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काकू देवकुमार जी की समाज को देना
[ले-श्रीयुत् बा• छोटेलाल जैन, कलकत्ता ]
इस परिवर्तनशील विश्व में उन्हीं का जन्म लेना सार्थक है, जो अपना अक्षय यश मृत्यु के उपरान्त भी इस लोक में छोड़ जाते हैं। श्री बाबू देवकुमारजी ऐसे ही मनस्वी थे, जिनका अपरिमित यश आज भी विद्यमान है ।
चालीस वर्ष से अधिक की बात है, जिस समय मैं विद्यार्थी था। एक दिन पिताजी देरी से घर में पहुंचे तब माताजी ने पूछा कि आज कहाँ देरी हो गयी, तो कहने लगे कि पारा के एक बड़े धर्मात्मा प्रतिष्ठित घराने के जमींदार और विद्वान् चिकित्सा के लिये यहाँ आये हैं। और उनसे मिलने के लिये मैं कलकत्ते के कई लोगों के साथ गया था। रोग तो भयानक है किन्तु जैन समाज के भाग्योदय से ऐसे सज्जन की जीवन रक्षा हो जाये; यह सभी लोगों को हार्दिक भावना और चेष्टा हो रही है। इसके अतिरिक्त और भी कई बातें कहीं, जिन पर समय का आवरण पड़ चुका है। पिताजी प्रायः उनके पास जाया करते थे पार मेरी बड़ी उत्कण्ठा होती रहती थी कि मैं भी उन्हें देख पाऊँ, किन्तु पिताजी कह देते थे कि बालकों का काम वहाँ नहीं है ।
कई दिन बाद पिताजी ने मुंगेर अपने एक सम्बन्धी को तार दिया कि तुरन्त एक घड़ा सीता कुण्ड का पानी भेजो। तार मिलते ही दूसरे दिन पानी पहुंच गया और पिताजी उसे देवकुमारजी के पास ले गये; डाक्टरों ने कहा था कि सीता कुण्ड का पानी दिया जाये तो शायद कुछ लाभ हो, पर लाभ कुछ न हुा। और हठात एक दिन इस नश्वर शरीर को छोड़कर चले गये। कलकत्ते में ही नहीं किन्तु सारे जन समाज में अत्यन्त शोक छा गया और उनके अनेक गुणों की चर्चा करते हुए लोगों ने बहुत ही दुःख प्रकट किया।
इस घटना के अनेक वर्षों के बाद जब स्वर्गीय बाबू करोडीचन्दजी जैन से परिचय हुआ और जैन सिद्धान्त-भवन पारा से जन-सिद्धान्त-भास्कर प्रकाशन के सम्बन्ध में उनसे बातें होने लगी तब स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी के अनेक गुण और विविध कार्यों का परिचय मिला, जिसका प्रभाव मुझपर आज भी अमिट है। __ इसके पश्चात् तो बाबू साहब के घराने से बहुत बन्धुत्व हो गया और फिर पूज्य ०६० चन्दाबाई जी भौर स्वर्गीय बाबू देनेन्द्र कुमारजी जैन से घनिष्ठ परिचय हो.. गया तब तो और भी स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी के अनेक गुण ज्ञात हुए ।