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किरण १]
चन्द्रगुप्त और चाणक्य
(सांवो) थे। शिशु चाणक्य जन्म से हो पूर्णद तावलि युक उ.पन्न हुआ था। उसके जन्म समय उसके पित्रालय में कुछ जैन साध (साहू) अतिथि थे। चणक ने नवजात शिशु को लाकर गुरु चरणों में नमस्कार कराया। बालक को यह अप्राकृतिक विशेषता जब उन साधुनों के लक्ष्य में अई तो उन्होंने यह भविष्यवाणी की कि यह बालक एक दिन अवश्य कोई बड़ा नरेश (गया) होगा। चणक एक धार्मिक वृत्ति का व्यक्ति था, सांसारिक राज्यैश्वर्य को वह दुर्गति का कारण समझता था और वह यह नहीं चाहता था कि उसका पुत्र राना हो और परिणाम स्वरूप नरकगामी बने । अतए । उसने तत्काल शिशु के राज्य चिन्ह रूप उक्त दांतों को उखाड़ दिया। यह देखकर उन साधुओं ने कहा कि यह बालक राज्य तो अवश्य करेगा किन्तु अब स्वयं नहीं, किसी अन्य व्यक्ति के मिस से करेगा (एचाहे वि चिंबान्तरियो राया भविसई ति)।
जैसे जैसे नाणक्य वृद्धि को प्राप्त हया उसे उप समय प्रवलित चौदह विद्या स्थानों' की शिक्षा दी गई. जिन सब में वह मेवावी बालक शीघ्र ही अत्यधिक पारंगत हो गया शिता की समाप्ति पर उपके पिता ने एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण कुल की यशोमति नामक श्यामा सुन्दरी बाला के साथ चाणक्य का विवाह कर दिया। और एक संगोत्री श्राइक के रूा में वह अपना जीवन यापन करने लगा।
आवश्यक नियुक्ति की चूर्णि में चाणक्य के जन्म ग्राम का नाम चणिय दिया है और यही नाम उसके पिता का भी बनाया है। जैन बृहत्कथा कोष (१४३, ३) में चाणक्य को कपिज का पुत्र और पाटलिपुत्र का निवासी बताया है। श्वे. पयएणा संग्रह में भी उसे पाटलिपुत्र नगर का निवासी ही कथन किया है।
-पुत्तो से जाया सह दादाहि'- देवेन्द्रगणि कृत उत्तराध्ययन सूत्र की सुखबोध नाम्नी टीका)। इस प्रकार दन्तावलि युक्त उत्पन्न होने के उदाहरण पाश्चात्य देशों की अनुश्रुतियों में भी कई एक मिलते हैं। प्रायः करके ऐसा बालक अशुभ समझा जाता है।
२.-बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य ने अपने दांत स्वयं उखाड़ डाले थे-(मोग्गल्लान कृत 'महारा' गा० ६८-६६-यह ग्रन्थ महानाम के प्रसिद्ध महावंश से भिन्न है। प्रो० चटर्जी से मालूम हुआ है कि इसकी एकमात्र प्रति पेरिम-फ्रांस में है)।
३-छः अंग, चार वेद (ऋग्वेदादि से भिन्न जैन परम्परा के भेद), दर्शन, न्याय विस्तार, पुराण और धर्म शास्त्र-(सुखबोध-३, १; अर्थशास्त्र १, ३)। ___४-जैन के अतिरिक्त कोई अन्य अनुश्रुति नाणक्य का विवाहित होना सूचित नहीं करती। उसके नाम से स्त्रियों के प्रति घृणासूचक एक उक्ति भी प्रचलित है । पालि साहित्य के दो ऐति. हासिक ग्रन्थों के अनुसार चाणका इतना कुरूप था कि कोई भी स्त्री उससे विवाह करना पसन्द नहीं कर सकती थो (वंसत्थ-पृ० १२० पं० ६-११, सिंहली संस्करण, और मौग्गल्लप कृत महावंश, गा० ७०.७१)। जैन अनुश्रुति में उसका सर्वत्र विवाहित होना सूचित किया है (सुखबोध श्रादि) और जैन बृहत्कथाकोष (१४३, ५) के अनुसार उसकी पत्नी यशोमती नामक एक श्यामा सुन्दरी थी।