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[ भाग १८
हे स्वर्गीय महान आत्मा ! हे श्री देवकुमार के रूप में पृथ्वी पर विख्यात होने बाले मानव ! ससार आप को चाहे जो कहे; लेकिन मैं आपको मानवता की चरम सीमा पर दृढ़ता के साथ स्थिर रहने वाला एक कलाकार मानता हूं । आपके प्रति मेरे अन्तस् में जो अटूट श्रद्धा और स्नेह का रस-स्रोत प्रवाहित हो रहा है, उसे अपनी आँखों की जुलि में समेट कर आपके चरणों पर चढ़ाता हूं ।
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भास्कर
बनारसी प्रसाद 'भोजपुरी" प्रधान मंत्री, शाहाबाद हिन्दी - साहित्य सम्मेलन
स्मरणीय -
स्व० देवकुमारजी के मैंने एक ही बार दर्शन किये थे, जब वे महासभा के कुंडलपुर (दमोह) अधिवेशन के सभापति हुए थे और उसके कुछ ही वर्ष बाद उनका स्वर्गवास हो गया था । साक्षात् परिचय और वार्तालाप का कभी मौका नहीं आया । परन्तु उनके दान से जैन सिद्धान्त भवन की स्थपना होने के कारण उनकी स्मृति मेरे मन में सदा जागृत रही है और भवन के प्रति ममता भी ।
नाथूराम प्रेमी
हिन्दी ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, बम्बई
कर्मठ त्यागी
श्री बाबू देवकुमारजी उन महात्माओंों में से थे, जो अपनी सेवा और त्याग द्वारा देश एवं समाज को उन्नत बनाते हैं। उनके कर्मठ त्यागो जीवन से हमें स्फूर्ति और प्रेरणा मिलती है । अतः उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित कर मैं अपने को गौरवान्वित मानता हूँ ।
बुद्धन राय वर्मा एम. एल. सी. अध्यक्ष, शाहाबाद पुस्तकालय संघ
युवकों के पथ प्रदर्शक
श्री बाबू देवकुमारजी से हम युवकों को अनेकानेक प्रेरणाएँ मिलती है। वस्तुतः वे हमारे एक पथ प्रदर्शक सच्चे नेता थे। उनके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पित करना प्रत्येक युवक का परम कर्त्तव्य है ।
माधवराम शास्त्री, न्यायतीर्थ
भारा