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कुमार का सफल स्वप्न [रचयिता-श्री पं० कमलाकान्त व्याकरण-साहित्य वेदान्ताचार्य, भारा]
अर्ध्य-सामग्री लिए श्रद्धालुओं का वर्ग श्राताराज पथ पर प्रर्चना-हित वासुपूज्य-महान की, था नगर शोभावान,
थी अनन्त चतुर्दशी की य मिनी अम्लान ।
बाल-वनिता वृद्ध-नरनारी, सभी होकर समुत्सुक देखते पूजन-महोत्सव, भव्य श्रारा नगर में था स्वर्ग ही साकार,
सम्मिलित थे अर्चना में मान्य देवकुमार ।
हैं अनेक विभिन्न छविमय हेम-शिखर विशाल देवालयनगर में सोभते, हैंपूर्ण श्रद्धायुक्त जनता, पर न प्रशाशष
सोच, देवकुमारजी को हुआ अतिक्लेश ।
हो गया अवसान पावनअर्चना का, ले हृदय मेंभक्ति नव, सानन्द जनताभारती-अभिषेक करके गयी निज निज धाम,
इधर मानस में जगी कुछ भावना अभिराम ।
हुए शय्यागत हमारेपरित नायक, भावना में