनुष्य का "मन" और "शरीर" ही मनुष्य के स्वभाव को निर्मित या निश्चित करते हैं । मन की गति और हलन चलन एवं शरीर की गति और हलन चलन के द्वारा ही मनुष्य का आचार, व्यवहार, क्रियाकलाप, चालचलन, कार्यक्रम, अच्छाई-बुराई, साधुता- दुष्टता, शांतता तीव्रता, धैर्यता, व्यवस्थितता, क्रोध, क्षमा, वैर-मेल, हंसी-दुख, प्रसन्नता अवसाद, मिष्ठता-कटुता इत्यादि सब कुछ बनते या होते हैं । मन एवं शरीर की गति और हलन चलन उनको निर्माण करनेवाली वर्गणाओं के संगठन और वर्गणानिर्मित रूपरेखा पर ही निर्भर करते हैं ।
आचार व्यवहार, मानसिक संचरण,
संसार में जितने मनुष्य हैं उनके स्वभाव, बोलचाल, क्रियाकलाप और उनका सब कुछ एक दूसरे से भिन्न हैं। मनुष्य जो कुछ जब भी करता है वह वर्गणात्रों की बनाई रूप रेखा की विशेषता द्वारा सीमित एवं वद्ध जीवनी शक्ति द्वारा संचालित होता हुआ ही करता है । एक मनुष्य का रूप, शक्ल सूरत, सुन्दरता-कुरूपता, स्वस्थता, स्वभाव की अच्छाई, बुराई इत्यादि सब कुछ उसके शरीर और मन को निर्माण करने वाली वर्गणाओं द्वारा निर्मित और एक खास तरह का ही होता है । कोई मनुष्य जो कुछ भी करता है उसके अतिरिक्त