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किरण १)
बाबू देवकुमार जी : एक संस्मरण
नीचे समुद्धत आपका हृदयद्रावक मार्मिक निवेदन पढ़कर रो पड़ते थे। और विवश हो मेरी भी आँखें भर आती थीं। ___ बाबू साहब बड़ी अबोधावस्था में अपने दोनों बच्चों को छोड़ गये थे।' किन्तु
बाघ के बच्चों को सिखावे कौन ? यह जनश्रुति चरितार्थ हो रही है। आपके कि . पुत्र और पोते आपकी लक्ष्यसिद्धि के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं। इसके निदर्शन रूप आपके नामका देवाश्रम नामका सुविशाल प्रासाद तथा जैन-सिद्धान्त-भवन का भव्य भवन ही पर्याप्त है। आपकी अनुजवधू ब्रह्मचारिणी पण्डिता चन्दाबाईगी ने तो जैन-बाला-विश्राम द्वारा आपकी कीर्ति में चार चाँद लगा दिये हैं। सच पूछिये तो बाबू देवकुमारजी की वैद्युतरूप चेष्टा से सबके सब अनुप्राणित हो रहे हैं।