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[ भाग -
जैन गजट के अनेक सम्पादकीय लेखों में नारी शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया तथा नारियों में प्रविष्ट अन्धविश्वास, कुसंस्कार एवं मिथ्या आडम्बरों को दूर करने का शक्ति भर प्रयास किया । वस्तुतः भारती के उपासक युगान्तकारी इस अमर दूत ने नारी जाति के उद्धार के लिये अथक श्रम किया और सफलता भी पायी! श्री जैन-बाला-विश्राम (जैन - महिला - विद्यापीठ) धारा, नारी जाति के इतने बड़े हिमायती और हितैषी के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है। श्री बाबू देवकुमारजी की आत्मा स्वग में इस संस्था द्वारा की गयी नारी सेवा को देखकर निश्चय प्रसन्न होती होगी ।
भास्कर
संचालिकाएँ, शिक्षिकाएँ और समस्त छात्राएँ
श्री जैन-बाला-विश्राम (जैन- महिला -विद्यापीठ) धमकुंज, आरा
अनुपम विभूति -
मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई कि आप स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी की पुण्य स्मृति में जैन सिद्धान्त- भास्कर का विशेषाङ्क निकाल रहे हैं । यह कह देने में मुझे जरा भी संकोच नहीं होता कि इस समय जैन समाज में जो कुछ भव्य, मनोहर, आकर्षक और प्रभावक दीख पड़ता है उसका जिन दो-चार सत्पुरुषों को श्रेय है उनमें से बाबूजी भी एक थे । वे निःसन्देह जैन समाज की विभूति थे । यद्यपि उनके साक्षात् दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ पर उनकी यशोगाथाएं मैंने जरूर सुनी हैं। मैंने सुना है कि एक बार कसाई खाने को जाती हुई पाँच सौ गायों के लिए उन्होंने अपने सेवकों को आदेश दिया था कि ये सब की सब खरीद ली जायं। उनकी परोपकारिता, दयार्द्रता और महत्ता को बतलाने के लिए यह एक ही उदाहरण पर्याप्त है ।
- चैनसुखदास न्यायतीर्थ प्रिंसिपल, जैन संस्कृत कालेज, जयपुर ।
इस युग के महान् -
आरा में वीर सं० की २४ वीं २५ वीं शताब्दी में अनेक गणानीय पुरुष हुए हैं जिनके कारण जैन संस्कृति की ठोस सेवा हुई है। उनमें श्रीमान् स्व० बा० देवकुमारजी का प्रमुख स्थान है। उन्होंने श्री स्याद्वाद दि० जैन महाविद्यालय बनारस की नींव डाली, एतदर्थ अपनी विशाल धर्मशाला अर्पण की, जैन- सिद्धान्त भवन चारा स्थापित