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किरण :
श्रद्धाञ्जलियाँ
नारी जाति के उद्धारक--
श्रीमान् पूज्य बाबू देवकुमारजी नरेन्द्र के रूप में अवतरित देवेन्द्र थे। आपने पतनोन्मुग्व समाज का उत्थान किया था। सोयी हुई प्रेरणा को अपनी नेहवाणी द्वारा जागृत किया था। जैन समाज के अज्ञान तिमिर को दूर करने का अहर्निश प्रयत्न किया। विद्यामन्दिरों को स्थापना कराई और अपने सदुपदेश तथा निबन्धों द्वारा जनमन को शुद्ध और संस्कृत करने में अपरिमित सहायता प्रदान की।
सदियों से दलित और अत्याचारों से पीड़ित नारी की करुणध्वनि को आपने सुना तथा अज्ञानता के बन्धन में जकड़ी नारी को स्वतन्त्रता का आस्वादन कराने के लिये आपकी आत्मा तड़फड़ाने लगी। अापने ही सर्व प्रथम जैन समाज में नारी शिक्षा की शंखध्वनि की तथा नारियों को भी पुरुष के समान शिक्षा पाने का अधिकार है। वे भी समाज निर्माण में अपना प्रमुख हाथ रखती हैं तथा उनकी उन्नति पर ही समाज की उन्नति अवलम्बित है, यह सबसे पहले आपने ही सिखलाया। शिक्षा के प्रति आपके मन में अगाध प्रेम था, आपने अपनी इसी हार्दिक आकांक्षा के अनुसार नारी शिक्षा का आन्दोलन उठाया और प्रबल तूफान के समान इसे भारत व्यापी रूप दिया। परिणाम स्वरूप जैन समाज में उच्च शिक्षा प्राप्त अनेक विदुषियाँ तैयार हुई।
श्री बाबू देवकुमारजी नारी के उस आदर्श रूप के पक्षपाती थे, जो समाज में अपनी सहनशीलता, ज्ञान, चरित्र और त्याग के बल से सुख-शान्ति और समृद्धि की स्थापना कर सके। हाँ नारी जाति पर होनेवाले अत्याचारों की आप जी भर कर भर्त्सना करते थे, स्वार्थ और अहंकार की भावना, जो कि अशिक्षा के कारण प्रायः नारियों में पायी जाती है; आप उसका उन्मूलन करने के लिये बद्धकटि थे। आपका सिद्धान्त था कि समाज का निर्माण माता की गोद में होता है, अतएव नारो जाति को शिक्षित करना हमारा पहला कर्त्तव्य है। जब तक समाज में सुशिक्षा का प्रचार नहीं किया जायगा, माता और बहनों को साक्षर नहीं बनाया जायगा; समाज का कल्याण होने का नहीं। आदर्श समाज की प्रतिष्ठा शिक्षित महिलाएँ ही कर सकती हैं। नारियों की संकीर्णता, स्वार्थबुद्धि, अनुदारता और असहनशीलता ने ही भाज समाज को तबाह कर दिया है।
नारी-शिक्षा प्रचार के लिये बाबू साहब ने सन् १६०५ में पारा में स्वयं कन्या पाठशाला स्थापित की तथा जैन समाज में सर्वत्र नारी-शिक्षा का आन्दोलन चलाया।