________________
भास्कर
[भाग १७
११७ वें पद्य में बताया गया है कि भट्टाकलंक देव ने कुसुमाजलि यक्षि का साधन कर जैनधर्म का उद्योतन किया। इसके आगे के पद्यों में इन चारों प्राचार्यो का उपसंहार रूप से वर्णन है। यह ग्रन्थ पूरा नहीं है, क्योंकि ग्रन्थकों ने अद्वली से लेकर चारुकीर्ति आचार्य तक समस्त आचार्यों की वंशावली का वर्णन करने की प्रतिज्ञा की थी; किन्तु अकलंक देव के अनन्तर वंशावली नहीं दो गयी है। अतएव यह सुनिश्चित है कि यह अन्य अधूरा है। इसकी पूरी प्रति जहाँ हो, वहाँ के अधिकारियों को सूचना देने की कृपा करनी चाहिये।
इस प्रन्थ की वर्णन शैली काव्यात्मक है। प्राचार्यो' की पट्टावली में भी अन्य ग्रन्थों की अपेक्षा कुछ अन्तर है। कवि चिदानन्द ने इसमें प्राचार्यों के इतिहास के साथ मैसूर के राजवंश का भी इतिहास दिया है। चिक्कदेवराय तथा इसके पूर्व वंशजों का निरूपण भी इस ग्रन्थ में किया गया है। श्रवणबेलगोलस्थ गोम्मटस्वामी की प्रतिमा का इतिहास मनोरञ्जन और ज्ञानबर्द्धक है। इतिहास इस बात का मानी है कि गोम्मट स्वामी की उक्त मूर्ति की प्रतिया चामुण्डाय ने की थी. परन्तु चामुण्ड राय को भी यह प्राचीन मूनि ही उपलब्ध हुई थी। उसने वारणों के द्वारा केवल चट्टानों को मूर्ति पर से हटा दिया था। जब मृति प्रकट हो गये'. नव रमको मानेश्वरी दर्शन कर बहुन प्रसन्न हुई । क्योंकि चामुण्डराय अपनी माता के अाग्रह से पोदनपुर के गोम्मटस्वामी के दर्शन करने जा रहा था। पोदनपुर में भरत चक्रपनों ने ५१ धनुष प्रमाण एक खगासन प्रतिमा स्थापित की थी। समयानुसार इन मूनि का दर्शन जन साधारण के लिये असंभव हो गया था। केवल मुनिजन ही मात्रयल से उस मूर्ति का दर्शन कर सकते थे। चामुगडराय ने अपन: अनई द्विारा यह जानकर कि इस स्थान पर गोम्मट स्वामी की मृति है, बागा चलाया जिससे भाम द्वारा एकत्रित चट्टान खण्ड अलग हो गये और मृत्ति का मानात्कार होने लगा।
श्रवणबेलगोल प्राचीन काल से कला, साहित्य और धर्म प्रचार की दृष्टि में महत्य. पूर्ण स्थान रहा है । जैन संस्कृति की लगभग ढाई हजार वर्षों की गौरव गाथा इस स्थान पर सुरक्षित है। यहाँ के विशाल, रमणीक और दिव्य मन्दिर, प्राचीन गुमा अनुग्म मूर्तियाँ एवं उत्कीर्णित शिलालेख इस स्थान की महना प्रकट करते हैं। अगणित ऋषि-मुनियों ने यहाँ तपस्या कर अपनी अन्तरात्मा को पवित्र किया था, अनेक यात्रियों ने श्रद्धा से प्रेरित हो इस पवित्र स्थान के दर्शन कर अपने जन्म को सफल ममझा था। श्रवणवेल्गोल शब्द का अर्थ ही, 'जैन-मुनियों का धवल मरोवर है। महाराज राम. चन्द्र, अर्जुन, भीम आदि ने इस स्थान पर रहकर साधना की थी। लंका से लौटते