________________
किरण १]
श्रद्धाञ्जलियाँ
की सेवा की है। जैन सिद्धान्त-भास्कर उनकी स्मृति में विशेषांक प्रकाशित कर रहा है, यह बड़े हर्ष की बात है। मैं देवकुमारजी के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ तथा आशा करता हूं कि उनके आदेश जीवन का अनुकरण कर समाज के भावी युवक लाभ उठावेंगे।"
( सरसेठ) भागचन्द सोनी, अजमेर
तीर्थमक्क --
जैन समाज को श्री बाबू देवकुमारजी ने अपने दान, ज्ञान और त्याग द्वारा जो प्रदान किया है, वह इतिहास में सदा अमर रहेगा । तीर्थभक्त और जिनवाणी की सच्ची सेवा करने वाले बाबू देवकुमारजी थे। जिन दिनों जैन समाज में कोई नेता नहीं था, समाज पथ-भ्रष्ट हो रहा था, उन दिनों बाबू देवकुमारजी ने समाज का नेतृत्व किया, जैन समाज को रास्ता बतलाया और उसे उन्नति के शिखर पर पहुँचाने का कार्य किया । साधारण व्यक्ति जिस काम को १०० वर्ष की आयु प्राप्त कर भी नहीं सकते हैं, उसी काम को उन्होंने मात्र ३१ वर्ष की अवस्था में पूरा किया। यह जैन समाज का दुर्भाग्य था, जिससे इतने बड़े महापुरुष को अल्पायु प्राप्त हुई । महासभा की प्रगति और उन्नति में भी आपका पूरा हाथ था, समाज और संस्कृति संरक्षण के लिये आप अन्त तक सचेष्ट रहे। मैं इस पुण्य पुरुष के चरणों में श्रद्धाञ्जलि समर्पित करता हूं ।
७६
रतनचंद जैन
महामंत्री, श्र० भा० तीर्थक्षेत्र कमिटि, बम्बई
महान् नेता -
जैन - सिद्धान्त - भास्कर के अधिकारियों द्वारा हमें यह जानकर बहुत हर्ष हुआ कि वे स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी आरा की स्मृति में जैन सिद्धान्त- भास्कर का देवकुमारांक प्रकाशित कर रहें हैं ।
श्री बाबू देवकुमारजी धारा जैन समाज के प्रधान नेता थे और भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा के तो प्राण ही थे । आप जैन समाज की उन्नति, सेवा और परोपकार की भावनाओं से ओत-प्रोत थे। जिस जमाने में लोग अपने को जैन कहते हुए डरते थे उस जमाने में आपने धर्म और समाज की महान् सेवाएँ की हैं। शिक्षा के लिये भी आपने विद्यालय और पाठशालाएँ स्थापितं कराई हैं। आप महासभा के कुंडलपुर और कानपुर अधिवेशन के सभापति भी बने थे ।