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किरण १]
बाबू देवकुमार जी एक संस्मरण
उसका प्रकृत अर्थ भी मुझसे आपने कहलवा दिया और कहा कि पहले आपके कथित अर्थ से इस अर्थ में कुछ अन्तर है ? मैंने संकुचित होकर कहा कि मैं अशुद्ध पढ़ा रहा था। मेरे सिरपर मानो सौ घड़े पानी पड़ गये । स्तब्ध और कुण्ठितकंठ देखकर मुझे आश्वासन देते हुए आपने कहा कि अध्यापक को छात्रों को पढ़ाने में जल्द बाजी नहीं करनी चाहिये । आप दोहे का अन्वय तथा शब्दार्थ जानते हुए भी इनका सदुपयोग नहीं कर शीघ्रता मनमाना अशुद्ध अर्थ कर रहे थे । अस्तु, अबसे ऐसी शीघ्रता पढ़ाने में न करें। मैंने डेरे पर आकर गुरुजी से यह घटना कही । आपने कहा कि बाबू देवकुमारजी अन्यान्य जमींदारों और कोठीवालों की तरह गद्दीपर बैठे निरक्षरता का निदर्शन बन हमेशा चापलूसों से घिरे रहकर अपने जीवन को कृतकृत्य तथा धन्य-धन्य समझनेवालों में से नहीं हैं। यह एक सुदक्ष, ग्रैजुएट, उर्दू-फारसी
में
1 आप पटना ला
बा० देवकुमारजी
अतिरिक्त हिन्दी के अच्छे मर्मज्ञ तथा अपने समाजिक पत्र “हिन्दी जैन गजट" के सफल सम्पादक हैं । जैन महासभा के किसी वार्षिकोत्सव के वह सभापति भी हो चुके हैं, जिनका गवेषणापूर्ण भाषण मैंने जैन पत्रों में पढ़ा है कालेज में भी ६-७ महीने तक कानून का अध्ययन कर चुके हैं । संस्कृत के अधिक जानकार नहीं होने पर भी संस्कृत के अनन्य प्रेमी हैं। क्योंकि अपने एकमात्र अनुज बा० धर्मकुंमारजी को अंग्रेजी के साथ संस्कृत के एक अच्छे पण्डित रखकर उच्च शिक्षा दिलवाई थी। बा० धर्मकुमार जी धाराप्रवाह के साथ संस्कृत बोलते और लिखते थे। क्योंकि, व्युत्पत्ति के साथ उन्होंने समूची कौमुदी पढ़ ली थी । ऐसे होनहार एवं १७ वर्ष की उम्र में ही बी० ए० में पढ़नेवाले अपने दक्षिण भुजतुल्य भाई की अप्रत्याशित मृत्यु हो जाने के कारण बा० देवकुमारजी के स्वास्थ्य को बड़ा गहरा धक्का लगा है । इनका उत्तरोत्तर हासोन्मुख स्वास्थ्य देखकर भावी दुर्घटना की चिन्ता हम मित्र- मण्डली को सदा डाँवाडोल किये रहती है। संस्कृति-पंडितों तथा छात्रों के लिए देववृक्षप्रतिम बा० देवकुमारजी स्वास्थ्य सम्पन्न होकर चिरायुष्मान् रहे, यही शुभकामना सबों के अन्तस्तल में सदा जागरूक रहती है। इनकी दृष्टान्तभूत चरित्रनिर्मलता, सत्यवादिता, सहृदयता, विद्यारसिकता एवं परदुःखकातरता आरा की अग्रवाल को ही नहीं प्रत्युत बड़े से लेकर छोटे तक सर्वसाधारण जनता को इनमें सच्ची श्रद्धा प्रकट करने को विवश किये रहती है। तुम अपना अहोभाग्य समझो कि इनके आश्रय में पहुंच गये । तुम्हें २ घंटे के ४ रु० के बदले १२ रु० मासिक छात्रवृत्ति दे रहे हैं न कि पाठनवृत्ति ।
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