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[ भाग १७
कि भारत के सभी महान् सम्राटों की भाँति सर्व धर्म सहिष्णु और उदार होते हुए भी व्यक्तिगत रूप से चन्द्रगुप्त मौर्य जैनधर्म का अनुयायी था, अपने अन्तिम जीवन में अपने पुत्र विन्दुसार को राज्यपाट सौंप कर अपने धर्म गुरु जैनाचार्य भद्रबाहु के साथ दक्षिण को चला गया था और वहाँ कर्णाटक देश के चन्द्रगिरि पर्वन पर जैन मुनि के रूप में तपश्चरण करते हुए मृत्यु को प्राप्त हुआ था ।
भास्कर
किन्तु उपरोक्त ऐतिह्य साधनों से इस बात पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता कि मगध राजनीति में अवतीर्ण होने के पूर्व चाणक्य और चन्द्रगुप्त कौन और क्या थे ? उनका व्यक्तिगत जीवन क्या था और अन्त कैसे हुआ । प्राचीन जैन अनुश्रुति और साहित्य अवश्य ही इस सम्बन्ध में पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं, जिसकी प्रामाणिकता में भी सन्देह करने का कोई कारण नहीं है । उनसे अन्य साधनों से ज्ञात तथ्यों की पुष्टि भी होती है और चन्द्रगुप्त चाणक्य का प्रयोशन्त जीवन वृत्तान्त भी सुव्यवस्थित रूप में उपलब्ध होता है । तत्सम्बन्धी ये जैन श्राधार' पर्याप्त विपुल, विविध प्राचीन और बहुक्षेत्र, बहुकाल व्यापी हैं। उनके आश्रय से मुनि न्यायविजय जी ने चाणक्य के धर्म का विवेचन किया था। और उन्हीं के सफल प्रयोग द्वारा लखनऊ विश्वविद्यलय के प्राचीन इतिहास विशेषज्ञ प्रो० सी० डी० चटर्जी महोदय ने चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रारंभिक जीवन पर अभूतपूर्व प्रकाश डाला है' ।
अन्तु उक्त जैन प्रमाणाधारों के अनुसार राजनीति के महान गुरु चाणक्य का जन्म 'गोल' " विषय के अन्तर्गत 'चाय' नामक ग्राम में हुआ था। उनकी माता का नाम चणेश्वरी था और उनके पिता चणक जन्म से ब्रह्म (माइग्रो) और धर्म से जैन श्रावक
१ - हमारा लेख - ' चन्द्रगुप्त वाक्य इतिवृत्त के जैन श्राधार'
— जैन सिद्धान्त भास्कर, भा १५ किं० १० १७-२४ १०५
२ - अनेकान्त - ० २ कि० ११० ३--ग्रली लाइफ ग्राफ़ चन्द्रगुप्त मौर्य - डा० बी० सी० लॉ स्मृति ग्रन्थ । प्रस्तुत लेख का शेष कथन प्रो० चटर्जी के निबंध का अधिकांशत: अनुसरण है ।
४- श्रावश्यक नियुक्ति वृद्धि, पृ० ५६३ (जैन बंधु प्रेस, इन्दौर, वृत्ति, पृ० ४३३ (गमोदय समिति, बम्बई, १९१६) परिशिष्ट पर्व ८, चाणक्य के जन्मग्राम या जिले (विषय) की स्थिति के सम्बन्ध में इन नहीं मिलता । किन्तु, भरहुत के एक शिलालेख (निमभरहुत स्तूप, पृ० १४०, न० २१) में उल्लखित 'गोल' स्थान ही यह 'गोल' जान पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह उक्त विषय के साथ साथ उसके केन्द्र स्थान नगर विशेष का भी नाम था ।
१६२८ श्रवश्यक सूत्र
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साधनों में कोई संकेत
बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार चाणक्य का जन्म तक्षशिला में हुआ था ( वंसस्थापकासिनी पृ० ११६, ० ३५ - सिंहली संस्करण) । अभी तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि यह प्रसिद्ध नगर गोल अथवा गोल विषय के अन्तर्गत स्थित था या नहीं ।