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श्रीजिनाय नमः
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वज्ञानमा
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जैनपुरातत्व और इतिहास-विषयक पाण्मासिक पत्र
भाग १७ }
भाग १७
जून, १९५० । आषाढ़, वीर नि० सं० २४७६
किरण १
चन्द्रगुप्त और चाणक्य
[ ले-श्रीयुत बा. ज्योति प्रसाद जैन, एम. ए., एल-एल० बी०, लखनऊ
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त और मन्त्रीश्वर चाकर भारतीय इतिहास नितिन के प्रारंभिक प्रकाशमान नक्षत्रों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। यदि चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत के प्रथम प्रबल प्रतापी सम्राट होने का तथा शक्तिशाली विदेगी शत्रओं और आक्रमणकारियों के दांत खट्टे कर उनसे अपने साम्राज्य को सुरक्षित बनाये रखने का श्रेय है, तो आचार्य चाणक्य उक्त साम्राज्य की स्थापना में मून निमित और उसके प्रधान म्तंभ थे। वे मम्र चन्द्रगुप्त के राजनीतिक गुरु, समर्थ सहायक, और उसके गज्य के कुशल व्यास्थापक एवं नियामक थे। राजनीति के ये महान गुरु और इनका प्रसिद्ध अर्थशास्त्र, अपने समय में ही नहीं वरन् तदोत्तरकालीन भारतीय गननीति और गजनीतिज्ञों के भी सफल मार्गदर्शक
प्राचीन यूनानी लेखकों के वृत्तान्तों, शिलालेखीय एवं साहित्यिक आधारों और प्राचीन अनुश्रुति की ब्राह्मणा एवं बौद्ध धारा से यह तो बहुत कुछ ज्ञात हो जाता है कि किस प्रकार मगध के तत्कालीन नन्द नरेश के बर्ताव से कु पेन होकर ब्राह्मण चाणक्य ने नन्द के नाश की प्रतिज्ञा की, किस प्रकार युद्धनीति एवं कूटनीति का विविध आश्रय लेकर मौर्य युवक वीर चन्द्रगुप्त के सहयोग से उन्होंने नन्दरा का उच्छेर किया, मौर्यवंरा की स्थापना हुई और चन्द्रगुप्त मौर्य मगर का सम्राट हुआ, किस प्रकार उन दोनों ने उक्त साम्राज्य का विस्तार कर उसे देश व्यापी बनाया, उसे सुदृढ़ रूप से संगठित किया, आदर्श व्यवस्था और सुशासन प्रदान किया, तथा राष्ट्र को सुची, समृद्ध, प्रतिष्ठिा एवं समुन्नत बनाया। गत शताब्दी की आधुनिक शोध-खोज से यह भी निर्विवाद सिद्ध हो चुका है