Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Catalog link: https://jainqq.org/explore/020535/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૧. આ શ્રી માણયસાગર સુરીશ્વર ജൂലായവയാഗ്ഗമേയല്ല | - श्रीपंचाशकधर्मसंग्रहणीउपदेशपदउपदेशमालाजीवसमास कर्मप्रकृतिपंचसंग्रहज्योतिष्करण्डकानि. (मूलमात्राषि श्रीमद्भरिभद्रसूरिप्रभृतिधुरंधराचार्योधृतानि. प्रकाशिका-बुहारीवास्तव्य श्रीमतीमणिकुमार्या जलालपुरवास्तव्य श्रेष्ठिमोतीचंजीवनजीदगोविन्दजित पिहिलेनार्थसहायेन श्रीऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांबर संस्था रतलाम. मुद्रणकृत्-इन्दौरनगरे जैनबन्धुमुद्रणालयाधिपतिः श्रेष्ठि जुहारमल मिश्रीलाल पालरेचा.. वीर संवत् २४५४ विक्रम संवत् १९८४ क्राइस्ट सन् १९२८ प्रतयः ५०० पण्यं रु.४-०-० Contact की . AHMASTER BEATHMAHHAPURU FEeos For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रन्थांकः विषयः गाथा: पृष्ठं यावत् | अपूर्व प्राचीन ग्रंथ, सुंदर कार्य, और अल्प किम्मत. ९४० له سه १०४० २०५ ५४४ ه مه ام पंचाशक धर्भसंग्रहणिः उपदेशपदंः उपदेशमाला जीवसमास कर्मप्रकृतिः पंचसंग्रहः ज्योतिष्करण्डकम् १ प्रकरण समुच्चयः ११) २ अहिंसाष्टक सर्वज्ञसिद्धि ऐन्द्रस्तुतयः ।) ३ प्रत्याख्यानस्वरूपं सारस्वतविभ्रमः दानपत्रिंशिका विशेषणवती विंशतिका च ११) ४ ज्योतिष्करण्डक सटीकः ३) ५ अनुयोगद्वाराणां चूर्णिहारिभद्रीया वृत्तिश्च २) ६ पंचाशक-धर्मसंग्रहणीआदिशाखाष्टकमूलं ४) . मिलने का पता-जैनबन्धु प्रेस, इन्दौर. २५४ ४७५ ९९२ २८२ ३३३ و ३६७ ۸ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथमपद्या श्रीदशशाखीय मूल सूत्रम्। ॥अहम् ॥ अथ पञ्चाशकमूलम्. शकम। नमिऊण बद्धमाण मावगधम्म समासओ बाँच्छं । सम्मत्ताई भावत्थसंगयं सुत्तणीईए ॥ १॥ परलोयहियं सम्म जो जिणवयणं मुणइ उवउत्तो । अइतिब्बकमविगमा सुकोसो सावगो एन्थ ॥२॥ तत्तन्थसहहाणं सम्मत्तमसग्गही ण एयम्मि । मिच्छत्तखओवसमा मुम्सुमाई उ होति दढं ॥ ३ ॥ सुस्सूस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए । वेयावच्चे णियमो वयपडिवत्तीग ( इ ) भयणा उ ॥४॥ जं सा अहिगयराओ कम्मखओवसमओ ण य तओवि । होइ परिणामभेया लहुँति तम्हा इहं भयणा ॥५॥ सम्मा पलियपुहुत्तेऽवगए कम्माण भावओ होति । वयपभितीणि भवण्णवतरंडतुल्लाणि णियमेण ॥६॥ पंच उ अणुब्धयाइं थूलगपाणवहविरमणाईणि । उत्तरगुणा तु अण्णे दिसिब्बयाई इमेसि तु ॥ ७ ॥ थूलगपाणवहस्सा विरई दुविहो य सो वहो होइ । संकप्पारंभेहिं वज्जइ संकप्पओ विहिणा ।। ८ ॥ गुरुमूले सुयधम्मो संविग्गो इत्तरं व इयरं वा । वज्जित्तु तओ सम्मं वज्जेइ इमे य अइयारे ॥९॥ बंधवह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit A श्रीदशशा- स्त्रीय मूल मूत्रम् । प्रथमपद्या शकम् । ॥ २॥ %A5 छविछेयं अइभारं भत्तपाणवोच्छेयं । कोहाइसियमणो गोमणुयाईण णो कुणई ॥१०॥ थूलमुसावायरस य विरई सो पंचहा समासेणं । कण्णागोभोमालिय णासहरणकूडसखिज्जे ॥११॥ इह सहसब्भक्खाणं रहसा य सदारमन्तभेयं च । मोसोवएसयं कूडलेहकरणं च | वज्जेइ ।। १२ ।। थूलादत्तादाणे विरई तं दुविहमो विणिद्दिठं ( हमो उ णिदि)। सच्चित्ताचित्तेसु लवणहिरण्णाइवत्थुगयं ॥१३॥ |वज्जइ इह तेणाहडतकरजोगं विरुद्धरज्जं च । कूडतुलकूडमाणं तप्पडिरूवं च ववहारं ॥१४॥ परदारस्स य बिरई उरालवेउबिभेयओ | दुविहं । एयमिह मुणेयव्वं सदारसंतोसमा एत्थ ।। १५॥ वज्जइ इत्तरिअपरिग्गहियागमणं अणंगकीडं च । परवीवाहक्करणं कामे | तिव्वाभिलासं च ।। १६ ।। इच्छापरिमाणं खलु असयारंभविणिवित्तिसंजणगं । खेत्ताइवत्थुविसयं चित्तादविरोहओ चित्तं ॥ १७ ॥ खत्ताइहिरण्णाईधणाइदुपयाइकुप्पमाणकमे । जोयणपयाणबंधणकारणभावेहि णो कुणइ ॥ १८ ॥ उड्डाहोतिरियदिसं चाउम्मासाइकालमाणेणं । गमणपरिमाणकरणं गुणव्वयं होइ विनेयं ॥ १९॥ वज्जइ उड्डाइकममाणयणप्पेसणोभयविसी। तह चेव खेत्तवुड्डि कहिंचि सइअंतरद्धं च ॥२०॥ बज्जणमणतगुंवरिअञ्चंगाणं च भोगओ माणं । कम्मयओ खरकम्माइयाण अवरं इपं भणिय | ॥ २१ ॥ सच्चित्तं पडिबद्धं अपउलदुपउलतुच्छभक्खणयं । वज्जइ कम्मयओऽवि य इत्थं अंगालकम्माई ॥ २२ ॥ तहऽ णत्थदंडविरई अण्णं स चउब्विहो अवज्झाणे । पमयायरिए हिंसप्पयाण पावोवएसे य ॥ २३ ॥ कंदप्पं कुक्कुइयं | मोहरियं संजुयाहिगरणं च । उपभोगपरीभोगाइरेगयं चेत्थ वज्जेइ ॥ २४ ॥ सिक्खावयं तु एत्थं सामाइयमो तयं तु विष्णेयं । सावजेयरजोगाण बजणावणारूवं ॥ २५ ॥ मणवयणकायदुप्पणिहाणं इह जत्तओ विवओइ । सइअकरणयं अणवष्ट्रियस्स | तह करणयं चेव ॥ २६ ॥ दिसिवयगहियस्स दिसापरिमाणस्सेह पइदिणं ज तु । परिमाणकरणमेयं अवरं खल होइ विणयं ॥२७॥ % For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C प्रथमपद्या शकम् । वजह इह आणयणप्पओग पेसप्पओगयं चेव । सद्दाणुरूववायं तह बहिया पोग्गलक्खेवं ॥२८॥ आहारदेहसकारखंभवावारपोसहो श्रीदशशास्त्रीय मूल | यऽन्नं । देसे सव्वे य इमं चरमे सामाइयं णियमा ।। २९ ।। अप्पडिदुप्पडिलहियपमञ्जसेजाइ वञ्जई एत्थ । सम्मं च अणणुपालणमासूत्रम्। हाराईसु सव्वेसु । ३० ।। अण्णाईणं सुद्धाण कप्पणिजाण देसकालजुतं । दाणं जईणमुचियं निहीण सिक्खावयं भणियं ॥ ३१ ॥ सञ्चित्तणिक्खिवणयं वजइ सञ्चित्तपिहणयं चेव । कालाइक्कमपरववएसं मच्छरिययं चेव ।। ३२ ॥ एत्थं पुग अइयारा णो परिसुद्धेसु ॥ ३॥ होति सव्येसु । अकखंडविरइभावा बजइ सबत्थ तो भणियं ॥३३।। सुचादुपायरक्खणगहणपयचविसया मुणेयव्वा । कुंभारचकभाम| गर्दडाहरणेण धीरेहिं ।। ३४ । गहणादुवरि पयत्ता होइ असन्तोऽवि विरइपरिणामो । अकुसलकम्मोदयओ पडइ अवष्णाइ लिंगमिह | ।। ३५ ।। तम्हा णिचसतीए बहुमाणेणं च अहिगयगुणम्मि । पडिवक्खदुगुंछाए परिणइआलोयणेणं च ।। ३६ ।। तित्थंकरभनीए सुसाहुजगपज्जुवासणाए य। उत्तरगुणसद्धाए य एत्थ सया होइ जइयव्वं ॥३७॥ एवमसंतोऽवि इमो जायइ जाओऽवि ण पडइ कयाई। ता एत्थं बुद्धिमया अपमाओ होइ कायव्यो ॥३८॥ एत्थ उ सावयधम्मे पायमणुव्वयगुणव्वयाई च । आवकहियाई सिकवावयाई पुण इत्तराईति ।। ३९ ।। संलहणा य अंते ण णिओगा जेण पव्वयइ कोई । तम्हा णो इह भणिया विहिसेसमिमस्स वोच्छामि ॥ ४० ।। निवसेज्ज तत्थ सद्धो ( सड्ढो ) साहूणं जत्थ होइ संपाओ । चेइयहराई जम्मी तयण्णसाहम्मिया चेव ।। ४१ ॥ णवकारेण विबोहो अणुसरणं सावओ वयाई मे । जोगो चिइवंदणमो पञ्चक्खाणं च विहिपुब्वं ॥ ४२ ॥ तह चेईहरगमणं सकारो वंदणं गुरुसगासे । पच्चक्खाणं सवर्ण जइपुच्छा उचियकरणज्ज । ४३।। अविरुद्धो ववहारो काले तह भोयणं च संवरणं । चेइहरागमसवणं सकारो बंदणाई &ाय ॥ ४४ ॥ जइविस्सामणमुचिओ जोगो नवकारचिंतणाईओ । गिहिगमणं विहिसुवर्ण सरणं गुरुदेवयाईणं ॥ ४५ ।। अब्बंभे पुण* R For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदशशा- विरई मोहदगुंछा सतत्तचिन्ता य । इत्थीकलेबराणं तब्बिरएसुं च बहुमाणा ।। ४६ ।। मुत्तविउद्धस्स पुणो सुहमपयत्येसु चित्तवि-18 द्वितीयपद्या खीय मूल एण्णासो । भवाठिइणिरूवणे वा अहिगरणोबसमचित्ते वा ॥४७॥ आउयपरिहाणीए असमंजमचेट्टियाण व विधागे। खणलाभदीषणाए शकम् । मत्रम् । धम्मगुणेमुं च विविहेसु ॥४८|| बाहगदोसविवकखे धम्मायरिए य उज्जयविहारे | एमाइचित्तणासो संवंगरसायणं देइ ।।४९।। गोम भणिओ| | य विही इय अणवस्यं तु चिट्ठमाणस्स । भवविरहवीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामा।।५०॥इति प्रथम श्रावकधर्मपश्चाशकम् || णमिऊण महावीरं जिणदिक्खाए विहिं पवक्खामि। वयणा णिउणणयजुयं भव्वाहियटाय लेसेण।।५१||दिक्खा मुंडणमेन्थं तं पुण चित्तस्स होइ विणयं । ण हि अप्पसन्तचित्तो धम्महिगारी जओ होइ।।५२॥ चरमम्मि चेव भणिया एमा खलु पोग्गलाण परियट्ट । सुद्धसहाबस्म तहा विमुज्झमाणस जीवस्स।।५३।। दिक्खाए चेव रागो लोगविरुद्धाण चेव चाउत्ति । मुंदरगुरुजोगोऽवि य जस्म तओ एन्थ उचिओनि ॥५४॥ पयतीए सोऊण व दद्दण व केइ दिक्विए जीवे। मग्गं समायग्न्ते धम्मियजणबहुमए निचं ॥५५।। एईए चत्र सद्धा जायइ पावेज हमहं एयं । भवजलहिमहाणावं णिवेक्खा साणुबंधा य ॥५६ । विग्धाणं चाभावो भावेऽवि य चित्तथेज्जमच्चन्थं । एयं दिक्खारागो णिद्दिढ समयकेऊहिं ।। ५७ ॥ सव्वस्स चेव जिंदा बिसेसओ तह य गुणसमिद्धाणं । उजुधम्मकरणहसणं रोढा जणपूयणिजाण ॥५८।। बहुजणविरुद्धसंगो देसादाचारलंघणं चेव । उव्वणभोगो य तहा दाणाइवि पगडमण्णे तु ॥५९॥ साहुवसणम्मि तोसो सइ सामथम्मि अपडियारो य । एमाझ्याणि एत्थं लोगविरुद्धाणि णेयाणि ॥६०॥ णाणाइजुओ उ गुरू सुविणे उदगादितारण तत्तो । अचलाइरोहणं वा तहेब वालाइरक्खा वा ॥ ६१ ॥ वाउकुमाराइणं आहवणं णियणिएहिं मन्तेहिं । मुत्तासुत्तीए किल पच्छा तकम्मकरणं तु ॥६२।। बाउकुमाराहवणे पमजणं तत्थ सुपरिसुद्धं तु । गंधोदगदाणं पुण मेहकुमागहवणपुव्वं ।। ६३ ।। उउदेवीणाहवणे GACC4244444 ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदशशा- गंधडा होइ कुसुमवुट्टीति । अग्गिकुमाराहवणे ध्वं एगे इहं बेन्ति ॥६४॥ वेमाणियजाइसभवणवासियाहवणपुब्वगं तत्तो । पागार- द्वितीयपञ्चा स्वीय मूलतिगण्णासो मणिकंचणरुप्पवण्णाणं॥६५।। बतरगाहवणाओ तोरणमाईण होइ विष्णासो। चितितरुसीहासणछत्तचकधयमाइयाण च।।६६ । शकम् । मूत्रम् । भुवणगुरुणो य ठवणा सयलजगापियामहस्स तो सम्मं । उकिडवण्णगोवरि समवसरणावंबरुवस्स ।। ६७ ॥ एयस्स पुबदक्षिणभा गेगं मग्गओ गणधरस्स । मुगिवसभाणं वेमाणिणीण तह साहुणीणं च ।। ६८॥ इय अवरदक्खिणेणं देवीण ठावणा मुगेयवा। भुवणवश्वाणमंतरजोइससंबंधणीणत्ति ॥६९।। भवणवश्वाणमंतरजोइसियाणं च एत्थ देवाणं । अवरुत्तरेण णवरं निद्दिष्टा समयके ऊहिं ॥ ७० ।। वेमाणियदेवाणं णराण णारीगणाण य पसत्था । पुव्वुत्तरेण ठवणा सव्वसि णियगवष्णेहिं ।। ७१ ।। अहिणउलमयमयामाहिवपमुहाणं तह य तिरियसत्ताणं । वित्तियंतरम्मि एसा तइए पुण देवजाणाणं ।। ७२ ।। रइयम्मि समोसरणे एवं भत्तिविहवाणुसारेणं । सुइओ उ पदोसे अहिगयजीवो इह एइ ।। ७३ ।। भुवणगुरुगुणक्खाणा तम्मी संजायतिब्बसद्धस्स । विहिसासगमोहेणं तओ पवेसो तहिं एवं ॥ ७४ ।। वरगंधपुप्फदाणं सियवस्थेणं तहन्छिठयण च । आगइगइविण्णाण इमस्स तह पुष्फपाए ।। ७५ ।। अभिवाहरणा अण्णे णियजोगपविनिओ य केशत्ति । दीवाइजलगभेया तहुत्तरसुजोगओ चव ॥७६।। बाहिं तु पुप्फपाए वियडणच उसरणगमणमाईणि । काराविञ्जइ एसो वारतिगमुवरि पडिसहो ॥ ७७॥ परिसुद्धस्स उ तह पुष्फपायजोगेण दंसणं पच्छा । ठितिसाहणमुववृहण हरिसाइपलोयणं चेव ।। ७८ ।। अह तिपयाहिणपुव्वं सम्मं सुद्धेण चित्तरयणेणं । गुरुणोऽणुवेयणं सब्बहवे दढमप्पणो एत्थ ॥७९।। एसा खलु गुरुभत्ती उकोसो एस दाणधम्मो उ । भावविसुद्धाएँ दर्द इहराविय बीयमेयस्स ।। ८०॥ जे उत्तमचरियामणं सोप अणुत्तमा ण पल पारन्ति । ता एयसगासाओ उक्कोसो होइ एयस्स ।।८१।। गुरुणोऽवि णाहिगरणं ममत्तरहियस्म एत्थ वत्थुमि । तब्भावसुद्धिहेउं आणाइ8॥५॥ For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्त्रीय मूल श्रादशशानाला पयट्टमाणस्स ।।८२।। णाऊण य तब्भावं जह होइ इमस्स भाववुड्डित्ति । दाणाबदेसाओ अणेण तह एत्थ जइयव्वं ।।८३।। णाणाइगुणजओ द्वितीयपश्चा खलु णिरभिस्संगो पयत्थरसिगो य। इय जयइ न उण अण्णो गुरूवि एयारिमो चेव ।।८४॥ धण्णाणमेयजोगो धण्णा चेहँति एयणी-2 शकम् । सूत्रम् । ईए । धण्णा बहु मण्णन्ते धग्णा जे ण प्पदुसन्ति ।।८५|| दाणमह जहासत्ती सद्धासंवेगकमजुयं णियमा । विहवाणुमारओ तह जणो॥६॥ वयारो य उचिओत्ति ।। ८६ ।। अहिगयगुणसाहम्मियपीइबोहगुरुभत्तिवुड्डी य। लिंगं अव्यभिचारी पइदियहं सम्मदिक्खाए ।।८७|| परिसुद्धभावओ तह कम्मखओवसमजोगओ होइ । अहिगयगुणवुड्डी खलु कारणओ कजभावेण।।८८॥ धम्मम्मि य बहुमाणा पहाणभावेण तदगुरागाओ । साहम्मियपीतीए उ हंदि वुड्डी धुवा होइ ।।८९ । विहियाणुढाणाओ पाएण सब्बकम्मखओवसमा । णाणावरणावगमा णियमेणं बोहबुड्डित्ति ।।९०॥ कल्लाणसंपयाए इमीऍ हेऊ जओ गुरू परमो। इय बोहभावओ चिय जायइ गुरुभत्तिबुड्डीबि ।।९१॥ इय कल्लाणी एमो कमेण दिक्खागुणे महासत्तो । सम्मं समायरन्तो पावइ तह परमदिक्खंपि ।।९२।। गरहियमिच्छायारो भावणं जीवमुत्तिमणहविडं। णीसेसकम्ममुक्को उवेइ तह परममुनिपि।।९३॥ दिक्खाविहाणमेयं भाविजतं तु तन्तणीतीए। सइअपुणबंधगाणं कुग्गहविरह लहुं कुणइ ॥९४|| इति दीक्षापश्चाशकम् ।। नमिऊण वद्धमाणं सम्मं चोच्छामि वंदणविहाणं । उकोसाइतिभेयं मुद्दाविष्णासपरिसुद्धं ॥ ९५ ॥ णवकारेण जहण्णा दंडगथुइजुयल मज्झिमा णेया। संपुष्णा उक्कोसा विहिणा खलु वंदणा तिविह। ।। ९६ ॥ अहवावि भावभेया ओघेण अपुणबंधगाईणं। सब्यावि तिहा णेया सेसाणमिमी ण समए ।। ९७ ॥ पारण तिब्वभावा कुणइ ण बहु मणई भवं घोरं । 3 उच्चियहिई च सेवइ सव्वत्थवि अपुणबंधोति ।। ९८ ॥ सुस्मस धम्मराओ गुरुदेवाणं जहासमाहीए। वेयावच्चे णियमो सम्मद्दिहिस्स ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रादशशा- लिंगाई ।। ९९ ।। मग्गणुसारि सड्डो पष्णवणि जो कियापरो चेव । गुणरागी सकारंभसंगओ तह य चारित्ती ।। १०० ॥ एते अहि- तीयपक्षा स्त्रीय मूल गारिणो इह ण उ सेसा दबओऽवि जं एसा । इयरीऍ जोग्गयाए सेसाण उ अप्पहाणत्ति ।। १०१॥ण य अपुणबंधगाओ परेण इहर शकम् । सूत्रम् । * जोग्गयावि जुत्तत्ति । ण य ण परेणवि एसा जमभब्वाणपि णिहिट्टा ॥१०२॥ लिंगा ण तिए भावो ण तयत्थालोयण णा ॥ ७॥ गुणरागो । णो विम्हओ ण भवभयमियवच्चासो य दोहपि ॥१०३॥ वेलाइ विहाणमि य तग्गयचित्ताइणा य विष्णेओ। तबुड्डि- भावभावहिं तह य दब्वेयरविसेसो ॥१०४॥ सइ संजाओ भावो पायं भावंतरं जओ कुणइ । ता एयमेत्थ पवरं लिंगं सदभाववुड्डी तु ॥ १०५ ॥ अमए देहगए जह अपरिणयम्मिवि सुभा उ भावत्ति। तह मोक्खहे उअमए अष्णहिवि हंदि णिदिवा ॥ १०६ ।। मंताइविहाणम्मिवि जायइ कल्लाणिणो तहिं जत्तो। एनोऽधिगभावाओ भव्वस्स इमीए अहिगोति ।। १०७॥ एइऍ परमसिद्धी जायइ जत्तो दढं तओ अहिगा। जनैम्मिवि अहिगतं भव्बस्सेयाणुसारेण ।। १०८ ।। पायं इमीए जत्ते ण होइ इहलोगियावि हाणित्ति । णिरुषकमभावाओ भावोऽवि हु तीर छेयकरो ॥ १०९ ।। मोक्षद्धदुग्गगहणं एवं तं सेसगाणवि पसिद्धं । भावेयब्वमिणं खलु सम्मति कयं पसंगणं ॥ ११ ॥ पंचंगो पणिवाओ थयपाढो होइ जोगमुद्दाए। बंदण जिणमुद्दाए पणिहाणं मुत्तमुत्तीए ॥ १११ ॥ दो जाणू दोण्णि करा पंचमगं होइ उत्तमंगं तु। सम्मं संपणिवाओणेओ पंचंगपणिवाओ ।।११२।। अण्णोष्णन्तरिअंगुलिकोसाकारहिं दोहि हत्थेहिं । पिट्टोवरिकोप्परसंठिएहि तह जोगमुद्दत्ति ॥ ११३ ॥ चत्तारि अंगुलाई पुरओ ऊणाई जत्थ पच्छिमओ। पायाणं उस्सग्गो एसा पुण होइ जिणमुद्दा ।। ११४ ।। मुत्तासुत्ती मुद्दा समा जहिं दोऽवि गम्भिया हत्था। ते पुण ललाडदेसे लग्गा अणे अलग्गत्ति ॥११५ ।। सव्वत्थवि पणिहाणं तग्गयकिरियाभिहाणवन्ना(ने)सु । अत्थे विसए य तहा दिहतो छिन्नजालाए ॥११६ ॥ ण य For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीदशशाखीय मूल सूत्रम् । ॥ ८॥ . CAMERAMA तत्थवि तदणूणं हदि अभावा णओवलंभोऽवि। चित्तस्सवि विण्णेओ एवं सेसोबओगेसु ॥११७।। खाओबसमिगभावे दढजत्तकयं सुहं | तृतीयपश्चा अणुढाणं । परिवडियंपि हु जायइ पुणोवि तब्भावबुड्डिकरं ॥११८।। अणुहवसिद्ध एवं पार्य तह जोगभावियमईणं । सम्ममवधारियव्वं शकम् । बुहेहिं लोगुत्तममईए ॥ ११९ ।। जिण्णासावि हु एत्थं लिंगं एया। हंदि सुद्वाए। णेव्वाणंगनिमित्तं सिद्धा एसा तयत्थीणं ॥ १२० ॥ धिसद्धासुहविविदिसया जे पायसो उ जोणित्ति । सण्णाणादुदयम्मि पइडिया जोगसत्थेसु ।। १२१ ।। पढमकरणोवरि तहा अणहिणिविहाण संगया एसा । तिविहं च सिद्धमेयं पयड समए जओ भणियं ॥१२२।। करणं अहापवत् अपुरमणियट्टि चेव भब्वाणं । इयरेसिं पढम चिय भण्णइ करणत्ति परिणामो ॥ १२३ ॥ जा गठी ता पढम गठिं समइच्छओ भवे बीयं। अणियट्टीकरण पुण सम्म| त्तपुरक्खडे जीवे ।। १२४ ॥ इत्तो उ विभागाओ अणादिभवदव्वलिंगओ चेव। णि उणं णिरूवियव्वा एसा जह मोक्खहेउत्ति ॥१२५।। माणो भावओ इमीए परोवि हु अबड्डपोग्गला अहिगो । संसारो जीवाणं हंदि पसिद्धं जिगमयम्मि ।। १२६ ॥ इय तंतजुत्तिओ खल |णिरूवियव्या बुहेहिं एसत्ति । ण हु सत्तामत्तेग इमाएं इह होइ णेधाणं ॥१२७।। किंचेह छेयकूडगस्वगगायं भत्ति समयविऊ । तंतेस चित्तभेयं तंपि हु परिभावगीयं तु ॥१२८।। दवणं टंकण य जुतो छेयं हु रूवगो होइ। टंकविहणो दब्वेविण खलु एगंतछेओनि ॥१२९।। अइब्वे टकेगवि कूडो तेग विगा उ मुद्दत्ति। फलमे तो ए। चिा मुद्धाग पवारगं मोतु ॥१३०॥ तं घुग अगत्थफलदं हाहिगयं जमणुवओगिति । आयगय चिय एत्थं चिंतिज्जइ समयपरिसुद्धं ॥ १३१ ।। भावेणं वण्णादिहिं चव सुद्धेहि बंदणा | छेया । मोकखफलच्चिय एसा जहोइयगुणा य णियमेणं ॥ १३२ ॥ भावणं वण्णादिहिं तहा उजा होइ अपरिसुद्धत्ति । बीयगरूबसमा ४ खलु एसावि सुहति णिदिडा ॥ १३३ ॥ भावविहूणा वण्णाइएहिं सुद्धावि कूडरूवसमा । उभयविहूणा णेया मुद्दप्पाया अनिडफला | ॥८॥ For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SCORE श्रीदशशा-४ ॥१३४॥ होइ य पाएणेसा किलिहसत्ताण मंदबुद्धीण। पाएण दुग्गइफला विसेसओ दुस्समाए उ ॥ १३५।। अण्णे उ लोगिगच्चिय एसा 3 ३वन्दनस्त्रीय मूल | णामेण वंदणा जइणी । जं तीइ फलं तं चिय इमीऍण उ अहिगयं किंचि ॥१३६।। एयंपि जुज्जइ चिय तदणारंभाउ तष्फलं व जओ। पञ्चाशकम् सूत्रम् । तप्पञ्चवायभावोऽवि हंदि तत्तोण जुत्तत्ति ॥१३७।। जमुभयजगणसभावा एसा विहिणेयरहिं ण उ अण्णा । ता एयस्साभावे इमीएँ एवं पाक बीयं ।। १३८ ॥ तम्हा उ तदाभासा अण्णा एसत्ति णायओ णेया । मोसाभासाणुगया तदत्थभावाणिआगणं ।। १६९ ।। सुहफ॥९॥ लजणणसभावा चिंतामणिमाइएउवि णाभव्या । पावति किं पुणेयं परमं परमपयवीयंति ॥ १४० ॥ भव्वावि एत्थ णेया जे आसन्ना ण जाइमेत्तणं । जमणाइ सुए भणियं एयं ण उ इट्टफलजणगं ॥ १४१ । विहिअपओसो जेसिं आसण्णा तेऽवि सुद्धिपत्तत्ति । खुद्दमिगाणं पुण सुद्धदेसणा सीहणायसमा ॥१४२॥ आलोचिऊण एवं तंतं पुव्वावरेण सूरीहिं । विहिजत्तो कायव्यो मुद्धाण हियट्टया सम्मं ॥१४३॥ तिव्वगिलाणादीण भेसजदाणाइयाई णाया। ददृच्वाइँ इहं खलु कुग्गहविरहेण धीरेहिं ॥१४४।। इति वन्दनपश्चाशकम ३ ।। नमिऊण महावीरं जिणपूजाए विहिं पवक्खामि। संखवओ महत्थं गुरूवएसाणुसारेण ॥ १४५ ।। विहिणा उ कीरमाणा सव्व च्चिय फलवती भवति चेढा । इहलोइयाचि किं पुण जिणपूया उभयलोगहिया ।। १४३ ॥ काले सुइभूएणं विसिट्टपुष्फाइएहिं विहिणा | उ । सारथुइथोत्तगरुई जिणपूजा होइ कायव्वा ।। १४७ ॥ कालम्मि कीरमाणं किसिकम बहुफलं जहा होइ । इय सव्व च्चिय कि|रिया णियणियकालीम्म विष्णेया ॥१४८।। सो पुण इह विण्णेओ संझाओ तिण्णि ताव ओहेण । वित्तिकिरियाविरुद्धो अहवा जो जस्स जावइओ ॥१४९॥पुरिसेणं घुद्धिमया सुहवुड्ढि भावओ गणंतेणं । जत्तेणं होयव्वं सुहाणुबंधप्पहाणेण ॥ १५० ॥ विवोच्छेयम्मि य ॥९॥ गिहिणो सीयंति सव्वकिरियाओ। णिरवेक्खस्स उ जुत्तो संपुष्णो संजमो चेव ।। १५१।। तासिं अविरोहेणं आभिग्गहिओ इहं मओ For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदशशा-18| कालो । तत्थावोच्छिण्णो जं णिच्चं तकरणभावोत्ति ॥१५२॥ तत्थ सुइणा दुहावि हु दव्वे हाएण सुद्धवत्थेण । भावे उ अवत्थोचि-16| ४ पूजा | यविसुद्धवित्तिपहाणेण ॥१५३ ।। ण्हाणाइवि जयणाए आरंभवओ गुणाय णियमेण । सुहभावहेउओ खलु विष्णेयं कूवणाएणं पञ्चाशकम् सूत्रम् । ।। १५४ ।। भूमीपेहणजलछाणणाइ जयणा उ होइ हाणाओ । एत्तो विसुद्धभावो अणुहवसिद्धो चिय बुहाणं ॥ १५५ ॥ अन्नत्थारंभवओ धम्मे णारंभओ अणाभोगो । लोए पवयणखिसा अबोहिवीयंति दोसा य ॥ १५६ ॥ अविसुद्धावि हु वित्ती एवं चिय होइ अहिगदोसाउ । तम्हा दुहावि सुइणा जिणपूजा होइ कायव्वा ।। १५७ ॥ गंधवरधूवसवोसहोहिं उदगाइएहिं चित्तेहिं । सुरहिविलेवणवरकुसुमदामबलिदीवएहिं च ।। १५८ ॥ सिद्धत्थयदहिअक्खयगोरोयणमाइएहिं जहलाभं । कंचणमोत्तियरयणाइदामएहिं च विविहेहिं ।युग्मम् ॥१५९||पवरेहिं साहणेहिं पायं भावोऽवि जायए पवरो । ण य अण्णो उवओगो एएसि सयाण लढयरो ॥ १६० ।। इहलोयपारलोइयकज्जाणं पारलोइयं अहिगं । तंपि हु भावपहाणं सोवि य इय कज्जगम्मोत्ति ।। १६१ ॥ ता नियविहवणुरूवं विसिहपुप्फाइएहिं जिणपूजा । कायव्वा बुद्विमया तम्मी बहुमाणसारा य ॥ १६२॥ एसो चेव इह विही विसेसओ सबमेव जत्तेण । |जह रेहति तह सम्म कायव्बमणण्णचेडेणं ।। १६२ ।। वत्थेण बंधिऊणं णासं अहवा जहासमाहीए । वज्जेयव्य तु तदा देहम्मिवि कंडयणमाई ॥ १६४ ॥ भिच्चावि सामिणो इय जत्तेण कुणंति जे उ सणिओगं । होति फलभायणं ते इयरेसि किलेसमित्तं तु ॥१६५ ॥ भुवणगुरूण जिणाणं तु (ण वि) विसेसओ एव (य) मेव दहव्वं । ता एवं चिय पूया एयाण बुहेहिं कायव्वा ॥ १६६ ॥ बहुमाणोऽवि हु एवं जायइ परमपयसाहगो णियमा । सारथुइथोत्तसहिया तह य चितिवंदणाओ य ।। १६७ ।। सारा पुण थुइथोत्ता गंभीरपयत्थविरइया जे उ । सन्भूयगुणुकित्तणरूवा खलु ते जिणाणं तु ॥ १६८ ॥ तेसिं अत्थाहिगमे णियमेणं होइ कुसलपरिणामो । ॥१०॥ For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ पूजा श्रीदशशा- सुंदरभावा तेसि इयरम्मवि रयणणाएण ॥ १६९ ।। जरसमणाई रयणा अण्णायगुणावि ते समिति जहा। कम्मज्जराइ थुइमाइयावि तह स्त्रीय मूल | भावरयणाउ ।। १७० ॥ ता एयपुव्वगं चिय पूजाए उवरि वंदणं नेयं । अक्खलियाइगुणजुयं जहागमं भावसारं तु ॥ १७१ ।।। सूत्रम्। कम्मविसपरममंतो एवं एयंति बेंति सव्वण्णू ( समयण्णू)। मुद्दा एत्थुस्सग्गो अक्खोभो होइ जिणचिण्णो ।। १७२।। एयस्स समत्तीए कुसलं पणिहाणमो उ कायव्वं । तत्तो पवित्तिविग्घजयसिद्धी तह य थिरीकरणं ।। १७३ ।। एत्तो चिय ण णियाणं पणिहाण बोहिपत्थणासरिसं । सुहभावहेउभावा णेयं इहरापवित्ती उ ॥ १७४ ॥ एवं तु इहृसिद्धी दब्बपवित्तीउ अण्णहा णियमा । तम्हा अविरुद्धमिणं णेयमवत्थंतरे उचिए । १७५ ॥ तं पुण संविग्गणं उवओगजुएण तिब्बसद्धाए । सिरणमियकरयलंजलि इय कायव्वं पय|त्तेणं ॥ १७६ ॥ जय वीयराय ! जयगुरू होउ ममं तुह पभावओ भयवं । भवणिब्बेओ मग्गाणुसारिया इडफलसिद्धी ॥१७७॥ लोय|विरुद्धच्चाओ गुरुजणपूआ परत्थकरणं च । सुहगुरुजागो तव्वयणसेवणा आभवमखंडा ॥ १७८ ॥ युग्मम् ।। उचियं च इमं णयंत तस्साभावाम्म तप्फलस्सण्णे । अपमत्तसंजयाणं आराऽणभिसंगओ ण परे ॥ १७९ ।। मोकखंगपत्थणा इय ण णियाणं तदुचियस्स विण्णेयं । सुत्ताणुमइत्तो जत्थ बोहीए पत्थणा माणं ॥ १८० ॥ एवं च दसाईसुं तित्थयरंमिवि णियाणपडिसेहो । जुत्तो भवपडिबद्धं साभिस्संगं तयं जेण ।। १८१ ।। जं पुण णिरभिस्संगं धम्मा एसो अणेगसत्तहिओ। णिरुवमसुहसंजणओ अपुव्वचिंतामणीकप्पो ॥ १८२ ॥ ता एयाणुहाणं हियमणुवहयं पहाणभावस्स । तम्मि पवित्तिसरूवं अत्थापत्तीएँ तमदुई ।। १८३ ।। युग्मम् ।। कय|मित्थ पसंगेण पूजा एवं जिणाण कायव्वा । लघृण माणुसत्तं परिसुद्धा सुत्तनातीए ॥ १८४ ।। पूजाए कायवहो पडिकुट्ठो सो य जाणेव पुज्जाणं । उवगारिणित्ति तो सा परिसुद्धा कह णु होइत्ति ॥१८५ ।। भण्णइ जिणपूयाए कायवहो जतिवि होइ उ कहिचि ।। SACSRUSSACRECE ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीदशशास्त्रीय मूल सूत्रम् । ॥ १२॥ सरस | तहवि तई परिसुद्धा गिहीण कूवाहरणजोगा ॥ १८६ ।। असदारंभपवत्ता जं च गिही तेण तेसि विनेया। तन्निवित्तिफल च्चिय | ५प्रत्या एसा परिभावणीयमिणं ।।१८७।। उवगाराभावम्मिवि पूज्जाणं पूजगस्स उवगारो। मंतादिसरणजलणाइसेवणे जह तहेहंपि ॥१८८।। ख्यान| देहादिणिमित्तंपि हु जे कायवहम्मि तह पयट्टति । जिणपूयाकायवहम्मि तेसिमपवत्तणं मोहो । १८९ ॥ सुत्तभणिएण विहिणा दिपञ्चाशकम् गिहिणा णिव्याणमिच्छमाणेण । तम्हा जिणाण पूजा कायव्वा अप्पमत्तेणं ॥१९०।। एकंपि उदगबिंदुं जह पकिखत्तं महासमुद्दम्मि । जायइ अक्खयमेवं पूया जिणगुणसमुद्देसु ॥ १९१ ॥ उत्तमगुणबहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि । उत्तमधम्मपसिद्धी पूयाए जिणव रिंदाणं ॥ १९२ ।। सुबइ दुग्गइणारी जगगुरुगो सिंदुवारकुसुमेहिं । पूजापणिहाणणं उबवण्णा तियसलोगम्मि ॥१९३॥ सम्म णाऊPाण इमं सुयाणुसारेण धीरपुरिसेहिं । एवं चिय कायव्वं अविरहियं सिद्धिकामेहिं ।। १९४ ।। इति पूयापगरणं चउत्थं ॥ | नमिऊण बदमाण समासओ सुत्तजुत्तिओ वोच्छ । पञ्चक्खाणस्स विहिं मंदमइविवोहणहाए ॥ १९५॥ पच्चक्खाणं नियमो चरित्तधम्मो य होति एगट्ठा । मूलुत्तरगुणविसयं चित्तमिण वणियं समए ॥ १९६ ॥ इह पुण अद्धारूवं णवकारादि पतिदि| गोवओगित्ति । आहारगोयरं जगिहीण भणिमो इमं चेव ॥ १९७ ।। गहणे आगारेसुं सामइए चेत्र विहिसमाउत्तं । भेए भोगे सय पालणाएँ अणुवंधभावे य ।। १९८ ॥ दारगाहा ।। गिम्हति सयंगहीय काले विणएण सम्ममुवउत्तो। अणुभासंतो पइवत्थु जाण. | गो जाणगसगासे ॥१९९ ॥ एत्थं पुण चउभंगो विष्णेओ जाणगेयरगओ उ। सुद्धासुद्धा पढमंतिमाउ सेसेसु उ विभासा | Bा॥ २०० । बिइए जाणावेउं ओहेणं तइए जेडगाइमि । कारणओ उ न दोसो इहरा हाइत्ति गहणविही ॥ २०१॥ दो चेव | णमोकारे आगारा छच्च पोरिसीए उ । सत्तेव य पुरिमड्ढे एक्कासणगम्मि अहेव ॥ २०२ ॥ सत्तेगट्ठाणस्स उ अडेवायंबिलस्स आ For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुलम् ॥१३॥ आगारा । पंच अभत्तट्ठस्स उ छप्पाणे चरिम चत्तारि ।। २०३ ।। पंच चउरो अभिग्गहि णिब्विइए अढ णव य आगारा। अप्पाउ II५प्रत्याप्रारणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥ २०४ ॥ णवणीओगाहिमए अद्दवदहिपिसियघयगुले चेव । णव आगारा तेसि सेसदवा-15 ख्यान णं च अडेव ।। २०५॥ वयभंगो गुरुदोसो थेवस्सवि पालणा गुणकरी उ। गुरुलाघवं च णेयं धम्मम्मि अओ उ आगारा सपश्चाशकम्. | ॥ २०६ ।। सामइएवि हु सावञ्जचागरूवे उ गुणकरं एयं । अपमायबुड्डिजणगत्तणेण आणाउ विष्णेयं ।। २०७॥ एत्तो य अप्पमाओ जायइ एत्थमिह अणुहवो पायं । विरतीसरणपहाणे सुद्धपवित्तीसमिद्धफलो ।। २०८ ॥ ण य सामाइयमेयं बाहइ भेयगहणे (ग्गहे) वि सम्वत्थ । समभावपवित्तिणिवित्तिभावओ ठाणगमणं व ॥२०९।। सामइए आगारा महल्लतरगेवि णेह पण्णत्ता । भणिया अप्पतरेऽवि हु णवकाराइम्मि तुच्छमिणं ॥२१०।। समभावे च्चिय तं जं जायइ सब्बत्थ आवकहियं च । ता तत्थ ण आगारा पण्णता |किमिह तुच्छति । २११।। तं खलु णिरभिस्संग समयाए सव्वभावविसयं तु । कालावहिम्मिवि परं भंगभया णावाहितेण ॥ २१२॥ मरणजयज्झवसियसुहडभावतुल्लमिह हीणणाएण । अववायाण ण विसओ भावयचं पयत्तेणं ।। २१३ ॥ एत्तो च्चिय पडिसेहो दर्द अजोग्गाण वण्णिओ समए । एयस्स पाइणोऽवि हु बीयंति विही य अइसइणा ॥ २१४ ।। तस्स उ पवेसणिग्गमवारणजोगेसु जह उ अबवाया । मूलाचाहाएँ तहा णवकाराइम्मि आगारा ।। २१५ ।। ण य तस्स तेसुऽवि तहा णिरभिस्संगो उ होइ परिणामो । पडियारलिंगासिद्धो उणियमओ अण्णहारूवो ।। २१६ ॥ण य पढमभाववाघायमो उ एवंपि अवि य तस्सिद्धी। एवं चिय होड दर्द इहरा वामोहपायं तु ॥ २१७ ॥ उभयाभावेऽवि कुतोऽवि अग्गओ हंदि एरिसो चेव । तकाले तब्भावो चित्तखओवसमओ ओ *॥ २१८ ।। आहारजाइओ एस एत्थ एकोवि होति चउभेओ । असणाइजाइभेया णाणाइपसिद्धिओ ओ ॥ २१९ ॥ णाणं सहहणं | सा॥ For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुलम् पश्चाशक-18 गहण पालणा विरतिवुड्डि चवत्ति । होइ इहरा उ मोहा विवजओ भणियभावाणं ।। २२० ।। असणं ओयणसत्तुगमुग्गजगाराइ खज-18 ५ प्रत्यागविही य । खीराई सूरणाई मंडगपभिई य विष्णेयं ॥२२१।पाणं सोवीरजवोदगाइ चित्तं सुराइगं चव । आउक्काओ सब्बो ककड-10 ख्यान गजलाइयं च तहा ॥ २२२ ॥ भत्तोसं दन्ताई खज्जूरं नालकेरदक्खादी । ककडिगंचगफणसाइ बहुविहं खाइमं णेयं ॥२२३॥ दंतवणं पश्चाशकम्. तंबोलं चितं तुलसीकुहेडगाई य । महुपिप्पलिमुंठाई अणे गहा साइमं होइ ।। २२४ ॥ लेसुद्देसेणेए भेया एएसि दंसिया एवं । एयाणुसारओ च्चिय सेसा सयमेव विष्णेया ॥२२५।। तिविहाइभेयओ खलु एत्थ इमं वणियं जिणिदेहिं । एत्तो चिय भेएसुवि सुहुमंति बुहाणमविरुद्धं ॥२२६।। अण्णे भणति जतिणो तिविहाहारस्स ण खलु जुत्तमिणं । सधविरइउ एवं भेयग्गहणे कहं सा उ॥२२७|| अपमायवुड्डिजणगं एयं एत्थंपि दंसियं पुव्वं । तब्भोगमित्तकरणे सेसच्चागा तओ अहिगो ।। २२८ ।। एवं ( कहिंचि) कहंचि कज्जे भादविहस्सवि तण्ण होति चिंतमिगं । सच्चं जइणो णवरं पाएगण अण्णपरिभोगो ॥ २२९ ॥ विहिणा पडिपुण्णम्मि भोगो विगए य थेवकाले उ । सुहधाउजोगभावे चित्तेणमणाकुलेण तहा ।। २३० ॥ काऊण कुसलजोगं उचियं तकालगोयरं णियमा । गुरुपडिवत्तिप्पमुहं मंगलपाठाइयं चेत्र ।। २३१ ॥ सरिऊण विसेसेगं पच्चक्खायं इमं मए पच्छा । तह संदिसाविऊणं विहिणा मुंजंति धम्मरया | ॥२३२।। सयपालणा य एत्थं गहियम्मिवि ता इमम्मि अन्नेमा दाणे उत्रएसम्मि य ण होति दोसा जहऽण्णत्थ ॥२३३।। कयपच्चक्खाणोवि य आयरियगिलाणबालवुड्डाणं । देज्जासणाइ संते लाभे कयबीरियायारो ॥२३४॥ संविग्गअन्नसंभोइयाण दंसेज्ज सङ्कग कुलाणि । अतरंतो वा संभोइयाण जह वा समाहीए ।। २३५ ।। एवमिह सावगाणवि दाणुवएसाइ उचियमो णेयं । सेसम्मि वि एस 18 विही तुच्छस्स दिसादवेक्खाए ॥२३६।। संतेअरलद्विजुएअराइभावेसु होइ तुल्लेसु । दाणं दिसाइभेए तीए दितस्स आणादी ॥२३७॥ ॥ १४ ॥ CASCARRCANE For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशकमुलम् | ६ स्तवपञ्चाशकम्. ॥१५॥ भाषणमुचियजोगं अणवरयं जो करेइ अब्बहिओ। णियभूमिगाय सरिसं एत्थं अणुबंधभावविही ॥२३८ ॥ गुरुआएसेणं वा जोगंतरगपि तदहिगं तमिह । गुरुआणाभंगम्मि य सब्वेऽणत्था जओ भणितं ॥२३९॥ छट्टमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं । अकरितो गुरुवयणं अणंतसंसारिओ होति ।। २४० ॥ बज्झाभावेऽवि इमं पञ्चक्खंतस्स गुणकरं चेव । आसवनिरोहमावा आणाआराहणाओ य ।। २४१ ।। न य एत्वं एगंतो सगडाहरणादि एत्थ दिहतो । संतपि णासइ लहुं होइ असंतंपि एमेव ॥ २४२ ॥ ओहेणाविसयपि हु ण होइ एयं कहिंचि णियमेण । मिच्छासंसज्झियकम्मओ तहा सव्वभोगाओ ॥ २४३ ॥ विरईए संवेगा तक्खयओ भोगविगमभावण । सफलं सब्वत्थ इमं भवविरहं इच्छमाणस्स ।। २४४ ।। इति प्रत्याख्यानपश्चाशकम् ५॥ x नमिऊण जिणं वीरं तिलोगपुज्ज समासओ वोच्छं । थयविहिमागमसुद्धं सपरेसिमणुग्गहडाए ॥ २४५ ॥दब्बे भावे य थओ दव्वे भावथयरागओ सम्म । जिणभवणादिविहाणं भावथओ चरणपडिवत्ती ।। २४६ ॥ जिणभवणबिंबठावणजत्तापूजाइ सुत्तओ | विहिणा | दबत्थउत्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेण ॥ २४७ ॥ विहियाणुट्ठाणमिणंति एवमेवं सया करताणं । होइ चरणस्स हेऊ | णो इहलोगादवेक्खाए ।। २४८ ॥ एवं चिय भावथए आणाआराहणाउ रागोऽवि । जं पुण इयबिवरीयं तं दवथओऽवि णो होइ ॥२४९ ॥ भावे अइप्पसंगो आणाविवरीयमेव जं किंचि । इह चित्ताणुढाणं तं दवथओ भवे सव्वं ॥ २५० ॥ जं वीयरागगामी ४ अह तं णणु गरहितंपि हु स एवं । सिय उचियमेव जंतं आणाआराहणा एवं ॥२५१॥ उचियं खलु कायव्वं सव्वत्थ सया णरेण बुद्धिमता । इइ फलसिद्धी णियमा एस चिय होइ आणति ॥ २५२ ।। जं पुण एयविउत्तं एमंतेणेव भावसुण्णति । तं विसयम्मिवि पतओ भावथयाहेउतो णेयं।।२५३॥ समयम्मि दचसद्दो पायं जं जोग्गयाए रूढोत्ति । णिरुवचरितो उ बहुहा पओगभेदोवलंभाओ For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पश्चाशकमुलम् ४६ स्तव&॥२५४|| मिउपिंडो दवघडो सुसावगो तह य दव्वसाहुत्ति । साहू य दव्वदेवो एमाइ सुए जओ भणित।।२५५।। ता भावत्थयहेऊ जो पश्चाशकम्. सो दव्वत्थओ इहं इहो । जो उ व णेवंभूओ स अप्पहाणो परं होति।।२५६।। अप्पाहण्णेऽवि इहं कत्थइ दिहोउ दव्वसद्दोत्ति । अंगारमदगो जह दवायरिओ सयाऽभब्यो । २५७ ॥ अप्पाहण्णा एवं इमस्स दव्वत्थवत्तमविरुद्धं । आणाबज्झत्तणओ न होइ मोक्खंगया णवरं ॥२५८॥ भोगादिफलविसेसो उ अस्थि एत्तोऽवि विसयभेदेण । तुच्छो उ तगो जम्हा हवति पगारंतरेणावि ॥२५९|| उचियाणुहाणाओ विचित्तजइजोगतुल्लमो एस । जंता कह दब्बत्थओ तद्दारेणप्पभावाओ ॥२६० ।। जिणभवणादिविहाणहारेणं एस होति सुहजोगो । उचियाणुट्ठाणंपि य तुच्छो जइजोगतो णवरं ।। २६१ ॥ सब्वत्थ निरभिसंगत्तणण जइजोगमो महं होइ । एसो उ अभिरसंगा कत्थइ तुच्छेवि तुच्छे उ ॥२६२॥ जम्हा उ अभिस्संगो जीवं दूसेइ णियमतो चेव । तसियस्स जोगो विसघारियजोगतुल्लोत्ति ।। २६३ ॥ जइणो असियस्सा हेयाओ सब्बहा णियत्तस्स । सुद्धो उ उवादेए अकलंको सव्वहा सो उ ॥ २६४ ॥ असुहतरंडुत्तरणप्पाओ दव्वत्थओऽसमत्तो य । णदिमादिसु इयरो पुण समत्तबाहुत्तरणकप्पो ॥२६५।। कडुगोसहादिजोगा मंथररोगसमसण्णिहो वावि । पढमो विणोसहेणं तक्खयतुल्लो व वितिओ उ ।। २६६ ॥ पढमाओं कुसलबंधो तस्स विवागेण सुगइमादीया । तत्तो परंपराए बितिओऽविहु होइ कालेणं ॥२६७।। चरणपडिवत्तिरूवो थोयव्वोचियपवित्तिओ गुरुओ । संपुष्णाणाकरणं कयकिच्चे | हंदि उचियं तु ॥२६८।। णेयं च भावसाहुं विहाय अण्णो चएति काउंजे । सम्मं तग्गुणणाणाभावा तह कम्मदोसा य ॥२६९।। इत्तो |च्चिय फुल्लामिसथुइपडिवत्तिपूयमझमि । चरिमा गरुई इट्टा अण्णेहिवि णिचभावाओ ।।२७०॥ दव्वत्थयभावत्थयरूवं एयमिय होतिर ४ दट्ठव्वं । अण्णोण्णसमणुबद्धं (विद्वं) णिच्छयतो भणियविसय तु ॥ २७१ ।। जइणोऽवि हु दव्वत्थयभेदो अणुमोयणेण अथिति । SCIRSONACHAR For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यं च एत्य यं इय सुद्धं नतजुत्तीए ।। २७२ ।। ततम्मि वंदणाए पूयणसकारहेउ उम्सग्गी । जतिणावि हु णिद्दिष्ट्ठी ते पुण दव्य जिन पञ्चाशक इह दहावि दबन्थओ पत्थ ।।२७४: ओसरणे बलि भवन त्थयसरुवे।।२७३।। मल्लाइएहिं पूआ सकारो पवरवत्थमादीहिं । अण्णे विवज्जा मूलम्. पश्चाशकम मादी ण चेह जं भगवयावि पडिसिद्धं । ता एसमणुण्णाओ उचियागं गम्मती तेण ॥२७॥ण य भगवं अणुजाणति जोग मुक्खविगुणं कदाचिदपि । ण य तयणुगुणोऽवि तओ ण बहुमतो हाति अण्णसि।।२७६॥ जो चेत्र भावलेसो सा चव य भगवतो वहुमतो उ । ण तओऽवि णयरेणंति अत्थओ मोवि एमेव ।।२७७|| कज्ज इच्छंतणं अणंतर कारणंपि इटुंतु। जह आहारजातिनि इच्छंतणह थाहारा VI| २७८ ।। जिणभवणकारणाइवि भरहादणि ण चारितं तेण | जह तेसि चिय कामा सल्लविसादीहिं णाहिं ।। २७९ ॥ ता तंपि। अणमयं चिय अप्पडिसेहाओ तंत जुनीए । इय सेसाणवि एत्थं अणु मोयणमादि अविरुद्धं ।। २८ ।। जं च च उद्धा भणिओ विणओ3 उवयारिओ उ जो तत्थ । सो तित्थगरे णियमा ण होइ दबत्थयादण्णा ।। ८१ ।। एयस्स उ संपाडणहे उं तह चेव बंदणाए उ । पूजणमादुचारणमुववणं होइ जइणोऽवि ॥ २८२ ।। इहरा अणत्थगं तं ण य तयणु चारणेण मा भणिता । ता अहिसंधारणमो संपा | डणमिट्टमेयस्य ।। २८३ ।। सक्खा उ कसिणसयमदब्बाभावेहि (वो य) णो अयं इट्टो । गम्मइ तंतठितीए भावपहाणा हि मुणउत्ति ॥ २८४ ॥ एपहितो अण्णे जे धम्माहगारिणो हु तेसि तु । सक्खं चिय विष्णेओ भावंगतया जतो भाणतं ॥ २८५ ।। अकसिणपवनयाणं विरयाविरयाण एस खलु जुत्तो । संसारपयणुकरणे दव्यथए कूवदिलुतो ।। २८६ ॥ सो खलु पुप्फाईओ तत्थुत्तो न जिणभवणमाईवि | आइसहा वुत्तो तयभावे कस्स पुप्फाई? ।। २८७ ।। णणु तत्थेव य मुणिणो पुप्फाइनिवारणं फुडं अस्थि । अस्थि नयं सयकरण पड़च्च नऽणुमायणाइवि ।। ८८।। सुबह य वहरिसिणा कारवणंपि हु अणुट्टियमिमम्स । वायगगंथेसु तहा ॥१७॥ For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक- मूलम् . ॥ १८॥ RECK एयगया देसणा चेव ॥ २८९ ॥ दव्वत्थओवि एवं आणापरतंतभावलेसेण । समणुगउ च्चिय ओहिगारिणो सुपरिसुद्धोत्ति ७ जिन P॥ २९० ॥ लोगे सलाहणिज्जो विसेसजोगाउ उण्णइणिमित्तं । जो सासणस्स जायइ सो णेओ सुपरिसुद्धोत्ति ।। २९१ ॥ तत्थ पुण|| भवनवंदणाइंमि उचियसंवेगजोगओ णियमा । अस्थि खलु भावलेसो अणुहवसिद्धो विहिपराणं ॥ २९२ ॥ दव्वत्थयारिहत्तं सम्म णाऊण लिपश्चाशकम् | भयवओ तंमि । तह य (उ) पयट्टताणं तब्भावाणुमइओ सो य (चेव)॥ २९३ ।। अलमत्थ पसंगणं उचियर्स अप्पणो मुणेऊणं । दोवि इमे कायब्वा भवविरहत्थं बुहजणेण ।। २९४ ॥ स्तवनविधिः समाप्तः । ॥अथ सप्तमपञ्चाशकम् ॥ नमिऊण वह्नमाणं वोच्छं जिणभवणकारणावहाणं । संखेवओ महत्थं गुरुवएसाणुसारेणं ॥ २५.५ ।। अहिगारिणा इमं खलु कारेयव्वं विवज्जए दोसो । आणाभंगाउ च्चिय धम्मो आणाए पडिबरो ।। २९६ ।। आराहणाइ तीए पुण्णं पावं विराहणाए उ । एयं धम्मरहस्सं विण्णेयं बुद्विमतेहिं ।। २९७ ॥ अहिगारी उ गिहत्थो मुहसयणो वित्तसंजुओ कुलजो । अक्खुद्दो धिइबलिओ मइमं तह धम्मरागी अ ॥ २९८ ॥ गुरुपूयाकरणरई सुस्सूसाइगुणसंगओ चेव । णायाऽहिगयविहाणस्स धणियं माणप्पहाणो य ॥२९९॥ । युग्मम् ।। एसो गुणद्धिजोगा अणेगसत्ताण तीइ विणिओगा। गुणरयणवियरणेणं तं कारिंतो हियं कुणइ ।। ३०० ॥ तं तह पवन तमाणं दहूं केइ गुणरागिणो मग्गं । अण्णे उ तस्स बीयं सुहभावाउ पवज्जंति ।। ३०१ ॥ जो चिय सुहभावो खलु सव्वन्नुमयम्मि | AIR, | होइ परिसुद्धो । मो च्चिय जायइ बीयं बोहीए नेणणाएण ।। ३०२ ।। जिणभवणकारणविही सुद्धा भूमी दलं च कट्ठाई । भियगा ॥१८॥ For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पञ्चाशकमूलम् ॥ १९ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसंघाणं सासयबुट्टी य जयणा य ।। ३०३ ।। दब्बे भावे य तहा सुद्धा भूमी पएसकीला य। दब्बे पत्तिगरहिया अण्णसिं होइ भावे उ || ३०४ || अपदेसंमिण वुड्डी कारवणे जिणघरस्स ण य पूया । साहूणमणणुवाओ किरियाणासो उअववाए ||३०५ || सासणगारहा लोए अहिगरणं कुत्थियाण संपाए । आणादीया दोसा संसारणिबंधणा घोरा ।। ३०६ ।। कीलादिसल्लजोगा होंति अणिव्वाणमादिया दोसा । एएसि वज्जगडा जइज्ज इह सुत्तविहिणा उ ।। ३०७ || धम्मत्थमुज्जुएणं सव्वस्मापत्तियं ण कायव्वं । इय संजमोऽवि सेओ एत्थ य भयवं उदाहरणं ॥ ३०८ ॥ सो तावसासमाओ तेसिं अप्पत्तियं मुणेऊणं । परमं अवोहिबीयं ततो तो इंतकालेऽवि ।। ३०९ ।। इय सव्वेणवि सम्मं सर्क अप्पत्तियं सह जणस्स । णियमा परिहरियव्यं इयरंमि सनतचिंता उ || ३१० || कट्टादीवि दलं इह सुद्धं जं देवतादुववणाओ । गो अविहिणोवणीयं सयं चकारावियं जं णो ॥ ३११ ॥ तस्सवि य इमो ओ सुद्धासुद्धपरिजाणणोवाओं । तकहगहणादिम्मी सउणेयरसण्णिवातो जी ॥ ३१२ ।। णंदादिसुहो सो भरिओ कलसोऽथ सुंदरा पुरिसा । सुहजोगाइ य सउणो कंदियसदादि इतरो उ ॥ ३१३|| सुह्रस्सवि गहियस्सा पसत्यदियहम्मि सुहमुहुत्तेणं । संकामणम्मिवि पुणो विष्णेया सउणमादीया || ३१४ || कारवणेऽवि य तस्सिह भितगाणविसंघणं ण कायव्यं । अवियाहिंगपदाणं दिट्ठादिफलं एयं ।। ३१५ ।। ते तुच्छा बराया अहिगेण दृढं उविंति परितोस । तुट्ठा य तत्थ कम्मं तत्तो अहिगं पकुति ।। ३१६ ।। धम्मपसंसाए तहा केइ णिबंधंति बोहिबीयाई । अण्णे उ लहुयकम्मा एत्तो च्चिय संपवुज्झति ॥ ३१७ ॥ लोगे य साहुवाओ अतुच्छभावेण सोहणो धम्मो । पुरिसुत्तमप्पणीतो पभावणा चैव तित्थस्स ।। ३१८ || सासयबुद्धीवि इहं भुवणगुरुजिगिंदुगुणपरिणाए । तणित्थं सुद्धपवित्तएँ णियमेण ।। ३१९ ।। पेच्छिस्सं इत्थमहं वंदणगणिमित्तमागए साहू । कयपुण्णे भगवंते For Private and Personal Use Only ७ जिन भवन पञ्चाशकम् ॥ १९ ॥ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिन भवनपश्चाशकम् D - पञ्चाशक-* गुणरयणणिही महासत्ते ॥ ३२० । पडियुझिस्मति इह दट्टण जिाणदबिंबमकलक । अण्णेऽवि भव्यसत्ता काहिति ततो परं धम्म ८ मूलम्. ।। ३२१ ।। ता एयं मे वित्तं जमेत्थमुवओगमेति अणवरयं । इय चिंताऽपरिवडिया सासयवुड्डी उ मोक्खफला ।। ३२२ ।। जयणा य | पयत्तेणं कायव्वा एत्थ सबजोगेसु । जयणा उ धम्मसारो जं भणिया वीयरागेहिं ।। ३२३ ।। जयणा उ धम्मजणणी जयणा धम्म स्स पालणी चेव । तव्वुड्डीकरी जयणा एगंतसुहावहा जयणा ।। ३२४ ।। जयणाए वट्टमाणो जीवो सम्मत्तणाणचरणाणं । सद्धाबो| हासेवणभावेणाराहगो भणितो ॥ ३२५ ॥ एसा य होइ णियमा तदहिगदोसविणिवारणी जेण । तेण णिवित्तिपहाणा विण्णेया बुद्धिमंतेहिं ॥३२६।। सा इह परिणयजलदलविसुद्धिरूवा उ होइ णायव्वा । अण्णारंभणिवित्तीएं अप्पणाहिट्टणं चेवं ।।३२७। एवं च होइ एसा पवित्तिस्वावि भावतो णवरं । अकुसलणिवित्तिरूपा अप्पबहुविसेसभावणं ॥३२८।। एत्तो चिय णिहोस सिप्पादिविहाणमो जिणिंदस्स । लेसेण सदोसंपिहु बहुदोसनिवारणत्तेण ॥ ३२९ ।। बरबोहिलाभओ सो सबुत्तमपुण्णसंजुओ भय | एगंतपरहियरतो जाविसुद्धजोगो महासत्तो ॥३३०॥ ज बहुगुणं पयाणं तं णाऊणं तहेव दंसह । ते रक्त स्स ततो जहोचितं कह भवे दोसो' ।।३३१।। युग्मम् ।। तत्थ पहाणो असो व हुदोसनिवारणाउ जगगुरुणो । नागादिरक्खणे जह कवणदोसे उवि सुहजोगा।३३।। खड्डातडम्मि विसमे इटुसुयं पन्छिऊण कीलंतं । तप्पच्चवायभीया तदाणणहा गया जणणी ॥३३३॥ दिहो य तीए णागो तं पति एंतो दुतो उ खड्डाए । तो कङ्कितो तगो तह पीडाहवि सुद्धभावाए ॥३३४॥ युग्मम् ।। एयं च एत्थ जुत्तं इहराहिगदोसभावतोऽणत्थो। तप्परिहारेणत्थो| अत्था चिय तत्तआ णओ ।। ३३५ ।। एव निवित्तिपहाणा विष्णेया भावओ अहिंसेयं । जयणावओ उ विहिणा पूजादिगयावि एमेव ।। ३३६ ॥ णिप्फाइऊण एवं जिणभवणं सुंदर तहिं विंचं । विहिकारियमह विहिणा पडवेज्जा लहं चेव ।। ३३७ ।। एयस्स - - २०॥ C- For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org फलं भणियं इय आणाकारिणो उ सङ्कस्स । चित्तं सुहाणुबंध णिव्वाणतं जिणिंदेहि ॥ ३३८ ॥ जिणबिंबपइट्टावणभावज्जियकम्म-8 अष्टम पश्चाशक 18 प्रतिष्ठा मूलम्. । परिणतिवसणं । सुगती पइट्ठावणमणहं सदि अप्पणो चेव ।। ३३९ ।। तत्थवि य साहुदंसणभावज्जियकम्मतो उ गुणरागी । मापश्चाशकम् काले य साहुदंसणमहकमेणं गुणकरं तु ॥ ३४० ॥ पडिबुझिस्संतन्ने भावज्जियकम्मओ य पडिबत्ती । भावचरणस्स जायति एगंत॥ २१ ॥ सुहावहा णियमा ॥ ३४१ ॥ अपरिवडियमुहींचताभावज्जियकम्मपरिणतीए उ। गच्छति इमीइ अंतं ततो य आराहणं लहइ ॥ ३४२ ॥ णिच्छयणया जमेसा चरणपडिवत्तिसमयतो पभिति । आमरणतमजस्सं संजमपरिपालणं विहिणा ॥ ३४३ ॥ आराहगा य जीवो सत्तट्ठभवेहिं पावती णियमा । जमादिदोसविरहा सासयसोकावं तु णिबाण ॥ ३४४ ॥ जिणभवणकारणविही समना ॥७॥ ॥ अथाष्टमपंचाशकम् ॥ ८॥ नमिऊण देवदेवं वीरं सम्म समासओ बोच्छं । जिणाबपइट्ठाए विहिमागमलोयणीतीए ॥ ३४५ ॥ जिणबिंबस्स पइट्ठा पायं | कारावियस्स जं तेण । तकारवणंमि विहिं पढम चिय दणिमो ताव ॥ ३४६ ॥ सोउं णाऊण गुणे जिणाण जायाएँ सुद्धबुद्धीए । किच्चमिणं मणुयाणं जम्मफलं एत्तिय चेव (ह) ॥ ३४७ ।। गुणपगरिसा जिणा खलु तेसि बिंबस्स दंसणंपि सुहं । कारावणेण तस्स उ अणुरग हो अत्तणो परमो ॥ ३४८ ॥ मोक्खपहसामियाणं मोक्खत्थं उज्जएण कुसलेणं । तग्गुणबहुमाणादिसु जइयव्वं सबजत्तेणं ॥ ३४९ ॥ तग्गुणबहुमाणाओ तह सुहभावण बज्झती णियमा । कम्मं सुहाणुबंधं तस्सुदया सबसिद्धित्ति ॥३५०।। चतुर्भिः कलापकम् ।। इय सुद्धबुद्धिजोगा काले संपूडऊण कत्तारं । विभवोचियमपेज्जा मोल्लं अणहस्स मुहभावो ।। ३५१ ।। तारिसयस्सा- ॥ २१ ॥ CCCC-15 For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक- मूलम्. ॥ २२॥ भावे तस्सेव हितत्थमुज्जुआ णवरं । णियमज्ज बिचमोल्लं जं उचियं कालमासस्स ॥ ३५२ ॥ देवस्सपरीभोगो अणेगजम्ममु दारुण श अष्टम 81 प्रतिष्ठा विवागो । तंमि स होइ णिउत्तो पावो जो कारओ इहरा ॥ ३५३ ।। जं जायइ परिणामे असुहं सबस्स तं न कायव्वं । सम्मं णिरू लापश्चाशकम् विऊणं गाढागलाणस्स वाऽपत्यं ।। ३५४ ।। आणागारी आराहणेण तीए ण दोसवं होति । वत्थुविवज्जासम्मिवि छउमत्थो सुद्धपरिणामो ॥ ३५५ ॥ आणापवित्तिओ चिय सुद्धा एसो ण अण्णहा णियमा । नित्थगरे बहुमाणा तदभावाभो य णायव्वो ॥३५६॥ समतिपवित्ती सवा आणावज्झत्ति भवफला चेव । तित्थगरुद्देसेणवि ण तत्तओ सा तदुईसा ।। ३५७ ।। मूढा अणादिमोहा तहा तहा एत्थ संपयट्टता । तं चेव य मण्णंता अवमण्णंता ण याणंति ।। ३५८ ।। मोक्खत्थिणा तओ इह आणाए चेव सव्वजत्तणं । सव्वत्थवि जइयव्य मंति कयं पसंगेण ॥ ३५९ ॥ णिफण्णस्स य सम्मं तस्त्र पइट्ठावणे विही एस | सुहजोएण पवेसो आयतणे ठाणठवणा य ॥ ३६० ।। तेणेव खेत्तसुद्धी हत्थसयादिविसया णिओगेण । कापन्यो सक्कारो य गंधपुप्फादिएहिं तहिं ॥ ३६१ ॥ दिसिदेवयाण पूया सव्वेसिं तह य लोगपालाणं । ओसरणकमेणऽण्णे सव्वेसिं चेव देवाणं ॥३६२॥ जमहिगयबिंबसामी सव्वास चव अब्भुदयहेऊ । ता तस्स पइट्ठाए तेसिं पूयादि अविरुद्धं ॥३६३॥ साहम्मिया यएए महिड्डिया सम्मदिट्ठिणो जेण । एत्तो चिय उचियं खलु एतसिं एत्थ पूजादी ॥३६४॥ तत्तो सुहजोएणं सट्ठाणे मंगलेहिं ठवणा उ । अहिवासणमुचिएण गंधोदगमादिणा एत्थ ॥३६५।। |चत्तारि पुण्णकलसा पहाणमुद्दाविचित्तकुसमजुया । सुहपुण्णचत्तचउतंतुगाच्छय होति पामेस ।।३६६॥ मंगलदीवा य तहा घयगु- लपुण्णा सुभिक्खुभक्खा य । जववारयवण्णयसस्थिगादि सव्वं महारंमं ।। ३६७॥ मंगलपडिसरणाई चित्ताई रिद्धिविद्धिजुत्ताइ । ॥ २२ ॥ पढमदियहमि चंदणविलेवणं चव गंधड्डे ॥३६८।। चउणारीओमिणणं णियमा अहेगासु णत्थि उ विरोहोणेवत्थं च इमासिं जं पवरं ४ RESCHOOL For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir पञ्चाशक मूलम्. सतं इहं सेयं ॥ ३६९ ॥ ज एयवइयाणं सरीरमकारसंग चारु । कीग्इ तयं असेसं पुण्णणिमित्तं मुणेयव्वं ।। ३७० ॥ तित्थगर बहु-1 अष्टमं प्रतिष्ठा माणा आणाआराहणा कुसलजोगा । अणुबंधसुद्धिभावा रागादीणं अभावा य ।। ३७१ ।। दिक्खियोजणोमिणणओ दाणाओ सतितो कापश्चाशकम् तहयम्मि । वेहव्वं दारिदं च होति ण कयाति नारीणं ।। ३७२ ॥ उक्कोसिया य पूजा पहाणदव्वेहिं एत्थ कायव्वा । ओसहिफलवत्थसुवण्णमुत्तारयणाइएहिं च ।। ३७३ ॥ चित्तबलिचित्तगंधहिं चित्तकुसुमेहि चित्तवासेहिं । चित्तेहिं विऊहेहिं भावेहि विहवसारेण ॥ ३७४ ।। एयमिह मूलमंगल एत्तो चिय उत्तरावि सकारा। ता एयम्मि पयत्तो काययो बुद्धिमतहि ॥३७५ ।। चितिवदण थुतिवुड्डी उस्सग्गो साहु सासणसुराए । थयसरण पूयकाले ठवणा मंगलगपुब्वा उ ।। ३७६ ।। पूया बंदणमुस्सग्ग पारणा भावथज्जकरणं च । सिद्धाचलदीवसमुदमंगलाणं च पाढो उ ।। ३७७ ।। जह सिद्धाण पतिठा तिलोगचूडामणिम्मि सिद्धिपदे । आचंदसूरियं तह होउ इमा सुप्पतित्ति ॥ ३७८ ॥ एवं अचलादीसुवि मेरुप्पमुहेसु होति बत्तव्यं । एते मंगलसद्दा तम्मि सुहनिबंधणा दिठा ।। ३७९ ।। सोउं मंगलसई सउणंमि जहा उ इटुसिद्धित्ति । एत्थंपि तहा संमं विष्णेया बुद्धिमंतेहिं ॥ ३८० ।। अण्णे उ पुण्णकलसादिठावणे उदहिमंगलादीणि । जपंतण्णे सवत्थ भावतो जिणवरा चेन ।। ३८१ ।। सत्तीए संघपूजा विसेसपूजाउ बहुगुणा एसा । जं एस सुए भणिओ तित्थयराणंतरो संघो ।। ३८२ ।। गुणसमुदाओ संघो पवयण तित्थंति होति एगट्ठा । तित्थगरोवि य एणं णमए गुरुभावतो चेव ॥ ३८३ ।। तप्पुब्बिया अरिहया पूजितपूया य निणयकम्मं च । कयकिचोवि जह कहं कहेति णमते तहा तित्थं ।। ३८४ ॥ एयाम्म पूजियम्मी पत्थि तयं जंण पूजिय होइ । भुवि पूणिज्ज ण गुणहाणं ततो अण्णं ॥ ३८५ ॥ तप्पूयापरिणामो हंदि महाविसयमो मुणयन्बो। तद्देसपूयणम्मिवि देवयपूया देणाएण ॥ ३८६ ।। आसन्नसिद्धियाणं लिंगमिणं ॥ २३ For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक-1&| जिणवरहिं पण्णत्तं । संघमि चव पूया सापण्णणं गणणिहिम्मि ।। ३८७ ।। एसा उ महादाणं एस च्चिय होति भावजण्णात्तिाला अष्टम मूलम्. एसा गिहत्थसारो एस च्चिय संपयामूलं ॥ ३८८ ॥ एतीए फलंणेयं परमं व्वाणमेव णियमेण । सुरणरसुहाई अणुसंगियाई इह प्रतिष्ठा पञ्चाशकर ॥ २४ ॥ किसिपलालं व ॥ ३८९ । कयमेत्थ पसंगणं उत्तरकालोचि इहण्णपि । अणुरूवं कायव्वं तित्थुण्णतिकारग णियमा ॥ ३९० ।। उचिओ जणोवयारो विसेसओ णवरि सयणवग्गम्मि । साहम्मियवग्गम्मि य एयं खलु परमवच्छल्लं ।। ३९१ ॥ अट्ठाहिया य महिमा सम्म अणुबंधसाहिगा केई । अण्ण उ तिण्णि दियहे णिओगशो चेव कायव्यो ॥३९२ ।। तत्तो विसेसपूयापुव्वं विहिणा पडिस्सरोमुयणं । भूयबलिदीणदाणं एत्थंपि ससत्तिओ किंपि ।। ३९३ ॥ तत्तो पडिदिणपूयाविहाणओ तह तहेह कायव्वं । विहिताणुट्ठाण खलु भवविरहफलं जहा होति ॥ ३९४ ॥ पइट्ठाविही सम्मत्तो ८ ॥ ॥अथ नवमपंचाशकम् ॥९॥ नमिऊण बद्धमाणं सम्म संखेचओ पवक्खामि । जिणजताएँ विहाणं सिद्धिफलं सुत्तणीईए ॥ ३९५ ॥ दंसणमिह मोक्खंगं परमं | एयस्स अट्टहायारो । णिस्संकादी भणितो पभावणतो जिणंदेहिं ।। ३९६ ॥ पवरा पभावणा इह असेसभावाम तीऍ सब्भावा । | जणजत्ताय तयंगं जं पवरं ता पयासोऽयं ।। ३९७ ॥ जत्ता महसवो खलु उद्दिस्स जिणे स कीरइ जो उ । सो जिणजत्ता भण्णइ मातीऍ विहाणं तु दाणाइ ।। ३९८ ॥ दाणं तवावहाणं सरीरसकार मो जहासत्ति । उचितं च गीतवाइय थुतिथोत्ता पेथणादी या| ॥ ३९५ ।। दाणं अणुकंपाए दीणाणाहाण सत्तिओ णेयं । तित्थंकरणातेणं साहूण य पत्तबुद्धीए ॥ ४०० ॥ एकासणाइ णियमा -CASS For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९. पश्चाशक तबोवहाणंपि एत्थ कायव्वं तत्तो भावविमुद्धी णियमा विहिसेवणा चेव ॥ ४०१॥ वत्थविलेवणमल्लादिएहि विविहो सरीरसकारो। नवम मूलम्. निकायव्वो जहसत्ति पवरी देविंदणाएण ॥ ४०२ ॥ उचियमिय ( है ) गीयवाइयमुचियाण वयाइएहिं जं रम्मं । जिणगुणविसयं पक्षाशकम् | सद्धम्मबुद्विजणगं अणुवहासं ॥ ४०३ ।। थुइथोत्ता पुण उचिया गंभीरपयत्यविरइया जे उ । संवेगवुड्डिजणगा समा य पाएण सम्बोसें ॥ २५ ॥ ॥४०४ ॥ पेच्छणगावि णडादी धम्मिपणाडयजुआ इहं उचिया । पत्थावो पुण णेओ इमेसिमारंभमादीओ ॥ ४०५ ॥ आरंभे चिय दाणं दीणादीण मणतुहिजणणत्थं । रण्णामाघायकारणमणहं गुरुणा समत्तीए ॥ ४०६ । विसयपवेसे रण्णो उदंसणं ओग्ग-IN हादिकहणा य । अणुजाणावण विहिणा तयणुण्णाए य संवासो।। ४०७ ।। एसा पत्रयणणीती एव वसंताण णिज्जरा विउला । इह लोयम्मिवि दोसा ण होति णियमा गणा होति ।। ४०८ ॥ दिट्ठो पक्यणगुरुणा राया अणुसासिओ य विहिणा उ । तं नस्थि Kजण्ण वियरइ कित्तियमिह आमघाउति ।। १०९।। एत्यमणुसासणविही भणिओ सामण्णगुणपसंसाए । गंभीराहरणेहि उत्तीहि यल भावसाराहिं ।। ४१० ।। सामण्णे मणुयत्ते धम्माओ णरीसरत्तणं णेयं । इय मुणिऊणं सुंदर ! जत्तो एयम्मि काययो ।। ४११ ।। इड्डीण मूलमेसो सब्यासिं जणमणोहराणंति । एसो य जाणवत्तं णेओ संसारजलहिम्मि ॥ ४१२ ॥ जायइ य सुहो एसो उचिय-18 स्थापायणेण सबस्स । जत्ताए वीयरागाण विसयसारत्तओ पवरो ॥ ४१३ ।। एताए सव्वसत्ता सुहिया खु अहेसि तंमि कालंमि । एण्हिपि आमघाएण कुणसुतं चेव एतेसिं ।। ४१४ ॥ तम्मि असंते राया दहव्वो सावगेहिवि कमेणं | कारेयब्बो य तहा दाणेणMवि आमघाउत्ति ॥ ४१५ ।। तेसिंपि घायगाणं दायव्वं सामपुधगं दाणं । तत्तियदिणाण उचियं कायव्वा देसणा य सुहाल ।। ४१६ ।। तित्थस्स वणवाओ एवं लोगम्मि बोहिलाभो य । केसिंचि होइ परमो अण्णसिं बीयलाभोत्ति ।। ४१७ ॥ जा चिय ॥२५ ।। For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit CE शक-8|गुणपडिवत्ती सव्वण्णुमयाम्म होइ पडिसुद्धा । स चिय जायति बीयं बोहीए तेणणाएणं ।। ४१८ ॥ इय सामस्थाभाव दाहाबाद मूलम् - वग्गहिं पुव्वपुरिसाणं । इय सामथजयाणं बहुमाणो होति कायचो ॥ ४१९ ॥ ते धण्णा सरिसा जे एयं एवमेव णिस्ससं । पुचि ॥ २६॥ करिसु किच्चं जिण जत्ताए विहाणेणं ।। ४२० ।। अम्हे उ तह अधण्णा धण्णा उण एत्तिएण जे तसिं । बहु मण्णामो चरियं सुहावहं | धम्मपुरिसाण ॥ ४२१ । इय बहुमाणा तेसिं गुणाणमणमोयणा णिओगणं । तत्तो तत्तुल्लं चिय होइ फलं आसयविससा ॥ ४२२ ॥ कयमेत्थ पसंगणं तवोवहाणादियावि णियसमए । अणुरूवं कायब्बा जिणाण कल्लाणदियहेसु ।। ४२३ ।। पंच महाकल्लाणा सव्वेसिं जिणाण हवंति णियमेण । भुवणच्छेरयभूया कल्लाणफला य जीवाणं ।। ४२४ ॥ गम्भे जम्मे य तहा णिक्खमणे चेव णाणणेवाणे । भुवणगुरूण जिणाणं कल्लाणा हॉति णायया ॥ ४२५ ।। युग्मम् । तेस य दिणेस धमा देविदाई करिति भत्तिणया । जिणजत्तादि. विहाणा कल्लाणं अप्पणो चेव ॥ ४२६ । इय ते दिणा पसत्था ता सेसेहिंपि तेस कायध्वं । जिणजत्तादि सहरिसं ते य इमे बद्ध माणस्स ।। ४२७ ।। आसाढसुद्धछट्ठी चेत्ते तह सुद्धतेरसी चेव । मग्गसिरकिण्हदसमी वइसाहे सुद्भदसमी य ।। ४२८ ॥ कत्तियकिण्हे ती चरिमा गम्भाइदिणा जहकम एते । इत्थत्तरजाएणं चउरो तह सातिणा चरमो॥ ४२९ ।। अहिगयतित्थविहाया भगवति णिदंसिया | इमे तस्स । सेसाणवि एवं चिय णियणियतित्थेसु विष्णेया ॥४३०॥ तित्थगरे बहुमाणो अब्भासो तह य जीयकप्पस्स । देविदादिअणुगिती गंभीरपरूवणा लोए । ४३१ ॥ वष्णो य पवयणस्सा इय जत्ताए जिणाण णियमेणं । मग्गाणुसारिभावो जायइ एत्तो चिय | विसुद्धो ।। ४३२ ॥ तत्तो सयलसमीहियसिद्धी णियमेण अविकलं जं सो। कारणमिमीए भणिओ जिणेहिं जियरागदोसेहिं ।। ४३३ ।। ॥२६॥ समग्गाणुसारिणा खलु तत्ताभिणिवेसओ सभा च । होइ समत्ता चेद्रा असभावि य णिरणुबंधात्त ।। ४३४ ।सो कम्मपारतता। For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवमं पञ्चाशक-12 बट्टइ तीए ण भावओ जम्हा । इय जना इय बीयं एवंभूयस्स भावस्स ॥ ४३५ ।। ता रहणिक्खमणादिवि एते उ दिणे पडुच्च51 मूलम् कायचं । जं एमो चिय विसओ पहाणमो ताएँ किरियाए ॥ ४३६॥ विसयप्पगरिसभावे किरियामेनपि बहफलं होइ । सकि-अपश्चाशकम् | रियावि हु ण तहा इयरम्मि अवीयरागिब ।। ४३७ ।। लण दुल्लहं ता मणुयत्तं तह य पवयण जइणं । उत्तमाणदंसणेसुं बहुमाणो होइ कायब्बो ।। ४३८ ।। एसा उत्तमजत्ता उत्तमसुयवणिया सदि बुहेहिं । सेसा य उत्तमा खलु उत्तमरिसीएँ कायया ॥ ४३९ ।। इयराऽतब्बहुमाणोऽवण्णा य इमीऍ णिउणबुद्धीए । एयं विचिंतियव्वं गुणदोसविहावणं परमं ।। ४४० ।। जेहामि विजमाणे उचिए अणुजेट्टपूयणमजुत्तं । लोगाहरणं च तहा पयडे भगवंतवयणम्मि ॥ ४४१ ।। लोगो गुरुतरगो खलु एवं सति भगवतोवि इट्टोत्ति । मिच्छत्तमो य एवं एसा आसायणा परमा ।। ४४२ ।। इय अण्णत्थवि सम्म गाउं गुरुलाघवं विसंसेण । इट्टे पयट्टियव्वं एसा खलु। र भगवतो आणा ।। ४४३ ।। जत्ताविहाणमेयं णाऊणं गुरुमुहाउ धीरेहिं । एवं चिय काय अविरहियं भत्तिमंतेहिं ।। ४४४ ॥ जत्ताविही सम्मत्तो ।। ९॥ ॥ अथ दशमं पंचाशकम् ॥ नमिऊण महावीरं भवहियद्वाएँ लेसओ किंपि । वोच्छं समणोवासगपडिमाणं सुत्तमम्गेणं ।। ४४५ ॥ समणोवासगपडिमा | | एकारस जिणवरोहिं पण्णत्ता । दसणपडिमादीया सुयकेवालणा जतो भणियं ॥ ४४६ ॥ दसणवयसामाइयपोसहपडिमाअवभसच्चित्ते । आरंभपेसउद्दिवज्जए समणभूए य ।। ४४७ ॥ दंसणपडिमा णेया सम्मत्तजुयस्म जा इहं चोंदी। कुग्गहकलंकरहिया मिच्छत्तखओ-1 ॥२॥ For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक- वसमभावा ॥ ४४८ ॥ मिच्छत्तं कुग्गहकारणंति खओवसममुवगए तम्मि। ण तओ कारणविगलत्तणेण सदि विसविगारो व्व।।४४९॥ दशम मूलम् होइ अणाभोगजुओ ण विवज्जयवं तु एस धम्मम्मि । अत्थिकादिगुणजुतो सुहाणुबंधी णिरतियारो ॥ ४५० ।। बोंदी य एत्थ | पश्चाशकम् ॥ २८ ॥ [४ पडिमा विसिगुणजीवलोयओ भणिया। ता एरिसगुणजोगा सुहो उ सो खावणत्यत्ति ॥ ४५१ ॥ एवं क्यमाईसुवि दट्टव्वमिणंMति णवरमेत्थ वया । घेप्पंतणुव्वया खलु थूलगपाणवहविरयादी ॥ ४५२ ।। सम्मत्तोबरि ते सेसकम्मुणो अवगए पुहुत्तम्मि । पलि याण होंति णियमा सुहायपरिणामरूवा उ ॥ ४५३ बंधादि असकिरिया संतेसु इमेसु पहवइ ण पायं । अणुकंपधम्मसवणादिया उ पहवति विसेसेण ।। ४५४ ।। सावज्जजोगपरिवज्जणादिरूवं तु होइ विष्णेयं । सापाइयमिनरियं गिहिणो परमं गुणहाणं ॥४५५।। ले सामाइयंमि उ कए समणो इव सावओ जतो भणितो । बहुसो विहाणमस्स य तम्हा एयं जहुत्तगुणं ।। ४५६ ॥ मणदुप्पणिहाणादि Aण हॉति एयम्मि भावओ संते । सतिभावावट्ठियकारिया य सामण्णवीयंति ॥ ४५७ ॥ पोसेइ कुसलधम्मे जं ताहारादिचागणुट्ठाणं । | इह पोसहोत्ति भण्णति विहिणा जिणभासिएणेव ।। ४५८ ॥ आहारपोसहो खलु सरीरसकारपोसहे चेव । बंभव वारेसु य एयगया | धम्मबुड्डित्ति ॥ ४५९ ॥ अप्पडिदुप्पडिलेहियसेज्जासंथारयाइ वजेति । सम्मं च अणणुपालणमाहारादीसु एयम्मि ।। ४६० ॥ सम्ममणुब्बयगुणत्रयसिक्खाचयवं थिरा य णाणी य । अहमिचउद्दसासु पडिमं ठाएगराईयं ।।४६१।। असिणाणवियडभोई मउलियडो दिवसबंभयारी य । रत्ति परिमाणकडो पडिमावज्जेसु दियहेसु ॥ ४६२ ।। झायइ पडिमाएँ ठिओ तिलोगपुज्जो जिणे जियकसाए । राणियदोसपच्चणीयं अण्णं वा पंच जा मासा ॥ ४६३ ॥ पुब्बोइयगुणजुत्तो विसेसओ विजियपोहणिज्जो य । बज्जइ अबंभमेगतओ उ राइंपि थिरचित्तो॥ ४६४ ॥ सिंगारकहाविरओ इत्थी' समं रहम्मि णो ठाइ । चयइ य अतिप्पसंगं तहा बिहूसं च उक्कोस ॥४६५।। ५ Chese For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशकमूलम्. ॥ २९॥ एवं जा छम्मासा एसोहिगतो इहरहा दिटुं । जावज्जीवपि इमं वज्जइ एयम्मि लोगम्मि।।४६६॥ सच्चित्तं आहारं वज्जइ असणादियं 31 १० निरवसेस । असणे चाउलउंविगचणगादी सव्वहा सम्मं ॥ ४६७ ।। पाणे आउक्कायं सचित्तरससंजुअं तहण्णं पि । पंचुंबरिककडिगाइयं च तह खाइमे सव्वं ॥ ४६८ ॥ दंतवणं तंबोल हरेडगादी य साइमे सेसं । सेसपयसमाउत्तो जा मासा सत्त विहिपुव्वं ॥४६९॥ रत्तो जामामा मनविपिडिमा पं० | वज्जइ सयमारंभ सावज्ज कारवेइ पसेहि । पुधप्पओगओ च्चिय वित्तिणिमित्तं सिढिलभावो ।। ४७० ।। निग्घिणतेगंतणं एवंवि हु होइ चेव परिचत्ता । एद्दहमेत्तोऽवि इमो वज्जितो हियकरो उ ॥ ४७१ ॥ भव्यस्साणाचीरियसंफासणभावतो णिओगेणं । पुबोइयगुणजुत्तो ता वज्जति अट्ठ जा मासा ।। ४७२ पेसेहिऽवि आरंभ सावज्ज कारवेइ णो गुरुयं । अत्थी संतुट्ठो वा एसो पुण होति विण्णेओ ॥४७३।। निक्खित्तभरा पायं पुत्तादिसु अहव सेसपरिवारे । थेवममत्तो य तहा सव्वत्थवि परिणओ नवरं ॥ ४७४ ।। लोगववहारविरओ बहुसो संवेगभावियमई य । पुरोदियगुणजुत्तो णव मासा जाब विहिणा उ॥ ४७५ ।। उद्दिट्टकडं भत्तंऽपि वज्जती किमय सेसमारंभं? । सो होइ उ छुरमुंडो सिहलि वा धारती कोई ।। ४७६ ॥ जं णिहियमत्थजायं पुट्ठो णियएहिं णवर सो तत्थ । जइ जाणइ तो साहे अह णवि तो बेइ ण वि जाणे ॥४७७॥ जतिपज्जुवासणपरा सुहुमपयत्थेसु णिच्चतल्लिच्छो । पुब्बोदियगुणजुत्तो दस मासा कालमासे (णे) णं ।। ४७८ ॥ खुरमुंडो लोएण व रयहरणं उग्गहं व घेण । समणभूओ विहरइ धम्म काएण फासंतो ॥ ४७९ ।। ममकारे वोच्छिण्णे वच्चति सण्णायपल्लि दहुँ जे । तत्थ वि जहेव साहू गेण्हति फासुं तु आहारं ॥४८०॥ पुवाउत्तं कप्पति पच्छाउत्तं तु ण खलु एयस्स । ओदणभिलिंगसूवादि सव्वमाहारजायं तु ॥ ४८१ ।। एवं उक्कोसेणं एकारस मास जाव विहरेह । एगाहादियरणं एवं सव्वत्थ पाएणं ।। ४८२ ॥ भावेऊणचाणं उवेइ पञ्चज्जपेव सो पच्छा । अहवा गिहत्थभावं CASSES For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -ब-% पश्चाशक- उचियत्तं अप्पणो गाउं ॥ ४८३ ॥ गहणं पवज्जाए जओ अजोगाण णियमतोऽणत्यो । तो तुलिऊणऽप्पाणं धीरा एयं पवज्जंति & १० मूलम् ॥ ४८४ ॥ तुलणा इमेण विहिणा एतीए हंदि नियमतो णे (मविणे ) या । णो देसविरइकंडयपत्तीएं विणा जमेस त्ति ॥ ४८५ ॥ उवासग तीए य अविगलाए बज्झा चेट्ठा जहोदिया पायं । होति णवरं विसेसा कज्जति लक्खिज्जए ण तहा ॥ ४८६ ॥ भवाणिब्वेयाउ जतो लिपडिमा पं० मोक्खे रागाउ णाणपुवाओ । सुद्धासयस्स एसा ओहेणऽवि वणिया समए ॥ ४८७ ॥ तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण का होइ पावमणो । सयणे य जणे य समो समो य माणावमाणेसु ॥ ४८८ ।। ता कम्मखओवसमा जो एयगारमंतरेणावि । जायति जहोइयगुणो तस्सऽवि एसा तहा णेया ॥ ४८९॥ एत्तो चिय पुच्छादिसु हंदि विसुद्धस्स सति पयत्तेणं । दायव्वा गीतेणं भणियमिणं * सव्वदंसीहिं ॥ ४९० ॥ तह तम्मि तम्मि जोए सुत्तुवओगपरिसुद्धभावेण । दरदिण्णाएऽवि जओ पडिसेहो वण्णिओ एत्थ ॥ ४९१ ॥ मापव्वाविओसिच्चादि मुंडावउमिय (पव्वाविओ सियत्ति य मुंडावेउमाइ ) जंभणियं । सव्वं च इमं सम्मं तप्परिणामे हवति पाय । ४९२ ।। जुत्तो पुण एस कमो ओहेणं संपयं विससेणं । जम्हा असुहो कालो दुरणुचरो संजमो एत्थ ॥ ४९३ ॥ तंतंतरेसुवि है इमो आसमभेओ पसिद्धओ चत्र । ता इय इह जइयव्वं भवविरहं इच्छमाणेहिं ॥ ४९४ ॥ उवासगपडिमाविही १० ॥ अथैकादशं पञ्चाशकम् ॥११॥ - नमिऊण बद्धमाणं मोक्खफलं परममंगलं सम्मं । वोच्छामि साहुधम्म समासओ भावसारं तु ॥ ४९५ ॥ चारित्तजुओ साहू तं| दुविहं देससवभेएण । देसचरित्ते ण तओ इयरम्मि उ पंचहा तं च ॥ ४९६ ॥ सामाइयत्थ पढमो छेओवठाणं भवे बीयं । परिहार % % %25 For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir &ा ११ विसुद्धीयं सुहुमं तह संपरायं च ॥ ४९७ ॥ ततो य अहक्खायं खायं सबम्मि जीवलोगम्मि । जं चरिऊण सुविहिया वच्चंति अणु-18 पञ्चाशकम्. पश्चाशक लत्तरं मोकावं ।। ४९८ ।। युग्मम् । समभावो सामइयं तणकंचणसत्तुमित्तविसओत्ति । णिरभिस्संगं चितं उचियपवित्तिप्पहाणं च ॥ ४९९ ॥ सति एयम्मि उणियमा णाणं तह दंसणं च विष्णेयं । एएहिं विणा एयं ण जातु केसिंचि सद्धेयं ।। ५०० ॥ गुरुपारतं॥ ३१ ॥ तणाणं सदहणं एयसंगयं चेव । एत्तो उ चरित्तीणं मासतुसादीणमु (णि) द्दिट्ट ।।५०१|| धम्मो पुण एयस्सिह संमाणुट्टाणपालणारूवो। विहिपडिसेहजुयं त आणासारं मुणेयव्वं ।।५०२।। अग्गीयस्स इमं कह? गुरुकुलवासाओ, कह तओ गीओ? । गीयाणाकरणाओ, कहमेयं, भणाणतो चेव ।। ५०३ ॥ चारित्तो चिय दढं मग्गणुसारी इमो हवइ पायं । एत्तो हिते पवनति तह णाणातो सदंधो व्व ॥५०४॥ IM अंधोऽणंधो व्ब सदा तस्साणाए तहेब लंघेइ । भीमं पि हु कंतारं भवतारं इय अगीतो ॥ ५.५ ॥ आणारुइणो चरणं आणाए च्चिय इमं ति वयणाओ। एत्तो णाभोगम्मि पि पण्णवणिज्जो इमो होइ ।। ५०६ ।। एसा य पग आणा पयडा जं गुरुकुलं ण मोत्तव्वं । आचारपढमसुत्ते एत्तो च्चिय दंसियं एयं ।। ५०७॥ एयम्मि परिच्चत्ते आणा खलु भगवतो परिच्चत्ता । तीए य परिच्चागे दोण्ह वि लोगाण चाउ ति ।। ५०८ ॥ ता न चरणपरिणामे एयं असमंजसं इहं होति । आसण्णसिद्धियाणं जीवाण तहा य भणियमिणं ॥ ५०९॥ णाणस्स होइ भागी थिरयरओ दंसणे चरिते य । धण्णा आवकहाए गुरुकुलवासं न मुंचति ।। ५१० ॥ | तत्थ पुण संठिताणं आणाआराहणा ससत्तीए । अविगलमेयं जायति बज्झाभावेऽवि भावणं ॥५११।। कुलबहुणायादीया एत्तो चिय एत्थ दसिया बहुगा । एत्थेव संठियाणं खंतादीणपि सिद्धि ति ॥ ५१२ ॥ खंती य मद्दवज्जव मुत्ति तव संजमे य बोधव्वे । सच्चंट 18॥ ३१ ॥ सोयं आकिंचणं च बंभं च जतिधम्मो ॥५१३ ।। गुरुकुलवासच्चाए णेयाणं हंदि सुपरिसुद्धि त्ति । सम्मणिरूवियव्वं एवं सति | 45454444 For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ पञ्चाशकम्. पश्चाशक- णिउणबुद्धीए ॥५१४॥ खतादभावउ च्चिय णियमेणं तस्स होति चाउत्रि। बंभ ण गुत्तिविगमा सेसाणि वि एव जोइज्जा ॥५१५॥ मूलम्. गुरुवेयावच्चणं सदणुट्ठाणसहकारिभावाओ । विउलं फलमिब्भस्स व विसोवगेणावि ववहारे ॥ ५१६ ॥ इहरा सदंतराया दोसोऽवि॥ ३२॥ हिणा य विविहजोगेसु । हंदि पयद॒तस्सा तदण्णदिक्खावसाणेसु ॥ ५१७॥ गुरुगुणरहिओ उ गुरू न गुरु विहिच्चायमो उ तस्सिट्ठो । अण्णस्थ संकमेणं ण उ एगागित्तणणं ति ॥ ५१८॥ जंपि य ण वा लभेज्जा एकोविच्चादि भासिय सुत्ते । एवं विसेसविसयं णायव्वं बुद्धिमंतेहिं ।। ५१६ ॥ पावं अणायरंतो तत्थुत्तं ण य इमं अगीयस्स । अण्णाणी किं काही च्चादि| सुत्ताओ सिद्धमिणं ॥ ५२० ।। जाओ य अजाओ य दुविहो कप्पो उ होइ णायचो । एकेकोऽत्रिय दुविहो समत्तकप्पो य असमत्तो ॥ ५२१॥ गीयत्थो जायकप्पो अग्गीओ खलु भवे अजाओ उ । पणगं समत्तकप्पो तदणगो होइ असमत्तो ॥ ५२२ ॥ उउपद्धे वासासु उ सत्त समत्तो तदूणगो इयरो । असमत्ताजायाणं आहेण ण किंचि आहव्वं ॥ ५२३ ॥ एत्तो पडिसेहाओ सामण्णणिसहमोअवगंतव्यो । एएसि अतोऽवि इमं विसेसविसयं मुणेयव्वं ॥ ५२४ ॥ एगागियस्स दोसा इत्थी साणे तहेव पडिणीए । भिक्खविसोहिमहव्वय तम्हा सबितिज्जाए गमणं ॥५२५ ॥ गीयत्थो य विहारो बीओ गीयत्थमीसओ भणिओ । एत्तो तइय विहारो णाणु ण्णाओ जिणवरेहिं ॥ ५२६ ॥ ता गीयम्मि इमं खलु तदण्णलाभंतरायविसयं तु (ति)। सुत्तं अवगंतव्वं णिउणेहिं तंतजुत्तीए IN|| ५२७ ॥ जं जह सुत्ते भणिय तहेव जइ तं वियालणा णस्थि । किं कालियाणुओगो दिट्ठो दिहिप्पहाणेहिं ।। ५२८॥ गुरुगुणर-1 हिओऽवि इहं दहब्बो मूलगुणविउत्तो जो ।ण उ गुणमेत्तविहीणोत्ति चंडरुद्दो उदाहरणं ॥५२९॥ जे इह होति सुधारेसा कयण्णुया लाण खलु तेवमन्नति । कल्लाणभायणत्तेण गुरुजणं उभयलागहियं ।।५३० ॥ जे उ तह विवज्जत्था सम्मं गुरुलाघवं अयाणता || ॐॐॐॐॐ ॥ ३२ ॥ For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक मूलम् - ॥ ३३॥ सग्गाहा किरियरया पवयणखिसावहा खुद्दा ॥ ५३१ ॥ पायं अहिण्णगंठीतमा उ तह दुक्करपि कुवंता। बज्झा व ण ते साहू धंखा-13 हरणेण विण्णेया ॥ ५३२ ॥ तेसिं बहुमाणेणं उम्मग्गणुमोयणा अणिटुफला । तम्हा तित्थगराणाडिएसु जुत्तोऽत्य बहुमाणो ॥५३३॥ ते पुण समिया गुत्ता पियदढधम्मा जिइंदियकसाया। गंभीरा धीमंता पण्णवणिज्जा महासत्ता ।। ५३४ ॥ उस्सग्गववायाणं विया-17 पश्चाशकम्. णगा सेवगा जहासत्तिं । भावविसुद्धिसमेता आणारुतिणो य सम्मेति ॥५३५॥ सव्वत्थ अपडिबदा मेत्तादिगुणण्णिया य णियमेण । MI सत्ताइसु होति दढं इय आगयमत्त (आययमग्ग) तल्लिच्छा ।। ५३६ ॥ एवंविहा उ या सव्वणयमतेण समयणीतीए । भावण भाविएहिं सइ चरणगुणट्ठिया साहू ॥५३७॥ णाणम्मि दंसणाम्म य सति णियमा चरणमेत्थ समयाम्म | परिसुद्धं विण्णेयं णयमयभया जा भणियं ॥ ५३८ ॥ णिच्छयणयस्स चरणायविधाए णाणदंसणवहां वि । ववहारस्स उ चरणे हयम्मि भयणा उ सेसाणंद |॥ ५३९ ।। जो जहवायं ण कुणति मिच्छदिछी तओ हु को अण्णो? 1 बड़ेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो ।। ५४०॥ एवं च ४ा अहिनिवसा चरणविधाए ण णाणमादीया । नप्पडिसिद्धासवणमोहासद्दहणभावेहिं ।। ५४१ ।। अणभिनिवेसाओ पुण विवज्जया होति । तविधाओऽवि । तकज्जुवलंभाओ पच्छातावाइभावेण ॥ ५४२ ॥ तम्हा जहोइयगुणो आलयसुद्धाइलिंगपरिसुद्धो । पंकयणातादिजुओ विण्णेओ भावसाहुत्ति ॥ ५४३ ॥ एसो पुण संविग्गो संवेग सेसयाण जणयंतो। कुग्गहविरहेण लहुं पावइ मोक्खं सयासोक्खं ४॥ ५४४ ॥ साहुधम्मविही संमत्तो ॥ ११ ॥ अथ द्वादशपञ्चाशकम् ॥ १२॥ ल॥३३॥ नमिऊण महावीरं सामायारी जतीण वोच्छामि । संखेवो महत्थं दसविहमिच्छादिभेदेण ॥ ५४५ ॥ इच्छामिच्छातहकारो For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit A%A9- 4सल % पश्चाशक-ट आवस्सिया य णिसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा छंदणा य णिमंतणा ॥ ५४६ ॥ उपसंपया य काले सामायारी भवे दसविहा है। द्वादशम् मूलम्- Pउ । एएसिं तु पयाणं पत्तेयपरूवणा एसा ।।५४७॥ अब्भत्थणाइ करणे कारवणेणं तु दोण्हऽवी उचिए । इच्छक्कारो कत्थइ गुरुआणा|| चेव य ठिति त्ति ॥५४८।। सइ सामत्थे एसो णो कायव्यो विणाऽहियं कज्ज । अब्भत्थिएणवि विहा एवं खु जइत्तणं सुद्धं ॥५४९॥ कारणदीवणयाएऽवि पडिवत्तीइऽवि य एस कायव्यो। राइणियं वज्जेता तगो ( गउ) चिए तम्मिवि तहेव ॥ ५५ ॥ एवं DIआणाराहणजोगाओ आभिओगियखोति । उच्चागोयणिबंधो सासणवणो य लोगम्मि ।। ५५१ ।। आणाबलाभिओगो णिग्ग-10 थाणं ण कप्पती काउं । इच्छा पउंजियव्वा सेहे तह चेव राइणिए ।। ५५२ ॥ जोग्गेऽवि अणाभोगा खलियम्मि खरंटणावि उचियत्ति । इसिं पण्णवणिज्जे गाढाजोगे उ पडिसेहो ।। ५५३ ॥ संजमजोगे अन्भुट्टियस्स जे किंचि वितहमायरियं । मिच्छा एतंति | वियाणिऊण तं दुकडं देयं ।। ५५४ ॥ सुद्धेणं भावेणं अपुणकरणसंगतेण तिब्वेणं । एवं तकम्मख ओ एसो से अत्थणाणांमि ॥५५५।। &ामित्ति मिउमद्दवत्ते छत्ति उ दोसाण छादणे होसि । मेत्ति य मेराऍ ठिओ दत्ति दगंछामि अप्पाणं ।। ५५६ ॥ कत्ति कडं मेIC पावं डत्ति य डेवेमि तं उवसमणं । एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरत्थो समासेणं ॥ ५५७ ।। कप्पाकप्पे परिणिहियस्स ठाणेसु पंचसु ठियस्स । संयमतवड्वगस्स उ अविगप्पेणं तहकारो ॥ ५५८ ॥ वायणपडिसुणणाए उवएसे सुत्तअट्ठकहणाए । अवितहमेयंति तहा अविगप्पेणं तहकारो ।। ५५९ ॥ इयरम्मि विगप्पेणं जं जुत्तिखमं तहिण सेसम्मि । संविग्गपक्खिए वा गीए सव्वत्थ इयरेणं ॥५६०॥ संविग्गोऽणुवएसं ण देइ दुम्भासियं कडविवागं । जाणतो तम्मि तहा अतहक्कारो उ मिच्छत्तं ॥५६१॥ कज्जेणं गच्छतस्स गुरुणिओ-121 एण सुत्तणीईए । आवस्सियत्ति णेया सुद्धा अण्णस्थजोगाओ ।। ५६२ ॥ कपि णाणदंसणचरित्तजोगाण साहगं जं तु । जइणो %% % For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit पश्चाशकमूलम्. ॥ ३५ ॥ सेसमकज्ज ण तत्थ आवास्सिया सुद्धा ।। ५६३ ।। वइमेत्तं णिचिसयं दोसाय मुस त्ति एव विष्णेयं । कुसलेहिं वयणाओ वइरेगेणं द्वादशम् |जओ भणियं ॥५६४॥ आवस्सिया उ आवस्सिएहिं सब्वेहिं जुत्तजोगस्स । एयस्सेसो उचिओ इयरस्म ण चेव णस्थित्ति ॥५६५॥ एवोग्गहप्पवेसे णिसीहिया तह णिसिद्धजोगस्त । एयस्सेसो उचिओ इयरस्स ण चव नस्थिति ॥ ५६६ ॥ गुरुदेवोग्गहभूमिएँ जत्तओ चेव हॉति परिभोगो । इट्ठफलसाहगो सइ अणिट्ठफलसाहगो इहरा ।।५६७।। एतो ओसरणादिसु दंसणमत्ते गयादिओसरणं । सुच्चइ चेइयसिहराइएसु सुस्सावगाणंपि ॥ ५६८ ॥ जो होइ निसिद्धप्पा णिसीहिया तस्स भावतो होइ । आणसिद्धस्स उ एसाM वइमेत्तं चेव दट्ठव्वा ।। ५६९ ।। आउच्छणा उ कज्जे गुरुणो गुरुमम्मयस्स वा णियमा । एवं खु तयं सेयं जायति सति णिज्जराहेउ | Pin५७०।। सो विहिनाया तस्साहणमि तज्जाणणासुणायंति । सन्नाणा पडिवत्ती सुहभावो मंगलो तत्थ।।५७१।। इट्ठपसिद्धणुबंधो धण्णो | पावक्खयपुण्णबंधाओ। सुहगइगुरुलाभाओ एवं चिय सम्वसिद्धित्ति ॥५७२।। इहरा विवज्जतो खल इमस्स सव्वस्स होइ जं तेणं । ५ & बहुवेलाइकमेणं सब्वत्थापुच्छणा भणिया ।। ५७३ ॥ पडिपुच्छणा उ कज्जे पुन्वणिउत्तस्स करणकालम्मि । कज्जंतरादिहेउं णिहिट्ठा समयकेऊाहं ॥ ५७४ ॥ कज्जंतरे ण कज्जं तेणं कालंतरे व कज्जंति । अण्णो वा तं काहिति कयं व एमाइया हेऊ ॥ ५७५ ॥ | अहवा वि पवित्तस्सा तिवारखलणाएँ विहिपओगे वि । पडिपुच्छणत्ति नेया तहिं गमणं सउणवुड्डीए ॥ ५७६ ॥ पुव्वणिसिद्धे अण्ण पडिपुच्छा किल उवहिए कज्जे । एवंपि नत्थि दोसो उस्सग्गाईहिं धम्मठिई ॥ ५७७ ॥ पुब्बगहिएण छंदण गुरुआणाए जहारिहं ॥३५॥ होति । असणादिणा उ एसा णेयेह विसेसविसउत्ति ॥ ५७८ ।। जो अत्तलदिओ खलु विसिट्ठखमगो व पारणाइत्तो। इहरा मंडाल KAHAKRA For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 - % पञ्चाशक- भागो जतीण तह एगभत्तं च ।। ५७९ ॥ नाणादुवग्गहे सति अहिंगे गहणं इमस्सऽणुण्णायं । दोण्हवि इट्ठफलं तं अतिगंभीराण द्वादशम् धीराण ।। ५८० ॥ गहणेवि णिज्जरा खलु अग्गहणेवि य दुहावि बंधो य । भावो एत्थ णिमित्तं आणासुद्धो असुद्धो य ।।५८१॥ पश्चाशकम्. सज्झायादुव्वाओ गुरुकिच्चे सेसगे असंतम्मि । तं पुच्छिऊण कज्जे सेसाण णिमन्तणं कुज्जा ॥ ५८२ ॥ दुलहं खलु मणुयत्तं जिणवयणं वीरियं च धम्मम्मि । एयं लबूण सया अपमाओ होइ कायव्वो ॥ ५८३ ॥ दुग्गतरयणायररयणगहणतुल्लं जईण किच्चं |ति । आयतिफलमध्धुवसाहणं च णिउणं मुणेयव्वं ॥ ५८४ ॥ इयरसिं परिक्खि [ अक्खि ] ते गुरुपुच्छाए णिओगकरणंति । Bएवमिणं परिसुद्धं वेयावच्चे तु अकएवि ।। ५८५ ॥ उवसंपया य तिविहा णाणे तह दंसणे चरित्ते य । दंसणणाणे तिविहा दुविहा जय चरित्तमट्टाए ॥ ५८६ ॥ वत्तणसंधणगहणे सुत्तत्थोभयगया उ एसत्ति । बेयावच्चे खमणे काले पुण आवकहियादी ॥ ५८७ ॥ संदिट्ठो संदिस्स चेव [ संपज्जइ उ एमाई ] संपत्तीओ एमादि । चउभंगो एत्थं पुण पढमो भंगो हवइ सुद्धो ॥ ५८८ ॥ अथिरस्स पुवगहियस्स वत्तणा जं इहं थिरीकरणं । तस्सेव पएसंतरणहस्सणुबंधणा घडणा ।। ५८९ ।। गहणं तप्पढमतया सुत्ता-18 दिसु णाणदंसणे चरणे । वेयावच्चे खमणे सीदणदोसादिणाऽणत्थ ।। ५९० ।। इत्तरियादिविभासा वेयावच्चम्मि तह य खवगेवि । अविगिढविगिट्ठमि य गणिणा गच्छस्स पुच्छाए ।। ५९१ ॥ एवं समायारी कहिया दसहा समासओ एसा । संयमतवड्डगाणं णिग्गका थाणं महरिसाणं ॥ ५९२ ॥ एवं सामायारी जुजंता चरणकरणमाउत्ता । साहू खवेंति कम्मं अगभवसंचियमणतं ॥ ५९३ ॥ जे पुण एयविउत्ता सग्गहजुत्ता जणंमि विहरंति । तेसिं तमणुट्ठाणं णो भवविरह पसाहेई ।। ५९४ ॥ सामायारी समत्ता १२ ।। % For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पञ्चाशक मूलम्. ॥ ३७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ त्रयोदशं पिण्डविशुद्धिपंचाशकम् ॥ १३ ॥ मऊ महावीरं पिंडविहाणं समासओ वोच्छं । समणाणं पाउग्गं गुरूवएसाणुसारेणं ।। ५९५ ।। सुद्धो पिंडो विडिओ समणाणं संजमायहेउत्ति । सो पुण इह विष्णेओ उग्गमदोसादिरहितो जो ॥। ५९६ ।। सोलस उग्गमदोसा सोलस उप्पायणाऍ दोसा उ । दस एसणाई दोसा बायालीसं इय हवंति ।। ५९७ ॥ तत्थुग्गमो पसूई पभवो एमादि होंति एगठ्ठा । सो पिंडस्साहिगओ इह दोसा | तस्सिमे होंति ।। ५९८ ।। आहाकम्मुद्देसिय पूतीकम्मे य मीसजाए य । ठवणा पाहुडियाए (या) पाओयर की अ- पामिच्चे ।। ५९९ ।। परियट्टिए अभिहडे उम्भिण्णे मालोहडे इह य । अच्छेज्जे अणिस अज्झोयरए य सोलसमे ।। ६०० ।। सच्चित्तं जमचित्तं साहूणहाऍ कीरए जं च । अच्चित्तमेव पञ्चति आहाकम्मं तयं भणियं । । ६०१ ।। उद्देसिय साहुमाई ओमच्चए भिक्खवियरणं जं च । उच्वरीयं मीसेउं तविउं उद्देसियं तं तु ||६०२ || कम्मावयवसमेयं संभाविज्जति जयं तु तं पूयं । पढमं चिय गिहिसंजयमीसोवक्खडाइ मीसं तु ||६०३॥ साहोहासियखीराइठावणं ठवण साहुनडाए । सुहुमेयर मुस्सकणमवसकणमो य पाहुडिया ।। ६०४ ।। णीयदुवारत्ताए ( रन्धयारे ) गवक्खकरणाह पाउकरणं तु । दव्वाइएहिं किणणं साहूणट्ठाऍ कीयं तु ।। ६०५ ।। पामिचं जं साहूणट्ठा उच्छिदिउं दियावेह । पलडिउंच गोरवमाई परियट्टियं भणियं ।। ६०६ ।। सग्गामपरग्गामा जमाणिउं आहडं तु तं होइ । छगणाइणोवलित्तं उभिदिय जं तमुब्भणं ।। ६०७ || मालोहडं तु भणियं जं मालादीहि देति घेणं । अच्छेज्जं चाछिंदिय जं सामी भिच्चमादीणं ॥ ६०८ ।। | अणिसिद्धं सामण्णं गोडिगभत्तादि ददउ एगस्स । सट्टा मूलद्दहणे अज्योयर होइ पक्खेवो ।। ६०९ ।। कम्मुद्देसियचरमतिय यं For Private and Personal Use Only पिण्ड विशुद्धि पंचाशकं. ॥ ३७ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक मूलम् A5% ॥ ३८॥ मीस चरमपाहुडिया । अज्झोयर अविसोही तिसोहिकाडी भवे सेसा ॥ ६१० ॥ उप्पायण संपायण णिवत्तणमो य होंति एगट्ठा । पिण्ड आहारस्सिह पगया तीए दोसा इमे होंति ।। ६११ ॥ धाती दृति णिमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभ | विशुद्धि य हवंति दस एते ॥६१२।। पुचि पच्छा संथव विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य । उप्पायणयाएँ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥६१३।। | पंचाशकं. घाइत्तणं करेति पिंडट्ठाए तहेव दृतित्तं । तीयादिणिमित्तं वा कहेइ जच्चाइ वाजीवे ॥ ६१४ ।। जो जस्स होइ भत्तो वणेइ तं तप्पसंसणेणेव । आहारट्टा कुणति व मूढो सुहुमेयरतिगिच्छं ।। ६१५ ॥ कोहफलसंभावणपडुपण्णो होइ कोहपिंडो उ । गिहिणो कुणदहिमाण |मायाए दवावए तह य ॥ ६१६ ॥ अतिलोभा परियडती आहारट्ठाएँ संथवं दुविहं । कुणइ पउंजइ विज्ज मंतं चुण्णं च जोगं च ।। ६१७ । अनमिह कोउगाइ व पिंडत्थं कुणइ मूलकम्मं तु । साहुसमुस्था एते भणिया उप्पायणादोसा ॥ ६१८ ॥ एसण गवेसणण्णेसणा य गहणं च होंति एगहा । आहारस्सिह पगया तीइ य दोसा इमे होंति ॥ ६१९ ॥ संकिय मक्खिय णिक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एमणदोसा दस हवंति ॥ ६२० ॥ कम्मादि संकति तय मक्खियमुदगादिणा उ जं जुत्तं । णिक्खित्तं सजियादो (दिइ ) पिहियं तु फलादिणा ठइयं ।। ६२१ ॥ मत्तगगयं अजोग्गं पुढवादिसु छोटु देइ साहरियं । दायग बालादीया अजोग्ग बीयादिउम्मीसं ।। ६२२ ।। अपरिणयं दत्वं चिय भावो वा दोहदाण एगस्स । लित्तं वसादिणा छड्डियं तु परिसाडणावंतं ॥ ६२३ ॥ एयदोसविसुद्धो जतीण पिंडो जिणेहिऽणुण्णाओ । सेसकिरियाठियाणं एसो पुण तत्तओणेओ॥६२४ ॥ ४॥ ३८॥ व संपत्ते इच्चाइस मुत्तेसु णिदंसियं इमं पायं । जतिणो य एस पिंडो ण य अन्नह हंदि एयं तु ।। ६२५ ।। दोसपरिणाणं पि हु एत्थं है। %% A CAT 5ॐ For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 उवओगसुद्धिमाईहिं । जायति तिविहणिमित्तं तत्थ तिहा वण्णियं जेण ॥ ६२६ ॥ भिक्खासदो चेवं अणियतलाभविसउत्ति एमादी। पश्चाशका सव्वं चिय उववनं किरियावंतमि उ जतिम्मि ।। ६२७ ।। अण्णे भणंति समणादत्थं उद्देसियादिसंचाए । भिक्खाए अणडणं चिय मूलम्. पिण्ड विसेसओ सिट्ठगेहेसु ।। ६२८॥ धम्मट्ठो आरंभो सिट्ठगिहत्थाण जमिह सम्बोवि । सिद्धोत्ति सेसभोयणवयणाओ तंतणीतीए ॥६२९॥ विशुद्धि पंचाशकं. ॥ ३९॥18 तम्हा विसेसओ चिय अकयातिगुणा जतीण भिक्खत्ति । एयमिह जुत्तजुत्तं संभवभावेण ण तु अन्नं ।। ६३० ॥ भण्णति विभिण्ण | विसयं देयं अहिगिच्च एत्थ विष्णेओ । उद्देसिगादिचाओ ण सोवि आरंभविसओ उ ।। ६.१ ॥ संभवइ य एसोवि हु केसिंची | सूयगादिभावेवि । अविसेसुवलंभाओ तत्थवि तह लाभसिद्धीओ ।। ६३२ ॥ एवंविहेसु पायं धम्महा णेव होइ आरंभो । गिहिसुन |परिणाममेत्तं संतपि य व दृट्ठति ।। ६३३ ।। तहकिरियाभावाओ सद्धामेत्ताओ कुसलजोगाओ । असुहकिरियादिरहियं तं हंदुचितं तदण्णं वा ।। ६३४ ॥ न खलु परिणाममेत्तं पदाणकाले असक्कियारहियं । गिहिणो तणयं तु जई दूसह आणाए पडिबद्धं ।। ६३५ ।। | सिट्ठावि य केइ इह बिसेसओ धम्मसत्थकुसलमती । इय न कुणंतिवि अणडणमेवं भिक्खाऐं वतिमेत् ॥ ६३६ ।। दुक्करय अह एयं जइधम्मो दुक्करा चिय पसिद्धं । किं पुण एस पयत्ती मोक्खफलत्तेण एयस्स ॥ ६३७ ॥ भोगंमि कम्मवावारदारतोवित्थ दोसपडिसहो । णेओ आणाजोएण कम्मुणो चित्तयाए य ।। ६३८ ॥ इहरा ण हिंसगस्सवि दोसो पिसियादिभोत्तुकम्माओ। जं तस्सिद्धिपसंगो एयं | लोगागमविरुद्धं ।। ६३९ ।। ता तहसंकप्पो च्चिय एत्थं दुट्ठोत्ति इच्छियव्वमिणं । तदभावपरिणाणं उवओगादीहिं उ जतीण ॥ ६४० ॥ गिहिसाहूभयपहवा उग्गमउप्पायणेसणा दोसा । एए तु मंडलीए णेया संजोयणाईया ।। ६४१॥ संयोजणा पमाणे इंगाले ॥ ३९ ॥ धूम कारणे चेव । उवगरण भत्तपाणे सबाहिरभंतरा पढमा ॥ ६४२ ॥ बत्तीस कवल माणं रागदोसेहिं धूमईगालं । वेयावच्चादीया | For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक ॥४०॥ PRECARE कारणमविहिंमि अइयारो ॥ ६४३ ॥ एयं णाऊणं जो सव्वं चिय सुत्तमाणतो कुणति | काउं संजमकायं सो भवविरहं लहुं लहतिलाशीलाग ॥ ६५४ ॥ पिंडविधी समत्ता॥ कापंचाशकं. ॥अथ चतुर्दशं शीलांग पञ्चाशकं ॥ १४ ॥ नमिऊण वद्धमाणं सीलंगाई समासओ वोच्छ । समणाण सुविहियाणं गुरूवएसाणुसारेणं ॥ ६४५ ॥ सीलंगाण सहस्सा अट्टारस एत्थ होंति णियमेणं । भावेणं समणाणं अखंडचारित्तजुत्ताणं ॥ ६४६ ।। जोए करणे सण्णा इंदियभूमादिसमणधम्मे य । सीलंगसहस्साणं अट्ठारसगस्स णिप्फत्ती ।। ६४७ ॥ करणादि तिणि जोगा मणमादीणि उ हवंति करणाई । आहारादी सण्णा चउ सण्णा इंदिया पंच।। ६४८ ॥ भोमादी णव जीवा अजीवकाओ य समणधम्मो उ । खतादि दसपगारो एव ठिए भावणा एसा ॥ ६४९ ॥ ण करेति मणेणाहारसण्णा विप्पजढगो उणियमेण । सोइंदियसंवुडो पुढविकायआरंभ खतिजुओ।। ६५० ।। इय मद्दवादिजोगा पुढविक्काएभवंति दस भेया। आउक्कायादीसुवि इय एते पिंडियं तु सयं ॥६५१॥ सोइंदिएण एयं सेसेहिवि जे इमंतओ पंच। आहारसण्णजोगा| एत्थ इय सेसाहिं सहस्सदुर्ग।। ६५२।। एयं मणेण वइमादिएसु एयं ति छस्सहस्साई। ण करइ सेसेहिपि य एए सव्वेवि अठारा॥६५३ ।। इमं विष्णेयं अइदंपज्जं तु बुद्धिमंतेहिं । एकपि सुपरिसुद्धं सीलंग सेससम्भावे ॥ ६५४ ॥ एक्को वायपएसोऽसंखेयपएससंगओजह तु ।। ॥४०॥ एतंपि तहाणे सतत्तचाओ इहरहा उ ॥ ६५५ ॥ जम्हा समग्गमयंपि सव्वसावज्जाजोगविरई उ। तनेणेगसरूवं ण खंडरूवत्तणमुवेई ॥ ६५६ ॥ एयं च एत्थ एवं विरतीभावं पइच्च दडव्वं । न उ बझंपि पवित्ति जसा भावं विणावि भवे ॥ ६५७ ॥ जह For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir पश्चाशक मूलम् HOMSONOCRA उस्सग्गमि ठिओ खित्तो उदयंमि केणति तवस्सी । तबहपवत्तकायो अचलियभावोऽपवतो तु ॥ ६५८ ॥ एवं चिय मज्झत्थो का आणाओ कत्थई पय१तो । सेहगिलाणादट्ठा अपवत्तो चेव णायव्यो ।। ६५९ ॥ आणापरतंतो सो सा पुण सव्वण्णुवयणशो चेव ।।शीलाङ्ग | एगंतहिया वेज्जगणातेणं सबजीवाणं ।। ६६ ।। भावं विणावि एवं होति पवत्तीण बाहते एसा । सव्वत्थ अणभिसंगा विरती-IX भावं सुसाहुस्स ।। ६६१ ।। उस्सुत्ता पुण बाहति समतिवियप्पसुद्धावि णियमेणं । गीतणिसिद्धपवज्जणरूवा णवरं णिरणुबंधा ॥ ६६२ । इयरा उ अभिणिवेसा इयरा ण य मूलछिज्जदिरहेण । होएसा एत्तो चिय पुवायरिया इमं चाहू ॥६६३।। गीयत्थो य विहारो बीओ | गीयत्थमीसओ भाणितो । एतो तइयविहारो णाणुण्णाओ जिणवरेहिं ॥ ६६४ ॥ गीयस्स ण उस्सुत्ता तज्जुत्तस्सेयरस्सवि तहेव । णियमेण चरणवं जं ण जाउ आणं विलंघेह ।। ६६५ ॥ण य तज्जुत्तो अण्ण ण णिवारद जोग्गय मुणेऊणं । एवं दोण्हवि चरणं परिसुद्धं अण्णहा णेव ।। ६६६ ।। ता एव विरतिभावो संपुण्णो एत्थ होइ णायब्यो । णियमेणं अट्ठारससीलंगसहस्सरूवो उ ।। ६६७।। ऊण ण कयाइवि इमाण संखं इमं तु अहिकिच्च । जं एयधरा सुत्ने णिहिट्ठा वंदणिज्जा उ॥ ६६८ ।। ता संसारविरत्तो अर्णतम रणादिरूवमेयं तु । णाउं एयवि उत्तं मोक्खं च गुरूवएसेणं ।। ६६९ ॥ परमगुरुणो य अणहे आणाएँ गुणे तहेव दोसे य । मोक्खत्थी *पडिवज्जिय भावेण इमं विसद्धेणं ।। ६७० ।। विहिताणुट्टाणपरो सत्तणरूवमियरंपि संधंतो। अण्णत्थ अणुवआगा खवयंतो कम्म दोसेवि ।। ६७१ ॥ सवत्थ णिरभिसंगो आणामेत्तंमि सव्वहा जुत्तो । एगग्गमणो धणियं तम्मि तहाऽमूढलक्खो य ।। ६७२ ।। तह तइलपत्तिधारगणायगओ राहवेहगगओ वा । एयं चएइ काउंण उ अण्णो खुद्दसत्तोत्ति ।। ६७३ ।। एत्तो चिय णिहिट्ठो पुवायरिएहिं भावसाहुनि । हंदि पमाणठियत्थो तं च पमाणं इमं होइ ।। ६७४ ॥ सत्त्व गुणो साह ण सेस इह णे पइण्ण इह हेऊ । IR॥४ For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पनाशक अगुणत्ता इइ ओ दिलुतो पुण सुवणं व ॥ ६७५ ॥ विसघाइरसायणमंगलस्थविणए पयाहिणावते । गरुए अडझऽकुत्थे अहाल मूलम् IM सुवण्णे गुणा होंति ॥ ६७६ ॥ इय मोहविसं घायइ सिवोवएसा रसायणं होति । गुणओ य मंगलत्थं कुणति विणीओ य जोग्गो- शीलाग त्ति ।। ६७७ ॥ मग्गणुसारिपयाहिण गंभीरो गुरुयओ तहा होइ । कोहग्गिणा अडज्झो ऽकुच्छो सइ सीलभावेण।। ६७८ ॥ एवं दिद्रुतगुणा सज्झमिवि एत्थ होंति णायब्धा । ण हि साहम्माभावे पायं जं होइ दिटुंतो ॥ ६७९ ॥ चउकारणपरिसुद्धं कसच्छेयतावतालणाए य । जं तं विसघातिरसायणादिगुणसंजुयं होइ ॥ ६८० ॥ इयरम्मि कसाईया विसिट्ठलेसा तहेगसारत्तं । अवगारिणि अणुकंपा वसणे अइणिच्चलं चित्तं ॥ ६८१ ॥ तं कसिणगुणोवेयं होइ सुवणं ण सेसयं जुत्ती। णवि णाम रूवमेत्तेण एवमगुणो भवति | साहू ॥ ६८२ ।। जुत्तीसुवण्णगं पुण सुवण्णवणं तु जदिवि कीरेंज्जा। ण हु होति तं सुवणं सेसेहि गुणेहऽसंतेहिं ।। ६८३ ॥ जे इह 18|| सुत्ते भणिया साहुगुणा तेहिं होइ सो साहू । वण्णेणं जच्चसुवण्णग व संते गुणणिहिम्मि ।। ६८४ ।। जो साहू गुणरहिओ भिक्खं हिं| डेति ण होति सो साहू । वण्णणं जुत्तिमुवण्णगवसंते गुणणिहिम्मि ॥ ६८५ ॥ उदिट्टकडं भुंजति छक्कायपमहणो घरं कुणति । पच्चक्खं च जलगते जो पियह कह णु सो साह? ।। ६८६ ।। अन्ने उ कसादीया किल एते एत्थ होंति णायव्वा । एताहिं परिक्खा-1 द्र हिं 'साहुपरिक्खेह कायव्वा ।। ६८७ ॥ तम्हा जे इह सुत्ते सादुगुणा तेहि होइ सो साहू । अचंतसुपरिसुद्धेहिं मोक्ख-18 है सिद्धित्ति काऊणं ॥ ६८८ ॥ अलमेत्थ पसंगेण सीलंगाई हवंति एमेव । भावसमणाण सम्मं अखंडचारित्तजुत्ताणं ।। ६८९ ॥ इयर्स कसलंगजुया खलु दुक्खंतकरा जिणेहिं पण्णता । भावपहाणा साहू ण तु अण्णे दवलिंगधरा ॥ ६९० ॥ संपुण्णावि हि किरिया ॥ ४२ ॥ भावेण विणा ण होति किरियत्ति । णियफलविगलत्तणो गेविन्जुववायणाएणं ॥ ६९१ ॥ आणोहेणाणता मुक्का गेवेजगेसु उ | SCAMECORROS For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक | सरीरा । ण य तत्थासंपुण्णाएँ साहुकिरियाएँ उववाओ॥ ६९२ ॥ ता पंतसोवि पत्ता एसा ण य (उ) दसणंपि सिद्धति । 15 मूलम्. एवमसग्गहजुत्ता एसा ण बुहाण इट्ठति ।। ६९३ ।। इय णियबुद्धि' इमं आलोएऊण एत्थ जइयव्वं । अचंतभावसारं भवविरहत्थं लाआलोचना महजणेणं ।। ६९४ ॥ इइ सीलंगपंचासयं १४ ॥ ।। ४३ ।। ॥ अथ पञ्चदशमालोचनापञ्चाशकम ॥ १५॥ नमिऊण तिलोगगुरु वीरं सम्म समासओ वोच्छ । आलोयणाविहाणं जतीण सुत्ताणुसारेणं ।। ६९५ ॥ आलोयणं अकिच्चे | अभिविहिणा दंसणंति लिंगहिं । वइमादिएहिं सम्मं गुरुणो आलोयणा णेया ।। ६९६ ॥ आसेविते वकिच्चे णाभोगादीहिं होति संवेगा । अणुतावो तत्तो खलु एसा सफला मुणेयव्वा ॥ ६९७ ॥ जह संकिलेसओ इह बंधो वोदाणओ तहा विगमो । तं पुण इमीऍ 3ाणियमा विहिणा सइ सुप्पउत्ताए ।। ६९८ ॥ इहरा विवज्जओवि हु कुवेज्जकिरियादिणायतो णेओ । अवि होज्ज तत्थ सिद्धी आणाभंगा न उन एत्थ ।। ६९९ ॥ तित्थगराणं आणा सम्मं विहिणा उ होइ कायव्वा । तस्मण्णहा उ करणे मोहादतिसंकिलेसो|त्ति ॥ ७०० ॥ बंधो य संकिलेसा ततो ण सोवेति तिब्बतरगाओ । इसि मलिणं ण वत्थं सुज्झइ नीलीरसादाहिं ॥ ७०१ ॥ एत्थं पुण एस विही अरिहो अरिहमि दलयति कमेण । आसेवणादिणा खलु सम्म दबादिमुद्धीए ।। ७०२॥ कालो पुण एतीए पक्खादी वण्णितो जिणिंदेहिं । पायं विसिट्ठगाए पुवायरिया तथा चाहु ।। ७०३ ॥ पक्खियचाउम्मासे आलोयण णियमसा उ दायवा । गहणं अभिग्गहाण य पुबग्गहिए णिवेएउं ॥ ७०४ ॥ जीयमिणं आणाओ जयमाणस्सवि य दोमसम्भावा । पम्हुसण CCCE RRCHORE For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशकापमायाओ जलकुंभमलादिणाएणं ।। ७०५ ।। संविग्गो उ अमाई मइम कप्पट्टिओ अणासंसी । पण्णवणिज्जो सद्धी आणाइत्ता दुकडमूलम् ताबी ।। ७०६ ॥ तविहिसमुस्सुमो खलु अभिग्गहासेवणादिलिंगजुतो। आलोयणापयाणे जोग्गो भणितो जिणिंदेहि ।। ७०७ ॥ मआलोचना ॥४४॥ आयारवमा (मो) हारव ववहारोवीलए पकुच्ची य । णिज्जव अवायदंसी अपरिस्सावी य बोद्धब्बो । ७०८ ॥ तह परहियम्मि जुत्तो विसेसओ सुहुमभावकुसलमती । भावाणुमाण तह जोग्गो आलोयणायरिओ ।। ७०९ ॥ दुविहेण णुलोमेणं आसेवणवियडणाभिहाणणं । आसेवणाणुलोमं जं जह आसेवियं वियडे ।। ७१० ।। आलोयणाणुलोमं गुरुगवराहे उ पच्छओ वियडे । पणगादिणा कमेण जह जह पच्छित्तवुडी उ ।। ७११ ।। तह आउट्टियदप्पओ कप्पपमायप्पओ (प्पमायओ कप्पओ) व जयणाए। कज्जे वाज्जयणाए *जहाट्ठय सबमालाए । ७१२ ।। दब्बादी मुहेमुं देया आलोयणा जतो तेसं । होति सुहभावड़ी पाएण सुहा उ सुहहऊ।। ७१३।। दव्वे खीरदुमादी जिणभवणादी य होइ खेत्तम्मि । पुण्णतिहिपभिति काले सुहोवओगादि भावे उ !! ७१४ ॥ सुहदव्वादिसमुदए पायं जं होइ भावसुद्धित्ति । ता एयम्मि जएज्जा एसा आणा जिणवराणं ॥ ७१५ ॥ आलोएयव्वा पुण अइयारा सुहुमबायरा सम्मं । णाणायारादिगया पंचविहो सो य विष्णेओ ॥ १६ ॥ काले विणए बहुमाण उवहाणे तहा अणिण्हवणे । वंजणअत्थतदु४ भए अट्टविहो णाणमायारो ॥ ७१७ ॥ णिस्संकियणिकंखियणिव्वितिगिच्छा अमृढदिट्ठी य । उववृहथिरीकरणे वच्छल्लपभावणे अट्ठ |॥ ७१८ ॥ पणिहाणजोगजुत्तो पंचहि समितिहिं तीहिं गुत्तीहिं । एस चरित्तायारो अट्ठविहो होइ णायव्यो। ७१८ ।। चारसविहम्मिवि तवे सम्भितरवाहिरे कुसलदिट्टे | अगिलागू अणाजीवी णायब्वो सो तवायारो ॥ ७२०॥ अणिगृहियवलविरिओ परकमह जो | ॥ ४४ ।। जहुत्तमाउनो । जुजइ य जहत्थाम णायचो वीरियायारो ॥ ७२१ ॥ एयम्मि उ अइयारा अकालपढणाइया णिरवसेसा । अपुणकर-18 In For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक मूलम्. णुज्जएणं संवेगा लुत्ति (लोइ ) यव्यत्ति ।। ७२२ ॥ अहवा मूलगुणाणं एते एवं तह उत्तरगुणाणं । एएसिमह सरूवं पत्तेयं संप-18 वक्खामि ।। ७२३ ॥ पाणातिपातविरमणमादी णिसिभत्तविरइपज्जंता । समणाणं मूलगुणा तिविहं तिविहेण णायव्वा ।। ७२४ ॥ आलोचना पिंडविसुद्धादीया अभिग्गहंता य उत्तरगुणत्ति । एतेसिं अइयारा एगिदियघट्टणादीया ॥ ७२५ ॥ पुढवादिघट्टणादी पयलादी | तुच्छदत्तगहणादी । गुत्तिविहारणकप्पट्ठमत्तदियगहियभुत्तादी ।।७२६।। भोगो अणेसणाणीए समियत्तं भावणाणभावणया। जहसत्ति चाकरणं पडिमाणं पडि ( अभि ) ग्गहाणं च ।।७२०॥ एते इत्थइयारा असद्दहणादी य गरुयभावाणं । आभोगाणाभोगादिसेविया तहय ओहेणं ।। ७२८ ।। संवेगपरं चित काऊणं तेहिं तेहिं सुत्तेहिं । सल्लाणु द्धरणविवागदंसगादीहिं आलोए॥ ७२९ ।। सम्मं दुचरितस्सा परसक्खिगमप्पगासणं जं तु । एयमिह भावसल्लं पण्णत्तं वीयरागेहिं ।। ७३० ।। णवि तं सत्थं व विसं दुप्पउत्तो व कुणति वेतालो। जंतं व दुप्पउत्तं सप्पो व पमादिओ कुद्धा ।। ७३१ ।। जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तिमढकालम्मि | दुल्लहबोहायत्तं अणंतसंसारियत्तं च ।। ७३२ ॥ आलोयणं अदाउं सति अण्णम्मिवि तहप्पणो दाउं । जेवि हु करेंति सोहि तेवि ससल्ला विणिहिट्ठा ।। ७३३ ।। किरियण्णुणावि सम्मपि रोहिओ जह वणो ससल्लो उ। होइ अपत्थो एवं अवराहवणोषि विष्णेओ ।। ७३४ ॥ सल्लुद्धरणनिमित्तं गीयस्सन्नेसणा उ उक्कोसा । जोयणसयाई सत्त उ बारस वरिसाई कायब्वा ।। ७३५ ॥ मरिउं ससल्लमरणं संसाराडविमहाकवि (डि) ल्लम्मि । सुचिरं भमति जीवा अगोरपारंम ओइण्णा ।। ७३६ ।। उद्धरियसबसल्ला तित्थगराणाएँ सुत्थिया जीवा । भवसयकयाई ॥४५॥ खविउं पावाई गया सिवं थाम ॥ ७३७ ।। सल्लुद्धरणं च इमं तिलोगबंधूहिं दंसियं सम्मं । अवितहमारोग्गफलं धण्णोऽहं जेणिम | णायं ॥ ७३८ ॥ ता उद्धरेमि सम्म एवं एयस्स णाणरासिस्स । आवेदियं (उ) असेसं अणियाणो दारुणविवागं ।। ७३९ ॥ इय 646 For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पनाशक मूलम् ॥ ४६॥ SNESS CAKACACANCE * संवेगं काउं मरुगाहरगादिएहिं चिंधेहिं । दढमपुणकरणजुत्तो सामायारिं पउंजेज्जा ।। ७४० ॥ जह बालो जपतो कज्जमकजं व प्रायश्चित्त उज्जुयं भणति । तं तह आलोइज्जा मायामयविप्पमुक्को उ ।। ७४१॥ आलोयणासुदाणे लिंगमिणं विति मुणियसमगत्था। पच्छित्तक- पं०१६ रणमुचियं अकरणयं चेव दोसाणं ॥ ७४२ ॥ इय भावपहाणाणं आणाएँ सुट्ठियाण होति इमं । गुणठाणसुद्धिजणगं सेस तु विवज्जयफलंति ॥ ७४३ ॥ लध्धूण माणुसतं दुलहं चइऊण लोगसण्णाओ। लोगुत्तमसण्णाए अविरहियं होति जतितव्वं ।। ७४४ ।। ॥ आलोयणाविधी सम्मत्ता ॥ १५॥ ॥ अथ षोडशं प्रायश्चित्तपञ्चाशकम् ॥ १६ ॥ नमिऊण बद्धमाणं पायच्छित्तं समासतो वोच्छं । आलोयणादि दसहा गुरूवएसाणुसारेणं ॥ ७४५ ॥ आलोयण पडिकमणे | मीस विवेगे.तहा विउस्सग्गे। तव छेय मूल अणवट्ठया य पारंचिए चेव ॥ ७४६ ।। पावं छिंदति जम्हा पायच्छित्तंति भण्णई ठातेण । पाएण वावि चित्तं सोहयती तेग पच्छितं ॥ ७४७ ।। भधस्साणारुइणो संवेगपरस्स चण्णिय एवं । उवउत्तस्स जहत्थं सेसस्स उदव्यतो णवरं ॥ ७४८ ॥ सत्थत्थवाहणाओ पायमिणं तेण चेव कीरंतं । एयं चिय संजायति वियाणियव्यं बुहजणेणं ॥७४९॥ दोसस्स णिमित्तं होति तगो तस्स सेवणाए उ । ण उ तक्खउत्ति पयडं लोगंमिवि हंदि एयंति ॥ ७५० ॥ दव्ववणाहरणेणं 3 जोजितमेतं विहि समयमि । भाववणतिगिच्छाए सम्मति जतो इमं भाणतं ॥ ४५१ ॥ दुविहो कायंमि वणो तदुम्भा (ब्भवा)-12॥४६ ॥ गंतुगो य णायब्यो । आगंतुगस्स कीरति सल्लुद्धरणं ण इयरस्म ।। ७५२ ॥ तणुओ अतिक्खतुंडो असोणितो केवलं तयालग्गो। For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रायश्चित्त पं०१६ उद्धार अवउज्झइ सल्लो ण मलिज्जइ वणो उ ।। ७५३ ॥ लग्गुद्धियम्मि बीए मलिज्जह परं अ (रम ) दूरगे सल्ले । उद्धरणमल- पञ्चाशक णपूरण दूरयरगए तईयंमि ॥ ७५४ ॥ मा वेअणा उ तो उद्धरित्तु गालिंति सोणिय चउत्थे । रुज्झइ लहुति चेट्ठा वारिज्जइ पंचमे मूलम्. वणिणो ॥ ७५५ ॥ राहेइ वर्ण छडे हितमितभोजी अभुंजमाणो वा । तत्तियमेत छिज्जति सत्तमए पूइमंसादी ।। ७५६ ॥ तह विय | अठायमाणे गोणसखइयादि रप्पुए वावि । कीरति तदंगछेदो सअद्वितो सेसरक्खाओ ( खट्ठा ) । ७५७ ॥ मूलुत्तरगुणरूवस्स ताइणो परमचरणपुरिसस्स । अवराहसल्लपभवो भाववणो होइ णायव्यो ।। ७५८ ।। एसो एवंरूवो सविगिच्छो एत्थ होइ विण्णेओ । | सम्मं भावाणुगतो णिउणाए जोगिबुद्धीए ।।७५९|| भिक्खायरियादि सुज्झति अइयारो कोइ वियडणाए उ। बितिओ उ असमितो६ मित्ति कीस सहसा अगुत्तो वा ? ॥ ७६० ॥ सद्दादिएसु रागं दोसं व मणे गओ तइयगम्मि । गाउं अणेसणिज्ज भत्तादि विगिचण ★चउत्थे ।। ७६१ ।। उस्सग्गेणवि सुज्झति अइयारो कोइ कोइ उ तवेणं । तह विय असुज्झमाणे छेयविससा विसोहंति ॥ ७६२ ॥ 5 छिज्जति दूसियभावो तहोमरायणियभावकिरियाए । संवेगादिपभावा सुज्झइ णाता तहाणाओ ॥ ७६३ ।। मूलादिसु पुण अहिगत पुरिसाभावेण नत्थि वणचिन्ता । एतेसिपि सरूवं वोच्छामि अहाणुपुवीए ।। ७६४ ॥ पाणातिवातपभितिसु संकप्पकएसु चरणविगमम्मि । आउट्टे परिहारा पुणवयठवणं तु मूलंति ॥ ७६५ ॥ साहम्मिगादितेयादितो तहा चरणविगमसंकेसे । णो (णउ) चियतवेऽकयम्मी ठविज्जति वएसु अणवट्ठो ॥ ७६६ ॥ अण्णोण्णमूढदुट्ठातिकरणतो तिव्वसंकिलेसंमि । तवसातियारपारं अंचति दिक्खिज्जइ ततो य ।। ७६७ ।। अण्णेसि पुणतब्भवतदण्णवेक्खाएँ जे अजोगत्ति । चरणस्स ते इमे खलु सलिंगचितिभेदमादीहिं ।। ७६८॥ आसयविचित्तयाए किलिट्टयाए तहेव कम्माणं । अत्थस्स संभवातो णेयपि असंगयं चेव ।। ७६९ ॥ आगममाई य जतो ववहारो ॐARATH *॥४७॥ ४ For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ARC पञ्चाशक पंचहा विणिद्दिट्ठो । आगम सुय आणा धारणा य जीए य पंचमए ॥ ७७० ॥ एयाणुसारतो खलु विचित्तमेयमिह वणियं समए । ल प्रायश्चित्त मूलम् आसेवणादिभेदा तं पुण मुत्ताओ णायच्वं ॥ ७७१॥ एयं च एत्थ तत्तं असहज्झवसाणओ हवति बंधो। आणाविराहणाणगमेयंपि । प०१५ ॥४८॥ |य होति दट्ठव्वं ॥ ७७२ ।। सुहभावा तव्विगमो सोवि य आणाणुगो णिओगेण । पच्छित्तमेस सम्म विसिट्ठओ चेव विण्णेओ ॥ ७७३ ।। असुहज्झवसाणाओ जो सुहभावो विसेसओ अहिगो । सो इह होति विसिहो ण ओहतो समयणीतीए ।। ७७४ ॥ इहरा भादीणं आवस्सयकरणतो उ ओहेणं । पच्छित्तंति विसुद्धी ततो ण दोसो समयसिद्धो ॥ ७७५ ।। ता एयंमि पयत्तो काययो अप्पमत्तयाए उ । सतिबलजोगेण तहा संवेगविसेसजोगेण ।। ७७६ ॥ एतेण पगारेणं संवेगाइसयजोगतो चेव । अहिगयविसिट्ठभावो | तहा तहा होति णियमेणं ।। ७७७ ।। तत्तो तविगमो खलु अणुबंधावणयणं व होज्जाहि । जं इय अपुवकरणं जायति सेढी य विहियफला ।। ७७८ ॥ एवं निकाइयाणवि कम्माणं भणियमेत्थ खवणंति । तं पिय जुज्जइ एवं तु भावियच्वं अओ एयं ॥ ७७९ ॥ विहियाणुट्ठाणंमी एत्थं आलोयणादि जं भणियं । तं कह पायच्छित्तं दोसाभावेण तस्सत्ति? ॥ ७८० ।। अह तंपि सदोसं चिय तस्स | विहाणं तु कह णु समयम्मि? । न य णो पायच्छित्तं इमंपि तह कित्तणाओ उ ।। ७८१ ॥ भण्णइ पायच्छित्तं विहियाणुहाणगोयरं चेयं । तत्थीव य किंतु सुहुमा विराहणा आत्थ तीऍ इमं ॥ ७८२ ॥ सव्वावत्थासु जओ पायं बंधो भवत्थजीवाणं । भणितो विचि-14 पत्तभेदो पुवायरिया तहा चाहु ।। ७८३ ।। सत्तविहबंधगा होति पाणिणो आउवज्जियाणं तु । तह सुहमसंपराया छविहबंधा विणि-1* 18| हिट्ठा ।। ७८४ ।। मोहाउयवज्जाणं पगडीणं ते उ बंधगा भणिता। उपसंतखीणमोहा केवलिणो एगविहबंधा ॥७८५॥ ते पुण ॥४८॥ दुसमयट्ठितियस्स बंधगा ण पुण संपरायस्स । सेलेसीपडिवण्णा अबंधया होंति विष्णेया ।। ७८६ ।। अपमत्तसंजयाणं बंधठिती होति % CAREERALS 5 For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक मूलम्. ॥४९॥ अट्ठ उ मुहुत्ता । उक्कोसेण जहण्णा भिण्णमुहुत्तं तु विष्णेया ॥ ७८७ ॥ जे उ पमत्ताणाउट्टियाएँ बंधति तेसि बंधठिती । संवच्छराणि १७ कल्प अट्ठ उ उक्कोसियरा मुहुर्ततो ॥ ७८८ ॥ ता एवं चिय एवं विहिणाणुट्ठाणमेत्थ हवइत्ति । कम्माणुबंधछेयणमणहं आलोयणादिजुयं पंचाशक ।। ७८९ ।। विहिताणुट्ठाणत्तं तस्सवि एवंति ता कहं एयं । पच्छित्तं? णणु भण्णति समयंमि तहा विहाणाओ ।। ७९० ॥ विहियाणुट्ठाणं चिय पायच्छित्तं तदण्णहा ण भवे । समए अभिहाणाओ इत्थपसाहगं णियमा ।। ७९१ ।। सवावि य पव्वज्जा पायच्छित्तं भवंतरकडाणं । पावाणं कम्माणं ता एत्थं णत्थि दोसोत्ति ॥ ७९२ ॥ चिण्णस्स णवरि लिंगं इमस्स पाएणमकरणया तस्स । दोसस्स तहा अण्णे णियमं परिसुद्धए विति ॥ ७९३ ॥ णिच्छयणएण संजमठाणापातमि जुज्जति इमपि । तह चेव पयट्टाणं भवविरहपराण साहूणं ॥ ७९४ ॥ पायच्छित्तविधी सम्मत्ता ॥१६॥ ॥अथ सप्तदशं कल्पपंचाशकं॥ १७॥ णमिऊण महावीरं ठियादिकप्पं समासओ वोच्छं । पुरिमेयरमझिमजिणविभागतो वयणनीतीए ॥७९५॥ दसहोहओ उ कप्पो एसो. (स उ) पुरिमेयराण ठियकप्पो। सययासेवणभावा ठियकप्पे । णिश्चमज्जाया।। ७९६ ।। ततिओसहकप्पोऽयं जम्हा एगंततो उ अविरुद्धो। सययंपि कज्जमाणो आणाओ चेव एतेसिं ।। ७९७ ॥ वाहिमवणेइ भावे कुणइ अभावे तयं तु पढमंति। बितियमवणेति न कुणति तइयं |तु रसायणं होति ।। ७९८॥ एवं एसो कप्पो दोसाभावेवि कज्जमाणो उ।सुंदरभावाओ खलु चरित्तरसायणं णेओ ।। ७९९ ।। आचेलक्कुदेसियसिज्जायररायपिंडकिइकम्मे । वयजेट्टपडिकमणे मासंपज्जोसवणकप्पो ॥८००। छसु अहिओ उ कप्पो एत्तो मज्झिमजि % A4%AS For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पञ्चाशकणाण विणेओ । णो सय्यसेवणिज्जो अणिश्चमेरासरूवोत्ति ॥ ८०१॥ आचलक्कुद्देसियपाडिकमणरायापंडमासेसु । पज्जुसणाकप्पमि | १७कल्प मूलम् काय अट्ठियकप्पो मुणेयब्यो ।। ८०२ ॥ सेसेसु ट्ठियकप्पो मज्झिमगाणंपि होइ विण्णेओ। चउसु ठिता छसु अठिता एत्तो चिय भणि पंचाशकं यमेयं तु ॥ ८०३ ।। सिज्जायरपिंडमि य चाउज्जामे य पुरिसजेट्टे य । कितिकम्मस्स य करणे ठियकप्पो मज्झिमाणपि ।। ८०४ ॥ ॥ ५ ॥ दुविहा एत्थ अचेला संतासंतेसु होइ विण्णेया । तित्थगरसंतञ्चेला संता सेसा भवेऽचेला (ऽचेला भवे सेसा) ।। ८०५॥ आचलको 181 धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं होइ सचेलो अचलो य॥८०६।। अमहद्भण भिहि य आचेलकमिह होइ वत्थेहिं । लोगागमणीतीए अचेलगत्तं तु पच्चयतो ।।८०७।। उद्देसियं तु कम्मं एत्थं उदिस्स कीरतेयं (तं ) ति । एत्थवि इमो विभागोणेओ संघादवेक्खाए ॥ ८०८ ॥ संघादुद्देसणं ओघाइहिं समणमाइ अहिकिञ्च । कडमिह सब्बेसि चिय ण कप्पए पुरिमचरिमाणं ॥८०९।। मज्झिमगाणं तु इदं कडं जमुद्दिस्स तस्स चेवत्ति । नो कप्पइ सेसाण उ कप्पड़ तं एस मेरत्ति ।। ८१० ।। सेज्ज.यरोति भण्णति आलयसामी उ तस्स जो पिंडो। सो सम्वेसि ण कप्पति पसंगगुरुदोसभावेण ॥ ८११ ॥ तित्थंकरपडिकुट्ठो अण्णायं उग्गमोवि य ण सुज्झे । अविमुत्ति यऽलाघवया दुल्लहसेज्जा विउच्छेओ ॥ ८१२ ॥ पडिबंधनिरागरणं केई अण्णे अगहियगहणस्स । तस्साउंटणमाणं एत्थवरे बेंति भावत्थं ॥८१३ ।। मुदितादिगुणो राया अट्टविहो तस्स होति पिंडोत्ति । पुरिमेयराणमेसो वाघायादीहिं पडिकुट्ठो ।। ८१४ ॥ ईसरपभितीहिं तर्हि वाघातो खद्धलोहुदाराणं । दसणसंगो गरहा इयरेसि ण अप्पमादाओ ।। ८१५ ।। असगादीया चउरो वत्थं पायं च कंबलं चेत्र । पाउंछ गर्ग च तहा अढविहो रायोपडे। उ ।। ८१६ ।। कितिकम्मति य | दुविहं अन्भुट्टाणं तहेव बंदणगं । समणेहि य समणीहि य जहारिहं होति कायब्वं ॥ ८१७ ॥ सवाहिं संजईहिं कितिकर्म संजयाण ARG 25% For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कायब्बं । पुरिसोत्तमोत्ति धम्मो सन्धजिणाणंपि तित्थेसु ॥ ८१८ ॥ एयस्स अकरणंमी माणो तह णायकम्मबंधोत्त । पत्रयण-131१७ कल्प पञ्चाशक खिंसायाणग अबोहि भववुड्डि अरिहंमि ॥ ८१९॥ पंचवतो खलु धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं जिणापंचाशक मूलम्. चउव्वतो होति विष्णेओ ।। ८२० ॥णो अपरिग्गहियाए इत्थीए जेण होई परिभोगो। ता तन्चिरइए चिय अबभविरइत्ति पण्णागे ।। ८२१ ।। दृहवि दुविहोवि ठिओ एसो आजम्ममेव विष्णेओ। इय वयभेया दुविहो एगविहो चेव तत्तेणं ।। ८२२ ॥ अवठावतणाएँ जेट्टो विष्णेओ पुरिमपच्छिमजिणाणं | पवज्जाए उतहा मज्झिमगाणं णिरतियारो . ८२३ ।। पढिए य कहिएँ अहिगएँ परिहर उवठावणाएँ कप्पोत्ति । छकं तीहि विसुद्धं सम्म णवएण भेएण ॥ ८२४ ॥ पितिपुत्तमाइयाणं समग पत्ताण जेट्ट पितिपभिइ । थेवंतरे विलंबो पण्णवणाए उबट्टवणा ।। ८२५ ।। सपडिक्कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स । मज्झिमगाण जिणाणं कारणजाए पडिक्कमणं ॥ ८२६ ।। गमणागमण विहारे सायं पाओ य पुरिमचरिमाणं । णियमेण पडिक्कमणं अइयारो होउ वा मा वा ॥ ८२७ ॥ मज्झिमगाण उ दोसे कहंचि जायम्मि तक्खणा चेव । दोसपडियारणाए (या) गुणावहं तह पडिकमणं ॥ ८२८ ॥ पुरिमेयरतित्थयराण मासकप्पो ठिओ विणिदिवो । मज्झिमगाण जिणाणं अट्ठियओ एस विण्णेओ ।। ८२९ ॥ पडिबंधो लहुयत्तं ण जणुवयारो ण देसविण्णाणं । णाणाराहणमेए दोसा अविहारपक्वम्मि ।। ८३० ॥ कालादिदोसओ पुण ण दबओ एस कीरई णियमा। भावेण उ कायव्वो संथारगवच्चयाईहिं ।। ८३१ ॥ पज्जोसवणाकप्पोऽपेवं पुरिमेयराइभेएणं । उक्कोसेयरभेओ सो णवरं होइ विण्णेओ ।। ८३२ ॥ चाउम्मासुकोसो सत्तरि राइंदिया जहण्णो उ । थेराण जिणाणं पुण णियमा उक्कोसओ चेव ।।८३३।। दोसासइ मज्झिमगा ॥५१॥ अच्छंती (ति) उ जाव पुचकोडीवि । इहरा उ ण मासंपि हु एवं खु विदेह जिणकप्पे ॥ ८३४ ॥ एवं कप्पविभागो तइओसहणा CCTOR For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक तओ मुणेयव्यो । भावत्थजुओ एत्थ उ सब्बत्थवि कारणं एयं ॥८३५ ॥ पुरिमाण दुन्धिसोझो चरिमाणं दुरणुपालओं कप्पो । गला लोकपो१८ भिक्षुमूलम् मज्झिमगाण जिणाणं सुविसोझो सुहणुपालो य ।। ८३६ ॥ उज्जुजड़ा पुरिमा खलु णडादिणायाउ होति विष्णेया। वकजडा उण || प्रतिमा पंचाशक ॥ ५२॥ चरिमा उजुपण्णा मज्झिमा भणिया ।। ८३७ ।। कालसहावाउ च्चिय एए एवंविहा उ पाएण । होति अओ उ जिणेहिं एएसि इमा|| कया मेरा ॥ ८३८ ॥ एवंविहाणवि इहं चरणं दिटुं तिलोगणाहेहिं । जोगाणं थिरो भावो जम्हा एएसि सुद्धो उ ।। ८३९ ।। अथिरो Pउ होइ इयरो सहकारिवसेण ण उण तं हणइ । जलणा जायइ उण्हं वज्ज ण उ चयइ तत्तंपि ॥ ८४० ॥ इय चरणम्मि ठियाणं होई हा अणाभोगभावओ खलणा । ण उ तिव्वसंकिलेसा अवेति चारित्तभावोवि ॥ ८४१॥ चरिमाणवि तह णेयं संजलणकसायसंगमं चेव । माइट्टाणं पायं असंइंपि हु कालदोसेणं ॥ ८४२ ॥ इहरा उ ण समणतं असुद्धभावाउ हंदि विष्णेयं । लिंगंमिवि भावेणं सुत्तविरोहा जओ भणियं ।। ८४३ ।। सब्बेवि य अइयारा संजलणाणं तु उदयओ होति । मूलच्छेज्जं पुण होइ बारसहं कसायार्ण ६॥ ८४४ ॥ एवं च संकिलिट्ठा माइहाणंमि णिचतल्लिच्छा । आजीवियभयमत्था मूढा णो साहुणो णेया ।। ८४५ ॥ संविग्गा गुरुवि-18 है णया णाणी दंतिदिया जियकसाया । भवविरहे उज्जुत्ता जहारिहं साहुणो होति ।। ८४६ ॥ ठियाठियकप्पविही ।। १७॥ ॥अथाष्टादशं भिक्षुप्रतिमापंचाशकं ॥१८॥ णमिऊण वद्धमाणं भिक्खूपडिमाण लेसओ किंपि । वोच्छं सुत्ताएसा भव्वहियहाएँ पयडत्थं ।। ८४७ ।। बारस भिक्खूपडिमा | है ॥५२॥ ओहेणं जिणवरेहिं पण्णत्ता । मुहभावजुया काया मासाईया जओ भणियं ॥ ८४८ ॥ मासाई सत्ता पढमाबिइतइयसत्तराइदिणा। " For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %AC- अहराइ एगराई भिक्खूपडिमाण वारसगं ॥ ८४९ ॥ पडिवज्जइ एयाओ संघयणधिइजुओ महासत्ता । पडिमाओ भाषियप्पा सम्मं |3|२८ भिक्षु पञ्चाशक गुरुणा अणुण्णाओ।। ८५० ॥ गच्छे च्चिय णिम्माओ जा पुव्वा दस भवे असंपुण्णा । णवमस्स तइयवत्थू होइ जहण्णो सुयाहिगमो है। प्रतिमा | ।। ८५१ ।। बोसहचत्तदेहो उवसग्गसहो जहेच जिणकप्पी । एसण अभिग्गहीया भत्तं च अलेवडं तस्स ।। ८५२ ।। गच्छा विणिक्ख पंचाशकम् ॥ ५३ ।।४मित्ता पडिवजइ मासियं महापडिमं । दत्तेग भोयणस्सा पाणस्सवि एग जा मासं ( मास जा)८५३।। आइमज्झवसाणे छग्गो-४ यरहिंडगो इमो णेओ । णाएगरायवासी एगं च दुगं च अण्णाए । ८५४ ॥ जायणपुच्छाणुण्णावणपुवागरणभासगो चेव । आगमणवियडगिहरुक्खमूलगावासयतिगोत्ति ।। ८५५ ।। पुढवीकट्ठजहत्थिण्णसारसाई ण अग्गिणो बीहे । कट्ठाइ पायलग्गं णवणेइ तहच्छिकणुगं वा ।।८५६।। जत्थत्थमेइ सरो न तओ ठाणा पर्यपि संचरइ । पायाइ ण पक्खा (खा) लइ एसो वियडोदगेणावि ॥८५७॥ दुस्सहत्थिमाइ तओ भएणं पयंपि णोसरई । एमाइणियमसेवी विहरइ जाऽखंडिओ मासो ॥८५८|| पच्छा गच्छमईई एवं दुम्मासि (एव दुमासी तिमासि) जा सत्ता। णवरं दत्तिविवड्ढी जा सत्त उसत्तमासीए।।८५९|| तत्तो य अहमी खलु हवइ इहं पढमसत्तराइंदी। तीए चउत्थ चउत्थेणऽपाणएणं अह विसेसो ॥ ८६० ।। उत्ताणग पासल्ली सज्जी वावि ठाणगं ठाउं । सहउवसग्गे घोरे दिव्वाई तत्थ अविकंपो ।। ८६१ ।। दोच्चावि एरिस च्चिय बहिया गामाइयाण णवरं तु । उक्कुडलगंडसाई दंडायपओ ब ठाऊणं ॥८६२॥ तच्चावि एरिस च्चिय णवरं ठाणं तु तस्स गोदोही। वीरासणमहवावि हु ठाएज्जा अंबखुज्जो उ ॥ ८६३ ।। एमेव अहोराई छट्टे भत्तं अपाणगं णवरं। गामणगराण बाहिं वाघारियपाणिए ठाणं ।। ८६४ ॥ एमेव एगराई अट्ठमभत्तेण ठाण बाहिरओ। इसीपभारगओ अणिमिसणयणेगदिट्ठीए (ओ)॥ ८६५ ॥ साह दोवि पाए वाघारियपाणि ठायइ हाणं। वाघारिलबियभुओ अंते य । 400 234334 For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पश्चाशक इमीएं लद्धित्ति ।। ८६६ ।। आह ण पडिमाकप्पे सम्मं गुरुलाघवाइचिंतति । गच्छाउ विणिक्खमणाइ ण खलु उवगारगं जेण १८ भिक्षु मूलम् ॥ ८६७ ॥ तत्थ गुरुपारतंतं विणओ सज्झाय सारणा चेव । वेयावच्चं गुणवुड्ढि तहय णिप्फत्ति संताणो ॥८६८।। दत्तेगाइगहो- का प्रतिमा विहु तहसज्झायादभावओ ण हो । अंताइणोवि पीडा ण धम्मकायस्स सुसिलिटुं ।। ८६९ ।। एवं पडिमाकप्पो चिंतिज्जतो उ ल पंचाशकम् ॥ ५४॥ निउणदिट्ठीए । अंतरभावविहूणो कह होइ विसिद्धगुणहेऊ? ।। ८७० ।। भण्णइ विसेसविसओ एमो णउ ओहओ मुणेयव्यो । दसपुबधराईणं जम्हा एयस्स पडिसहो ॥ ८७१॥ पत्थुयरोगचिगिच्छावत्थंतरतब्धिसेससमतुल्लो । तह गुरुलाघवचितासहिओ तकालवेक्खाए ।।८७२।। णिवकरल्याकिरियाजयणाए हंदि जुत्तरूवाए। अहिदट्ठाइसु छेयाइ वज्जयंतीह तह सेसं ।। ८७३।। एवं चिय कल्लाणं जायइ एयस्स इहरहा ण भवे । सव्वत्थावत्थोचियमिह कुसलं होइऽणुट्ठाणं ।।८७४॥ इय कम्मवाहिकिरियं पव्वज भावओ पवण्णस्स। सइ कुणमाणस्स तहा एयमवत्थंतरं यं ॥८७५।। तह सुत्तबुड्ढिभावे गच्छे सुत्थंमि दिक्खभावे य । पडिवज्जइ एयं खलु ग अण्णहा कप्पमवि एवं ॥ ८७६ ॥ इहरा ण सुत्तगुरुया तयभावे ण दसपुब्धिपडिसेहो । एत्थं सुजुत्तिजुत्तो गुरुलाघवचिंतबज्झमि ॥ ८७७ ॥ | अप्पपरिच्चाएणं बहुतरगुणसाहणं जहिं होइ । सा गुरुलाघवचिंता जम्हा णाओववण्णत्ति ।। ८७८ ॥ वेयावच्चुचियाणं करणणिसेहेहणमंतरायति । तंपि हु परिहरियव्वं अइसुहुमो होउ एसोत्ति ।। ८७९ ॥ ता तीए किरियाए जोग्गयं उवगयाण णो गच्छे । हंदि उविक्खा णेया अहिगयग्गुणे असंतमि ॥ ८८० ॥ परमो दिक्खुवयारो जम्हा कप्पोचियाणवि णिसेहो । सइ एयंमि उ भणिओ है | पयडो च्चिय पुब्बसूतीहिं ।। ८८१ ॥ अब्भुज्जयमेगयरं पडिवज्जिउकामो सोवि पवाओ (वे)। गणिगुणसलद्धिओ खलु एमेव ॥ ५४ ॥ । अलद्धिजुत्तोवि ॥८८२॥ तं चावत्थंतरमिह जायइ तह संकिलिट्ठकम्माओ । पत्थुयनिवाहिदट्ठाइ जह तहा सम्ममवमेयं ।। ८८३ ।। CONCOM For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक मूलम्. अहिगयसुंदरभावस्स विग्धजणगतिसंकलिट्ठ च। तह चेव तं खविज्जइ एतो च्चिय गम्मए एयं ॥ ८८४ ॥ एत्तो अईव 31१८ भिक्षु णेया सुसिलिट्ठा धम्मकायपीडावि । अंताइणो सकामा तह तस्स अदीणचित्तस्स ।। ८८५ ।। नहु पडइ तस्स भावो संजमठाणाउला प्रतिमा अविय वढेइ । ण य कायपायओविहु तयभावे कोइ दोसोत्ति ॥ ८८६ ॥ चिनाणं कम्माणं चित्तो च्चिय होइ खवणुवाओवि । पंचाशकम् अणुबंधछेयणाई सो उण एवंति णायचो ।।८८७॥ इहरा उ णाभिहाणं जुज्जइ सुत्तमि हंदि एयस्स । एयंमि अवसरंमी एसा खलु तंतजुत्तत्ति ॥ ८८८ ।। अण्णे भणंति एसो विहियाणुट्ठाणमागमे भणिओ । पडिमाकप्पो सिट्ठो दुक्करकरणेण विण्णेओ ॥ ८८९ ॥ विहियाणुट्ठाणंपि य सदागमा एस जुज्जई एवं । जम्हा ण जुत्तिवाहियविसओवि सदागमो होइ ॥ ८९० ॥ जुत्तीए अविरुद्धो सदागमो सावि तयविरुद्धत्ति । इय अण्णोण्णाणुगयं उभयं पडिवत्तिहेउत्ति ।।८९१।। कयमेत्थ पसंगणं झाणं पुण णिच्चमेव एयस्स । मुत्तत्थाणुसरणमो रागाइविणासणं परमं ॥ ८९२ ।। एया पवज्जियव्वा एयासिं जोग्गयं उवगएणं । सेसेणवि कायव्या केइ पइण्णाविसेसत्ति ।। ८९३ ॥ जे जमि जंमि कालंमि बहुमया पवयणुण्णइकरा य । उभओ जोगविसुद्धा आयावणठाणमाईया ।। ८९४ ॥ एएसि सइ विरिए जमकरणं मयप्पमायओ सो उ । होअइयारो सो पुण आलोएयवओ गुरुणो ।। ८९५ ।। इय सव्वमेवमवितहमाणाए भगवओ पकुवन्ता । सयसामत्थणुरूवं अइरा काहिंति भवविरह ॥ ८९६ ॥ साहुपडिमापयरणं १८ ॥ अथैकोनविंशं तपःपंचाशकं ॥१९॥ 18॥ ५५ ॥ णमिऊण वद्धमाणं तवोवि (व) हाणं समासओ वोच्छ । सुत्तभणिएण विहिणा सपरेसिमणुग्गहट्ठाए ॥ ८९७ ॥ अणसणमूणोयरिया For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir १९ पश्चाशक के वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ | कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥ ८९८ ।। पायच्छित्तं विणओं वेयावच्च तहेव सज्झाओ। है। तपः मूलम्झाणं उस्सग्गोविय अम्भितरओ तवो होइ ।। ८९९ ।। एसो वारसभेओ सुत्तनिबद्धो तवो मुणेयव्यो । एयविसेसो उ इमो पइण्णगोपचाशकम् दाणेगभेउत्ति ।। ९०० ॥ तित्थयरणिग्गमाई सब्वगुणपसाहणं तवो होइ । भब्वाण हिओ णियमा बिसेसओ पढमठाणीणं ॥ ९०१॥४ ॥ ५६॥ है तित्थयरणिग्गमो खलु ते जेण तवेण णिगया सब्वे । ओसप्पिणीए सो पुण इमिए एसो विणिद्दिट्टो ।। ९०२ ॥ सुमइ त्थ णिच्च भत्तेण णिग्गओ वासपुज्जो जिणो ( वसुपुज्ज जिणो) चउत्थेण । पासो मल्लीविय अट्टमेण सेसा उ छट्टेणं ।। ९०३ ।। उसभाइकमेणेसो कायब्धो ओहओ सइ बलम्मि । गुरुआणापरिसुद्धो विसुद्धकिरियाएँ धीरेहिं ।। ९०४ ॥ अण्णे तम्मासदिणेसु बेति लिंगं इमस्स भावंमि । तप्पारणसंपत्ती तं पुण एवं इमेसिं तु ॥९०५॥ उसभस्स उ इक्खुरसो पारणए आसि लोगनाहस्त । सेसाणं परमण्णं अमयरसरसोवमं आसी ॥९०६।। संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसमेण लोगनाहेण । सेसेहिं बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥ ९०७ ॥ तित्थंकरणाणुप्पत्तिसण्णिओ तहवरो तवो होइ । पुबोइएण विहिणा काययो सो पुण इमोत्ति ।। ९०८ ।। अट्ठमभ तमि य पासोसहमल्लिरिट्टनेमीणं । वसुपुज्जस्स चउत्थण छहभत्तेण सेसाणं ॥९०९।। उसमाइयाणम थं जायाई केवलाई णाणाई। एवं कुणमाणो खलु अचिरेणं केवलमुवेइ (लं लहइ)॥ ९१० ॥ तित्थयरमोक्खगमणं अहावरो एत्थ होइ विष्णेओ। जेण परिनिव्वुया ते महाणुभावा तओ य इमो ॥ ९११ ॥ निवाणमंतकिरिया सा चोद्दसमेण पढमनाहस्स । सेसाण मासिएणं वीरजिणिंदस्म छट्टेणं ॥ ९१२ ॥ अट्ठावयचंपोज्जिन्तपावासंमेयसेलसिहरेसु । उसभवसुयुज्जनेमीवीरो सेसा य सिद्धिगया ॥ ९१३ ।। चंदायणाइ य तहा अणुलोमविलोमओ तबो अवगे । भिक्खाकवलाण पुढो विष्णेओ बुट्टिहाणीहिं ।। ९१४ ॥ मुकंमि पडिवयाओ तहेव तुड्डीजाव For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपः पचाशकम् १९ पश्चाशक १.पण्णरस । पंचदसपडिवयाहिं तो हाणी किण्हपडिवक्खे ॥ ९१५ ।। किण्हे पडिवय (इ) पण्ण (ण) रस एगहाणी उ जाव इक्को उ। मूलम्. अमवस्सपडिवयाहिं वुड्डी पण्णरस पुन्नाए ॥९१६।। एत्तो भिक्खामाणं एगा दत्ती विचित्तरूवावि। कुक्कुडिअंडयमेत्तं कवलस्सवि होइ विण्णेयं ॥९१७|| एवं च कीरमाणं सफलं परिसुद्धजोगभावस्स। णिरहिगरणस्स णेयं इयरस्स ण तारिसं होई ॥१.१८॥ अण्णोवि अत्थि चित्तो तहा तहा देवयाणिओएण । मुद्धजणाण हिओ खलु रोहिणिमाई मुणेयब्यो ॥ ९१५ ।। रोहिणी अंबा तह मंदउणिया सव्व| संपयासोक्खा । सुयसंतिसुरा काली सिद्धाईया तहा चव ॥ ९२० ।। एमाइदेवयाओ पडुच्च अवऊसगा उ जे चित्ता । णाणादेसपसिद्धा ते सब्बे चेव होइ तवो ॥ ९२१ ॥ जत्थ कसायणिरोहो बंभं जिणपूयणं अणसणं च । सो सब्बो चेव तवो विसेसओ मुद्धलोयंमि ।। ९२२ ॥ एवं पडिवत्तीए एत्तो मग्गाणुसारिभाषाओ। चरणं विहियं बहवो पत्ता जीवा महाभागा ।।९२३।। सव्वंगसुंदरो तह णिरुजसिहो परमभूसणो चेव । आयइजणगो सोहग्गकप्परुक्खो तहन्नोवि ।। ९२४ । पढिओ तवोविसेसो अण्णेहिवि तेहि तेहिं सत्थेहिं । मग्गपडिवत्तिहेउं हंदि विणेयाणुगुण्णेणं ।। ९२५॥ अट्ठोवासा एगंतरेण विहिपारणं च आयाम । सव्वंगसुंदरो सो होइ तवो सुकपक्खमि ॥ ९२६ ॥ खमयादभिग्गहो इह सम्मं पूया य वीयरागाणं । दाणं च जहासत्तिं जइदीणाईण विष्णेयं ॥ ९२७ ।। एवं चिय निरुजसिहो णवरं सो होइ किण्हपक्खंमि । तय गिलाणतिगिच्छाभिग्गहसारो मुणेयव्यो ।। ९२८ ।। बत्तीसं आयामं एगंतरपारणेण सुविसुद्धो । तह परमभूसणो खलु भूसणदाणप्पहाणो य ।। ९२९ ॥ एवं आयइजणगो विण्णेओ णवरमेस सव्वत्थ । अणिगूहियबलविरियस्स होइ सुद्धो विसेसेणं ॥९३०॥ चित्ते एगंतरओ सव्वरसं पारणं च विहि पुव्वं । सोहग्गकप्परुक्खो एस तवो होइ णायव्यो । ९३१ ।। दाणं च जहासत्तिं एत्थ समत्तीऍ कप्परुक्खस्स । ठवणा य विविहफलहरसण्णामियचित्तडालस्स ROSCORACK ४॥ ५७ ॥ For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चाशक वा तपः मूलम् ॥ ९३२ ॥ एए अवऊसणगा इट्ठफलसाहगा व सट्टाणे । अप्णत्थजुया य तहा विष्णेया बुद्धिमंतेहिं ।। ९३३ ॥ इंदियविजओवि | तहा कसायमहणो य जोगसुद्धीए । एमादओवि णेया तहा तहा पंडियजणाओ ॥९३४|| चित्तं चित्तपयजुयं जिणिंदवयणं असेससत्त हापंचाशकम् हियं । परिसुद्धमेत्थ किं तं जंजीवाणं हियं णत्थि? ॥ ९३५ ॥ सव्वगुणपसाहणमोणेओ तिहिं अट्ठमेहिं परिसुद्धो। दंसणनाणच- रित्ताण एस रेसिमि सुपसत्थो ॥९३६ ।। एएसु वट्टमाणो भावपवित्तीऍ बीयभावाओ। सुद्धासयजोगेणं अणियाणो भवविरागाओ ॥ ९३७ ।। विसयसरूवणुबंधेहिं तह य सुद्धं जओ अणुट्ठाणं । णिव्वाणंगं भणियं अण्णेहिवि जोगमग्गमि ॥ ९३८ ॥ एयं च विसयसुद्धं एगतेणेव जं तओ जुत्तं । आरोग्गबोहिलाभाइपत्थणाचित्ततुल्लति ।। ९३९ ॥ जम्हा एसो सुद्धो अणियाणो होइ भावियमईणं । तम्हा करेह सम्मं जह विरहो होइ कम्माणं ॥ ९४० ॥ तवोविहिपयरणं समत्तं ॥ १९ ॥ RRCROSASASARG AGARIES Sonroonrolmeraynewmoranrosarol Yeyesent ॥इइ सिरिहरिभदायरियरइयं पंचासयं समत्तं ॥ wayacae ॥ ५८ ॥ 2. Os sinucalanyavenie die For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म श्रीमदहरिभद्रसूरिविरचिताधर्मसंग्रहणिः । संग्रहणी ॥ ५९॥ निक्षेपादि नमिऊण वीयरागं सव्वन्नु तियसपूइयं विहिणा । जहणायवत्थुवादि, अचितसत्ति महावीरं ॥१॥ सुहभावज्जियतित्थगरणामकम्मस्स सुहविवागातो । अणुवगियपरहियरयं तित्थगरमिमस्स तित्थस्सा२॥ जुम्मं सपरुवगारट्टाए जिणवयणं गुरुवदेसतो जाउं । वोच्छामि समासेणं पयडत्थं धम्मसंगहणि || धम्मो खलु पुरुसत्थो सपरुवयारो यसो मुणेयो। उवगारोऽविय दुविहो दब्बे भावे |य नायव्यो ।। ४॥ दवम्मि अन्नपाणादिदाणरूवो तु होइ विबेओ । नेगंतिओ अणचंतिओ य ज दयतो तेणं ।।५॥ इहपरलोगहा तह जो कीरइ अविहिणा व भत्तीए । एसोऽवि दबओ च्चिय मोक्खंगाभावतो जाण ॥६॥ भावुवयारो सम्मत्तणाणचरणेसु जमिह संठवणं । सइ अप्पणो परस्स य अणियाणं तं जिणा बिति ।।७॥ इहपरलोगासंसं मोत्तुं जो कीरते अविहिणा तु । भत्तीए दबतोऽ. है विहु एसो भावम्मि बोद्धब्धो ॥८॥ आहऽनवत्थलयणादिदाणतो भोगतो य इह सिद्धी । गिहिसंजयाण सुच्चइ सुच्चइ णणु भावतो सावि ॥ ९॥ आहरणं सेहिदुर्ग जिणिंदपारणगदाणदाणेसु । विहिभत्तिभावभावा मोक्खंगं तत्थ विहिभत्ती ॥ १०॥ वेसालि P॥ ५९ PROGROCEAR For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निक्षेपादि lal वासठाणं समरे जिण पडिम सेविपासणया । अइभत्ति पारणादणे मणोरहो अन्नहिं पविसे ॥ ११॥ जाइच्छिदाण धारा लोए कयपु Pण्णगोत्ति य पसंसा । केवलिआगम पुच्छण को पुण्णो? जिन्नसिाहित्ति ॥ १२॥ सम्मत्तादिसु जम्हा संठवणं होइ जिणुवदेसातो। ॥ ६०॥ 3॥ | सो अपरिमिओ उ तओ सुहगम्मं किंपि वोच्छामि ॥ १३ ।। मेधामतिपरिहीणावि जमिह णाऊण चरणरयणस्स । होन्ति परिवाल| णखमा तत्तो मोक्खं च पार्वति ।। १४ ॥ मिच्छत्तसेलकुलिस अण्णाणतमोहभक्खरब्भूतं । चरणरयणायरनिभं अचिंतचिंतामणीकप्पं ॥ १५ ॥ सिवसुहफलकप्पतरूं जहडियासेसणेयपडिबद्धं । णाणानओहगहणं जिणवयणं तिहुयणपसिद्धं । १६ ॥ ( युग्मम् ) एयस्स | एगदेसोऽवि भावओ भब्धजणपरिग्गहिओ । अत्थोऽअऽवितहणातो दुक्खक्खयकारणं होइ ॥१७॥ तम्हा रोएतब्वं भावेयव्वं पगाA सियव्वं च । अबक्खित्तेणेदं दुक्खक्खयमिच्छमाणेणं ॥ १८ ॥ सफलो मे तो एवं आरंभो रोयणाइजोगातो। तथऽप्पणो परस्स जय णियमातों कयं पसंगेणं । १९ ॥ धारेइ दुग्गतीए पडतमप्पाणगं जतो तेणं । धम्मोत्ति सिवगतीइ व सततं धरणा समक्खाओ ॥ २० ॥ धम्माधम्मक्खयतो सिवगतिगमणति ता कहं ताए । धारेति तओ ? भन्नति हेतुम्मि फलोवयारोऽयं ॥२१॥ हेऊ उभयखयस्स य धम्मो जं तस्समुज्जतो नियमा । कुणइ तयं तदभावे तस्साणुढाणवेफल्लं ॥ २२ ।। तस्साणुढाणफलं देवादिसु सातमेव सिय | होज्जा । तं नो धम्मरयाणवि मोक्खाभावप्पसंगातो ॥ २३ ।। उभयक्खयम्मि हेऊ को वा अनोति? झाणमह बुद्धी। इडमिदं णो है जम्हा धम्मातो ण तं पिहब्भूयं ॥ २४ ॥ जो पुण्णकम्मरूवो धम्मो तस्स क्खयातो सिवगमणं । जो पुण आतसहावो पगरिससुद्धो जण तस्सावि ॥ २५ ।। सो उभयक्खयहेऊ सेलेसीचरमसमयभावी जो। सेसो पुण निच्छयओ तस्सेव पसाहगो णेओ ॥ २६ ॥णामं| दिउवणा दविए खेत्ते काले तहेव भावे य । एसो खलु धम्मस्सा णिक्खेवो छव्विहो होइ ॥ २७ ॥ जीवस्साजीवस्स व अनत्थविव For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kcbatirth.org 1-4 धर्म धर्म संग्रहणी ।। ६१ ॥ ACTOCHES ज्जियस्स जस्सेह । धम्मो जाम कीरइ स नामधम्मो तदक्खा वा ।। २८ ॥ सब्भावासम्भावे पडुच्च लेप्पक्खचित्तमासु ।ळा धम्मवतो जा ठवणा ठवणाधम्मो स विबेओ ॥२९ ।। सच्चित्तेतरभेदस्स होइ दब्बस्स जो खलु सहावो । एसो उ दबधम्मोऽणुवउ-ट्रानिक्षेपादि तस्सहब सुयमादी ॥ ३० ॥ इह दवं चेन णिवासभित्तपज्जायतो मतं खेत्तं । जो तस्सायसभावोऽमुत्तादी खेत्तधम्मो सो ॥३१॥ जं वत्तणादिरूवो कालो दब्बस्स चेव पज्जातो। सो चेव ततो धम्मो कालस्स व जस्स जो लोए ॥ ३२ ॥ जीवाण भावधम्मो कम्मोवसमेण जो खलु सहावो । पसमादिलिंगगम्मो सोऽणेगविहो मुणेयब्वो ॥ ३३ ॥ जीवम्मि कम्मजोगे य तस्स सइ एस जुज्जई जम्हा । तं चैव ततो पुन्धि वोच्छामि सुताणुमारेणं ।। ३४॥ १ जीवो अणादिणिहणोऽमुत्तो परिणामि जाणओ कत्ता। मिच्छत्तादिकतस्स य णियकम्मफलस्स भोत्ता उ ॥ ३५ ।। जीवो तु णत्थि केई पच्चक्ख णोवलब्भती जम्हा। ण य पच्चक्खादण्णं पमाणमस्थिति मणति ॥ ३६॥ अणुमाणमप्पमाणं अणुमाणवि-18 रुद्धमादिदोसातो । आगमपमुहेसुं पुण सब्वेऽवि ण संगया पायं ॥ ३७॥ ता कहमागमपमुहा होंति पमाणा उ णज्जती कह य ? । एयं एत्थ पमाणं ण पमाणमिदं तु वत्तव्यं ।। ३८ ।। जो पडिसेहेति सिया स एव जीवो ण जुत्तमेतंपि । नत्थि | परलोगगामी भणिमो जं पुण ण एसोवि ॥ ३९॥ अत्थि पडिसेहगो इह चेतण्णविसिडकायमेत्तो तु । दाणादिफलाभावो सो (तो) अत्थि ण संगतमिदंपि ॥४०॥ पुट्ठो केणइ भोतो देवो पत्थित्ति केइ सो आह । किं धम्मिओ गतो ता वाडीएँ अणेण जंतुल्लं ॥४१॥ सिय जातीसरणातो थणाहिलासातो चेव अत्थित्ति । जातिस्सरणमासद्धं भूयसहावातो इतरंपि ॥ ४२ ॥ चित्तो भूयसहावो एताओ चेव लाभहरणादी । सिद्धति णत्थि जीवो तम्हा परलोगगामी तु ॥ ४३ ।। ॥६१ ॥ ECSEXCARE S TROCAR For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म भण्णइ ण जुत्तमेयं पञ्चक्खं जोवलब्भा जमुत्तं । जम्हा अवग्गहादी हंदि ससंवेयणपसिद्धा ॥४४॥ जायई सती मे उप्पन्नमि-लाजावासाद्धः नाम-जीवसिद्धिः संग्रहणी २ हासि णीलविनाणं । इयमणणुभूयविसया जुज्जइ नातिप्पसंगातो ॥४५॥ धम्मा अवग्गहादी धम्मी एतेसि जो स जीवो तु । तप्पञ्च॥ ६२ ॥ द्र खत्तणतो पचक्खो चेव तो अस्थि ॥४६।। भूतेहिं चेतनं कायागारादिपरिणतेहितो । तब्भावे भावातो मज्जंगेहिं व मदसत्ती ॥४७॥ * सति तम्मि ससंवेदणरूवे किन्नोववज्जती एत्थाधम्मीवि भूयसमुदयमित्तो जं तो कहं अत्थि॥४८|| जति ताव मतं धम्मो चेतन। कह ण अस्थि तो आता? । अन्नेगणुरूवेणं इमस्स जे धम्मिणा कजं ॥४९॥ बोहसहावममुत्तं विसयपरिच्छेदगं च चेतन। विवरीयसहावाणि य भूयाणि जगप्पसिद्धाणि ॥५०॥ ता धम्मधाम्मभावो कहते ? तहब्भुवगमे य । अणुरूवत्ताभावे काठिण्णजलाण किन्न भवे ॥५१॥ तम्हा ण भूयधम्मो चेतनं णो य तस्समुदयस्स । पत्तेयमभावातो आया परलोयगामि च ॥५२॥ तावजिज्जति तेहिं कह 15 तणं वा तयं ति? चितमिदं । धम्मतवित्तीए तु सिद्धं जीवस्स अस्थित्तं ॥५३॥ तद्धम्मत्तेवि सयाऽविसेसभावण कह ण अभिवती ।।" दाण हि काठिण्णादीया केसिंचि कयाइ वज्जति ।। ५४ ।। ण य तस्स तहा गमणं दिह्रसुवि संसओ य केसिंचि । णीलादितुल्लतावि हु पत्तेयमदिहितोऽजुत्ता ॥ ५५ ॥ तब्भावम्मिवि कह भिन्नवत्थुधम्मत्तणेण एगतं । चेपनस्सियरेसिं एगने कह व णाणत्तं ? । ५६ ॥ भिन्नाभिप्पायाण य देहम्मि तहा कहं अवत्थाणं ? । सयलिंदिओवलंभो जओ सती तेसु सो य कहं ? ॥ ५७ ॥ न हि | मिन्ने चेतन्ने आसन्नाणधि मिहो विभिन्नाणं । भावेसु णाणमेग लोगम्मि सती य तप्पभवा ।। ५८ ।। सिय संधाणं व तयं समुदयधम्मो ण तंपि पत्तेयं । एगतेणासंतं तदनभावप्पसंगातो ॥ ५९ ॥ जइ संतं उबलद्धी किन्नो पुवंपि? ओघता अस्थि । ण य ॥६२ ।। एवं उपलब्भइ पत्तेय तेसु चेयणं ।। ६० ॥ अह तस्सेस सहावो समुदयधम्मो तदा य होइति । पत्तेयं च असते न जीवभावोत्ति SSCCRACARE For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म जावसिद्धिः 18 वामोहो ॥ ६१ ॥ अह धम्मी तन्ततरसिद्धो अन्भुवगमम्मि य पदोसो । धणिमित्तेण तु भेया. ण य भृतेहिं तदुप्पत्ती ॥ ६२ ॥ संग्रहणी जं कारणाणुरूवं कज्जं भूयाणमणणुरूवं च । चेतनं भणियमिणं सिय सेगसरेहि वहिचारो ॥ ६३ ।। संगपि भूयसमुदयरूवं हंदि उ | सरोऽवि तह चेव । इय अणुरूवत्तं चिय भेदे तत्तंतरावत्ती ।। ६४ ॥ सिय वइचित्तं दिटुं सहावभेदेण भूतकज्जाणं । चेतनस्सवि एवं तकज्जत्तम्मि किमजुत्तं ॥६५।। जमखिलतकज्जाणं, विलक्खणं सव्वहा अमुत्तादि । तस्साहन्मम्मि (वि) य किमिह दाकोसपाणं विणा माणं? ॥६६॥ तब्भावम्मि य भावो ण परासुरचेयणो जतो काओ । दीसइ ण तत्थ वाऊ सति सुसिरे सो कह ण होज्जा ॥ ६७ ॥ण य तं कएवि दीसइ पाणापाणूणऽभावतो णो चे। णो जीवाभावातो किमेत्य माणति वत्तव्यं ॥६८॥ | तेयाभावातो ण तं उवणीते तम्मि पावती भावो । अह सो विसिङगो चिय वइसिहं किंकतं तस्स ? ॥ ६९ ।। अह नु सभावकयं | चिय ण पमाणमिहावि साहगं किंच ? । अप्पतरं दीसिज्जा तदभावे सेसभावातो ॥ ७० ॥ तह पुढवादिसमुदया किं कुसलकया | ण होइ चेतनं? । सम्बत्थ अविसेसेणं जत्तणवि कीरमाणं तु ॥ १॥ णत्थित्थीकुच्छिसमं तस्समुदायस्स ठाणमण्णंति । एवुभियपमुहाणं पावइ णणु चेयणाभावो ॥ ७२ ।। अह तधिहपरिणामो णस्थि ण जीवोत्ति णिच्छओ केणं ? । चेतनाभावेणं | जीवाभावेऽवि सो तुल्लो ॥ ७३ ।। ण य इह मज्जंगाणं न होइ अविसेसतो तु मदसत्ती । जं कुसलनिउत्ताणं नायाणुगयं न | तेणेदं ।। ७४ ॥ तदभावम्मि य भावो सिद्धा मोत्तेसु मोक्खवातीणं । आगमपामण्णातो जह तह उवरि फुडं वोच्छं ॥ ५ ॥ | सब्बेसि तओऽसिद्धो अतो असिद्धत्ति तुल्लमेवेदं । भूतेहिं चेतनं जायइ विबुहाण जमसिद्धं ॥ ७६ ॥ ण य मज्जंगेहिं इह मद| सत्ती जुज्जती विणा जीवं । तम्हा पइनहेऊदिहता तित्रिवि अजुत्ता ॥ ७७ ॥ किंचेयं मदसत्ती किं मज्जे पाणगे तदाधारे ? || %AMAKASARALA SARA ॥६॥ For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म | मज्जेज्ज सयं मज्जं जइ तम्मि उद्विगाधारे ॥ ७८ ।। जीवस्स तु मयसत्ती पाणगपक्खम्मि मज्जसंजोगे । जायइ मज्जंगेहिं तो है जीवे संग्रहणी कणातमसंगतं तेणं ॥ ७९ ॥ उक्खिवणपेरणादि सत्ती जह एत्थ देवदत्तस्स । कुंभादुक्खिवणगया दीसति तह मज्जसत्तीवि ॥ ८० ॥ जावत्वस्य | एवंपि भूतसमुदयवइरित्तगता तु चेयणा कज्ज । साहेति य वइरित्तो जो सो जीवोत्ति पावेति ।। ८१ ॥णो मज्जसत्ति मज्जंग-15 परलाक| हेतुसमुदायभिन्नवत्थुगता । साहइ इह णियकज्ज ण पाणगो जं ततो अण्णो ॥ ८२ ॥ एवंपि सासयाभिन्नवत्थुपगता तु चेयणा गामिताया8 कज्ज । कुज्जाधारादौ सति कुणतित्ति ण मज्जसत्तेवं ॥ ८३॥ सा खलु विसिट्टपाणगसंबंधगता तु चेतणा णेवं । कुणति सहा-181 श्वसिद्धिः वातो मती ण जीवभावातो का जुत्ती ? ॥८४॥ अह तु सभावो जुत्तीण स एव विवादगोयरावलो। अन्नत्थ संकमम्मि य पतीतिबाधा णय पमाणं ॥ ८५ ॥ तम्हा मज्जंगेहिं जायति मज्जं ततो य जीवस्स । मदसत्तीपरिणामो दधिसंजोगे व्ब णिद्दादी ॥ ८६ ।। एवं ण भूतधम्मो ण य कज्जं चेतणत्ति सिद्धमिदं । जस्सेतं सो आता पसाहगं चेत्थ माणमिदं ॥ ८७ ॥ जीवंतदेवदत्तस्सरीरमिच्चादि चेयणासुन्न । भूतफलत्ता घड इव न य तम्मि तयं अणभिवत्तं ॥ ८८ ॥ पच्छावि अणुवलंभा देहावत्थाएँ अह उ उवलंभो । तेहिंतो सोसिद्धो कह ? भणियमिणं पबंधेण ।। ८९॥ कायागारादिविसिठ्ठपरिणतीविरहतो ण तंतण्णो । णातविरहातोऽमाणं किमेत्थ माणेण ? तदभावो ॥९० ।। सो सज्झो ण उ सिद्धो भाणयमिणं तह य उवरिमो वोच्छं । पडिभणियं जं भणियं पवक्खमाणे भणिस्सामो ॥ ९१ ॥ भूताणं अविसेसे अण्णमि य चेतणे असंतम्मि | तकज्जे चेयन्नं विसमगतीए कहं जुत्तं ॥९२॥ ॥६४॥ जह संठाणविसेसो ओहेणं कारणाण तं अत्थि । तो जुत्तो तब्भेदो ण य चेतनं कहंचिदवि ।। ९३ ॥ भूतफलत्तं चेयण्णसुण्णया नेति एत्थ किं माणं । णो पञ्चक्खं जम्हा सदत्थविसयं तयं सिद्धं ॥ ९४ ।। अणुमाणंपि ण जुत्तं विसिझलिंगादिविरहतो लोए । es-*- MES X For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥६५॥ AACAR चे आगारोत्ति तयं ण कारणं कज्जवं णियमा ।। ९५॥ संतपि कि ण साहइ ? विगलत्तातोत्ति किं कयं तमिह ? । पाणापाणा-18 जीवे है भावा ण जीवऽभावेण को हेऊ?॥९६॥तम्मत्ताऽसिद्धीए परिणामादीणमब्भुवगमे य । जीवम्मि को पदोसो ? जेण मुहा खिअसे मतीमं!॥९७॥ लाजावत्वस्य | कहणु मुहा ? तब्भावो ण पमाणवलेण ठाविओ जम्हा । जस्सेतं सो आता परिसेसो वेस जमजुत्तो ॥ ९८ ॥ ण हि अपसिद्धे धम्मिणि परिसेसो नात (य) विरहतो एत्थं । ण चउबिहणदिपूरे अपसिद्धे तग्गतेसुं च ॥९९ ।। धम्मसुं दुतभरणच्छसिसिर-18 श्वसिद्धिः है। कलुसादगादिएK ति । कलुसोदगत्तणेणं जुत्तमयं बुद्विजण्णो त्ति ।। १०० ॥ किंतु पसिद्धेसुं चिय न एस विधिरस्थि आयमाणम्मि । तन्नो पमाणवलओ तस्सिद्धी एस वामोहो॥१०१॥ जम्हा ण तस्स धम्मो चेतण्णं एतसाहणे जतिमो । किंतुऽणुहवसिद्धमिदं धम्माइ य ज ततो णियमा ॥ १०२ ॥ अणुरूवेणं कज्ज इगस्स धम्मादिणत्ति सो य चला। भूतादत्थंतरमो तो आता तस्स* भावो वा ।। १०३ ॥ कोऽयणणुरूवगाहो ? अणुमादीहिं जतो घडादीणं । दिट्ठो भावोऽह मति तओऽवि अणुरूव एवत्ति ।। १०४ ॥ मुत्तत्तादिअणुगमा अणुरूवावगमतो य इतरोऽपि । अणुगमवावित्तीहि य सति सत्ते तम्मि किमजुत्तं ? ॥ १०५॥ सब्वेसि सामने जं संत ताण णियमहेउत्ति । घड-पड-रहमादीणं मुत्तत्तादिन्य लोगंमि ॥ १०६ ॥ पुढवीतत्ताणुगमो घडमादीणमिह णियमणे हेतू । इय अणुरूवाणुगमे चेतण्णस्सापसिद्धी उ ॥१०७॥ पाणापाणनिमित्तं सिय तं णो तस्स मुत्तभावातो । तन्वुड्डीऍ खयातो विवज्जतातो य मरणम्मि ।। १०८॥ण य पुढवादिसहावो (वं) कज्जं वा सति अभावतो तंति । अचंताणुवलद्धी के 3 माणदुगप्पसंगम्मि ? ॥ १०९ ।। णहि मधुणो मदसत्ती भणितमिणं हेतुफलविभागे य । जं णियमणति तम्हा वमिचारो वयणमेत् ॥६५॥ तु || ११० ।। ण विसेसविरुद्धोविय अप्पडिबंधातों बाहणातो य । मुत्तत्तादीण तहा संसारिणि अब्भुवगमा य ॥१११ ॥ For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir संग्रहणी अह अणुरूवो धम्मी सुतचेतण्णस्स माइबुद्धी तु । णो तव्यतिरेगेणं तस्स सुते पावइ अभावो ॥ ११२॥ण हि धम्मंतरवित्ती है जीवे दिट्ठा धम्माणमेत्थ लोगम्मि । तदभावपसंगातो न धम्मरहितो जतो धम्मी ॥११३ ॥ ण य तकज्जपि इमं तस्सक्काराणु-मजीवत्वस्य वित्तऽभावातो। तब्भावम्मिवि कज्जे सति न य हेतूवि तदवत्थो ॥ ११४ ॥ दीवा दीवुप्पत्ती ण य उभयं तत्थ दिहमह बुद्धी। जुत्तमिदमुवादाणं न हि दीवो अनदीवस्स ॥११५॥ ण य मातीचेतण्णं अणुवादाणं तयन्भुवगमे य । जदुवादाणं एयं तत्तो परलोगसिद्धि गामितायात्ति ॥११६ ।। समुच्छिमसब्भावा मतदेहेऽणेगसंभवातो य । अन्नत्यनिमित्तत्ते ण पमाणं लोकबाधा य ।। ११७ ॥ किंच पडिसेहगं 31 दसिद्धिः कि पमाणमेयस्स ? अह तु पच्चक्ख । लोगम्मि विज्जमाणत्थगाहगत्तेण तं सिद्धं ॥ ११८ ॥ तस्सेव णिवित्तीए अह गम्मइ एत्थ | वत्थुऽभावोऽपि । सा तं चिय तुच्छा वा हवेज्ज जति तं चिय विरोहो ।।११९॥ अह तु तदंतरमेसा णो तधिसएण तस्स संबंधो ।। सिद्धो कहं ततो णणु तदभावविणिच्छओ एत्थ ? ॥ १२० ॥ अह तुच्छा तीऍ कहं तदवगमो सबहा असत्तातो ? । सिद्धो य है विणाभावो तेण समं तीएं किं भवतो ? ॥ १२१ ॥ तदभावे णावगमो तब्भावे कह ण होति अणुमाणं ? । तब्भावम्मि अ (वे य अ) जुत्तं अणुमाणं अप्पमाणंति ॥ १२२ ॥ अह अणुमाणविरुद्धादिदोससब्भावतोऽपमाणं तं । णो वत्थुबलपवत्ते ते दोसा दंसियमिदं तु ॥ १२३ ।। अह अणुमाणेणं चिय पडिसेहो णो तयं तुह पमाणं । अपमाणम्मि य तम्मी का अत्था णाद (य) वादाणं है ॥ १२४ ॥ अह परसिद्धणं चिय परपडिवत्तीएँ पत्थि दोसोत्ति । परखग्गेणवि दिट्ठो विणिवादो किं न लोगम्मि ? ॥ १२५ ॥ ॥६६॥ विणिवायकरणसत्तीसम्भावे जुज्जई तओ णियमा । इय पडिवत्तिनिमित्तं च होइ कहमप्पमाणं तं? ॥१२६ ॥ जइ पडिवत्तिणिमित्तं सव्वं माणति हंत विसओऽवि । पावइ पमाणमेवं इच्छिज्जइ सोक्यारेणं ।। १२७ ॥ णिच्छयओ पुण एत्थं पडिवत्ती चेव होइ A5 For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म 18 माणं तु । तीए दोहवि भावे ण तं पमाणंति वामोहो ॥ १२८ ॥ तुल्लाणं वभिचारा तमप्पमाणति किन्न पच्चक्खं? ।।8 जीवे संग्रहणी है तेसिं विसेसभावा इतरेसुवि किं ण सो अत्थि॥ १२९ ॥ किं च पडिसेहगं तं अणुमाणं ?, अह भवे अणुवलद्धी । पच्चक्खणुमा-लाजा हिं भणियमिहं णणु पबंधणं ॥ १३० ।। आगमतो चिय सिद्धो जं उवओगादिलक्खणो जीवो । आहिंडइ संसारं सुबइ सधण्णु 51 परलोकवयणम्मि ।। १३१ ।। अस्स य पमाणभावं माणंतरयं च उवरि वोच्छामि । णासंगतमेत्तेणं वादीणं वत्थुणोऽभावो ।। १३२ ॥ण य| लगामितायाहै। संगया पवादी भूतेसुवि अह य ताणि विज्जति । णजंति य एवं चिय आगमपक्खेवि को दोसो ? ॥ १३३ ।। जो पडिसेहेइ तथा श्वसिद्धिः स एव जीवोत्ति जुत्तमेयंपि । भूतेहिं चेतनं अण्णनिमित्तं जओ ठवियं ॥ १३४ ।। संतस्स णत्थि णासो एगतेणं ण यावि उप्पातो । | अस्थि असंतस्स तओ एसो परलोगगामी य ।। १३५ ।। बालाइपज्जवातो जुवादि जह होइ पज्जयो इहयं । एवं मणुस्सभावा सुर भावो होइ परलोगो ॥ १३६ ॥ ण य पडिसहोवि इहं कप्पइ चेतण्णसंगते काए । तस्सेवाभावातो ण कायमेत्ते य सो दिट्ठो 5॥ १३७ ।। एत्तो च्चिय णाभावो दाणादिफलस्स मणप्पसादादी। इहलोगम्मिवि दिट्टा परलोगे किं न जुत्तत्ति ? ॥ १३८॥ दकिरियाफलभावातो दाणादीणं फलं किसीएव्व । तं दिढे चेव मती जसकिचीलाभमादीयं ।। १३५ ।। इहरा य किसीएवि हु पावेइ अदिट्ठमेव तं पत्थि । तस्स परिणामरूवं सुहदुक्खफलं जतो भुज्जो॥१४०॥ तदभावम्मि य मुत्ती पावइ णियमेण सव्वसत्ताणं । एवं 81 च भवसमुद्दो ण घडइ पच्चक्खदिट्ठोवि ॥१४॥ तुल्लफलसाधगाणं तुल्लारंभाण इट्टविसयम्मि । दीसइ य फलविसेसो स कहं अद्दिव ऽभावम्मि ? ॥१४२।। अद्दिढेगंतफला तम्हा किरिया इहं मता सव्वा । दिवाणगंतफला सावि अदिट्ठाणुभावणं॥१४३।। ण विवज्जय- ॥ ७॥ सम्मिवि फलं लोगविरोहा पतीतिबाधातो । थेवसुहिदसणातो तह जिणचंदागमातो य॥१४४॥किरिया ण कत्तिरहिता सिद्धो जीवोत्ति .. REACHER For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit ता इहं कत्ता । एवं धम्मियणायं विनयं वयणमत्तं तु ॥ १४५ ॥ जाईसरणं च इहं दीसइ केसिंचि अवितह लोए । पुव्वभवठवियसे- परलोयसंग्रहणी 11 वियसंवादातो अणेगभवं ॥ १४५ ॥ अह तम्मि किं पमाण ' णणु सो चिय अप्पतारगे किंति ? । बालस्सवि भावातो संवादो गामिता. दभावतो तस्स ।। १४७ ॥ अह उ जहिच्छाहेतू सो संवादोत्ति किं न इतरोवि । ण य जातिस्सरवयणे इहं पसिद्धो विसंवादो ॥ १४८ ॥ अह अम्हेहिं ण दिट्ठो कोई जाइस्सरोत्ति तो णस्थि । एवं पपियामहस्सवि अच्चतं पावइ अभावो ॥ १४९ ॥ तदभाव-12 18| म्मि अभावो पितामहस्सावि तहय पितुणोऽवि । तदभावे भवतोऽवि य पडिसहोऽसंगतो तम्हा ।। १५० ।। अह कज्जातो भावोठा पितामहादीणमेवमेवहं । किं जाइस्सरकजण पसिद्धं देवकुलमादी ? ॥ १५१ ।। बालकताणुस्सरणं तिब्बखओवसमभावजुत्तस्स । Pजह कस्सइ वुड्डस्सवि जाइस्सरणं तहा कि ण ? ॥ १५२ ।। इय संभवाणुमाणा सिद्धमिण जं च भूतवतिरित्तं । साहियमिह चेयण्ण | भूयसभावति तोऽजुत्तं ।। १५३ ॥ जो बालथणभिलासो पढमो अहिलासपुबगो सोऽवि । अहिलासत्ता जूणो जह विलयाहार अहिलासो ॥ १५४ ॥ विलयाहारभिलासो इह अणुभूयाभिलासपुव्वो तु । सोऽवि सिया एवं चिय णो पढमत्तप्पकोवाओ ॥१५५|| | सोवि ण एगतेणं इहष्णुभूयाभिलासपुब्बो तु । जमणादा संसारे तं णत्थि जतं ण अणुभूतं ।। १५६ ॥ इय पढम विनाणं द्रविन्माणतरसमुन्भर्व णेयं । विनाणत्तातो च्चिय जुवविन्नाणं व बालस्स ।। १५७ ॥ चित्तो कम्मसहावो भणिओ तत्तो य लाभहर-x Mणादी। सिद्धत्ति अस्थि जीवो तम्हा परलोगगामी तु ॥ १५८ ॥ ___ जम्हा ण कित्तिमा सो तम्हाणादीत्थ कित्तिमत्ते य (उ)। वत्तव्वं जेण कतो सो किं जीवो अजीवोत्ति ? ॥१५९ ।। जइ जीवो जेण कतो सो अन्नणंति एवमणवत्था । चरमो अकित्तिमो अह सव्वसु तु मच्छरो को णु ? ॥१६०॥ जो सो अकित्तिमो CON For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी CA सो गगादिजुतो हवेज रहितो वा ? । रहियस्स सेसकरणे पओयणं किंति वत्तव्वं ॥ १६१ ॥ तेसिं चेवुप्पत्ती किं च सहावा य तस्स कतवाद एसो उ । अपरायत्तत्तणओ कुणइ विचित्ते तओ सत्ते ॥ १६२ ।। तेसिं उप्पत्तीए को तस्सऽथोत्ति ? सेव उ ण जुत्ता । कुंभारादीण खण्डनम् |जओ ण घडादुप्पत्तिरेवत्थो ।। १६३ ।। सिय कुंभारादीया अणिहियद्विति णिहियहो य । सो इय ण जुज्जई से उप्पत्ति काउ सत्ता| !! १६४ ।। एसो य सहावो से किमेत्थ माणं? न सुंदरो य जतो। तकरणकिलसस्स तु महतो अफलस्स हेउत्ति ॥ १६५ ।। | अपरायत्तो य कहं ? जो कुणइ किलसमेत्तियं जम्हा । अण्णोऽवि परायत्तो किलसकारी तु लोगम्मि ॥ १६६ ।। अह न किलेसेत्ति मती सत्तामेत्तण कारओ जम्हा । तब्भवणतुल्लकाला सत्ता सव्वेऽवि सिद्धमिण ॥ १६७ ॥ एवं च अणादित्तं सव्वेसिं चेव हंदि सत्ताणं । तस्सत्ताणादिमती जंणो चे कित्तिमा सोवि ॥ १६८ ॥ अह सत्तामेत्तेणेव कारओ किंतु ण समकालत्ति । पच्छावि परिमियद्धाए होइ तस्सादिमत्तं तु ॥ १६९ ॥ अपरिमितद्धाए ऽवि य सहावभेदम्मि तस्स णिञ्चत्तं । पुव्वं व अकरणं पच्छतोवि तेसिं अभेदम्मि ॥ १७० ॥ एसो चेव सहावो सेऽणतद्धाए कुणइतीयाए । एगसहावत्ते सइ करणं वाणिचया भेदे ।। १७१॥ तेसिं चेव टू सहावो जं तस्सत्तामवेक्ख होन्ति तया । जायाण पुणोऽभवणा जुत्तोजायाण तु विरुद्धो ।। १७२ ।। मज्झत्थो य किमत्थं चित्त * इस्सरियमादिभेदेणं? । सत्ते कुणतित्ति सिया कीडत्थमसंगया सावि ॥ १७३ ॥ जं रागादिविजुत्तो सानु सरागस्स दीसती सोवि। रागादिजुत्तोत्ति मती ण सेसकत्ता तदनोव्व।।१७४।। जमकित्तिमोण अबो तेण ण कत्तत्ति तुल्ल एवेह । रागादिदोसभावे णेयपि विसेसणं जुत्त॥१७५।। ण हि तुल्लम्मि दियत्ते वेदज्झयणगुणसंपउत्ताणं । केसाणप्पबहुत्तं दाणम्मि विसेसणं होति ॥१७६।। रागादिदोसवसगो N॥ ६९ ॥ Pबंधति कम किलहमच्चत्थं । तप्पच्चयं तयं पुण वेदेंतो सेसतुल्लो उ ॥ १७७ ॥ अह णो बंधइ एवं ण संति रागादतोत्ति से पत्तं । QLNDAL - For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म * संतेसुवि य अबंधे किं बंधो होति सेसाणं? ॥ १७८ ॥ एसो चेव सहावो संतेसुवि तस्स जेण णो बंधो। होयसिं ण य इह | कर्तवाद संग्रहणीपज्जणुओगो सहावस्स ।। १७९ ॥ अविसिढे सम्भावे जलेण संजुज्जती जहा वत्थं । णेवं नलिणीपत्तं सहावतो एवमेयपि ॥१८॥ खण्डनम् जलसंजोयणिमित्तं वत्थे फरुसत्तमत्थि णो पत्ते । सम्भावे अविसिझेवि जुज्जती तेसि जं भणितं ॥१८१॥ इह उण बंधनिमित्तं जम्हा ॥ ७० ॥ रागादिपरिणती चेव । तब्भावे अविसिट्टे बंधाबंधाण जुज्जति ॥ १८२॥ एतेणं पडिसिद्धवा विसजलणादीवि हंदि दिहता । जं| णत्यविसेसेणं सव्वत्थ विसेसहेउत्ति ॥ १८३ ॥ सोवकमादिडज्झादि चेव सब्बत्थ अतिपसंगातो । ण य सत्तामेत्तेणं इद्रुत्थपसाहगा। तेऽवि ॥ १८४ ॥ रागादिपरिणती पुण फरुसत्तसमा विसेसहेउत्ति । अप्पाणगम्मि य जतो वेधम्मं तेण दोहंपि ॥ १८५ ॥ तब्भावो * अविसिट्ठो जदि णो थेवतरदोससब्भावो । पावेति तस्स अहवा रागादीणं अभावो तु ॥१८६।। तस्स अणादित्तं तह अन्नेसिं वाऽऽदि मत्तमहिकिच्च । भणियमिणं ण तु सिद्धं तस्सेवाणादिमत्तं तु ।। १८७ ॥ तह संतेऽसते वा कुणति तओ ते तु? पढमपक्खम्मि । किं तस्स कारक ? चरमे तु ण संगयं करणं ॥ १८८ ॥ अज्जीवो तु ण कत्ताभिप्पायाभावतो घडादिव्य । अन्नेसि सत्ताणं दोसा४ एत्थंपि पुव्युत्ता ॥१८९॥ जीवाजीवविभिन्न ण अस्थि वत्यंतरंति जप्पभवा। होज इमे खलु जीवाण कत्तिवादो ततो जुत्तो ॥१९॥ कारणविरहा परमरिसिवयणतो भणितदोससम्भावा । तम्हा अणादिणिहणा जीवा सब्वेवि सिद्धमिणं ॥ १९१ ॥ कम्मविमुक्कसरूवो अणिदियत्ता अछेज्जभेज्जो उ । रूवादिविरहतो वा अणादिपरिणामभावातो ।। १९२ ॥ छउमत्थाणुवलंभा तहेव सव्वन्नुवयणओ पायं । लोगादिपसिद्धीतोऽमुत्तो जीवत्ति णेयव्यो ।। १९३ ।। For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C + 4 धर्म | परिणामी खलु जीवो मुहादिजोगातो होइ णेयव्यो । गतीणच्चपक्खे अणिवपक्खे य सोऽजुत्तो ॥ १९४ ॥ एगसहावो नित्य पक्ष संग्रहणी दिणिच्चो स जइ सुही णिच्चमेव तब्भावो । पावइ तस्स अह दुही दुहभावो दिस्सए चुभयं ।। १९५ ॥ उभयसहावोत्ति खण्डनम् मती जुगवं वेदेज्ज दोवि सुहदुक्खे । कमवेदगस्सभावोणिच्चत्तं पावती अवसं ॥१९६ ॥ वेदेइ जया स सुहं न तदा दुहवेदगस्सभावो से । तन्निवित्तीएँ तोणिच्चो सो जं तओऽणण्णो ।। १९७ ।। अह णो तस्स निवित्ती, कह ण दुक्खी ? जहा सुही. को वा । उभयसहावत्ते सइ हंदि विसेसो स जेण सुही ? ॥ १९८ ॥ अस्थि विसेसो जम्हा स सुही सहकारिकारणं पप्प । होइ सयचंदणादी विससत्थादी य दुक्खिति ।। १९९ ।। ण य तेसि सण्णिहाणं जुगवं नो तेण होंति सुहदुक्खा । इय उभयसन्निहाणे पावइ नणु उभयभावोऽवि ।। २००॥ सहकारिकारणं से कि उवगारं करेइ किं वा णो ? । जं पप्प होइ स सुही दुहावि दोसा अणेगविहा ॥२०१।। जइ कुणइ हत तत्तो भिन्नमाभिन्न व तं करेज्जत्ति । भिमेण तेण जोगो होइ अणिच्चो अभिन्नम्मि ॥२०२।। जइ भिन्नो उवगारो जातो तत्तो किमागयं तस्स? । तत्तो पुणोवि तम्मि भिन्ने दोसोऽणवत्था उ ॥ २०३ ॥ अभिन्नम्मि अणिच्चो पावइ जीवो तहा य तकरणे । पुवातो अन्नो च्चिय भिन्नसहावो कतो होति ? ॥ २०४ ।। अह णो कुणतुवगारं तं. किं तेणं ?. तदनभावे य । किं ण तओ होइ सही?. णो अन्नं तस्सहावं चे?॥ २०५ ।। नण जंकणउवगारं सहावभेदोऽवि तरंगतो जुत्तो।* भणिओ विवरीयस्स तु णिरत्थगो सो मुणेयब्बो ।। २०६ ॥ जह खग्गसरिसवाणं अणुम्मि छदं पडुच्च निच्चम्मि । तहवि तओ अस्थि मतो अत्थि फलं पति स तुल्लो उ ।। २०७ ।। अह तस्सेव सहावो एसोऽणुवगारिणंपि संपप्प । सहकारिकारणं जं होइ सुही ॥ १॥ अहव दुक्खित्ति।२०८॥ पत्ताम्म सो सहावो किमवेति णवत्ति चरमपक्खाम्मि । पुन्यसहावत्ता सो ण सुही पुब्धिव पच्छावि !।२०९॥ + For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी S4 + ॥७२॥ गणु तं पुब्बमपतं पच्छा पत्तंति तह य एसो तु । तस्स सहावो भणितो वियप्पणा विष्फला तेण ॥ २१० ॥ पत्तम्मिअपत्तम्मि है नित्य पक्ष य तम्मि सति सबहेगरूवस्स । एगावत्थस्सद्धाभेदोविण जुज्जती तस्स ।। २११ ।। किं पुण सुहादिभेदो मज्झत्थेणंतरप्पणा खण्डनम् सम्मं । चिंतेहि ता सयं चिय ण एयमवि संगतं णिच्चे ॥ २१२ ॥ अहऽवेइ सो सहावो तस्संपत्तीए जुज्जती एतं। किंतु अणिच्चो पावइ ण यत्थि पखंतरं अण्णं ॥ २१३ ॥ अह अण्णे सुखदुक्खे अण्णे आतत्ति अणुहवो कस्स । | आबाललोगसिद्धो ? तप्पडिबिंबातों तस्सव ॥ २१४ ॥ फलिहमणिस्सालत्तगजोगातो रत्तयव्य एयंपि । तस्सेव तहापारेणामविरहतो सव्वहाऽजुत्तं ॥ २१५ ॥ तस्स य तहपरिणामे परिणामित्तं पसज्जती तह य । ल्हायादिमहावत्ता तम्मत्तं सुहादीणं ।। २१६ ।। सुहदुक्खे साततरकम्मोदयजे जिणेहि पण्णते । आयपरिणामस्वे ऊहाविन्नाणग म्मेति ॥ २१७ ॥ | एवं अणुहवसिद्धो घडपडसंवेदणादिभेदोऽवि । एगंतणिच्चपक्खे न संगतो बंधमोक्खो य॥ २१८ ।। ण य णाणं गाणिस्सा एगंतेणेव जुज्जत अण्णं । पडिवत्तादी ण तओ तस्स हवेज्जा जहऽन्नस्स ॥ २१९ ॥ हिंसादिपरिणती बंधकारणं सा य | णिच्चपक्खम्मि । एगसहावत्ता सति ण जुज्जते णिच्चभावो वा ।। २२०॥ तम्हा ण जातु बंधो कारणविरहातों णिच्चबंधो वा । बंधद्धाभेदम्मि य अणिच्चया पावती तस्स ॥ २२१ ॥ तदभेदम्मि य एगम्मि चेव समयम्मि सव्यबंधाती । बिइए अबंधगत सहावभेदाउ तोऽणिच्चो ॥ २२२ ।। हिंसादिविरतिपरिणती मोक्खस्सवि कारण तु जा सिद्धा । साऽविह वियप्पियन्धा एवं जहसंभवं सम्म ।। २२३ ॥ तत्तोह परिणतीओ भिन्ना एताओ होति तो तस्स | पावइ उभयामावो भावम्मि यतिप्पसंगो उ ॥२२४॥ अण्णस्म बंधमोक्खा ण अप्पणो बालवयणसरिसमिण । तस्सवि य णिच्चपक्खे एमेव ण संगता ते उ ॥२२५॥ परिणामम्मि य णणु RA For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir धर्म || तस्स चेव जुज्जति किं ततोऽण्णेण । अपमाणेणं परिकप्पितेण अण्णाणपिसुणेणं ? ॥ २२६ ।। इय दिट्ठादिट्ठविरोहभावतो सव्वव-31 अनित्य मंग्रहणी इत्युविसओ उ । एगंतणिच्चपक्खो मिच्छ होई तव्यो ।। २२७ ।। है. पक्ष खण्डनं खणिगो चेगसहावो स कहं वेदेइ दोवि सुहदुक्खे? । वेदगभेदाम्म य सब्बलोगववहारवाच्छेदो ।। २२८ ॥ मुहितो स एव दुहितो पुणोऽवि तस्साहणत्थमुज्जमह । पावेइ किल स एव तु मुमरह य मए कयं एतं ॥ २२९ ॥ देहा हाय पुवकर्य कम्म इह अज्जियं च अण्णन्थ । परमपदसाणत्थं कुणइ पयासं च उवउत्तो।। २३० ॥ मेत्तादिसुगुण पगरिसमब्भासातो य पावए कोइ । एमादिलोगसिद्धो णणु ववहारो कहं तत्थ ? ॥ २३१ ।। अन्नो वेदेइ मुहं अपणो दुक्वं पवत्तए अण्णो । पावेति वेदती सुमरती य पनेयमनोतु ॥ २३२ ।। अन्नो करेइ कम्मं फलमन्नो भुंजती तु मोक्खत्थं । कुणइ पयासं अनो पावेति य तंपि अण्णो तु ॥ २३३ ॥ अच्चंतभेदतो इय सयोऽवि ण संगतो ततो सम्मं । मोत्तूण दिद्विराग आलोएज्जा बुहो एतं ।। २३४ ।। संताणातो अह सो ववहारो सब एव जुत्तो तु । सो संताणीहितो अनोऽणनोत्ति वित्तव्यं ।। २३५ ।। जइ असो किं णिच्चो किंवा खणियोत्ति ?. णिच्चपक्खम्मि । होइ पतिनाहाणी इतरम्मि उ पुब्बदोमा तु ॥३६ ।। अह संताणो णेओ ज इह विसिट्ठो उ हेउफलभावो । तत्तो सो ववहारो णो णाणत्ताविसेसातो ॥२३७॥ अवहिखणातो 3|संताणतरवत्ती जहा खणो भिन्नो । कज्जक्खणोऽवि एवं तत्तो को वा विसेसो तु ? ॥ २३८ ॥ अत्थि विसेसो हेतुफलभावतो विरहओ य तम्सेव । एगंतखणियपक्खे णियमेण ततोऽवि हुण जुचो ॥२३९॥ कह कारणं निरन्नयणटुं कज्जस्म साहगं होति ?। ।७३ ॥ णाभावातो भावी जायति पुचिव होज्जा तु ॥ २४० ॥ निरवेक्खत्ता ण य इह वइसिद्धं जुज्जते अभावस्म । कारणपुब्वत्तम्मि य* ROCAL For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4-% कज्जस्स उ अन्नयपसिद्धी ॥ २४१ ।। कारणविणासकज्जुप्पादा जुगवं तु होति णातव्या । तो णस्थि भणियदोसा तुलाएँ णामाव- है अनित्य संग्रहणी I णामच ।। २४२ ॥ कारणकज्जाणं णणु णासुप्पादा पुढोऽपुढो वावि । पढमे ण तस्स णासो ण य उप्पादो तु इयरस्स ॥ २४३ ॥ पक्ष खण्डन् चरमम्मि य तब्भावो तेसिं तत्तो ण हेतुफलभावो । जुगवन्भावाओ चिय सब्बेतरगोविप्लाणब्व ॥ २४४।। उवचरियत्था किरिया॥ ७४॥ सद्दा इतरेसि तुलकालत्ता । किं न वियप्पेहेवं भेदाभेदुब्भवा दोसा? ॥ २४५ ॥ अह उरुणट्ठितिधम्मा भावो णासोत्ति जणु तद द्वाए । कज्जुप्पादम्मि पुणो स एव पुब्बोदितो दोसो ।। २४६ ।। अह धम्मिधम्मभावो एसो परिकप्पितो तु णातव्यो । उभयाभावाओ णणु एवंपि ण हेतुफलभावो ।। २४७ ।। अह धम्मिधम्मभावो एत्थं परिकप्पितो ण पुण धम्मी । ण हि सो सहावविकलो सति धम्मे तस्स कह भावो ? ॥ २४८ ।। सिय कारणं विसिह पडुच्च उप्पज्जते य कपि । एस पडुच्चुप्पादो सहावसिद्धो मुणेयब्बो ॥ २४९ ॥ तं णाम पडुच्चिज्जइ जं उवगारि तयं तु किं कुणइ ? । किं तदभावविणासं किं तं उभयं अणुभयं वा ? ॥ २५० ।। णो तदभावविणासं अहेउगो उ स तुम्ह इह्रोत्ति । करणेऽपि य अविरोहो जेणऽन्नो तस्स णासोत्ति ।। २५१ ॥ तदभावे य अणढे कह तब्भावो ? । अ(ण)स्थित्तम्मि य (जं) तस्स अस्थित्तं होइ इतरस्स ।। २५२ ।। अह कारणं चिय तउ ण तु अण्णो ४ कोइ माणविरहातो । तं पुण कुणइ तयं चिय तहासहावातो भणियमिणं ॥ २५३ ॥ तं सत्ताऽसत्ताभयविवज्जयसहावजणणसलिं तु ।। होज्जा ? न सव्वपक्खेसु संगतो अब्भुवगमो ते ।। २५४ ॥ वेफल्लादिपसंगा तदभावपसंगमादिदोसाता। अन्भुवगमबाहातो असं-14 भवातो य णातब्बो ॥ २५५ ।। ण य तं तदेव सत्तस्सभावजणणस्सहावगं जुत्तं । पुब्धमसत्तसहावं एवं पडिसिद्धमेयं तु ॥ २५६ ॥ एतेणं चिय खित्ता मूलविगप्पाण पच्छिमा दोवि । जं तुल्लजोगखेमा भणियविगप्पेहिं ते पायं ॥ २५७ ।। सिय उप्पणं भावो ततो AA% For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit धर्मय चिंताए होइ विसउत्ति । दीसह य तं तउच्चिय णिरस्थिगा तेण एसति ॥ २५८ ।। उप्पन्नं चिय भावो इदमेव कहति जुञ्जती | अनित्य संग्रहणी चिंता ? | तब्बाधियं ण सिद्धं तुह सामण्णादि दिट्ठ ता ॥ २५९ ॥ ता इय जातिवियप्पा उज्झयवाऽणुभूयमाणम्मि । सज्जम्मिलपक्ष खण्डनं | हेउफलभावमोहठाणाय ते किंच ॥ २६०॥ कि तस्सत्तामतं किंतक्विरिय व किंव तदभावं । आसज्ज होति कज्ज? ण संगर्य। सव्वपक्खसु ॥ २६१ ॥ जइ तस्मत्तामत्तं आसज्ज हवेज्ज णणु तदद्धाए । उवार ण तम्स तत्ता ज णावेक्खा ततो जुत्ता ।। २६२॥3॥ Mतकालम्मि य भाव सइ कह तस्सेगकालभावित्ता । हेउफलभावभावो? भावे य अतिप्पमंगो उ॥ २६३ ।। तकिरिया चुप्पति मोत्तु | तस्सेब पत्थि अप्णा तु । एत्थमभावाम्म य पुब्यवणिया चव दोसा उ ।। २६४ ॥ जत्तो च्चिय तस्सत्तामे अत एवऽनंतरद्धाए । होइ तदद्धाए पुण तब्भावे कह णु तदवेक्खा ॥ २६५ ॥ कतगत्तमेत्तसत्ताणुबधि अणिच्चत्तणं ण एवं तु । तदभेदातात्ति मती भेदे अब्भुवगमो दुट्टो ॥ २६६ ॥ अह तस्मेस सहावो अणंतरखणम्मि होइ जे कज्ज । इयरस्सवि एसोच्चिय एतंपि न जुत्तिपडि बद्धं ॥ २६७ ।। जं तक्खणभवणम्मिवि णिबंधणं तस्स तस्सहावो तु । तदभावम्मि य भाव अतिप्पसंगो बला होति ॥ २६८ ।। ना बितियक्खणे य कज्जं ण य सो तम्मि खणिगत्ततो सिद्धं । ता कह ण तस्स भावो? भावेवितरस्स खणभंगा ॥ २६९।। अज्जायस्सियरस्सवि एस सहावोनि दुग्घडं जाए । किं तेण ? सो चिय तओ सोवि असिद्धो तु भणियामिणं ॥ २७० ॥ वेसिहॅपि न जुज्जति खणिगत्ते कारणस्स सहजाणं । णो इच्छिज्जइ जम्हा विसेसकरण (णो) कहंचिदवि ॥ २७१॥8॥ ७५ ॥ भिनद्धाणमुवादाणकारणस्साविसेसभावम्मि । कत्तो फले विसेसो, ण य सो तस्सावि इय जुत्तो ।। २७२ ॥ अह सोऽणादी ण घडई एवं चिय समहा अणादोवि । जुगवेतरभावितं विणा ण जमणादिपक्खोऽवि ।। २७३ ।। अह तस्स सहेऊते। एम सहावात्ति For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्य सिद्धिः -MS जेण सहकारी । पप्पाकिंचिकरंपि हु फले विसं फुडं कुणइ ॥ २७४ ॥ माणं किमत्थ तीरति एव सहावंतरंपि कप्पेउं । अत्थाणप- संग्रहणी. खवातो य तस्सवैक्खाणियोगम्मि ।। २७५ ।। इय सहकारिकतो जण विसेसो कारणस्स उववज्जे । तम्हा विसिट्टसद्दो णिरत्थगो एत्थ णातव्यो । ७६।। तदणंतरं च भावे बहण अविसेसतो कुतो णियमो । इयमेव अस्स कज्जं? तस्सेव उ तस्सहावत्ता ।।२७७।। तप्फलजणणसहावं तं चिय कारणं ण अण्णंति । कज्जंपि य तकारणजण्णसहावं तयं चेव ।। २७८ ॥ कज्जंतरेब अणुगमविसेस४) संपायणाएँ रहियस्स । तप्फलजणणसहावो ण थेवसद्धाएँ विस उति ।। २७९ ।। असति य तहोवयारे कहंचिदवि कारणंतरकए च। कपि य तकारणजन्नसहावंति चितमिदं ॥ २८॥ तं चव अहुवयारो किं नो अग्नं? अतस्सहावत्ता। तस्साहव्वं किंकयमह हेतुसहावकतमेव ॥ २८१ ॥ को तस्स णणु सहावो ? तदणंतरमेव जं तयं होइ । कि नो अन ? किं तेण ? हंत वामोहहेतुत्ति 18॥२८२ ॥ तं चेव तदणुरूवं को वामोहोत्ति ? किं न अण्णंपि? । किवा अणुरूवत्तं तद्धम्माणुगमविरहम्मि ? ॥ २८३ ॥ कज्जाणं अखिलाणं असेसकारणविसेसरहियाणं । जो तस्सभावभेओ वइमेत्तातोऽणियमहेतू ।। २८४ ।। जं अमहावि तीरइ वइमेत्तणं भणिउं स मिच्छत्ति । इय मोससम्मनाणं न कोसपाणं विणा एत्थ ।। २८५ ।। किंच पडुच्चेदमिणं जायइ माणं किमेत्थ ? ण हि एग। खणियत्ताओ मिनभावद्गगाहिणो णाणं ।। २८६ ॥ एतो यकज्जकारणभावो कहमवगमस्सऽभावातो?। जो भणिओ पच्चको ७६॥ कखाणुवलंभिच्चादिगम्मोऽयं ।। २८७ ॥ तप्फलजणणसहावं तु कारणं तं च घेप्पड़ तहेव । कज्जं पुण तकारणजण्णसहावंति तंपि * | तहा ॥ २८८ ॥ धृमजगणस्सभावो (वा) णलगाहगमो जमेत्थ विण्णाणं : जं तमणलजन्नसहावधूमविण्णाणहेउत्ति ॥ २८९ ॥ दएतो इदंति मिद्धे नो अनाउत्ति अन्नयासिद्धी । कनोवि कारणा किंचि कज्जमिय किं न जुत्तमिह ? ।। २९० ॥ विहितुत्तरमेवेदं । CRE ने- ॥ ६॥ For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie धर्म 18 अतिप्पसंगादिदोसभावाती । सो चा सहावातो णियमणिमित्तातो पडिसिद्धी ।। २९१ ।। ण य मात्तु तहसहावं तदभावे णियमणं सामान्य संग्रहणी दातु भावाणं । णय वत्थुमहावावि हुपज्जणुजोगस्स विसउत्ति ॥ २९२ ।। अग्गी डहति ण तु णहं सहावतो कागजुज्जते एत्थं ? ICI सिद्धिः | एसा ण विपडिवत्ती मत्नामेत्तेण कज्जेवि ॥ २९३ ।। सत्तामेत्तण य से दाहगभावम्मि कि न तेलोकं । डहति ?ण हि तस्सभावो तउत्ति माणं परं सद्धा । २९४ ।। दीसह किंचि दहतो ण तु सधं ता कहं भवे सद्धा? । सत्तामेत्तविसेसा एयंपि विरुज्झई मृढ ! ॥ ७॥ | ॥ २९५ ।। डाहम्मि णो विगाणं कह घडई सोत्ति ? एत्थ सव्वेसिं । एत्थवि पतिणियतो च्चिय तस्स सहावो णिमित्तं तु ॥२९६॥ होउ स सत्तामेत्तेण जुज्जती णो अतिप्पसंगातो । मोगमाभनिवेसं वत्थुसहावं ण चिंतेमि ॥ २९७ ।। सनामेत्तेण जलं दृरत्थंपि हु तहासहावातो । डहति जलणो य पहाणं कुणइ ण एवं नु का जुत्ती? ॥२९८।। णो तस्सेस सहावो फि मागं एत्थ ? लोगसंवित्ती। सा अभएवि अन्भुवगमचिंताए य कितीए ? ॥२९५।। कि चाणलविण्णाणं तज्जन्नसहावधृमणाणस्स । हेतुति तत्थ चिंतं तण्णाणं णणु तहा किह णु ? ॥३०॥ एगपडिवतिरूवं तं च एतो इदंति वइमेत । तज्जण्णसहावत्तावगमम्मि यऽतिप्पसंगोत्ति ॥ ३०१ ।। अणलादिअणुभवातो तह होइ वियप्पवासणागेधो । तत्तो तहा वियप्पो तत्तो एत्तो इदंति ठिई॥ ०२॥ णणु सो विणस्सरोचिय जओ तओ कह णु जुज्जड़ ठिई भे? । सा तह दीहाणुभवा अणुसंधाणादभावम्मि ।। ३०३ -।। दीहाणुहवत्तं से लक्खिज्जइ तविरो| हिविरहाओ । सरिसावरावरुप्पत्तिविप्पलंभाओ ण उ तत्थं ॥ ३०४ ॥ एवंडपणुहवबाहा अदिपरिगप्पणा य नियमेण । वितहत्ते य ॥ ७७ ।। इमीए सव्वं चिय पावई वितहं ।। ३०५ ।। खणिगं वत्थु अविगप्पगं च णाणंति एवमादीयं । जम्हा इमाएँ सिद्धं विचारणा जन | अन्नेण ।। ३०६ ॥ ॥ वणिधियप्पबुद्धी एयं एवंति अवगमसमत्था । अवियणभावउ च्चिय पयप्पणेऽतिष्पमंगोत्ति ॥ ३०७॥ For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म संग्रहणी. || 26 1! www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तह णिच्छयबुद्धीए णत्थि तओ न खलु सावि तव्विसया । उप्पज्जए य कस्सह तदणंतर मण्णहावि तई ॥ ३०८ ॥ जा वत्थुणुहवसहगारिवासणाबोधओ तहा होई । तत्थेव सा जओ तं वत्थं णियमा तहच्चैव ॥ ३०९ ॥ जा पुण अणाइमिच्छावियप्पकयवासणाविबोधाओ । जाय धुवादिविसया साप्तत्था तस्मऽजुत्तीओ।। ३१० ।। तस्साऽजुत्ती किं रायसासणं आउ णिव्त्रियप्पेणं । अग्गहणं किं वाऽऽलोयणाए तस्सेव तु अभावो १३११|| जह रायसासणं ता तदनणिवसासणेण वभिचारो। आणवह य निच्चादी भागवयाईवि तह बोहा ॥ ३१२|| अह णिन्त्रिगप्पगेणं अग्गहणं एत्थ णिच्छओ कह णु ? । जं तमवबोधमेत्तं संगहिया सगं चैव ॥ ३१३ ॥ आलोयणाएव | कहं तस्साभावो ? बियप्पनाणाओ । जम्हा एवं तई पवत्तई तं च भ (तई पवत्तइ तं च भवतां मए) मिच्छा ||३१४|| अह तस्सेवमजुती या अन्थकिरिया विरोहाओ । खाणगे तीए विरोहो णिच्चे उ ण जुज्जई कहवि ।। ३१५ ।। खणिगते सदसत्तं तस्सुप्पाओ तओ विणासो य । णस्स तओ भावो सह णासे हि हि णु ? || ३१६ ।। ण य तद्धम्मागमो कहंचिदवि अस्थि जं ततो पियमो । वहमेतको सपाणादिसहगम्मो मुणेयच्त्रो ||३१७|| अह उत्तरावरडियखणदुगगहणीमह दिस्सते सक्ख । किं तेण? जंण तेसिं सोवगतो हेतुफलभावो || ३१८ ।। ण य सामनं पतिवत्थुसव्वहा भेदवादिणो किंचि । अस्थि वियारिज्जतं जस्म बला होइ तदवग्रमो ।। ३१९ ॥ पतिनियतेगसहावा भावा सध्धे मिहो विभिष्णा य । सव्वत्तो सव्वेसिं अविसिद्धा तेण वाबत्ती ॥ ३२० ॥ जड़ कोइ कुतो भवे अव्वावित्तो कहंचि तो होज्जा । वावित्तीण विसेसो तत्तो सामभववहारो ।। ३२१ ।। ण य कोइ कुतोह कहंचि विज्जते भावतो अभिन्नो उ । तुल्लत्थसाहगत्ता तहवि विसेसो सहावातो ।। ३२२ ।। अविसिट्ठम्मि तु भेदे तुलत्थपसाहगत्तमेवेह । ण घडइ गोघ तुलत्थमाधगत्तप्पसंगातो ।। ३२३ ।। तुलत्थसाधिगा अह सत्ती णो तेसि जेसु ता अन्थि । ते चैव तहाभूता सा एगा वा For Private and Personal Use Only सामान्य सिद्धिः || 26 || Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म 18 अगति ? ॥ ३२४ ॥ जति एगा कह मिनेसु वट्टते ? किं च तह ण सामण्मं ? । अच्चंतणेगपक्खे सोचव अतिप्पसंगो तुला जीवस्य संग्रहणीIG॥ ३२५ ।। मेयम्मिवि सा तुल्ला वं अण्णत्ति वमविसिट्ठो। भावाण हंत भेदो फलभेदाभेदओ णेओ ।। ३२६ ।। तुल्लत्थसाधिगा परिणामिता IMIइह सत्ती तम्हा समाणपरिणामो । सो भावोत्ति सहावो तद्धम्मो चव एसोवि ।। ३२७ ।। एसो कहंचि भिन्नो संवेदणवयणकज्जता है। णेओ । अवरोप्परं समाणत्तमण्णहा सव्वधाऽजुत्तं ।। ३२८ ॥ सिय वासणातो गम्मइसा वासगवासणिज्जभावण । जुत्ता समेच्च ॥ ७९ ॥ दोण्हं ण तु जम्माणतरहतस्स ।। ३२९ । मा वासगातो भिण्णाभिण्णा व हवेज्ज? भेदपक्खम्मि । को नीएँ तस्स जोगा? तस्सुण्णो वासइ कहं च? ॥ ३३० ।। अह णो भिन्ना कह तीऍ संकमो होई पासणिज्जम्मि ? । तदभावम्मि य तत्तो णो जुत्ता। वासणा तस्स ।। ३३१ ।। सति यण्णयप्पसिद्धी पखंतरमो य पत्थि इह अन्नं । परिकप्पिता तई अह ववहारंगं ततो कह णु ४ ।। ३३२ ॥ एगंतखाणगपक्षेवि जुज्जते णो सुहादिजागेवं । अस्थि यजं तो आया परिणामी होइ णायब्यो ।। ३३३॥ बालादिदरिसणातो सुहादिजोगातो तह सतीओ य । संसारातो कम्मफलभावतो मोक्खओ चेव ॥३३४॥ वालो होइ कुमारो सोवि जुवा मज्झिमो य थविरो य । एगंतनिच्चपक्खे अणिच्चपक्खे य कहमेयं ? ।। ३३५ ॥ एगसहावत्ता सति निरन्नयत्तेण कारणाभावा । निच्चे धम्माजोगो भेदादिविगप्पिओ नेओ ।। ३३६ ॥ परिणामे पुण जे धम्मचम्मिणो इह कहंचि भेदो उ । एसो अणुहवसिद्धो माणं च तो अबाधाओ॥३३७॥ सम्बेसि दबपज्जवदुगरूवोऽणुहवो विसेसेणं । जं न मिहो ते भिन्ना भुवणम्मिविका॥ ७९ ॥ सबहा अस्थि ।।३३८। नय बाहगं पमाणं इमस्स लोयम्मि दिस्सति कहंचि । अह अत्थाणिदियं से ण साहगं तंपि का जुत्ती? ॥३३९।। भूतत्थगाहगं जं तमणिंदियं एस चेव च तउत्ति । जुत्तीएँ अन्नहा जं न जुज्जए वत्थुसम्भावो ॥३१०॥ अणुवित्तिं वावित्ति AM For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म - % विहाय ण य उभयरूवता जम्हा । भेयामेयविगप्पो तम्हा णेओ असव्वातो ॥ ३४१॥ धम्मम्मि नियत्तंते जइ णो दव्वं नियत्तई। जीवस्य संग्रहणी. भेओ । अह उ णियत्तइ एवं तओ अमेउत्ति कहमुभयं ? ।। ३४२ ॥ उभयं अणुहवसिद्धं भणियमिणं अणुहवोऽवि कह तम्मि ? परिणामिता लंघद वियप्पजुयलंति हंत तो सो नदाभासो ।। ३४३ ॥ मोत्तृणमणुभवं किं पमाणभावो वियप्पजुयलस्स ? । तदणुहवस्सवि एवं | अपमाणत्तम्मि किं तेण? ॥ ३४४ ॥.तहवि य पमाणभावो जड़ तस्सितरस्स णेति का जुती ? । अह उ अबाहियोधत्तणं न इय- | रेण चाधातो ॥ ३४५॥ तस्स तु ण तेण वाधा तदभावे तस्स चेवऽभावाओ। एगंतनिच्चनिच्चम्मि भाविओ चेव सो किंच ६॥ ३४६ ॥ धम्मे नियत्तमाणे नियनए इह कहंचि दव्बंपि । तम्मि य अणियर्तते ण णियत्तति सबहा सोऽवि ॥ ३४७ ।। दीसह | पच्चक्खं चिय एवं वक्कम्मि उज्जुए होते । अंगुलिदबम्मि परं भावेतव्वं इहेकेणं ।। ३४८ ॥ वक्कत्तमंगुलीओ कहंचि अभि | ति तीऍ जोगाओ। भिन्नपि अवत्थंतरभावे तत्तो नियत्तीओ ॥ ३४९ ॥ तं चिय कहचवत्थंतरेवि तं तुल्लबुद्धितो हंदि । एगतेदाणऽन्नत्ते भिज्जेज्ज इमीवि तह चेव ।। ३५० ॥ भिन्नच्चिय अवियप्पा एगतेणेव एस तु विगप्पो । तुल्लत्ति अप्पमाणं गिहीतगहणा | दिदोसाओ ॥३५१।। न हु ता गिहीतगाही तस्साभावा तदाऽविसयतो उ । अज्झारोवेणवि को गेहइ तं तम्मि तदभावा ॥३५२॥ |अत्तुल्लं अविगप्पं न य दिटुं भावतो जओ तंपि । ता कहमज्झारोवो नियमेणऽनस्प किं नेवं ? ॥ ३५३ ॥ संकारविसेसातो सव्व1.८०॥ मिण हंदि तम्मिावि समाणं । जं सोवि लक्षणं वा होज्ज वियप्पो व ? कि अन्नं ॥ ३५४ ॥ किंचोवादाणं से ? तं चिय जइहै। ॥८० | वत्थुणो कहमवत्थु ? । तपि हु कहंचि चत्यु तो...णावत्थू विरोहो वा ॥ ३५५ ।। अह सो निधिसओ चिय ण पयट्टइ किमिह 15 छट्ठखंधेवि । तहसणुत्तरद्धं च किं ततो तप्पवित्ती य? ॥ ३५६ ।। जद्द अन्नमविसओ से इय तंपि ण जुज्जती ततो नियमा । तत्तो ४ % % For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म संग्रहणी ॥ ८१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तम्मि पवित्ती संपत्ती चैव तेणेव ॥ ३५७ ॥ अह सो तप्पडिबद्धो वत्थावत्थूण को णु पडिबधो ? । सोवि हु कहंचि वत्थु तो नावत्युं विरोहो वा ॥ ३५८ ।। तम्हा अवग्गहादी कहंचि भिन्नत्थगाहगा णेया । अगुहव संघाणेणं एवं ववहारसिद्धीओ || ३५९ ।। एवंपि किंचि नियमा णियत्तती तस्स ण पुण अनंति । एतेसि कहमभेदो उभयनिवित्तीय वाऽणुगमो १ ।। ३६० ।। तस्स नियतीत जम्हा अतो न भेदोति सन्बहा मूढ ! । सति तम्मि कोऽणुजोगो ? तस्सत्ति अष्यसंगो य ।। ३६१ ।। जइ तस्स कह नियतति ? कहंचि जं तस्स तो ण दोसोऽयं । मोतृणमभिनिवेसं संवेदणमो न चिंतसि ? ।। ३६२ ।। ण य देहादेगंतेण एम अनो उवग्गहे तस्स । सुहजोगा मुत्तस्स व न सिया एसो उ अन्नते ॥ ३६३ ।। ण य सव्वगतो जीवो तणुमेते लिंगदरिसणाओ तु । सव्वगते संसरणं कह ? तेग सरीरमाणो सो ॥ ३६४ ॥ आसज्ज कुंथुदेहं तत्तियमेत्तो गयम्मि गयमेत्तो। ण य संजुज्जति जीवो संकोयविकोयदोसेहिं ।। ३६५ ।। जह दीवो महति घरे पलीवितो तं घरं पगासेति । अप्पत्पतरे तं तं एवं जीवो सदेहाई ॥ ३६६ ।। णशु लोगंते णाणं जायइ इह तं च जेणमायगुणो । ण य अव्वा य गुणा तेण ततो सव्ववावित्ती ।। ३६७ ।। नियदेससठियस्सवि रविणो किरणा जहेव अपि । उज्जोययंति देसं तहेव एयंपि नायव्वं ।। ३६८ ।। ते तुल्लं सव्वदिसं नाणं पुण होति एगदेसम्मि । कम्मघणपडलछा दियरूवस्सेवं न सुद्धस्स ।। ३६९ ॥ किरणा गुणा ण दव्वं तेसि पगासो गुणो ण यादव्वो । जं नाणं आयगुणो कहमद्दव्वो स अन्नत्थ ? ॥ ३७० ॥ गंतुं ण परिच्छिदइ नाणं णेयं तयम्मि देसम्मि । आयत्थं चिय नगरं अचितसत्तीउ विनेयं ॥ ३७१ ।। लोहोवलस्स सनी आयत्था चेव भिन्नदेसंपि । लोहं आगरिसंती दीसह इह कज्जपच्चक्खा ॥ ३७२ ॥ एवमिह नाणसत्ती आयत्था For Private and Personal Use Only जीवस्य | सर्वव्यापितानिरासः 11 28 4 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie मि धर्म · चेव हंदि लोगतं । जइ परिबिंदइ सम्म को णु विरोहो भवे एत्थं? ॥ ३७३ ।। लोहावलछायाणू घडित्तु लोहेण तो (त) पलट्टति में जीवस्य संग्रहणी. (पकडेति)।माणं किमेत्थ ? अन्नह तदभावो चेव ते बुद्धी ।। ३७४ ।। जत्तियमेत्ते खेते संत तु ते तेत्तियाउ तं गई। कडेन। शरीर | उ सत्तीए सव्वं भुवणोयरगयंपि । ३७५ ॥ परिमियविसया सत्ती जम्हा दोसो ण एस तो होइ । छायाणवोवि अन्नह सर्व गंतूण[] | कड़ेज्जा ।। ३७६ ॥ तस्सेव एस सत्ती जे परिमियदेसगामिणो हंदि । छायाणवोवि सा पुण तत्थरधा चव कज्जकरी ॥ ३७७॥ 8/नो तस्स तन्निमित्तो तम्मि देसम्मि तेसि सम्भावो । किंतु तदविणाभृता सहावतो चेव ते हॉति ॥ ३७८ ॥ तसि खलु जो सहावो | तस्सव णण सेब होति सत्तित्ति । अविणाभावम्मि य से इतरम्मिवि अत्थि सामत्थं ॥ ३७॥ अब्भुवगम्माणूणं तहभावं भणितमेतमो एत्थ । तद्देसम्मि य तेसि नियमा सत्तंपि दु असिद्धं ।। ३८० ।। सत्तीण य उक्करिसो दीसइ जे कज्जओ इह विचित्तो । लोगतावगमोवि हुन विरुज्झइ तेण तस्सत्ति ॥ ३८१ ॥ केई केवलनाणं गंतूणमलोगमवगच्छती तन्नो । जम्हा ण त ( यs) स्थ कस्स (त्थ) इ दिटुं अवगुणग्गमणं ॥ ३८२ ॥ दब्वगमणंपि जुज्जइ न कहचिवि तत्थ धम्मविरहाओ । तम्हा आतत्थं चिय | सव्वं परिछिदइ तयंपि ।। ३८३ ॥ एवं सरीरमेत्तो आया सिद्धो ण याणुमित्तादी । जुगवं सव्वसरीरे चेतण्णासंभवाओ य ॥ ३८४ ।। करचरणादिसु जोगा ॥ ८॥ न य अपदेसोत्ति होइ विडेओ। अपदेसम्मि य पावइ करचरणादीणमेगतं ॥ ३८५ ॥ जो चेव उ करदेसे स एव जं * होति चरणदेसेवि । तो एग भेदे सपदेसो णियमतो होइ ।। ३८६ ॥ सो य असंखपएसो लोगागासप्पदेसतुल्लोत्ति । जइ एवं ॥ ८२ दिसंकुडिओ थेवपएसेसु कह चिह (ठा) ति? ॥ ३८७ ।। जह खलु महापमाणो णेत्तपडो कोडितो णहग्गम्मि । तम्मिवि तावति ते + For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म ||च्चिय फुसइ पएसे ण इय जीवो ॥ ३८८ ॥ देसे संपुनाणं अभावतो तस्स सुहुमपरिणामा । ठतेगम्मिवि बहवे बादरतो व पड-18 | जीवस्य संग्रहणी दिदब्वे ॥ ३८९ ॥ पगतमिदार्षि भणिमो कयं पसंगेण तं पुण इमं तु । परिणामी खलु जीवो देहावत्थाणभेदाओ ॥ ३९० ॥ एवं शरीर सुहादिजोगो न अनहा जुज्जए सती चेव । संसारो कम्मफलं मोक्खो य पसाहियमिदं च ॥ ३९१ ॥ पच्चक्खपसिद्धातो सयल-11 मात्रता ॥८३॥ व्ववहारमूलभूतातो । बझंतरभेदाओ अण्णयवइरेयभावातो ॥ ३९२॥ जह कंचणस्स कंचणभावेण अवडियस्स कडगादी । उप्पअंति लाविणस्संति चव भावा अणेगविहा ।। ३९३ ॥ एवं जीवद्दबस्स दव्वपञ्जवविसेसभइतस्स | निच्चत्तमणिच्चत्तं च होति नाओवल-3 भंतं ।। ३९४ । कारणधम्माणं जइ णो कज्जे संकमो कहंचिदवि । तो कह णु तस्स कजं तं तस्स च कारणं इतरं ? ॥ ३९५ ॥ पुढवीधम्माण पडे ण संकमो जह तहेव य घडेवि । तुल्ले असंकमे किं घडो तु कजं नतु पडादी? ॥ ३९६ ॥ अनं च दलविहीणं कह जायति किं दलंति से बच्चं ? । जइ कारण अणुगमो अह णो अदला हु उप्पत्ती ॥ ३९७ ॥ अणियत्ते य कहंची अविणाभूयम्मि तस्स परिणामे । जातमिणति न जुज्जइ अदरिसणं तह य इतरस्स ॥३९८॥ अभितरेवि कज्जे एवं चिय भावणेह कायव्वा। तब्भावम्मि य सिद्धो परिणामी हंत जीवोवि ॥३९९॥ णिरहेतुगो विणासो णणु भावाणं तओ य खणिगतं । जुज्जइ य अवस्थाणं सहेतुगे इह विणासम्मि ॥ ४०० ॥ जाव ण * विणासहेऊ ता चिट्ठति सति य तम्मि उ विणस्से । न य ते घडत्ति (घडंति) सम्म चिंतिजंता कहंचिदवि ॥ ४०१ ॥ किं | कुणइ नासहऊ ? जओ विणस्सं तु किं तओ अनं? । किं तदभावं किं वा न किंचि नणु एत्तिगा भेदा ॥४०२॥ Pन विणस्सरमेव जम्हा सहेउतो चेव सो पसूतात्ति । जातस्सवि पुण करणे जायइ अणवत्थदोसो उ ॥ ४०३ ॥ SAMACHCHOREOGRA* + For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit धर्म | अह उ तदनं किं तस्स आगय? तेण तादवत्थातो । दीसेज्ज तओ कुज्जा कज्जंतरमो य जह पुरिव ॥ ४०४ ॥ आवर- क्षणिकवाद संग्रहणी- पि न जुज्जइ तप्पभवं तस्स तादवत्थातो । अन्नह तओ उ णासो एत्थ य पुब्बोदिओ दोसो ॥ ४०५ ।। ततियम्मि पज्जुदासे हंत निरास: वियप्पम्मि अविगला दोसा । एतच्चिय विनेया भावंतरओ उ तस्सावि ।। ४०६॥ तदभावमह करेती तदभा ( तम्मा ) वं हंत एव ण करेइ । भावं च अकुव्बंतो कहं स हेतुत्ति ? चिन्तमिदं ॥ ४०७ ॥' चरमम्मिवि कह हेऊ? न किंचि कुव्वंति जे विणासस्स । 31 भावे य सदाभावा एसि खणभंगसिद्धित्ति ।। ४०८॥ अन्नं च नस्सरो वा सहावतो होज्ज अणस्सरो वावि'। भावो णस्सरपक्खे नासे किं हेतुणा तस्स' ॥ ४०९ । नो अन्नमिह स भावो भावे भावस्सऽवेक्खए हेउं । काठिन्नादी पुढवादिणं च तद्धेतुओ चेव ॥ ४१० ॥ अतदुब्भवत्तणम्मि य पावइ तस्स णणु निस्सहावत्तं । अह णस्सरोत्ति एवंपि नासहेऊ विधा तस्स ॥४११ ॥ नहि ४ा भावाउ सहावो तीरइ अनेण अन्नहा काउं । गयणस्सव मुत्तत्तं नय दुसहावो विरोधातो ॥ ४१२ ।। किंच सहेउगपक्खे कज्जस्स व तस्स पावती नासो । तण्णासम्मि य भावो पुम्वविणट्ठस्स भावस्स ॥ ४१३ ।। नय सो हवेज नियमा कयगाणवि कारणंतरावेक्खो। | वत्थस्स जहा रागो कयगोवि ततो न नासेज्जा ॥ ४१४ ॥ कोवि कदाई भावो कारणविरहातो तस्स भावेवि । नहि कारणाई निय| मेण होति जं कज्जवंताई ॥ ४१५ ॥ ता भावहेतवो च्चिय कुणंति पयईऍ नस्सरे भावे । उप्पत्तणंतरं चिय तेवि विणस्संति तो खणिगा || ४१६ ।। निरहेउगो विणासो अहव सहेऊ निरस्थिगा चित्ता (चिंता)।नहि एत्थऽणवत्थाणं परिणामे सव्वहा अस्थि ॥ ४१७॥ माजं तं चिय परिणमए पतिसमयं चित्तकारणं पप्प । दलविरहातो अन्नह जुज्जइन फलं तु भणियमिणं ॥ ४१८ ।। अह तं पुच्चं रूवं | Pu४॥ दचइऊण तहा हवेज्ज नियमेण । तदभावे तदभावो अतादवत्थं चनिच्चत्तं ॥ ४१९ ॥ नियमेण तस्स चातो कहंचि ननु (तु) सब्बज्झे For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie क्षणिकवाद धर्म 181(दे) व भणितमिणं । एवं च तादवत्थे निच्चत्तं कस्स व विरुद्धं ? ॥ ४२० ॥ पच्चक्खेणेच तहा अणुगमवइरेगगहणतो सिद्धं । संग्रहणी दिवत्थु परिणामी (म) रूवं मिम्मयघडवेदणाउत्ति ।। ४२१ ।। सिय णेदं पच्चक्खं वियप्पतो तमविगप्पगं होउ । तेणवि तहेव सो भणणु घेप्पइ जम्हा सरूवेण ॥ ४२२ ।। नय तस्स तं ण रूवं कारणनियमादिभावतो यं । पच्चक्खपिठ्ठभावी हंत विह (य) प्पो विणा हेऊ ॥ ४२३ ।। तस्सामत्थप्पभवो न य स सजातीयभेदगहरूवो । ता तंपि तहारूवं गेण्हइ किंवा तमन्नति ? ४२४ ॥ तं चिय उभयविभिन्न किन्न वियप्पोवि तारिसो होइ ? । सारिक्खविप्पलंभा तह भेदे किमिह सारिक्खं ॥४२५।। अह भंत अपर्छ वा तम्मि सजातीयभेदगहणम्मि । इतरम्मि तु णो एवं उभयसभावादिदोसाओ ॥ ४२६ ॥ निच्छयनाणेण तहा जारिसतो सोऽवगहम्मती भावो । जइ तेणवि तारिसओ तो तस्स गिहीतगाहित्तं ॥ ४२७ ॥ अज्झवसियतब्भावा दिस्सविगप्पाण एगकरणेण । तम्मि पवत्ती पत्ती जुज्जति नतु अनहा किंचि ॥ ४२८ ॥ अच्चतं भेदाओ अतिप्पसंगातो किंच तं मोत्तुं । तुल्ले अवबोहते उग्गह मेत्तम्मि को रागो ? ॥ ४२९ ।। अह सोऽवाहितविसओ इतरस्सवि हंत केण बाधा तु ? । अत्थे सदाभावा तदणुगतत्ता य तस्सदाति ॥ ४३० ॥ अत्थगयसद्दगहणा णो तदणुगतो ततोत्ति अवि एवं । तब्बोहसहजमणवइजोगाओ कम्महेऊतो ॥ ४३१ ॥ अह Bअस्थमंतरेणवि भावा इतरम्मि किं न सो अत्थि ? । अज्झारोवेण तओ एत्थवि तीतादवेक्खाए ॥ ४३२ ॥ तं अन्नत्तविसिटुं समाण8 मेयंति एवमाईयं । जं जं निमित्तमिहइं तं तं इतरम्मिवि समाणं ॥ ४३३ ॥ अच्चंताऽसाहारणगाहगमह तं ण एवमियरंति । तस्सेवाभावातो एयपि न जुत्तिपडिबद्धं ॥४३४॥ सत्तादीणं साधारणततो अणुभवप्पसिद्धीतो । होज्ज व भावाभारो तेसिं अच्चंतभेदम्मि ॥ ४३५ ॥ जं एगम्मी सत्तं अन्नम्मिवि अह तु तस्स भावम्मि । पावइ एगत्तं चिय तेसिं तम्हा ठिओ भेदो ॥ ४३६ ।। साधारणं 4 ॥ ८५ ॥ For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म INण एग अवि समाणतणंति ण य एतं । एगताऽभेदम्मिवि जुज्जइ पच्चक्खसंसिद्धं ॥ ४३७ ॥ तम्हा तग्गहणाओ ततो पवित्तीओक्षणिकवाद संग्रहणी. कोगसिद्धीओ । सवियप्पं पच्चक्खं सिद्धति कयं पसंगेण ॥ ४३८ ॥ तह भावहेतवो चिय कुणंति पयईएँ णस्सरे भावे । जे भणिय | निरासः तदजुत्तं अगदोसप्पसंगाओ ॥ ४३९ ॥ इय भावहेतवो चिय तन्नासस्सावि हेतवो नियमा । एवं च उभयभावो पावइ एगम्मिश्री समयम्मि ॥ ४४०॥ तब्भावम्मि य भावो इतरस्स न जुज्जती उ भावे य । तेणाविरोधतो पुण पावह निच्चपि तब्भावो ॥ ४४१॥ का अह उ खणहितिधम्मा भावो नासो न जुत्तमेयंपि । निरहेउगो स इडो एसो य जओ सहेउत्ति ॥ ४४२॥ अह मोत्तण सहेउं अनं GIनावेक्खइत्ति णिरहेऊ। तुल्लमिणं इतरम्मिवि अस्थविसेसेवि धणिमेत्तं ॥ ४४३॥ अह तं पड़ हेउस्सा अहेउगत्तं पसाहियं पून्धि । येहि वियप्पेहिं जातिवियप्पा हु ते णेया ॥ ४४४ ॥ जम्हा अणुहवसिद्धे तस्सुप्पाएवि एवजातीया । संति वियप्पा तेसि भावेऽवि 181 य तस्स णाभावो ॥४४५॥ उप्पत्तिसहावं वाणुप्पत्तिसहावगं व तदेऊ। कज्जा भावं उभयाणभयसहावं व इति भेदा ॥४४६॥13 दाजइ उपत्तिसहावं अफलो तस्सेव तस्सभावत्ता । हेतू तदवेक्खंमि य तम्मि विणासवि किमजुत्तं ? ॥ ४४७ ॥ Vा तस्सवेस सहावो पतिणिययं चेव अणुवगारिपि । हेउं पप्प विणस्सह भावोत्ति सहेउगो तो सो ॥ ४४८ ॥णय भावहेतवोऽवि ४ कुणंति भावस्स किंचि तुह पक्खे । जे तस्सत्तामेत्तं पडुच्च भणितो तदुप्पातो ॥ ४४९ ॥ ॥ अहऽणुप्पत्तिसहावं कुज्जा एवं नु खर-४ ॥८६॥ विसाणपि । अह सो न तस्स हेऊ इतरस्स उ केण हेउत्ति ? ॥४५०॥ जमणुप्पत्तिसहावा खरसिंगघडादओऽविसेसेण । ता एगस्सा हेऊ सेसाणवि, मेयसिद्धी वा ॥ ४५१ ॥ तस्सस्थि इहं हेऊ तत्थो उप्पज्जते य ता कह णु । एसोऽणुप्पत्तिसहावगोत्ति पन्ना |Pne६॥ | ववइसति ॥ ४५२ ॥ उभयसहावत्तम्मि उ विरोहदोसोऽणिवारियप्पसरो । इतरम्मिवि उप्पातो अभावतो चेव नो जुत्तो ॥ ४५३ ॥[* For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिणामिता किं तिण्हं किं सह किं कसिणं सुकिलं च खरासिंगं । जह निविसया भेया एए एमेव एतेवि ॥ ४५४ ॥ जम्हाऽणुप्पो सो भावो | वादः संग्रहणी | खरसिंगतुल्ल एवेह । उप्पमाम्म य तम्मिवि वियप्पणा निष्फला चव ॥ ४५५ ॥ जो उप्पनो णियहेतुभावतो दिस्सती वहाभावा ।। | तस्स वियप्पाभावो जलणस्सुण्हत्तणं किह णु ? ॥४५६।। उप्पत्ती' विगाणं कह एसा जुज्जइत्ति चिन्तमिदं । भणियविगप्प. य. ॥ सव्वहेव एसा अजुत्ता तु ।। ४५७ ॥ दीसइ य णासडेऊवणिवायाओ य तस्स नासावि । तम्हा जाइवियप्पा जह एते एव तेवित्ति ॥ ४५८ ॥ अविणहस्स विणासे वियप्पणाऽसंगता विणट्ठस्स । किं तीएँ फलं । एत्थवि तुल्लमिदं जातिभेदढुगं ।। ४५९ ॥ अह उप्पत्ती दीसइ णतु-यासो तस्समावतो ण तओ। एतेणाभावो घडा कवालादिभात्राओ ॥ १६० ॥ णम एगंतण नमो सञ्चो निरुवक्ख एव सो तत्तो । भात्रा, सहावभेदे भेदाभेदादिया दोसा ॥ ४६१ ॥ दीवम्मि को णु भावो सुके व सरम्मि आतवादिसु य । तमदव्वादिपरिणती छायाई चेव विनेया ॥ ४६२ ॥ किं तेण तता कीरइ ? इमिदं सिद्धसाहणं एवं । पो इत ( इतर ) णिवित्तिअंतरेण जे तेण एत्थंपि ॥ ४६३ ॥ सावि हु तदुभवच्चिय तब्भावे भावतो जहुप्पत्ती । णय एगताभावो सा नेया वत्थुधम्मत्ता ॥ ४६४ ।। अह सा ण वत्थुधम्मो ण तई ता तस्स घडणिवित्तीए । जह बत्तमाणसमए सगडस्स निवित्ति सुनं वा ॥ ४६५ ॥ |णय सा उप्पत्ति च्चिय भिन्ननिमित्तत्ततो विरोधातो । परिकप्पियत्ति निच्चं अन्नत्ते पुव्वदोसा उ ॥ ४६६ ॥ अह उ सहेउउ च्चिय | उववन्नो अप्पणो विणासम्मि । नोवेक्खई तदनं हेउं निरहेउगो तेण ॥४६७।। किं एवं ति? अह मती तत्तो चिय तस्स तस्सभावो उ4॥ ८७ ॥ एमो चेव सहावो इमस्स णय किंचिति पमाणं ॥४६८॥ अथकिरियाएँ भावो णहि सा उप्पत्तिमन्तरेणऽन्ना । सा य णिरचयपक्खे KSON For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie धर्म असंगतातिप्पसंगाओ ॥ ४६९ ॥ पाणाइवायविरहसिक्खावतदेसगामहा एवं । निविसपत्ता जगगो हिंसागारित्ति पंडिच्चं लातत्ववाद संग्रहणी IP॥ ४७० ॥णहि सुयजम्मे पिउणो सिद्धं लोगम्मि हिंसगो एस । समएवि णावि सिक्खावयभंगो तस्स जम्मम्मि ॥ ४७१ ।। परिणामाओ हिंसा सोवि कहं खणिगपक्खवायम्मि ? | परिणमणं परिणामो जम्हावत्थंतरावती ॥ ४७२ ॥ निरहेउगो तओ अह | निचं भावो ण वा कदाचिदवि । तस्सेबपि हु सिक्खावतदेसणमणुववतु ॥ ४७३ ॥ इय परिणामंतवयदरिसणपमुहावि हेयवा | सव्वे । एगंतखणिगपक्खे अहेतवो चेव ददुव्वा ॥४७४ ॥ तम्हा परिणामी खलु जीवो लोगप्पमाणओ सिद्धो । अधुणा जहेस णाता ६ तह सुत्तादेसतो वोच्छं ।। ४७ ॥ द्र णाता संवित्तीओ जीवो नहि नाणभिन्नरूवाणं । सा अस्थि घडादीणं तकज्जाऽदरिसणाउत्ति ॥ ४७६ ॥ तेर्सि हैन तेण जोगो अन्नगुणत्तातो तेण सा नत्थि । अविसिढे अन्नत्ते एतपि य किंकयं एत्थ ॥ ४७७ ॥ अह उ सहावकर्त चिय पतिणियता चेव जं. गुणा लोए । एसोऽवि हु अनिमित्तो सहावपक्खो सपडिवक्खो ॥ ४७८ ॥ एगतेण विभिन | नाणं आयाउ तग्गुणो तहवि । एत्ताच्चिय णनगुणो तहासहावातो किं माणं ? ॥ ४७९ । पतिणियतता तु लोए गुणाण दिहा | निमित्तभेदेण | एगंतभेदपक्खे ण य जुज्जइ तमविसेसाओ ॥ ४८० ॥ समवाया संबंधो तेसिं तस्सेव तेहि णणु केण? | जति अन्नेणणवत्था अह उ सयं किन्न तेसिपि ॥ ४८१ ।। सिय सो उभयसहावो अप्पाणं ते य संघडावेति । सपरप्पकासधम्मो तहासहावा ॥८८॥ पदीवोव्व ॥ ४८२ ॥ ते चेव किंन एवं तहासहावविरहाण माणमिह । न घडइ चिंतिज्जतं तुह पक्खे दीवणातंपि ।। ४८३ ॥ SHRSI-SACARE ॥८८॥ For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥८९॥ ECARSAKASEAN | जमभित्रो सपगासा सो सपरपगासगो णयाभेदो । तेसिपि तुज्झ इट्टो ता सोऽवि तहाविहो किह णु ? ॥ ४८४ ।। दीवोऽवि हंत 12 ज्ञातृत्ववाद व्वं तस्स पगासो मतो इहं धम्मो । एतेसिं भेदम्मि तु सो सपरपगासगो मोहो ॥ ४८५ ।। किंच इह ते सहावा तत्तो भिन्ना व होज्जभिन्ना वा । भेदे तस्सत्ति कहं ? एतेऽमेदे कहं दोन्नि?॥४८६ ॥ समवाइसु समवातो इह बुद्धी जह विणा तयं इट्ठा। इय जीवे जाणामयं ण हवइ जणु केण कज्जेणं ॥४८७ ॥ एवं समवातोऽवि हु चिंतिज्जतो न सम्बहा घडइ । ता गुणगुणिणो 3 सिद्धो संवेदणओ अभेदोवि ॥ ४८८॥ सिय करणमेव नाणं आता कत्तत्ति चेव भेदो तु । नहि वासिवड्वदेणं इहं अभेदो कहंचिदवि ।। ४८९ ॥ तं खलु बझं करणं नाणं पुण अंतरंति वेधम्म । न य अपरिणओ उ तहा अगेण्हिउं तीं| अयं घडति ॥ ४९० ॥ परिणामे पुण एगत्थसाहगत्तस्सऽमेदओ किह णु । जुज्जइ इमं जमुत्तं ण तसिऽभेदो कहंचिदवि ? ॥४९१॥५ इय नाणगहणपरिणामभावतो अत्तणो गहो जेण । सो चेव किन्न नाणं तुल्लम्मि तदनुभवगमम्मि ? ॥ ४९२ ॥ इय कत्तिकरणभावे | कज्ज संवित्तिलक्खणं कत्थ ? । जति जीवे कहमन्नं नाणं तदभिन्नरूवं तु ॥ ४९३ ।। अह विसए णणु एवं कहमिह जीवस्स अणुहवो लोए । अह तत्तो च्चिय भेदे कहं ण अन्नस्स तदभेदा? ॥ ४९४ ॥ तत्तोवि जइ तइ तम्मि हंत एवंपि सा णहि ण णाणं । तम्भावम्मि य चिंतं आप्ता णाणाउ अन्नोति ॥ ॥४९५ ।। सिय कत्तिकरणभावो अभेदपक्खम्मि जुज्जई किह णु ? । वेढेइ अही अत्ताणमत्तणा चेव जह लोए । ४९६ ॥ परिकप्पितो तु एसो अह णो तकज्जदरिसणातो उ । णय सेलक्खंभादो वेढणमिह कप्प-11 णाएऽवि ।। ४९७ ॥ तम्हा तहाविहाणेगचित्तपरिणामभावतो सिद्धो। अणुहवपामना कत्तिकरणभावो अभेदेवि ॥ ४९८॥ अण्ण भणंति नाणं परलोगविवाहगं विगाणातो।न य निच्छयस्स हेऊ तम्हा अन्नाणमो सेयं ।। ४९९।। अत्रेण अबहादेसियम्मि भाव For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie संग्रहणी म्मि नाणगब्वेण । कुणइ विवादं कलुसियचित्तो तत्तो य से बंधो ॥ ५०० ॥ सोवि मिहो भिन्नं नाणं इह नाणिणो जओ ति । अज्ञानवाद तीरइ न तओ काउं विणिच्छओ एयमेवन्ति ॥ ५०१ ।। तचिसयदरिसणातो जुज्जइ एसो ण तं च पारोक्खे । संवेदणमेतण तु निरासः 8/पडिपक्खनिसेहणमजुत्तं ॥ ५०२ ॥ जं सव्वण्णुवदेसा जायइ अह तंमयं सुविभाणं । तन्भावे किं माणं बडुएसु य एस एवत्ति ? ॥ ५०३ ।। देवागमादियं चैव वितेसालिंगं ण एत्यति पमाणं । साहारमं च संपिा भावम्मिवि तदुवदेमम्मि ।। ५०४॥ णातेवि तदुवदेसे एसेवत्थो मउत्ति से कह णु । नज्जइ चित्तत्था खलु जं सदा समइयाणेगे ॥ ५०५ ॥ अह तत्तो सवणाओ आयरियपरं|परा इदाणिपि । सवणेऽवि तचिवक्खा गहि छउमत्थस्स पच्चक्खा ॥ ५०६ ।। तदभावम्मि य नज्जइ कहमिदमेसो इम्मस्सऽभिप्पातो? । तस्साणुवादकरणे मिलक्षणातं फुडं चेव ॥ ५०७ ।। मिलक्खू अमिलकूखुस्स, जहा वुत्ताणुभासए । ण हेउं से वियाणेइ, | भासियं तऽणुभासइ ।। ५०८ ।। एवमाणिया णाणं, वदंतावि सयं सयं । निच्छयत्थं न याणंति, मिलक्खुव्व अबोधिए ॥ ५०९ ॥ जं चाकज्जायरणे यवत्तमाणस्स जायई तिव्यो । परिणामो नाणिस्सा तत्तो बंधोऽवि तिव्वोत्ति ।। ५१० ॥ नाणीवि कुणाइ पावं | नूणं ता एयमेव सेयंति । लोगस्स विपरिणामं जणयंतो बंधई कम्मं ॥५११॥ तम्हा परलोगसमुज्जयस्स भिक्खुस्स असढभावस्स । चरणावधायगेणं नाणेण अलमसंगस्स ॥ ५१२ ।। नाणनिसेहणहेतू नाणं इतरं च (व) होज? जइ नाणं । अब्भुवगमम्मि तस्सा | कहन्नु अन्नाणमो सेय? ॥ ५१३ ॥ अह अनाणं ण तयं णाणनिसेहणसमत्थमेवंपि । अप्पडिसेहातो च्चिय संसिद्ध नाणमेवत्ति | ॥ ५१४ ॥ वादेवि कलुसभावो बंधनिमित्तमिह ण पुण णाणंति । अनाणावगमेणं तं पुण कम्मक्खयानिमित्तं ॥ ५१५ ॥ वादोवि ॥९ ॥ | वादिनरवइपरिच्छगजणेसु निउणबुद्धीसु । मज्झत्थेसु य विहिणा उस्सग्गेणं अणुनाओ ॥ ५१६॥ सव्वेवि मिहो भिन्नं नाणं जइवि * 16 O ९.॥ For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म ॥९१॥ 18 इह नाणिणो ति । तीरइ तओऽवि काउं विणिच्छओ एयमेवत्ति ।। ५१७ ॥ तबिसयदरिसणासंभवेऽवि दिखेट्टबाधिता समया । अज्ञानवादि संग्रहणी संवेदणेण य तो पडिवक्खनिसेहणं जुत्तं ।। ५१८ ॥ दिट्टेणं इडेण य जम्मि विरोहो न जुज्जइ कहांचि । सो आगमो ततो जा गाणं तं सम्मणाणंति ॥ ५१९ ।। सो उण जीवववत्थावणादिणा-दंसिओ तु लेसेणं । ववहारजोगउ च्चिय वित्थरयो उवरि चोच्छामि ॥ ५२० ।। तत्तो च्चिय फलभूओ सव्वन्नू चिय असंसयं सिद्धो । जं सग्गकेवलथी तवादि कुज्जा सुते भणियं ।। ५२१ ।। आगसमतो सबन्नू तत्तोच्चिय आगमस्स पामनं । इतरेतरासयो इय दोसो अणिवारणिज्जो उ॥ ५२२ ॥ आगमओ सब्वन्नू तत्तोच्चिय आगमस्स पामन्त्र । किंतु स एवं नवरं तदत्थणाता जओ तस्स ।। ५२३ ।। तीरइ न अन्नहा आगमस्स अत्थो अणिदिओ नाउं । एमादि उपरि वोच्छ सव्वं सम्वन्नुसिद्धीए ॥ ५२४ ॥ जो दिद्वेविरुद्धो दयावरो सबभाववावी य । सो सम्वन्नुवदेसो पज्जा५ किमओ परं माणं? ॥ ५२५ ।। णाते य तदुवदेसे एसेवत्थो मउत्ति से एवं । नजद पवत्तमाणं जं ण णिवारेइ तह चेव ॥ ५२६॥ अन्नह य पवतंतं निवारती न य तओ पवंचेइ । जम्हा स वीयरागो कहणे पुण कारणं कम्मं ॥ ५२७ ।। अरहंतमादिवच्छल्लयादिजणितं अणुत्तरं पुण्णं । तित्थगरनामगोतं तस्सुदया देसणं कुणइ ।। ५२८ ।। णय ते विधायगं केवलस्स भावेवि तस्स तो भगवं । सव्वन्नू कयकिच्चो पमाणमिह देसणाए य ॥ ५२९ ।। चित्तत्थावि य सदा तत्तो चिय समइया अणेगे तु । सिद्धा तह चेव तओ * न दूसणं होइ एयपि ॥५३० ॥ आयरियपरंपरओ पमाणमेयम्मि होइ अत्थम्मि । अस्स य अपमाणत्ते सव्वागमकिरियलोवो उ॥५३१॥ C. अन्नाणिमतंपि इमं आगमघडिय व होज्ज इतरं चा?। पढमम्मि परंपरओ माणं इतरम्म तु ण जुत्तं ॥ ५३२ ।। जइवि ण आगम-२॥ ९१५ घडितं तहावि उवबन्नमेयमेवंति (वत्ति)। णाऊण पवित्तीओ का उववत्ती तु अन्नाणे ॥५३३।। अन्नाणोऽवि दिट्ठा एत्थ पवित्ती For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म 4 किसादिएसुंति । सफला य तीऍवि फलं नाणातो चेव विनेयं ॥ ५३४ ॥ णणु संसया पवित्ती फलसंपत्ती अज्ञानवादि संग्रहणी 10य निच्छयाओ उ । धन्नादिणाणरहिओ न हि गहणादौ कुणइ जु(ज) चं ॥ ५३५ ॥ नज्जति य तविवक्खा अपच्च- निरासः क्खत्तेवि तस्सभिप्पाओ । भणिओववत्तिओ च्चिय मिलक्खुणातं तओऽजुत्तं ॥ ५३६ ॥ परिणामो पुण तिव्यो पावपवित्तीए बंधहेउत्ति | नत्थेत्थ विसंवादो णय णाणं कारणं एत्थ ॥ ५३७ ॥ अन्नाणिणोवि जम्हा दीसति एवं किलिट्ठभावस्स । णाणिस्स पवि-* त्तीएवि तत्तो तु ण तारिसो भावो ।। ५३८ ।। जाणतो विसखाणू पवत्तमाणोवि बीहई जह तु । ण उ इतरो तह नाणी पवत्तमाणोवि संविग्गो ॥ ५३९ ।। जो संवेगपहाणो अच्चंतमहो उ होइ परिणामो । पावनिवित्ती य परा नेयं अन्नाणिणो उभयं ॥ ५४० ॥ | संसारासारत्ते सारत्ते चेव मुत्तभावस्स । विन्नाते संवेगो पावनिवित्ती य तत्तो उ ॥ ५४१ ॥ तम्हा परलोगसमुज्जतस्स भिक्खुस्स | असढभावस्स । चरणोवगारगं इय णाणं सुत्तेविमं भणितं ।। ५४२ ।। पढमं नाणं तओ दया, एवं चिट्ठति सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही ?, किं वा णाही छेयपावगं ? ॥ ५४३ ।। इय कह नाणेण अलं जुज्जइ वयणं इमं असंगस्स? । अण्णाणं चिय संगो कारण-1& कज्जोवयारातो ।। ५४४ ॥ तम्हा नाणी जीवो तंपि य परलोगसाहगं सिद्धं । नाणण्णाणविवेगे उवायमो चेव निरवज्जो ॥५४५॥ कत्तत्ति दारमहुणा कत्ता जीवो सकम्मफलभोगा । अस्स य अणभुवगमे लोगादिविरोहदोसोत्ति ।। ५४६ ॥ दट्टण कंचि दुहियं ९२॥ सुहियं वा एव जंपती लोगो । भुंजति सकयफलं णय वडजक्खनिवासतुल्लामण ॥ ५४७ ।। सुहदुक्खाणुहवातो चित्ताओ ण य अहेतुगो एसो । निच भावाभावप्पसंगतो सकडमो हेतू ॥ ५४८ ॥ किन्न सहावोत्ति मई भावो वा होज्ज जं अभावो वा । जइ भावो ॥९२ ॥ किं चित्तो? किं वा सो एगरूवोत्ति ॥ ५४९ ॥ जइ ताव एगरूवो निच्चोनिच्चो व हाज्ज ? जइ निच्चो । कह हेतू सो भावो? For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥९३ ॥ CHES ला जीवस्य अह उ अणिच्चो ण एगो त्ति ।। ५५० ॥ अह चित्तो कि मुत्तो किं वाऽमुत्तो ? जइ भवे मुत्तो । ता कम्मा अविसिहो पोग्गलरूवंका जतो तंपि ॥ ५५१॥ अह तु अमुत्तो ण तओ सुहदुक्खनिबंधणं जहाऽऽगासं । जीवेणं वभिचारो ण हि सो एगंततोऽमुत्तो ॥५५२॥ कमकता कर्मकर्तृता जमणादिकम्मसंतइपरिणामावन्नरूव एवायं । बीयंकुरु(र)णाएणं तं चेव य तस्स हेतुत्ति ।। ५५३ ।। मुत्तेणं वभिचारो ण सोवि जं चेतणासरूवोत्ति । णय सो दुक्खनिमित्तं निरुवममुहरूवतो तस्स ॥ ५५४ ।। तस्सवि य तहाभावे जीव चेव पावती वत्त । ता कह णु सो सहावो? सहामुहित्तप्पसंगो य ।। ५५५ ।। अह तु अभावो सोवि हु एगसहावो व होज्ज चित्तों वा ? | तुच्छेगसहावत्ते कहं तओ कज्जसिद्धि ति? ॥ ५५६ ॥ णहि खरविसाण हेतू अभावतो जायती तयं तत्तो। तुच्छेगसहावत्ता भेगजडाभारमादी वा ।। ५५७ ।। मिइपिंडो चेव तओ जायइ तत्तो घडो य तो जुत्तं । तुच्छेगसहावत्ते कहं तओ कज्ज-1४ सिद्धित्ति ? ॥ ५५८ ॥ ण हि सो तुच्छसहावो एगतेणं सरूवभावातो। तद्धेतुभावरूवं पडुच्च तुच्छो मुणेयब्बो ॥ ५५९ ॥ जो च्चिय सरूवभावो ण तउ च्चिय इयररूवभावोत्ति । भावाभावविरोहा भित्रसहावम्मि चित्तत्तं ।। ५६० ॥ सिय इतररूवभावो तु कप्पितो अंजसा ततो नत्थि । कह मितिपिंडाउ घडो तब्भावे ण खरसिंग च ? ॥ ५६१ ॥ अह चित्तो चेव ततो नामावो चित्तया जतो लोए । भावस्स हंदि दिट्ठा घडपडकडसगडभेदेण ॥ ५६२ ॥ भावस्स य हेतुत्ते नामविवज्जासमेत्तमेवेदं । हंदि सहावो हेतू जम्हा कम्मपि भावो तु ॥ ५६३ ।। सो भावोत्ति सहावो कारणकज्जाण सो हवेज्जाहि । कज्जगओ कह हऊऽनिवित्तीओ उ कज्जस्स? ॥ ५६४ ॥ कारणगतो उ हेऊ केण व णेट्ठोत्ति णिययकज्जस्स । ण3॥ यसो तओ विभिन्नो सकारणं सब्वमेव तओ ।। ५६५ ॥ एवं नियइ, जइच्छा, कालो, दिव्वं, पधाणमादीवि । मवेवि असव्वाया ACE For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie ॐ धर्म एगतेणं मुणेयब्वा ।। ५६६ ॥ जीवो सुहामिलासी दुक्खफलं कह! करेति सो कम्म? | मिच्छत्तादभिभूओ अपत्याकिरियं व सरुउल जीवस्य संग्रहणी त्ति ॥ ५६७ ।। इच्छंतोवि य सरुओ वाधिणिवित्तिं जहेव मोहातो । चित्तातो पडिकूलं तीए किरियं समारभइ ॥ ५६८ ॥ कर्मकर्तृता इय मिच्छत्तुदयातो अविरतिभावा तह पमादाओ । जीवो कसायजोगा दुक्खफलं कुणति कम्मति ॥ ५६९ ॥ मिच्छत्तमा-18 | इयाणं को हेतू ? कम्म एव जति एवं । इतरेतरासयो खलु दोसो अणिवारणिज्जो तु॥ ५७० ॥ मिच्छत्तमादिरूवं कम्म कम्म तरस्स हेउत्ति । बीयंकुरणाएणं इयभावे कह णु दोसो उ? ॥ ५७१ ॥ कयगत्ते कम्मैस्सा आदिमभावातो तब्विउत्तस्स । मिच्छत्त| मादिऽभावे कहमादो करणमेवऽस्स ? ॥ ५७२ ।। सच्वं कयगं कम्मं ण यादिमतं पवाहरूवण । अणुभूयवतमाणातीतद्धासमय मो | णातं ॥ ५७३ ।। तस्सवि य आदिभावे अहेतुगत्ता असंभवो चेव । परिणामिहेतुरहियं न हि खरसिंग समुद्भवइ ॥ ५७४ । काला| भावे लोकादिविरोधो तीयमादिववहारा । अह सो दवावत्था सावि ण पुचि विणा दिट्ठा ।। ५७५ ।। इस तस्स अणादित्ते सिद्धे | परिणामकरणजोएण । जीवोवि तस्स कत्ता सिद्धो च्चिय भवइ नायब्वो ॥ ५७६ ॥ परिणामविसेसेणं करेइ कम्मम्मि वीरियं चित्तं । जं सो ण उतं सत्तामेत्तेणं होइ फलदंति ॥ ५७७ ॥ सव्वेसिं फलभावा णिययसहावा ण सव्वफलदत्तं । निययसहावत्तं चिय तग्ग | यपरिणामसावेक्खं ॥ ५७८ ॥ तस्सवि य अहेतुत्ते असंभवो चेव पावती नियमा । परिणामेतरकारणरहितं न य सव्वहा कज्ज ४ ॥ ९४॥ ॥ ५७९ ॥ तम्हा निमित्तकारणभूओ कत्तत्ति जुत्तिओ सिद्धो । जीवो सब्वन्नुवदेसओ य तह लोगओ चेव ।। ५८०॥ भोत्ता सकडफलस्स य अणुहवलोगागमप्पमाणातो । कतवेफल्लपसंगो पाबइ इहरा स चाणिडो॥ ५८१ ॥ सातासाताणुभवो ॥९४ दूतकारणभोगविरहओ ण सिया । मुत्तागासाण जहा अस्थि य सो तेप भोत्तत्ति ॥ ५८२ ॥ कम्मविवागातो च्चिय तदणुहवो जं 6424 ॐॐ For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४/ तओ कहं भोचा ? । सो चेव तहापरिणतिरहियस्स ण संगतो जेण ।। ५८३ ॥ जच्चिय विवागवेदणरूवा तप्परिणई हवति चित्ता । ठा 18 जीवस्य संग्रहणीट सच्चिय भोयणकिरिया नायब्वा होइ जीवस्स ।। ५८४ ॥ न य तं तओ अणणं तस्सोदासीणभावओ चेव । चलणाइ कुणइ जम्हाला वेदणकिरिया तओ सिद्धा ॥ ५८५ ॥ बझसहकारिकारणसावेक्खा सा य पायसो जेणं । ता अंगणादिजोगे भोगपसिद्धी इहं लोगेश भोक्तृता ॥ ९५॥ ॥ ५८६ ।। एतेणञ्चेतणं जं कम्मं तं णियमित कहं फलति । ता पेरगो पहू किल परिहरियमिदंपि दट्टव् ॥ ५८७ ॥ कत्ता हु चे--3 तणो जे हंदि ह ता पेरगोवि सो जुत्तो । इहरा य दिहाणी अदिद्रपरिगप्पणा चेव ।। ५८८ ॥ कम्मपरतंतओ चेव पेरणसामत्थवि | रहिओ एस । कम्मरहिओ य इसो ता सो च्चिय पेरगो जुत्तो॥ ५८९ ॥ परेइ तओ किं फलमुहिस्स तयं ? न किंचि जइ एवं । फलरहियपवत्तीओ नालोच्चि( चि )यकारिता तस्स ।। ५९० ॥ अह फलमुद्दिस्स तयं धम्मादीणं हवेज्ज अन्नतरं । तस्सावेक्खत्त ओ जइवणिकामी व अकयत्थो ॥ ५९१ ।। सिय तस्सेस सहावो फलनिरवेक्खोवि पेरणं कुणति । ण तु एसो मुत्तत्ता चिट्ठइ एमेव | किं माणं? ॥ ५९२।। कम्मपरतंतओ जं पेरणसामत्थविरहितो कत्ता । एयपमिद्धं तस्सवि दि8 जं करणसामत्थं ॥ ५९३ ॥ कत्ताद्रवि अह पभु च्चिय विचित्तकरणम्मि रागमादीया । पेरगपगप्पणाएवि पुव्वुत्ता चेव दोसा उ ॥ ५९४ ॥ पेरेति हिए एकं अन्न * इतरम्मि किं इमं जुत्तं ? : अह तकम्मकयमिणं तंपि य णणु तक्थं चेव ।। ५९५ ॥ इयरस्स उ कत्तित्ते सिद्ध सामत्थसत्तिसिद्धीओ । 8 पहुकप्पणा अविसया भत्तीए नत्थि वाऽविसयो ॥ ५९६ ॥ लोमेऽवि एस भोत्ता सिद्धो पायं तहागमेसुं च अविगाणपवित्तीओ णय 21 14॥९५५ दएतेसिं अपामन्नं ॥ ५९७ ॥ इहरा कयवफल्लं तब्भावे हंदि दिट्टबाधा तु । वाणियकिसीबलादी दिट्ठा जं सकयभाइत्ति ॥ ५९८ ॥ 1 दंडिगगहमरणादौ ण सगडभोइत्तणं अणेगंतो । आयामेणुवभोगा एगन्तो चेव नायव्यो ॥५९९ ।। पुब्धि जमुवत्तं खलु कम्मं तं सग-1 For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म | डमो जिणा बिति । तं च विचित्तं आयासभोगफलभेदओ नेयं ।। ६०० ॥ परवंचणादिजोगा जे कयमिहई किलसभोगं तं । इतरातो कर्म स्वरूपं संग्रहणी भोगफलं बझं सहकारिमो तस्स ।। ६०१॥ परवंचणादिजोगो कम्माओ वंचणा य इतरस्स । तत्तो च्चिय विनेया इहरा जाइच्छि है यपसंगो ।। ६०२ ॥ एवं च कुतो दोसो ? तत्तो चिय संकिलेसओ सो य । असुहाणुबंधिकम्मोदयाउ भणितो जिणिंदेहिं ।। ६०३ ।। एवं च ठिए संते धम्माधम्माण जह उ संपत्ती । जुज्जइ सवित्थरं तह फुडवियडं उवीर वोच्छामि ॥ ६०४ ।। तम्हा भोत्ता जीवो पसाहिओ कम्मोगमैतस्स। वोच्छ पुव्वुवइ8 धम्मादिनिबंधणं कमसो ॥६०५॥ नाणादिपरिणतिविघायणादिसामथसंजुयं कम्मं । तं पुण अट्ठपगारं पन्नत्तं वीयरागेहि ॥६०६।। पढमं नाणावरणं वितिय पुण होइ दंसणावरणं । ततियच वेयणिज्ज तहा चउत्थं च मोहणियं ।।६०७॥ आउय नाम गोत्तं चरिमं पुण अंतराइयं होइ । मूलप्पगडीउ एया उत्तरपगडी अतो वोच्छं ॥६०८॥ पढम पंचविगप्पं मतिसुयओहिमणकेवलावरणं । वितियं च नवविगप्पं निद्दापणदसणचउक्कं ॥ ६०९ ॥ निदा निद्दानिद्दा पयला 13 तह होति पयलपयला य । थीणद्धी य सुरोद्दा निद्दापणगं जिणाभिहितं ॥ ६१० ॥ नयणेतरोहिकेवलदंसणवरणं चउव्विहं होइ ।। | सातासातदुभेदं च वेयणिज्ज मुणेयब्वं ॥ ६११ ॥ दुविहं च मोहणिज्ज दसणमोहं चरित्तमोहं च । दंसणमोहं तिविहं सम्मेतरमीस।। ९६॥ वेदाणं॥६१२।। दुविहं चरित्तमोहं कसाय तह णोकसायवेयणियं । सोलसनवभेदं पुण जहसंखं तं मुणेयव्य।।६१३ ।। अणअप्पच्चक्खा-18 णपच्चखाणावरणा य संजलणा । कोहमाणमायलोमा पत्तेयं चउविकप्पत्ति ॥६१४।। इत्थीपुरिसनपुंसगवेदतिगं चेव होइ नायव्वं || P९६ ॥ हासरतिअरतिभयं सोगदुगुंछा य छक्कंति ।। ६१५ ।। आउं च एत्थ कम्मं चउविहं नवरि होति नायव्वं । नारयतिरियनरामरगति For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मणो धर्म |भेदविभागतो जाण ॥ ६१६ ॥ नाम दुचत्तभेदं गतिजातिसरीरअंगुवंगे य । बंधग संघायणसंघयणा संठाण णामं च ।। ६१७ ॥ संग्रहणीदतह वनगंधरसफासणाममगुरुलघू य बोद्धब्बं । उवधायपराधाताणुपुन्धिउस्सासनामं च ।। ६१८ ॥ आतवउज्जोव (य) विहागतीला पा बाद्याध |य तसथावराभिहाणं च । बायरसुहुम पज्जत्तापज्जत्तं च नायब ६१९|| पत्तेयं साहारणधिरमथिरमुभासुभं च नायव्वं । सूभगभगनाम * मिति: | मूसर तह दूसरं चेव ।। ६२० ॥ आएज्जमणाएज्जं जसकित्तीनाममजसकित्ति च। निम्माणनाममतुलं चरिमं तित्थगरनामं च ॥६२१॥ ॥९७ ॥ | गोयं च दुविहभेदं उच्चागोयं तहेव णीयं च | चरिमं च पंचभेदं पचतं वीयरागेहिं ॥६२२॥ तं दाणलाभभोगोवभोगविरियंतराइयं जाण । चित्तं पोग्गलरूवं विनयं सबमेवेदं ।। ६२३ ।। मुत्तेणामुत्तिमतो जीवम्स कहं हवेज्ज संबंधो? । सोम्म ! घडस्म व णभसा | जह वा दधस्स किरियाए ॥ ६२४ ॥ मुत्तेणामुत्तिमओ उवघाताणुग्गहा कहं होज्जा? जह विनाणादीणं मदिरापाणोसहादीहिं ॥ ६२५ ।। अहवा गंतोऽयं संसारी सबहा अमुत्तोत्ति । जमणादिकम्मसंततिपरिणामावन्नरूवो सो ॥ ६२६ । केई अमुत्तमेव तु | कम्मं मन्नति वासणारूवं । तं च न जुज्जइ तत्तो उवघायाणुग्गहाभावा ।। ६२७ ॥णागासं उवघायं अणुग्गहं वावि कुणइ सत्ताणं । 16 दिट्टमिह देसभेदे सुहदुक्खं अबहऊ तं ॥ ६२८ ॥ आणूगम्मिऽसमीरणपउरस्स सुहं विवज्जए दुक्खं । तं जलमादिनिमित्तं न सुद्ध | खेत्तुब्भवं चेव ।। ६२९ ॥ तब्भावम्मिवि जोगो मुत्तिमता विग्गहेण जीवस्स । अब्भुवगंतब्बो च्चिय कम्मम्मिवि एव को दोसो ? 18 ।। ६३० ॥ देहेणं संजोगाभावे उवधायमादिओ तस्स | अण्णस्स जह न दुक्खादि देहिणोऽवी तहा ण भवे ।। ६३१ ॥ इय दिट्ठट्ठ विरोहो अणुहवगम्मा सुहादयो दिट्टा । न य ते अन्ननिमित्ता तब्भावे चैव भावातो ।। ६३२ ॥ जेवि य पसंतचित्तादिभावतो तेऽवि " तकया चेव । जं सुहमणादियोगे अणुग्गहादी धुवा तस्स ।। ६३३ ॥ तस्सेव य संपूयणवावत्तीओ सुहासुहनिमित्तं । इट्ठाओ अच्चंतन For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R- भेदे एतंपि हुन जुत्त ॥ ६३४ । पडिमादिसु दिट्टमिदं तं खलु अज्झत्थियंति अविगाणं । जं पुण जंतुसरीरे उभयजमेत्थंपिमं चेव से कर्मणो संग्रहणी ॥ ६३५ ॥ बज्झत्थाभावातो भत्ती एसा इमो तु देहोत्ति । विनाणमेत्तमेव उ परमत्थो कह णु अविगाणं? ॥ ६३६ ॥ बज्झत्थो मूर्त्तिमचा 1 परमाणू समुदायो अवयवी य होज्जाहि! गाहगपमाणविरहा सव्वोऽविण संगतो एस ॥ ६३७ ॥ परमाणवो ण इंदियगम्मा तग्गा वाह्याथ हकं कुतो माणं ? । अविगाणाभावातो ण जोगिनाणपि जुत्तिखमं ।। ६३८ ॥ केई पेच्छह जोगी परमाणू सुनतं तहा अने। एगप्प-1 साडू । वायगहणे को णु पदोसो तु इतरम्मि ? ॥ ६३९ ॥ ते चेव कजगम्मा दीसति य घडाइयं इहं कज्ज । ण य दुयणुमादिजोगं विहाय सचा इमस्स भवे ॥ ६४० ॥ कह दीसतित्ति वच्चं जायइ संवेदणं तदागारं । दोण्हवि एगतं इस तस्साणागारभावो वा ।। ६४१॥ । सो खलु तस्सागारो भिन्नोऽभिन्नो व होज्ज? जति भिन्नो । तस्सत्ति को णु जोगो ? इतरम्मि तु उभयदोसोत्ति ॥ ६४२ ॥ तदभि नागारचे दोण्हवि एगत्तमो कहं ण भवे ? । नाणे व तदागारे तस्साणागारभावोत्ति ॥ ६४३ ।। सिय तत्तुल्लागारं जंतं भणिमो | अओ तदागारं । तग्गहणाभावे णणु तुल्लत्तं गम्मई कह णु ॥ ६४४ ॥ अह सागाराउ च्चिय ततुल्लो दीसती तु सो जेणं । तम्म | ताणुहवणमो विहाय किं दंसणं अनं? ॥ ६४५ ॥ तम्मि य वेदिज्जते पडिवत्तीए कहं न अन्नस्स ? । जायइ अइप्पसंगो तुल्लत्ताओ तयमसिद्धं ॥ ६४६ ।। तुल्लत्तं सामन्नं एगमणेगासितं अजुत्ततरं । तम्हा घडादिकज्जं दीसइ मोहाभिहाणमिदं ॥ ६४७ ॥ अह ॥ ९॥ उ निरागारं चिय विनाणं गाहगं कह सिद्धं ? । भावम्मिवि तस्सेव उ ण उ अन्नस्सात्ति को हेतू ? ॥ ६४८ ।। तेणेव जतो जणित किमेत्थ माणं ? तदत्थपडिवत्ती। सा किं नाणाभिन्ना ? आममपुव्यो इमो मोहो ॥ ६४९ ॥ एतेणं समुदायो पडिभणिओ चेव होइमा नायव्यो । जं दुयणुमादिजोगं विहाय णो जुज्जए सोवि ।। ६५० ।। संयोगोवि य तेसिं देसेणं सबहा व होज्जाहि । देसेण कह R SENTENERAEBAR RESS ॥९८॥ For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म मणुतं ? अणुमत्तं सव्वहाभवणे ॥६५१॥ अह अपरोप्परपच्चासन्नत्तणमो उ होइ संजोगो । पत्तेयं व अगहणं पावइ इय समुदिताणतिला बाह्यार्थसंग्रहणी द॥ ६५२ ।। हाणी य अणुत्तस्मा दिसिभदातो णयबहा घडति । तेसिमिहो पच्चासन्नतत्ति परिफग्गुमेयपि ॥ ६५३ ॥ अवयविणोविर सिद्धिः सय गहणं समुदायअगहणओ णिसिद्धं तु । विवि अवयवेसुं न सबहा जुज्जती तस्स ।। ६५४ ॥ पत्तेयमवयवेसु देसेणं सव्वहा व सो होज्जा ? । देसेणं सावयवोचयविबहुत्तं अदेसेणं ॥ ६५५ ।। अह वट्टतित्ति भणिमो जुज्जति एतं विहाय पक्खदुगं । जइ होइ8 ॥ ९ ॥ कोइ अवरो वित्तिपगारो स तु ण दिट्ठो ।। ६५६ ।। किं च इमोजयवाणं अभिनंदसो व होज्ज इतरो वा'। जति ताव भिन्नदेसो भिन्ना दुपदेसिए ण अणू ।। ६५७ ।। एवं च अणिच्चत्तं सपदेसतं च पावइ अणूणं । तब्भेदासति तदभिन्नदेसताऽवयविणो जुत्ता ॥ ६५८ ॥ सिय अवयवी अमुत्तो जता तदभिन्नदेसयाएऽवि । आगासेण व दोसा अणिच्चमादी कुतो नूणं ॥ ६५९ ॥ हंत अमुत्तत्तम्मिवि आगासस्सेव अणुवलंभो से । पावति तदभेदातो इतरम्सवि अहव उवलंभो ।। ६६०॥ समवायलक्खणेण संबंधणं ण तंपि संबद्धं । तदभिन्नदेसताए को अन्नो एस समवायो ? ॥ ६६१ ।। तम्हा मुत्तसरूवानुगमं मोत्तूण णत्थऽमुत्तस्म । गहणं तब्भादिवम्मि य एगतेणं कहं भेदो? ॥ ६६२ ।। इय जुत्तिविरहतो खलु बुहेण बज्झत्थसत्तमिति मोहो । संसारखयनिमित्त वज्जयव्यो पय* णं ॥ ६६३ ॥ रज्जुम्मि सप्पणाणं मोरो भयमादिया ततो दोसा। ते चा उ तन्नाणे ण होन्ति ततो य मुहसिद्धी ॥ ६६५ ।।। वज्झन्थे विन्नाणं मोहो रागाइया तो दोसा । ते चेव उतनाणे न होन्ति तत्तो य मोक्खसुहं ।। ६६५ ॥ सागारमणागारं उभयाणुभयं व होज्ज णाणंपि ? | गाहगपमाणविरहा ण संगतं सवपक्खेसु ॥ ६६६ ।। नाणंतरं न इंदियगम्मं तग्गाहगं कुतो माणं ?। । ९९ ॥ | एमादि हंहि तुल्लं पायं विनाणपक्खेऽवि ।। ६६७ ॥ किं चागारो तस्मा किमंगभूतो उआहु विमयातो? । जति तावदंगभूतो कई For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी णु णाणंतरावगमो ? ।। ६६८ ॥ अणवगमम्मि य परमोहविउट्टणं केण सत्थमुवादिट्ठ। तदभावे सम्मामिदं मिच्छा इतरं तु को मोहा? बाद्याथ॥६६९ ॥ चोरो वंझापुत्तो अतो असाधुत्ति किमिह विनाण । जायइ तिक्खं च जओ खरसंगं तेण साहुत्ति ६७०। एयविगप्पा- सिद्धिः भावे कुतो विवादोत्ति ? कुणसि य तुमंति । खंधारूढो उलुगो विसुमरितो तं इमं णायं ।। ६७१ ॥ बुद्धादिचित्तमत्तं पडुच्च सिय तारिस हवति नाण । जे सहओऽवमन्नइ बज्झत्थासत्तमादीयं ।।६७२।। एवमिह इमं सम्म मिच्छा इतरं तु होइ पडिवत्ती। बज्झत्थाभावम्मिवि एवं सेसोवि ववहारो ।। ६७३ ।। तस्सावगमाभावे तस्सत्तामेत्तहेतुगो एस । इच्छिज्जइ ववहारो जति ता अत्थेवि तुल्लमिदं ॥ ६७४ ॥ अह कहवि तस्सवगमो तहेव अत्थम्मि मच्छरो को णु? । सो नत्थि अजुत्तीओ नाणम्मिवि हंत तुल्लमिदं ॥३७५।। जं गज्झगाहगोभयमणुभयरूवं व होज्ज विन्नाणं ? । जति गज्झरुवं मो ताण गाहगं अस्थि भुवणेऽवि ॥६७६॥ तदभावम्मि य कह गज्झरूवता अह सरूवगज्झाओ? नियरूवगाहगत्तेचि कहं णु तं गज्झरूवं तु ॥ ६७७ ।। अह गाहगरूवं चिय इय (च) वि गज्झस्सऽभावतो णेयं । विवरीय सव्वं चिय जं भणितं गज्झपक्खम्मि ।। ६७८ ॥ सिय तं उभयागारं विरोहभावा ण संगतमिदंपि। तेसिपि मिहो भेओऽभेदो उभयं व होजाहि ॥ ६७९ ॥ भेदे कहमेग णणु उभयागारं हेगवावितं । दोण्ह विरुद्धाण जतो दिटुं| इटुं च समयम्मि ।। ६८० ॥ अह उ अभेदो ता एगभावतो चेव जोमयागारं । परिगप्पणम्मि एवं अतिप्पसंगो पमासिद्धो ॥६८१॥ भेदाभेदी य विरोधदोसतो समयकोवतो चेव । बज्झत्थावत्तीए सम्म जुति न संसहइ ।। ६८२ ।। अह अणुभयरूवं चिय नत्थि जातयं हंदि खरविसाणं व । एवं च ठिए संते नाणम्मिवि तुज्झ का जुती? ॥ ६८३ ।। अह उ ससंवेदणसिद्धमेव णणु णिययमित्थ * ॥१०॥ विनाणं । अत्थस्स दंसणं इय सिद्धं नणु सयललोगेवि ॥ ६८१ ।। अह विसया आगारो म उ णाणं अत्यभणियदोसातो । सो कह C ॥१०॥ For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥१०॥ रई णु तओ जुत्तो ? तहेव किं वा न बज्झाओ? ॥ ६८५ ॥ अह उ अणागारं चिय विभाणं तहवि गाहगं तेमि ।। ४ बाह्याथअत्थस्सवि एवं चिय गाहणभावम्मि को दोसो ? ॥ ६८६ ॥ सागारअणागारं तु विरोहा कह णु जुज्जती मिद्भिः नाणं ? । भावेवि तदंतरगहणमो फडं अस्थतलं तु ॥ ६८७ ॥ अणुभयरूवमभावो तब्भावे सबसुन्नतावनी । सा अगुवमिद्धणं विरुज्झती निययनाणेगं ॥ ६८८ ॥ माणे इमीएँ भावो विणा तयं जइ इमीएँ सिद्धित्ति । तत्तोच्चिय अस्थम्मवि मिट्टीए निवारणमजुतं ॥ ६८९ ॥ न य स उपलद्धिलक्खगपत्ता जमदरिमणेऽवि ता तस्स । तदभावनिच्छयो । णणु एगनेणं कुतो सिद्धो ? ॥६२०॥ अह सो परस्म एवं तदभावो तस्स चेव सझोऽवि । तुह आयनिच्छयो कह ? अजुत्तितो सासमा णाणे ।। ६९१ ।। न य णाणायविरोहो सिद्धो अत्थस्स जणयतब्भावे । गम्मति इहराभावो सिद्धोए य कह तओ नन्थि ? *॥ ६९२ ।। गाहगपमाणविरहो एवं साधारणो उ नाणेवि । अस्थि य तं अत्थस्सवि सत्ता तह चेव अणिसेज्झा ॥ ६९३ ।। किंच इह नीलातो जायइ पीतादणेगधा णाणं । णय तं अहेतुगं चित्र को हेतू तस्स वनचं? ॥ ६९४ ॥ आलयगता अणेगा सत्तीओ पागसंपउनाओ। जणयति नीलपीतादिनाणमन्त्रो न हेतुत्ति ॥ ६५५ ।। ता आलयातो भिन्नाभिन्ना वा होज्ज' भेदपक्खम्मि । ता चेव उ बज्झत्थोऽभेदे सब्याणमगत्तं ॥ ६९६ ॥ एगो स आलयो जं तत्तोऽभिन्नाण णथि नाणतं । नाणत्तेवि य पावति तदभेदा 5. आलयबहुत्तं ॥ ६९७ ।। अह ता भिन्नाभिन्ना विरोहतो णेस संगतो पक्खो । ण य एगंतावच्चा अवञ्चसहप्पवित्तीओ।। ६९८॥ परि गप्पिता तु अह ता विसिफल कारणं कहन्नु मता ? । तभावा फलभावे आतिप्पमंगो स चाणिट्टो ।। ६९९ ॥ ता जो इमस्स हेतू ॥११॥ सो चिय बज्झत्थमोऽवमेणावि । अन्भुवगंतव्यमिदं एवं बज्झन्थमिद्वीओ।। ७०० ॥ अह तु सहायो हेऊ भावोऽभावो व होज्ज ? 9. Ch For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धिः * - ** धर्म | जति भावो । सो चेव उ बज्झत्थो अह तु अभावो ण हेउत्ति ॥ ७०१ ॥ सो भावोत्ति सहावा तस्सेव जमायरूवमो अह उ । तं चेव है बाह्यार्थसंग्रहणी कारणंतरविगलं पीतादिहेउत्ति ।। ७०२ ।। नीलत्ते सामन्ने कारणवियलत्तणे य किन्ने ? । अन्नपि नीलहेऊ जायइ पीतादिहेउत्ति ॥ ७०३ ।। अह तं विसिट्ठ चिव वइसिटुं हंत किंकयं तस्स ? । अह तु सहेतुकयं चिय ण तेसि तत्ताविसमातो ॥ ७०४ ॥ नीलक्षणजणगातो जाओ तस्सेव जुज्जई हेऊ । भेदगभावाभावा अतीतनीलक्खणा जह उ ॥ ७०५ ॥ कालो 15 उ भेदगो चेव तब्भवे कह ण बज्झसिद्धिति ? । नाणंतरंपि भिन्नाभिन्नद्धमजुत्तमेजुत्तं ( मेगता)॥ ७०६ ।। जायइ य नीलसंवेदणाउ | पीतादि तुह मतेणावि । ता जो इमस्स हेतू सो चिय बज्झत्थमो नेओ ।। ७०७ ।। सिय अघडमाणभावे तुल्ले दोहंपञ्भावओ होउ । Vानीसेसमुण्णयच्चिय (सरि:-) पडिहणिया अणुभवणेसा ॥ ७०८ ॥ न य न घडइ बज्झत्थो जमणू तल्लेतरादिरूवा उ । संसा जसा 8 य तओ जुना संबंधसिद्धित्ति ।। ७०९ ।। चेव खलु अणूणं पच्चासन्नत्तणं मिहो एत्थ । तं चेव उ संबंधो विमिट्टपरिणामसाविक्खं CI॥ ७१० ॥ देसेण संबंधो इय देसे सति य कहमणुतंति ? । अप्पतराभावातो णहप्पतरयं तओ अस्थि ॥ ७११ ॥ पचासत्ती य Pामिहो तेसि धम्मतराणुवेधातो । धम्मतरभावातो गहणं इस समुदियाणं तु ।। ७१२ ॥ दिसिर्भयाउ चिय सकभेदओ कह ण अप्प- | तरगति ? । दवेण सकभेदं विवक्खितं ता कुतो तमिह ? ।। ७१३ ॥ तस्मवि सदवत्थाणा दिसभेदो सो य तस्स धम्मोत्ति । तदभावे भावातो अपदेसो दब्बताए तु ॥ ७१४ ॥ स्वादिसंगतो जंण य रूवाणूवि केवलो अस्थि । तस्स रसादणुवेहा तेसिपि य तदणुवेधातो ॥ ७१५ ॥णयऽमुत्ता एवं गुगा एते खस्सव तदणुवेहीव । अद्दरिमणप्पसंगा मुत्तामुत्तेकभावो वा ॥ १६ ॥णय ॥१२॥ जुत्तं अणुमत्तं सत्ताओ सव्यहावि सजोगे । बादरमुत्तत्ताणासभावतो उवचयविमेसा ॥ ७१७ ॥णय अवयवी विभिन्नो एगतेणध्वय ** * For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाह्यार्थ सिद्धिः वाण जइ णेहिं । इच्छिज्जइत्ति दोसा तदणुगता तेण णो जुत्ता ।। ७१८ ।। एगाणेगसरूवं वत्थु च्चिय दयपज्जवसहावं । जह संग्रहणी दिाचेव फलनिमित्तं तह भणियं जिणवरिंदेहि ॥ ७१९ ॥ रज्जुम्मि सप्पणाणं एमादि जमुत्तमेयमवि मोहो । बज्झत्थाभावे जरज्जू सप्पो कुतो एयं ? ॥ ७२० ॥ सिय भंतिमेत्तमेयं वत्तव्यं को इमीए हेउत्ति ? । निरहेउगा ण जुत्ता सइभावाभावदोसाओ ।। ७२१ ॥ अह |तु अविज्जाहेतू सावि ण णाणा पुढो तुहं काई । तंपि इह हेउ नाणं तओ विसेसो य पडिभाणी ।। ७२२ ॥ किंचेह सच्चपुब्बा दिट्ठा भंती मरीयिमादीसु । तं पुण किमेत्थ विनाणमेत्तमेतपि पडिसिद्धं ।। ७२३ ॥ विनाणमेत्तपक्खवि जं व रागादिया धुवं | दोसा । ता तेण तन्निमित्ता को णु पओसो तुहऽन्नत्थ ? ॥ ७२४ ॥ सिय तब्बुद्धिनिमित्ताऽसंतो सो बुद्धिकारण किह णु ? । जह वंझापुत्तादी ण तत्थ संबंधपडिसेहा ।। ७२५ ॥ एवं किमत्थि अनं? जमेत्थ उहिस्स अत्थजोगस्स । कीरइ पडिसेहो सति च तम्मि अत्थो कह नत्थि ? ॥ ७२६ ॥ सिय सबक्खोवक्खारहिओ वंझासुओ मओ एत्थ । कह तम्मि हंत नाणं अभिहाणं वावि पुवुत्त? ॥ ७२७ ।। भावोवलंभओ च्चिय केइ अभावोऽवि गम्मती तुच्छो । एयमिह उबलभामि एयं तु न (नेव )त्ति विनाणा ।।७२८।। तुच्छत्तं एगता एतं तु णवत्तिसहवित्तीउ । कह सिज्झतित्ति ? तम्हा वत्थुसहावो अभावो वा ।। ७२९ ।। न तुच्छमि तम्मि य (भावेऽवऽस्स न तुच्छे) नाणं सद्दो य सव्वहा कमति । ता वंझासुतणातं न संगयत्थं ते (स) विनाणा ॥ ७३० ।। इय अस्थि नाणगम्मो बज्झो अत्थो न अन्नहा णाणं । जुज्जइ सागारं तह बुद्धस्स य दाणपारमिता ।। ७३१ ॥ तं केवलं अमुत्तं न य आगारी इमस्स जुत्तेत्ति । तदभावम्मि य पावइ वत्तं संवेयणाभावो ।। ७३२ ।। ता विसयगहणपरिणामतो तु सागारता भवइ तस्स । तद- भावे तदभावो न य सो तम्हा तओ अत्थि ।। ७३३ ॥ एतेणं आगारो भिन्नोऽभिन्नोत्ति एवमादीयं । जं भणियं तं सव्वं पडिसिद्धं ! ॥१०३॥ For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमस्थिति लाभश्व. होइ दडव्वं ।। ७३४ ।। जं गाहगपरिणामो णियतो नाणम्मि होइ आगारो । न विसयगतसंकमतो जहुत्तदोसप्पसंगातो ।। ७३५ ॥ संग्रहणी ण य गज्झमंतरेणं सो जायइ जेण तेण तस्सिद्धी । तत्तो तु संगया बज्झदसणाणुभवतो चेव ।। ७३६ ॥ देंतस्स हिरबादी अब्भासा देहमादियं चेव । अग्गहविणिवित्ती जा सेट्ठा सा दाणपारमिया ।। ७३७ ॥ तदभावम्मि य कह सा ? चित्ताओ चेव दाणरूवाओ। तंऽपऽगहिते ण जुत्तं अत्थम्मि गहोवि कह (जह ) पुचि ।। ७३८ ॥ अग्गहियम्मिवि जायइ चित्तुप्पातो तहाविहो तस्स । निय18 हेतुसहावातो इतरस्सवि लुद्धचित्तस्स ।। ७३९ । माण किमत्थ तुझं? पच्चक्खं ताव ण घडई चेव । अविगप्पगं जमिहूँ अगाहगं दातह य अन्नस्स ।। ७४० ॥ अणुमाणपि हु तप्पुवगति णो गाहग अहिगतस्स । णय अन्नमत्थि माणं एतममाणं कह हवतु ? ॥ ७४१ ॥ बज्झत्थाभावातो भत्ती एसा इमो तु देहोत्ति । विनाणमेत्तमेव उ परमत्थु विहाडिओ एवं ।। ७४२ ।। तम्हा मुत कम्म सिद्धमिदं जुत्तिओ इह ताव | परमत्थपेच्छगेहि जिणवयणाओ य विनेयं ।। ७४३ ।। एतस्स एगपरिणामसंचियस्स तु ठिती समक्खाया । उक्कोसेतरभेदा तमहं वोच्छ समासणं ॥ ७४४ ॥ आदिल्लाणं तिहं चरिमस्म य तीस कोडिकोडीओ। अतराण मोहणिज्जस्स सत्तरी होति विनेया ।। ७४२ ।। नामस्स य गोत्तस्स य वीसं उक्कोसिया ठिती भणिया । तेतीस सागराई परमा आउस्स बोद्धब्बा ॥ ७४६ ।। वेदणियस्स उ बारस नामगोयाण अट्ठ तु मुहुत्ता । सेसाण जहन्नठिती भिन्नमुहुत्तं विणि दिवा ॥ ७४७ ॥ ॥१०४॥ जीवस्स कम्मजोगो इति एसो दंसिओ समासेणं । एत्तो पुबुद्दिडं वोच्छामि अहक्कम धम्मं ।। ७४८ ।। सम्मत्तनाणचरणा मोक्खपहो वनिओ जिणिंदेहिं । सो चेव भावधम्मो बुद्धिमता होति नायव्यो ।। ७४९ ।। ॥१०४॥ For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संपत्ती य इमस्सा कम्मखयोवसमभावजोगातो । जह जायइ जीवस्सा बुच्छामि तहा समासेणं ।। ७५० ॥ वन्नियकम्मस्स कमस्थितिः मंगरणीत जया घंसणघोलणनिमित्ततो कहवि । खविता कोडाकोडी सब्वा एकं पमोचूणं ।। ७५१ ॥ तीयवि य थेवमेत खविए ताहिमंतरम्मि सम्यक्त्व लाभश्च जीवस्स । भवति हु अभिन्नपुवो गंठी एवं जिणा ३ति ॥ ७५२ ॥ गठित्ति सुदुम्भेदो कक्खडघणरूढगूढगंठिन्य । जीवस्स ॥१०५॥ 18/ कम्मजणितो घणरागद्दोसपरिणामो।। ७५३ ।। भिन्नम्मि तम्मि लाभो जायइ परमपयहेतुणो नियमा। सम्मत्तस्स पुणो तं बंधण न4 | वोलइ कयाइ ॥ ७५४ ॥ तं जाविह संपत्ती ण जुज्जई तस्स निग्गुणत्तणओ। बहुतरबंधातो खलु सुत्तविरोधा जओ भणियं ।। ७५५॥ | पल्ले महइमहल्ले कुंभं पक्खिबइ सोधए नालिं । अस्संजए अविरए बहु बंधइ निज्जरे थोवं ।। ७५६ ॥ पल्ले महइमहल्ले कुंभ सोधेइ द पक्खिये नालिं। जे संजए पमत्ते बहु निज्जर बंधई थोवं ।। ७५७ ।। पल्ले महइमहल्ले कुंभं सोहेइ पक्खिव ण किंचि । जे संजय | अपमत्ते बहु निज्जर बंधति न किंचि ॥ ७५८ ।। एयमिह ओघविसयं भणिय सचे ण एवमेवत्ति । अस्संजतो उ एवं पडुच्च उस्सनभावं तु ।। ७५९ ।। पावइ बंधाभावो उ अन्नहा पोग्गलाणऽभावातो। इय बुद्रिगहणतो ते सब्वे जीनेहिं जुज्जन्ति ।। ७६०।। मक्खिाऽसंखेज्जातो कालाओ ते यजं जिएहिंतो। भणियाणंतगुणा खलु ण एस दोसो ततो जुतो ।। ७६१ ॥ गहणमर्णताण ण किं जायइ समएण? ता कहमदोसो।। आगमसंसाराओ ण तहाणताण गहणं तु ।। ७६२॥ आगममोक्खाओ किं? विसेसविसयत्तणेण सुत्तस्स । तं जाविह संपत्ती न घडइ तम्हा ण दोसो तु ।। ७६३ ।। सा किं सहावतो चिय उदाहु गुणसेवणाएँ इत्ति । B ॥१०५॥ | जइ ता सहावओ चिय उड्डेपि निरस्थिगा किरिया ।। ७६४ ॥ अह उ गुणसेवणाए, मिच्छादिहिस्स के गुणा पुधि। तन्धिबंधातो चे, सोवि तहा केग कम्जेण? ॥ ७६५ ।। परिणामविसेसातो, तस्सविय तहाविहस्प को हेऊ? | जइ ताव सहावोच्चिय, MC For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 धर्म संग्रहणी पडिभणिओ हंत सो पुचि ॥७६६।। हेउअभावो य तओन पुण पयत्यंतरं मतो तुम्भ । ईसरमादिपसंगा एवं च स किन्न सव्वेसि से सम्यक्त्व॥ ७६७ ॥ णो हेउअभावोच्चिय तओ मओऽभावतो अहेऊओ। णेव पदत्थंतरमो जुत्तो पुव्वुत्तदोसाउ ॥ ७६८ ॥ इट्ठो य वत्थु- कास्य प्राप्तिधम्मो पतिणियतो जं च ताण सम्वेसि । णय माणबाधितो सो सम्मादुवलंभभावातो ॥ ७६९ ॥ भैदाश्च. वेययतो पतिसमयं चित्तं कम्मं सवीरिउकरिसा । सो होइ जीवधम्मो जो तस्संपत्तिहेउत्ति ।। ७७० ॥ तम्मि य सती अवत्ता खंतादिगुणावि इतरवेक्खाए । तस्सेवणाएऽवि तओ संपत्ती तस्स तं जाव ।। ७७१ ॥ एसा य वत्थुतो निग्गुणेति असइंति बनिया समए । णियमा ण सम्महेतू सम्म पुण मोक्खहेउत्ति ।। ७७२ ।। एतेण सम्मलाभे कह णु अणंतभवभावितो सिग्छ । संसारोत्ति जिआणं नासइ! एयपि परिहरितं ।। ७७३ ॥ ओहेण दीहकालो जम्हा पडिवक्खभावणाएवि । सम्मत्तं तीऍ फलं केवलमिव | चरणकिरियाए ॥ ७७४ ।। जह केवलम्मि पत्ते तेणेव भवेण वनिओ मोक्खो । पगरिसगुणभावातो तह संमत्तेऽवि स स मओ है।। ७७५ ॥ पगरिसगुणो य एसो जम्हा समएऽवि सव्वजीवाणं । गेवेजगोववातो भणितो तेलोकदसीहि ॥ ७७६ ।। सो दव्वसंज मेणं पगरिसरूवेण जिणुवदिट्ठणं । तब्भावेऽवि ण सम्मं एवमिदं पगरिसगुणोत्ति ||७७७|| तब्भावम्मि य नियमा परियट्टद्धणमो उ | संसारो । णय सो सम्बेसि जओ ता तब्भावेऽवि तं नथि ॥ ७७८ ॥ पत्तुक्कस्सठितीणं विचित्तपरिणामसंगयाणं च । सव्वेसि | जीवाणं कम्हा णो वीरिउकरिसो ? ।। ७७९ ।। कत्थइ जीवो बलिओ कत्थइ कम्माई होति बलियाई । एएण कारणेण सव्वेसि न | वीरिउक्करिसो ॥ ७८० ॥ केइ उ सहावउच्चिय कम्मं जेऊण चिक्कणतरंपि । णियविरियाउ पवज्जइ तं धम्म तेण तज्जोगो ॥७८१॥ 2॥१०६॥ सो पुण तस्स सहावो ण कम्महेतू ण यावि अनिमित्तो । नियधम्मत्ता, ण भवति सदा य सो कम्मदोसेणं ।। ७८२ ॥ जिणइ य| C24 ॥१०६॥ For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 15 बलवंतंपि हु कम्म आहच्च वीरिएणेव । असइ य जियपुचो विह मल्लो मल्लं जहा रंगे ॥ ७८३ ॥ एत्तोच्चिय निद्दिट्ठा तुल्लबला | सम्यक्त्वसंगटीटा दिब्बपुरिसगारावि । समयन्नहिं अन्नह पावइ दिद्वेहवाहा उ॥७८४॥ होअतकिय चिय देवकयं तंति तस्स पाहना । उवसज्ज-ICI स्य प्राप्ति भेदाच. | णभूओ पुण अत्थि तहिं पुरिसगारोऽवि ।। ७८५ ॥ जं पुण अभिसंधाओ होइ तयं पुरिसगारसझंति । तप्पाघनत्तणतो दिव्वं | ॥१०॥ उवसज्जर्ण तत्थ ॥७८६॥ एवं जज्जड पगतं दीसह सम्मादियं च ज तेग | सेसा जातिविरप्पा हवंति ता कि पसंगण ।।। ७८७ ॥ | पगतं वोच्छामि अतो गंठिब्भेदम्मि दंसणं नियमा । सो दुल्लभो परिस्समचित्तविघायाइविग्घेहिं ।। ७८८ ।। सो तत्थ परिस्सम्मति घोरमहासमरनिग्मतादिव्य । विज्जा व सिद्धिकाले जह बहविग्घा तहा सोऽवि ।।७८९॥ कम्महिती सुदीहा खविता जइ णिग्गुणण | सेसपि । स खवेउ निग्गुणो च्चिय किं थ पुणो दंसणादीहिं ।। ७९० ॥ पाएण पुसेवा परिमउई साहम्मि गुरुतरिया । होइ महाविज्जाए किरिया पायं सविग्धा य ।। ७९१ ॥ तह कम्मठितिक्खवणा परिमउई मोक्खसाहणे गुरुई । इय दंसणादिकिरिया दुलहा पायं सविग्धा य ।। ७९२ ।। अहव जओ च्चिय सुबहु खवितं तो णिग्गुणो ण सेसपि । स खवेइ लभइ य जओ संमत्तसुया| दिगुणलाभं ।। ७९३ ।। करणं अहापवत्तं अपुबमणियट्टिमेव भब्वाणं । इतरेसिं पढम चिय भण्णइ करणं तु परिणामो ॥ ७९४ ।। | जा गंठी ता पढम गठिं समइच्छतो अपुवं तू । अणियट्टीकरण पुण संमत्तपुरक्खडे जीवे ॥ ७९५ ॥ संमनपि य तिविहं खओवस| मियं तहोवसमियं च । खइयं च कारयादि य (व) पन्नत्तं वीयरागेहिं ॥७९६।। मिच्छत्तं जमुदिनं तं खीण अणुदियं च उवसंतं । डा॥१०७॥ | मीसीभावपरिणतं वेदिज्जतं खओवसमं ॥ ७९७ ॥ उपसमियसेढिगयस्स होइ उबसामिय तु सम्मत् । जो वा अकयतिपुंजी अखवियमिच्छो लभइ सम्मं ॥ ७९८ ।। खीणम्मि उदिनम्मि उ अणुदिज्जते य सेसमिच्छत्ते । अंतोमुहुत्तमेवं उवसमसम्म लभइ CCC 4 For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सम्यक्त्वा धिकारः संग्रहणी ज्ञानाधि कारश्च CARRECTORS जीवो ॥ ७९९ ।। ऊसरदेसं दडिल्लयं च विज्झाइ वणदवो पप्प । इय मिच्छस्स अणुदए उवसमसम्म लभइ जीवो ॥ ८०० ॥ खीणे दंसणमोहे तिविम्मिवि भवणिदाणभूयम्मि । निप्पच्चवातमतुलं सम्मत् खाइगं होति ।। ८०१ ।। जं जह भणिय तं तह करेइ सति जम्मि कारंग तं तु । रोयगसंमत्तं पुण रुइमेत्तकरं मुणेयव्वं ।। ८०२ ।। सयमिह मिच्छद्दिट्ठी धम्मकहाइहिं दीवति परस्स। सम्ममिण जेण दीवग कारणफलभावतो नेयं ।। ८०३ ॥ तबिहखओवसमतो तेसिमणूणं अभावतो चेव । एवं विचित्तरूवं सणिबंधणमो मुणेयत्वं ।। ८०४ ॥ किं चेहुवाहिभेदा दसहावि इमं परूवियं समए । ओहेण तंपिमेसि भेदाणमभिन्नरूवं तु ॥ ८०५ ॥ तं उवसमसंवेगादिएहि लक्खिज्जए उवाएहिं । आयपरिणामरूवं बज्झेहिं पसत्थजोगहि ॥ ८०६ ॥ एत्थ य परिणामो खलु जीवस्स। सुहो उ होइ विबेओ । किं मलकलंकमुकं कणगं भुवि झामलं होइ ? ॥ ८०७॥ पयईएँ व कम्माण वियाणिउं वा विवागममुहंति। अवरद्धेवि न कुप्पइ उवसमतो सव्वकालंपि ॥ ८०८ ।। नरविबुहेसरसोक्खं दुक्खं चिय भावतो तु मन्नतो । संवेगतो न मोक्खं मोत्तूणं किंपि पत्थेइ ।।८०९।। नारयतिरियनरामरभवेसु निव्वेदतो वसति दुक्खं । अकयपरलोगमग्गो ममत्तविसवेगरहितोवि।।८१०॥ दहूण पाणिनिवहं भीमे भवसागरम्मि दुक्खत्तं । अविसेसतोऽणुकंप दुहावि सामत्थतो कुणति ॥ ८११ ।। मन्नति तमेव सच्च नीसंकं जं जिणहिं पन्नत्तं । सुहपरिणामो सव्वं कंखादिविसोत्तियारहितो ॥ ८१२ ॥ एवं विहपरिणामो सम्मादिट्ठी जिणेहिं पन्नत्तो । एसो य भवसमुद्दे लंघइ थोवेण कालेणं ।। ८१३ ।। जं मोणं तं सम्मं जं सम्मं तमिह होइ मोणति । निच्छयतो इतरस्स उ सम्म सम्मत्तहेऊवि ॥ ८१४ ॥ ॥१०८|| ॥१०८॥ For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥१०९॥ 64-62-% पंचविहावरणखयोवसमादिनिबंधणं इह नाणं । पंचविहं चिय भणियं धीरेहि अणतनााहिं॥८१५|| आभिणिबोहियनाणं सुयणाणंठा ज्ञान भद चेव ओहिणाणं च । तह मणपज्जवनाणं केवलनाणं च पंचमयं ॥ ८१६॥ चंदोव्य होइ जीवो पयतीए चंदिमव्व विनाणं । सिद्धिः घणघणजालनिहं पुण आवरणं तस्स निद्दिट्ट ।।८१७|| तस्स य खओवसमओ नाणं सो उण जिणेहिं पन्नचो । कोई सहावतो च्चिय कोई पुण अहिगमगुणेहिं ।। ८१८ ।। एगिदियादियाणं ओहेण सहावतो मुणेयब्यो । अहिगमतो तु पगिट्ठो सो उण पंचिदियाण तु ॥८१९॥ नाणस्स णाणिणं णाणसाहगाणं च भत्तिबहुमाणा। आसेवणवुड्डादी अहिगमगुणमो मुणेयन्वो ॥८२०॥ सुहपरिणामत्तणओ किलिट्ठपरिणामसंचितमणतं । एएहि भब्धसत्तो नियमेण खवेइ आवरणं ॥८२१॥ पवणदरवियलिएहिं घणघणजालेहिं चंदिमव्व तओ। चंदस्स पसरह भिसं विस्स तहाविहं नाणं ।। ८२२ ।। जमवग्गहादिरूवं पच्चुप्पन्नत्थगाहगं लोए । इंदियमणोनिमित्त तं आभिणिबोहिंग बेति।।८२३।। जं पुण तिकालविसय आगमगंथाणुसारि विनाणं । इंदियमणोनिमित्तं तं सुयनाणं जिणा बिति८२४॥ ओहिनाणं भवज खओवसमियं च होति नायब्वं । तेयाभासंतरदब्बसंभवं रूविविसयं तु ॥ ८२५ । मणपज्जबनाणं पुण जणमणपसिचिंतितत्थपागडण । माणुसखेत्तनिबद्धं गुणपच्चइयं चरित्तवतो ॥ ८२६ ॥ अह सब्बदवपरिणामभावविन्नत्तिकारणमनंतं । सासयमप्पडिवाई एगविहं केवलं नाणं ।। ८२७ ॥णत्तेगसहावत्ता आभिणिबोहादि किंकओ भेदो? । नेयविसेसाओ चे ण सव्वविसय जतो चरमं ।। ८२८ ॥ अह पडिबत्तिविसेसा गम्मि वऽणेगभेदभावातो । आवरणविभेदोऽवि हु सहावभेदं विणा न भवे ॥८२९|| तम्मि य सति सब्वेसि खीणावरणस्स पावती भावो । तद्धम्मत्तातो च्चिय जुत्तिविरोहा स चाणिट्ठो।। ८३० ॥ अरहावि असव्वन्नू ॥१०९॥ आभिणियोहादिभावतो नियमा । केवलभावातो चे सब्वन्नू णणु विरुद्धमिदं ॥ ८३१ ।। चरमावरणस्स खओ पइसमयं चरमए व For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी . -% त होजाहि । पतिसमये तब्भावेऽसगलो सो कस्स भेदोति ॥८३२॥ अह सतिवि तम्मि भावो ण तस्स पतिसमयमेव इट्ठोति । ज्ञान भेद कहमाभिणिबोहादिसु तब्भावे हंत भावोत्ति ? ।। ८३३ ॥ सिय चरमए च्चिय खओ कह तीरइ एत्तियस्स काउंति ? । ण यP सिद्धिः | पोग्गलाण समए अणंतकालं ठिती भणिता ॥ ८३४ ॥ तम्हा अवग्गहातो आरब्भ इहेगमेव णाणति । जुत्तं छउमत्थस्साऽसगलं इतरं तु केवलिणो ॥ ८३५ ॥ आचार्यः-णत्तेगसहावत्तं ओहेण विसेसओ पुण असिद्धं । एगततस्सहावत्तणे उ कह हाणिचुड्डीओ ? ॥ ८३६ ॥ जं अविचलियसहावे णाणे एंगततस्सभावत्त । ण य तं तहोवलद्धा उक्करिसापकरिसविससा ॥ ८३७ ॥ तम्हा परिथूरातो निमित्तभेदातो समयसिद्धातो । उववत्तिसंगओ च्चिय आभिणिबोहादिगो भेदो ॥ ८३८ ॥ घातिक्खयो निमित्तं केवलनाणस्स वनिओ समए । मणपज्जवनाणस्स उ तहाविहो अप्पमादोत्ति ॥८३९ ॥ ओहिनाणस तहा अणिदिएरॉपि जो खओवसमा । मतिसुयनाणाणं पुण लक्खणभेदादिणा भेओ॥८४०॥ एवं च सव्वविसयं जतिवि य चरममिह तहवि सिद्धो तु । यविसेसो | तेर्सि धम्मंतरजुत्तसिद्धीओ ॥ ८४१ ॥णय पडिवत्तिविसेसा एगम्मि अणेगभेदभावोऽवि । ज ते तहाविसिट्टे ण जातिभेदे विलंधीत | ॥८४२॥ णावरणभेदोवि हु सहावभेदेवि दोसहउत्ति । खीणावरणस्स जतो सब्वेसि ण संगतो भावो ॥ ८४३ ॥ छउमत्थसामि | गत्ता तब्भावावगमतो य तस्सत्ति । तद्धम्मत्तेऽवि तओ जुत्तिविरोधोत्ति वइमेतं ।। ८४४ ॥ जमिह छउमत्थधम्मा जम्मादीया ण ॥११०॥ | होति सिद्धाणं । इय केवलीणमाभिणिबोहाऽभावम्मि को दोसो ? ॥ ८४५ ॥ अन्ने भणंति आभिणिबोधादीणिवि जिणस्स विज्जति । अफलाणि य सूरुदए जहेव णक्खत्तमादीणि ।। ८४६ ॥ सहकारिहेतुविरहा तस्साभावाउ चेव नायव्यो । केवलभावातो इय सव्वन्नु ॥११॥ दत्तम्मि अविरोहो ॥८४७॥चरमावरणस्स खए पतिसमम्मिवि ण तस्स भावोत्ति । तस्साहव्वाउच्चिय तब्बंधातो य पतिसमय।।८४८॥ SISAKOS E5% For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म |ता चरमए च्चिय खओ झाणविसेसातो तीरए काउं । चिरसंचियपि हु तण खणेण दावानलो दहति ॥ ८४९ ॥ एवं अवग्गहातो ज्ञान भेद संग्रहणीदाआरम्भ इहेगमेव नाणंति । मिच्छत्तमेव अहवा णो खलु सामन्नध्वेक्खाए ||८५०|| कमकरणे पुण भणियं पओयणं दिसमयसारेहिं ।।ला | आभिणियोहादीण वोच्छामि तय समासेणं ॥ ८५१ ॥ जं सामिकालकारणविसयपरोक्खत्तणोहं तुल्लाई । तब्भावे सेसाणि य तेणा-1 ॥११॥ | इए मातिसुताई ॥ ८५२ ।। मतिपुव्वं जेण सुयं तेणादीए मती विसिट्ठो वा । मतिभेदो चेव सुतं तो मतिसमणंतरं भणियं ॥८५३ ॥13 कालविवज्जयसामित्तलाभसाहम्मतोऽवही तत्तो । माणसमेत्तो छउमत्थविसयभावादिसामन्ना (धम्मा) ।। ८५४ ।। अंत केवल-| मुत्तमजतिसामित्तावसाणलाभातो । एत्थं च मइसुयाई परोक्वमितरं च पच्चक्खं ।। ८५५ ॥ चारित्तं परिणामो जीवस्स सुहो उ होइ विन्नेओ । लिंगं इमस्स भणियं मूलगुणा उत्तरगुणा य ।। ८५६ ॥ पाणाइवातविरमणहै मादी णिसिमत्तचिरतिपजंता। समणाणं मूलगुणा पन्नत्ता वीयरागहिं ।। ८५७ ॥ सुहमादीजीवाणं सब्वेसिं सब्बहा सुपणिहाणं । पाणाइवायविरमणमिह पढमो होइ मूलगुणो ।। ८५८ ॥ कोहादिपगारेहिं एवं चिय मांसविरमणं वितिओ । एवं चिय गामादिसु अप्पबहुविवज्जणं तइओ ।। ८५९॥ दिव्वादिमेहुणस्स य विवज्जणं सबहा चउत्थो उ । पंचमगो गामादिसु अप्पबहुविवज्जणेमेव X १८६० ॥ असणादिभेदभिन्नस्साहारस्सा चउब्धिहस्सावि । निसि सब्बहा विरमणं चरमो समणाण मूलगुणो ॥ ८६१ ।। हिंसायां केइ * ४.न वेदविहिता हिंसा दोसाय साहुसकारा । दिटुं च तबिसेसा अयपिंडादीण तरणादी ।। ८६२ ॥ बुहह जलि मुको अयपिंडो सक्काIC रिओ य तरइत्ति । मारणसत्तीवि विसं साधु पउत्तं गुणं कुणति ।। ८६३ ॥ तह दाहगोऽवि अग्गी सच्चादिपभावतो न दहइति । इय विहिसकारावो हिंसावि तई न दोसाय ॥ ८६४ ॥ सत्थत्यमि य एवं न होइ पुरिसस्स एत्थ किं माणं? । न य कुच्छिता तई OCALCIENSESSACROSAROKAR ॥१११॥ For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म | मिडिः संग्रहणी -CA जं जयमाणा लोगपुज्जत्ति ।। ८६५ ॥ दिद्रुतबला एवं वदति मुद्धजणविम्हयकरं ते । तेण समं वेधम्म असाहगमिणं न पेच्छति | | ज्ञान भेद ॥८६६ ॥ अयपिंडे भावंतरभावो पच्चक्खसंपसिद्धो उ । तणुरूवो न य दीसइ पसुम्मि सो वेदविहिणावि ॥ ८६७ ॥ देवत्वं से | भावंतरंति किं तस्स गाहगं माणं । सिय आगमो न सो च्चिय विवादविसयो जतो एत्थ ।।८६८॥ परिणामविसेसातो पुढवादिवहो ऽवि अह जिणायतणे । भणिओ गुणाय एवं वेदवहो हंत किन्न भवे ।। ८६९ ॥ परिणामविसेसोऽवि हु सुहबज्झगतो मतो सुहफ| लोत्ति । ण उ इतरो मेच्छस्स उ जह विष्पं घाययंतस्स ।। ८७०॥ण य सो सुहबज्झगतो वेदबहे हवति जो उ परिणामो । मोत्तूण | आवइगुणं पंचिंदियघायहेतूओ ।। ८७१ ।। सइ सवत्थाभावे जिणाण भावावयाएँ जीवाणं । तेसि नित्थरणगुणं पुढवादिवहेऽवि | आयतणं ॥ ८७२ ।। साहुणिवासो तित्थगरठावणा आगमस्स परिवुड्डी । एक भावाचइनित्थरणगुणं तु भव्वाणं ।। ८७३ ॥ साहुणिवासा सद्धम्मदेसणा धम्मकायपरियरणं । तित्थगरठावणातो परमगुरुगुणागमो भणितो ॥ ८७४ ॥ सज्झायझाणकरणे आगमपरिवड्डणं ततो नियमा । रागादीण पहाणं ततो य मोक्खो सदासोक्खो ।। ८७५ ।। ता इय सुहबज्झगतो संविग्गस्स जयणापवत्तस्स । जिणभवणकायघाते परिणामो होइ जीवस्स ।। ८७६ ॥ न य सोऊण पयत्थं जं किंचि जहाकहंचिसाधम्मा । चासप्पंचाससमा अबरम्मि पगप्पणा जुत्ता ।। ८७७ ।। जायइ अतिप्पसंगो एवं भावाण ण य ववत्थत्ति । तदभावे सत्थंपि हु विहलंति विडंबणा सव्वं || ८७८ ॥ ण य इह वेदवहम्मी दीसइ गुण मो, पदाणमह इई। वहमन्तरेण तं किं संपति लोए ण संभवति ? ॥८७९|| बज्झा- ॥११२॥ | णवि उवगारो इहं अदिट्ठो उ पेच्च अपमाणो । फलमवि वभिचारातो ण पमाणं एत्थ विदुसाणं ॥ ८८० ॥ एवं विहिसकारो एत्थ । असिद्धो तु होति नायब्वो। तदभावम्मी य साहणविगला सब्वेवि दिता ॥८॥ अह मंतपुधगं चिय आलभणं सव्वहा पयत्तेणं । विहि ११ For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18| सकारो भन्नति तेसिपि इहेव वभिचारो ॥८८२॥ वीवाहे तह गम्भाहाणे जणणे य मंतसामत्थं । दिलै विसंवयंत विणावि तं संवयंत वैदिकहिंसा संगीताच ॥ ८८३ ।। अह तत्थ विसंवादो किरियावेगुन्नतो, ण माणमिह । किं किरियावइगुण्णा' किंवा तदसाहगत्तणं ।। ८८४ ॥ तेर्सिाला निरास: फलेण सिद्धे अविणाभावम्मि जुज्जई एयं । न य सो सिद्धो जम्हा विणावि तं तस्स भावोत्ति ।। ८८५ ।। सत्थत्थम्मिवि एवं न होइ पुरिसस्स एत्थ माणमिणं । जं खलु दिट्ठविरोहो गम्मति तेणं अदिद्वेऽवि ।। ८८६ ।। अह अत्थवादवकं एतं एकोऽवि जह नमोक्कारो। ॥११३॥ सत्थत्यो होइ विही जह मोक्खो नाणकिरियाहिं ।। ८८७ ॥ एकोऽवि नमोकारो सम्म कतो सम्मभावतो चेव । तारेयऽबड्डपोग्गल| मज्झे नियमेण, कह णु थुती? ॥ ८८८ ॥ण य इह तवचरणाणं न दीसई कम्मल हुगया जेण । तेणं दिट्ठत्थेवि हुन विरुज्झइ हंत | जिणवयणं ।। ८८९ ॥ आरोगबोहिलाभं समाधिवरमुत्तमं च मे दिंतु । जह एत्थं तदभावो इहेव तह चैव तेसिपि ।। ८९० ।। भासा असच्चमोसा परिणामविसुद्धिकारणं एसा । उत्तमफलविसया तो भणितावितई न दोसाय ।। ८९१ ॥ हेयोवादाणाओ संसारनिबंध|णाओ वेदस्स । तह यापउरिसभावा ण य वीवाहादिया एवं ॥ ८९२ ।। ण य कुच्छिया तई जं भणियं तं सव्वहा अजुत्तं तु । नाणीहिं कुच्छियच्चिय तहेव वेदंतवादीहिं ।। ८९३ ।। अंधम्मि तमम्मि खलु मज्जामो पसुहिं जे जयामोत्ति । एपादि बहुविई किं भणियं वेदंतवादीहिं ।।८९४॥ एतेणं यजमाणा बुहे पडुच्चा ण लोगपुज्जात्त । अवुहाणं पुण पुज्जा मंडलगाईवि किं तेहिं ॥८९५|| मृषावाद-अ उ मुसाबाओ नियनिंदाकारणं न दासाय । जह बंभघातगोऽहं एमादि पभासयन्तस्स ।।८९६॥ दोसाणमभुवगर्म || 6 अक्कोसाणं च विसहणे सम्म । होति जितोऽजितपुब्बो भवतरुहेतू अहंकारो।।८९७॥ एवमिदमकातव्यं वेरग्गनिबंधणं च अन्नेसि । जायइ ॥११३॥ सो इय सपरुवगारातो चेव कह दोसो? ।। ८९८ । इय दोसाणभुवगमे अविज्जमाणाणमत्तदोसातो । अकोसे परबंधा इय अन्नाणा RECASCARSANSACT For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से कहमदोसो?॥८९९।। अकोसाणवि सहणं जं सयमणुदरिणं करितस्स । उत्तरगुणचिंताए जायइ त होइ सम्मं तु॥९००॥विसहामि अहं सम्मं असत्यमृषा संग्रहणी अकोसे चिंतिउं उदीरयतो। णहिगतरो लक्खिज्जइ मोहसहावो अहंकारो॥९०१।। एदहमेतेण इमं अबेइ ता आवदीऍ कायन्वं । सो चेव निरासः किं न जायइ इय बुद्धिनिबंधणं णेसि ॥९०२।। सत्थे पडिसिद्धं चिय कुणमाणं तह य पेच्छमाणस्स। तं चेव जायइ दढं घेरग्गनिबंधणं एकान्त| तस्स ॥ ९०३ ।। इय अच्चंतमसिद्धो मपरुवगारो बुहेहिं नायब्वो । नियनिंदाहेऊ चिय दोसाय तओ मुसावातो ॥ ९०४ ॥ एगतेठाणेव इमं एवं एवं च एवमादीति । वत्थुस्स तहाऽभावा पीडाहेऊ य अलियं तु ॥९०५ ॥ तह जो सुई करेई एगतेणेव बंधइ सुहं | सो । सपरोभयतब्भावेण, परिस्थिभोगेण वहिचारो ।। ९०६ ॥ दुक्खकरो चिय एवं नेगतेणेव बंधई असुहं । जह लोयादि करता सपरोभयदुक्खहेऊवि ।। ९०७ ॥ न य सुहमसुहस्सेवा उ निबंधणं जं जतीण पसमसुहं । निव्वाणसुहनिमित्तं भणियं तेलोक्कदंसीहि | 18||९०८|| दखपि न सोक्खस्सेव कारणं जमिह तेणयादीणं । चित्ता कदत्थणा खलु नारगदुक्खस्स हे उत्ति ॥९०९॥ एकान्तनिरासः-इय अस्थि चव आया अहवा नस्थित्ति दोवि एगता। एगतेणं भावाभावपसंगाओं अलियं तु ॥९१०|| एगंतेणs & त्थित्ते अन्नोऽन्नाभावविरहतो तस्स । पररूवेणवि भावो तेसि सरूवं व तदभावो ॥ ९११ ॥ नस्थित्ते चिय एवं चित्तादीणं अभावतो | नियमा। आलोयणादभावे ण सिया पाडेसहगावि धणी ॥९१२।। ता अस्थि सरूवेणं पररूवेणं तु नत्थि सिय बुद्धी। जमिह सरूव-४ ॥११॥ त्थित्तं तं चिय पररूवणस्थित्तं ।।९१३॥ तत्तो य तस्सऽभेदे तेणं रहितं तयं तओ नियमा । पावइ पररूवंपि हु तम्मी तत्तो य तदभावो है ।।९१४॥ भण्णइ अत्थित्तं चिय नस्थित्त णणु विरुद्धमेति । परिकप्पियं अह तयं इय इतरं सव्वरूवं तु ॥९१५।। तस्सेव धम्मरूवे। नियपररूवेहिं अत्थिणस्थिते । भिन्नपवित्तिनिमित्ते तम्हा ततं अणेगंतो ।। ९१६ ॥ नत्थि च्चिय खरसंगं एगतो ते, न बुद्धिध For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म संग्रहणी ॥११५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |णिभावा | अहवा पररूवेणं नत्थि सरूवेण अथिति ॥ ९१७|| नत्थित्तत्थित्तेणं तदभावे तस्स पावती भावो । नत्थित्तत्थितं पुण | विनयम भावभाव उ ।। ९९८ ॥ सम्मत्तनाणचरणा मोक्खपहो चैव एत्थ एगंतो । णो णामादिसरूवा जओ तओ इहवि नत्था ॥ ९९९ ॥ जे चैव भावरूवा ते चैव जहा तहा णुको दोसो ? । तस्नेव ण अन्नस्सा तेवि अणगंतसिद्धीओ ॥ ९२० ॥ एवं चिय | जोएज्जा सिद्धाऽभव्वादिएसु सव्वेसु । सम्मं विभज्जवाद सब्वण्णुमयानुसारेणं ।। ९२१ ॥ एवं होहिति कल्लं नियमेण अहं च णं करिस्सामि । एमादीवि न वच्चं सच्चपइत्रेण जइणा उ ।। ९२२ ।। बहुविग्घो जियलोओ चित्ता कम्माण परिणती पावा । विहडइ दरजायंपि हु तम्हा सव्वत्थऽणगंतो || २३ || भावाण तद्दाभावेण काणमादीसु जा गिरा तत्था । तेसिं दुक्खनिमित्तं सावि अलिया विणिद्द्ट्ठिा ||२४|| ता गतसरूवा सव्वेसिमपरियावणी मधुरा । उवयोगपुत्रगच्चिय भासा भासण्णुणो सच्चा ॥ ९२५ ॥ अदत्तादाने - केइ अदत्तादाणं विहिसिट्टा जीविगत्ति मोहातो । वाणिज्जुचियकलं पिव निद्दोस चे मनंति ॥ ९२६ ॥ सकला हिओ च्चिय साहसजुत्तो य पयइदक्खो य । सत्तुकडोऽविसाई अदत्तदाणोचितो भणितो ॥ ९२७ ॥ समणाण माहणाणं दुक्खोवज्जितघणाण किवणाणं । इत्थीण पंडगाण य णो हरियव्त्रं कदाचिदवि ॥ ९२८ ॥ सेसाण तु हरियन्त्रं परिगरविहववयकालमादीणि । गाउं णायपराणं जह दोहवि होइ न विणासो ॥ ९२९ ॥ णासि इह णासह डज्झइ जलणेण जेग अहितंपि । लग्भइ न याणुवत्तं सिप्पमिव एत्थवि अलाभो ॥ ९३० ॥ इय | वत्थुसहावं जाणिऊण सुमणो उ संपयट्टेज्जा । णय मरणा बीहेज्जा अन्नत्थवि जं तयं तुलं ।। ९३१ ।। हरिएवि पुव्वगं चिय खंदादी देवए य वीरे य । संपूजिऊण विहिणा पच्छा पुजेज्ज तं रत्थं ।। ९३२ ।। लोग्गम्मि य परिवादं अकालचरिया विवज्जणादीहि । For Private and Personal Use Only असत्यमृषा निरासः एकान्तवादनिरास ॥११५० Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra धर्म संग्रहणी ॥ ११६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जत्तेणं रक्खेज्जा तदभावे सव्वहा ण भयं ॥ ९३३ ॥ गहितोवि अमोक्खाए मरणंतं जीवियं विचितेज्जा । कुज्जा य पुरिसगारं दोहवि लोगाण फलहेउं ॥ ९३४ ॥ इय खंदरुद्द विहिणा पयट्टमाणस्स सुद्धभावस्स । वाणिज्जुचियकला विव निदोसा चोरिगा केई ।। ९३५ ।। भण्णइ विहिसिट्ठा जीविगत्ति जं भणियमेत्थ को णु विही ? । जइ ताव कोइ कत्ता स णिसिद्धो पुब्वेमव इह ॥ ९३६ ॥ अह पुण्वक कम्मं तस्सुदए जो उ होइ परिणामो । परवित्तहरणहेऊ अपसत्थो वज्जणिज्जो सो ॥ ९३७ ॥ अइकिलिङकम्माणुबेदणे जो तु होइ परिणामो । सो संकिलिकम्मस्स कारणं जमिह पाएणं ॥ ९३८ ॥ तीर य अत्तवी रियपगरिसतो वजिउं तओ एवं सति तम्मि तव्विवागं विचितिउं अप्पवित्तीए ॥ ९३९ ॥ कम्मोदएण मणपरिणामे जो संकिलिरूवेवि । संविग्गो वइकाए | निरंभती सो विणासेऽवि ।। ९४० ॥ ते पुण ण अत्तवीरियपगरिसविरहेण थंभिउं सका । तम्मि य सति सुहभावा पायं अचिरेण तस्स खओ ।। ९४९ ॥ वाणिज्जुचियकलाए तु णेत्रमपसत्थगो मुणयन्त्रो । पायमणवज्जवित्ती निच्छयओ सोवि पडिसिद्धो ॥९४२॥ उचियादणत्थगं चिय धम्मादुचितत्तणेण तस्सति । पडिसेहविहाणा इय इट्ठेयरसिद्धिकलियाई || ९४३ || समणादीणं णो हरियव्त्रमियमिट्ठमेव अम्हाणं । एत्तो च्चिय णाताओ सेसविहाणं तुहाणिङ्कं ।। ९४४ ।। तेसिंपि जओ दुक्खं इतरेसिंपि य ण होइ केसिंचि । नय नज्जइ भेदेणं जुत्तो ता सव्वपडिसिद्धो ( सेहो ) ॥ ९४५ ॥ नासिद्धं इह नासह एमादि जमुत्तमेयमवि मोहो । नाखुट्टम्मि मरिज्जइ हिंसाए तहवि जं दोसो ।। ९४६ ।। किं चासिहं नो लब्भइत्ति देन्तस्स पावर न किंचि । इटुं च तत्थ पुन्नं तुज्झं मज्झं च तं किह ? ।। ९४७ ॥ अह उ अवक्कामिज्जति आऊ मरणम्मि इहवि तस्सेव । लाभंतराइयं जं दव्वादी पप्प उदयादी ।। ९४८ ॥ उदयक्खक्खओवसमोवसमा एत्थ कम्मुणो भणिता । दव्वं खेत्तं कालं भवं च भावं च संपप्प ।। ९४९ ॥ ता एत्थ सो निमित्तं दोहवि For Private and Personal Use Only अदत्तादान जीविका निरासः ॥ ११६ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग्रहणी ॥११॥ भावाण जेण गुणदोसा | जुज्जति तेण तस्सा एवं खलु संगतं उभयं ।। ९५० ॥ जइ एवं धणनासे तओ निमित्तंति तस्स दोसो उ ||Bा मथुन अह णो निमित्तमिहई इतरत्थ तयंति का जुत्ती ? ॥ ९५१ ॥ इय वत्थुसहावं जाणिऊण सुमणो उ णो पयट्टेज्जा । चोरियभावे तह | सदोषता | या बीहेज्ज कलंकमरणातो ॥ ९५२ ॥ हरिऊण य परदब्ब पूर्य जो कुणइ देवतादीणं । दहिऊण चंदणं सो करइ अंगारवाणिज| ॥ ९५३ ॥ लोगम्मि य परिवादं कुकम्मपडिसेहणेण रक्खेज्जा। तह रक्खियम्मि नियमा परलोए नत्थि किंचि भयं ॥ ९५४ ॥ गहितो य अमोक्खाए निच्चं चिय एत्थ मरणकेसरिणा । सब्बो जीवो तम्हा करेज्ज सइ उभयलोगहियं ॥ ९५५ ॥ मेथुने-केई भणंति पावा इत्थीणासेवणं न दोसाय । सपरोवगारभावाद(दुस्सुगविणिवित्तितो चेव ।। ९५६ ।। तत्तो सुहझाणातो पासवणुचारखेलणातेणं । नियमस्स निष्फलत्ता अतिप्पसंगाउ अविय गणो ॥ ९५७ ।। मोहग्गिसंपलितं त अप्पाणं च विज्झयेऊणं ।। सुहभावातो सपरुवगारो कह होइ दोसाय ? ॥ ९५८ ॥ सव्वद्धा विग्धकरं चरणस्सासेवणं विणा तीए। कह णु निवत्तति पावं उस्सुगमिह सुप्पसिद्धमिण।।९५९॥ आसेवणाएँ जायइ जं च विरागो तओ सुहज्झाणं । पासवणादि व तओ कायठिती होति कातन्वा ॥ ९६० ॥ णियमेऽवि तासि न फलं पीडाभावातो कस्सइ तहाधि । तस्स करणे ण कीरति दिक्खाणियमोवि चिंतमिदं ।। ९६१ ॥ पासवणाईण तहा किन्नो णियमोत्ति, देहपीडाओ ? । इतरनिवित्तीएँ तई किंणो, तह गेहिमादीया ॥ ९६२ ।। तम्हा रागादिविवज्जिएण पासवणमादिकिरियव्व । वेदम्मि उदिनम्मी थीपडिसेवावि कायव्वा ॥९६३।। एवमिह कम्मगुरुणो मिच्छादिट्ठी अणारिया केई । इंदियकसायवसगा मग्गं नासेंति मंदमती॥ ९६४ ॥ सपरोभयपावातो रागादिपसत्तिओ दढतरागं । सुहझाणाभावातो जल-र ॥११७१ गिंधणखेवणातेणं ।।९६५|| नियमा पाणिवहातो तप्पडिसेवातो चेव इत्थीणं । पडिसेवणा ण जुत्ता मोक्खत्थं उज्जयमतीणं ॥९६६॥ For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ४ा सव्वागमप्पसिद्धं मेहुणभावंमि पावमच्चत्थं । तह परमसंकिलेसो अणुहवसिद्धो उ सव्वेसि ।। ९६७ ॥ पामागहितस्स जहा कंडुयणं | मैथुने | दुक्खमेव मूढस्स । पडिहाइ सोक्खमतुलं एवं सुरयंपि विनेयं ॥ ९६८ ॥ जह तकरणे दोण्हवि तीए वुड्डी तओ य देहस्स । होइन सदोषता विणासो एत्थवि तह नेओ सुगइदेहस्स ॥ ९६९ ।। मोहग्गिसंपलित्तं तं अप्पाणं च विझवेऊण । एवं सुहभावो च्चिय हतासिद्धी मुणेयव्वो ॥ ९७० ॥ पडिसेवणेवि तस्सा अहिया रागादयो उ नियमेणं । अमेसि तदभाववि पतणुया चेव दीसंति ॥ ९७१ ॥ सइ चरणविग्धमउलं उस्सुगमेवं नियत्तइ ण जाउ । ता तन्निवित्तिपवणो वज्जेज्जा इत्थिपरिभोगं ।। ९७२ ॥ उस्सुगविणिवित्तीवि य जा सम्मन्नाणपुब्विगा होति । सा सुंदरा ण जाहियविसयपवित्तीएँ लोएवि ॥ ९७३ ॥ जह चेव कुट्ठिणोऽपत्थवत्थुविसयं ण तस्स जोगेणं । भदं नियत्तमाणं उस्सुगमेवं इमंपित्ति ।। ९७४ । आसेवणाएँ एवं सुहझाणाभावतो अजुत्तमिणं । पासवणादिन्च | तओ कायठिती होइ कायञ्चा ॥९७५।। आसेवणाए तिस्सा तग्गयचिंतावियावियो होइ। मोहसहावातो जओ कत्तो झार्ण सुह तस्स! ॥ ९७६ ॥ किंच विवेगप्पभवं तयंति थीविग्गहेवि य पवित्ती । कलिमलभरिए जस्स उ तस्स विवेगो कहं अस्थि ? ॥ ९७७ ॥ नय भावमंतरेणं तत्थ पवित्ती तओ धुवो रागो । तब्भावम्मि य इहई बीयपदं नात्थ नियमेणं ॥९७८ ॥ पाणिवहोविय नियमा [2 इत्थीज़ोणी जतो अजोणीहिं । पाणिहि घणसंसत्ता परिभोगे तेसि वावत्ती ॥ ९७९ ॥ जह उ किरिर)णालिगाए धणियं मिदुरूयपो-४ म्हभरियाए । तदभावं कुणमाणो तत्तो कणगो तहिं बिसइ ।। ९८०॥ इय घणसंसत्ताए जोणीए इंदियंपि पुरिसस्स । तदभावं कुणमाणं नियमा विसइत्ति विन्नेयं ॥ ९८१ ॥ पडिसिद्धो य तओ जं सव्वेहिवि धम्मसत्थयारेहिं । तप्पडिसेहाओ तओ सफलो नियमो | 2 भवे तासि ।। ९८२ ॥ एवं च पयइसावज्जओ इहं इत्थिभोगपडिसेहो । जुत्तो निरवज्जत्ता नतु दिक्खादीण भावाणं ।। ९८३ ।। RAGAR ॥११॥ For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie धर्म संग्रहणी पासवणादीण जहा सुक्कणिसग्गस्स णो खलु निवित्ती । अविगारनिसग्गम्मिवि वयभंगो जं न समयम्मि ॥९८४ । जतिवि य त । दा | निवित्ती कहमवि देहपीडाकरी होइ । तहवि तई कायब्बा पडिवखे दोसभावातो ॥ ५८५ ।। सदोषता परिग्रहे-अन्ने निहोसं चिय गामादिपरिग्गहंपि मन्नति । ग्यणतिगडिहेतुत्तणेण परिधरवुद्धीया ॥ ९८६ ।। रयणतिगं इह बुद्धो धम्मो संघो य तस्स कर वुड्डी । गामादिपरिग्गहतो? पारमितादीण कज्जता ॥ ९८७ ।। बुद्धो पारमियाफलमणधं तब्बयणमागमा धम्मो । धृतगुणाणवाई सत्ताणं समुदयो संघो ॥ ५८८ ॥ नय एतेमुवयारो गःमादिपरिग्गही सुहप्फलदो। आरंभपवित्तीओ अवि अवयारो मृणेयचा ॥ ९८९ ॥ सिय जो ममत्तरहियो रयणतिग चिय पड़च्च आरंभे । बट्टइ भिकावि तओ निदोसो चेव विन्नेओ ।। ५९० ।। मंसनिवत्ति काउंसेवह दंतिकगति धणिभेदा । इय चइऊणारंभ परववएसा कुणइ बालो ।। ९९१ ॥ | पयईए सावज संत गणु सब्बहा विरुद्धं तु । धणिभेदम्मिवि महुरगसीतलिगादिब्य लोगम्मि ।। ९.२॥ णय तेसिंपुवगारी तत्तो पडिवादितं पुरा एतं । बालादीण वेयावच्चं तो होइ अह बुद्धी ।। ९९३ ॥ निरवाजेणं विहिणा गुणजुत्ताणं तयंपि कायचं । सावजो व इमो खलु तेसिपि य कुणइ गुणहाणिं ॥ ९९४ । पुरिसं तस्मुवयारं अबयार चप्पणो य नाऊणं । कुज्जा वेयावडियं इहरा वेणइयवादो णु ॥ ९५५ ।। सिय णाणुमओ एसो बुद्धेणं किंतु अप्पणा चेव । दाणवतीहि सम्म पवत्तिओ कुसलमूलन्थं ॥९९६।। एवंपि हंत दोण्हवि बुद्धेणाणणुमयम्मि वत्थुम्मि । कह ण पयर्दृताणं परलोगविराहणा होइ ? ॥ ९९७ ।। दाणवतीणमणुमतो अह भिक्खूणंपि सुद्धभावाणं । तप्फलपरिभोगो इय परलोगविराहणा किह णु ! ॥५९८॥ आरंभाणिडियं पिंडमादि भुजंतगाण भिक्खूणं । ॥११९ तत्थ पवित्तीओ अणुमतीऍ भिक्खुत्तणमजुत्तं ।। ५९९ ।। तिविहंतिविहेण जओ पावं परिहरति जो निरासंसो। भिक्वणसीलो य | For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir प्रथन - - धर्म तओ भिक्खुत्ति निदरिसिओ समए ॥ १००० ॥ अह उस्सग्गेणेसो धृतगुणासेवणेकतण्णिट्ठो । अववादेण उला संग्रहणी IPI आरंभनिट्ठियं चेव सेवंतो ॥ १००१ ॥ चरणपरिणामचीयं जं न विणासंह कज्जमाणंपि । तमणुट्ठाणं सम्म अववादपदंश सदोषता मुणेतव्वं ॥ १००२ ॥ जे पुण नासेइ तयं न तय दिट्ठमिह सत्थगारेहिं । तब्भावेऽवि गिहीहिं अइप्पसंगो धुवो होइ ॥ १००३ ॥ गामादिपरिग्गहओ तब्बावारो तओ य चित्तस्स । नियमेण परिकिलेसो तओ य चरणस्स नासो उ ॥ १००४ ।। इस अववादपदेणऽवि नरिंदलील विलंबमाणाण । मग्गचुयाणं विदुसे पडुच्च भिक्खुत्तणमजुत्तं ॥ १००५ ॥ छन्नउइगामकोडीवइणो भरहस्स सुद्धभावस्स । चरणपरिणामओ मे केवलनाणं समुप्पन्न ॥ १००६ ॥ चरणपरिणामबीयं गामादिपरिग्गहो ण णासेइ । इय दोण्हवि अम्हाण सिद्धमिणं किन्न लक्खेसि ? ॥ १००७ ।। भरहस्स तत्थ मुच्छाविगमे णणु आसि चरणपरिणामो । ण य तम्मि तेण तहियं काचि पवित्ती कया आसि ।। १००८ ॥ण य इय मुच्छाविगमो तुम्हाणं तत्थ तहपवित्तीओ। | पत्तेयबुद्धणातं एवमजुत्तं मुणेयव्वं ।। १००९ ॥ सिय विहियाणुट्ठाणं एयं अम्हाण ता ण दोसो उ । सत्थं एत्थ पमाणं, जहेब चितिवंदणादीसु ॥ १०१०॥ असुहपरिणामबीजं जमणट्ठाण विहेइ तं किह णु । सस्थंति ? अतो एसो पक्खेवो होइ नायब्वो ॥१०११॥ णियमेण य अहो च्चिय परिणामो तम्मि सइ मुणेयव्यो। किं दाहगोवि अग्गी सनिहितं न उहई कट्ठ ? ॥ १०१२॥ ॥१२०||||सिय तस्सुवासग च्चिय करेंति पडिजग्गणं न भिक्खुत्ति | तप्फलपरिभोगोवि ह आहाकम्मति तो दह्रो । १०१३ ॥ कालपरिहा-14 णिदोसा एहहमित्ते ण चे हवति दोसो। सकपरिहारसावज्जसेवणे कहमदोसो तु ? ॥१.१५ ॥ चत्नघरावासाणं गामादिपरिग्गदि हम्मि ता दासो । रयणं मोत्तॄण जहा कायमणि गेण्हमाणाणं ॥१.१५ ।। ॥१२ For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥१२॥ 1-44 बाटिकनिरासः-वत्थादिगंपि धम्मोवगरणमन्ने अदिट्टपरमत्था । संसारहेतुभृतं परिग्गर चेव मन्नति ॥ १०१६ ॥ जायणसंग्रामादिपार | मुच्छणमो धुवणे पाणाण होति वावत्ती । दातारस्सवि पीडा संधणमादीसु पलिमथो ॥ १०१७ ।। राढा मुच्छा य भयं अविहारो। | ग्रहदुष्टता चेव भारवहणं च । तेणाहडाधिगरणं सोगो य पमायणटुवि ।। १०१८ ॥ सावेक्खया य दाणादकज्जसिद्धी परीमहासहणं । गुरुप हा उपकरण सिद्धिः डिकुटुं गिहिलिंग गंथमो वत्थदोसा उ ।। १०१५ ॥ पत्तम्मिवि एते च्चिय नवर विसेसोणिवारियं गहणं । आहारस्स तहच्चिय परिभांगेऽजीरगेलणं ॥ १०२० ।। रयहरणम्मि पमज्जणदोसा कीडघरखुज्झ ( छाय) णादीया। तेसिं चेव य अंडगवियोगमादी य विनेया ॥ १०२१ ।। डंडग्गहणम्मिवि हथियारसावेक्खयादिया दोसा। ते पूण ण होति एगंततो परं चत्तगंथस्स ।। १०२२ ।। | किंच णियं चिय रूवं दट्ठणं तस्स होति संवेगी । पन्चइतोऽहमगंथो करमिता णिययकरणिज्ज॥१०२३ ।। तम्हा चहऊण घरं तर चेव पुणो अणिच्छमाणेणं । निग्गंथेणं जहणा होयब्वं निम्ममत्तेणं ।। १०२४ ।। वत्थमिह जायणाओ जइ मुच्चइ हंत एव मोत्तव्यो। आहारोऽवि हु जइणा अजाइओ जं न होइत्ति ॥ १०२५ ।। अह धम्मकायपरिवालणेण उवगारगो तओ दिहो । वत्थंपि हु एवंचिय | उवगारगमो मुणेतव्यं ।। १००६ ॥ तणगहणअग्गिसेवणकायवहविवज्जणेण उवगारी । तदभावे य विणासो अणारिसो धम्मकायस्स ॥१०२७। जतिविण विणस्सति च्चिय देहो प्राणं तु नियमतो चलति । सीतादिपरिगयस्सिह तम्हा लयणं व तं गझं ॥१०२८।। सुहझाणस्स उ नासे मरणपि न सोहणं जिणा बेति । अनाणिची (वी) रचरिय चालाणं विम्हयं कुणति ।। १०२९ ।। अह उत्तम-4 संघयणे सुहझाणस्सवि न होइ णासोत्ति । मोत्तूण तयमजुत्ता सेसेसुं हंत पव्वज्जा ।। १०३० ॥ संमुच्छणा ण जायति पायं विहिसे FR॥१२॥ वणाएँ वत्थम्मि । संभवमेत्तेणं पुण देहादीसुपि सा दिवा ॥१०३१।। तम्हा निग्गंथेणं एवं दोस विवज्जमाणेणं । देहो आहारोऽविय । * | For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir % % % % धर्म वज्जयव्वा पयत्तणं ॥ १०३२ ।। सिय थावं संमुच्छणमैत्थं तीरति य वज्जिउं विहिणा | तणगहणादिपगारा एत्थवि थोवादितुल्लं तु *ग्रामादिपरि संग्रहणी || १९३३ ।। अह धम्मसाहणं सो वत्थंपि तहेव होह दहव्वं । भणिओववत्तिओ पिचय जहणो तं कायठितिहेऊ ।। १०३४ ।। जिण ग्रहदुष्टता भणियविहाए ण य धुवणे पाण ण होइ वावत्ती। पडिलहणा दगंपि य फासु उपयोगमा य विही ।। १०३५ ।। उल्लंघिऊण एयंत्र कई अह अण्णहा करतित्ति । एसो खु पाणिदोसो तुल्लो चिय होइ नायब्यो ॥ १०३६ ।। मात्तूण वत्थमत्तं जं च सिहि जीवणा-|| सिद्धिः दिगं चेव । दीसति गेण्हमाणा ण एस दोसो पधयणस्स ॥ १०३७ ॥ जो पुण विहीए दोसो संसत्तम । ग) हणियोसिरणतुल्लो । असढस्स सोऽवि माणितो पायाच्छत्तस्सऽविसओत्ति ॥ १०३८ ।। अह जस्स एरिसो खलु देहो सो अणसणेण तं चयइ । एसुस्सग्गा | भणितो अम्हाणं सस्थगारहिं ॥१०३९॥ गुरुलाघवचिन्ताऽभावतो तयं सत्थमेव णो जुत्तं । अववायविहाणम्मि य पुबुत्तो चव || दोसो उ ।। १०४०॥ परिजुण्णमप्पमुल्लं तमणुनातं जओ जिणिदेहि । दातारस्सवि पांडा न होइ तो तमिह दिन्तस्म ।। १०४१ ॥ | अप्पस्स होति अहसा भोयणमेत्तेऽपि तल्लमवेदं । तं तारिसे ण गेझं वत्थम्मिवि एव को दोसो ॥ १०४२ ।। आहागडस्स गहणे संधणमादी ण होंति दोसा तु । तदभावादनिमित्तो कह णु पलिमंथदोसो उ? ॥१०४३ ।। तस्सालाभे इतरस्स गहणभावोऽवि | भोयणसमाणा । तं धम्मसाहण चे वत्थंपि तोव णणु भणितं ।। १०४४ ॥ एवंविहं च एतं विहिणा परिजाइतं धरेतस्स । भिक्खण-11 ।।१२२।। है सीलस्स तहा राढाए हंत को अत्थो ? ॥ १०४५ ।। अह अविवेकातो तह तम्मत्ताओवि होइ कगाचे । तट्टिगपिच्छिगकुंडिग150 देहेसु तो कहं न भवे ? ॥ १०४३ ॥ पुच्छाभयाविहारा एतेणं चिय हवंति पडिसिद्धा । अक्लेवासिद्धीओ जोएयव्वा Vi॥१२२॥ 4 सबुद्धीए ॥ १०४७ ॥ भारवहणंपि परिमियमाणसुं तेसु हन्त कह जुत्तं । कह वा न तागादिसु ? को वा तम्मनए दोसो ? % 4%A4 % For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्यां ॥१८४८ ।। जइदेहस्सऽह पांडा निययविहारातो सान कि होति ? | उवगारिगा तई अह एत्थवि भणिओ उ उवगारो ॥१०४९॥डा वस्त्रायूप धर्म न हरति तहाभूतं वत्थं तेणा पओयणाभावा । खुद्दहरणं च तट्टिगकुंडिगमादीमुवि समाणं ॥ १०५० ॥ वोसिरिएसु न दोसो तट्टि करणसिद्धि संग्रहणी. गमादीसु अह उ वत्थेवि । तुल्लं चिय वोसिरणं साहणभावो य परलोगे ॥ १०५१ ॥ अपमत्तस्स न नासइ, नहेवि न जायती तहिं। है| सोगा । मुणियभवसरूवस्स चत्तकलत्तादिगंथस्स ।। १०५२ ।। अह दीभवब्भासा सेहप्पायस्स संभवो अस्थि । सो तट्टिगादितुल्लो ॥१२३॥ | चोएयब्बो न बुद्धिमता ॥ १०५३ ॥ जो चयइ सयणवग्ग हिरनजायं मणोरमे विसए । जिणवयणणीतिकुसलो तस्स अवेक्खा कहं। वत्थे ? ॥१०५४॥ लज्जह जमिस्थिमादीण तेण तं गिण्डइत्ति सावक्खा । लुचियसिरस्स भिक्खं हिंडतस्सह का लज्जा ? ॥१०५५।। पता किं ण तं चएई ? उबगारणिरिक्खणा जहाऽऽहा । भणितो य तओ पुब्धि संजमजोगाण हेउत्ति ॥ १०५६ ॥ तम्मतपदाणणं जमकज्जं तस्स तत्थवि पवित्ती । इय अणिहुतचित्तस्स न होइ समणत्तणं समए ॥१०५७॥ संसारविरत्तमणो जोग्गो समणत्तणस्स | जं भणितो । रागादिपवित्तीय य तट्टिगमादीसुवि समाणं ॥ १०५८ ।। रागादिसियमणो किं वा न करेइ अणिहुतो जीवो ? । किं तेणं ? अणिदाणा अकज्जसिद्धित्ति बइमेत्तं ॥१०५९ ॥ संजमजोगनिमित्तं परिजुन्नादीणि धारयंतस्स । कह ण परिस्सहसहणं? जहणो सइ निम्ममत्तस्स ॥ १०६०॥ नग्गत्तणमह सुत्ते भणियं, ण जहादियं तयं हाइ । उवचरिए य परिस्सहसहणंपि तहाविहं | पावे ।। १०६१ ॥ णेगतेणाभावादण्णादीणं खुधादियाणपि । सहणं अणेसणिज्जादिचागतो इहवि तह चेव ।। १०६२॥ सिय द पावई अणिटुं एवं इत्थीपरीसहपसंगा। णो सुत्तरबाधा निवारणादिह पसंगस्स ।। १०६३ ॥ नवि किंचिप्पडिसिद्धं अणुनायं वा ॥१२३। (वा वि) जिणवरिंदेहिं । मोत्तुं मेहुणभावं न विणा सो रागदोसेहिं ।। १०६४ ॥ फासुगमवि असणादी ण कदाइवि अन्नहेह भोत्तव्यं । % 4 KHESAROK For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ★ा वखाप करणसिद्धि दशशास्त्रयां ते पायव्यं च परीसहसहणं तह इच्छमाणेणं ॥ १०६५ ॥ गुरुणापि न पडिकुटुं उवहिपमाणं जओ सुते भाणतं । अह उ अणारिसमेयं इतरं एवन्ति किं माणं ॥ १०६६ ॥ सिय चरमं चेव वयं परिग्गहो तत्थ बंधहेउत्ति । ण उ संजमजोगंगं, वत्थं च पसाहियं पुन्धि संग्रहणी. |॥ १०६७ ॥ गिहिलिंगपि न एतं एगंतणं तदबहाधरणे । होति य कहंचि नियमा करचरणादीवि गिहिलिंगं ॥ १०६८ ॥ तास परिच्चागातो देहाभावे कहं नु परलोगो ? । णणु वत्थस्सवि चाए तणगहणादीहि तुल्लमिणं ॥ १०६९ ।। गथोवि होइ दुविहो दवे भावे य दधगंथो य । दुपयचउप्पयअपयादिगो तुणेओ अणेगविहो ।। १०७० ॥ अट्टविपि य कम्म मिच्छत्ताविरतिदुट्ठजोगा या | एसो य भावगंथो भणितो तेलोकदंसीहि ॥१०७१॥ जो णिग्गतो इमाओ सम्म दुविहातो गंथजालाओ। सो निच्छयनिग्गंथो निग्गच्छंतो य ववहारे ॥ १०७२ ।। सो चिय निग्गच्छंतो तत्तो विहिणा कहंचि नीसरह । सम्मत्तादिपभावा न वत्थमेत्तस्स चाएणं ॥१०७३ ।। मिच्छत्ते अनाणे अविरतिभावे य अपरिचत्तम्मि । वत्थस्स परिच्चातो परलोगे के गुणं कुणइ ? ॥ १०७४ ॥ नत्थि य सकिरियाणं अबंधगं किंचि इह अणुट्ठाणं । चतितुं बहुदोसमतो कायव्वं बहुगुणं जमिह ।। १०७५ ॥ ता किं वत्थग्गहणं किं वा तणगहणमादि पुव्वुत्तं । बहुगुणमिह मज्झत्थो होऊणं किन चिंतेसि? ॥ १०७६ ।। इय निहोसं वत्थं पत्तंपि हु एवमेव णातव्वं । छज्जीवणिकायवहो जतो गिहे अन्नभोगेसु ।। १०७७ ।। गिहि भोगे जलमादी चलणादिपहावणे विवज्जति । तदकरणे चाभोगो अलाभ (मि) परियडणपलिमंथो ॥ १०७८ ।। एगऽन्ने आरंभा कायवहो चेव तह य परि (डि ) बंधो । विरियायारपभसण भम॥१२४।। राहरणं च वइमेत्तं ॥१०७९॥ भिक्खाडणेऽवि अहिगो आउक्कायादिघातदोसो तु । फासुगमवि य तसेहिं गंतेणं असंसत्तं ।।१०८०।। उसिणोदगं अह भरे ण होइ पतिगहमेव तं लोए । पडिलेहणाऽह सेसे तदनसंसत्तगे किह णु?॥१०८१ ।। पाणुज्झणे हि हिंसा RCANCSCAM का॥१२४॥ For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SCREEMES दशशाख्या ४/णेच्छह य गिदीन णेच्छइ य गिही तयं तहिं छा९ । ण य तीरइ जत्थुचियं नेऊण करेहि कह एत्थ ? ॥ १०८२ ॥ सिय पत्तम्मिावि गहिए संसत्ता वस्त्रारूप धर्म नियमतो इमे दोसा । उचिएवि पुढविखणणादिगा उ णणु बहुतरा होति ॥ १०८३ ॥ पुढवीखणणे काया अखए य तं सुसइ मुक्क- नियम करणसिद्धि संग्रहणी. मेतं तु । जल उल्ले कायच्चिय भंडगचाए (वि) अहिगरणं ॥ १०८४ ।। तेणं विणावि दोसो पत्थेमाणस्स अद्धखेदादि । बहुगहणं 18| उस्सुत्तं निप्फलपलिमंथदोसो य ।। १०८५ ।। घेत्तूण चाउलोदं संसतं तं जलम्मि छुहमाणो । घाएति बहुतरं तं तेणं परकायसत्थेणं 8 ॥१२५॥ | ।। १०८६ ।। ता नियमदोसभावे जुज्जति णणु एत्थ अप्पबहुचिन्ता । ण य एतम्मिवि गहिते अप्पतरा होंति दोसा उ॥ १०८७ ।। अवियग्गहिए पइगेहमेव उवयोगमत्तगहणातो । निस्संगभावणाओ मुह अप्पयरभावं तु ॥ १०८८ ।। तम्हा न पत्तगहणं जुञ्जति जिणवयणमुणियसारस्स । दावभयरक्खणट्ठा तणघयगहणं व कंतारे ॥ १०८९ ॥ न खणेइ तओ पुढविं न मुयइ जहिं सुसइ मुक्कमेत तु । जल उल्लं च परोप्परसंजोगाओ अचित्तं तु ॥ १०९० ॥ तत्थवि य महीसिचलणादिघढदसम्मि उज्झओ विहिणा । तदभाव काऊणवि अचित्ते हंत को दोसो १ ॥ १०९१ ।। सिय अच्चित्तो उ तओ किमेत्थ माणं ? जिणागमो चव | काया मिहो उ सत्थं वन्नादीपरिणयमचित्तं ॥ १०९२ ॥ तदभावम्मि य निद्धानभंडए महुरगे सुहे खेत्ते । उज्झइ न य तदभावे भंडगचाएऽवि अहिगरणं ॥ १०९३ ॥ संजमपालणहेतुत्तणण तह चेव भावसुद्धीओ। निरविक्खत्तणओ चिय देहच्चाए व विनयं ।। १०६४ ॥ तेणं * विणावि दोसा न होंति संघाडभावतो चेव । एगागिणोवि जे ते आहारालाभतुल्ला उ ॥ १०९५ ॥ सेसा अणभुवगमा विहिउत्तरमा दय होति पडिसिद्धा । इय दोसाभावातो जुत्ता इह अप्पबहुचिन्ता ॥१०९६।। सिय तहवि परिढवणा ते खलु कालंतरा विवजन्ति । ॥१२५॥ सुद्धो जयणागारी तेसिं (सुं । साहू जहऽन्नेसु ।। १०९७ ।। अग्गहिय गुणो गहितेवि अविय गुरुस्सेह बालवुड्डाणं । वेयावच्चावा GA For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie २ धमे. %2-44% 181 दशशास्यां है | यणमभावतो तस्स तं दुर्दु ॥ १०९८ ॥ ता इय पत्तग्गहणं जुज्जइ जिणवयणमुणियसारस्स । दावभयरक्खणहूँ जलोघगहणं व वस्त्रारूप कतारे ॥१०९९ ॥ निस्संगतावि हिंसारक्खणहेउत्ति तस्म य अभावे । पुत्तहिसंढवरचेट्टियं व सा निष्फला चेव ॥ ११०० ।। करणसिद्धि संग्रहणी. अनिवारियगहणं पुण परिभोगे चेव वारियं समए । पत्तम्मि य सइ करणे करेहि तुल्लं इमं होइ ॥११०१ ॥ रयहरणम्मिवि पडिबालहिऊण विहिणा पमज्जमाणस्स । कीडघरखुज्झणादी (ण) होंति दोसा गुणो होइ ।। ११०२ ॥ आयाण गहण (मोक्ख) म्मि| य कस्सइ रयणीएँ काइगादिम्मि । तेणं पमज्जिऊणं पवत्तमाणस्स वहविरती ॥ ११०३ ॥ साणादिरक्खणट्ठा विधाएँ इह डंडगं दधरेंतस्स । कह हथियारसावेक्खयाइया होंति दोसा उ? || ११०४॥ण य कज्जमंतरणवि कहंचि पीडा इमस्स इट्टत्ति । आयपरो-16 भयविसया जं वहकिीरया सुते भणिया ।। ११०५ ।। भावियजिणवयणाणं ममत्तरहियाण नत्थि हु विससो। अप्पाणम्मि परम्मि IP 18 य तो वज्जे पीडमुभयोऽपि ॥ ११०६ ।। रयहरणादिसमेतं दट्टणं किं न होइ संवेगो । अप्पाणं पचइओ तब्भणियगुणागमाता य ४ ॥११०७ ॥ निग्गंथया य भणिया ममत्तचाएण पुब्वमेव इहं । किमिणा विचिन्तिएण? तुह एवं मनसे अह उ ॥ ११०८ ॥ | जारिसयं गुरुलिंगं सीसेणवि तारिसेण होयव्वं । नहु होइ बुद्धसीसो सेयवडो नग्गखवणो वा ॥११०९॥ निग्गंथो य जिणो जं एगतेणेव लोगसिद्धमिणं । तम्हा तस्सीसावि हु निग्गंथा चेव जुज्जंति ॥ १११० ॥ जारिसयं गुरुलिंग इच्चादसमिक्खिताभिहाणं तु । न हि तारिसेण होउं तीरइ सइ दुविहलिंगेऽवि ॥ ११११ ।। अह तल्लिंगसमं चिय लिंगं तेणावि होइ कायव्यं । सियवाए सिद्ध है ॥१२॥ चिय एगतेणं तु तदजुत्तं ।। १११२ ॥ तित्थगरलिंगमणघं तेसिं चेव अविगलं परं होइ । पाययगुण जुत्ताण य अहवा ण उ सेसजी-15॥१२६।। वाणं ॥ १११३ ।। रहिया य सेसजीवा तित्थगरगुणेहिं परमपुन्नेहिं । नियमेण सिद्धमयं दोण्हवि अम्हाण समएसुं ॥ १११४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रयां.४ छ उमत्थस्सवि गुरुणो नाणा संघयणमो धिती चेव । निम्ममया य परीसहविजओ दढमप्पमाओ य ॥ १११५ ॥ अनेसि मोहोदय- वस्त्रायूप धर्म हेतुअभावो सुहाणुबंधातो । गुनिंदियया य गुणा अणन्नतुल्ला मुणेयब्बा ॥ १११६ ॥ ता जुत्तमेव तस्सिह मोत्तुं वत्थादिगंपि उव- करणसिद्धि संग्रहणी. गरणं । तेण विणावि स जम्हा फलमिटुं साहती चेव ।। १११७ ॥ जो पुण तग्गुणरहिओ तं चेव फलं कचि इच्छंतो । पारंपरेण | तस्सेव साहगं मुयइ उवगरणं ॥ १११८ ॥ सो सच्चहेब तप्फलसाहणविगलो जणम्मि अप्पाणं । वायामेत्तेणं डिंभनरवती जह ॥१२७|| | विडंबेति ॥ १११९ ।। जुम्मं ॥णय उवगरणेण विणा चोद्दसपुव्वी घडा घडसहस्सं । कुणइत्ति कुंभगारस्स तस्स परिवजणं जुत्तं . PI॥ ११२० ।। सिय तग्गुणरहितोऽवि पधज्जं गेण्हती तदत्थं तु | सच्चं चऽणुकमेणं तेस पुण तेण जइयव्यं ॥११२१|| मूलाआ| पूसाहाओ साहाहिंतो न होइ मलं तु । चरणं च एत्थ मलं नायव्वं समणधम्मम्मि ॥ ११२२ ।। जं चरणं पढमगुणो[R *जतीण मूलं तु तस्सवि अहिंसा । तप्पालणे चिय तओ जइयव्वं अप्पमत्तेणं ।। ११२३ ।। ण य धम्मोवगरणमंतरण | सा पालिउं जतो सका । सव्वेण तओ गेमं तं उचिय निम्ममत्तेणं ॥ ११२४ ॥ जिगकप्पिओ न गिण्हइ किंची सो बहुगुणो य तुम्हाणं । तग्गुणजुत्तो उ तओ ण गेण्हती न पुण सम्बोवि ॥ ११२५ ॥ देहतिणतुल्लवत्था छज्जी वहिउज्जया महासत्ता । गोयमपमूहा मुणिणो न य णो सिद्धा चरित्ताओ ।। ११२६ ॥ न य भगवतावि बर्थ ण गहितमेवत्ति ४. सक्कदिनस्स । सोवगरणधम्मविधाणहेउमेवेह धरणातो ।। ११२७ ॥ जो कुणइ रज्जचायं गेण्हति सो वत्थमो असद्धयं । एत्तो चिय गुणभावा भिक्खागहणं व सद्धेयं ॥ ११२८ ।। लोगम्मि उ णिगिण सिद्धमवत्थागयं जिणिदस्स | तं चैव गेण्हिउं न य जुज्जइ M॥१२७॥ एत्थं असग्गाहो ॥ ११२९ ।। अन्नं च दब्बलिंग एतं भावे तु चरणपरिणामो । सो उत्तमो जिणस्सा तारिसगो कह णु तुम्हाणं? RANCCCASS For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्त्रापप करणसिद्धि दशशारूया ॥११३० ।। ता एत्थ वेज्जणार्य अवलंबिय संजमम्मि जइयव्वं । तल्लिंगधरणगाहो | उ एगतेण कायब्बो ॥ ११३१ ।। हत्थप्प- धमे तिम्मि फले रुक्खग्गवलंबणं महेमादि । एतेणं पडिसिद्धं जं वइमेतं इमं ठवियं ॥ ११३२ ॥ सिझंति ण तुससहिया साली मुग्गेहिं सग्रहणा. एत्थ बभिचारो । देहच्चागा मोक्खे असिलिट्टू चेव नायव्वं ॥११३३ ।। जियलज्जो णिगिणो किल इत्थीमादिसु मोहहेऊओ। एतंपि न जुत्तं चिय पाएण कयं पसंगणं ॥ ११३४ ॥ रातीभोयणविरती दिट्ठादिदृप्फला मुहा चेव । दिट्ठमिह जरणमादी इतरं हिंसाणिवित्ती उ ॥ ११३५ ॥ उत्तरगुणा उ चित्ता पिंडविसुद्धादिया पबंधेण । नेया सभेयलक्खण सोदाहरणा जहा सुत्ते ॥ ११३६ ।। एसो उ भावधम्मो भणिओ परमेहिं वीयरागेहि। सव्वन्नूहि सुत्ते पवंचतो सचदरिसीहि ॥ ११३७ ॥ वीतरागतासिद्धिः सर्वज्ञतासिद्धिश्च-चोएति कहं रागादिदोसविरहो हविज्ज सत्तस्स'। तद्धम्म च्चिय जम्हा अणादिमता य ते तस्स ॥११३८|| धम्मा य धम्मिणो किं भिन्नाभिन्नत्ति ? पढमपक्खम्मि । सव्वेवि वीयरागा सत्ता को तम्मि उ विसेसो ॥११३९।। | तस्विरहम्मि अभावो पावइ सत्तस्स बितियपक्खम्मि । को व सरूवावगमे ? भावो तस्सत्ति वत्तव्यं ।।११४०।। अन्नं च नज्जइ कहं जह एसो रागदोसरहितोत्ति । चेट्ठाओ चेव मती, तन्नो पडिबंधऽभावातो ॥११४१।। लद्धादिनिमित्तं जं चिट्ठ दरिसिति वीतरागव्व । मुद्धजणविम्हयकर हंदि सरागच्चिय मणूसा ॥११४२॥णय वीयरायचेवा विसेसतो वीयरागपडिबद्धा। अविणाभावग्गहणाभावा सिद्धा ॥१२८। दुवेण्हंपि।।११४३॥ जम्हा रागाभावो इच्छिज्जति आयधम्म एवेह । सो किं पच्चक्खेणं घेप्पइ सब्वेणविण तेण ॥११४४॥ अग्गहितम्मि है। य तम्मि अविणाभावग्गहो कहं होज्जा? । अब्भुवगमम्मि य तहा अइप्पसंगादसारमिणं॥११४५।। सव्वं च जाणइ कह? किं पञ्चक्खे %A1% ॥१२८॥ For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा तायाः दशशास्त्यां णुदाहु सब्वेहिं । पच्चक्खमादिएहि माणेहि ? दुहावि णणु दोसो ॥११४६।। भिन्निंदियावसेओ (आ) रूवादी सुहुमववहितादी य । धमे कहमवगच्छति सब्वे जुगवं नेत्तादिणेकण ? ॥ ११४७॥ अन्नं अतिंदियं से पच्चक्खं तेण जाणई सव्वं । तब्भावम्मि पमाणाऽभावाला संग्रहणी.| सदेयमेवेय सद्धेयमेवेयं ।। १९४८ ।। सति तम्मि सबमेतावदेव तस्सऽत्तनिच्छओ किह णु । सिद्धं अतिंदियपि हु ओहादि ण सव्वविसयं ते सर्वज्ञता ॥ ११४०॥ जह सचमत्तविसयपि ओहिनाणं न धम्ममादीणं । गाहयमिय केवलमवि अन्वेसिमगाहगं किण्णो ? ।। ११५० । याचसिद्धिः ॥१२९॥ सध्वविसयंति माण किमत्थ ज णोवलब्भती अन्न । ओहीऍ अणुवलद्धेहिं धम्ममादीहिं वभिचारो ॥ ११५१ ।। जम्हा पच्चक्खेणं में ण सव्वरूवावि । दि) जाणणं जुत्तं । सम्बन्नुनिच्छओ अत्तणो य तम्हाऽसपक्खोऽयं ।। ११५२ ॥ पच्चक्खमाइएहिं जाणइ सव्वे-IP हिमह मतं ते तु । आगमकयस्समा णणु को वा एवं न सच्चन्नू ? ॥ ११५३ ।। अन्नं च नज्जइ ततो केण पमाणेण सव्वणाणिति ।। जो पच्चक्खेणं जं परविनाणं न पच्चक्खं ॥ ११५४ ॥ अणुमाणेणावि कहं गम्मति पच्चक्खपुब्वगं जेण । तल्लिंगलिंगिसंबंधगह11णतो चेव गमगंति ।। ११५५ ॥ण य पच्चक्खेण तओ घेप्पड लोगम्मि अन्ननाणस्स । निच्चपरोक्खत्तणओ लिंगवि अतो च्चिया| नियमो ॥ ११५६ ।। गम्मइ न यागमातो जं पुरिसकतो स होज्ज निच्चो वा ?। पुरिसकओविय सव्वन्नुरत्थपुरिसेहिं भइयव्यो ॥ ११५७ ॥ जइ सव्वन्नुकओ सो तदसिद्धो हंदि ! तस्स कह सिद्धी ? । इतरेतरासयो इह दोसो अनिवारणिज्जो तु ॥ ११५८ ।। अह रत्थापुरिसकओ ण पमाणं रेवणाइकव्वं व । अपमाणाओ य तओ तदवगमो सम्बधाऽजुत्तो ॥११५९ ।। अह निच्चो सव्वन्नू ॥१२९१ उसहो एमादि अत्थवायो उ । अह णो अणिच्चमेसो कित्तिमभावाभिहाणाओ ॥ ११६० ।। निच्चे य तम्मि सिद्धे तत्तो च्चिय धम्ममादिसिद्धीओ । सबन्नुकप्पणावि हु अपमाणा निष्फला चव ।। ११६१ ॥ पडिमेहगं च माणं सोऽसबन्नुत्ति णो पइन्नाओ । For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्यां ।। पुरिसादित्ता हेऊ दिटुंतो देवदत्तो च ।। ११६२ ।। जइ णाम जीवधम्मा अणादिमतो य एत्थ रागादी । संभवइ तहवि विरहो इह वीतराग | कत्थइ हासभावाओ ।। ११६३ ॥ पडिवक्खभावणाओ अणुहवसिद्धो य हासभावो सिं । थीविग्गहादितत्तं भावयतो होइ भब्वस्सा संग्रहणी. | ११६४ ।। जइ नाम हासभावो सव्वाभावम्मि तेसि को हेऊ? । पडिवक्खभावण च्चिय सम्म अद्धाविससेणं ॥ ११६५ ॥ सर्वज्ञतादेसक्खयोऽत्थ जेसिं दीसइ सव्वक्खयोऽवि तेसिं तु । तद्धेतुपगरिसातो कंचणमलरोगमादणं ॥ ११६६ ॥ नाणी तवम्मि निरओ चारित्ती भावणाएं जोगोत्ति । सा पुण विचित्तरूवाऽवत्थाभेदेण निद्दिट्टा ॥ ११६७ ॥ भावेह य दोसाणं निदाणमेसो तहा सरूवं दाच । विसयं फलं च सम्म एवं च विरज्जई तेस् ॥ ११६८ ॥ जंकुच्छियाणुजोगो पयइविसद्धस्स चेव जीवस्स । एतेसिमो णिदाणं . | बुहाण न य सुंदरं एयं ॥ ११६९ ।। रूबंपि संकिलेसोऽमिस्संगापीतिमादिलिंगो उ । परममुहपच्चणीओ एयंपि असोहणं चेव X|| ११७०॥ विसओ य भंगुरो खलु गुणरहितो तह य तहऽतहारूवो । संपत्तिनिष्फलो केवलं तु मूल अणस्थाणं ।। ११७१ ॥४ | जम्मजरामरणादी विचित्तरूवो फलं तु संसारो । बुहजणणिब्बेदकरो एसोवि तहाविहो चेव ॥११७२ ॥ एते भावेमाणो एएसिं काचेव निग्गुणत्तणओ । एईए पगरिसम्मि विरज्जती सव्वहा तेसु ।। ११७३ ॥ नाणादिगाऽहवेसा सम्बच्चिय तेसि खयनिमित्ता हाउ । पडिवक्खभावणा खलु परमगुरूहि जतो भणियं ॥ ११७४ ॥ नाणं पगासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिण्हपि PM समायोगे मोक्खो जिणसासणे भणिओ ॥ ११७५ ॥ अन्नाणादिनिमित्तं जं कर्म तस्स भेदजोगाओ। ते होंति जं ततो सिं जुज्जइ ॥१३०॥5 एमेव खवणं तु ॥११७६ ॥ बंधइ जहेव कम अनाणादीहिं कलुसियमणो तु । तह चेव तब्विवक्खे सहावतो मुच्चती तेणं मा॥१३०॥ दा॥ ११७७ ।। जम्हा स थिरो धम्मी कम्मक्खयतो य वीयरागतं । तम्हा असोभणं चिय नेयं जलजलणणायपि ।। ११७८ ।। खीणा For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशावयाँकाय ते ण होति पुणोऽवि सहकारिकारणाभावा । न ह होइ संकिलेसो तेहिं विउत्तस्स जीवस्स ॥११७९ ॥ तदभावे ण य बंधा 12 वीतरागपू तप्पाओग्गस्स होइ कम्मस्स । तदभावा तदभावो सब्बद्धं चेव विबेओ ।। ११८० ।। तायाः संग्रहणौ. हा नैरात्म्यखंडन-अन्ने उ नत्थि आया इति भावणमो सुदिनुपरमत्था । दोसपहाणनिमित्तं वयंति निस्संकियं चेव ।। ११८१॥ सर्वज्ञता सति असति वावि तम्मी एसा ? सइ कह णु सम्मरूवत्ति ? । मिच्छारूवा य कहे पहाणहेऊ ? विरोहातो याचाताई। ॥१३॥ 8॥११८२ ॥ असइ य को भावती ? खणिगो अह सव्वहा निसिद्धो सो । नो भावी मे वाही नाउं च करेइ को किरियं ? ॥ ११८३ ॥ पुत्तस्स नो भविस्सइ गहणे सति तस्स जुज्जए एतं । अन्नस्म चिगिच्छाए पउणइ अन्नो न लोगम्मि ॥११८४॥ |नो भावी मे दोसो मम चेवाभावओत्ति ता विसए । भुंजामि किं न बुद्धी जायइ णइरातवादम्मि? ।। ११८५ ।। तम्हा असपा-2 द्र खोऽयं जुत्तिविरोधा विवज्जयपसंगा। सत्ताणुगुन्नतो पुण जुज्जइ इय देसणामेत्तं ।। ११८६ ॥ धम्मा य धम्मिणो इह भिन्नाभिन्ना भवंति नायव्वा । नवि (हि) धम्मिधम्मभावो जुज्जइ एगंतवादम्मि ।। ११८७ ।। एगंत- | साभेदपक्खे धम्मा एयस्स को णु संबंधो ?। एगंताभेदम्मिऽवि दुहाभिहाणादि कह जुत्तं ? ॥ ११८८ :! एगो धम्मी धम्माऽणेगे जं ४ नेण हॉति भिन्नत्ति । जं पुण तेणऽणुविद्धा सब्वेवि अतो अभिन्नात्त ।। ११८९ ॥णेयप्पमे (भे) यभावोऽवत्थाभेदो य चित्तरूवो 3 | तु । एमादि होंति धम्मा धम्मी पुण तेसिमाहारो ॥ ११९० ।। सब्वेसि एगत्ते अविसिट्ठा नेयबुद्धिमो सव्वा । पावइ भिन्ना य तई | का अणुहवसिद्धा तु सम्वेसि ॥ ११९१ ।। तस्सेवऽणेगरूवत्तणम्मि सिद्धो तु धम्मभेदोत्ति । अविगाणवुद्धिसिद्धस्स निण्हवेऽतिप्पसंगो य | For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir खंडनं दशशाख्यां । ॥ ११९२ ।। चतणरूवादीया बालकुमारादिघडकवालादी । इह भेदबुद्धिसिद्धा सत्ताधाराऽविगाणेणं ॥ ११९३ ।। सत्ताओ अन्नत्ते &ा नरात्म्य असत्तमसिं तहा अणन्नत्ते। तम्मत्तयत्ति तम्हा अन्नाणन्ना तु णियमणं ॥११९४॥ एएणं पडिसिद्धा भेदाभेदादिया तु जे दोसा । जम्हा संग्रहणी. दिएगतातोऽवत्थंतरमो अणेगतो ॥११९५।। एवंपि तेसिंण खयो एगंतणेच धम्मिणो जम्हा। तेऽभिन्नावि कहंची णय णासो सव्वहा तस्सवातरागता | ॥११९६॥धम्मा हवंति दुविहा सहजा सहगारिसव्ववेक्खाय। सहजेसु अस्थि एयण तु इतरेसुपि तदभावा ॥११९७||रागादिवेदणिज्जस्स सार्वश्यं च | कम्मुणो उदयमाइ सहकारी । रागादीणं तस्साभावे य कह नु ते होंति ? ॥११९८ ।। अवबोहमादिया पुण सहजा तेसु तु अवगतेद सुपि । तेर्सि चिय सामन्नं चेतनं चिढ़ती चेव ।। ११९९ ॥ एवं च नज्जइ तओ चेट्ठाओ चेव साहुसक्खि व्व । ववहारेणं निच्छि (च्छ ) यभावेण उ आगमातोत्ति ॥ १२०० ।। सम्मेतरचेट्ठाणं अस्थि विसेसो निमित्तभेदातो । एत्तो रिचय हेऊतो नज्जइ सो 8| बुद्धिमंतेणं ।।१२०१।। तप्पडिबद्धं लिंग न दिट्ठमंधेण ण य तओ नत्थि । आवरियबुद्धिचक्खू पेच्छति कहमायधम्मं तु ॥१२०२।। |जह चेव अपच्चक्खो आया ईहादिएहिं लिंगहिं । गम्मइ तहेव भासादिलिंगओ वीयरागोऽवि ॥ १२०३ ।। सव्वं च जाणइ तओ पञ्चकवेणेव ण पुण सब्बेहिं । भिनिदियावसेयादिभणियदोसोऽवि ण य एत्थ ॥ १२०४ ॥ अनं अतिंदियं जं पच्चक्खं तेण जाणई सव्वं । तब्भावम्मि पमाणं पगरिसभावो उ नाणस्स ॥१२०५।। बोहपरिणामलक्खणमिह सिद्धं आतदब्बसामनं । तस्साइसयो दीसइ अज्झयणादीसु किरियासु ॥ १२०६ ॥ केइ तिसंथदुसंथा केइ बहुबहुतरन्नुणो एत्थ । संभाविज्जइ तम्हा पगरिसभावोऽवि णाणस्स &॥१३२॥ ॥१३२॥ ॥ १२०७ ।। सोइंदियदारेणं नियनियविसएसु चेव जुत्तात्ति । पावइ अतिप्पसंगो अन्नह परियप्पणे नियमा ॥ १२०८ ॥ मोत्तूण इंदिए ज पाइभणाणस्स दीसती वुड्डी। आवरणहासओ ता सयलत्थपगरिसो(सओ)अम्रो ॥१२०९।। होति य पातिभणाणं असेसरूवा SASSOCIAACAX % %A5 % For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रयांना दिवत्थुविसयंपि । पच्चक्खादधिगतरं तग्गयपज्जायगमगं तु ॥१२१०॥ अविसंवादि य एतं सुए इमं होहिइत्ति हिययं मे | कहइ | नैरात्म्य धर्म तइञ्चिय नवरं तं जायइ अविवरीआओ ॥१२१शा उडिंति केइ थोवं केइ बहुं बहुतरं तहा अन्ने । भुंजन्ति य ण य एसिं पगरिसमो खंडनं सग्रहणा. सव्वविसतो तु ॥१२१२।। णाणस्सवि एवं चिय तरतमजोगेवि दिट्टविसओ तु | जुज्जइ पगरिसभावो वेधम्मातो इदमजुत्तं॥१२१३॥ वीतरागता || सर्व सामण्णविससम्वमिह वत्थु माणसिद्ध तु । सामन्त्रेण य सव्वं पायं जाणंति समयण्ण ॥१२१४॥ किंची विसेसओवि ह सयलवि- सावश्यं च ॥१३३॥18सेसाणमवगमे तस्स । सामत्थमणुमिणिज्जति पच्चक्खेणं परोक्खंपि॥१२१५।। णाणसहाओ जीवो आवरणे असति सति य णेयम्मि || | कह णु ण णाही सव्वं पगरिससामत्थजुत्तो य? ॥१२१६।। आवरणाभावोऽवि हु पुव्वुत्तविहीएँ ण पाडेबंधो य । देसाइविप्पगरिसा सामण्णणोवलंभाओ ॥१२१७।। णय सामण्णेणवि गमणभोयणं सव्वविसयमिह दिहूँ। ता कह णु विसेसेणं होही तं सम्बविसयं तु १४ ॥१२१८। परिमियसामत्थो च्चिय देहो गमणादियासु किरियासु । ता जुत्तं चिय तासिंण पगरिसो सव्वविसओत्ति ॥१२१९।। णय एगजत्तसिद्धं (गमणं) चिय होइ बीयजत्ताम्म | णाणे व हंदि गमणे तम्हा अणुदाहरणमेयं ॥१२२०।। जीवस्सवि सब्बेसु हंत विसेसेसु अस्थि सामत्थं । अहिगमणम्मि पमाणं किमेत्य ? णणु णेयभावो तु ॥१२२१।। जलहिजलपलपमाणादिविसेसा सव्व एव पच्चक्खा । कस्सइ यत्तातो घडादिरूवादिधम्म व्व ।।१२२२॥ यत्तमप्पओजगमिह जोगत्ताए चिट्ठती जेणं । जह छेदणकिरियाए रुक्खा णो ४/ विधुरभावातो ।।१२२३॥ विधुरत्तं च विसेसाण णाणविसयत्तमिच्छियव्वं तु । पावेइ अण्णहा छ?माणवभिचारदोसो तु ॥१२२४॥ दि णय तेऽणुमाणगम्मा लिंगाभावा ण सद्दगम्मा य । विसयाभावा विहिपडिसहा विसओ जतो तस्स ॥ १२२५ ॥ उवमागम्मावि ण ते आलंबणजोगविरहतो तेसिं । अत्थावत्तीऍवि एवमेव ते णावगम्मति ॥ १२२६ ॥ तम्हा अभावविसया संति य बभिचारिमो १३३१ For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रयां अभावो भे । भावे अह किं माणं ? सामण्णविवक्खभावो तु ॥ १२२७ ॥ ता पच्चक्खेणं चिय ते गम्मतित्ति इच्छियव्वामणं । लवीतरागधर्म 18 जस्स य ते पच्चक्खा सो सवण्णुत्ति एयपि ॥ १२२८ ।। णय ते इंदियजेणं गम्मति तयंति अन्नमेवेह । एवं विरुद्धदोसो ण हाइश संग्रहणौ. [8] बाधाएँ भावाता ।। १२२९ ।। ण तु एवमवस्स चिय रुक्खा छयकिरियाएँ विसओत्ति । जोगत्ता तंज सा भणिता इह पत्थिवेस त साता | ॥ १२३० ।। एतेणं चिय सति ताम्म सबमेतावदेव एमादी । पडिसिद्धं दट्ठव्वं सबपरिच्छेदसिद्धीओ ।। १२३१ ।। जं सवणाणमो याश्वसिद्धिः इह केवलनाणं ण देसणाणेहिं । ता जुत्तो वभिचारो वोत्तुं तस्सोहिमादीहिं ।। १२३२ ॥ सव्वविसयं च एतंति एत्थ पुब्बोदिगा तु | उववत्ती । जे सामनविसेसे विहाय वत्थंतरं त्थि ॥ १२३३ ।। ते य जहणाणगम्मा तह भणितं तस्स यऽण्णरूवत्ते । नो वत्थुत्तं तस्सऽत्तणिच्छओ कह ण एवं तु?॥ १२३४ ।। जम्हा पच्चक्खेणेव सव्वरूवादिजाणण जुत्तं । सव्वन्नुनिच्छयो अत्तणो य तम्हा सपक्खाऽयं ।। १२३५ ।। मंसासुइरसणाणे उवि तस्स दोसो ण विज्जती चेव । जमणिंदियं तयं ण य रागादीदासहेतुत्ति ।। १२३६॥3 णज्जइ य तओ तइया चिंतियसव्वत्थपगडणेणेव । ववहारणयमतेणं सुसंपदाओ (या) य एण्हिपि ॥ १२३७ ॥ चउवेदोवि हु एवं णज्जइ ववहारणयमएणेव । अचउव्वदेहिं अह अस्थि सो एवमितरोवि ॥१२३८।। अह णिच्छएणवि इमो णज्जइ अन्नेण तुल्णाणेण । | इयरम्मि (वि) तल्लमिणं संति य बहवेऽत्थ सव्वन्न् ॥ १२३९ ॥ एण्हिपि आगमातो कहंचि णिचो य सो मओ अम्हं । णय एस४ अत्थवादो फल जतो चोदणाए उ॥१२४०॥ भणियं च सग्गकेवलफलत्थिणा इह तवादि कायव्वं । सग्गो व्व फलं केवलमसेस-1 ॥१३४|| I ॥१३४॥ दव्वादिविसयं तं ।।१२४शा णिच्छियमविवरीयं जणेइ जं पच्चयं जहा चक्खू । ता माणमागमो सो णायव्यो बुद्धिमंतेहिं ॥१२४२।। एयस्स य पामण्णं सत एव कहंचि होइ दट्ठवं । एवं च ततो सग्गे व्व णिच्छओ तम्मि उववण्णो ॥ १२४३ ॥ सिय सुहपगरिस CACRORSCAM For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . धर्म ॥१३५॥ दशशाखा रूवो सग्गो तं चेत्थ अणुहवपसिद्धं । णय केवलंति तं णो दोण्हवि सामन्त्रसिद्धीओ ॥ १२४४ ॥ णहि जं विसिट्ठसाहणसज्झा सर्वज्ञसिद्धौ दीसंति सुहविसेसावि । सामन्त्रेण उ दीसह णाणंपि समाणमेवेदं ।। १२४५॥ * नित्यागम संग्रहणी. नित्यागमनिरासः-एगतेण उ णिच्चो अतिंदियत्थो य आगमो जेसिं । रागादिअविज्जाए गहिआ पुरिसा य सव्वेऽवि ॥१२४६।। तेसिमिह खंडनं. किं पमाणं ? इमस्स वयणस्स एरिसो अत्थो । णतु एरिसोत्ति णिच्छयविरहम्मि य कह पवित्तीवि? ॥ १२४७॥ जो चेव लोगिगाणं पदाणमत्थो स एव तेसिपि । ता तदणुसारतो च्चिय णज्जइ एत्थंपि णो माणं ॥ १२४८ ।। तुल्लत्थयाएँ किंवा इमे आणिच्चा तओ य णिच्चोति । सव्वगयणिच्चवण्णा य कारणं तुह दुवेण्हंपि ॥१२४९।। रयणादिविससकतो अह तु विसेसो ण जुत्तमयंपि । सव्वगयादिजुयाण रयणादिविससविरहाओ ॥ १२५० ॥ तीरइ य अन्नहावि हु काउं रयणावि लोगिगाणं व । वेदवयणाण तह संठियाण ण तु लोगिगाणंपि ॥ १२५१ ॥ तम्हा कहंचि णिच्चो पुरिसपणीतो य आगमो जुत्तो । वण्णाणमतिंदियसत्तिजाणगो कोइ पुरिसो य ॥१२५२।। णो वाबाराभावम्मि अण्णहा खम्मि चेव उवलद्धी । पावइ वेदस्स सदा तहेव अत्यापरिण्णाणं ॥१२५३॥ रागादिमं न याणति सयं नयऽण्णातो तारिसाओ तु । वेदत्यं ण तओवि हु अचेतणत्तेण णावगमो ॥ १२५४ ॥ किंच तो सद्दो |वा हवेज्ज णाणं व तस्स विसयो वा ? । अण्णा व कोइ ? णिच्चाणिच्चो सो सधपक्वेसु ॥ १२५५ ।। णोऽवावारे सद्दो सुब्वइ जं तेण वण्णदयाई । तेण परिणामिताई णिच्चाणिच्चो तओ स भवे ॥१२५६॥ णियमा कस्सइ धम्मस अवगमे कस्सई य उप्पाते ।। होइ अभिवत्ति णो उण एगसहावस्स भावस्स ॥१९५७ ॥ णाणं विसओ अण्णो व कोइ सच्चाई उभयरूवाई। भावातो चिय R ॥१३५॥ ||मिच्छा एगंतेणेव सो णिच्चो ॥ १२५८ ॥ पामन्नपि सतो च्चिय वेदस्स ण संगतं विगाणातो । को एत्थ सम्मवाई को वा णो ? For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir दशशास्त्रयां है णत्थि इह माणं ॥१२५९ ॥ एगतेण सतो च्चिय पामन्ने जं ततो कुविण्णाणं । तस्स चिय पमाणत्तं पावइ जह सम्मणाणस्स है सर्वज्ञसिद्धौ IP॥ १२६० ।। अह तं ण तओ, इतरंपि णेव, वक्खाणिदोसतो तं चे । इयरंपि किन्न, गुणतो, एवं सति णिप्फलो वेदो ॥१२६१॥ नित्यागम संग्रहणी. उप्पनम्मिवि णाणे तत्तो तह संसयादिभावातो। अण्णतो तेसिं चिय णिवित्तिओ कह सतो चेव? ॥ १२६२ ।। णय हॉति संस-II खडन. *यादी दीवादिपगासिए घडादिम्मि । णाते ण य सो कस्सइ विवरीयपयासणं कुणइ ॥