________________
भास्कर
होकर हमारे देश का
सुमहान् शास्त्रागार अतिशय भव्य नव्य तुरत,
शास्त्र संग्रह में लगे श्रम और द्रव्य अनन्त ।
११
छान डाला देश, भारत -
वर्ष का कोई न कोना-
रह गया श्रवशेष, जिसमें -
पहा दुर्लभ ग्रन्थ को, जिसकी न पायी थाह,
आपने सर्वस्व की भी की न कुछ परवाह ।
१२
अब बताना था न
विद्वानों तथा जिज्ञासुत्रों को,
वे सभी आने लगे
➖➖➖➖
सर्वत्र से स्वाध्याय करने, बढ़ी कीर्ति अपार,
आपका वह स्वप्न सुन्दर हो गया साकार ।
१३
'बस' न इतने से हुआ, मन
रम गया इस कार्य में तत्र -
तो नगर में 'नागरी' के
भी प्रचारों में लगे, बन गया एक समाज,
नगर के पश्चिम खड़ी है वह सभा ही श्राज । १४
एकत्रिंशत् वर्ष की लघु
आयु में इस दिव्य मानव ने
किये शुभ कार्य जितने,
है गिनाने की न कविता-शक्ति मुझको प्राप्त, यही श्रद्धाञ्जलि सुमन है भेंट,
गीत समाप्त ।
३99€€6
[ भाग १०