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किरण १]
चन्द्रगुप्त और चाणक्य
सब पुत्रों को भोजन जिमा रही थी। इस लड़के के इस प्रकार अपने हाथ को जला लेने पर वह उसकी ताड़ना करने लगी । बुढ़िया कह रही थी 'तू भी चाणक्य ही जैसा मूर्ख है' यह भी नहीं जानता भोजन किस तरह किया जाता है' । अपना नाम और इन श्रद्भुत शब्दों में अपनी यह विलक्षण प्रशंसा सुनकर चाणक्य को अत्यन्त आश्चर्य हुआ । वइ बुढ़िया के सम्मुख जा पहुंचा और उससे पूछा कि उसकी इस अनुपम उपमा का क्या आशय है ? इस पर उस चतुर स्त्री ने उससे कहा “क्या तुम नहीं जानते कि उस महा मूर्ख चाणक्य ने अपने पृष्ठ भाग को सुरक्षित बनाये बिना ही और अत्यधिक अपर्याप्त सैन्य बल के बूते पर ही स्वयं नन्द की राजधानी पर अंधाधुंध धावा बोल दिया और परिणाम स्वरूप बुरी तरह पराजित हुआ । उपे चाहिये था कि पहिले सीमा प्रदेशों में युद्ध चालू करता और शनैः शनैः उन्हें जीतना और सुगठित रूप में अपने अधीन करता हुआ तब फिर राज्य के अन्त में प्रवेश करता। इसी प्रकार इस लोभी लड़के ने खिचड़ी को किनारों के पास से खाना प्रारंभ करने के बजाय जल्दबाज़ी करके एक दम उसके सर्वाधिक गरम मध्य भाग में ही अपनी अंगुनियाँ डाल दीं और फलतः उन्हें जला लिया ।" "
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चतुर वृद्धा के इस सुझाव से लाभ उठाकर चाणक्य ने अब अपनी नीति में परिवर्तन कर दिया । वह पहिले मित्रकूट के राजा पर्वत के पास गया और उससे मैत्री सम्बन्ध स्थापित किया । चाणक्य ने उसे वचन दिया कि नन्द को राज्यच्युत करलेने के पश्चात् उसके राज्य को चन्द्रगुप्त और पर्वत के बीच समभाग में विभाजित कर दिया जायगा। पर्वत इन शर्तों पर साथ देने के लिये राज़ी हो गया और उसने इस प्रयोजन के लिये आवश्यक सैनिक सहायता प्रदान करने का वचन दिया । तदुपरान्त पर्वन और चन्द्रगुप्त की संयुक्त सेनाओं ने नन्द राज्य पर आक्रमण किया । पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पहिले उन्होंने सीमान्त प्रदेशों को हस्तगत करना प्रारंभ किया और उनपर अपना अधिकार सुदृढ़ करके शनैः शनैः उसके अन्तर में प्रवेश किया । किन्तु एक महत्वपूर्ण नगर पर आक्रमण करते समय उनकी प्रगति को भारी धक्का लगा और उनकी योजना विफल होती
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२६ - ब्रा और उसके पुत्र की इस कथा से मिलती जुलती एक कथा बौद्ध साहित्य में भी उपलब्ध होती है (महा० १४१-१४६ : वंसत्थ० पृ० १२३ )
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२७द्ध अनुश्रुति के अनुसार पर्वतराजा धनानन्द का पुत्र था । ब्राह्मण अनुश्रुति में उसका पर्वत, पर्वतेन्द्र अथवा पर्वते नाम से उल्लेख हुआ है । विशाखदत्त के मुद्राराक्षस (६ठी शताब्दी), रविनर्तक की चाणक्य कथा (१६१५ ई०), अनन्त कविकृत 'मुद्राराक्षस पूर्व संकथा' (१६६० ई०) और टीकाकार हुढिराज कृत मुद्राराक्षस व्याख्या (१७१४ ई०) के अनुसार यह व्यक्ति ग्लेनों का राजा था और स्वयं भी ग्लेन था । उसका राज्य पाटलिपुत्र से उत्तर पश्चिम ६०० मील की दूरी पर स्थित था । नन्द के राज्य का भाग प्राप्त करने की चाणक्य द्वारा दिलाई गई झूठी आशा के प्रलोभन में फँस कर उसने मगध पर श्राक्रमण किया। उसकी सेना में यवन, शक, काम्बोज, पारसीक, किरात, खस, पुलात, शबर, वाल्हीक और हूण जातियों