१२६३ ॥ कंदोट्टादिसु अह सो पगासती रत्तयादि विवरीयं । तण्णो तज्जोगाओ तस्सेव तहापरिणतीतो ॥१२६४ ॥ उलुगादीणं दिणगरकिरणा भासंति जह तमोरूवा । वेदत्थोवि हु एवं पावेण ण सम्म केसिंचि ।। १२६५ ॥णातेऽवि संसयादी कहं णु जायंति ? तेऽवि पावातो । तदभावे तदभावा सिद्धं परतोऽवि पामन्त्रं ॥ १२६६ ॥ एगतेण तु सत एव तम्मि सइ सबहेव सव्वेसि । कुज्जा पमाणकज्नं सहावभेदादिविरहातो ४॥ १२६७ ॥ एवं च गम्मह जदा कहंचि णिच्चातो आगमातो सो। संपइ तदा ण जुत्तं जं चुर्त पुवपक्खम्मि ॥ १२६८॥ अनं।४ |च गम्मइ तओ केण पमाणेण एवमाई उ । इतरेतरासओऽवि हु फलभूयत्तेण नो तस्स ॥ १२६९ ॥ सुत्तस्स अत्थवत्ता सव्वण्णू सो & Pय तम्मि फलभूतो। पामण्णं च सतो च्चिय इमस्स ता कह णु दोसत्ति ? ॥१७॥ पडिसहगे पमाणे सोऽसवण्णुत्ति अस्स ४ को अत्थो । जति किंचिण्णू णण किं तेण ण णायंति वत्तव्वं? ॥ १२७१ ।। अह जागादिविहाणं मिच्छारूवेण णिच्छियं चेव । ५ भणिता य तेण हिंसादीया कुगतीए हेतुत्ति ॥ १२७२ ॥ सवण्णुणो अहऽण्णो तस्स विरुद्धो व सो असवण्णू । जत्तो अण्णो जस्स *॥१३॥ ॥१३६॥ य तओ विरुद्धो स सव्वष्णू ॥ १२७३ ॥ विवरीतण्णुवि णेसो जमणेगतो ण होइ विवरीयो । बाहगपमाणविरहा भवतोऽविय सिद्धमेवेयं ।। १२७४ ।। जति वि (य) स कुत्थियण्णू णरगादी एत्थ कुत्थिया चेव । ते जाणति च्चिय तओ एवंपि ण कोई दोसोत्ति -31615 For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धमे I दशशाखयां ॥१२७५ ।। अह तु अकिंचिण्णुच्चिय एवं पुरिसादओ कहं तम्मि? | परिगप्पियपडिसेहे अब्भुवगमवाहणं णियमा ।। १२७६ ॥ठासवेज्ञसिद्धा | अह उ अभावोत्ति तओ तस्सव पगासगो अयं सहो । एयपि माणविरहा असंगतं चेव णातब्बं ॥ १२७७ ॥ पुरिसत्तंपि असिद्धलानित्यागम संग्रहणी. वेदाभावातो तम्मि भगवंते । आगारमित्ततुल्लत्तणेवि मायाणराणं व ॥१२७८ ॥ ण य णाणपगरिसेणं पुरिसादीणंपि कोइविश विरोहो । वयणं तु णाणजुत्तस्स चेव उववण्णतरगं तु ॥ १२७९ ॥ सिय अह जो जो पुरिसो सो सो णो णाणपगरिससमेतो । ॥१३७॥ दिट्ठोत्ति ताण जुत्तं अदिट्ठपरिगप्पणं काउं ॥ १२८० ॥ अस्सावणत्तजुत्तं सत्तं सब्वेसु चेव भावेसु । दिवपि सद्दरूवे अविरोहा अण्णहा सिद्धं ॥१२८१॥ एवं पुरिसत्तंपि हु जइवि ण विण्णाणपगरिससमेतं । दिद्वं तहऽवविरोहा तेण समेतंपि संभवइ ॥१२८२॥ वयणपि ण रागादीणमेव कज्जंति तेहिं रहितावि । पगतं पयंपइ जतो कोई मज्झत्थभावेण ॥ १२८३ ॥ अह तु विवक्खाएँ विणा | ण जंपई कोइ सा य इच्छत्ति । रागो य तती तम्हा वयणं रागादिपुवं तु ।। १२८४ ।। सुविणादिसु तीऍ विणा जंपति कोई तहा विचित्तो य । अनम्मि जंपियव्वे. दीसइ अन्नं च जपतो ।। १२८५ ॥ तत्थवि य अत्थि सुहुमा अवंतराले य कज्जगम्मत्ति । दिदुपरिच्चाएणं अदिद्वपरिकप्पणा एसा ॥ १२८६ ॥ण य परिसुद्धा एसा रागोऽवि वदंति समयसारण्णू । विहिताणुट्ठाणपरस्स जह तु | सज्झायझाणेसु ॥ १२८७ ॥ मणपुब्बिगा विवक्खा ण य केवलिणो मणस्सऽभावातो । अवि णाणपुबिग च्चिय चेट्ठा सा होइ ठाणायब्वा ॥ १२८८।। एत्तो च्चिय सा सततं ण पवत्तति तह य संगतत्थावि । पत्तम्मि अवझफला परिमियरूवा य सा होतिम दि॥ १२८९ ।। रागादिजोग्गताजण्णमह तु वयणं ण संगतमिदंपि । तज्जोग्गता ण अण्णं जणेति पुवावरविरोडो ।। १२९० ।। जंपति ॥१३७॥ |य बीयरागो य भवोवग्गाहिकम्मुणो उदया। तेणेव पगारेणं वेदिज्जति जं तयं कम्मं ॥ १२९१ ।। संदिदा य विवक्खा वावित्ती For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C % 97-A-% दशशास्त्रयां मस्स हेतुणो जम्हा । तम्हा संसयहेतू एसो खलु होइ णायचो ॥१२९२ सिय तस्सेवाभावा ततो णिवित्तीण णिच्छितो सोपवि। * सर्वज्ञसिद्धौ धमे का तप्पडिसहगमाणाभावा जं सो ण सिद्धोत्ति ।। १२९३ ॥ पच्चक्षणिवित्तीए तस्साभावो ण गम्मती चेव । जं सोवलदिलक्खणपत्तो नित्यागम संग्रहणौ. नो होइ तुम्हाणं ॥१२९४|| ण य सव्वविसयासिद्धं पच्चक्खं तस्स अब्भुवगमे य । सिद्धो च्चिय सवण्णू पडिसेहो कह णु एतस्सल खडन. ॥ १२९५ ॥ अणुमाणेणवि तदभावणिच्छओ णेव तीरती काउं । तप्पडिबद्धं लिंग ज णो पच्चक्खसंसिद्धं ॥ १२९६ ॥ गम्मति ण | यागमातो तदभावो जं तओ ण तबिसओ । विहिपडिसेधपहाणो कज्जाकज्जेसु सो इट्ठो ॥ १२९७ ॥ उवमाणेणावि तदभावनिच्छओ व तीरती काउं । तस्सरिसगम्मि दिढे अण्णम्मि पवत्तइ तयंपि ॥ १२९८ ॥ दिट्ठो सुओ व अत्थो णहि तदभावं विणा न संभवति । अत्थावतीवि तओ ण गाहिगा होइ एतस्स ॥ १२९९ ॥ जोऽविय पमाणपंचगणिवित्तिरूवो मतो अभावोत्ति । सोविय जणिरुवक्खो ण गमति ता णिययणेयं तु ।। १३००॥ ण य सो तीरइ गाउं अक्खं व ण यऽनहा कुणति कजं । सत्तिविरहा* | इमीवय (अव) भावे सो कहमभावोत्ति ? ॥ १३०१ ॥ सो सो चेव ण होई पुरु (रि) सादित्ता तु देवदत्तो व्व । एवं च का विरुद्धोऽवि हु लक्खणतो होति एसोत्ति ॥ १३०२ ॥ ण य देवदत्तनाणं पच्चक्खं जेण णिच्छयो तम्मि । एसो असव्वष्णु च्चिय | दणातंऽपि ण संगतं तेणं ।। १३०३ ॥ण य कायवयणचेट्ठा गुणदोसविणिच्छयम्मि लिंग तु । जं बुद्धिपब्विगा सा णडम्मि वभिचा-14 *रिणी दिट्ठा ॥१३०४॥ सिय तकालम्मि तओ तेणेव समष्णितो तु भावणं । तण्णो तकालम्मिवि रूवगमादीसु गहीतो ।।१३०५||*॥१३८॥ ॥१३८॥ सव्वन्नुभूमिगपि हु नच्चंति णडा जतो ततो एवं । अन्भुवगमम्मि पावति सव्वण्णुतंऽपि तेसिं तु ॥ १३०६ । पडिसहगंपि माणं | दामाणाभासं तु दंसितं एवं । ता अणिवारियपमरो सिद्धो सवण्णुभावोऽपि ॥ १३०७ ।। वेज्जगजोतिससत्थं अतिदियत्थेसु संगतंपि %A ACCACACANCERec A For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशारुयां कहं । जुज्जति ? अतिंदियत्थण्णुपुरुसविरहम्मि वत्तच्वं ।। १३०८॥ बुट्टपरंपरतो चिय अह तं आदीएँ णिच्छिा कण । । अचाण उपयोग धम पर . . परंपरा णहि रूवे मुणइ दोहोवि ॥ १३०९ ।। न य तं सयं कहे। ममेस अत्यो अचेयणतणतो । पुरिसेण विवाचज्जा एसा तु|| वादः संग्रहणी. मतीविससेण ॥१३१० ॥ णय सामण्णमतीए विवेचितुं तीरती ततो पढमं । सुविवेचित सिटे उण तहा गहा हातिमागाव ॥ १३११ ॥ अंधोऽवि अणंधणं सम्म कहियं कहचि रूबंपि । पडिवज्जित्तु पसाहइ तहाविधं कंपि ववहारं ॥ १५१२ ।। जस्सारसा ॥१३९॥ | दसाओ सो सुकपडो इमो णय इमोत्ति । एवं विणिच्छियमती दीसति लोए ववहरंतो ॥१३१३ ॥ एवं इमेवि विज्जादिगाह सम्मणाणिपुब्बातो । उबदेसतो पयट्टा पारंपरए ण तु विसेसो ॥ १३१४ ।। सव्वं तिकालजत्न तीयादिसु कह य तस्स पचक्ख। तेसिमभावातो चिय भावे तीतादिमो किह णु ? ॥ १३१५॥ तेसिमभावो त मसा वत्थ जतो दवपज्जवसहाव । भदाभदा यार मिहो अत्थि य तं वत्तमाणेवि ॥ १३१६ ॥ सयलातीतावत्थाजण्णं पारंपरेण जमिदाणिं । एसाण य एवं चिय जणग खलु हाइ णातव्वं ।। १३१७ ॥ तीए तीए सत्ताएँ पावित जं च पाविहिति सा सा । तं तं तओ वियाणइ आवरणाभावतों चव ॥ १२१८ ।। पावति तस्साभावो मलाभावातो अहव एगतं । एगंततोत्ति एवं कह ण अद्धादिभेदोऽवि? ॥ १३१९ ॥ एवं ताताणागतरूवाप कहाच आत्थ दब्बस्स । णय तीतादिअभावो पजायावेक्खतो जुत्तो ॥ १३२० ।। एवंरुवं सब्बं एवं चिय आहइ तआ जम्हा। ताऽतीतादिसु सम्म उववण तस्स पञ्चक्खं ॥१३२शातीए तीयत्तेणं अणागते तेण चेव रूवेणं । गेण्हइ ज ते दााण गहणाव ण तास तदभावो ।। १३२२ ।। मुणइ य घडम्मि दिद्वे पिंडकपालादिए इहं कोऽवि । पञ्चक्खेणवि पातिभणाणी ता संभवइ एत ॥१२२॥ ॥१३९॥ अण्ण तु असंतसुवि सुविणादिसु जह फुडाभमेतति । एतो च्चिय पच्चक्खं भणति तं वीयरागस्स ।। १३२४ ॥ त पुण विसयागार | For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ दशशास्त्रयां है सो य इमस्सेव गहणपरिणामो । ण तु बिंबसंकमादी पोग्गलरूवत्ततो तस्स ॥ १३२५ ॥ बिंबपडिच्छाया वा पोग्गलजोगं विणा ण उपयोग धर्म, संभवति । अब्भुवगमे य सो च्चिय आवजइ गहणपरिणामो ॥१३२६ ॥ ण य तस्स णेयजोगो छायाहिंपि विप्पगरिसातो । वादः संग्रहणा. अणुपभितिसुऽभावातो णेयाणंतत्तओ चेव ।। १३२७ ॥णाणस्स पिंडभावो सिद्धाण य जोगसंभवाभावा । तेसावरणपसंगा सेसपरि | च्छेदविरहा य ॥ १३२८ ।। ण य सधगयं एवं सत्तारूण जे अणंतो तु । धम्मरहितो अलोगो कह गच्छति तो तय झत्ति ॥१४०॥3॥१३२९॥ जं च इयमातधम्मो परिमियमाणो य सो मतो समए । ण य अद्दव्या तु गुणा संकमगा चेव जुज्जति ॥१३३०॥ तम्हा सव्वपरिच्छेदसत्तिमन्तं तु णायजुत्तमिणं । एत्तो च्चिय णीसेस जाणति उप्पत्तिसमयम्मि॥ १३३१ ।।जह कस्सवि सयराहं जायति WIपंचत्थिकायविण्णाणं। एवं केवलिणोवि हु असेसविसयंपि समएवि ॥१३३२।। एवं चिय सब्बगतावभासमिच्चादि जुञ्जति असेसं | चंदादिपभाणाते उवमामत्तं मुणेयव्वं ॥ १३३३ ॥ जम्हा पहावि दव् पोग्गलरूवत्ति चंदमादाणं । ण य भिन्नाभिन्नाणं एवं जुत्ति समुन्वहति ॥ १३३४ ॥ | उपयोगवादः-अन्ने सागारं खलु सव्वगतंपि हु कहचि जंपति । विसयादिजोगतो चिय सियवादसुदिट्ठपरमत्था।।१३३५।। केई भणति जुगवं जाणति पासति य केवली णियमा । अण्णे एगंतरितं इच्छंति सुतोवदेसेणं ॥ १३३६ ॥ अण्णे ण चेव वीसुं दंसणमिच्छति WIजिणवरिंदस्स | जं चिय केवलणाणं तं चिय से दंसणं विति ॥ १३३७ ।। जं केवलाई सादीअपजबसिताई दोवि भणिताई । तो बेति केइ जुगवं जाणति पासति य सव्वणू ।। १३३८ । इहराऽऽदीणिधण मिच्छावरणक्खओत्ति व जिणस्स । इतरेतरावरणता अहवा | IN॥१४०॥ दणिकारणावरणं ॥ १३३९ ॥ तह य असवण्णुतं असव्वदरिसित्तणप्पसंगो य । एगंतरोवयोगे जिणस्स दोसा बहुविहा य ॥१३४० ।। X. + L For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्रयां धर्म संग्रहणी. ॥१४॥ भष्णति भिन्नमुहुत्तोवयोगकालेऽवि तो तिणाणस्स | मिच्छा छावट्ठीसागरोवमाई खओवसमा ॥ १३४१ ॥ अह णवि एवं तो सुण का उपयोग | जहेब खीणतराइओ अरहा । संतेऽवि अंतरायक्खयम्मि पंचप्पगारम्मि ॥१३४२ ॥ सततं ण देति लभति व मुंजति उबभुंजती व 14 वादः सवण्णू । कजम्मि देइ लभति व मुंजति व तहेब इहइंपि ॥१३४३।। दितस्स लभंतस्स य भुजंतस्म य जिणस्स एस गुणो । खीणतराइयत्ते जं से विग्धं ण संभवति ॥ १३४४ ॥ उवउत्तरसेमेव य गाणम्मि व दंमणम्मि व जिणस्स । खीणावरणगुणोऽयं 5 कसिणं मुणति पासति वा ॥ १३४५ ॥ पासंतोऽवि ण जाणइ जाणं ण पासती जति जिणिदो। एवं ण कदाचिवि सो सब्वष्णू सव्वदरिसी य ।। १३४६ ।। जुगवमजाणतोऽवि हु चउहिंविणाणेहिं जह उचउनाणी । भण्णति तहेव अरहा सवणू सव्वदरिसी य| ॥ १३४७ ।। तुल्ले उभयावरणक्खयम्मि पुर्व समुन्भवो कस्स ? । दुविहुवओगाभावे जिणस्स जुगवन्ति चोदेति ।।१३४८।। भण्णति ण एस णियमो जुगवुप्पण्णेण जुगवमेवेह । होयव्यं उवओगेण एत्थ सुण ताव दिटुंतं ।। १३४९ ॥ जह जुगवुप्पत्तीएवि सुत्ते सम्मतमतिसुतादीणं । णस्थि जुगवोवओगो सव्वेसु तहेव केवलिणो ॥ १३५० ॥ भणितं पण्णत्तीए पण्णवणादिसु जह जिणो भगवं । जं जाणती ण पासति तं अणुरयणप्पभादीणं ॥ १३५१ ।। जह किर खीणावरणे देसण्णाणाण संभवो ण जिणे । उभयावरणातीते तह केवलदसणस्सावि ॥१३५२।। देसण्णाणोवरमे जह केवलणाणसंभवा भणितो । देसईसणविगमे तह केवलदसणं होतु ॥१३५३ ॥ अह देसणाणदंसणविगमे तव केवलं मतं जाणं । ण मतं केवलदसणमिच्छामेत्तं णणु तदेवं ॥ १३५४ ॥ भष्णति जहोहिणाणी जाणति पासति य भासियं सुत्ते । णय णाम ओहिदसणणाणेगत्तं तह इमंपि ॥ १३५५ ॥ जह पासइ तह पासउ पासति सो जेण । दसणं तं से । जाणति य जेण अरहा तं से णाणन्ति तव्वं ॥ १३५६ ॥णाणम्मि दंसणम्मि य एत्तो एगयरयम्मि उवउत्तो।। LALI For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धमे - - दशशात्यात सव्वस्स केवलिस्सवि जुगवं दो णत्थि उवयोगा ।। १३५७ ।। उपयोगी एगतरो पणुवीसतिम सते सिणातस्स । भणिता वियडत्थो । उपयोग चिय छट्ठदेसे विसेसेउं ॥ १३५८ ।। कस्स व णाणुमतमिणं जिणस्स जति होज्ज दोवि उवयोगा । Yणं ण होंति दोण्णी जतो वादः संग्रहणी. णिसिद्धा सुते बहुसो ॥ १३५९ ॥ दसणणाणाई सामनविसेसगहणरूवाई । तेण ण सवण्णू सो णाया ण य सम्बदरिसीवि ॥ १३६० ।। समुदितमुभयं सव्वं अण्णतरेण णवि घेप्पति तयं च । भेदाभेदेवि मिहो एसो खलु होइ जातोत्ति ॥ १३६१॥ सामन्न| मिह कहंचि णेयं अब्भंतकियविसेसं । तेऽवि इतरेण एवं उभयपि ण जुजई इहरा ॥ १३६२ ॥ एवं च उभयरूबे सिद्धे सव्वम्मि वत्थुजायम्मि । दसणणाणावि फुडं सिद्धे चिय सव्वविसएत्ति ॥ १३६३ ॥ एत्थ णिबिसेस गहो बिससाण दंसणं होति । सवि-14 सेसं पुण णाणं ता सयलत्थे तओ दोऽवि ॥ १३६४ ॥ समताधम्मविसि₹ घेप्पति ज देसणेण सव्वं तु । ण तु विसमताएँ ता कह ४ सयलत्थमिणति वत्तव्यं ॥ १३६५ ।। एव विवज्जासेण णाणस्सवि असयलत्थया णेया । उभयगहणे य दोहवि अविससो पावती, हणियमा ॥ १३६६ ॥ समएतरधम्माणं भेदाभेदम्मि ण खलु अण्णोण्णं । णिरवेक्खमेव गहणं इय सयलत्थे तओ दोऽवि ॥१३६७।। | जं सामण्णपहाणं गहण इतरोवसज्जण चेव । अत्थस्स देसणं तं विवरीय होइ णाणं तु ॥ १३६८ ॥ जीवसहावातो च्चिय एतं एवं |तु होइ णातव्यं । अविसिट्ठम्मिवि अत्थे जुगवं चिय उभयरूवेऽवि ॥ १३६९ ॥ अण्णे सर्व णेयं जाणति सो जेण तेण सव्वष्णू । * सव्वं च दरिसणिज्जं पासइ ता सम्बदरिसित्ति ।। १३७० ॥णेया तु विसेस च्चिय सामण्णं चेव दरिसणिज्ज तु । ण य अण्णय-पते ॥१४२॥ ठाण्णाणेवि तस्स णो इट्ठसिद्धित्ति ॥ १३७१ ॥ सवण्णुविहाणम्मिवि दिद्वेट्ठाबाधितातो वयणातो । सव्वष्णू होइ जिणो सेसा सव्वे असव्वष्णू ॥ १३७२ ।। एवं सव्वण्णुत्ते सिद्धे णो छिन्नमूलदोसोऽवि । पावति एव भणंतस्स अहिगमे तुल्लदोसो तु ॥ १३७३ ॥ ★ ॥१४२॥ KAACARERANAS C+% For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir R दशशास्त्रयां । कहिंचि परिग्गहितो पतणुयकम्मेहिं एत्थ को दोसो ? । वेदस्सवि णिच्चत्तं सव्वेसिमसंमतं चैव ॥ १३७४ ॥ सोऊण आगमत्थं सिद्धसुखं धर्म एवं समयाणुसारतो सम्मं । जोएज्ज सबुद्धीए सेसेवि कुचोज्जपरिहारे ॥ १३७५ ॥ भव्यानुसंग्रहणी. च्छेदश्र. सिद्धसुख-काऊण इमं धम्म विसुद्धचित्ता गुरूवएसेणं । पार्वति मुणी अइरा सासतसोख धुवं मोक्खं ।। १३७६ ।। रागादीणमभावा ॥१४३॥ | जम्मादीणं असंभवातो य । अब्धाबाहातो खलु सासयसोखं तु सिद्धाणं ।। १३७७ ॥ रागो दोसो मोहो दोसाभिस्संगमादिलि गाति । अतिसंकिलेसरूवा हेतू चिय संकिलेसस्स ।। १३७८ ।। एतेहऽभिभूयाणं संसारीणं कतो सुहं किंचि? । जम्मजरामरणजलं भवजलहिं परियडंताणं ॥ १३७९ ॥ रागादिविरहतो ज सोक्ख जीवस्स तं जिणो मुणति । णहि सण्णिवातगहिओ जाणइ तदभावजं सातं ॥ १३८० ॥ दडम्मि जहा बीए ण होति पुणरंकुरस्स उप्पत्ती । तह चेव कम्मबीए भवंकुरस्सावि पडिकुट्ठा ।।१३८१॥ श्री जम्माभावे ण जरा ण य मरणं ण य भयं ण संसारो । एतेसिमभावातो कह ण सोक्खं परं तेसिं? ॥ १३८२ ।। अब्धावाधाआमा च्चिय सलिंदियभोगविसयपज्जते । उम्सुगविणिवित्तीतो संसारमुह व सद्धेय ॥१३८३।। इयभित्तरा णिवित्ती सा पुण आवकहिया मुणेयव्या । भावा पुणोऽवि णेयं एगतेणं तई णियमा ॥ १३८४ ॥ इय अणुभवजुत्तिहेतूसंगतं हंदि णिद्वितट्ठाणं । अत्थि सुहं सद्धेय तह जिणचंदागमातोय ॥ १३८५ ।। ण य सधण्णूवि इमं उवमाभावा चएति परिकहितुं । ण य तिहुयणेवि सरिसं सिद्धसुहस्सावरं अस्थि ।। १३८६ ।। एत्तो च्चिय अण्णेहिं कण्णाणायं इमम्मि अहिगारे । भणियं घडमाणंपि हु विण्णेयं तंपि लेसेण ॥१३८७॥ कण्णाण दढं पीती अणभिण्णाण पुरुसभोगसोक्खस्स । संगारो पढममिणं जायमिह मिहो कहेतव्यं ॥ १३८८ ॥ परिणीता तत्थेका 19. For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१४॥ दशशास्त्रयां है वुत्था य कमेण भत्तुणा सद्धिं । पुट्ठा इतरीए ततो भणेति णो तीरए काहिउं ॥ १३८९ ।। रुट्ठा इतरी ऊढा य कमेणं जाणिऊण तो है सिद्धसुखं धमे, 15 तीए । गतूण सर्य तुट्ठा जपति णणु तं तह च्चेव ॥ १३९० ॥ एवं सिद्धसुहस्सवि पगरिसभावं ततो च्चिय मुणेइ । अणुभवतो । भव्यानुसग्रहणा. सम्म ण तु अण्णोऽवि अपत्ततब्भावो ॥ १३९१॥ च्छेदश्च. भव्योच्छदाभावः-धुवभावो सिद्धाणं छम्मासादारओऽवि गमणं च । कालो य अपरिमाणो उच्छेदो कह ण भब्याण? ॥१३९२॥ तेऽपि अपरिमाण च्चिय जम्हा तेणं ण तेसिमुच्छेदो । समयाण व तीतेण वोच्छेज्जिज्जऽण्णधा ते तु॥१३९३॥ तम्हाऽतीतेणाणादिणाऽवि तेसिं जथा ण वोच्छेदो । तह चेवऽणागतेणवि अणतभावा मुणेयब्यो । १३९४ ॥ एवमिह समासेणं भणितो धम्मो सुताणुसारेणं । आताणुसरणहेतुं केसिंचि तहोवगाराय ।। १३९५ ॥ काऊण पगरणमिणं पत्तं जे कुसलमिह मया तेण । दुक्खविरहाय भव्वा लभंतु जिणधम्मसंबोधिं ॥ १३९६ ॥ ॥ इति याकिनीमहत्तरासूनुश्रीहरिभद्रसूरिदब्धाधर्म संग्रहणिः ॥ ॥१४४॥ For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशशास्त्रीय उपदेश पदे ॥१४५॥ ex अथ उपदेशपदग्रन्थः कामनुष्यभव 18| दुलभता नमिऊण महाभागं तिलोगनाहं जिणं महावीरं । लोयालोयमियक सिद्ध सिद्धोवदेसत्थं ॥१॥ वोच्छं उवएसपए कइइ अहंमदिनयागमा तदुवदेसओ सुहुमे । भावत्थसारजुत्ते मंदमइविबोहणट्ठाए ॥२॥ लद्भुण माणुसत्तं कहंचि अइदुल्लहं भवसमुद्दे । सम्मं निउजियव्वं 4 कुसलेहि सयावि धम्ममि ॥ ३ ॥ अइदुल्लहं च एयं चोल्लगपमुहेहि अत्थ समयमि । भणियं दिढतेहिं अहमवि ते संपवक्खामि ॥४॥ चोल्लग १ पासग २ घण्णे ३ जूए ४ रयणे ५ य सुमिण ६ चके ७ य । चम्म ८ जुगे ९ परमाणू १० दस दिटुंता मणुयलंभे ॥५॥ चोल्लत्ति भोयणं बंभदत्तपरिवार भारहजणमि । सयमेव पुणो दुलहं जह तत्थ तहेत्थ मणुयत्नं ॥ ६॥ जोगियपाासीच्छयपाडरमणदीणारपत्ति जयंमि । जह चेव जओ दुलहो धीरस्स तहेव मणुयत्तं ॥७॥ धण्णेत्ति भरहधण्णे सिद्धत्थगपत्थखेव थेरीए । अविगिचण मेलणओ एमेव ठिओ मणुयलामो ॥ ८॥ जूयंमि थेर निवसुयरज्ज सहट्ठासयसि दाएणं । एत्तो जयाउ अहिओ मुहाइ नेओ मणुयलाभो ॥९॥ रयणेति भिन्नपोयम तेसि नासो समुहमझमि । अण्णेसणंमि भणियं तल्लाहसमं खु मणुयत्नं ।। १० ।। सुमिणमि चंदगिलणे मंडगरज्जाई दोण्ह वीणणओ । नाएऽणुताव सुवणे तल्लाहसमं खु मणुयतं ॥ ११ ॥ चकेणवि कण्णाहरण अफिडियमच्छिगहचक नालाहे । अन्नत्थ णट्ठ तच्छेदणोवमो मणुयलंभोत्ति ॥१२॥ चम्मावणद्धदहमज्झछिड्डदुलि गीवचंदपासणया । अण्णत्थ चुड्डणगवेसणोवमो मणुयलंभो उ॥ १३ ॥ उदहि जुगे पुधावरसमिलछिद्दप्पवेसदिटुंता । अणुवायं मणुयत्नं इह दुलहं भवसमुमि । ॥ १४ ॥ परमाणु खंभपीसण सुरनलियामेरु खेव दिटुंता । तम्घडणेवाणुचया मणुयत्नं भवसमुदंमि ॥ १५ ॥ एवं पुण एवं खलु । * ** For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशाखाय र अण्णाणपमाददोसओ नेयं । जं दीहा कायठिई भणिया एगिदियाइणं ॥ १६॥ अस्संखोसप्पिणिसप्पिणीउ एगिदियाण उ चउण्हें । मनुष्यभव उपदेश पदे ता चेव ऊ अर्णता वणस्सईए उ बोध्धव्वा ॥ १७॥ एसा य असइ दोसासेवणओ धम्मबज्झचित्ताणं । ता धम्मे जइयव्वं सम्म सइ विनयागमो धीरपुरिसेहिं ॥१८॥ सम्मत्तं पुण इत्थं सुत्तणुसारण जा पवित्ती उ । सुत्तगहणमि तम्हा पवत्तियव्वं इहं पढमं ॥१९॥ देवी दाहल ॥१४६|| एगत्थेभप्पासाय अभय वणगमणं । रुक्खुवलद्धहिवासण बंतरतोसे सुपासाओ।। २० ॥ उउ समवाए अंबग अकाल दोहलग पाण पत्तीए । विज्जाहरणं रण्णा दिट्ठो कोवोऽभयाणत्ती ॥ २१ ॥ चोरनिरूवण इंदमह लोग नियरंमि अप्पणा ठिअओ । चोरस्स कए नट्टिय बहकमारिं परिकहिंसु ॥२२॥ काइ कुमारी पइदेवयत्थमारामकसमगह मोक्खो । नवपरिणीयम्भुवगमपइकहण विसज्जणा | | गमणं ॥२३।। तेणगरक्खसदसण कहण मुयणमेव मालगारेणं । अक्खय पञ्चागय दुकरंमि पुच्छाइ नियभावो ॥२४॥ इसालुगाइणाणं लाचारग्गह पुच्छ विज कहणाओ। दंडो तदाणाऽऽसण भूमी पाणस्सऽपरिणामो।। २५ ॥ रण्णो कोबो एयं वितहं अभय विणउत्तम | पाणस्स । आसण भूमी राया परिणामो एवमण्णत्थ ॥२६॥ विहिणा गुरुविगएणं एवं चिय मुत्तपरिणती होइ । इहरा उ मुत्तगहण विवज्जयफलं मुणेयव्वं ॥ २७ ॥ समणीयपि जरुदये दोसफलं चव हंत सिद्धमिण । एवं चिय मुत्तपिहु मिच्छत्तजरोदए णेयं ॥२८॥ | गुरुणावि मुत्तदाणं विहिणा जोग्गाण चेव कायचं । सुत्ताणुसारओ खलु सिद्धायरिया इहाहरणं ॥ २९ ॥ चंपा धण सुंदरि तामलित्ति बसुणंद सङ्घसंबंधो। सुंदरिणंदे पीती समए परतीरमागमणे ॥ ३० ॥ जाणविपत्ती फलग तीरे उदगत्थि सीह वाणरए। सिरिउररण्णो सुंदरि गह रागे निच्छ कह धरणा ॥३|| चित्तविणोए वाणरणटुंमी जाइसरण संवरणं । देवपरिच्छा निय रूव कहण | मा॥१४६॥ ₹रण्णो उ संबोही ।। ३२ ।। सावत्थी सिद्धगुरु विउब दिक्खा परिच्छ सामइए। आलावगा णिमित्ते अदाण कोवेतरा देवे ॥३शा। For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय लोगपसंसा सवण्णुसासण एरिसं सुदिट्ठति । बोहीबीयाराहण एवं सव्वत्थ विष्णेयं ॥३४॥ आसन्नसिद्धियाण लिंग सुत्ताणुसारओबुद्धिदृष्टा दाचव । उचियत्तणे पवित्ती सव्वत्थ जिणमि बहमाणा ॥ ३५॥ आयपरपरिचाओ आणाकोवेण इहरहा णियमा। एवं विचिंतियव्वलन्तानासूचा सम्म अइणिउणबुद्धीए ॥३६॥ बुद्धिजुया खलु एवं तत्तं बुझंति ण उण सव्वेवि । ता तीइ भेयणाए वोच्छं तब्बुट्टिहेउत्ति ॥३७॥ आत्पात्त| उप्पत्तिय वेणइया कम्मय तह पारिणामिया चव । बुद्धी चउन्विहा खलु निद्दिट्ठा समयकेऊहिं ।। ३८ ॥ पुव्वं अदिमस्सुयमवेइया वथा ॥१४७॥ तक्खणविसुद्धगहियत्था । अव्याहयफलजोगा बुद्धी उप्पत्तिया नाम ।।३९ । भरहसिल-पणिय-रुक्खे-खड्ग-पड-सरड-काय-उचारे । गय-घयण-गोल-खंभे, खुड्डग-मग्गि-त्थि-पइ-पुत्ते ॥ ४० ॥ भरहसिल-मिंढ-कुक्कुड-तिल-बालुग-हत्थि-अगड-चणसंडे । पायसअइया पत्ते खाडहिला पंच पियरो य ।। ४१ ।। महुसित्थ-भुद्दियं-के-णाणए भिक्खु-चेडग-निहाणे । सिक्खा य अत्थसत्थे इच्छा य महं सयसहस्से ॥ ४२ ॥ भरनित्थरणसमत्था तिवग्गसुत्तत्थगहियपेयाला । उभओलोगफलवई विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥४॥ णिमित्ते अत्थसत्थे य लेहे गणिए य कूब आसे य। गद्दभ लक्खण गठी अगए गणिया य रहिए य ॥४४॥ सीआ साडी दीहं च तणं अवसव्वयं च कुंचस्स । तिब्बोदए य गोणे घोडगपडणं च रुक्खाओ ॥ ४५ ॥ उवओगदिसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुक्कारफलबई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥ ४६॥ हेराण्णए करिसए कोलिय डोवे य मुत्ति-घय-पवए । तुण्णाय-बड्डई पूइए य 8 घड चित्तकारे य ।। ४७॥ अणुमाणहेउदिटुंतसाहिया वयविवागपरिणामा । हियनिस्सेयसफलवई बुद्धी परिणामिया नाम ॥४८॥ अभए सेविकुमारे देवी उदिओदओ हवइ राया । साहू य शंदिसणे धणदत्ते सावग-अमच्चे ॥४९॥ खमए अमञ्चपुत्ते चाणक्के चेव थूलभद्दे य । नासिकसुंदरी णंद बहर परिणामिया बुद्धी ॥५०॥ चलणाहण आमंडे मणी य सप्पे य खग्ग-धूभिंदे । परिणामिय-12 ॥१४७॥ For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir COLORCAC दशशास्त्रीय । बुद्धीए एमाई होंतुदाहरणा ॥५१॥ उज्जेणि सिलागामे छोयर रोहऽण्णमाउवसणंमि। पितिकोवेतर गोहे-छायाकहणणमब्भुदओ।।५२॥ | बुद्धिदृष्टाउपदेश पदे पितिसममुज्जेणीगम णिग्गम पम्हुट्ठ णदि णियत्तणया । सइदिटु नयरिलिहणं रायणिसेहो णियघरंमि ॥ ५३ ॥ पुच्छा साहुना निमित्तं मंति परिच्छा सिलाइ मंडवए । आदण्णेसुं पितिभुंज गमण खणणेग थंभो उ ॥५४॥ कहणे चालण संबद्ध भासगो तसि ले औत्पत्ति वथा ॥१४८॥ अण्णहा णेयं । माणुसमेत्तस्मुचियं तयपुच्छण पुच्छ रोहणं ॥ ५५॥ तत्तो मेढग पेसणमणणाहियमहद्भमासेणं । जबसविगसाण । दृष्टान्ताः हाणा संपाडणमो उ एयस्स ।। ५६ ।। जुज्झावयब्बो कुक्कुडोत्ति पडिकक्कडं विणा आणा । आदरिसगपडिबिंबप्पओगसंपाडणा दणवरं ।। ५७ ॥ तिल्लसममाणगहणं तिलाण तत्तो य एस आदेसो । आदरिसगमाणेणं गहणा संपाडणमिमस्स ।। ५८ ॥ वालुगवरशहाणत्ती अदिट्ठपुब्योत्ति देह पडिछंदं । किं एस होइ कत्थइ भणह इमं जाणई देवो ॥ ५९॥ अप्पाउहत्थिअप्पण पउत्तिअणिवेयणं च मरणस्स । आहारादिनिरोहा पउत्तिकहणेण पडिभेदो ॥६०॥ आणेह सगं अगडं उदगं मिट्ठतिमीइ आणाए। आरण्णगोत्ति पेसह कूवियमाकरणमित्तीए ॥६१ ॥ गामावरवणसंडं पुव्वं कुणहत्ति सीयय इमं तु । तत्तोऽवरेण ठवणं तेण निवेसण गामस्स ॥ ६२ ॥ अग्गि सूरं च विणा चाउलखीरेहिं पायसं कुणह । आदेसे संपाडणमुक्कुरुडुम्हाइ एयस्स ॥ ६३ ॥ एमाइ रोहगाओ 5 इमंति नाऊण आणवे राया । आगच्छउ सो सिग्धं परिवजंतो इमे थाणे ॥६४॥ पक्वदगं दिणराई छाउण्हे छत्तगह पहुम्मग्गे।।। जाण चलणे य तह हाणमइगलगो अण्णहाऽऽगच्छे ।। ६५ ॥ अमवस्सासंधीए संझाए चकमज्झभूमीए । एडकगाइ हांगोहलि च | काऊण संपत्तो ।। ६६ ॥ पुढवी दरिसण विउलंजलीइ घेत्तुं नरिंदवंदणया । आसणदाणावसरे चडुपाढो मणहरसरणं ॥ ६७ ॥ ॥१४८॥ गंधब्धमुरवसद्दो मा सुव्बउ तुह नरिंद! भवणम्मि । चकम्मतविलासिणिखलंतपयणेउरवणं ।। ६८॥ सकारंति य सोवण विउद्ध K SON For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय निवकंबि पुच्छ जग्गामि । किं चिंतसि? अइयालिडिवट्टयं, सा कुतो?, जलणा ॥६९।। एवं पुणोऽवि पुच्छा आसोत्थपत्तपुच्छाण किं दीहं । किं तत्तमित्थी, दोण्णिवि पायं तुल्लाणि उ हवंति ॥७०॥ एवं पुणोऽवि पुच्छा खाडहिलाकिण्हसुक्करहाणं । का बहुगा का उपदेश पदे क्या |तुल्ला? पुच्छसरीराणमन्ने उ ।। ७१ ॥ चरिमाइ कइ पिया ते?, के?, पण, के?, रायधणयचंडाला। सोहगविच्छुग जणणी पुच्छा दृष्टान्ताः एवंति कहणा य ।। ७२ ॥ राया रइवीएणं धणओ उउण्हाय पुज्ज फासेणं । चंडालरयग दंसण विच्चुग मरहस्स भक्खणया ।।७३।४ ॥१४॥ कारण पुच्छा रज्जं णाएणं दाणरोसदंडेहिं । कविच्छिवणाय तहा रायादीणं सुतोऽसित्ती ॥ ७४ । साहु परिग्गह संधण कोवो अण्णोणसज्झपेसणया । धम्मोवायण साहण बुग्गह णिव कियगकोवो उ ॥ ७५ ॥धम्मो मे हारविओ काऊणऽन्नत्तणो गओ दिनो । कह होइ मज्झ एसो जह तुहतणओ उ तस्सेव ।। ७६ ॥ जीवणदाणे पेसण तदण्णबुग्गहगहाण तेसि तु । अप्पुत्तग्गह गोग्गहर निमित्ततित्थं तओ धाडी ।। ७७ ॥ वीसासाणण पुच्छा सिट्ठ हियएणमप्पमत्तो उ। तह धम्मिगो सपुण्णो अभओ परचित्तनाणी 8 य ॥ ७८ ।। तुट्ठो राया सव्वेसिमुवरि मंतीण ठाविओ एसो । परिपालियं च विहिणा तं बुद्धिगुणेण एएणं ।। ७९ ॥ पणिए पभूत लोमसि भक्खण जय दारणिप्फिडगमोए । चक्खण खद्धा विकय भुयंग दारे अणिप्फेडो ॥८०॥ रुक्खे फलपडिबंधो वाणरएहिं तु | लेट्ट फलखेवो । अण्णे अभक्खणिज्जा इमे फला पंथवहणाओ ॥८१॥ खुड्डग मंति परिच्छा सेणिय गम सुमिण सेट्टि गंदऽभए । 3. मुद्दा कूब तडग्गह छाणुद जणणीपवेसणया ॥८२।। पडजुण्णादंगोहलि वच्चय ववहार सीसओलिहणा। अण्णे जाया कत्तण तदत्त द। संदसणा णाणं ॥८३।। सरडऽहिगरणे सन्ना वोसिर दरिवाहि दंसणे विगमो । अण्णे तच्चण्णिगचेल्लगाणि पुच्छाइ पुरिसादी ॥८४॥ ॥४॥ कागे संखेवं चिय विण्णायड सहि ऊण पवसादी । अण्णे घरिणि परिच्छा णिहि फुट्टे रायऽणुण्णाओ ।। ८५ ।। उच्चार बुड्ढ तरुणी CANOAANG For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशाखीय तदण्णलग्गत्ति नायमाहारे । पत्नय पुच्छ सक्कलि सण्णावोसिरण णाणं तु ॥८६॥ गयतुलणा मंतिपरिक्खणत्थ नावाइ उदगरहाआ S* उपदेश पदे पाहाणभरण तुलणा एवं संखापरिणाणं ।।८७॥ घयणेऽणामय देवी रायाऽऽह ण एव गंध पारिच्छा । णाते हसणा पुच्छण कह रोसे ।। वथा दृष्टान्ताः बाहुवाहठिती ।। ८८ ॥ गोलग जउमय णके पवेसणं दरगमण दक्खमि । तत्तसलागा खोहो सीलगगाढत्ति कट्टणया ।।८९।। खंभे १५ तलागमज्झ तब्बंधण तीरसंठिएणेव । खोटग दीहा रज्जू भमाडणे बंधणपसिद्धी॥९० ॥ खुडग पारिबाई जो जे कुणइत्ति काइगा पउमं । अण्णे उ कागविट्ठापुच्छाए विण्डमग्गणया ।। ९१ ॥ मग्गंमि मलकंडारअजस्ववाए कुडंगि पसवत्थं । जायण पेसण रमण आगमहासे पडग्गहणं ।। ९२ ॥ इत्थी वंतरि सचित्थि तल्ल तीयादि कहण ववहारे । हत्थाविसए ठावण गह दीहागरिसणे गाणं | ॥ ९३ ॥ पतिदुग तुल्लाण परिच्छ पेसणा वरपियस्स आईओ । इहराऽसंभव भुज्जो समगगिलाणे असंघयणी ।। ९४ ॥ पुत्ते सब18त्तिमाया डिभग पइमरण मज्झ एसऽन्यो। किरियाऽभावे भागा दो प्रत्तो बेह णो माया ॥९५।। महसित्थ करुब्भामिय रय जाली दिड किणण पतिकहणा । गमण अदंसण तहठाण पासणा दहसीलत्ति ।। ९६॥ मुहिय पुरोह णासावलाव गह मंति रण्णपरिपुच्छा। सिट्टे जूए मुद्दागहलाभ परिच्छियप्पिणणा ॥९७।। अंके वंचिय पल्लट्टयमि तह सीवणा विसंबयणं । अण्णे भुयंग छोहिय अंकिय गोचेडिगामुयणं ॥ ९८ ॥ णाणे वंचिय पल्लट्ट णास कालेण नवर विष्णाणं । अन्ने नरिंददेवयउट्ठाणं टंकओ झत्ति ॥ ९९ ॥ भिक्खुमिवि एवं चिय भुयंग तब्बेस णास जायणया । अण्णे वाउडवसही खरिची बरडाह उड्डाहो ॥१००॥ चडग निहाणलाभ | भइदिणऽगार गहणऽपुष्णत्ति । इयरेण लेप्पवाणर णिमंतणा चेडऽपुष्णत्ति ॥१०१सिक्खा य दारपाढे बहुलाहऽवरत्त मार संवाए। ॥१५०॥ गोमयपिंड णदीए ठितित्ति तत्तो अवकमणं ॥१०२ ॥ अत्थे बाल दुमाया बबहारे देवि पुत्तकालोति । अण्णे उ धाउवाइय जोगो | For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दाशासाय.KA. . || सिद्धीइ निक्णाणं ॥ १०३ ॥ सत्थोलग्ग परिच्छा अदाण गम थेव दाण गहणंति । अण्णे उ पक्खवाया चउसत्थ विसेसविण्णाणं नयिक्या उपदश पद ॥१०४ ।। इच्छाइ महं रंडा पइरिण तम्मित्त साहु ववहारे । मंतिपरिच्छा दोभाग तयणु अप्पस्स गाहणया ॥१०५॥ सयसाहस्सी | धुत्तो अपुन्वखोरम्मि लोगडंभणया । तुज्झ पिया मझेवं तदण्णधुत्तेण छलणत्ति ।। १०६ ॥ वेणइयाइ निमित्त सिट्ठिसुया हत्थि-11 दृष्टान्ताः ॥१५१॥ | पय विसेसोत्ति । गुम्विणि दाहिण पुत्ते थेरी तज्जायणाणादी॥१०७॥ एत्थेव अत्थसत्थे कप्पग गंडाइछेदभेदणया। जक्ख | पउत्ती किच्चप्पओय अहवा सरावमि ॥ १०८ ॥ लेहे लिवीविहाणं वट्टाखेड्डणमक्खरालिहण । पिडिमि लिहियवायणमक्खरबिंदाइ सुयणाणं ।। १०९ ॥ गणिए य अंकनासो अण्णे उ सुवष्णजायणं दंडे । आयव्वयचिंता तह अण्णे उ हियायरिय संखा ॥११॥ कूवे सिराइणाणं तुल्ले तत्थवि सिरित्थमाहणणं । अष्णे णिहाणसंपतुवायमो विंति एवं तु ॥ १११ ।। आसे रक्खिय धूया चम्मोवल रुक्ख धीर जायणया । अण्णे कुमारगहणे लक्खणजुयगहणमाइंसु ।। ११२ ।। गद्दभ तरुणो राया तप्पिय बुड्डाणऽदंसर्ण कडगे। पिइभत्त णयण वसणे तिसाइ खर मुयण सिरसलिलं ॥ ११३ ॥ लक्खण राये देवी हरणे सोगमि आलिहे चलणा । उवरिं ण दिट्ठ जोगो अच्छित्ता सासणे चेव ॥ ११४ ॥ गंठी मुरुंडगूढं सुत्तं समदंड मयणवट्ठो य । पालित्त मयण गालण लठ्ठीतर लाबुसिव्वण| या ॥ ११५ ।। अगए विसकर जवमेत वेज्ज सयह हथिवीमंसा । मंति पडिवक्ख अगए दिढे पच्छा पउत्ती उ ।। ११६ ॥ गणिया रहिए एकं सुकोस सड्डित्ति थूलभद्दगुणे । रहिएण अंबलुंबी सिद्धत्थगणट्ट दुक्करया ॥ ११७ ॥ सीता साडी कज्जं दीहं तण है॥१५१॥ गच्छ कुंच पइवाणी । लेहायरियपणामण अवहमि तहा सुसिस्साणं ।। ११८ ॥ णियोदे पोसिय जार खुरकए रत्ति तिसिय दग| हमरणे । उज्झण णाविय पुच्छा जाए तयगोणसुवलद्धो ।। १११ ।। गोणे णेत्तुद्धरणं घोडग जीहाइ पडणमो उवरिं । मंदमईववहारे र AAAAAAAX For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वनयिक्या | दि दृष्टान्ताः दशशास्त्रीय रिउत्ति मंतिस्स अणुकंपा ॥ १२० । कम्मयबुद्धीएविहु हेरण्णियमातिया तदन्भासा । पगरिसमुति तीसे तत्तो यमि वहुसिद्धी उपदेश पदेहा॥१२१।। हेरण्णिओ हिरणं अब्भासाओ णिसिपि जाणेइ । एमेव करिसगोबिहु बीयक्खेवाति परिसुद्धं ॥ १२२ । एमेव कोलिगोऽ | विहु पुंजमाणाइ अविगलं मुणइ । डोए परिवेसंतो तुल्लं अब्भासओ देइ ।। १२३ ॥ मोत्तियउक्खेवेणं अब्भासा कोलवालपोतणया। ॥१५२॥ घडसगडारूढस्सवि एत्तोच्चिय कूवगे धारा ॥१२४॥ पवए तरंडचागा सम्मं तरणं नहम्मि वा एयं । तुण्णाए पुण तुण्णणमणायसधि | दुर्य चेव ।। १२५ ॥ वडा रहाइदारुगपमाणणाणमहवेह दक्खतं । एमेवऽपूइयम्मिवि मासाइदले मुणेयव्यं ।। १२६ ॥ घडकारपुढ| विमाणं तह सुक्कुत्तारणं च सयराहं । चित्तकरे एवं चिय वण्णातो विद्धलिहणं च ॥१२७॥ परिणामिया य अभए लोहग्गा सिप:णलागिरिवरेसु । पज्जोयाजिय वज्जण जायणया मोइओ अप्पा ॥१२८|| सेद्री पवास भज्जा धिज्जाइयसंग कुक्कुडग साहू । सीस। दारग चडी हर राया समण माजोणी ॥१२९।। कुमरे पुंडरि भाइत्थिराग पइमरणणास पब्बज्जा । खुडग लक्षण दिक्खा भग गम गीय चउबाही ॥ १३० ॥ देवी य पुष्फचूला जुवलग रागम्मि नरय सुर सुमिणे । पुच्छा अण्णिय बोही केवल भत्तम्मि सिज्झणया ॥ १३१ ॥ उदिओदय सिरिकता परिवाइय अण्णराय उवरोहे । जणमणुकंपा देवे साहरणं णियगनयरीए ॥ १३२ ॥ साहू य गंदिसेणे ओहाणाभिमुह रायगिह वीरे । तस्संतेउरपासण संवेगा निच्चलं चरणं ।। १३३ ॥धणयत्ते सुंसुमित्थी चिलाइरागम्मि धाडि गहणं तु । णयणे लग्गण मारण वसणे तब्भक्खणा चरणं ।। १३४ ॥ सावय वयंसिरागे संका णेवत्थ चिण्ह संवेगे । परिसुद्धे तकहणं वियडणमईसणपरिण्णा ॥ १३५ ॥ तह यामच्चे राया देवी वसणम्मि सग्गपडियरणा। धुत्ते दाणं पेसण चलणे मुहरम्मि य विभासा ॥ १३६ ।। खमए मंडकि थंभे विराहियाहि णिसि रायसुय मरणे । सीसे रूवगरेहा पुच्छे सुय दिक्ख चउखमगा ॥१३७।। ASSICAL ॥१५२॥ For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय तया अमच्चपुत्ते कुमार मित्तिसिव अलीमत्ति । खड्डेतरे परिच्छा गिलाणदाणे मणा पउणो ॥१३८॥ चाणके वणगमणं मोरियल बुद्धिकार|चंद तह थेरि रोहणया । उवयारत्थग्गहणं धणसंवरणं च विनेयं ।। १३९ ।। एमेव थूलभद्दे उक्कडरागो सुकोस पच्छाओ । वक्खेवतो उपदेश पदे । णानि बटु ण भोगा चरणंपि य उभयलोगहियं ।। १४० ॥ णासेक्कसुंदरी णंद भाइरिसि भाण भक्ख निग्गमणं । मंदर वाणरि विज्जा अच्छर | परीक्षा च धम्ममि पडिवत्ती ॥ १४१ ॥ बहरंमि संघमाणण वासे उवओग सेसपुरियाए । कुसुमपुरम्मि विउव्वण रक्खियसामिमि पेसणयं ॥१५३॥ ॥ १४२ ॥ परिणामिया य महिला णिद्धस धिज्जाइ लोगजाणम्मि । उज्जेणि देवदत्ता जोगुवयारेऽथपडियत्ती ।। १४३ ।। चलणा| हणेत्ति तरुणेतरेसु पुच्छा हु तरुण तच्छेदो । इयरे ऊसरिऊणं आलोच्चिय बिंति पूजंति ॥१४४।। आमंडेत्ति परिच्छा काले कित्तिमगआमलेणंति । परिणयजोगालोयण लक्खणविरहेण तण्णाणं ॥ १४५ ॥ मणिपनगवच्छाओ कूवे जलवन्नडिंभथेरकहा। उत्तारण पयईए णाणं गहणं च णीतीए ॥ १४६ ॥ सप्पत्ति चंडकोसिग वीरालोग विसदंस आसरणं । दाढाविस ओभोगे बोही आराहणा सम्मं ॥ १४७ ॥ खग्गे सावगपुत्ते पमाय मय खग्ग साहुपासणया । उग्गहभेयालोयण संवोही कालकरणं च ॥१४८॥ थूभिंदे ए कं चिय कूला पडिणीय खुड्ड गुरुसावे । तावस मागहि मोदग गिलाण रागम्मि वेसाली ॥१४९।। आईसद्दा सुमती अंधलनिवमंतिद्र मग्गणा सवणं । आवणं वेरस्से कन्नामाणादि वणियसुते ॥१५०।। मंडलसिद्धी रन्नो समुद्ददेवस्स केणती सिटुं । सुमती णाम दिय| वरो पन्नोतिसएण अंधो य ॥१५१॥ तस्साणयणं चारुयपक्खम्मि चडावणं परिक्खत्थं । पक्कापंथे बोरी नरिंदचलणम्मि पडिसेहो ॥१५२ ॥ न सुहा एसा विनासियम्मि तह चेव कह तए णायं । पंथन्नागहणाओ किमेत्थ जाणंति निवतोसो ॥१५३॥ धूलिकि ॥१५३॥ लरियामाणं गुलपलघयकरिससंनिरूवणया । देवपसादो बहुमन्नणत्ति थिरपण्णणाणत्थं ॥१५४॥ टाराधिवास पेसण सन्बुत्तम तप्परि CिASSASURESHAS 67 For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18बुकिार AA-% IN दशशास्त्रीय | क्ख खररोमो । णो उत्तिमोत्ति णाणे पसायमाणादिवुद्धित्ति ॥ १५५ ॥ कन्नारयणे चवं वयणादारन्म सोणिछिवणंति । धीरत्तणउपदेश पदे ओ वेसा सुयणाणपसायबुड्डित्ति ॥ १५६ ।। कणसेइयं पलं तह घयस्स चत्तारि चेव य गुलस्स । वणियसुयपरिमाणा ण ताव कोवोलणानि बटु जणणिपुच्छा ।। १५७ ॥ वेसमणे अहिलासो उउण्हायाए उ सेट्टिपासणया । संभोगोच्चिय अनेण ताव एत्तो उ संसिट्ठो ॥१५८॥ | परीक्षा च ॥१५४॥ | पन्नवणमप्पगासण ण एत्थ दोसोत्ति कम्मभावाओ । कुसलोत्ति तेण ठवितो मंती सव्वेसिमुवरि तु ॥ १५९ ॥ दूरनिहितंपि निहिं | तणवाल्लिसमोत्थयाए भूमीए । णयणेहि अपेच्छंता कुसला बुद्धीऍ पेच्छंति ।। १६० ॥ कयमेत्थ पसंगणं एमादि सुणंतगाण पाएणं । भव्वाण णिउणबुद्धी जायति सम्वत्थ फलसारा ॥ १६१ ॥ भत्तीऍ बुद्धिमंताण तहय बहुमाणओ य एएसिं | अपओसपसंसाओ | एयाणवि कारणं जाण ॥ १२ ॥ कल्लाणमित्तजोगो एयाणमिमस्स कम्मपरिणामो । अणहो तहभव्बत्तं तस्सवि तह | पुरिसकारजुयं ।। १६३ ।। कालो सहाव नियई पुवकयं पुरिसकारणगंता । मिच्छत्तं ते चेव उ समासओ हॉति सम्मत्तं ॥ १६४ ॥ सव्वम्मि चेव कज्जे एस कलावो बुहेहिं निद्दिट्ठो । जणगत्तेण तओ खलु परिभावयव्वओ सम्मं ॥ १६५ ॥ एत्तोच्चिय जाणिज्जति | विसओ खलु दिव्यपुरिसगाराणं । एयं च उवरि वोच्छं समासतो तंतनीतीए ॥१६६ ॥ बुद्धिजुओ आलोयइ धम्मवाणं उवाहिपरि सुद्धं । जोमत्तमप्पणो च्चिय अणुबंधं चेव जत्तेण ।। १६७ ।। बुज्झति य जहाविसयं सम्मं सव्वति एत्थुदाहरणं । वेदज्झयणपरिच्छा |बड्डुगदुर्ग छागघातम्मि ॥ १६८ ।। वेयरहस्सपरिच्छा जोगच्छागत्ति तत्थ हंतव्यो । जत्थ ण पासति कोई गुरुआणा एत्थ जतितव्वं ॥ १६९ ॥ एगेणमप्पसारियदेसे वावादितो पयत्तण । अत्रेण उ पडिसेहो गुरुवयणत्थोत्ति नेव हतो॥१७० ॥ आढवति सम्ममेसो तहा जहा लाघवं न पावेति । पावेति य गुरुगत्तं रोहिणिवणिएण दिद्रुतो ॥१७१।। रायगिहे धणसेट्ठी धणवालाई सुता उ चत्तारि । %A5 । ॥१५४॥ For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 44 दशशास्त्रीय उज्झिय भोगवती रक्खिया य तह रोहिणी बहुगा ॥ १७२ ॥ वयपरिणाम चिंता गिह समप्पेमि तासि पारिच्छा । भोयण सयण- रोहिणीउपदश पदाणिमंतण भुत्ते तब्बंध पच्चक्खं ॥१७३।। पत्तेयं अप्पिणणं पालिज्जह मग्गिया य देज्जाह । इय भणिउमायरणं पंचण्डं सालिकण-४ दृष्टान्तः | याणं ॥ १७४ । पढमाए उज्झिया ते बीयाए छोल्लियत्ति ततियाए । बद्धकरंडीरक्षण चरिमाए रोहिया विहिणा ॥१७५।। कालेणं आज्ञा॥१५५|| बहुएणं भोयणपुवं तहेव जायणया । पढमाऽसरण विलक्खा तह बितिया ततिय अप्पिणणं ॥ १७६ ।। चरिगाए कोंचिगाओ सारताच खेत्ताओ तुम्ह वयणपालणया । सा एवं चिय इहरा सत्तिविणासा ण सम्मति ।। १७७॥ तब्बंधूणभिहाणं तुम्भे कल्लाणसाहगा मेति । किं जुत्तमेत्थ मज्झं ते आहु तुम मुणेसित्ति ॥ १७८ ॥ तत्तो य कज्जवुज्झणकोट्टणभंडारगिहसमप्पणया । जाहासंखमिमीएं नियकज्ज साहुवाओ य ॥ १७९ ।। अणुबंधं च निरुबइ पगिट्ठफलसाहगं इमो चेव । एत्थंपि वणियपुच्छियजोइसियदुगं उदाहरण |॥ १८ ॥ करकट्ट लाभपुच्छा जोतिसियदुगम्मि दुण्ह वणियाणं । विहिपडिसहा लाहो वत्तो कोवो उ इयरस्स ॥१८१॥ मा रूस दाणत्थि एत्थं आगमणं सत्थघायनासोति । तुट्ट निवेयणमम्हे सब्बत्थऽणबंध सारति ॥ १८२ ॥ धम्मट्टाणमहिंसा सारो एसोत्ति || उज्जमति एत्तो। सवपरिच्चाएणं एगो इह लोगनीतीए ॥ १८३ ।। अन्नो उ का अहिंसा ? आगमओ, सो गुरू उ विहिणा उ । ४ एयम्मि कुणीत जत्तं लोउत्तरणीतितो मातमं ।। १८४ ॥ जे आणाए चरणं आहाकम्मादिणायतो सिद्धं । ता एयम्मि | पयत्तो विन्नेओ मोक्खहेउत्ति ॥ १८५ ॥ आणाबाहाए जओ सुद्धपि य कम्ममादि निद्दिढ । तदबाहाए उ फुड तंपि य सुद्धति ।।१५५।। एसाणा ॥ १८६ ॥ तनिरवेक्खो नियमा परिणामोऽविहु असुद्धओ चेव । तित्थगरेऽवहुमाणाऽसग्गहरूवो मुणेयन्वो ॥१८७।। गलमच्छभवविमोयगविसन्नभोईण जारिसो एसो । मोहा सुहोऽवि असुहो तप्फलओ एवमेसोऽवि ॥ १८८॥ जो मंदरागदोसो परि R For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie दशशास्त्रीय गामो सुद्धओ तओ होति । मोहम्मि य पबलम्मि य ण मंदया हदि एएसि ॥ १८९ ॥ संमोहसत्थयाए जहाऽहिओ हंत रोहिणीउपदेश पदे हा दुक्खपीरणामो। आणावझसमाओ एयारिसओऽवि विबेओ ॥ १९० ॥ एत्तो च्चिय अवणीया किरियामेत्तेग जे किलेसा उ ।|| दृष्टान्तः आज्ञा| मंडुक्कचुनकप्पा अबेहिवि वनिया णवरं ॥ १०१ ॥ सम्मकिरियाए जे पुण ते अपुणब्भावजोगओ चेव । यऽग्गिदड्ढतच्चुन्नतुल्लमो सारताच ॥१५६॥ | सुवयणविणिओगा ॥ १९२ ॥ मासतुसादीयाण उ मग्गणुसारित्तओ सुहो चेव । परिणामो विबेओ मुहोहसण्णाणजोगाओ ।।१९३॥ रुद्दो खलु संसारो सुद्धो धम्मो तु ओसहमिमस्स । गुरुकुलसंवासे सो निच्छयओ णायमत्तेणं ॥ १०४ ॥ कुणति एवमेवं तस्साण सबहा अलंघतो । एगागिभोयणम्मिवि तदखंडणमो इहं णायं ।। १०५ जह ।। चेव चंदउत्तस्स विब्भमो सव्वहा ण चाणक्के । सव्वत्थ | तहेवऽस्सवि एनो अहिगो सुहगुरुम्मि ॥१९६॥ अनत्थवि विबेओ नाभोगो चेव नवरमेयस्स । न विवज्जउत्ति नियमा मिच्छत्ताइणऽभावातो ॥ १९७ ।। एसो य एत्थ गरुओणाणज्झवसायसंसया एवं । जम्हा असप्पवित्ती एत्तो सव्वत्थऽणत्थफला ॥ १९८॥ मग्गणुसारी सद्धो पत्रवणिज्जो कियाबरो चेव । गणरागी सकारंभसंगओ जो तमाह मुणिं ॥१०९ ।। एवं च अस्थि लक्खणमिमस्स | निस्सेसमेव धनस्स । तह गुरुआणासंपाडणं च गमग इह लिंगं ॥ २०० ॥ सत्तीए जतितब्वं उचियपविताएँ अमहा दोसो । महगिरिअज्जमहत्थी दिटुंतो कालमासज्ज ॥२०१॥ पाडलिपुत्ति महागिरि अज्जमहत्थी य सेविसुभृती । वइदिस उज्जेणीए जिय पडिमा एलगच्छं च ।। २०२॥ दो थूलभदसीसा जहोइया आइमो य इयरत्ति । ठबिउं गच्छेऽतीओ कप्पोत्ति तमासिओ किरियं ॥१५६॥ G॥ २०३ ॥ एसणसुद्धातिजुओ वसुभृतिगिहम्मि कारणगएण । दिवो गोयरवत्ती इयरेणब्भुडिओ विहिणा ॥ २०४ ।। V सहिस्स विम्हओ खलु तग्गुणकहणाएँ तह य बहुमाणो । ठितिसवणुझियधम्मं पायमणाभोगसद्धाए । २०५ ।। उवओगपरित्राणं || ICICCARA For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir MORE महागिरिन वृत्तं मूकवृत्त न दशशास्त्रीया कहणाऽवक्कमण वइदिसं तत्तो । संभासिऊण गमणं कालहा एलगच्छति ॥ २०६॥ मिच्छत्त सड्डिहासो पच्चक्खाणम्मि तह सयग्गउपदेश पोहणं । वारण पवयणदेवयसज्झिलगोगाहिमाभोगे ॥ २०७॥ तलघाय अच्छिपाडण सड्ढा उस्सग्ग देव उड्डाहो । एलच्छि बोहि नगरं तओ य त एलगच्छति ॥ २०८॥ तत्थ य दसन्नकूडो गयग्गपयगो दसनरायम्मि । वीरेइड्रो बोहण एरावयपयसुजोगण ॥ २०॥ देता पुक्खरिणीओ पउमा पत्ता य अह पत्तये । एक्के करम्मपेच्छण नरेंदसंवेग पधज्जा ।। २१० ॥ एयम्मि पुत्रखेत्ते तेणं कालो को ॥१५७|| सुविहिएणं । तत्तो समाहिलाभो अन्ने उ पुणोऽवि तल्लामा ॥२११।। जस्स जहिं गुणलाभो खेत्ते कम्मोदयाइहेऊओ। तस्स तयं किल लतित्थं तहासहावत्तओ कई ॥ २१२॥ आराहिऊण तहियं सो कालगतो तहिं महासत्तो । वेमाणिएमु मतिमं उववनो इड्विजुत्तेसु HI॥ २१३ । इयरो उज्जेणीए जियवंदण वसहिजायणा साह । भद्दागहम्मी जाणसालस्थाणं णलिणिगुम्मे ॥ २१४ ।। सवणमवंती सुकुमाल विम्हय सरणं विराग गुरुकणा । पयामि उम्सुगोऽहं करेमि तह अणसणं सिग्धं ॥ २१५ ।। जणणी पुच्छमणिच्छे मा हु लसयंगहियलिंगमो दाणं । कंथारिंगिणि सिवपेल्ल जाम जाणूरुपोट्ट मओ ॥२१६।। अहियासिऊण तग्गयचित्तो उववनगो तहिं सो उ। गंधोदगादि गुरुसाहणं च भद्दाएँ वहुयाणं ।। २१७ ।। गोसम्मि तहिं गमणं मयकिरिया देसणा गुरूणं च । पब्बयणं णावना तीए द्र पुत्तोत्ति आयतणं ॥ २१८ । एमादुचियकमेणं अणेगसत्ताण चरणमाइीण । काऊण तओऽवि गतो विहिणा कालेण सुरलोयं ॥ २१९ ॥ दुण्हवि जह जोगत्तं तहा पवित्ती अणेगहा एसा । भणिया णिउणमतीए वियारियब्बा य कुसलेणं ।। २२० ।। कप्पेऽतीते तकिरियजोगया फासिया महागिरिणा । तह गच्छपालणणं सुहत्थिणा चेव जतितव्यं ।। २२१ ।। एवं उचियपवित्ती आणा आराहणा सुपरिसुद्धा । थेवावि होति बीयं पडिपुनाए ततीए उ ।।२२२।। संथारपरावतं अभिग्गहं चेव चित्तरूवं तु । एत्तो उ कुसलबुद्धी विहार RAR BREAK ॥१५७॥ For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय पडिमाइसु करेंति ॥२२३।। अकए बीजक्खेवे जहा सुवासेऽवि न भवती ससं। तह धम्मबीयविरहे ण सुस्समाएवि तस्सस्सं ॥२२४॥ महागिरिउपदेश पदे आणापरतंतेहिं ता बीजाधाणमेत्थ कायव्यं । धम्मम्मि जहासत्ती परमसुहं इच्छमाणेहिं ।। २२५ ।। सुबइ य तेणणायं एत्थं बोहाएँ ला वृत्तं पत्तिविग्धकरं । तं चेव उ कुसलेहिं भावयव्वं पयत्तेणं ॥ २२६ ॥ कोसंबि सोडिसुय गाढपीती पाएण तुल्लफलसिद्धी । वीरोसरणे मकवृत्तं च ॥१५८॥ सवणं बोहिअभावेसु य विसेसो ॥ २२७ ॥ हरिसो मज्झत्थत्तं परोप्परं चित्तजाणणा भेओ । पुच्छा अबोहि नेहे बहुजोगोऽबीजगो कह णु? ॥ २२८ ॥ दंगियपुत्ता गोहरण पच्छखेड णगसेलगुहसाहू । धम्मपसंसपओसा बीयाचीया दुवेण्डंपि ।। २२९ ।। एवं कम्मोवसमा सद्धम्मगयं उवाहिपरिसुद्धं । थेवं पणिहाणादिवि बीजं तस्सेव अणहंति ।। २३० ॥ एवं च एत्थ णेयं जहाकहिंचि जायम्मि एयम्मि । इहलोगादणवेक्खं लोगुत्तरभावरुइसारं ॥ २३१ ॥ पायमणक्खेयमिणं अणुहवगम्मं तु सुद्धभावाणं । भवरवयकति गरुयं |बुहेहि सयमेव विनेयं ।। २३२।। जं दवलिंगकिरियाऽणता तीया भवम्मि सगलावि । सव्वेसिं पाएणं ण य तत्थऽवि जाययति 1॥२३३ ।। ता एयम्मि पयत्तो ओहेणं वीयरायवयणम्मि । बहुमाणो काययो धीरेहिं कयं पसंगेण ॥ २३४ ॥ वेयावच्चं न पडति अणुबंधल्लंति सहरिसं एको । एत्तो एत्थ पयट्टति धणियं णियसत्तिनिरवेक्ख ॥ २३५ ॥ अन्नो उ किं इमं भन्नतित्ति वयण.ओ कह व कायव्वं । सत्तीऍ तह पयट्टति जह साहति बहुगमेयं तु ।। २३६ ॥ पुरिसं तस्मुक्यारं अवयारं वऽप्पणो य णाऊणं । कुज्जा वेयावडिय आणं काउं निरासंसो ॥ २३७ ॥ आणाबहुमाणाओ सुद्धाओ इह फलं विसिट्ठति । ण तु किरियामेत्ताओ पुन्वायरिया |तहा चाहु ॥ २३८॥ भावाणाबहुमाणाओ सत्तिओ सुकिरियापवित्तावि । नियमेणं चिय इहरा ण तको सुद्धोत्ति इट्टा सा ।।२३।।3।।१५८।। भएईए उ विसिह सुवनघडतुल्लमिह फलं नवरं । अणुबंधजुयं संपुनहेउओ सम्ममवसेयं ॥ २४० ॥ किरियामेत्तं तु इहं जायति EXAMMELAM For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशासीयाहालद्धादवेक्खयाएऽवि । गुरुलाघवादिसनाणवज्जियं पायमियरेसिं ॥ २४१ ॥ एतो उ निरणुबंध मिम्मयघडसरिसमो फलं यलद्रव्याज्ञाया कुलडादियदाणाइसु जहा तहा हंत एयंपि ॥२४२ ॥ तम्हा भावो सुद्धो सबपयत्तेण हंदि परलोए । कायब्बो बुद्धिमया आणोवग-1 स्वरूप लाजोगतो णिच्चं ॥ २४३ ।। जो आणं बहु भन्नति सो तित्थयरं गुरुंच धम्म च । साहेति य हियमत्थं एत्थं भीमेण दिद्वन्तो ॥२४४॥ &भावाज्ञायां तगराए रतिसारो राया पुत्तो य तस्स भीमोत्ति । साहुसगासं णीओ धम्मं सोऊण पडिबुद्धो ॥ २४५ ॥ परमुवयारी ताओ इमस्स | कंटकज्वर ॥१५९॥ मोहसमा सति अप्पियं ण कायव्यं । घेत्तूणऽभिग्गहे तो सावगधम्म सुहं चरति ॥२४६॥ वणिकन राय रागे वरणं णो पुत्त रज्ज न करेमि । विना तुह पुत्त न परिणेमी कालेणं बंभयारित्ति ॥ २४७॥ दिनापुत्तो राया भीमो गिहबंभ सक्कथुति आणा । देवाऽऽयल्लग गणिया वावज्जति निकिवाऽधम्मो ॥ २४८ ॥ आणाभावणजोगा रागाभावो इमस्स धीरस्स । वयभंसपाववावत्तिरक्खणे सुकरुणाधम्मो ॥२४९॥ आयारामो जाओ आणं सरिऊण वीयरागाणं । इय धम्मो सेसाणवि विसए एयं करेंताणं ॥ २५०॥ अने गयपिंडो दब्महत्थ-13 गाणातो दम्भदाणेणं । भीमं पियामहं खलु पाएणेवं चिय कहेंति ।। २५१।। एवं च पारतंतं आणाए णो अभिन्नगठीणं । परिसोतो5-18 | भिमुहाणवि पायमणाभोगभावाओ ॥ २५२ ॥ गठिगसत्ताऽपुणबंधगाइयाणपि दब्बतो आणा । नवरमिह दव्वसहो भइयब्यो समयणीतीए ॥ २५३॥ एगो अप्पाहने केवलए चेव बट्टती एन्थ । अंगारमद्दगो जह दबायरिओ सयाऽभव्बो ॥ २५४ ॥ अन्नो पुण जोगत्ते चित्ते णयभेदओ मुणेयब्बो । वेमाणिओववाउत्ति दव्वदेवो जहा साहू ॥ २५५ ॥ तत्थाभब्वादीणं गंठिगसत्ताणमप्पहाणत्ति । इयरेसि जोग्गताए भावाणाकारणत्तेण ॥ २५६ ॥ लिंगाण तीऍ भावो न तदत्थालोयणं ण गुणरागो। णो विम्हओ ॥१५९॥ दण भवभयमिय वच्चासो य दोण्हंपि ॥ २५७॥ अंगारमद्दगो च्चिय आहरणं तत्थ पढमपक्वम्मि । गोविंदवायगो पुण बीए खलु CARRORSCOCCA% For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्याज्ञाया भावाज्ञायां कंटकज्वर मोहसमा विघ्नाः दशशास्त्रीय होति णायव्वो ॥ २५८ ॥ भावाणा पुण एसा सम्मबिडिस्स होति नियमेण । पसमादिहेउभावा णिव्वाणपसाहणी चेव ॥२५९॥ उपदेश पदे द एयाए आलोचइ हियाहियाइमतिनिउणनीतीए । किच्चे य संपयट्टति पायं कजं च साहेति ॥ २६॥ पडिबंधोऽविय एत्थं सोहणपंथम्मि संपयट्टस्स । कंटगजरमोहसमो विन्नेओ धीरपुरिसेहिं ॥ २६१ ॥ जह पावणिज्जगुणणाणतो इमो अवगमम्मि एतेसिं। ॥१६॥ तत्थेव संपयट्टति तह एसो सिद्धिकज्जम्मि ॥२६२॥ मेहकुमारो१ एत्थं डहणसुरो२ चेव अरिहदत्तो ३ य । आहरणा जहसंखं विनेया समयनीतीए ॥ २६३ ॥ रायगिह सेणित धारणी य गय सुमिण दोहलो मेहे । अभये देवाराहण संपत्ती पुत्तजम्मो य ॥२६४ ॥ मेहकुमारो नाम सावग संवेगओ य पबज्जा । संकुड वसही सेज्जा राओ पादादिघट्टणया ॥२६५॥ कम्मोदय संकेसो गिहि गोरव ताव जामि तहिं चिंता । गोसे वीराभासण सञ्चति न जुत्तमेयं ते ॥२६६॥ जमिओ उ तइयजम्मे तमासि हत्थी सुमेरुपहनामा। वुड्डो वणदवदड्डो सरतित्थे अप्पसलिलम्मि ॥२६७ ॥ गयभित्रो वियणाए सत्तदिण मओ पुणो गजो जाओ। मेरुप्पम जूहबई वणदव जातीसर विभासा ॥ २६८ ॥ वासे डिलकरणं कालेण वणदवे तहिं ठाणं | अन्नाणवि जीवाणं संवट्टे पायकंड्यणं ।। २६९ ॥ तद्देसे ससठाणे अणुकंपाए य पायसंवरणं । तह भवपरित्तकरणं मणुयाउय ततियदिणपडणं ॥२७०॥ एत्थं जम्मो धम्मो तम्मि मयक| लेवरे सिगालाई । तह सहणाओ य गुणो एसोत्ति गओ य संवेग ॥ २७१ ॥ मिच्छादुक्कडसुद्धं चरणं काउं तहेव पन्धज्ज | विज| ओववाउ जम्मंतरम्मि तह सिज्झणा चेव ।। २७२॥ कंटगखलणातुल्लो इमस्स एसोत्ति थेवपडिबंधो । तत्तो य आभवपि हुगमणं चिय सिद्धिमग्गेणं ।। २७३ ॥ १॥ पाडलिपुत्त हुयासण जलणसिहा चेव जलण डहणा य । सोहम्म पलियपणगं आमलकप्पा यणट्टत्थे ॥ २७४ ॥ संघाडगसज्झिलगा कुटुंबगं धम्मघोसगुरुपासे । पधइयं कुणति तवं पब्वजं चेव जहसतिं ।। २७५ ।। जलणडहणाण RECASEARS ॥१६॥ For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रायणवरं रिजुभावो तत्थ पढमगो सम्म । बिदिओ पुण मायावी किरियाजुत्तो उ तह चेव ॥ २७६ ॥ किरियाए अइसंधति इतरं मायाएँ है। मोहपति उपदेश पदे तग्गयाए उ । एवं पायं कालो संलहणमा उ सोहम्मे ।। २७७ ।। अम्भितरपरिसाए पणपलियाऊ महिड्डिया जाया । आमलकप्पोस अर्हद्दत्तः रणे गट्टविहि विवजओ तेसिं ॥२७८।। एवं विउचइस्सं एवं चिय तत्थ होति एक्कस्स । इयरस्स उ विवरीय जाणगपुच्छा गणहरस्स ॥१६॥ ॥२७९ ॥ भगवंत कहण मायादोसो किरियागतो उ एसोत्ति । अणुगामिओ य पायं एवं चिय कइवि भवगहणे ॥ २८० ॥ विव |रीयविगलकिरियानिबंधणं जं इमस्स कम्मति । एवंविहकिरियाओ उ हंदि एतं तदुप्पनं ॥ २८१ ।। ता कइयवि भवगहणे सबल एयस्स धम्मणुट्ठाणं । थेवोऽविऽसदब्भासो दुक्खेणमवेति कालेण ।। २८२ ॥ जरखलणाए सरिसं पडिबंधमिमस्स आहु समयण्णू ।। | तत्तो भावाराहणसंजोगा अविगलं गमण ।। २८३ ।। २एलउ जियसत्तू पुत्तो अवराजिओ य जुवराया। विदिओ य समरकेऊ कुमारभुत्तीऍ उजेणी ॥ २८४ ॥ पञ्चंतविग्गहजए आगच्छंतस्स नवरि जुवरन्नो । राहायरियसमीचे धम्मभिवत्तीऍ णिक्खमणं ॥२८५॥ तगराविहार उजेणीओ तत्थजराहसाहूणं । आगमणं पडिवत्ती विहारपुच्छा उचियकाले ॥ २८६ ॥ रायपुरोहियपुत्ता अभद्दगा तकओ उ उवसग्गो। सेसो उ निरुवसग्गो तत्थ विहारो सति जइणं ॥२८७॥ अवराजियस्स चिंता पमत्तया भाउणो महादोसा । तह | चेव कुमाराणं अणुकंपा अत्थि मे सत्ती ॥ २८८॥ गुरुपुच्छ गमण संपत्ति पवेसो वंदणादि उचियठिई । सति कालुग्गाहणमच्छणं खु अहमत्तलद्धी उ ॥२८९॥ ठवणकुलादिनिदसण पडिणीयगिहम्मि धम्मलाभोत्ति । अंतेउरियासत्रणमवहेरि कुमारगागमणं ॥२९०॥ पढमं दुवारघट्टण वंदण णच्चाहि तत्थ सो आह । कह? गीयवाइएणं भणंति अम्हे इमं कुणिमो ॥ २९१ ॥ आरंभविसमतालं अकोवकोवेण एव णच्चामि । कड्डण जयणनिउर्दू, चित्तालिहियव्य सादुगमो ॥२९२॥ पीडंतराय न अडण पइरिके चिंत सोहणनिमित्तं । ACHCCC For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie दशशास्त्रीय होहिति चरणति धितीजोगो सज्झायकरणं तु ॥२९३ ॥ राय कुमारावेयण गुरुमूलागमण खमसु अवराहं । आह गुरू नवि जाणे माहात जाला बन्धे उपदेश पदे साहूहिँ थभिया कुमरा ॥ २९४ ॥ पुच्छा ण केणइ ततो रायाऽऽह न एयमन्त्रहा भंते !। आगंतुगम्मि संका साहण रायागमण जाणं अहेद्दत्तः ॥ २९५॥ विलितो रायणुसासण मिच्छादुक्कड कुमार विनवणं । जोएह ते गुणेहिं इच्छामी पुच्छह ततेत्ति ॥२९६॥ न चएति तत्थ | ॥१६॥कागमणं मुहजोयण कहण पुच्छ संवेगो। तह बीजब्भासाओ संजोयण चरिय निक्खमणं ॥ २९७॥ रायकमारे चिन्ता, उवगारी सुट्टा अम्ह भगवति । इयरस्सवि एसच्चिय, मणागमविहिम्मि उ पओसो ॥ २९८॥ अपडिक्कमणं कालो देवुववाओ उदारमो भोगा ।। चवण निमित्ते पुच्छा बोही ते दुल्लहा भयवं ॥२९९॥ किन्तु निमित्तं थेवं न महाविसयं कता णु लाभत्ति । एत्थाणंतरजम्मे, कत्तो। | नियभातिजीवाओ ॥ ३०॥ कहि सो! कोसंबीए किनामो? मयगो उ वितिएणं । पढमेणऽसोगदत्तो किमेयमिति पुब्बभवकहणा | ला॥ ३०१॥ एत्थ उ तावससेट्ठी, आरंभजुओ मओ गिहे कोलो। सरणं सूवारीए, णिहओ मज्जारिमन्नुहतो ॥ ३०२॥ तत्थोरगा सूयारी भय सरणं लोगघातितो जातो । नियपुत्तसुओ सरणं मूयब्धय कुमर चउणाणी ॥ ३०३॥ खेत्ताभोगे गाणं, समओ एयस्स बोहिलाभम्मि । आलोचिऊण साहू संघाडगपेसणं पाढो ॥३०४॥ तावस! किमिणा मयब्बएण पडिवज्ज जाणिउं धम्मं । मरिऊण | सूयरोरग जातो पुत्तस्स पुत्तोत्ति ॥ ३०५॥ विम्हय बंदण पुच्छा गुरु जाणति कत्थ सो महाभागो । उज्जाणे तग्गमणं बंदण& कहणा य संबोही ॥ ३०६॥ तहवासणातो णामं णावगयं तं ततो उ मूओत्ति । एवं वितियं णामं एवं एयस्स विनेयं ॥ ३०७॥ ॥१६२॥ एत्तोऽवि कत्थ बोही ? रम्मे वेयवसिद्धकूडम्मि । कह पुण? जाईसरणा, तं कत्तो ? कुंडलजुयाओ ॥३०८॥ कोसंबागम मुयग साहण संगार गमण वेयड्डे । कूडे कुंडलठावण सति फल चिंतारयणदाणं ॥ ३०९॥ गमणं चवणुप्पाओ, अंबेसु अकालडोहला किसया । BASAARAS For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय ॥१६३॥ साम्यं संका सव्वा उ जिणे चिंतारयणाओ तस्सिद्धी ॥ ३१ ॥ निष्फत्ति पसब नवकार पीहगो अरहदत्तनामति । चेतिय साहू णयणं, मोहस्खअभत्ति रडणम्मि चउकन्ना ।। ३११ ।। साहणमप्पत्तियणं मूयग पवन देवलोगोत्ति । ओहिपउंजण जाणण गाद मिच्छति संकेसो लना ज्ञान |॥ ३१२ ।। वाहिविहाणं वेज्जा पच्चक्खाणंति वेयणा अग्गी । देवस्स सबर घोसण दिट्ठो रुद्दो पयत्तेणं ॥ ३१३ ॥ मझपि एस | गर्भ मत्री वाही ता एवमडामि जावणाहेउं । एसोवि हु जति एवं ता फेडेमित्ति पडिवत्ती ।। ३१४ ॥ चच्चरमादिट्ठाणं वाहीनिग्गमणध्वेयणा कर्मोद्यम पउणो । असमय साहु विउधणमुवायमो दव्यपव्वज्जा ॥३१५।। तच्चाग गिहागमणेवमादि पडिवत्ति तह पुणो वाही । विहाण सयण वेज्जस्स पासणा सेव पण्णवणा ॥ ३१६ ।। एवं पुणोऽवि नवरं मए समं अडतु एव पडिबन्ने । गोणत्तगहण निग्गम सदावि मत्तुल्लमो किरिया ॥ ३१७ ॥ गामपलित्तविउनणमुम्मगे जक्खपूय पडणं च । कुंडगचाई सूयर कूवे गो जुजमदुरुच्चा ॥३१८ ॥ तणविज्झवणादसुंजपतो किं च चोदितो णिउणं । णो माणुसो मणागं संवेगे साहियं सव्वं ।। ३१९ ।। वेयड्डनयण कूडे कुंडलजुयलम्मि भाव संबोही । पधज्जा गुरुभत्ती अभिग्गहाराहण सुरेसुं ।। ३२० ।। मोहक्खलणसमाणो एसो एयस्स एत्थ पडिबंधो। णेओ तो उगमणं सम्म चिय मुत्तिमग्गेण ।। ३२१॥ एवं णाऊण इमं परिसुद्धं धम्मीयमाहिगिच्च । बुद्धिपया काययो जत्तो सति अप्पम|त्तेणं ।। ३२२ ।। परिसुद्धाणाजोगा पाएणं आयचित्त जुत्ताणं । अइरोइंपि हुकम्मण फलइ तहभावओ चेव ॥ ३२३ ।। बाहिम्मि५ दीसइ इमं लिंगेहिं अणागयं जयंताणं । परिहारेतरभावा तुल्लनिमित्ताणवि विसेसो।। ३२४ ॥ एगम्मि भोयणे भुंजिऊण जाए मणागमज्जिण्णे । सइ परिहारारोग्गं अउण्णहा वाहिभावो उ ।। ३२५ ॥ ववहारओ णिमित्तं तुल्लं एसोऽवि एत्थ तत्तंगं । एत्तो ॥१६३॥ पवित्तिओ खलु णिच्छयनय भावजोगाओ ॥ ३२६ ॥ एवमिहाहिगयम्मिवि परिसुदाणा उ कम्मुवकमणं । जुज्जइ तब्भावम्मि य For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय उपदेश पदे ॥१६४॥ साम्यं CARRCESSASSAARCANER भावारोग्गं तहाभिमयं ।। ३२७ ।। एयमिह होइ विरियं एसो खलु एत्थ पुरिसगारोत्ति । एयं तं दुण्णेयं एसो च्चिय णाणविसओ 8 मोहस्ख|वि ।। ३२८ ॥ आहरणं पुण एत्थं सधणयविसारओ महामंती । मारिणिवारणखाओ णामेणं नाणगम्भोत्ति ।। ३२९ ॥ बेसालीलना ज्ञान जियसत्तू राया सचिवो उ णाणगब्भो से । मित्तागम पुच्छा अत्थकत्थाणि किं कस्स ? ।। ३३०॥ मंतिस्स मारिपडणं कइया गर्भ मंत्री | कर्मोद्यम पक्खारउत्ति तुसिणीया । सवेऽवि मंतिणिग्गम काले मित्तिगाहवणं ।। ३३१ । पइरिके पुच्छा कह सुयदोसा पच्चओ कुसुमिणोत्ति । पूजा वारण संवाय पुत्तमालोचण णिरोहो ।। ३३२ ॥ मंजूसाए पक्खस्स भोयणं पाणगं च ताला य । अत्थं साहर रण्णो भणणमाणिच्छे तयाणयणं ।। ३३३ ।। देव इह सब्बसारं किमणेणं पक्खमेग रक्खावे । दारण्णतालसीसगमुद्दा अदृट्ट पाहरिया। ॥ ३३४ ॥ तेरसमम्मि य दियहे रण्णो धृयाए वेणिछओत्ति । मंतिसुया किल फुट्ट भवणे रण्णो महाकोवो ॥ ३३५ ।। घाएह तयं, अहवा सव्वेच्चिय डहह मत्तगा एए। किंकरगम गण्हण भंडणा य पेच्छामु देवात्त ॥ ३३६ ।। दिट्ठम्मि एत्थ जोग्गं तत्तं जाणाहि मुद्दसंवाओ । उग्घाडणे णिरूवण छुरिया वेणी य मंतिसुओ ।। ३३७ । सज्झस किमिदं देवो जाण तह विम्हओ उ सब्बेसि । तप्पुच्छ पूयणा सव्वणासणो वेणिछयाउ ।। ३३८ ॥ एत्तो उ किल पयट्टो एत्थाहं जाव एवमवत्ति । एवमचिंतं कम्मं विरियपि य बुद्धिमंतस्स ।। ३३० ।। अणिययसहावमेयं सोवकमकम्मुणो सरूवं तु । परिसुद्धाणाजोगो एत्थ खलु होइ सफलोत्ति ।। ३४० ।। एत्तो उ दोवि तुल्ला विण्णेया दिवपुरिसकारत्ति । इहरा उ णिप्फलत्तं पावइ णियमेण एकस्स ।। ३४१ ॥ दारुयमाईणमिणं पडिमाइसु जोग्गयासमाणत्तं । पच्चक्खादिपसिद्ध विहावियब्वं बुहजणेणं !! ३४२ ॥ न हि जोगे नियमेणं जायइ पडिमाइ ण य अजोगत्तं । ॥१६४॥ तल्लक्खणविरहाओ पडिमातुल्लो पुरिसगारो ॥ ३४३ ॥ जइ दारु चिय पडिमं अक्खिवइ तओ य हंत णियमेणं । पावइ सम्वत्थ इमा For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदे ॥१६५॥ SCHOCKROACK | अहवा जोग्गंऽपऽजोग्गंति ॥ ३४४ ॥ नय एव लोगणीई जम्हा जोगम्मि जोगववहारो । पडिमाणुप्पत्तीयवि आविगाणेणं ठिओ एत्थ है। | कर्मोद्यमा ॥ ३४५ ॥ एवं जइ कम्मं चिय चित्तं अक्खिबइ पुरिसगारं तु । णो दाणाइसु पुण्णाइभेयमोउज्झप्प भएण ॥३४६।। तारिसयं चिय | दृष्टिशुद्धौ अह तं सुहाणुबंधि अज्झप्पकारित्ति । पुरिसस्स एरिसते तदुवक्कमणाम्म को दोसो ? ।। ३४७ ।। एत्थ परंपरयाए कम्मंपिहु तारि-1 चित्रकरः संति वत्तव्वं । एवं पुरिसं चिय एरिसत्तमणिवारियप्पसरं ॥ ३४८ ॥ उभयतहाभावो पुण एत्थं णायण्णसम्मओ णवरं । ववहारोवि विषय प्रति हु दोण्हवि इय पाहण्णाइनिष्फण्णो ।। ३४९ ॥ जमुदग्गं थेवेणं कम्मं परिणमइ इह पयासेण । तं दइवं विवरीयं तु पुरिसगारो मुणे भासादि यब्यो ॥ ३५० ॥ अहवऽप्पकम्महेऊ ववसाओ होइ पुरिसगारोत्ति बहुकम्मणिमित्तो पुण अन्झवसाओ उ दइवोत्ति ॥ ३५१ ।। णायमिह पुण्णसारो विकमसारो य दोणि वणियसुया । णिहिपरतीरधणागम तह सुहिणो पढमपक्खम्मि ॥३५२॥ दाणुवभागणिहिलाभओ दढं अविगला उ एकस्स । परतीरकिलेसागमलाभाओ एव बीयस्स ॥ ३५३ ।। रायसवणम्मि पुच्छा णिवेयणं अवितह दुविण्हंपि । दइवेयरसंजुत्ता पवायविण्णासणा रण्णा ।। ३५४ ।। एगणिमंतणमविगलसाहणजोगोऽकिलेसा चेव । भोगोविय एयस्स उ एवं चिय दइवजोगेण ।। ।। ३५५ ।। अण्णस्स वच्चओ खलु भोगम्मिवि पुरिसगारभावाओ। रायसुयहारतुट्टण रुयणे तप्पोयणाजोओ ।। ३५६ ॥ पक्खंतरणायं पुण लोउत्तरिय इमं मुणेयव्यं । पढमंतचकबट्टी सगणियलच्छेदणे पयर्ड ।। ३५७ ॥ कयमेत्थ पसंगेणं सुद्धाणाजोगतो सदा मतिमं । बडेज धम्मठाणे तस्सियरपसाहगत्तेणं ।। ३५८ ॥ तस्सेसो उ सहाबो जमियरमणुबंधई उ निय- 4॥१६५॥ मेण । दीवोव्व कज्जलं सुणिहिउत्ति कज्जंतरसमत्थं ।। ३५९ ॥ एत्तो उ दिडिसुद्धी गंभीरा जोगसंगहेसुति । भणिया लोइयदिटुंतओ तहा पुन्चमूरीहिं ॥३६०॥ साएयम्मि महबलो विमल पहा चेव चित्त परिकम्मे । णिप्फत्ति छ?मासे भूमीकम्मस्स करणं च ॥३६१।। For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CAA चित्रकरः दशशास्त्रीय यापुच्छण रण्णो किं मझं पत्थि देव! चित्तसभा। आदेसो निम्मवगा पहाणचित्तगरबहुमाणो ॥ ३६२ ॥ अण्णोऽण्णभित्ति- कर्मोद्यमो उपदेश पदे तू | जवणिग किरिया छम्मासओ उ एगेण । णिम्मवणं अनेणं भूमीकम्मं सुपरिसुद्धं ॥ ३६३ ॥ रायापुच्छणमेगो णिम्मवियं बीय भूमि- दृष्टिशुद्धा करणम्मि । आहूसुग णिवदंसण चित्ते तोसो उचियपूजा !! ३६४ ।। जवणीविक्खेवेणं तस्संकम रम्म रायपासणया । किं वेयारसि ण हु देव ! संकमो जवणिगा जो उ ॥ ३६५ ॥रण्णो विम्हय तोसो पुच्छा एवं तु चित्तविहि सम्मं । भावण वण्णगसुद्धी थिरबुड्ढी 81 विषय प्रति ॥१६६॥ विवज्जओ इहरा ॥ ३६६ ॥ साहुत्ति महापूजा अच्छउ तुल्लाए चव किरियाए । धम्मट्ठाणविसुद्धी एमेव हवेइ इट्टफला ॥ ३६७ ॥ भासादि अज्झप्पमूलबद्धं इत्तोऽणुट्ठाणमो सयं विति । तुच्छमतुल्लमएणं अण्णेऽवज्झप्पसत्थण्णू ॥ ३६८ ॥ सुद्धाणाजोगाओ अज्झप्पं सति इओ समालोचो । हंदि अणुढाणगओ ततो य तं नियमतो होति ।। ३६९ ॥ एसो उ तहाभब्बत्तयाएँ संजोगतो निओगेण । जायति शभिन्ने गठिम्मि अन्नहा णो जतो भणियं ।। ३७० ॥ वेहपरिणामरहिते ण गुणाहाणमिह होति रयणम्मि । जह तह सुत्ताहाणं न भावतोऽभिन्नगंठिम्मि ॥ ३७१॥ जा तम्मि ते ण जोगा बज्झा संतोऽवि तत्तओ णेए । तह दव्वसुत्तजोगा पायं जीवाण विण्णेया | ॥ ३७२ ॥ विसयपडिहासमित्तं बालस्सेवऽक्खरयणविसयंति । वयणा इमेसु णाणं सव्वत्थऽण्णाणमो णेयं ॥ ३७३ ।। भिन्ने तु इतो भणाणं जहक्खरयणेसु तग्गयं चेव । पडिबंधम्मिवि सद्धादिभावतो सम्मरूवं तु ॥ ३७४ ।। जमिणं असप्पवित्तीऍ दबओ संगयंपि | नियमेण । होति फलंगं असुहाणुबंधवोच्छेयभावाओ ।। ३७५ ॥ एसो य एत्थ पावो मूलं भवपायवस्स विबेओ । एयम्मि य वोच्छिन्ने | वोच्छिन्नो चेव एसोति ॥ ३७६ ॥ एत्तो च्चिय एयम्मी जत्तोऽतिसएण सेसगाणंपि । एत्थ दुवे सज्झिलगा वाणपत्था उदाहरणं ॥१६६॥ ॥ ३७७॥ अंगिरसगालवा वाणपत्थ लहुगस्म जेट्ठ वणगमणं । निग्गम कुसादिहेउं तस्सियर पडिच्छणं चेव ॥ ३७८ ।। कालाति 4ASERCARECH RE For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुल्लक दशशास्त्रीय कम भुक्खा दाडिमगह आगमो उ इतरस्स । वंदण पासण पुच्छा एत्तो पच्छित्ति णो वंदे ॥ ३७९ ॥ देह इमं गच्छ निवं मग्गाहि & अशुभानु उपदश पदासदूर पादलेवोत्ति । गमणं निवमग्गण धम्पसस्थि च्छेओ उ हत्थाणं ।। ३८० ॥ तत्तो आगमचिण्णव्वतोसि बंदण णतीए ण्हाणं तु | बन्धः | हत्थुल्लुज्झण साहण पाणायामे तहा भावो ॥ ३८१ ।। पुच्छा किं णो पढमं असुद्धितो तं वतित्ति गुरुदोसो । किरियापत्थाहरणा ण ॥१६॥ | अन्नहाऽवेति अणुबंधो ॥ ३८२ ।। रुद्दो य इमो एत्थं चइयब्बो धम्ममग्गजुत्तेहिं । एयम्मि अपरिचत्ते धम्मोवि हु सबलजो होति |संकाशादि ॥ ३८३ ।। लोउत्तरंपि एत्थं निदरिसर्ण पत्तदसणाईवि । असुहाणुबंधतो खलु अणंतसंसारिया बहवे ।। ३८४ ॥ चउदसपुवघराणं | दृष्टान्ताः अपमत्ताणंपि अंतरं समए । भणियमणतो कालो सो पुण उववज्जए एवं ॥३८५।। गंठीओं आरओविहु असई बंधा ण अण्णहा होइ। ता एसोऽवि हु एवं णेओ असुहाणुबंधोति ॥ ३८६ ।। नणु सुद्धाणाजोगो आसि चिय पत्तदंसणाईण । तेसिममुहाणुबंधो णाव| गओ कह णु एत्तो उ ? ॥३८७॥ एयापगमणिमित्तं कई व एसो उ हंत केसिंचि । एयं मिहो विरुद्धं पडिहासइ जुज्जए कह णु ? ॥ ३८८ ।। भण्णइ जहोसहं खलु जत्तेण सया विहाणओ जुतं । तह वोच्छिदइ वाहिं ण अण्णहा एवमेसोऽवि ।। ३८९ ।। एत्तो उ | अप्पमाओ भणिओ सम्बत्थ भयवया एवं । इहरा ण सम्मजोगो तस्साहय सोवि लूहो (लद्धा)त्ति ॥३९०॥ अवयारवियारम्मी अणुद्रभूए जं पुणो तदब्भासो । होइ अहिलसियहेऊ सदोसहं जह तहेसोऽवि ॥ ३९१ ॥ पडिबंधविचारम्मि य निदंसिओ चेव एस | अत्थोत्ति । ओसहणाएण पुणो एसो च्चिय होइ विष्णेओ ।। ३९२ ॥ एत्तो उइओ वीरा कहिंचि खलिएवि अवगमे तस्स । तह IT ॥१६७|| | एयजोगउ च्चिय हंदि सकज्जे पयदिसु ॥३९३।। साहुपदोसी खुद्दो १ चेतियदयोवओगि संकासो २। सीयलविहारिदेवो ३ एमाई एत्थुदाहरणा ।। ३९४ ॥ रुद्दो सिक्खवणाए साहुपओसी विसम्मि सादेब्वं । आलुगहत्थे साहण देवय कहणाएँ निच्छूढो ।। ३९५ ॥ RECACACACACAX For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय ४॥ | उभिक्खमणं वाही मरणं नरगेसु सत्तसुववातो । कुच्छियतिरिएहितो तहा तहा दुक्खपउरेहिं ।। ३९६॥ एगिदिएसु पायं कायठिती अशुभानु उपदेश पद | तह ततो उ उबट्टे । सव्वस्स चेव पेसो ठाणेसु इमेसु उववन्नो ॥ ३९७ ॥ चब्बरपुलिंदचंडालचम्मगररयगदासभियगेसु । चुन्नउरे बन्धः सेट्ठिसुओ एत्तो तक्कम्मनिट्ठवणं ॥३९८॥ तित्थयर जोग पुच्छा कहणे संबोहि किमिह पच्छित्तं ? | तब्बहुमाणो पंचसयवंदणाभिगहो मुल्लक विणए ।। ३९९ ॥ कहवि असंपत्तीए अभुंज छम्मास काल बंभसुरो । तित्थयर भत्ति चवणं चंपाए चंदराय सुओ ॥ ४०० ॥बाल संकाशादि ॥१६८॥ INस्स साहुदंसण पीती सरणमधिती य तबिरहे । पिय साह नाम बडण पवज्जाभिग्गहरगहणं ॥४०१ ।। परिवालण आराहण सुक्काइ | दृष्टान्ताः जहकमेण उववाओ । सव्वत्थागम पवज्जसेवणा सिद्धिगमणंति ॥४०२॥शा संकास गधिलावइ सकवयारम्मि चेतिए कहवि । चेति-IN यदव्वुवओगो पमायओ मरण संसारो ॥ ४०३ ॥ ताहाछुहाभिभूओ संखेज्जे हिंडिऊग भवगहणे । घायण वाहण चुन्नण वियाणओ पाविउं बहुसो ॥ ४०४ ॥ दारिद्दकुलुप्पत्तिं दरिद्दभावं च पाविउं बहुसो। बहुजणधिक्कारं तह मणुएसुवि गरहणिज्जं तु ॥४०५।। | तगराए इब्भसुओ जाओ तक्कम्मसेमयाए उ । दारिद्दमसंपत्ती पुणो पुणो चित्तनिब्बेओ ।। ४०६॥ केवलिजोगे पुच्छा कहणे चोही तहेव संवेगो । किं एत्थमुचियमिहि चेझ्यदब्वस्स बुड्डित्ति ॥ ४०७ ।। गासच्छादणमेत्तं मोत्तुं जं किंचि मज्झ तं सव्वं । चेतियदछ णेयं अभिग्गहो जावजीवंति ॥ ४०८ ॥ सुहभावपवित्तीओ संपत्तीभिग्गहम्मि निच्चलया। चेतीहरकारावण तत्थ सया भोगपरिसुद्धी॥ ४०९ ॥ निट्ठीवणाइकग्णं असकहा अणुचियासणादी य । आयतणम्मि अभोगो एत्थं देवा उयाहरणं ॥ ४१०॥ देवहर यम्मि देवा विसयविसविमोहियावि न कयाइ । अच्छरसाहिपि समं हासखेडाइबि करति ।। ४११ ॥ इय सो महाणुभावो सब्बत्थवि । सअविहि भावचागेण । चरिउं विसुधम अक्खलियाराहगो जाओ ।। ४१२ ॥ एनोच्चिय भणियमिणं पुवायरिएहिं एत्थ बत्थाम्म ॥१६८।। -CCCANAR For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir दशशास्त्राय अन्नयवतिरेगगयं परिसुद्धं सुद्धभावेहिं ॥ ४१३ ।। चेइयदव्वं साहारणं च जो दहति मोहियमतीओ। धम्मं च सो न याणति अहवा चैत्यद्रव्य उपदेश पदे 5 बद्धाउओ पुचि ॥ ४१४ ॥ चेडयदबविणासे तद्दबविणासणे दुविहभेए। साहू उवेक्खमाणो अणंतसंसारिओ भणिओ ।। ४१५ ॥ शरक्षावृद्धि | जोग्गं अतीयभावं मूलुत्तरभावओ अहव कई । जाणाहि दुविहमेयं सपक्खपरपक्खमाइं च ।। ४१६ ॥ जिणपवयणबुड्किरं पभावगं भक्षणफलं, काधकाला॥१६॥ णाणदंसणगुणाण । रक्खंतो जिणदव्वं परित्तसंसारिओ होइ । ४१७॥ जिणपवयणवुड्किरं पभावगं णाणदसणगुणाणं । वड्डतो जिण हा काली दव्वं तित्थगरत्तं लहइ जीवो ॥ ४१८।। चेइयकुलगणसंघ उवयारं कुणइ जो अणासंसी । पत्तेयबुद्ध गणहर तित्थयरो वा तओ होइ अज्ञानेसद| ॥ ४१९ ।। परिणामविसेसेणं एत्तो अन्नयरभावमहिगम्म । सुरमणुयासुरमहिओ सिज्झति जीवो धुयकिलेसो ॥४२०॥२देवो नाम- सवादि णगारो कम्मगुरू सीयलो बिहारेणं । निबंधसोति मरिउं भमिओ संसारकतारे ॥ ४२१ ।। सीयलविहारओ खलु भगवंतासायणा |णिओगेणं । तत्तो भवो अणतो किलेसबहलो जओ भणियं ॥ ४२२ ॥ तित्थयर पवयण सुर्य आयरियं गणहरं महिडीयं । आसायंता बहुसो अणंतसंसारिओ होति ॥ ४२३ । सो ताम्म तधिवागा हीणो दुहिओ य पेसणयकारी । विहलकिरियाइभावो पायं होत्तूण मंदमती ।। ४२४ ॥ खविऊण तयं कम्मं जाओ कोसंवि माहणसुओत्ति | विज्जामत्तो गुरुओ चिंता ओसरण निक्खमणं ॥ ४२५ ॥ लोयावना पुच्छा निमित्त कहणम्मि परमसंवेगो । सब्वत्थुज्जयजोगो सकथुती देवहत्थिरिया ॥४२६॥ मूइंगलियारक्ख | णगयचित्तो इत्थिणा समुक्खित्तो । मिच्छादुकडसंवेगबुडिओ यतिदगक्खवणं ॥ ४२ ॥ वेमाणिय सुह माणुस सुद्धाचारपरिपा- 4 ॥१६॥ लणाणिरओ । सत्तट्ठजम्ममज्झे चक्की होऊण संसिद्धो ॥ ४२८ ॥ अनेवि महासत्ता अतियारजुयावि तप्फलं भोत्तुं । संसुद्धमग्मनिरया कालेणमणंतगा सिद्धा ॥४२९॥ एवं ओमहणायं भावेअब्बं निउणबुद्धीए। असमपसमयपोगा विहि सइ परिवालणाओ] ACCACACACAK For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय 81 य॥४३०॥ हॉति अकालपयोगो निरस्थगो तहऽवगारपरओ य । हंदि हु सदोसहस्सवि नियमा लोगेऽवि सिद्धपिणं ।। ४३१ ॥ चैत्यद्रव्य उपदेश पदे घणमिच्छत्तो कालो एत्य अकालो उ होति नायब्यो । कालो य अपुणबंधगपभिती धीरेहिं निद्दिट्ठो ॥ ४३२ ।। निच्छयओ पु ण एसो विन्नेओ गंठिभेयकालो उ। एयम्मी विहिसतिवालणाहि आरोग्गमेयाओ ।। ४३३ ॥ इहरावि हंदि एयम्मि एस आरोग्ग |साहगो चेव । पोग्गलपारियट्टद्धं जमूणमेयम्मि संसारो ॥ ४३४ ।। एयम्मि एयजोगेण विवज्जयमेति पायसो जीवो । समुवस्थिय॥१७॥ धमेकालाकल्लाणो ण हु तबिवरीयगो होति ।। ४३५ ॥ न परलोओ न जिणा ण धम्ममो गंडपील सीलं तु । नत्थडमिया य तहा एमादि P कालो न मन्नई एसो॥ ४३६ ॥ दोसावेक्खा चे सम्म कालो सदोसहगओऽवि । कुसलेहिं मुणेयवो सइ वेज्जगसत्थनीईए ॥ ४३७ ।। अज्ञानेसदकह णु अकालपओगे एत्तो गेवेज्जगाइसुहसुद्धी ? । णणु साहिगओसहजोगसोक्खतुल्ला मुणेयब्वा ।। ४३८॥ कुणइ जह सण्णि सत्त्वादि वाए सदोसहं जोगसोक्खमेत्तं तु । तह एयं विष्णेयं अणोरपारम्मि संसारे ॥ ४३९ ॥ ण य तत्तओ तयंपि हु सोक्खं मिच्छत्तमोहियमइस्स । जह रोहवाहिगहियस्स ओसहाओवि तब्भावे ॥ ४४० ॥ जह चेवोहयणयणो सम्मं रूवं ण पासई पुरिसो । तह | चेव मिच्छदिट्ठी विउलं सोक्खं न पावेइ ।। ४४१ ।। असदभिणिवेसवं सो णिओगओ ता ण तत्तओ भोगो। सम्वत्थ तदुवघाया विसघारियभोगतुल्लोत्ति ॥ ४४२ ।। कत्थइ ण णाणमेयस्स भावओ तम्मि असइ भोगोवि । अंधलयभोगतुल्लो पुवायरिया तहा चाहु ॥ ४४३ ॥ सदसदविसेसणाओ भवहेउजहिच्छिओवलंभाओ । णाणफलाभावाओ मिच्छदिहिस्स अन्नाणं ॥ ४४४ ॥ एगंतणिच्चवाए अणिच्चवाए सदसदविसेसो । पिंडो घडोत्ति पुरिसादलो देवोत्ति णातातो ॥ ४४५ ॥ भवहेउ णाणमेयस्स पायसोऽ| सप्पवित्तिभारणं । तह तदणुबंधओ चिय तत्तेतरणिंदणादीतो || ४४६ ।। उम्मत्तस्म व णेतो तस्सुवलंभो जहिच्छरुवोत्ति | ॥१७०।। CARE For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दसशासीमा मिच्छोदयओ तो च्चिय भणियमिणं भावगहरूवं ॥ ४४७ ॥ णाणस्स फलं विरती पावे पुनम्मि तह पवित्तीओ | जोगत्तादि अनुबन्धे अणुगया भावेण ण सा अओऽण्णाणं ॥ ४४८ ॥ एवमतिाणउणबुद्धीऍ भाविउं अप्पणो हियट्ठाए । सम्मं पयट्टियव्वं आणाजोगेण | जीर्णश्रेष्टी सम्वत्थ ॥ ४४९ ॥ णाऊण अत्तदोस वीरियजोगं च खेत्त कालो य । तप्पच्चणीयभूए गिण्हेज्जाभिग्गहविसेसे ॥ ४५० ॥ पालिज अभिग्रहे य परिसुद्धे आणाण चेव सति पयत्तेणं । बज्झासंपत्तीयवि एत्थ तहा निज्जरा विउला ।। ४५१ ॥ तस्संपायणभावो अब्बोच्छिन्नो* यमुनावक्र: ॥१७॥ आज्ञा जओ हवाति एवं । तत्तोय निज्जरा इह किरियायवि हंदि विनेया ।। ४५२ ॥ आहरणं सेट्ठिदुर्ग जिणिदपारणगदाणदाणेसु । विहि प्राबल्यं | भत्तिभावऽभावा मोवस्त्रंग तत्थ विहिभत्ती ॥ ४५३ ॥ वेसालि वासठाणं समरे जिण पडिम सेट्टिपासणया। अतिभत्ति पारणदिणे मणोरहो अन्नहिं पविसे ॥४५४।। जा तत्थ दाणधारा लोए कयपुन्नगोत्ति य पसंसा । कवालआगम पुच्छण को पुन्ना? जुन्नसहित्ति ||४५५|| एत्थ हुमगारहो चिय अभिग्गही होति नवर विन्नेओ । जदि पविसति तो भिक्खं देमि अहं अस्स चिंतणओ ||४५६।। पञ्चग्गकयपि तहा पावं खयमेऽभिग्गहा सम्म । अणुबंधो य सुहो खलु जायह जउणो इंह नाय ।। ४५७ ।। मुहराए जउणराया जउ-| णावंके य डंडमणगारो। वहणं च कालकरणं सकागमणं च पबज्जा ।। ४५८ ।। जउणावंके जउणाएँ कोप्परे तत्थ परमगुणजुत्तो।। | आयावेति महप्पा दंडो नामेण साहुत्ति ॥ ४५९ ॥ कालेण रायणिग्गम पासणया अकुसलोदया कोवो । खग्गेण सीसछिन्दण अण्णे उ फलेण ताडणया ॥४६०॥ सेसाण लेदुखेवे रासी अहियासणाएँ णाणत्ति । अंतगडकेवलित्तं इंदागम पूयणा चेव ।। ४६१ ।। दट्टण रायलज्जा संवेगा अप्पवहपरीणामो। इंदनिवारण सम्म कुण पायच्छित्तमो एत्थ ॥ ४६२ ॥ साहुसमी गमणं सवणं तह चेव | ॥१७॥ पायछित्ताणं । किं एत्थ पायच्छित्तं ? सुद्धं चरणंति पव्वज्जा ।। ४६३ ॥ पच्छायावाइसया अभिग्गहो सुमरियम्मि नो भुंजे | दर AKASX For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir D दशशास्त्रीय भुत्ते चेवं चिय दिवसम्मि न तेण किल भुत्तं ॥४६४॥ आराहण काल गओ सुरेमु वेमाणिएसु उववण्णो । एवं अभिग्गहो इह कल्ला-13 अनुबन्धे उपदेश पदे दाणणिबन्धणं णेओ ।। ४६५ ॥ जइ एवं रिसिघाएऽवि हंत आराहणा इमस्सेसा । कह खुड्डयाइयाणं दोसलवाणंतसंसारो? ।। ४६६ ॥ जीणश्रेष्टी | भण्णइ अप्पडियारो दोसलवो तेसि ण पुण इयरस्स । कयपडियारो य इमो ण फलइ विसमेत्थमाहरणं ।। ४६७॥ मारइ विसलेसोऽ॥१७२।। वि हु अकयपडियारमो ण उ बहुंपि । कयपडियारं तं चिय सिद्धमिणं हंत लोएऽवि ॥ ४६८ ॥ मंतागयरयणाणं सम्म पोगो यमुनावक्र: | विसम्मि पडियारो । आणेसणिज्जऽभिग्गहरूवा एते उ दोसविसे ॥ ४६९ ॥ एए पउंजिऊणं सम्मं निज्जरइ अइबहूयंपि । दोसविस आज्ञा प्राबल्यं | मप्पमत्तो साहू इयरोव्व बुद्धिजुओ ॥ ४७०॥ कम्मं जोगनिमित्तं बज्झइ बंधहिती कसायवसा। सुहजोयम्मी अकसायभावओऽबेइ | तं खिप्पं ॥ ४७१ ।। गरुओ य इहं भावो णेओ सहगारिगरुयभावेण । तित्थगराणा णियमा एत्थं सहगारिणी जेण ॥ ४७२ ॥ | दोसो उ कम्मजो च्चिय ता तुच्छो सो इमं तु अहिगिच्च । लेसोऽवि अग्गिणो डहइ हंदि पयरंपि हु तणाणं ॥४७३।। अणुकूलपवणजोगा णतु तविरहम्मि सिद्धमेयं तु । भावो उ इहं अग्गी आणा पवणो जहा भणिओ ॥ ४७४ ॥ सा पुण महाणुभावा तहविया पवणाइरूवमो भणिया । विवरीए साऽसमओदिया य तह बंधवुड्डिकरा ॥ ४७५ ॥ आलोचियबमेयं सम्मं सुद्धाएँ जोगिबुद्धीए । | इयरीए उण गम्मइ रूवं व सदंधसण्णाए ॥ ४७६ ।। जच्चंधो इह णेओ अभिण्णगंठी तहंधलयतुल्लो। मिच्छद्दिट्टी सज्जक्खओ य सइ सम्मदिट्ठीओ।। ४७७ ॥ एसो मुणेइ आणं विसयं च जहाट्टयं णिओगेणं । एईए करणम्मि उ पडिबंधगभावओ भयणा ला।। ४७८ ॥ कयमेत्थ पसंगेण समासओ जेण एस आरंभो । दिसिमित्तदंसणफलो पगयं चिय संपयं वोच्छं ।। ४७९ ॥ अण्णंपि ॥१७२।। इहाहरणं वणियसुया सज्झिला उ बोहीए । पव्वज्ज सीयल मणोरहो य सुद्धाएँ फलभेओ॥ ४८० ।। तगराए वसुसुया सेणसिद्ध HERSIRS-NEKHEERES RSS For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दशशास्त्रीय उपदेश पदे ॥ १७३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धम्मगुरु बोहि एगस्स । णिक्खमणमकिरियमणोरहो उ अण्णस्स सुद्धम्मि ||४८१ ।। काले मिलणमसणीघाओ उबवाय बंतरविमाणे । केवलिआगम पुच्छा कहणं भावम्मि बहुमाणो ।। ४८२ ।। एत्थवि मणारहो च्चिय अभिग्गहो सुद्धणिक्खमणगम्मि । बहुमाणओवि अविराहणाएँ एत्थं फलमुदारं ।। ४८३ ।। अविराहणाऍ सुद्धे धम्मट्ठाणम्मि बहुजणेण तओ । जत्तो खलु कायव्त्रो ण अण्णहा संकिलिहम्म || ४८४ ॥ तवसुत्तविणयपूयाण संकिलिडस्स होंति ताणंति । खमगागमि १ विणयरओ २ कुंतलदेवी ३ उदाहरणा ||४८५ || कुसुमपुरे अग्गिसिहो खमओ लिंगद्धओ य अरुणोत्ति । वासद्वाणविहारे अहरुत्तरकोडगे वासो || ४८६ ।। पढमस्स संकिलेसो पावो एसोत्ति पायसो णिच्चं । बिइयस्स उ संवेगो साहुवरि वसामऽघण्णोऽहं ॥ ४८७ ॥ भववुड्डित्तपरित्तीकरणं वासंत गमणमोसण्णे । वासे णिज्जरपुच्छा कहणं पुब्वोइयत्थस्स || ४८८ || आगामिय किरियणाणं खुड्डग बहुमाण तप्पदूसणया । अणुबंधकालसप्पे उज्जाणे साहुठाणम्मि || ४८९ ॥ सज्झायभूमि खड्ग गमणे अणिमित्त गुरुणिवारणया। पेहण सप्पे पडिणीय णाणमोहेण महगुरुणो ।। ४९० ।। केवलिआगम पुच्छा विसेसकहणाएँ साहुसंवेगो । तब्वयणओ य खामण सरणं आ राहणा चैव ।। ४९१ || १ | वियरओ उ उदाई-राया आणाओ चिंत सामंते । एगस्स कहणमम्हं ण कोइ जो तं विणासेइ ।। ४९२ ॥ उच्छिष्णकुमारोलग्गणाऍ अहयं तु देहि आए । पडिसुणणागम अपवेस साहू य अयंति णिक्खमणं ।। ४९३ ।। किरियाविणए बारस वरिसा वीसंभ पोसहे गुरुणा । पविसण सुत्ते कंकं गुरुणावि भवो सुदीहोति || ४९४ || २| सम्मे कुंतलदेवी तदण्णदेवीण मच्छरसमेया । पूयं कुणइ जिणाणं अइसयमो बच्चई कालो || ४९५ || गेलण्ण मरणवत्था पडरयणाऽवणयणं अवज्झाणं । मरणं साणुप्पत्ती केवलि तज्जम्मपुच्छृणया ॥ ४९६ ॥ कहणा देवी संवेगवासणा नेह पूजकरणं च सरणं बोही खामण पसमो आराहणा चेव ||४९७|| ३ | एयमिह दुक्खरूवो दुक्खफलो चैव 1 For Private and Personal Use Only विराधना त्यागः जिनधर्मा दयो दृष्टान्ताः ७ ॥१७३॥ Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | विराधना त्यागः जिनधर्मा दयो दृष्टान्ताः दशशास्त्रीय संकिलेसोत्ति । आणासम्मपओगेण वज्जियव्यो सयाऽवेस ॥ ४९८ ॥ सफलो एसुवएसो गुणठाणारंभगाण भव्वाणं । परिवडमाणाण उपदेश पदे दतहा पायं न उ तट्ठियाणंपि ॥ ४९९ ॥ सहकारिकारणं खलु एसो दंडोव्व चक्कभमणस्स । तम्मि तह संपयट्टे निरत्थगो सो जह | तहेसो ॥ ५०० ।। जइ एवं किं भणिया निच्चं सुत्तत्थपोरिसीए उ । तट्ठाणंतरविसया तत्तोत्तिं न तेण दोसोऽयं ।। ५०१ ।। अप्पुन्व- ॥१७४॥ | णाणगहणे निच्चब्भासण केवलुप्पत्ती । भणिया सुयम्मि तम्हा एवं चिय एयमवसेयं ॥ ५०२॥ गुणठाणगपरिणामे संते उवएसमंतरेणावि । नो तव्याघायपरो नियमेणं होति जीवोत्ति ॥ ५०३ ॥ एत्थवि आहरणाई णेयाइंडणुव्वएवि अहिगिच्च । इद्रुत्थसाहगाई | इमाइं समयम्मि सिद्धाई ।।५०४।। जिणधम्मो १ सच्चोवि २ य गोट्ठीसड्डो ३ सुदंसणो मइमं ४। तह चेव धम्मणंदो ५ आरोग्गदिओ ६ |य कयपुण्णो ७॥५०५: भरुयच्छे जिणधम्मो सावगपुत्तो अणुव्वयधरोत्ति । अवहरिओ परकूले विक्कीओ सूयहत्थम्मि ।।५०६।। लावेसूसासाणा मोयण रुष्टेण ताडिओ धणियं । एवं पुणोवि नवरं कहणा एएसु पडिसेहो ॥ ५०७ ।। दासो मे आणत्ति कुण सच्चीमण करेमि उचियंति । ममं तु एत्थ दोसो अतत्तमिणमग्गिनाएण ॥ ५०८ ।। पिट्टण बोले रायाऽऽयन्त्रण परिओस विम्हयाहवणं । भाव | परिक्खण मायाकोवो वावत्ति हत्थाणा ।। ५०९ ॥ लोलण पुच्छा निच्चल भावा पडिसह मोयणा सम्मं । सक्कार विउलभोगा खग्ग-1 धर निरूवणा चेव ।। ५१०।। एवं वयपरिणामो धीरोदारगरुओ मुणेयब्बो । सण्णाणसद्दहाणाहि तस्स जं भावओ भावो ।। ५११॥ ४ा जाणइ उप्पण्णरुई जइ ता दोसा नियत्तई सम्मं । इहरा अपवित्तीयवि अणियत्तो चेव भावेण ।। ५१२ ।। जाणतो वयभंगे दोस तह दाचेव सद्दहतो य । एवं गुणं अभंगे कह धीरो अण्णहा कुणइ ? ॥ ५९३ ॥ तुच्छं कज्ज भंगे गरुयमभंगम्मिणियमओ चेव । परमगुशरुणो य वयणं इमंति मइम ण लंघेइ ॥५१४॥ साहाविओ य वयपरिणामो जीवस्स अण्णहा इयरो । एवं एस सरूवेण तत्तओ चिंति AARENEKHAR ॥१७४॥ For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय उपदेश पदे सत्य गोष्टिक सुदर्शन धर्मनन्दि रोगहरण दृष्टान्ताः ॥१७५॥ यवोत्ति ॥ ५१५॥ १। वडवहे सच्चो खलु वणियसुओ सावगोत्ति विक्खाओ । भाइसमं पारसकुलं गंतु आगच्छमाणाणं ॥ ५१६॥ | अण्णेहिं समं पासण तिमिगिलस्सा जलोवरिठियस्स। ते मच्छोऽतिमहल्लो भणंति भाया उ दीवोति ॥ ५१७॥ सव्वस्सेणं जूयं पडिसेह बलाउ तस्स करणंति । णिज्जामगग्गिजालण बुह तह कुलउप्पत्ती ॥५१८॥ मग्गण विप्पडिवत्ती राउलववहार सक्खिभास-G णया । मिलियत्ति निवपरिच्छा पूजा सहिम्मि जाणणया ।। ५१९ ॥ पूजा महंत सेट्ठिम्मि जोग्गया इच्छ आवकहियत्ति । वीमसाए मुयणं वाणियगेणंपि रित्थस्स ।।५२०।।२। दक्षिणमहुरा गोट्ठी एगो सड्ढोत्ति वच्चए कालो । तत्थन्नया उ पइरिक थेरिगेहम्मि मुसणा य ॥ ५२१ ।। णो सड्डे थेरिपावडण लंछणा मोरापच्छरसरण । सावगभागागहणं गोट्ठी परिवज्जणा भावो ॥५२२॥ थेरीऍ रायकहणं गोट्ठाहवणमणागमो उ सड्डस्स । एत्तिय विसेसकहणे आहवणमचिंधगो नवरं ।। ५२३ ॥ पुच्छण चिंता गोट्ठी कइया अज्जेव किमिति एमेव । चोरिय पसिणे खुद्धा सव्वे ण उ सावगो नवरं ।। ५२४ ॥ रन्नो भावपरिन्ना विसेसपुच्छाए भूयसाहणया । निग्गह पूजा उ तहा दोण्हवि गुणदोसभावणं ॥ ५२५ ।। ३। कोसंबीए सड्ढो सुदंसणो नाम सेट्टियुत्तोत्ति । देवी संववहारे दंसणओ तीएँ अणुरागो ।। ५२६ ॥ चेडी पेसण पीती तुमम्मि जइ सच्चयं ततो धम्मं । कुणसु विसुद्धं एवं एसा जं होइ सफलत्ति ॥५२७|| रायनिवेयण दोसो एसो सपराण निरयहेउत्ति । एमाइ धम्मदेसण पडिमाए आगमुवसग्गो ॥ ५२८ ॥ तत्तो पओस रन्नो माइट्ठाण कहणाएँ गेण्हणया। पडिकूलकयत्थणपत्थणाहिं खुहिओ न सोधीरो ।। ५२९ ।। देवीएँ सप्पभक्खण जीवावण देसणाए संबोही । चेतीहरकारावण विरमणमो चेव पावाओ ॥५३०।। ४। णासेक्के गंददुर्ग एगो सड्डोऽवरो उ मिच्छत्तो । रायतलागणिहाणग सोवण्णकुसाण पासणया ॥ ५३१ ॥ तह किट्टलोहमयगा अजच कम्मकर गहण विकिणणं । सड्डपरिणाणऽग्गह इच्छापरिमाणभंगभया | For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय मा।। ५३२ ॥ इयर गह पइदिणमिहं आणिज्जेह कज्ज गहणमहिंगणं । बहु गमण निमंतणाओ तह पुत्तनिरूवणा गमणं ।। ५३३ ।। सत्य उपदेश पदे आगम अहिगादाणं वावड मग्गण य रोस खिवणम्मि । मलगम सुवण्णदंसण खरदंडिय पुच्छ सेसेसु ॥ ५३४ ॥ माहणमदिट्ठपुव्वा गोष्ट्रिक अण्णेणेगेण दिगहणं च । पुच्छा सावगप्या दंडो इयरस्स अइरोद्दो ॥ ५३५ ।। ५। उज्जेणीए रोगो णामं धिज्जाइओ महासड्डो। सुदर्शन ॥ १७६॥ रोगऽहियासण देविंदपसंसा असद्दहण देवा ।। ५३६ ॥ काऊण वेज्जरूवं भणंति तं पण्णवेमो अम्हेत्ति । रयणीए परिभोगो महुमाईणं धर्मनन्दि चउण्हं तु ।। ५३७ ॥ तस्साणिच्छण कहणा रन्नो सयणस्स चेव तेसिं तु । लग्गण सत्थकहाहिं ताणं इयरस्स संवेगो ।। ५३८॥ रोगहरण | देहत्थपीडा णाया पडिबोहणमो तु णवरमेतेसि । आया तु देहतुल्लो देहो पुण अत्थतुल्लोत्ति ।। ५३९ ॥ देवुवओगे तोसो नियरूवं दृष्टान्ताः रोगहरणनामंति । आरोगो से जायं वयपरिणामोत्ति दट्टयो ।। ५४०॥ ६। सइ एयम्मि विचारति अप्पबहुत्तं जहट्ठियं चेव । सम्म पयट्टति तहा जह पावनि निज्जरं विउलं ।। ५४१ ॥ पुब्बि दुच्चिन्नाणं कम्माणं अक्खएण णो मोक्खो । पडियारपवित्तीवि हु सेया इह वयणसारत्ति ॥ ५४२ ॥ अट्टज्झाणाभावे सम्म अहियासियव्वतो वाही। तब्भावम्मिवि विहिणा पडियारपवत्तणं णेयं ॥५४३॥ सम्वत्थ माइठाणं न पयट्टति भावतो तु धम्मम्मि । जाणतो अप्पाणं न जाउ धीरो इहं दुहइ ।। ५४४ ॥ कोडिच्चागा कागिणिगहणं पावाण ण उण धन्नाणं । धनो य चरणजुत्तोत्ति धम्मसारो सया होति ।। ५४५॥ गुणठाणगपरिणामे संते तह बुद्धिमपि पाएणं ।। जायइ जीवो तफलमवेक्खमन्ने उ नियमत्ति ॥५४६॥ चरणा दुग्गतिदुक्खं न जाउ जे तेण मग्गगामी सो । अंधोब्य सायरहिओ निरुबद्दवमग्गगामित्ति ॥ ५४७ ॥ सुब्बति य गुणठाणगजुत्ताणं एयवइयरम्मि तहा । दाणातिसु गंभीरा आहरणा हंत समयम्मि &ा। ॥ ५४८ ।। सिरिउरसिरिमइसोमाऽणुव्ययपरिपालणाएँ ण य णि उणं । कुसलाणुबंधजुत्ता णिहिट्ठा पुवमूरीहिं ।। ५४९ ।। मिरिउरणगरे HARE For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशशास्त्रीय ॥ १७॥ दणधया णामेण सिरिमई सही। मामा यती सहिया परोहियसयत्ति मजाया ।। ५५० ।। कालेण पाडवड़ी धम्मविचारम्मि ती( श्रीमतिमोसंवोही । वयगहणेच्छ परिच्छा झुंटणवणिएण दिटुंता ॥ ५५१ ।। अंगतिया धणसेट्ठी सामिउर संखसेटि दढपीई । तीए बुड्डिणिमित्तं अजायवच्चाण तह दाणं ।। ५५२ ॥ धण पुत्त संख ध्या विवाह भोगा कहिंचि दारिदं । पत्तीभणणं गच्छसु ससुरगिहं मग्ग (झुंटणगगो झुंटणगं ।। ५५३ ।। साणागिई तओ खलु कंबलरयणं च तस्म रोमेहिं । जायइ छम्मासाओ कत्तामि अहं महामोल्लं ।। ५५४ ।। सोमयदृष्टान्त पुण उस्संघट्टो ण मेल्लियब्यो सयावि मरइत्ति । हसिहिइ मोक्खो लोगो ण कज्जओ सो गणेयब्बो: ५५५ ।। पडिवण्णीमणं तेणं गओ य लद्धो य सो तओ णवरं । अपाहिओ य बहुसो तेहिंवि तह लोगहसणम्मि ॥ ५५६ ॥ आगच्छंतो य तओ हसिज्जमाणे कहिंचि संपत्तो । णियपुरबाहिं मुक्को आरामे तह पविट्ठो उ ॥ ५५७ ॥ भणिओ तीऍ कहि सो मुक्को बाहिम्मि हतऽभब्वोऽसि । |मयगो सो थेवफले ण य लाभो तह उ एयस्स ।। ५५८ ।। झुंटणतुल्लो धम्मो सुद्धो एयम्मि जोइयव्वामिणं । सव्वं णियबुद्धीए असुह-र सुहफलत्तमाईहिं ।। ५५९ ॥ रिसयाणं एसो दायब्यो तेसिमेव उ हियहा । गाढगिलाणाईणं हाइजुओ व आहारो ॥ ५६० ॥ सोमाऽऽह रिसच्चिय सब्वे पाणी हवंति णियमणं । बुद्धिजुयापि हु अण्णे गोब्बरवणिएण दिटुंतो ।। ५६१ ।। बीसउरीए पयडो दत्तो णाइत्तगो अह कहंचि । कालेणं दारिदं अप्पाहिय सरणमन्भिज्जे ॥ ५६२ ।। तंबगकरंडिपट्टगगोयमदीवम्मि कज्ज बुज्झणया । रयणतणचारिगोदसणं तओ गोब्बरे रयणा ॥ ५६३ ।। णाऊणमिणं पच्छा नगरीए एवमाह सब्वत्थ । बुद्धस्थि णस्थि विहवो गहोवि रण्णा सुयं एयं ॥ ५६४ ॥ सद्दाविऊण भणिओ गेण्हह विहवत्ति लक्खगहणं तु । तद्दीवण्णू णिज्जामग वहण भरणं कयव ॥१७७॥ रस्स ।। ५६५ ।। एवं च हसइ लोगो गमणं तह कज्जबुज्झणं चव । गावीदंसण गोमयभरणं वहणाण अच्चत्थं ।। ५६६ ।। आगमण For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्र) दशशास्त्रीय रायदसणमाणीयं किंति ? गोब्बरो देव! । उस्सुकं तुह भंडं पसाय हसणं पवेसणया ।। ५६७ ॥ अग्गीजालण रयणा विक्कण परिभोग: श्रीमतिसोउपदेश पदालोगपूजत्तं । तह णिच्छयओ पत्तं एएणं भव्वसत्तेणं ॥५६८ ॥ पट्टगसरिसी आणा एमाइ इहंपि जोइयव्वं तु । णीसेस णियबुद्धीएँ दमादृष्टान्तः जाणएणं जहाविसयं ।। ५६९ ॥ एरिसयाणं धम्मो दायब्वो परहिउज्जएणेह । अप्पभरित्तमिहरा तमणुचियं ईसराणं व ॥ ५७० ॥ (झुंटणगगो ॥ १७८ ॥ णीया वइणि समीवं पडिस्सयं साहिऊण वुत्तंत । तत्थवि पवित्तिणीए जहाविहिं चेव दिवृत्ति ।। ५७१ ॥ दाणाइभेयभिण्णो कहिओमयदृष्टान्त धम्मो चउन्विहो तीए । कम्मोवसमेण तहा सोमाए परिणओ चेव ।। ५७२ ॥ विहिणाणुव्वयगहणं पालणमप्पत्तियं गुरुजणस्स । छड्डेह इमं धम्मं गुरुमूले तेसिं तहिं णयणं ।। ५७३ ।। कुसलाए चिंतियमिणं संमुहवयणं गुरूण नहु जुत्तं । तत्थवि पवित्तिणीदंसणेणमेयाणवि य बोही ।। ५७४ । गच्छंतेहि य दिटुं वणियगिहे वइससं महाघोरं । हिंसाअणिवित्तीए वियंभियं कुलविणासकर ॥ ५७५ ।। दुस्सीलगारि भियगे लग्गा सुयघायणंति संगारो। पेसणसुएण तग्घायणं तओ केवलागमणं ।। ५७६ ॥ तीएवि तस्स हावहणं सिलाए वहुयाए तीए असिएणं । धूयाए णिवेओ हा किं एयंति बोलो य । ५७७ ।। लोगमिलणम्मि वयणं तएवि किण्णेस Ix घाइया? साऽऽह । हिंसाएँ नियत्ताहं एयऽणिवित्ती अहो पावा ॥ ५७८ ॥ तीए भणिया य गुरू मएवि एग वयं इमं गहियं । ता किं मोत्तवमिणं? ते आहु ण, अच्छउ इमंति ॥५७९॥ एवं विणट्ठवहणो मंदो भियगेण सुट्ट पडियरिओ । धूयादाया वणिओ जीवग-1 भिण्णेहिं विण्णेओ ।। ५८० ॥ महिलाइवसविलोट्टो रण्णो सिट्ठोत्ति पक्खि सक्खिज्जे । गंतूणं ते आणिय विम्हिय विरलंति पुच्छाए | ॥ ५८१ ।। कत्थ छगणम्मि किमिदंसणेण कह एरिसेहि कम्मेहिं । धाडिय धिक्कारहओ दिट्ठो बिइएविय णिसेहो ।। ५८२ ॥ एवं ॥ १७८ ॥ | चिय तिलतेणो ण्हाउल्लो कहवि हट्टसंवट्टो। गोपिल्लियतिलपडिओ तेहि समं तह गओ गेहं ॥ ५८३ ।। जणणीए पक्खोडिय लोइय | For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१७९॥ पडिदिण्ण खद्धमोरंडो । तत्तो तम्मिज्वलग्गो तहा पुणो हरियतिलणियरो ॥ ५८४ ॥ एवं चिय सेसम्मिवि गहिओ जणणीऍ खद्ध मोहसमे १ विघ्ने थणखंडो । पलिछिण्णगोत्ति दिट्ठो णिवारणा णवर तइएवि ॥ ५८५ ॥ एवं घोडगघडिया दुस्सीला मोहओ महापावा । विणि-10 समित्यादि वाइयभत्तारा परिट्ठविती तयं घोरा ।। ५८६ ॥ देवयजोइयपिडिया गलंतवसरुहिर भरियथणवट्टा । अंधा पलायमाणी णियत्तमाणी य सज्जक्खा ॥ ५८७ ॥ डिभगवंदपरिगया खिसिज्जंती जणेण रोवंती। दिट्ठा धिज्जाइगिणि य एवं च चउत्थपडिसेहो दृष्टान्ताः ॥ ५८८ ॥ एवमसंतोसाओ विवष्णवहणो कहिंचि उत्तिण्णो । मच्छाहाराजोगा अच्चतं वाहिपरिभूओ ।। ५८९ ॥ आयणियणिहि सुयबलिदाणाओ तप्फलो पउत्तविही । अफलो तदण्ण गहिओ विण्णाओ णयरराईहिं ।।५९० ॥ तत्तो उच्छुब्भंतो बहुजणधिक्कारिओ वसणहीणो। दिट्ठो कोई दरिदो पडिसेहो पंचमम्मि तहा ।। ५९१ ॥ पत्ताई तओ एवं संविग्गाई पडिस्सयसमीवं । तत्थवि य वइससमिणं दिढे एएहिं सहसत्ति ।।५९२।। राईए भुंजतो मंडगवाइंगणेहिं कोइ णरो । विच्छं छोण मुहे अदिट्ठगं विद्धओ तेण ॥५९३।। विंतर जाओ विसाओ उस्सूणमुहो महावसणपत्तो । तेगिच्छगपरियरिओ पउत्तचित्तोसहविहाणो ॥ ५९४ ।। उव्वेलंतो बहुसो सगग्गयं विरसमारसंतो य । हा दुट्टमिणं पावं जाओ छम्मि पडिसेहो ॥ ५९५ ॥ एसो य मए गहिओ पायं धम्मो तओ य ते आहु । पालेज्जसि जत्तेणं पेच्छामो तहय तं वइणिं ॥५९६।। गमणं चिइवंदण गणिणि साहणं तीऍ उचियपडिवत्ती । दसण तोसो धम्मकह पुच्छणा कहणमेवं च ॥५९७॥ को धम्मो? जीवदया, किं सोक्खमरोग्गया उ जीवस्स । को हो ? सम्भावो, किं पंडिच्चं? परिच्छेओ ॥५९८।। किं विसमं? कज्जगती, किं लट्ठ ? जंजणो गुणग्गाही। किं सुहगेझं? सुयणो, किं दुग्गेझं? खलो लोओ॥५९१।। एमादि ॥१७९॥ | पुच्छवागरण तो तहा भद्दयाणि जायाणि । जह तीए धम्मविग्धं पायं सुविणेऽवि ण करेंति ॥ ६०० ।। ३ । गुणठाणगपरिणामे संते For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit उपदेश पदेषु ॥१८॥ जीवाण सयलकल्लाणा । इय मग्गगामिभावा परिणाम सुहावहा होंति ॥ ६०१॥ गुणठाणगपरिणामे महब्बए तु अहिगिच्च 151 मोहसमे णायाई । समिईगुत्तिगयाई एयाई हवंतिणेताई ।। ६०२ ॥ इरियासामयाइयाओ समितीओ पंच होंति नायव्वा । पवियारेगसराओ विघ्ने गुत्तीओऽतो परं वोच्छं ।। ६०३ ।। मणगुत्तिमाइयाओ गुत्तीओ तिन्नि समयकेऊहिं । पवियारेतररूवा निहिट्ठाओ जओ भणिय समित्यादि ॥६०४॥ समिओ नियमा गुत्तो गुत्तो समियत्तणम्मि भइयव्यो । कुसलवइमुदीरंतो जं वइगुत्तोऽपि समिओऽवि ॥६०५।। पुचि सरूव पच्छा वाघायविवज्जयाओ एयाओ । कज्जे उवउत्तस्साणंतरजोगे य सुद्धाउ ।।६०६।। एयासिं आहरणा निद्दिट्ठा एत्थ पुन्वसूरीहि । दृष्टान्ताः वरदत्तसाहुमादी समासतो ते पवक्खामि ।। ६०७ ।। वरदत्तसाहु इरियासमितो सक्कस्स कहवि उवओगो । देवसभाएं पसंसा मिच्छद्दिहिस्सऽसद्दहणं ।। ६०८ ॥ आगम वियारपंथे मच्छियमंडुकिया ण पुरउत्ति । पच्छा य गयविउथ्वण वालो सिग्घो अवेहित्ति | ।। ६०९॥ अक्खोभिरियालोयण गमणमसंभंतगं तहच्चेव । गयगहणुक्खिवणं पाडणं च कायस्स सयराहं ।। ६१० ॥ण उ भावस्सीसिपि हु मिच्छादुकड जियाण पीडत्ति । अविउठाणं एवं आभोगे देवतोसो उ ॥ ६११ ॥ संहरण रूवर्दसण वरदाणमणिच्छ चत्तसंगोत्ति । गमणालोयण विम्हय जोगतरसंपवित्ती य।।६१२॥शसंगय साहु काराणिय रोहगे भिक्खणिग्गमण पुच्छा । कत्तो तुब्भे? जगराओ, कोऽभिप्पाओ! णवी जाणे ॥६१३॥ तत्थ वसंताणं कह? अव्वावारा उ किमिह जंपति? । एत्थवि अव्वावारो, किं साहणमाणमेत्थंपि ॥ ६१४ ॥ सुबइ दीसइ किंची सव्वं साहिज्जए न सावज्ज । किं वसहेत्थ? गिलाणो, किमिहाडह ?, अपडिबंधाओ ॥३१५।। चारग तुम्भे? समणा, को जाणइ ? अप्पसक्खिओ धम्मो । ण हु एत्थं छुट्टिज्जइ, जं जाणह तं करेज्जाहि ॥६१६॥ कह सत्ति? माणुसुत्तिमयसासणा, को णु एस? सव्वण्णू । एमाइ अणुचियं सइ भासासमिओ ण भासेइ ।। ६१७ ॥२। वसुदेवपुव्वजम्मे I सससस ॥१ For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१८१॥ आहरणं एसणाए समिईए । मगहा गंदिग्गामे गोयमधिज्जाइ चक्कयरो ॥ ६१८ ॥ तस्स य धारिणि भज्जा गम्भत्ताए कुओ उl सिमित्यादि आहूओ । धिज्जाइ मओ छम्मास गम्भ धिज्जाइणी जाए ॥ ६१९ । माउलके संवड्डण कम्मकरण वियारणा य लोएणं । णत्थि दृष्टान्ताः | तुह एत्थ किंची तो बेई माउलो तमिह ॥६२०॥ मा सुण लोगस्स तुमं धूयाओ तिण्णि तासि जेट्ठयरं । दाहामि करे कम्मं पकओ पत्तो य वीवाहो ॥ ६२१ ॥ सा णिच्छए विसण्णो माउलओ वेइ बीय दाहामि । सावि य तहेव णिच्छइ तइयत्ती णेच्छई सावि ।। ६२२ ।। णिविण्ण णंदिवद्धणआयरियाणं सगासि णिक्खंतो । जाओ छट्ठक्खमओ गेण्हइ यमभिग्गहमिमं तु ।। ६२३ ।। बाल| गिलाणाईणं वेयावच्चं मए उ कायव्यं । तं कुणइ तिव्वसड्डो खायजसो सक्कगुणकित्ती ।। ६२४ ।। अस्सद्दहणा देवस्स आगमो कुणइ दो समणरूवे । एगु गिलाणो अडवीएँ चिट्ठई अइगओ बिइओ ॥ ६२५ । बेइ गिलाणो पडिओ वेयावच्चं तु सद्दहे जो उ । सो उद्वेज्जउ खिप्पं सुयं च तं गंदिसेणेण।।३२६।। छ8ोववासपारणमाणीयं कवल घेत्तुकामेणं । तं सुयमेत्तं रहसुट्टिओ य भण केण कज्जंति ॥६२७॥पाणगदव्वंति तहिं जंणत्थी बेइ तेण कज्जति । णिग्गय हिंडते कुणयणेसणं णवि य पेल्लेइ।।३२८॥इय एकवार बीयं च हिंडिओ लद्ध है तइयवारम्मि । अणुकंपा तूरंतो गओ य सो तस्सगासं तु ॥ ६२९ ॥ खरफरुसणिट्ठरोहँ अकोसइ से गिलाणओ रुट्ठी । हे मंदभग्ग! फुकिय ! तूससि ते णाममेत्तेण ॥ ६३० ।। साहुवगारित्ति अहं णामड्ढो तह समुद्दिसिउमाओ। एयाएँ अवत्थाए तं अच्छसि भत्त| लोहिल्लो ॥६३१।। अमयमिव मण्णमाणो तं फरुसगिरं तु सो ससंभंतो। चरणगओ खामेई धुवइ य तं समललितंति ।। ६३२ ॥5॥१८१।। उढेह वयामोत्ती तह काहामी जहा हु अचिरेणं । होहिह णिरुया तुब्भे बेई ण तरामि गंतुं जे ॥६३३॥ आरुह मे पिट्ठीए आरूढो For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१८२।। CAMERARMA तो तहिं पहारं च । परमासुइदुग्गंधं मुयई पढाएँ केसयरं ।। ६३४ ॥ वह गिरं धिय मुंडिय: वेगविहाओ कउंत्ति दुक्खविओ। इइ समित्यादि बहुविहमकोसइ पए पए सोऽवि भगवं तु ।। ६३५ ॥ण गणइ तं फरुसगिरं ण य तं गरहा दरहिगंध त। चंदणमिव मण्णंतोलापु दृष्टान्ता. मिच्छा मे दुक्कडं भणइ ॥६३६॥ चिन्तेइ किं करेमी ? कह णु समाही भवेज्ज साहुस्स' । इय बहुविहप्पगारंणवि तिण्णो जाव खोभेउं | ॥ ६३७ ॥ ताहे अभित्थुणित्ता गओ तओ आगओ य इयरो उ । आलोइए गुरूहि धण्णोत्ति तहा समणुसिट्ठो ॥ ६३८ ॥ जह | तेणमेसणा णो भिण्णा इय एसणाएँ जइयव्वं । सव्वेण सया अद्दीणभावओ सुत्तजोएणं ॥६३९॥३॥धिज्जाइ सोमिलज्जो आदाणाइसमिइएँ उवउत्तो । गुरुगमणत्थं उग्गाहणा उ गमणे णियत्तणया ॥ ६४० ॥ तह मुयण सम्म चोयण किमत्थ सप्पोत्ति एव पडिभणिओ । संविग्गो हाऽजुत्तं भणियंति सुरीएऽणुग्गहिओ ॥६४१।। तह सप्पदंसणेणं सुट्ठयर तिव्वसद्धसंपण्णो । दंडगगहणिक्खेवे अभिग्गही सव्वगच्छम्मि ॥६४२॥ अण्णोण्णागमणिच्चं अब्भुट्ठाणाइजोगपरितुट्ठो । जत्तेणं हेडुवरि पमज्जणाए समुज्जुत्तो।।६४३।। जावज्जीवं एवं गेलण्णम्मिवि अपरिवडियभावो । आराहगो इमीए तिगरणसुद्धेण भावेण ॥ ६४४ ॥४॥ धम्मरुई णामेणं खुड्डो चरिमसमिइऍ संपण्णो । कहवि ण पेहिय थंडिल ण काइयं वोसिरे राई ॥६४५ ॥ जाया य देहपीडा अणुकंपा देवयाए उप्पण्णा । तीएँ अकाल पहायं तहा कयं जह समुज्जोओ ॥६४६।। वोसिरणा अंधारं हंत किमेयंति देवउवओगो । जाणण मिच्छाउक्कड अहो पमत्तो| ऽम्हि संवेगो ॥ ६४७ ।। अण्णोऽविय धम्मरुई खमगो पारणग कडुयतुंबम्मि । गुरुवारण नायालोयणाएँ भणिओ परिहवसु ॥३४८। आवागथंडिलपिपीलियाण मरणमुवलब्भ तहेसा । करुणाए सिद्ध वियडण भोत्तूण मओ महासत्तो॥६४९॥५।मणगुत्तीए G१८२॥ कोई साहू झाणम्मि णिच्चलमईओ । सक्कपसंसा असहहाण देवागमो तत्थ ॥ ६५० ॥ दिट्ठो उस्सग्गठिओ विउब्वियं जणणि For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१८३॥ परावृत्तिः जणगरूवं तु । करुणं च संपलतो अणगहा तत्थ सो तेसिं ॥६५१।। पच्छा भज्जारूवं अण्णपसत्तं समतसिंगारं । भूओ य अहिलसंत ऊसुगमच्चंतणेहजुय।।६५२।। तहवि ण मणगुत्ताएँ चलणं णियरूव देव वंदणया। थुणणं लोगपसंसा एवंपिण चित्तभेओ उ॥६५३।। भावस्या | वयगुत्तीए साहू सण्णायगठाण गच्छए दट्ठ । चोरग्गह सेणावइ विमोइउं भणइ मा साह ॥ ६५४ ॥ चलिया य जण्णयत्ता सण्णाय| गमिलणमंतरा चेव । मायपियभायमाई सोवि णियत्तो समं तेहिं ।। ६५५ ।। तेणेहिं गहिय मुसिया मुक्का ते चिंति सो इमो साहू ।। गुरुकुल | अम्हेहिं गहियमुको तो बेई अम्मगा तस्स ॥६५६ ॥ तुब्भेहि गहियमुको ? आमं, आणेह बेड़ तो छुरियं । जा छिदमि थणं णणु कि वास: ते सेणावई भणइ ।।६५७।। दुज्जम्मजायमेसो दिट्ठ। तुज्झे तहावि नवि सिटुं । कह पुत्तोत्ति अह ममं किह णवि सिट्ठति धम्मकहा ॥६५८|| आउट्टो उवसंतो मुक्को मझपि तंसि माइति । सव्वं समप्पियं से वइगुत्ती एव कायया ॥६५९|| काइयगुत्ताहरणं अद्धा| णपवण्णगो महासाहू । आवासियम्मि सत्थे ण लहइ तहिं थंडिलं किंचि ॥६६०।। लद्धं चऽगेण कहवी एगो पाओ जहिं पइट्ठाइ । (ता) तहिं ठिएगपाओ सब्य राई तहिं थद्धो॥६६।। ण य अत्थंडिलभोगो तेण को तत्थ धीरपुरिसणं । सकपसंसा देवागमो य तह भेसणमखोहो ॥ ६६२ ॥ सीहग्गह संपाडणमचलणभंगाण दुकडं सम्मं । सुरवंदणा पसंसण अईव लोगेणमुक्करिसो ॥ ६६३ ॥ एवंविहो उ भावो गुणठाणे हंदि चरणरूवम्मि । होति विसिट्ठखउवसमजोगओ भव्धसत्ताणं ॥ ६६४ ॥ देहाऽसामथम्मिवि आसयसुद्धी ण ओघओ अन्ना । चरणम्मि सुपुरिसो ण हि तुच्छोवि अकज्जमायरति ।। ६६५ ॥ दव्वादिया न पायं सोहणभाव- H॥१८३ ॥ हस्स होंति विग्धकरा । बझकिरियाओ य तहा हवंति लोगवि सिद्धमिणं ॥ ६६६ ॥ दइयाकण्णुप्पलताडणं व सुहडस्स णिन्बुईपटू For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उपदेश पदेषु गुप्ति ॥ १८४ ॥ कुणइ । पहुआणाए संपत्थियस्स कंडंपि लग्गंतं ।। ६६७ ।। जह चेव सदेसम्मी तह परदेसेवि हंदि धीराणं । सत्तं न चलइ समुव| त्थियम्मि कज्जम्मि पुरिसाणं ॥ ६६८ ॥ कालोऽवि य दुभिक्खाइलक्षणो ण खलु दाणसूराणं । भेदइ आसयरयणं अवि अहिंग- दृष्टान्ताः यरं विसोहेइ ॥ ६६९ ।। एवं चिय भव्वस्सवि चरित्तिणो णहि महाणुभावस्स । सुहसामायारिगओ भावो परियत्तइ भावस्या कयाइ ॥ ६७० ॥ भोयणरसण्णुणोऽणुवयस्स णोऽसाउभोइणोवि तहा । साउम्मि पक्खवाओ किरियाविण जायइ कयाइ ॥६७१।। परावृत्तिः | एवं सज्झायाइसु तेसिमजोगोवि कहवि चरणवओ। णो पक्खवायकिरिया उ अण्णहा संपयहिति ॥ ६७२ ॥ तम्हा उ दुस्समा गुरुकुल एवि चरित्तिणोऽसग्गहाइपरिहीणा । पण्णवणिज्जा सद्धा खताइजुया य विष्णेया ॥६७३।। णाणम्मि दंसणम्मि य सइ चरणं जं तओ वासः | ण एयम्मि । णियमा असग्गहाई हवंति भववद्धणा घोरा ॥६७४।। सज्झायाइसु जत्तो चरणविसुद्धत्थमेव एयाणं । सत्तीए संपयट्टा | ण उ लोइयवत्थुविसओ उ॥६७५।। तत्तो उ पइदिण चिय सण्णाणविवद्धणाएँ एएसि । कल्लाणपरंपरओ गुरुलाघवभावणाणाओ॥६७६।। | एयमिह अयाणता असग्गहा तुच्छबज्झजोगम्मि । णिरया पहाणजोगं चयंति गुरुकम्मदोसेणं ॥ ६७७ ॥ सुद्धंछाइसु जत्तो गुरुकु|लचागाइणेह विष्णेओ । सबरससरक्खपिच्छत्थघायपायाछिवण तुल्ला।।६७८॥णहि एयम्मिवि न गुणो अस्थि विहाणेण कीरमाणम्मि। तं पुण गुरुतरगुणभावसंगयं होइ सव्वत्थ ॥ ६७९ ॥ तित्थगराणा मूलं णियमा धम्मस्स तीऍ वाघाए। किं धम्मो? किमधम्मो ? | णवं मूढा वियारंति ॥६८०॥ आयारपढमसुत्ते सुर्यमि इच्चाइलक्खणे भणिओ। गुरुकुलवासो सक्खा अइणिउणं मूलगुणभूओ॥६८१॥ णाणस्स होइ भागी थिरतरतो दंतणे चरित्ते य । धण्णा आवकहाए गुरुकुलवास ण मुंचति ॥६८२।। ता तस्स परिचाया सुंदंछाई18॥ १८४ ॥ For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपद पद AAAAAAACe सयमेव बुद्धिमया । आलोएयवमिण कीरत के गुण कुणई? ॥ ६८३ ॥ उववासोवि हु एक्कासणस्स चाया ण सुंदरो पार्य । णि- उपवासस्य | चमिणं उववासो णमित्तिगमो जओ भणिआ ॥६८४॥ अहो निच्चं तवोकम्मादिसुत्तओ हंदि एवमेयंति । पडिवज्जेयव्वं खलु पन्या नैमित्तिदिसु तबिहाणाओ ॥६८५॥ आउत्ताईएसुवि आउक्काइयाइजोगसुज्झवण । पवयणखिसा एयम्स वज्जणं चेव चितमियं ॥६८६॥ कता इच्चाइसु गुरुलाघवणाणे जायम्मि तत्तओ चेव । भवणिव्या जीवो सज्झायाई समायरई ॥ ६८७ ।। गंभीरभावणाणा सद्धाइसओ अकरण नियमः तओ य सकिरिया । एसा जिणहिं भणिआ संजमाकरिया चरणरूवा ।। ६८८ ।। सम्म अण्णायगुण सुदररयणम्मि होइ जा सद्धा ।। | तत्तोऽणतगुणा खलु विण्णायगुणम्मि बोद्धव्या ॥ ६८९ ॥ तीएवि तम्मि जत्तो जायइ परिपालणाइविसओत्ति । अचंतभावसारो यादि | अइसयओ भावणीयमिणं ॥६९०॥ एवं सज्झायाइसु णिचं तह पक्खवायकिरियाहि । सइ सुहभावा जायइ विसिट्टकम्मक्खओ णियमा दृष्टान्ताः ॥६९१। तह जह ण पुणो बंधइ पायाणायारकारणं तमिह । तत्तो विमुज्झमाणो मुज्झइ जीवो धुयकिलेसो ।। ६९२॥ इत्तो अक-18 रणनियमो अन्नहिवि वण्णिओ ससत्थम्मि । सुहभावविसेसाओ न चेवमेसो न जुत्तोत्ति ॥ ६९३ ॥ जे अत्थओ अभिण्णं अण्णत्था सद्दओऽवि तह चेव । तम्मि पओसो मोहो विसेसओ जिणमयठियाणं ॥ ६९४ ।। सव्वप्पवायमूलं दुवालसंग जओ समक्खायं । रयणागरतुल्लं खलु तो सव्वं सुंदरं तम्मि ॥ ६९५ ॥ पावे अकरणनियमो पायं परतन्निवित्तिकरणाओ। नेओ य गांठभए भुज्जो तदकरणरूवो उ ॥ ६९६ ॥ णिवसंति सेट्टिपमुहाण णायमेत्थं मुया उ चत्तारि । रइबुद्धिरिद्धिगुणसुंदरीउ परिसुद्धभावाओ ॥६९७।। साकेए रायसुया सड्डी रतिसुंदरित्ति रूववई । नंदणगसामिणोढा सुयाएँ रागो उ कुरुवतिणो ॥ ६९८ ।। जायण दाणा विग्गह । ॥ १८५॥ गहरागनिवेयणम्मि संविग्गा । तन्निबत्तणचिंतण चाउम्मासम्मि वयकहणा ॥ ६९९ ॥ पडिवालणं तु रण्णो तीए तह देसणा अस For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie उपदेश पदेषु ॥१८६॥ कारो । पुण्णमि य णियबंधे फलवमणं तहवि न विरागो ।। ७०० ॥ किं एत्थ रागजणणं अच्छीण? पयावितो न मोल्लंति । संवेगा उपवासस्य | तद्दाणं विम्हियरनो विरागो य ॥ ७०१॥ गंभीरदेसणाओ उभयहियमिणंति पावरक्खा य । रनो बोही तो सो करेमि किं ? चयसु | नैमित्तिपरदारं ।। ७०२ ।। वयणं तोसा अकरणणियमो एतीऍ एत्थ वत्थुम्मि । रन्नो सोगा उस्सग्ग देवया अच्छि णिव थेज्जं ॥ ७०३ ॥ कता एत्थेव मंतिध्या एरिसिया बुद्धिसुन्दरी नाम। पासायतले दिट्टा रन्ना अज्झोववनोय।।७०४॥चेडीपेस अणिच्छे मंतिग्गह मंतभेयकव-18 अकरण डेण । पत्तियण मोक्ख तब्बंदि धरण कहणमि संवेगी ।। ७०५॥ तन्निबत्तणचिंता देसण निबंध तकहा चेव । नियविद्धरूव नियमः मयणासुचिभरियसमप्पणे साऽहं ॥ ७०६ ॥ निवतोस एरिसच्चिय छडिहिसि न जातु भंगखिवणा उ । साहु कयं निवहिरिया रतिसुन्द यादि पावयरा हंत संवेगो ।। ७०७ ।। देसण निव संघोही तुट्ठो परदारचागहरिसाओ । अकरणणियमो एयमि मोयणा तहय सकारो दृष्टान्ताः ॥ ७०८ ।। एत्थेव सेट्ठिधृया एरिसया रिद्धिसुंदरी नवरं । परिणीया सड्डेणं धम्मेणं तामलित्तीए । ७०९ ॥ परतीर वहण भंगे अण्णागमदिट्ठराग धम्मस्स । खवो भंगे जीवण मिलणा कहणंमि संवेगो ।। ७१० ॥ अन्नत्थ गमण ठाणं इयरस्सवि मच्छभत्तओ वाही । देवा तत्थागमणं दसण पतिकहणमाणयणं ॥७१।। आसासण वेज्जाणय पुच्छणा किरिय सम्म पडियरणं । इयरस्स हिरिय देसण संवेगातो ततो बोही ॥ ७१२ ॥ पत्रवण किं करेमी ? परदारच्चायमेव परमधिती । एत्तो अकरणणियमो एयंसि वणागमागमणं ।। ७१३ ।। एत्थेब एरिसिच्चिय गुणसुंदरिसनिया पुरोहसुया । तप्पुरबहु रागोढा सावस्थि पुरोहियसुएण ॥ ७१४ ।। बडु सबरासय तग्गम निवेयणा धाडिगहियकहणाओ । संवेग बोहणिच्छा निबंधे वय कहक्खेवो ॥७१५।। भाववियाणण कित्तिमरोगकरण देसणा य अप्पगया । बडुनिव्वेय परायण अभयदाणेण परिओसो ।। ७१६।। अहिदंसे जीवावण कहणा संवेग किं करेमित्ति। १८६ ॥ For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'उपदेश पदेपु. ॥१८७॥ चय परदारं चत्तं हंत कयत्थोऽसि पणिहाणा ॥ ७१७॥ एत्थं अकरणणियमो जाओ संसारबीयडहणोत्ति । उवरिपि तप्पभावा गुण | तप्पालण धम्मबुद्धीए ॥७१८|| एएण पगारेणं परपुरिसावणम्मि काऊण । अकरणणियम एया णियमेण गया य सुरलोयं ॥७१९।।। स्थानक तत्तो चुयाउ चंपापुरीऍ जायाओ सेट्टिधृयाओ । रूबनतीउ तारासिरिविणयदेविनामाओ ।। ७२० ।। परिणीया जम्मंतर जिणपार- परिणामः णदाण चेव चुयएणं । विणयंधरनामेणं स्ववया इब्भपुत्तेणं ॥ ७२१ ॥ गयसीसे वेयाली दाणरओ दिनभोयणो नियमा । श्रीनेमिबिंदुज्जाणे जिणदंसणाओ सद्धा य दाणं च ।। ७२२ ।। घुटुं च अहो दाणं दिव्याणि य आहयाणि तूराणि । देवा य सन्निवतिया चरित्रं. वसुहारा चेव बुट्ठा य ।। ७२३ ।। सद्धातिसया दमण विणिओगो तीऍ साबगनं च। मुरलोग गमण भोगा चवणं जाओ य सेट्ठिसुओ ।। ७२४ ।। तेणोढा जणवाओ रूववती धम्मबुद्धि निवरागो। णिवकवडपीतिकारण गाहाएँ लिहावर्ण चेव ।। ७२५ ॥ पसियच्छि! रतिवियक्खणि! अज्जमभब्धस्स तुह विओयम्मि । सा राई चउजामा जामसहस्सं व बोलीणा ॥७२६।। भृज्जग्गह तत्तो। देवी चेडिवासपुडयम्मि किल दिट्ठा । कइयवकोवो पउरम्मि पेसणा लिविपरिक्षणया ।। ७२७ ।। बहुसो विमरिसियालोयणा य | मिलियत्ति तह निवेयणया । इय दोसगारि एसो णायं तुमहिं एयति ॥ ७२८ ।। गिहमुद्दा पत्तिग्गह कुरूवसंका जिणागमे पुच्छा। ४ कहणं संवेगंमी चरणं सबेसि पवज्जा ।।७२९॥ देसविरइगुणठाणे अकरणीणयमस्स एव सब्भावो । सबविरइगुणठाणे विसिद्भुतरओ इमो होइ ।। ७३० । सो पहाणतरओ, आसयभेओ अओ य एसोत्ति । एत्तो च्चिय सेढीए णेओ सपत्थवी एसो ।। ७३१ ॥ एतो | उ बीयरागो ण किंचिवि करेइ गरहणिज्जं तु । ता तत्तग्गइखवणाइकप्पमो एस विष्णेओ ॥ ७३२ ॥ तह भावसंजयाणं सुब्बइ इह | 18॥१८७॥ सुहपरंपरा सिद्धी । सावि र जुज्जइ एवं ण अण्णहा चितणीयमिणं ।।७३३।। सइ गरहणिज्जवावारवीयभूयम्मि हंदि कम्मम्मि ।।दा न For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie उपदेश पदेषु गुण स्थानक परिणामः श्रीनेमिचरित्रं. ११८८॥ खविए पुणो य तस्साकरणम्मी सुहपरंपरी ।। ७३४ ॥ आहरणा पुण एत्थं बहवे उसमाइया पसिद्धत्ति । कालावओगओ पुण एत्तो एकं पवक्खामि ।। ७३५ ।। एयम्मिवि कालम्मी सिद्धिफलं भावसंजयाणं तु । तारिसयंपि हु णियमा बज्झाणुट्ठाणमो णेयं ॥ ७३६ ॥ संखो कलावई तह आहरणं एत्थ मिहुणयं णेयं । चरमद्धायऽवितहचरणजोगओ सति सुहं सिढे ॥ ७३७ ॥ संखो नामेण निवो कलावती तस्स भारिया इट्ठा । तीए भातिणियंगयपेसणमच्चंगामिति रन्नो ।। ७३८ ॥ गुम्विणि विसज्जगाणं हत्थे | देवंगमाइयाणं च । पढमं च देविदसण साहण तह तस्स एएत्ति ।। ७३९ ॥ तन्नेहा सयगहणं एए अहमेव तस्स अप्पिस्सं । परिहण| तोसा सहिसंनिहाण तह भासणं चित्तं ।। ७४० ।। एएहि दिट्ठहिं सोच्चिय दिह्रोत्ति परिहिएहिं तु । सो च्चिय ओसत्तो सहि! एमादि अतीव नेहजुयं ॥७४१।। वीसत्थभासियाणं सवणत्थं आगएण रन्ना उ । सयमेव सुयं एवं कोवो अवियारणा चेव ॥७४२।। |एत्थ य इमं निमिर्त अन्नमिणं मग्गियंपि नो दिनं । अमेण नियपिया हओत्ति गयसेट्टिपुत्तेण ॥ ७४३ ॥ पट्ठवणमागयार्ण चंडालीणं च दाणमाणाए । रमम्मि बाहुछेयं कुणहत्ति इमीएँ पावाए ।। ७४४ ॥ करणं वाहाणयणं तह दुक्खा पसवणं णईतीरे । डिंभपलोट्टण णइपइ मुहधरणं कहवि किल्छण ॥ ७४५ ॥ देवयकंदण सच्चाहिठाण तह बाहुभावओ चरणं । तावसकुमारदसण गुरुक हण तवोवणाणयणं ।। ७४६ ।। रणो अंगयदरिसण णामे संका य सेट्टि पुच्छणया । चिट्ठति दसणे णाण सोग मरणत्थणिग्गमणं ६॥ ७४७ ॥ बहि चईहर अभि अमियतेय सुनिमित्तजोगओ धरणं । कहणा ण इमोवाओ एयम्मी पत्थुए णायं ॥ ७४८ ॥ गंगातीरे &ासोत्तिय चंडालाइ रत्थाइ जरचीरे । धणेवि छित्तगट्टयपरंपराए महादोसो ॥ ७४९ ।। तस्स परिवज्जणत्थं णिज्जामगपुच्छ उच्छु-। दीवम्मि । कहिए णेयावणमच्छणा य तह उच्छवित्तीए ॥ ७५० ॥ कालेण भिण्णवाहण वाणियगमणमुच्छुरसमण्णा । पिंडागारा N॥१८८॥ For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु नेमिचरित्रे यतनायाः स्वरूपं & महिमा च ।।१८९॥ बहुसो जायाणेगसु ठाणेसु ॥ ७५१ ॥ इक्खाहारा सोत्तिय मुहदुक्रवणयम्मि सनपासणय । इक्खुफलत्ति य भक्खण गवेसणा चेव जत्तेण ॥७५२।। एवं नियसन्नायपि भक्षण कालेण देसणं तस्स । पुच्छण साहण पीती ततो य आहार बोल्लंति ॥७५३।। भक्खामि णिच्चमुच्छु किं ण लभसि तप्फले ?ण होंतित्ति । दसैमि अहं भद्दत्ति दसणे हंत सणेसा ।। ७५४ ॥ कस्स? ममं चिय, किं णो अच्छाद्दा) कालेण कढिणभावाओ । सच्चं ण अण्णहयं विण्णासणओ तहाणाणं ॥७५५।। पच्छायावो बोहणमेसा लोगट्ठिई ण तत्तमिणं । आणाऽऽयारो सेयं तत्तो सद्धी उ जीवस्स ।। ७५६ ॥ णियदेसागम कहणं पायच्छिनकरणं च जत्तेणं । सवणं च तत्तनाणं | आसवणमुचियजोगस्स ।। ७५७ ॥ ता जह सो असुइभया मोहाओ असुइभक्खणं पत्तो । तह दुक्खभया तंपि हु मा दुक्खोहं समादियसु ।।