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रूफ और कर्म -- एक तुलनात्मक वैज्ञानिक
विवेचन । [ लेखक :--श्रीयुत अनन्त प्रसाद जैन B. Sc. (Eng.)]
विजलीवाले यन्त्र भिन्न भिन्न कार्य अपनी बनावट की विभिन्नता, छोटाई-बड़ाई, रूप, आकार, अंदरूनी अंग प्रत्यंग का गठन एवं हर एक छोटे-मोटे विभेद के अनुसार ही संपादन करते हैं। विद्युत शक्ति या विकली का प्रवाह सब में एक ही तरह का होता है। केवल बनावट की विभिन्नता के कारण ही कार्य, असर एवं व्यवहार अलग-अलग विभिन्न ता लिए हुए होते हैं। हर एक मॉलेक्यूल (molecule) का गुग, अमर प्रकृति या प्रभार सब कुछ उसकी प्रांतरिक संगठन एवं बनावट के ऊपर निर्भर करते हैं । किसी भी वस्तु के किसी मौलीक्यूल के अंदर इलेक्ट्रन (electron), प्रोटन (Proton) और न्यूटन (Neutron) परमाणुओं की कमवेश संख्या एवं पारस्परिक मिलावट, स्थिति, मेल अथवा संगठन रक विशेष निश्चित रूप में ही होते हैं। इनमें से किसी एक में भी फर्क पड़ जाने से या जरा भी इधर उधर होने से उस मोलेक्यूल के गुण असर, और प्रकृति सब में तबदीली आ जाती है। वह मौलीक्यूल उस वस्तु का मालीक्यूल न रह कर दूसरी वस्तु के मौलीक्यूल में परिवर्तित हो जाता है। मलिक्यूल का परिवर्तन हाना वस्तु का परिवर्तन होना ही है। किसी वस्तु का बाह्याकार मौलीवयूलों का एक महान समुदाय, संगठन या एकत्रीकरण है। मौलीक्यू न ही किसी वस्तु का छोटा ने छटा वह अविभाज्य भाग है, जिसमें वस्तु के सारे गुण पूर्ण रूप से विद्यमान रहते हैं। ये छोटे छोटे मौलीक्यूल मिलकर पिण्डरूप हा किसी वस्तु का और उसके रूप का निर्माण करते हैं। मौलीक्यूल को जैन शास्त्रों में
"वर्गणा" नाम दिया गया है। मालीक्यू नों को ही गुण और प्रभाव के अनुसार विभिन्न वगा में विभाजित करने से "वर्गणा” कहा गया है। एटम (मूलत्कंध, या मूलसंध Atom) भी एक प्रारंभिक प्रकार की वर्गणा ही है । इलेक्ट्रन, प्रोटन और न्यूटन इत्यादि का जो एटम या मौलीक्यूल का सृजन या निर्माण करते हैं उन्हें हम अंगरेजी में "electric particles” और हिन्दी में "विद्युतकण" कह सकते हैं। इन्हीं विद्युतकणों को "परमाणु" भी कहते हैं और जैन शास्त्रों में इनका एकमात्र नाम “पुद्गल' रखा गया है। इन "पुद्गलोंके मिलने से वर्गणाएँ" बनती हैं। एक वर्गणा के अन्दर विभिन्न पुद्गला की संन्या, उनका स्थान, उनकी श्रापसी दूरी एवं संगठन आदि सब कुछ निश्चित होता है। इन्हीं की सामनता के ऊपर वस्तुओं के गुणों की समानता एवं विषमता के ऊपर वस्तुश्री की विषमता निर्भर रहती है। किसी भी वर्गणा
अन्दर किसी मी सपरोक्त कथित व्योग में किसी एक मैं मी जरा मी हर पर होने से वर्गणा में