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भास्कर
[भाग १७
और वही छिपा बैठा है।' जब उस असवार ने पानी में छिपे हुए चन्द्रगुप्त को लक्ष्य किया (असवारेण दिट्टो) तो उसने तुरन्त घोड़ा चाणक्य के सिपुर्द किया और अपना खड्ग खोलकर भूमि पर रख दिया। किन्तु जैसे ही पानी में घसने के अभिप्राय से उसने अपना कवच खोला कि चाणक्य ने तलवार उठाकर उप सैनिक के दो ट्रंक कर दिये। संकेत पाते ही चन्द्रगुप्त पानी से बाहर निकल आया और फिर वे दोनों वहाँ से शीघ्र ही पलायन कर गये। मार्ग में चाणक्य ने चन्द्रगुप्त से पूछा कि जब उसने उस सबार को सरोवर में छिपे चन्द्रगुप्त का पता बताया था तो उसे कैसा लगा था। इस पर चन्द्रगुप्त ने बड़ी शान्ति से उत्तर दिया "मैने समझा कदाचित यही ठीक है, क्योकि अाय स्वयं जानते हैं क्या करना उचित है और क्या नहीं (हंदि एवं चेव सोहणं हवइ, अज्जो चेत्र जाणई ति)।" इस उत्तर से चाणक्य अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ, क्योंकि इससे उन्हें न केवल गजा बनने के लिये उस युवक की उपयुक्त पात्रता का ही विश्वास हो गया, वरन गुरु रुप में अपने प्रति भी उसकी गाढ़ श्रद्धा और अडिग भक्ति का अनुभव हुआ। __घूमते घूमते ये दोनों एक दिन एक ग्राम में पहुँचे । एक घर में से किसी बालक के होने का शब्द आरहा था। ये वहाँ ठिठक गये। इस प्रसंग की जो बतें घर भीतर से प्राती हई इनके कानों में पड़ी उनसे इन्होंने जाना कि लड़के के रोने का कारण यह था कि थाली में परसी गरम खिचड़ी (विलेवी) के बीचोबीच हाथ डालकर उसे उठाकर खाने का उसने प्रयत्न किया था, जिससे उसकी अंगुलियाँ जल गई थीं । उसकी वृद्दी माँ अपने सो फिर से एक निकटवर्ती ताल में बुम कर छिप जाने को कहा और किनारे पर कपड़ा धोते एक धोबी को यह भय दिखा कर वहाँ से भगा दिया कि राजा धोवियों के इस नियम से अत्यन्त रु' ट है, अतएव यदि वह उस स्थान में ठहरेगा तो वह जो सवार घड़ा दौड़ाये च ना पा रहा है, उसे मार डालेगा। बेचारा भयभीत धाबी अपने सब कपड़े लत्ते वहीं छोड़ चम्मत हुया, और चाणक्य
उस स्थान पर धोवी बनकर बैठ गया। हम मवार को भी हमने वही चकमा विटा श्रार तालाव की ओर संकेत कर दिया, जैसे ही वह तलवार और कवच उतार जल में घुमने लगा, चाणक्य ने उसे भी पूर्ववत तनवार की धार उताग ।
हेमचन्द्र द्वारा वर्णित मादी और चाणक्य का प्रसंग सुग्वाध में नहीं दिया हुआ है। श्रावश्यक चूर्णि में एक ऐमी अन्य कथा भी दी है किन्तु दुभाग्य में वह इतनी मंत्रिम और अस्पष्ट है कि उसकी रूप रेखा जानना भी दुष्कर है। हरिभद्र, देवेन्द्रगाण और हेमचन्द्र ने भी उसकी ओर ध्यान दिया प्रतीत नहीं होता ।
१-इसके उपरान्त 'अावश्यक' और उत्तराव्ययन'-दोनों र नुश्रुति में एक अन्य विलक्षण कथा दी हुई है जिससे ज्ञात होता है कि इन भगदौड़ में केमे एक अवसर पर चन्द्रगुत भूग्य के मारे मरणासन्न हो गया था और कैसे च गाय ने उसकी प्राण रक्षा की।
२-प्रो० चटजी इसे भात या चावल की मडी (गइन ग्रुएल) कहते है, हेमचन्द्र इसका अर्थ रख्या (रवा) करते हैं। हो सकता है यह दूध, चीनी और रवे से बना दलिया जैसा कोई पदार्थ हो।