७५८ ।। सत्थभणिएण विहिणा कुणस तुम एत्थ दक्खपडियारं । अप्पवहो पुण सावग!, पडिसिद्धो सब्बसन्थसु ।।७५९।। अप्पपरोभयभेया तिविहो खलु वणिो वहो समए । तेणाकालम्मी इओऽपि दोसोत्ति एसाणा ।। ७६० ॥ दोसाओ य णराणं विष्णेयं सब्वमेव बसणंति । जे पावफलं दक्खं ता अलमेएण पावेण ॥७६।। अण्णं च निमित्ताओ मुणेमि गंतिय तुहं वसणं । अवि अब्भुदयफलमिणं ता चिट्ठह जाव अजंति ॥ ७६२ ।। एवंति अब्भुवगयं ठिओ य णयराओ बाहिरे राया। धम्मकहसवण तोसो सुवणं तत्थेव विहिपुव्वं ॥ ७६३ ॥ सुमिणो य चरमजामे कप्पलया फलबई तहा छिण्णा । लग्गा विसिट्टफलया रूवेणहिगा य |जायत्ति ।। ७६४ ॥ मंगलपाहाउयसबोहण सहरिसो तओ राया। विहिपुध्वं गुरुमूलं गओ तहा साहियमिणं तु ।। ७६५ ॥ गुरुणो जहत्थ वीणण रणो तोसो गवेसणुवलद्धी । सव्यस्स जहावत्तस्स हरिसलज्जाउ तो रण्णो ॥ ७६६ ॥ मिलणं गुरुबहुमाणो धम्मकहा बोहि सावगत्तं च । बंभवय जावजी उभयाणुगयं दुवेण्डंपि ॥७३७।। अहियं च धम्मचरणं चेईहरकारणं तहा विहिणा। %AEROCCAR ॥१८९॥ For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु. CHEKHA ॥१९॥ CREC4%A4 पुत्तविवद्धण ठावण णिक्खमणं दाण विहिपुव्वं ।। ७६८ ॥ चरमद्धादोसाओ संघयणाइविरहेऽवि भावणं । संपुण्णधम्मपालणम- नामचारत्र णुदियह चेव जयणाए ॥ ७६० ।। जयणा उ धम्मजणणी जयणा धम्मस्स पालणी चेव । तब्बुड्डिकरी जयणा एगंतसुहावहार ‘स्वरूपं जयणा ॥ ७७० ॥ जयणाए वट्टमाणो जीवो सम्मत्तणाणचरणाणं । सद्धाबोहासेवणभावेणाराहओ भणिओ ।। ७७१ ॥ जीए। महिमा च बहुयतरासप्पवित्तिविणिवित्तिलक्षणं वत्थु । सिज्झति चिट्ठाएँ जओ सा जयणा णाणाइविसयम्मि ॥ ७७२ ॥ जे साणुबंधवं एवं खलु होति निरणुबंधंति । एवमइंदियमेवं नासवण्णू वियाणाति ॥७७३।। तब्बयणा गीओऽवि हु धूमेणऽग्गिव सुहुमचिंधेहिं । मणमाइएहिं जाणति सति उवउत्तो महापनो ।। ७७४ ।। जह जोइसिओ कालं सम्मं वाहिविगमं च वेज्जोत्ति । जाणति सत्थाओ तहा एसो जयणाइविसयं तु ॥ ७७५ ॥ तिविहनिमित्ता उबओगसुद्धिओऽणेसणिज्जविन्नाणं । जह जायति परिसुद्धं तहेव एत्थंपि |विनेयं ।। ७७६ ॥ सुत्ने तह पडिबंधा चरणवओ. न खलु दुल्लहं एय। नवि छलणायवि दोसो एवं परिणाममुद्धीए ॥ ७७७ ||* जयणाविवज्जया पुण विवज्जओ नियमओ उ तिहंपि । तित्थगराणाऽसद्धाणओ तहा पयडमेयं तु ॥ ७७८ ॥ जे दव्यखेत्त| कालाइसंगयं भगवया अणुहाणं । भणिय भावविसुद्धं निफज्जइ जह फलं तह उ॥ ७७९ ॥ नवि किंचिवि अणुणातं पडिसिद्धं वावि जिणवरिंदेहिं । तित्थगराणं आणा कज्जे सच्चेण होयव्वं ॥ ७८०॥ मण्यत्तं जिणवयणं च दुल्लहं भावपरिणतीए उ। जहा | एसा निष्फज्जति तह जइयव्वं पयत्तेणं ।। ७८१ ॥ उस्सग्गववायाणं जहट्टियसरूवजाणणे जत्तो । कायव्यो बुद्धिमया मुत्तणुसारेण का॥१९॥ णयणिउणं ॥ ७८२ ।। दोसा जेण निरुभति जेण खिज्जति पुव्वकम्माई । सो खलु मोक्खोवाओ रोगावत्थासु समर्णव ।। ७८३ ।। Pउन्नयमवेक्ख इयरस्स पसिद्धी उन्नयस्स इयराओ । इय अन्नोऽन्नपसिद्धा उस्मग्गववायमो तुल्ला ॥ ७८४ ॥ दव्वादिएहिं जुनस्मु For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आज्ञायोगः काले गजादि दृष्टान्ताः उपदेश लस्सग्गो जदुचियं अणुट्ठाण । रहियस्स तमववाओ उचियं चियरस्स न उ तस्स ॥ ७८५ ॥ जह खलु सुद्धो भावो आणाजोगेण पदेषु साणुबंधोत्ति । जायइ तह जइयर्च सव्वाबत्थासु दुगमेयं ।। ७८६ ।। जं आणाए बहुगं जह तं सिज्झइ तहेत्थ कायव्वं । ण उजे दूतबिवरीयं लोगमयंऽपेस परमत्थो।।७८७॥ कयमेत्थ पसंगणं सभावओ पालिऊण तह धम्मं । पायं संपृण्णं चियण दबओ कालदोसाओ ॥१९॥ ॥ ७८८ ॥ काऊण कालधम्म परिसुद्धाचारपक्खवाएणं । उबवण्णो सुरलोए तओ चुओ पोयणपुरम्मि ।। ७८० ।। रायसुओ उव- संतो पायं पावविणिवित्तवावारो । कालोचियधम्मरओ राया होऊण पब्धइओ ।। ७९० ॥णइपूरकूलपाडण मूढं कलुसोदयं णिएदऊण । ओयट्टणम्मि तीए तहत्थयं चेव पडिबुद्धो ।। ७९१ ॥ जह एसा वटुंती कूले पाडेइ कलुसए अप्पं । इय पुरिसोवि हु पायं तदण्णपीडाएं दब्यो ।। ७९२ ।।जह चवोव्वदृती सुज्झइ एसा तहेव परिसोवि। आरंभपरिच्चागा कसलपवित्तीऍ विष्णेओ ६॥ ७९३ ॥ एवं पव्वइऊणं सामण्णं पालिऊण परिसुद्धं । सिद्धो सुदेवमाणुसगइहिं थेवेण कालेणं ॥ ७९४ ॥ भसुर महुरराया सुक्कसुरो ओमुहीए राओत्ति । आणयदेव सिवणिवो आरण महिला य देवणिवो ॥ ७९५ ।। गेवेज्ज तियस गज्जणसामी गेवेज्ज पुंढ सुर राया । गेवेज्ज बंग मुर राय विजयदेवंगराया य ।। ७९६ ।। सबहामर उज्झाणारंद पव्वज्ज सिज्झणा चेव । एयस्स | पायसो तह पावाकरणम्मि नियमोत्ति ।। ७९७ ।। एवं भावाराहणभावा आराहगो इमो पढम । ता एयम्मि पयत्तो आणाजोगेण कायव्यो ।। ।। ७९८ ॥ इय एयम्मिवि काले चरणं एयारिसाण विष्णेयं | दुक्खंतकरं णियमा धन्नाणं भवविरत्ताणं ।। ७९९ ॥ जे संसारविरत्ता रत्ता आणाएँ तीऍ जहसत्तिं । चट्ठति णिज्जरत्थं ण अण्णहा तेसिं चरणं तु ।। ८०० ॥ मारेति दुस्समाएवि विसा| इआ जह तहेव साहूणं । णिकारणपडिसेवा सव्वत्थ विणासई चरणं ॥ ८०१ ।। कारणपडिसेवा पुण भावेण असेवणत्ति दट्ठया । CISCESCRECRUCHECCESCARSEX ||१९ KAMAKASOK For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु. ॥१९२।। REARRIERRORRE आणाएँ तीऍ भावो सो सुद्धो मोक्खहेउत्ति ।। ८०२ ॥ अकिरियाए विसुद्धो भावो पावक्खयत्थमो भणिओ । अण्णेहिवि ओहेणं आज्ञायोगः तेणगणाएण लोगम्मि ।। ८०३ ॥ तेणदुगे भोगम्मी तुल्ले संवेगओ अतेणत्तं । एगस्स गहियसुद्धी मूलहिभेयम्मि सादेव्वं ॥८०४॥ काले तह चित्तकम्मदोसा मुडे भोगसमयम्मि अणुतावो । एत्तो कम्मविसुद्धी गहणे दिव्वम्मि सुज्झणया ।।८०५॥ इयरस्स गहण कहणा गजादि | आम मूलाऍ तस्स भेओ उ । अब्भुवगमणा गुहभेयवुज्झणगुत्तरणमो सम॑ ।। ८०६ ।। विम्हय देवयकहणा कयमिणमएण भावओ दृष्टान्ताः खवियं | संवेगा वयगहणं चोररिसी सुप्पसिद्धोत्ति ॥८०७|| एवं विसिट्टकालाभावम्मिवि मग्गगामिणो जह उ । पावेंति इच्छिय-पल | पुरं तह सिद्धिं संपयं जीवा ॥ ८०८ ॥ मउईएवि किरियाए कालेणारोगयं जह उविति । तह चेव उणिव्वाणं जीवा सिद्धंतकिरियाए । ८०९ ॥ दुप्पसहंतं चरणं भणियं जं भगवया इहं खत्ते । आणाजुत्ताणमिणं ण होति अहुणत्ति वामोहो ॥ ८१० ॥ आणाबज्झाणं पुण जिणसमयम्मिवि न जातु एयंति । तम्हा इमीऍ एत्थं जत्तेण पयट्टियव्वंति ।। ८११॥ गंतेणं चिय लोयणायसारेण एत्थ होयव्वं । बहुमुंडादिवयणओ आणाजुत्तो इह पमाणं ॥ ८१२ ॥ आयरणाविहु आणाऽविरुद्धगा चेव होति नायं तु । इहरा तित्थगरासायणत्ति तल्लक्खणं चेयं ।। ८१३ ।। असढेण समाइन्नं जे कत्थति केणती असावज्ज । न निवारियमबेहि य बहुमणुमय-18 मेयमायरियं ।। ८१४ ॥ किं च उदाहरणाई बहुजणमहिगिच्च पुन्धमरीहिं । एत्थं निंदसियाई एयाई इमम्मि कालम्मि॥ ८१५ ॥ केणइ रन्ना दिट्टा सुमिणा किल अट्ट दुसमसुसमंते । भीई चरमोसरणे तेसिं फलं भगवया सिढे ॥ ८१६ ॥ गय वाणर तरु धंखे सिंहे तह पउम बीय कलसे य । पाएण दुस्समाए सुविणाणिगुप्फला धम्मे ॥ ८१७ ॥ चलपासाएसु गया चिट्ठति पडतएसुविण I ॥१९२।। पाणिति । णितावि तहा केई जह तप्पडणा विणस्संति॥८१८॥विरलतरा तह केई जह तप्पडणाविणो विणस्संति । एसो सुमिणो दिहो। RANASRASA For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie उपदेश पदेषु. CROS द्रव्यतो हीनानुवृत्तिः ॥१९३॥ 15 फलमत्थं सावगा णेया ॥ ८१९ ।। बहुवाणरमझगया तव्वसहा असुइणो विलिपति । अप्पाणं अण्णेवि य तहाविहे लोगहसणं च 21॥ ८२० ।। विरलाणमलिंपणया तदण्णखिसा ण एयमसुइत्ति । सुविणोऽयं एयस्स उ विवागमो णवरि आयरिया ।। ८२१ ॥ खीर-1 तरुमुहछाया तेसिमहो सीहपोयगा बहुगा चिहति संतरूवा लोगपसंसा तहाहिगमो।।८२शाते संथडा उ पायं सुणगा तरु बब्बुलत्ति पडिहासो । एसो सुमिणो दिट्ठो फलमत्थं धम्मगच्छत्ति ।। ८२३ ॥ धंखा वावीय तडे विरला ते उण तिसाएँ अभिभूया । पुरओ मायासरदसणेण तह संपय१ति ।। ८२४ । केणइ कहण णिसेहेऽसद्दहणा पायसो गम विणासं । सुमिणोऽयं एयस्स उ विवागमो मूढधम्मरया ।। ८२५ ।। सीहो वणमझम्मी अणेगसावयगणाउले विसमे । पंचत्तगओ चिइ ण य तं कोई विणासेइ ।। ८२६ ॥ तत्तो कीडगभक्खणपायं उप्पाय दट्ठमणेऽवि । मुमिणोत्ति इमस्सऽत्थो पवयणनिधंधसाईया ॥ ८२७ ॥ पउमागरा अपउमा गद्दभगजुया य चत्तडियरूवा । उक्करुडियाए पउमा तत्थवि विरला तहारूवा ॥ ८२८ ॥ तेवि य जणपरिभृया सकज्जणिप्फायगा ण पाएणं । सुमिणसरूवं वीणणमिमस्स धम्मम्मि पच्चन्ता ॥८२९।। बीएसु करिसगो कोइ दुधियड्डोत्ति जनओ किणइ । बीजेत्ति अबीजेऽवि य पइरइ य तहा अखित्तेसु ॥८३०॥अवणेइ य तंमज्झे विरलं बीयं समागयंपीहं । सुमिणेत्ति इमस्सऽत्थो विष्णेओ दाणपत्ताई ॥ ८३२।। कलसा य दुहा एगे पासाओवरि सुहा अलंकरिया । अण्णे पुण भूमीए बोडा ओगालिसयकलिया ।। ८३२ कालेण दलणपायं समभंगुप्पाय दद्रुमप्पाणं । सुमिणसरूवं राया अबंभ साहू य एसत्थो ॥ ८३३ ।। कूवाबाहाजीवण तरुफलवह गाविवच्छि धावणया । लोहिविवज्जयकलमल सप्पगरुड पूजऽपूजाओ ।। ८३४ ॥ ह थंगुलिदुगवट्टण गयगद्दभसगडबालसिलधरणं । एमाई CREAkSCRR ॥१९३॥ For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यतो उपदेश पदेषु हीनानुवृत्तिः ॥१९४|| आहरणा लोयम्मिवि कालदोसणं ॥ ८३५ ।। रण्णो दियाइगहणं पुत्तविउव्वेग कन्निविक्किणणं । इड्डीपरजणचाओ णिद्दय दाणं ण | इयरेसिं ।। ८३६ ।। जुयघर कलहकुलेयरमेर अणुसुद्ध धम्मपुढविठिई । वालुगवकारंभो एमाई आइसद्देणं ॥ ८३७ ॥ कलिअवयारे किल णिज्जिएसु चउमुंपि पंडवेसु तहा । भाइवहाइकहाए जाभिगजोगम्मि कलिणा उ ॥ ८३८ ।। एवं पाएण जणा कालणुभावा 81 इहपि सव्वेऽवि । णो सुंदरत्ति तम्हा आणासुद्धेसु पडिबंधो ॥ ८३९ ॥ इयरसुविय पओसो णो कायव्यो भवट्ठिई एसा । णवरं | विवज्जणिज्जा विहिणा सइ मग्गणिरएण ।। ८४० ॥ अग्गीयादाइण्णे खेत्ते अण्णत्थ ठिइअभावम्मि । भावाणुवघायणवत्तणाएँ तेसि तु वसियव्यं ।। ८४१ ॥ इहरा सपरुवघाओ उच्छोभाईहिं अत्तणो लहया । तेसिपि पावबंधो दगंपि एयं अणिति ।। ८४२ ॥ ता। दब्बओ य तेसि अरत्तदुद्वेण कज्जमासज्ज । अणुवत्तणत्थमसिं काय किंपि ण उ भावा ।। ८४३ ॥ एत्थं पुण आहरणं विष्णेयं णायसंगयं एयं । अगहिलगहिलो राया बुद्धीऍ अणदुरज्जोत्ति ॥ ८४४ ॥ पुहविपुरम्मि उ पुष्णो राया बुद्धी य तस्स मंतित्ति । | कालण्णुणाण मासुवरि वुट्टि दग गह सुवासं तो ॥ ८४५ ।। रायणिवेयण पडहग दगसंगह जत्तओ अहाथाम । बुट्टि अपाणं खीण पाणम्मी गहकमा पाय |८४६॥ सामंताईयाणवि दुकं वासं दवं च रणोत्थि । तेसि मंतण विगह बंधामो मंतिणाणंति॥८४७|| सिट्ठ णत्थि उवाओ तं दग कित्तिमगहो य मिलणंति । तोसो रज्जम्मि ठिती सुवास सव्वं तओ भई ।।८४८|| एएणाहरणेणं आया | राया सुबुद्धिसचिवेण । दुसमाए कुग्गहोदगपाणगहा रक्खियब्योत्ति ।।८४९।। बहुकुग्गहम्मिवि जणे तदभोगऽणुवत्तणाएँ तह चेव । भावेण धम्मरज्जे जा सुहकालो सुवासंति ।। ८५० ॥ आणाजोगेण य रक्खणा इहं ण पुण अण्णहा णियमा । ता एयम्मि पयत्तो कायब्बो सुपरिसुद्धम्मि ॥८५१।। तित्थे सुत्तत्थाणं गहणं विहिणा उ एत्थ वत्थमियं । उभयप्णू चेव गुरू विही उ विणयादिओ श॥१९४॥ For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु ॥१९ ॥ SORRRRORENA चित्तो ।।८५२॥ उभयण्णूविय किरियापरो दढं पवयणाणुरागीय | ससमयपण्णवओ परिणओ य पण्णो य अच्चत्थं ॥८५३।। जो हेउवा-1/पदवाक्यायपक्खम्मि हेउओ आगमे य आगमिओ। सो ससमयपन्नवओ सिद्धतविराहगो अण्णो ॥ ८५४ ॥ एत्तो सुत्तविमुद्धी अत्थ- थोदयः विसुद्धी य होइ णियमेणं । सुद्धाओ य इमाओ णाणाईया पयर्टेति ॥ ८५५ ॥ सुत्ता अत्थे जत्तो अहिगयरो णवरि होइ कायन्यो । एत्तो उभयविसुद्धित्ति मूयगं केवलं सुत्त ॥ ८५६ ॥ अत्थो वक्खाणंति य एगट्टा एत्थ पुण विही एसो | मंडलिमाई भणिओ परिसुद्धो पुबसूरीहिं ॥८५७॥ मंडलि णिसज्ज अक्खा किइकम्मुस्सग्ग वंदणं जेटे । उवओगो संवेगो पसिणुत्तर संगयत्थति।।८५८|| सीसविसेसे णाउं सुतत्थाइ विहिणा व काऊणं । वक्खाणिज्ज चउद्धा सुत्तपयत्थाइभएणं ।। ८५९ ॥ पयवकमहावकत्थमेदंपज्जं च । | एत्थ चत्तारि । सुयभावावगमम्मी हंदि पगारा विणिहिट्ठा ॥ ८६० ॥ संपुण्णेहिं जायइ सुयभावावगमो इहरहा उ । होइ विवज्जा सोऽवि हु अणिदृफलओ य सो णियमा ॥८६१॥ एएसिं च सरूवं अण्णेहिवि वणियं इहं णवरं । सत्तुग्गहणदृद्धाणभट्ठतण्णाण-11 | णाएणं ।। ८६२ ।। दट्टण पुरिसमेतं दूरे णो तस्स पंथ पुच्छत्थं । जुज्जइ सहसा गमणं कयाइ सत्तू तओ होज्जा ।। ८६३ ।। वेस| विवज्जासम्मिवि एवं बोलाइएहिं तं णाउं । तत्तो जुज्जइ गमणं इट्ठफलत्थं णिमित्तेणं ।। ८६४ ॥ एवं तु पयत्थाई जोएज्जा एत्थ तंतणीइए । अइदंपज्जं एवं अहिगारी पुच्छियब्वोत्ति ॥ ८६५ ।। हिंसिज्ज ण भूयाई इत्थ पयत्थो पसिद्धगो चेव । मणमाइएहिं पीड सव्वेसिं चेव ण करिज्जा ।। ८६६ ।। आरंभ पमत्ताणं इत्तो चेइहरलोचकरणाई । तकरणमेव अणुबंधओ तहा एस वच्चत्थो ॥१९५॥ | ।। ८६७ ।। अविहिकरणम्मि आणाविराहणा दुट्ठमेव एएसि । ता विहिणा जइयव्यंति महावकत्थरूवं तु ।। ८६८ ॥ एवं एसा अणुबंधभावओ तत्तओ कया होइ । अइदंपज्जं एयं आणा धम्मम्मि सारोत्ति ॥८६९ ॥ एवं चइज गंथं इत्थ पयत्थो पसिद्धगोल For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie उपदेश * ॥१९६।। *** चेव । णो किंचिवि गिहिज्जा संचयणाचेयणं वत्धुं ॥ ८७० ॥ एत्तो अईयसाक्खयाण वत्थाइयाणमग्गहणं । तग्गहण चियपदवाक्या| अहिंगरणवुडिओ हंदि बक्कत्थो ॥८७१॥ आणाबाहाएँ तहा गहणंपि ण सुंदरंति दट्ठव्वं । ता तीए वट्टियव्यंति महावकत्थमो ओ थादयः ॥ ८७२ ।। एयं एवं अहिगरणचागओ भावओ कहं होइ? । एत्थवि आणातत्तं धम्मस्स इदं इदंपज्ज ॥ ८७३ ।। एवं तवझाणाई कायव्वंति पयडो पयत्थोऽयं । छदुस्सग्गाईणं करणं ओघेण लोगम्मि ।। ८७४ ॥ तुच्छावत्ताणंपि हु एत्तो एयाण चेव करणंति । अकरणमो दट्ठवं आणिट्ठफलयंति वक्कयो । ८७५ ।। आगमणीईए तओ एयाणं करणमित्थ गुणवतं । एसा पहाणरूवत्ति महावक्कथविसओ उ ।। ८७६ ।। एवं पसत्यमेयं णियफलसंसाहगं तहा होइ । इय एसच्चिय सिद्धा धम्मे इह अइंदपज्जं तु ।। ८७७ ।। दाणपसंसाइहिं पाणवहाईओ उजु पयत्थत्ति । एए दोवि हु पावा एवंभूओऽविसेसेणं ।।८७८॥ एवं पडिवत्तीए इमस्स तह देसणाएँ वोच्छेओ । तम्हा बिसेसविसयं ददृव्वामिणति बकत्थो ।।८७२।। आगमविहितं तम्मि पडिमिळू वाहिगिच्च णो दोमो । तम्बाहाए दोसोत्ति महावक्कत्थगम्मं तु ॥ ८८० ॥ इय एयस्साबाहा दोसाभावेण होइ गुणहेउ । एसा य मोक्खकारणमइदंपज्जं तु एयस्स | ।। ८८१ ॥ एवं पइसु चिय वक्खाणं पायसो बुहजणेणं । कायव्वं एत्तो खलु जायइ जं सम्मणाणं तु ॥ ८८२ ।। इहरा अण्णयरगमा दिदृट्ठविरोहणाणविरहेण | अणभिनिविट्ठस्स सुर्य इयरस्स उ मिच्छणाणंति ॥ ८८३ ।। लोउत्तरा उ एए एत्थ पयत्थादओ मुणयब्धा । अत्थपदणाउ जम्हा एत्थ पर्य होइ सिद्धति ॥ ८८४ ॥ लोयम्मिवि अत्थेणं णाएणं एवमेव एएत्ति । विष्णेया बुद्धि| मया समत्थफलसाहगा सम्मं ।। ८८५ ॥वक्खाइसइओ जे अविसिट्ठा चेव होइ बुदित्ति । उत्तरधम्मावेक्खा जहेव हिंसाइसहाओ ।। ८८६ ॥ कयमेत्थ पसंगणं इमिणा विहिणा निओगओ णाणं । आणाजोगोऽवि इह एसो च्चिय होइ णायब्धो ॥८८७॥ * १९६॥ For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie पदवाक्याथोदयः उपदेश पदेषु ॥१९७॥ नाणी य णिच्छएणं पसाहई इच्छियं इहं कज्ज । बहुपडिबंधजुयंपि हु तहा तहा तयविरोहेणं ॥ ८८८ ॥ मग्गे य जोयइ तहा केई भावाणुवत्तण णएणं । बीजाहाणं पायं तदुचियाणं कुणइ एसो ॥८८९॥ सुबह निवस्स पत्ती झाणग्गहसंगया विणीयत्ति । मुच्छिमगकण्णदुब्बलणिवो य तह पुव्वसूरीहिं ।। ८९०।। णिवपत्ती णिविण्णा झाणा मोक्खोत्ति तग्गहसमेया। ससरक्खपउममज्झे तिणयणदेवम्मि ठियचित्ता ॥ ८९१ ॥ तवखीणसाइदंसण बहमाणा सेवणा तहा पुच्छा । झाणे दंडगकहणे बज्झा एएत्ति अणुकंपा ॥ ८९२ ॥ गीयणिवेयणमागम झाणकहम्भुवगमे तहक्खेवो । कोडेके दूरपवेस धम्मिगाईहिं जा देवो ।। ८९३ ॥ निच्चलचित्ता साहण समओ नण्णेसिं आम पडिवण्णो । तदुवरि अट्ठकला अओऽण्णमन्भासदसणयं ।। ८९४ ।। ससरक्खविज्जमादि न तत्त तह दसणा विगणोति । संकाए गुरु सच्चा किं तत्तं उचियणुट्ठाणं ।। ८९५ ॥ इहरा एयं चिय छत्तरयणपरिच्छित्तितुल्लमो भणियं । पारण विग्धभूयं सति उचियफलस्स विनयं ।। ८९६ ॥ पत्तीऍ रयणसारं आहरणं सिरिफलंति सोत्तूणं । आईए तप्परिच्छा लग्गो चुको ततो सब्वा।।८९७॥ एत्तो चिय झाणाओ मोक्खोति निसामिऊण पढमं तु । तल्लग्गोऽवि हु चुकति नियमा उचियस्स सव्वस्स ॥ ८९८ ।। ता सुद्धम्मदेसण परिणमणमणुब्बयाइगहणं च । इय णाणी कल्लाणं सव्वेसिं पायसो कुणति ॥ ८९९ ।। समुच्छिमयाओसवणब्बला चेव कोइरायति । उत्तमधम्माजोग्गो सद्धो तह कुपरिवाओ य॥ ९००॥ रिसिमित्नदंसणणं आउट्टी पूयदाणनिरओत्ति । अण्णापोहाहिगरण कह विपरिणीय मुक्खत्ति ॥९०१॥ गीयनियणमागम तब्भावावगम पुच्छ कि तत्तं? | अइ-1 गंभीरं, साहह, जइ एवं सुणमु उवउसो ॥९०२।। सत्थिमईए माहण धृया सहिया विवाह भेओत्ति । सुत्थासुत्थे चिंता पाहुण गमणे विसाओत्ति ।। ९०३ ।। पुच्छा साहण पावा दूहव मा कुण करेमि ते गाणं । मलिगदाणं गमणं तीए अप्पत्तियपओगो ॥९०४ ।। ॥१९॥ For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु. "का जनाना ॥१९८॥ RESTEREOREKH गोणत्तं विदाणा गोमीलणमनपासणऽण्णाए । कहण मणुओ तीए कह पुण मूलाएँ सा कत्थ ॥९०५।। णग्गोहतले सवणं णियत्तणा|चारिसंजी| चिंत सव्वचरणंति । पत्ता मणुओ एवं इह एसा धम्ममूलत्ति ॥ ९०६॥ ता ओहेणं इहयं उचियत्तणमविरोहओ जत्तो । कायव्यो |वनी बहु |जह भवगोणविगमओ जीवमणुयत्तं ॥ ९०७॥ तोसा सासणवण्णो पूजा भत्तीए बीजपक्खेवो । एवं णाणी बाहुल्लओ हियं चेव कुणइत्ति ।। ९०८ ॥ एयारिसओ लोओ खयण्णो हंदि धम्ममग्गम्मि । बुद्धिमया कायव्वो पमाणमिइ ण उण सेसोवि ॥ ९०९ ॥ लंबनं बहुजणपवित्तिमत्तं इच्छंतेहिं इहलोइओ चेव । धम्मो ण उज्झियव्यो जेण तहिं बहुजणपवित्ती ॥ ९१० ।। ता आणाणुगयं जं तं तैलपात्रधर चेव बुहेण सेवियव्वं तु । किमिह बहुणा जणेणं ? हंदि ण सेयत्थिणो बहुया ॥९११ ।। रयणस्थिणोऽतिथोवा तद्दायारोऽवि जह उ लोयम्मि । इय सुद्धधम्मरयणत्थिदायगा दढयरं णेया ॥ ९१२॥ बहुगुणविहवेण जओ एए लब्भंति ता कहमिमेसु । एयदरिदाणं | तह सुविणेऽवि पयट्टई चिंता ।। ९१३ ।। धण्णाइसु विगइच्छा वत्थहिरण्णाइएसु तह चेव । तञ्चिताए विमुक्का दुहावि रयणाण जोगत्ति ॥ ९१४ ।। जे पुण थेवत्तणओ एएसुं चेव अविगएच्छत्ति । ते एयाण अजोग्गा अइणिउणं चिंतियव्वमिणं ।। ९१५ ॥ अक्खुद्दाई धष्णाइया उ बत्थाइया उ विष्णेया । मज्झत्थाई इइ एकवीसगुणजोगओ विहवो ॥ ९१६ ॥ पायद्वगुणविहीणा एएसि मज्झिमा मुणेयव्वा । एत्ते परेण हीणा दरिद्दपाया मुणयुव्वा ॥९१७।। जह ठितिणिबंधणेसुं धम्म कम्पिति मूढगा लोया । तह एएवि |वरागा पायं एवंति ददृव्वा।।९१८। एएणं चिय कोई राया केणावि सूरिणा सम्म। णाएणमेयदिट्ठी थिरीकओ सुद्धधम्मम्मि।।९१९॥ | नवरं पवेसिऊणं सागेंधणवण्णमाइठाणाई । बहुगाई दंसिऊणं रयणावणदंसणेणं तु ।।१२०।। ण य दुक्करं तु अहिगारिणो इहं अहिगयं I ॥१९८॥ अणुट्ठाणं । भवदुक्खभया णाणी मोक्खत्थी किंच ण करेइ? ॥ ९२१ ।। भवदुक्खं जमणंतं मोक्खसुहं चेव भाविए तत्ते । गरुयंपि ASE For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राधावेधः उपदेश | अप्पमायं सेवइ ण उ अण्णहा णियमा ॥९२२॥ इह तेल्लपत्तिधारगणायं तंतंतरेसुवि पसिद्धं । अइगंभीरत्थं खलु भावेयव्वं पयत्तेण | ॥ ९२३ ।। सद्धो पण्णो राया पायं तेणोवसामिओ लोगो। णियनगरे णवरं कोति सेट्टिपुत्तो ण कम्मगुरू ॥ ९२४ ।। सो लोग गहा मण्णइ हिंसपि तहाविहं ण दुट्ठति । हिंसाणं सुहभावा दुहावि अत्थं तु दुद्देयं ॥ २५ ॥ अपमायसारयाए णिव्विसयं तह साजिणावएसपि । तक्खगफणरयणगयं सिरत्तिसमणोवएसंव ॥ २६ ॥ तस्सुवसमणणिमित्तं जक्खोच्छत्तो समाणदिहिति । णिउणो कओ समप्पिय माणिकं सोगओ तत्तो ॥ ९२७ ।। अवरो रायासण्णो अहंति पडिबोहगो असमदिट्ठी । कालणं वीसंभो तो य मायापओगोत्ति ॥९२८॥ णटुं रायाऽऽहरणं पडहग सिट्ठति पउर धर लाभे । माहण पच्छित्तं बहु भयमेवमदोस तहवित्ति ॥९२९।। जक्खब्भत्थण विष्णवण ममत्थे तं णिवं सुदंडेणं । तच्चोयण परिणामो विष्णत्ती तइलपत्तिवहो ।। ९३० ॥ संगच्छण जहसत्ती खग्गधरुक्खेव छणणिरूवणया । तल्लिच्छ जत्न नयणं चोयणमवंति पडिवत्ती ॥९३१॥ एवमणताणं इह भीया मरणाइयाण दुक्खाणं। सेवंति अप्पमायं साहू मोक्खत्थमुज्जुत्ता ॥ ९३२॥ अपरिणए पुण एयम्मि संसयाईहिं ण कुणइ अभयो । जह एवं गुरुकम्मो | तहेव इयरोऽवि पधज्ज ॥ ९३३ ।। एवं जिणोवएसो उचियाविक्खाए चित्तरूवोनि । अपमायसारयाएवि तो सविसयमो मुणे| यवो ।। ९३४ ।। गंभीरमिणं वाला तब्भत्ता मोत्ति तह कयत्थंता । तह चेव तु मण्णंता अवमण्णंता ण याणंति ॥९३५।। सिद्धीए साहगा तह साहू अण्णत्थओऽवि णिहिट्ठा । राहावेहाहरणा ते चवं अत्थओ गेया ॥ ९३६ ।। इंदपुर इंददत्ते बावीस सुया सुरिंददत्ते य । महुराए जियसत्तू संयंवरो णिवुईए उ ।। ९३७ ।। अग्गियए पचयए बहुली तह सागरे य बोद्धव्वे । एतेगदिवसजाया सह तत्थ मुरिंददत्तेणं ॥ ९३८ । इंदउरसामिणो पुत्तवंति महुराहिवेण ता धूया । पट्टवियत्ति मयंवरराहावेहेण वरमाला ॥ ९३९ ॥ ॥१९९॥ For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राधाबंध: उपदेश पदेषु ॥२०॥ बावीसहिं ण विद्धा तेवीसइमेण मग्गियाइ जया । अब्भासाओ विद्धा तेहिं परिपंथिगहिपि ।। ९४० ॥ सो तजएण सइ उक्खयासि- पुरिसदुगभीइओ गुरुणा । तह गाहिओत्ति भेत्तुं जहठ्ठचक्के तओ विद्धा ।। ९४१ ।। रायसुओ इह साहू अग्गियगाई कसायपुरिसा ऊ। रागद्दोसा खोभे मरणं असई भवावत्ते ॥ ९४२ ।। रायसुया उ परीसह सेसा उवसग्गमाइया एत्थ । गाहण सिक्खा कम्मट्ठभेयओ | सिद्धिलाभो उ ॥ ५४३ ।। णो अण्णहावि सिद्धी पाविज्जह ज तओ इमीए उ । एसो चेव उवाओ आरंभा बढमाणो उ ॥९४४॥ मग्गण्णुणो तहिं गमणविग्घ कालेण ठाणसंपत्ती । एवं चिय सिद्धीए तदुवाओ साहुधम्मोत्ति ॥ ९४५ ॥ एवंविहं तु तत्तं णवरं | | कालोऽवि एत्थ विण्णेओ । ईसि पडिबंधगो च्चिय माहणवाणिरायणाएण।।९४६||सत्थरिथ माहणपुर वणि जायण सुद्धभूमिगहपाए। णिहि वणि कहणं अग्गह रण्णा सिटे य पण्णवणा ।। ९४७ ।। सुत्तुट्ठियांचतणमण्णया य सव्वेसि मिच्छ गह विग्धं । मिहु किमियंति वितके केवलि कलि चाग भागगहो ॥ ९४८ ॥ एवमिह दुस्समेऽयं कलुसइ भावं जईणवि कहिंचि । तहवि पुण कज्जजाणा हवंति एएच्चिय जहए ।। ९४९ ॥ अण्णे भणंति तिविहं सययविसयभावजोगओ णवरं । धम्मम्मि अणुट्ठाणं जहुत्तरपहाणरूवं तु ॥९५०112 एवं च ण जुत्तिखमं णिच्छयणयजोगओ जओ विसए । भावेण य परिहाणं धम्माणुट्ठाणमो किह णु ? ॥ ९५१ ।। ववहारओ उ जुज्जइ तहा तहा अपुणबंधगाईमुं । एत्थ उ आहरणाई जाहासंखणमेयाई ॥९५२॥ सययम्भासाहरण आसेविय जाइसरणहेउत्ति। आजम्मं कुरुचंदो मरिउं णरगाओ उच्चट्टो ॥ ९५३ ॥ मायापिइपीडवत्ती गिलाणभेसज्जदाणमाईहिं । तह चिइणिम्मलकरण जाईसरणस्स हेउत्ति ।। ९५४ ॥ णिवपरिवारुवलमा सरणं भीओ कह पुणो एत्थ? | ठिइमृगत्तासेवण णाओ विज्जेहिं णिहोसो ॥९५५ ॥ मंतिणिवयण जाणण धण्णो सरणाओ कोइ उव्विग्गो । भवीठइंदसणकहणं गुणकरमेयस्म तहिं जुत्तो ।। ९५६ ।। भृसिय For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदेषु II उपदेश पाणगओ इड्डीए णीणि विभागण्णू । भोगम्मी जायछणे मयरूवण दरिद्दग भणीसु ॥९५७ ।। लाभग चेयग भोगी जाए उदा सतत IPIछणा सुवाहितुल्लात्ति । मरणे दुक्खमवेक्खा किमिह दरिदोवि परलोए ॥ ९५८ ॥ रायणिवेयण दंसण तोसो पियवयण पुच्छ पसि-II विषय ४ाणन्थे । णमणमणुण्णा संवेग साहणं भावसारमिणं ॥९५९ ॥ धम्मकरणेण भोगी लाभा इहरा उ तुच्छभोगोत्ति । रज्जफलोत्ति भावयोगाः ॥२०॥ सुवाहीतच्छणसरिसो उ एएसु ।। ९६० ।। मालालुगप्पभोगाइणायओ दुक्खकारणमविक्खा | धम्मी दरिद्दगो इह अओऽण्णऽहण्णोऽवि परलोए ॥९६१।। मायापिइहिं भणिओ इह धम्मण्णू तुमं तहा वम्हं । ठिइम्यत्तेहिं इह दुक्खं कुणसित्ति सो आह ॥९६२॥ गंतव्यं सगईए गुरुयणसंवुड्विकारयं गच्छे । आसासमाइदीवग जोगम्मि ण अण्णहा जुत्तं ॥ ९६३ ॥ बोल्लेमि य जं उचियं इहरा उ ण जुत्तमेव वोत्तुं जे । जं इह एस कुहाडी जीहां धम्मेयरतरूणं ।। ९६४ ॥ एवंति तेसिं बोहो धम्मपरिच्छाए पायसो णवरं । माइपिइपूयधायाणमित्थ किं जुत्तमच्चथ।।९६५।।पूजत्ति आहु पायं अण्णेऽणगंतवायओ तत्तं। ववहारणिच्छएहिं दुविहा एए जओ णेया ॥९६६।। ववहारओ पसिद्धा तिट्ठामाणो य णिच्छएणेए। आइमगाणं पूया इयरेसिं वहोत्ति ता जुत्तं॥९६७॥बझयराचट्ठाणं अण्णे का सोहणत्ति आहेसो । अण्णपराबोहेणं उभयं भेयाओ एयस्स ॥ ९६८ ॥ अम्भितराण बझं वभिचरइ णिओगओ ण बज्झेवं । अभितरंति अण्णे एगच्चिय उभयरूवेसा ॥ ९६९ ॥ एवं च मग्गलंभो पव्वज्जाऽऽराहणा य सुपसत्था । दुग्गइ दुवारठयणी मुगइसिवपसाहिया चेव ॥९७०।। विसयब्भासाहरणं सुयओ इह सुहपरंपरं पत्तो । तित्थगरचूयमंजरिपूजाबीजेण सकलत्तो ॥ ९७१ ॥ कुसला ॥२०१॥ सयहेऊओ विसिट्ठसुहहेउओ य णियमेण । सुद्धं पुण्णफलं चिय जीवं पावा णियत्तेइ ।। ९७२ ॥ सुगणिहि कुंडल सोधम्म ललियर | ईसाण देवसेणो य । बंभिंद पियंकर चक्कि सिझणा होइ विष्णेया ॥ ९७३ ॥ सुविगा पुरंदरजसा उम्मायंती य चंदकता य ।। For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदपु. विषय ॥२०२॥ मइसागरो य मंती पिओत्ति पुच्छा य संवेगो ॥ ९७४ ।। सुगमरण गयपत्ती कुंडल सुविण तह जम्मनाल णिही । णिहिकुंडल नाम सतत कला जोवण इत्थीसु णो राओ ।।९७५ ।। इय सुविगाएवि अण्णत्थ रायधूयाइ णवर पुरिसम्मि । गुरुजणचिंता मंती णाणे उट्ठीय णामाई ॥ ९७६ ।। इयरस्सवि सुविणम्मी तीए रागो मिहोत्ति चित्तम्मि । दसण णाणे वरणं लाभो गमणस्स हरणंति ॥ ९७७ ॥ भावयोगाः भी मंतट्ठिहरिय घायस्थ मंडले तीऍ पासणं मोक्खो। गमण विवाही भोगा पिइवह चिइ तिस्थगर दिक्खा !!९७८ ।। सोहम्म भोग |चवणं णिवसुय ललियंग कलगहयउत्ति । इयरी परिंदधृया सयंवरागमण बहुगाणं ।। ९७९ ॥ चउकलपुच्छा जोइसविमाण धणुगारुडेसु य विसेसो । धणु ललियंगे रागो मयणुटाणाओ हरणं च ॥९८०॥ जाणण विज्जेसविमाणघडण जेऊणमागमेहि जिया । पिइ चिंता सासण जलणकरण जम्मंतरविभासा ।। ९८१।। ललियंगम्भुवगमजलण भंस ऊढत्ति तोस पण्णवणा। भोगा सरदब्भुवलंभ ती चिंत तित्थयरदिक्खा य ॥ ९८२ ।। ईसाण जम्मभोगा चवणं रायसुय देवसेण कल वयवं । एसा उम्मायंती राओ सवणाइणा तत्थ | ॥ ९८३ ।। विज्जाहरखिसा माणुसोत्ति अणियत्तणे असमणो य । पडिछंदयचंडाली राय णिवणाए वीवाहो ॥९८४।। भोगो विज्जाहरसाहणेहिं णो एक्कसि मिलाणाई। सहिहासा संवेगो अरहागमणं च निक्खमणं॥९८५॥बंभिंद भोगचवणं रायसुय पियंकरोत्ति चक्कित्तं । एयस्सा मंतित्तं अइसयपाइएँ चिंतत्ति ।। १८६ ॥ अरिहागमम्मि पुच्छा मिट्ठ संवेग चरण पधज्जा। चित्ताभिग्गहपालण सेढी णाणं च सिद्धी य ॥१८७|| भावभासाहरणं णेयं अच्चंततिव्वभावोत्ति । णिव्वेया संविग्गो कामं जरमुंदरो राया ।। ९८८।। णगरी उ तामलित्ती राया णरसुंदरो ससा तस्स । बंधुमई परिणीया अवंतिरण्णा विसालाए ॥९८९ ।। अइराग पाणवसणे मंडलणास सचिव-11॥२०॥ प्रणठावणया । मत्तपरिट्ठावणमुत्तरिज्ज लेहो अणागमणं ॥ ९९० ॥ मयधिगम लेह कोवे देवीविण्णवण तामलित्तगमो । उज्जाणराय-1* For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir उपदेश । पदेषु | ॥२०॥ ठावण देविपवेसे णिवागमणं ॥ ९९१ ॥ भुक्खा कच्छग ककडि तेणधदार लउडेण मम्मम्मि । मोहो रायागमध्वट्ट चक्क कोट्टाए | सतत अवणयणं ॥ ९९२ ॥ राया दंसण मग्गण देवी आहवण णिउण मग्गणया । दिद्वे देवी सोगो अग्गी रण्णो उ णिवेओ ॥९९३ ॥ विषय धी भवहिई अणसणं इमीऍ भो आगमम्मि पणिहाणं । मरणं बंभुववाओ ओसरणे सामिपासणया ॥ ९९४ ॥ दंसणसंपत्ती भवपरि- भावयोगाः तया सुहपरंपरज्जिणणं । गइदुगविगमा माक्खो सत्तमजम्मम्मि एयस्स ॥ ९९५ ॥ एवं विसयगय चिय सव्वेसि तेसि हंतऽणुट्ठाणं । | णिच्छयओ भावविसेसओ उ फलभेयमो दिहो ।। ९९६ ॥ सम्माणुट्टाणं चियता सबमिणति तत्तओ णेयं । ण य अपुणबंधगाई। मोत्तु एयं इहं होइ ॥९९७।। एयं तु तहाभब्बत्तयाएं संजोगओ णिओगेणं । तह सामग्गीसज्झं लेसण जिंदसियं चेव ॥९९८॥ दइवपुरिसाहिगारे अस्थावत्तीऍ गरुयणयणिउणं । परिभावयव्वं खलु बुद्धिमया णवरि जत्तण ।। ९९९ ।। तहभबत्तं चित्तं अकम्मजं | आयतत्तमिह णेयं । फलभेया तह कालाइयाणमक्खेवगसहावं ।। १००० ।। इहराऽसमंजसत्तं तस्स तहसभावयाएँ तह चिने । काला इजोगओ णण तस्स विवागो कह होड ॥१००१॥ एसो उ तंतसिद्धा एवं घडएत्ति णियमो एवं । पडिवज्जेयव्यं खलु सुहमेणार | तकजोगेणं ॥१००२।। एवं चिय विबेओ सफलो नाएण पुरिसगारोऽवि । तेण तहऽक्खेवाओ स अन्नहाऽकारणो ण भवे ॥१००३।। उवएससफलयावि य एवं इहरा न जुज्जति ततोऽपि । तह तेण अणक्वित्तो सहाववादो बला एति ।।१००४॥ को कुवलयाण गंधा करेइ महरत्तणं च उच्छणं । वरहत्थीण य लील विणयं च कलप्पसूयाणं? || १००५ ॥ एत्थ य जो जह सिद्धा संसरिउं तस्स C. संतियं चित्तं । किं तस्सभावमह णो भव्यत्तं वाऽयमुद्देसा ॥ १००६ ॥ जइ तस्सहावमेयं सिद्धं सव्वं जहोइयं चेव । अह णो ण तहा २०३॥ | सिद्धी पावइ तस्सा जहऽण्णस्स ॥१००७॥ एसा ण लंघणीया मा होज्जा सम्मपच्चयविणासो । अविय णिहालेयव्या तहण्णदोसप्पसं-12 For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie उपदेश देव पुरुष कारी पदेषु ॥२०४॥ गाओ ॥ १००८॥ जइ सव्वहा अजोग्गेवि चित्तया हंदि वणियसरूवा । पावइ य तस्सहावत्तविसेसा णणु अभव्वस्स ॥ १००९ ।। अह कहवि तबिसेसो इच्छिज्जइ णियमओ तदक्खेवा । इच्छ्यिसिद्धी सब्वे चित्तयाए अणेगता ॥ १०१० ।। अणिययसहावयावि हु ण तस्सहावत्तमंतरेणत्ति । ता एवमणेगंतो सम्मंति कयं पसंगेणं ॥१०११ ॥ एवंपि ठिए तत्ते एयं अहिगिच्च एत्थ धीराणं । जुत्तं विसुद्धजोगाराहणमिह सब्बजत्तेणं ॥ १०१२ ॥ थेवोवि हु अतियारो पायं जं होति बहुश्रीणट्ठफलो । एत्थं पुण आहरणं | विनयं सूरतेयनियो ।। १०१३ ॥ नरमुंदखुत्तं सोउं पउमावती' णयरीए । देवीसहितो राया निक्खंतो सूरतेओत्ति ।। १०१४ ॥ पव्यज्जकरण कालेण गयउरे साहु साहुणीकप्पो । विण्डुसुयदत्त लेखिग रागो तत्थेव परिणयणं ।। १०१५॥ जह कह साहुसमीवेवि दुक्कर नत्थि हंत रागस्स । इय आह सूरतेओ देवी किं नीयबोल्लाए ? १०१६ ।। इय सुहुमरागदोसा बंधो नालोइयम्मि कालो | य । सुर भोग चवण वणिलंखगेहजम्मो कलग्गहणं।।१०१७||अन्नत्याग कालेण दंसणं चखुराग परिणयणं । गरिहा हिंडण जतिदसणाओ | सरणेण वोही य ॥१०१८।। इय थोवोऽवइयारो एसो एयाण परिणओ एवं । सुद्धे पुण जोग्गम्मी दुग्गयनारी उदाहरणं ॥१०१९।। सुब्बति दुग्गयनारी जगगुरुणो सिंदुवारकुसुमेहि । पूजापणिहाणेणं उववना तियसलोगम्भि ॥ १०२०॥ कायंदीओसरणे भत्ती पूजत्थि दुग्गयत्ति ततो । तह सिंदुवारगहणं गमणंतर मरण देवत्तं ॥ १०२१॥ जणदगसिंचण संका मोहो भगवंत पुच्छ कहणा य । आगमणे एसो सा विम्हय गंभीर धम्मकहा ॥१०२२।। एगपि उदगबिंदु जह पक्खित्तं महासमुद्दम्मि । जायति अक्खयमेवं पूजावि हु वीयरागेसु ॥१०२३।। उत्तमगुणबहुमाणो पयमुत्तमसत्तमज्झयारम्मि । उत्तपधम्मपसिद्धी पूजाए वीयरागाणं ॥१०२४|| एएणं बीजेणं दुक्खाई अपाविऊण भवगहणे । अच्चतुदारभोगो सिद्धो सो अट्ठमे जम्मे॥१०२५|| कगगउरे कणगधाराया होऊग सरय छणगमणे। सरकर ॥२०४ ।। For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश पदेषु देव पुरुष कारी ॥२०५॥ दठ्ठण वइससमिणं जाओ पत्तेयबुद्धोत्ति।१०२६॥ मंडुक्कसप्पकुररजगराण कूरं परंपरग्गसणं । परिभाविऊण एवं लोग हीणाइभेयांत १०२७ मंडुक्को इव लोगो हीणो इयरेण पन्नगेणं व । एत्थ गसिजत्ति सोवि हु कुररसमाणेण अत्रेण ॥१०२८॥ सोवि य न एत्थ सवसो जम्हा अजगरकयंतबसगोत्ति । एवंविहेऽपि लोए विसयपसंगो महामोहो ॥१०२९|| इय चिंतिऊण य भयं सम्म संजायचरणपरिणामो। रजं चइऊण तहा जाओ समणो सभियपावो ॥ १०३० ।। सिद्धो य केवलसिरिं परमं संपाविऊग उज्झाए । सकावयारणामे परमसिवे चेव उज्जाणे ॥१०३१ ।। अण्णेऽवि एत्थ धम्मे रयणसिहादी विसुद्ध जोगरया । कल्लाणभाइको इह सिद्धा णेगे महासत्ता |॥ १०३२ ॥ एवं णाऊण इमं विसुद्धजोगेसु धम्ममहिगिच्च । जइयव्ध बुद्धिमया सासयोक्खस्थिणा सम्मं ॥ १०३३ ॥ कल्लाण| मित्तजोगादिओ य एयस्स साहणावाओ । भणिओ समयण्णूहिं ता एत्थ पयट्टियवंति ॥ १०३४ ॥ सेवेयधा सिद्धतजाणगा भत्तिनिव्भरमणेहिं । सोयव्यं णियमेणं तेसि वयणंच आयहिय।।१०३५।।दाणं च जहासत्ति देयं परपीडमोन कायव्वा । काययोऽसंकप्पो भावेयव्वं भवसरूवं ॥१०३६ ।। मन्ना माणेयव्या परिहवियया न केइ जियलोए । लोगोऽणुवत्तियब्वो न निंदियब्वा य केइत्ति &॥ १०३७ ॥ गुणरागो कायव्यो णो कायया कुसीलसंसग्गी । वज्जेयव्वा कोहादयो य सययं पमादो य ॥ १०३८ ॥ लेसुवए| सेणेते उवएसपया इहं समक्खाया । समयादुद्धरिऊणं मंदमतिवियोहणट्टाए ।।१०३९।। जाइणिमयहरियाए इता एते उ धम्मपुत्तेणं । | हरिभदायरिएण भवविरहं इच्छमाणेणं ॥ १०४० ॥ इति श्रीहरिभद्रमूरिपुरंदरप्रणीतान्युपदेशपदानि समाप्तानि ।। For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॐI उपदेशमाला उपदंश तपः,विनय मालाया मूरिः पुरुषत्व नमिऊण जिणवरिंदे, इंदनरिंदच्चिए तिलोअगुरू । उवएसमालमिणमो, बुच्छामि गुरुवएसेण ॥१॥ जगचूडामणिभूओ, उसमो ॥२०६॥ वेषः मदः वीरो तिलोअसिरितिलओ । एगो लोगाइच्चो, एगो चक्खू तिहुअणस्स ॥ २॥ संवच्छरमुसभजिणो, छम्मासा वद्धमाणीजणचंदो। इअ विहरिआ निरसणा, जइज्ज एओवमाणेणं ॥ ३ ॥ जइ ता तिलोअनाहो, विसहइ बहुआई असरिसजणस्स । इअ जीअंतकराई, एस खमा सव्वसाहणं ॥ ४ ॥ न चइज्जइ चालेउं, महइमहावद्धमाणीजणचंदो । उवसग्गसहस्सेहिवि, मेरू जह वायगुंजाहिं ॥५॥ भद्दो विणीअविणओ, पढमगणहरो समत्तसुअनाणी । जाणतोऽवि तमत्थं, दिम्हिअहिअओ सुणइ सव्यं ।। ६ ॥ जं आणवेइ राया, पगईओ तं सिरेण इच्छंति । इअ गुरुजणमुहमणिअं, कयंजलि उडेहिं सोअव्वं ॥७॥ जह सुरगणाण इंदो, गहगणतारागणाण जह चंदा । जह य पयाण नरिंदा, गणस्सवि गुरू तहाणंदो।। ८ ।। बालुत्ति महीपालो, न पया परिभवइ एम गुरु उवमा । जंवा पुर ओ काउं, विहरंति मुणी तहा सोवि ॥ ९ ॥ पडिरूवो तेयस्सी, जुगप्पहाणागमो महुरवको । गंभीरो धीमंतो, उवएसपरो अ आय-| रिओ ॥ १० ॥ अपरिस्सावी सोमो, संगहसीलो अभिग्गहमई य । अविकत्थगो अचवलो, पसंतहियओ गुरू होइ ॥ ११ ॥ कइदियावि जिणवरिंदा, पत्ता अयरामरं पहं दाउं । आयरिएहिं पवयणं, धारिज्जइ संपर्य सयलं ॥ १२ ॥ अणुगम्मए भगवई, रायसुअ-18 ज्जासहस्सविंदेहिं । तहवि न करेइ माणं, परियच्छइ तं तहा नूणं ॥१३।। दिणदिक्खिअस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्जचंदणा अज्जा । ॥२०६।। R ECRPRECA For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां सूरिः ॥२०७॥ पुरुषत्वं वेषः मदः नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सबअज्जाणं ॥ १४ ॥ वरिसमयदिक्खिआए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू । अभिगमणवंदण| नमसणेण विणएण सो पुज्जो ॥ १५ ॥ धम्मो पुरिसप्पभवो, पुरिसवरदेसिओ पुरिसजिट्ठो। लोएवि पह पुरिसो, किं पुण लोगुत्तमेत धम्मे ॥ १६ ॥ संवाहणस्स रण्णो, तइया वाणारसीए नयरीए । कन्नासहस्समहि, आसी किर रूबवंतीणं ।। १७ ।। तहविय सा रायसिरी, उल्लुटुंती न ताइया ताहिं । उयरहिएण इकेण, ताइया अंगवीरेण ॥१८॥ महिलाम सुबहुआणवि, मज्झाओ इह समतघरसारो | रायपुरिसेहिं निज्जइ, जणेवि पुरिसो जहिं नत्थि ॥ १९ ॥ किं परजणबहूजाणावणाहिं वरमपसक्खियं सुकयं । इह भरहचकवट्टी, पसन्नचंदो य दिट्ठता ॥ २० ॥ वेसोऽवि अप्पमाणो, असंजमपहेसु बट्टमाणस्स । किं परिअत्तिअवेस, विसं न मारेइ खज्जतं ? २१॥ धम्मं रक्खड वेसो, संकइ वेसेण दिक्खिओ म्हि अहं । उम्मग्गेण पडतं, रक्खइ राया जणवउन्ध ॥ २२ ॥ अप्पा जाणइ अप्पा, जहडिओ अप्पसक्खिओ धम्मो । अप्पा करेइ तं तह, जह अप्पसुहावहं होइ ।। २३ ॥ जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण । सो तम्मि तम्मि समये, सहासुहं बंधए कम्मं ॥ २४ ॥ धम्मो मएण हुँतो, तो नवि सोउण्हवायविज्झडिओ । | संवच्छरम (रं अ) णसिओ, बाहुबली तह किलिस्संतो ॥२५॥ निअगमइविगप्पिअचितिएण सच्छंदबुद्धिरइएणं । कत्तो पारत्तहि कीरइ गुरुअणुवएसेणं ? ॥ २६ ॥ थद्धा निरोवयारी, अविणीओ गपिओ निरुवणामो । साहुजणस्स गरहिओ, जणेऽवि वयणिज्जय लहइ ॥ २७ ॥ थोवणवि सप्पुरिसा, सणकुमारुव केइ बुझंति । देहे खणपरिहाणी, जं किर देवेहिं से कहिया ।। २८ ॥ जइ ता लवसत्तमसुरविमाणवासीवि परिवडंति सुरा । चिंतिज्जतं सेस, संसारे सासयं कयरं? । २९ ।। कह तं भण्णइ सुक्खं? सुचिरणाव जस्स दुक्खमल्लिअइ । जं च मरणावसाणे, भवसंसाराणुबंधिं च ॥ ३० ॥ उवएससहस्सेहिवि, बोहिज्जतो न बुज्झइ कोई । जह For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit उपदेश मालायां ॥२०८॥ भदत्तराया, उदायिनिवमारओ चेव ॥ ३१ ॥ गयकण्णचंचलाए, अपरिचत्ताएँ रायच्छीए । जीवा सकम्मकलिमलभीरयभरा तो तपःविनयः पडंति अहे ॥ ३२ ॥ बुत्तूणवि जीवाणं, सुदुकराईति पावचरिआई । भयवं जा सा सा सा, पच्चाएसो हु इणमो ते ॥ ३३ ॥ पडि-14 मूरिः वज्जिऊण दोसे, निअए सम्मं च पायवडिआए । तो किर मिगावईए, उप्पनं केवलं नाणं ॥३४।। किं सका वुत्तुं जे सरागधम्मम्मि । पुरुषत्वं कोड अकसाओ? । जो पण धरिज्ज धणि. दुब्बयणुज्जालिए स मुणी||३५||कडुअकसायतरूण, पुफ्फ च फल च दोवि विरसाई।।लापमा पुप्फेण झाइ कुविओ, फलेण पावं समायरइ ॥३६।। संतेऽवि कोवि उज्झइ, कोऽवि असंतेवि अहिलसइ भोए। चयह परपच्च-16 एणऽवि, पभवो दळूण जह जq ॥ ३७ ॥ दीसंति परमघोरावि पवरधम्मप्पभावपडिबुद्धा । जह सो चिलाइपुत्तो, पडिबुद्धो सुसुमाणाए ।॥ ३८ ॥ पुफियफलिए तह पिउघरम्मि तण्हाछुहासमणुबद्धा । ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलया जाया ॥ ३९॥ | आहारेसु सुहेसु अ, रम्मावसहेसु काणणेसुं च । साहूण नाहिगारो, अहिगारो धम्मकज्जेसु ॥ ४० ॥ साह कांतारमहाभएस अवि | जणवएवि मुइअम्मि । अवि ते सरीरपीडं, सहति न लहं (य) ति य विरुद्धं ॥ ४१ ॥ जंतेहि पीलियावि हु, खंदगसीसा न चेव परिकुविया । विइयपरमत्थसारा, खमंति जे पंडिआ हुँति ॥४२॥ जिणवयणसुइसकण्णा, अवगयसंसारघोरपेयाला । बालाण खमंति | जई, जइत्ति किं इत्थ अच्छे ?॥४३॥न कुलं इत्थ पहाणं, हरिएसबलस्स किं कुलं आसी । आकंपिया तवेणं, सुरावि जंपज्जुवासंति ॥४४॥ देवो नेरहउत्ति य, कोड पयंगुत्ति माणुसो वेसो । स्वस्सी अ विरुवो, सुहभागी दुक्खभागी अ॥४५॥ राउत्ति य दमगुत्ति | य, एस सपागुत्ति एस वेयविऊ । सामी दासो पुज्जो, खलत्ति अधणो धणवइत्ति ।। ४६ ॥ नवि इत्थ कोवि नियमो, सकम्मविणिविट्ठसरिसकयचिट्ठो । अन्नुन्नरूववसो, नव्व परियत्तए जीवो ॥ ४७ ।। कोडीसएहिं धणसंचयस्स गुणसुभरियाएँ कमाए ||4||२०८॥ For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपदेश मालायां ॥ २०९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवि लुद्धो वयररिसी, अलोभया एस साहूणं ॥ ४८ ॥ अंतेउरपुरबलवाहणींह वर सिरिघरहि मुणिवसहा । कामेहिं बहुविहेहि य, छंदिज्जतावि नेच्छति ॥। ४९ ।। छेओ भेओ वसणं, आयासकिलेसभयविवागो अ । मरणं धम्मन्भंसो, अरई अत्थाउ सच्चाई ॥५०॥ दोससयमूलजालं, पुण्यरिसिविवज्जियं जई वतं । अत्थं वहसि अणत्थं, कीस अणत्थं तवं चरसि ? ।। ५१ । । वहबंधणमारणसेहणाओ काओ परिग्गहे नत्थि । तं जइ परिग्गहुच्चिय, जहधम्मो तो नणु पर्वचा ॥ ५२ ॥ किं आसि नंदिसेणस्स कुलं ? जं हरिकुलस्स विउलस्स । आसी पियामहो सच्चरिएण वसुदेवनामुत्ति ॥ ५३ ॥ विज्जाहरी हिं सहरिसं, नरिंददुहियाहि अहमहंतीहिं । जं पत्थिज्जइ तइया, वसुदेवो तं तवस्स फलं ।। ५४ ।। सपरकमराउलवाइएण सांसे पलीविए निअए । गयसुकुमालेण खमा, तहा कया जह सिवं पत्तो ।। ५५ ।। रायकुलेसुऽवि जाया, भीया जरमरणगव्भवसहीणं । साहू सहति सव्वं, नीयाणवि पेसपेसाणं ॥ ५६ ॥ पणमंति य पुत्रयरं कुलया न नमति अकुलया पुरिसा । पणओ इह पुर्वित्र जइजणस्स जह चकवट्टिमुणी ||५७|| जह चकवट्टिसाहू सामाइअसाहुणा निरुवयारं । भणिओ न चैव कुविओ, पणओ बहुअत्तणगुणणं ॥ ५८ ॥ ते धना से साहू, तेसि नमो जे अकज्जप डिविरया । धीरा वयमसिहारं, चरंति जह धूलिभद्दमुणी ।। ५९ ।। विसयासिपंजरंभित्र, लोए असिपंजरम्मि तिक्खम्मि । सिंहा व पंजरगया, वसंति तवपंजरे साहू ।। ६० ।। जो कुणइ अप्पमाणं, गुरुवयणं न य लएइ उवएसं । सो पच्छा तह सोअइ, उनकोसघरे जह तवस्सी ||६१ || जिट्ठब्बयपव्ययभरसमुब्वहणववसिअस्स अच्चतं । जुवइजण संवइयरे, जइत्तणं उभयओ भ ।। ६२ । जइ ठाणी जड़ मोणी, जइ मुंडी वकली तवस्सी वा । पत्थन्तो अ अबंभ, वैभावि न रोयए मज्झे ।। ६३ ।। तो पढियं तो गुणियं, तो मुणियं तो अ चेहओ अप्पा | आवडियपेल्लियामतिओऽवि जड़ न कुणइ अकज्जं ॥ ६४ ॥ पागडियसव्वसल्लो, गुरुपामूलम्मि लहड़ साहुपयं । अरिमुद्धस्स न For Private and Personal Use Only बाधःभवः अर्थः क्षमा विषयाः ॥२०९॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२१॥ | वड्डइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥६५॥ जइ दुक्करदुकरकारउत्ति भणिओ जहडिओ साहू । तो कीस अज्जसंभूअविजयसीसेहिं बाधःभवः नवि खमिअं? ॥ ६६ ॥ जइ ताव सचओ सुंदरुत्ति कम्माण उवसमेण जई । धम्म बियाणमाणो, इयरो कि मच्छरं वहइ? ॥६७।। अर्थः क्षमा, विषयाः अइसुट्टिओत्ति गुणसमुइओत्ति जो न सहइ जइपसंसं । सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढपीढरिसी ॥ ६८ ।। परपरिवायं गिण्हइ, अट्ठमयविरल्लणे सया रमइ । डज्झइ य परसिरीए, सकसाओ दुक्खिओ निच्चं ॥ ६९ ॥ विग्गहविवायरुइणो, कुलगणसंघेण बाहिरकयस्स । नत्थि किर देवलोणव देवसमिइस अवगासो ॥ ७० ॥ जइ ता जणसंववहारवज्जियमकज्जमायरइ अन्नो । जो तं पुणोद विकत्थइ, परस्स बसणेण सो दुहिओ ॥ ७१ ॥ सुझुवि उज्जव (म) माणं, पंचव करिति रित्तयं समणं । अप्पथुई परनिंदा, जिब्भोवत्था कसाया य ॥७२॥ परपरिवायमईओ, दूसइ वयणेहिं जेहिं जेहिं परं । ते ते पावइ दोसे, परपरिवाई इअ अपिच्छो ॥ ७३ ।। थद्धा छिद्दप्पेही, अवण्णवाई सयंमई चवला । वंका कोहणसीला, सीसा उव्वेअगा गुरुणो ॥ ७४ ॥ जस्स गुरुम्मि न भत्ती, न य बहुमाणो न गउरवं न भयं । नवि लज्जा नवि नेहो, गुरुकुलवासेण किं तस्स? ॥ ७५ ॥ रूसइ चाइज्जतो, वहई हियएण अणुसयं भणिओ। न य कम्हि करणिज्जे, गुरुस्स आलो न सो सीसो ॥७६ ॥ उघिल्लगमूअणपरिभवेहि अइभणिय| दुटुभणिए । सत्ताहिया सुविहिया, न चेव भिंदंति मुहरागं ।। ७७ ॥ माणसिणोवि अवमाणवंचणा ते परस्स न करंति । सुहदुक्खुग्गिरणत्थं, साहू अहिब्ध गंभीरा ॥ ७८ ॥ मउआ निहअसहावा, हासदवविवज्जिया विगहमुका । असमंजसमइबहुअं, न ॥२१ ॥ | भणति अपुच्छिआ साहू ॥ ७९ ॥ महुरं निउणं थोवं, कज्जावडिअं अगब्धियमतुच्छं। पुब्धि मइसकालयं, भणंति ज धम्मसंजुत्तं ॥ ८० ॥ सर्द्वि वाससहस्सा, तिसत्तखुत्तोदयेण धोएण। अणुचिणं तामलिणा, अन्नाणतवुचि अप्पफलो ।।८१॥ छज्जीवकायवहगा, CORRC For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra उपदेश मालायां ।। २११ ।। www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । हिंसकसत्थाई उवइसंति पुणो । सुबहुपि तवकिलेसो, बालतवस्सीण अप्पफलेो ॥ ८२॥ परियच्छंति अ सव्वं, जहद्वियं अवितहं असंदिद्धं । तो जिणवयणविहिन्नू सहति बहुअस्स बहुआई ॥ ८३ ॥ जो जस बढ्इ हियए सो तं ठावेइ सुंदरसहावं । वग्धी छावं जणणी, भदं सोमं च मन्ने || ८४ ॥ । मणिकणगरयणधणपूरियम्मि भवणम्मि सालिभद्दोऽवि । अन्नो किर मज्झवि सामिओत्ति जाओ विगयकामा ४ दीक्षा, गुरुः ॥८५॥ न करेति जे तवसंजमं च तुलपाणिपायाणं । पुरिमा समपुरिमाणं, अवस्स पेसत्तणमुविंति ॥ ८६ ॥ सुंदरसुकुमाल सुहोइएण विविहहिं तवावसेसेहिं । तह सोसविओ अप्पा जह नाव नाओ सभवणेऽवि ||८७|| दुकरमुद्धोसकरं, अवंतिसुकुमालमहरिसीचरियं अप्पावि नाम तह तज्जइत्ति अच्छेरयं एअं ॥ ८८ ॥ उच्छूढसरीरघरा, अन्नो जीवो सरीरमन्नति । धम्मस्स कारणे सुविहिया सरीरंपि छति ॥ ८९ ॥ एगदिवसंपि जीवो, पव्वज्जमुवागओ अनन्नमणो । जवि न पावइ मुक्खं, अवस्स वैमाणिओ होइ ॥ ९० ॥ सीसावेढेण सिरम्मि वेढिए निग्गयाणि अच्छीणि । मेयज्जस्स भगवओ, न य सो मणसावि परिकुविओ ॥ ९१ ॥ जो चंदणेण बाहु, आलिपड वासिणा वि तच्छेइ । संथुणइ जो अ निंदइ, महरिसिणो तत्थ समभावा ।। ९२ ।। सिंह गिरिसुसीसाणं, भद्दं गुरुवयण सद्दहंताणं । वयरो किर दाही वायणत्ति न विकोविअं वयणं ॥ ९३ ॥ मिण गोणसंगुलीहिं, गणेहि वा दंतचकलाई से । इच्छंति भाणिऊणं, (भाणियव्वं) कज्जं तु त एव जाणंति || १४ || कारणविऊ कर्यााई, सेयं कार्यं वयंति आयरिया । तं तहसद्दहिअव्वं भवि कारणेण तहिं ॥ ९५ ॥ जो गिण्हइ गुरुवयणं, भण्णतं भावओ विसुद्धमणो । ओसहमिव पिज्जंतं तं तस्स सुहावहं होइ ॥ ९६ ॥ अणुवत्तगा विणीआ, बहुक्खमा निच्चभत्तिमंता य । गुरुकुलवासी अमुई, धन्ना सीसा इह सुसिला ॥ ९७|| जीवतस्स इह जसो, कित्ती य मयस्स परभवे धम्मो । सुगुणस्स य, निगुणस्म य अजसाऽकित्ती अहम्मो य ||१८|| बुडावासेऽवि ठियं, अहव गिलाणं गुरुं परिभ १ ।। २११ ।। For Private and Personal Use Only मत्सरः अज्ञानं Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां मत्सरः हा अज्ञानं. दीक्षा,गुरुः ॥२१२॥ वंति । दत्तुव्व धम्मवीमंसएण दुस्सिक्खियं तंपि ॥ ९९ ॥ आयरिअभत्तिरागो, कस्स सुनक्खत्तमहरिसीसरिसो। अवि जीविअं बवसिकं, न चेव गुरुपरिभवो सहिओ॥ १०० ॥ पुण्णेहिं चोइआ पुरक्खडेहिं सिरिभायणं भविअसत्ता । गुरुमागमेसिभहा, देवयमिव पज्जुवासंति ॥१०१॥ बहुसुक्खसयसहस्साण दायगा मोअगा दुहसयाणं । आयरिआ फुडमेअं, केसिपएसीअ (क) ते हेऊ ॥१०२॥ नरयगइगमणपडिहत्थए कए तह पएसिणा रण्णा । अमरविमाणं पत्तं, तं आयरिअप्पभावेणं ॥ १०३ ॥ धम्ममइएहिं अइसुंदरेहिं कारणगुणावणीएहिं । पल्हायंतो य मणं, सीस चोएइ आयरिओ ॥ १०४ ।। जीअं काऊण पणं, तुरमिणिदत्तस्स कालिअज्जेणं । अविअ सरीरं चत्तं, न य भणिअमहम्मसंजुत्तं ॥ १०५ ॥ फुडपागडमकहंता, जहडिअं बोहिलाभमुवहणइ । जह भगवओ विसालो, जरमरणमहोअही आसि ॥ १०६ ।। कारुण्णरुण्णसिंगारभावभयजीविअंतकरणाह । साहू अविअ मरंति, न य निअनिअमं विरा| हंति ॥ १०७ ॥ अप्पहियमायरंतो अणुमाअंतो अ सुग्गई लहइ । रहकारदाणअणुमोअगो मिगा जह य बलदेवो ॥१०८ ॥ जंतं कयं पुरा पूरणेण अइदुकरं चिरं कालं । जइ तं दयावरो इह. करिंतु तो सफलयं हुंतं ॥ १०९ ॥ कारणनीयावासी, सुट्टयरं उज्ज| मेण जइयच्वं । जह ते संगमथेरा, सपाडिहेरा तया आसी ॥ ११० ॥ एगंतनियावासी, घरसरणाईसु जइ ममत्तपि । कह न पडि| हंति कलिकलुसरोसदोसाण आवाए ॥१११॥ अवि कत्तिऊण जीवे, कत्तो घरसरणगुत्तिसंठप्पं । अवि कत्तिआ य तं तह, पडिआ | अस्संजयाण पहे ॥११२ ॥ थोवोऽवि गिहिपसंगो, जइणो सुद्धस्स पंकमावहई । जह सो वारत्तरिसी, हसिओ पज्जोअनरवइणा ॥ ११३ ।। सब्भावो वीसंभो, नेहो रहवइयरो अ जुबइजणे । सयणघरसंपसारो, तवसीलवयाई फेडिज्जा ॥ ११४ ॥ जोइसनिमित्त AR- CIA ॥२१२॥ For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरागद्वेषों ८ अक्खरकोउआएमभूइकम्मेहिं । करणाणुमोअणाहि अ, साहुस्स तवक्खओ होइ ॥११५ ॥ जह जह कीरइ संगो, तह तह पसरो साधुत्वं खणे खणे होइ । थोवोवि होइ बहुओ, न य लहइ धिई निरंभंतो ॥११६॥ जो चयइ उत्तरगुणे, मूलगुणेऽवि अचिरण सो चयइ । उपदेश जह जह कुणइ पमायं, पिल्लिज्जइ तह कसाएहि ॥११७॥ जो निच्छएण गिण्हइ, देहच्चाएविनय धिई मुअइ । सो साहेइ सकज्ज, मालायां वजह चंदवडिंसओ राया ॥ ११८ ॥ सीउण्हखुप्पिवासं, दुस्सिज्जपरीसहं किलेसं च । जो सहइ तस्स धम्मो, जो धिइमं सो तवं | चरइ ।। ११९ ॥ धम्ममिणं जाणंता, गिहिणोवि दढबया किमुअ साहू । कमलामेलाहरणे, सागरचंदेण इत्थुवमा ॥ १२० ॥ देवेहि कामदेवो, गिहीवि नवि चालिओ (चाइओ) तवगुणेहिं । मत्तगयंदभुयंगमरक्खसघोरट्टहासेहिं ॥ १२१ ॥ भोगे अभुंज॥२१३।। माणावि केइ मोहा पडंति अहरगई । कुविओ आहारत्थी, जत्ताइ जणस्स दमगुग्ध ।। १२२ ।। भवसयसहस्सदुलह, जाइजरामर णसागरुत्तारे । जिणवयणम्मि गुणायर ! खणमवि मा काहिसि पमायं ॥ १२३ ।। जं न लहइ सम्मत्तं, लणवि जं न एइ संवेग ।। विसयसुहेसु य रज्जइ, सो दोसो रागदोसाणं ॥ १२४ ॥ तो बहुगुणनासाणं, सम्मत्तचरित्तगुणविणासाणं । न हु वसमागंतव्वं, रागहोसाण पावाणं ।। १२५ ॥ नवि तं कुणइ अमित्तो, सुदृवि सुविराहिओ समत्थोऽवि । जं दोऽवि अणिग्गहिया, करंति रागो अM दोसो अ ॥ १२६ ॥ इहलोए आयासं अजसं च कति गुणविणासं च । पसवंति अ परलोए, सारीरमणोगए दुक्खे ॥१२७॥ धिद्धी अहो अकज्ज, जं जाणतोऽवि रागदोसेहिं । फलमउलं कडुअरसं, तं चेत्र निसेवए जीवो ॥१२८ ॥ को दुक्खं पाविज्जा? ॥२१३।। | कस्स व सुक्खे हि विम्हओ हुज्जा को व न लभिज्ज मुक्खं ? रागद्दोसा जइ न हुज्जा ॥१२९॥माणी गुरुपडिणीओ, अणस्थभरिओ AREER15 For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शा उपदेश मालायां ॥ २१४॥ अमग्गचारी य । मोहं किलेसजालं, सो खाइ जहेव गोसालो ।। १३० ॥ कलहणकोहणसीलो, भंडणसीलो विवायमीलो य । जोवोठा साधुत्वं निच्चुज्जलिओ, निरत्थयं संयमं चरइ ॥ १३१ ॥ जह वणदवो वणं दवदवस्स जलिओ खणेण निदहइ । एवं कसायपरिणओ, रागद्वेषी जीवो तवसंजमं दहइ ॥ १३२ ।। परिणामवसण पुणो, अहिओ ऊणयरओ व हुज्ज खओ । तहवि ववहारमित्तेण, भण्णइ इमं जहा धूलं ॥ १३३ ।। फरुसवयणेण दिणतवं, अहिक्खिवतो अ हणइ मासतवं । वरिसतवं सवमाणो, हणइ हर्णतो अ सामण | ॥ १३४ ॥ अह जीवि निकिंतइ, हंतूण य संजमं मलं चिगइ । जीवो पमायबहुलो, परिभमइ अ जेग संसारे ॥ १३५ ॥ अक्कोसणतज्जणताडणा य अवमाणहीलणाओ अ । मुणिणो मुणियपरपभा (हा), दढप्पहारिय बिसहंति :! १३६ ॥ अहमाहओत्ति न य पडिहणंति सत्ताऽपि न य पडिसवंति | मारिज्जंतावि जई, सहंति साहस्समल्लुव्व ॥ १३७॥ दुज्जणमुहकोदंडा, वयणसरा | पुन्बकम्मनिम्माया । साहूण ते न लग्गा, खतीफलयं वहंताणं ॥ १३८ । पत्थरेणाहओ कीवो, पत्थर डक्कुमिच्छइ । मिगारिओ सरं पप्प, सरुप्पत्ति विमग्गइ ॥ १३९ ॥ तह पुब्धि किं न कयं, न बाहए जेण मे समत्थोऽवि । इण्हि किं कस्स व कुप्पिमुत्ति धीरा अणुप्पिच्छा ॥ १४० ॥ अणुराएण जइस्सऽवि, सियायपत्तं पिया धरावेइ । तहवि य खंदकुमारो, न बंधुपासेहिं पडिबद्धो ॥ १४१ ।। गुरु गुरुतरो अ अइगुरु, पियमाइअवच्चपियजणसिणेहो । चिंतिज्जमाणगुविलो, चत्तो अइधम्मतिसिएहि ॥ १४२॥ अमुणियपरमत्थाणं, बंधुजणसिणेहवइयरो होइ । अवगयसंसारसहावनिच्छयाणं समं हिययं ॥१४३॥ माया पिया य भाया, भज्जा ॥ २१४ पुत्ता सुही य नियगा य । इह चेव बहुविहाई, करंति भयवेमणस्साई ।। १४४ ॥ माया नियगमइविगप्पियम्मि अत्थे अपूरमाणम्मिः। पुत्तस्स कुणइ वसणं, चुलणी जह बंभदत्तस्स ॥ १४५ ॥ सवंगावगविगनणाओ जगडणविहेडणाओ अ। कासी य रज्जतिमिओ For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२१५॥ X पुत्ताण पिया कणयकेऊ ॥ १४६ ॥ विसयमहरागवसओ, घोरो भायाऽवि भायरं हणइ । आहाविओ बहत्थं, जह बाहुबलिस्स भर-दिक्षमा, कुटुंब | हवई ॥ १४७॥ भज्जावि इंदियविगारदोसनडिया करइ पइपावं। जह सो पएसिराया मूरियकताई तह वहिओ ॥ १४८ ॥ गच्छवासः सासयसुक्खतरस्सी, नियअंगसमुब्भवेण पियपुत्तो । जह सो सेणियराया, कोणियरण्णा खयं नीओ ॥ १४९ ॥ लुद्धा सकज्जतुरिआ, सुहिणोऽवि विसंवयंति कयकज्जा । जह चंदगुत्तगुरुणा, पब्बयओ घाइओ राया ॥ १५० ।। निययाऽवि निययकज्जे, विसंवयंतम्मि हुँति खरफरुसा । जह रामसुभूमकओ, बंभक्खत्तस्स आसि खओ ॥ १५१ ।। कुलधरनिययसुहेसु अ, सयणे अ जणे अनिच्च मुणिवसहा । विहरंति अणिस्साए, जह अज्जमहागिरी भयवं ।। १५२ ।। रूवेण जुधणेण य कन्नाहि सुहेहिं वरसिरीए य । न य लुब्भंति सुविहिया, निदरिसणं जंबुनामुत्ति ।। १५३ ।। उत्तमकुलप्पसूया, रायकुलबडिंसगावि मुणिवसहा । बहुजणजइसंघटुं, मेहकुमारु ब्व विसहति ॥ १५४ ॥ अवरुप्परसंबाई, सुक्खं तुच्छ सरीरपीडा य । सारण वारण चोयण, गुरुजणआय-| त्तया य गणे ॥१५५।। इक्कस्स कओ धम्मो ?, सच्छंदगईमईपयारस्स । किं वा करेइ इको ?, परिहरउ कहं अकज्ज वा ? ॥१५६।। कत्तो सुत्तत्थागम, पडिपुच्छण चोयणा व इक्कस्स । विणओ यावच्चं, आराहणया य मरणंते ? ॥ १५७ ॥ पिल्लिज्जेसणमिको, पइन्नपमयाजणाउ निच्च भयं । काउमणोऽवि अकज्ज, न तरइ काऊण बहुमज्झे ॥१५८ ॥ उच्चारपासवणवंतपित्तमुच्छाइमोहिओ इक्को । सद्दवभाणविहत्थो, निक्खिवइ व कुणइ उड्डाहं ॥१५९ ॥ एगदिवसेण बहुआ, सुहा य असुहा य जीवपरिणामा । इक्को असुहपरिणओ, चइज्ज आलंबणं लद्धं ॥ १६० ॥ सवजिणप्पडिकुटुं, अणवत्था थेरकप्पभेओ अ । इक्को असुआउत्तोऽवि हणइ ॥२१॥ For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir उपदेश मालायां SERIES ॥ २१६॥ HRECASEARCREACHE तवसंजमं अइरा ॥ १६१ ॥ वसं जुष्णकुमारिं, पउत्थवइअं च बालविहवं च । पासंडरोहमसई, नवतरुणिं धेरभज्जं च ॥ १६२ ॥ संजय क्षमा कुटुंत्रं सविडंकुब्भडरूवा, दिट्ठा मोहेइ जा मणं इत्थी । आयहियं चिंतता, दूरयरेणं परिहरांत ॥ १६३ ॥ सम्मदिट्ठीवि कयागमोवि | & गच्छवासः अइविसयरागसुहवसओ । भवसंकडम्मि पविसइ, इत्थं तुह सच्चई नायं ॥१६४॥ सुतवस्सियाण पूया, पणामसकारविणयकज्जपरो। | बद्धपि कम्ममसुह, सिढिलेइ दसारनेया व ॥ १६५ ॥ अभिगमणवंदणनमंसणण पडिपुच्छणेण साहणं । चिरसंचियंऽपि कम्म, खणेण विरलत्तणमुवेइ ॥ १६६ ॥ केइ सुसीला सुहमाइ सज्जणा गुरुजणस्सऽवि सुसीसा । विउलं जणंति सद्धं, जह सीसो चंडरुदस्स ॥ १६७ ।। अंगारजीववहगो, कोई कुगुरू मुसीसपरिवारो । सुमिणे जईहि दिट्ठो, कोलो गयकलहपरिकिण्णो ॥ १६८ । सो उग्गभवसमुद्दे, सयंवरमुवागएहि राएहिं । करहोवक्खरभरिओ, दिट्टो पोराणसीसेहिं ