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( भाग १८
एक बार पूज्य पं० चन्दाबाईजी अपनी दक्षिण यात्रा की बातें कहने लगीं, उससे मालूम हुआ कि आरा में रईसों के यहाँ बहुत ही अधिक पर्दा महिलाओं के लिये रखा जाता है, यहाँ तक कि रेल में चढ़ते समय डिब्बे के दोनों तरफ कनात लगाकर डोली से उतर कर स्त्रियाँ रेलपर चढ़ा करती थीं। तो भी उनके जेठजी दक्षिण यात्रा में विविध स्थानों के महिला समाज की सभा बुलवाकर उनका व्याख्यान करवाते थे और स्वयं किसी कोने की आड़ से व्याख्यान सुना करते थे । बाईजी की उज्ज्वल होनहारता को उन्होंने भली प्रकार समझ लिया था और यह भी समझा था कि जैन समाज की उन्नति के लिये 'स्त्रीशिक्षा' को कितनी आवश्यकता है। जबतक उनका जीवन रहा, बराबर बाईजी के अध्ययन और साहस वृद्धि का प्रयत्न करते रहे ।
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भास्कर
स्वर्गीय बाबू साहब ने स्वयं उच्चकोटि के विद्वान् होने के कारण यह भी अनुभव किया था कि बिना साहित्य प्रचार के कोई भी समाज और धर्म उन्नति नहीं कर सकता। इसकी पूर्ति के लिये जंन - सिद्धान्त भवन आरा की योजना उन्होंने की और यह तो सभी जानते हैं कि बिना विद्वान् के न धर्म टिक सकता है न उसका प्रचार हो सकता है और इसकी पूर्ति के लिये काशी के श्री स्याद्वाद महा विद्यालय के लिये विशालभवन और आर्थिक सहायता प्रदान की थी।
उस समय के जैन समाज में न तो विद्या का विशेष प्रचार था और न विशेष विद्वान् थे और न विशेष संस्थाएँ; अतः स्वर्गीय सेठ माणिकचन्दजी बम्बई, स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी आरा और स्वर्गीय ब्रः शीतल प्रसाद जी की विविध सामाजिक और धार्मिक प्रवृत्तियों को बाद दे दिया जाय तो जैन समाज कुछ नहीं रह जाता । जो कुछ हम आज अपनी उन्नति देख रहे हैं उन कार्यों का बीजारोपण और पनपना तीनों ही स्वर्गीय आत्माओं की देन है ।
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आज स्वर्गीय बाबू देवकुमारजी की दी हुई ४ अमूल्य निधियाँ हमारे पास हैं( १ ) श्री स्याद्वाद जैन महा विद्यालय काशी, (२) श्री जैन- सिद्धान्त भवन, आरा (३) अनेक गुण सम्पन्न तपस्विनी महिलारत्न ब्र० पं० चन्दाबाईजी ( ४ ) दो पुत्र- बाबू निर्मलकुमारजी और बाबू चक्रेश्वर कुमारजी, जिन्होंने जैनधर्म और समाज को तन-मन-धन से जो सेवाएँ अर्पण की हैं और कर रहे हैं वे सबको ज्ञात हैं ।
रत्न
अतः बाबू देवकुमारजी की जैन समाज को उपर्युक्त देन सर्वदा इस समाज के अक्षय कोष में संचित रहेगी, तथा समाज उनके उपकारों का निरन्तर स्मरण रखेगा। ऐसे स्वर्गीय महानुभाव और उपकारक के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धांजलि अर्पण करना सभी का कर्त्तव्य है ।