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[ भाग १७
न छिपी रही ।
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अपनी पुत्री की यह अकस्मात् प्रेमाकुल दशा नन्द की आँखों से क्योंकि वह एक क्षत्रिय राजकुमारी थी उसके पिता ने स्वयंवर प्रथा के अनुसार चन्द्रगुप्त के साथ विवाह करने की उसे सहर्ष अनुमति दे दी इस विवाह के लिये पिता की अनुमति प्राप्त करते ही राजकुमारी सुपमा अपने रथ से उतरी और उसने चन्द्रगुप्त के रथ के पहिये पर पैर रक्खा कि उसके नौ आरे तड़ाक से टूट गये (नत्र अरगा भागा ) | चन्द्रगुप्त ने इस घटना को भावी अमंगल की सूचक जान राजकुमारी से नीचे उतर जाने की प्रार्थना की । किन्तु चाणक्य ने इसे एक शुभ शकुन समझा और उसे रथ पर सवार हो जाने के लिये कहा । चन्द्रगुप्त को अश्वस्त करते हुए कहा कि पहिये के इन नौ आरों के टूटने का फल यह है कि तुम्हारा वंश तुम्हारे पीछे नौ पीढ़ो पर्यन्त चलेगा'
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तत्पश्चात् विजयी चन्द्रगुप्त और पर्वत ने चाणक्य के साथ राजमहल में प्रवेश किया और नन्द के राज्य का तथा उसकी विपुल धन सम्पत्ति का परम्पर बटवारा किया | राजमहल में पर्वत को एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या दिखाई पड़ी जिसपर वह एकदम लुब्ध हो गया और उसने उस सुन्दरी से विवाह करने की इच्छा प्रकट की । चाणक्य ने बिना १ - नन्दों की जाति के सम्बन्ध में कोई निश्चित सूचना नहीं मिलती। कुछ उत्तर कालीन जैन ग्रन्थों के अनुसार उदचन का उत्तराधिकार प्रथम नन्द नरेश एक गणिका से उत्पन्न दिवाकीर्ति नामक नापित का पुत्र था (परि० ६ २३१-२३२ : विविध तीर्थ कल्प, पृ०६८) जैसे साहित्य में नन्द सर्वत्र जैनधर्मानुयायी करके उल्लेखित हुए हैं और उनमें से एक नन्द नरेश तो जैनधर्म का परम भक्त था ( खारवेल का हाथीगुफा शि० ले पं० १२) | यूनानी लेखक भी प्रसियो और गंगरंड के तत्कालीन नरेश का हीन कुल अथवा नापित कुमार होना कथन करते हैं और कहते हैं कि उसकी प्रज्ञा उससे घृणा करती थी (करटिक्स, डिटरी, लूटार्क आदि) । भागवत पुराण में उसे 'शूद्र गर्भोद्भव और विष्णु पुराण में इसके वंशजों को 'शूद्रभूमिपालाः' कहा है | पाणिनी के अनुसार नापित कार्य समाज के 'निर्वासित शूद्र थं 1
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किन्तु नन्दों के हीन कुलोत्पन्न होने सम्बन्धी इन उल्लेखों के विरोध में स्वयं हेमचन्द्र ने नन्द नरेश को क्षत्रिय और उसकी पुत्री को 'त्रि कन्या कहा है (परि०८, ३२० ) जैन कथा साहित्य में अन्यत्र भी नन्द्रों की क्षत्रिय ही मारा है, और संभवतः वे व्रात्य ज्ञात्रियों में से थे । विशाखदत्त, इरविचाकर तथा दुद्विराज के मतानुसार भी महाराज सर्वार्थसिद्धि नन्द और उसके नी पत्र ( नव नन्दाः ) जन्मजात क्षत्रिय थे। बौद्ध लेखक इस ऐतिहासिक समस्या पर कई प्रकारा नहीं डालते । सत्थम्पकासिनी में केवल इतना उल्लेख हैं कि नन्द वंश का संस्थापक और नो भाइयों मैं सबसे ज्येष्ठ उग्गसेन ( उग्रसेन) अज्ञातकुलान्नन्न था ।
२ – उत्तराध्ययन की परम्परा के आधार पर देवेन्द्र गरिण के मतानुसार मौर्यवंश में चन्द्रगुम सहित दश सम्राट हुए। आवश्यक सूत्र महित्य की अनुश्रुति और हेमचन्द्र भी दश ही मौर्य नरेशों का उल्लेख करते हैं । ब्राह्मण पुराणों में मत्स्य, विष्णु और भागवत के अनुसार भी उनकी संख्या दश ही थी, केवल वायु और ब्रह्माण्ड पुराणों में नौ के होने का उल्लेख है । श्रतः बहु सम्मत संख्या दश ही है।
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भास्कर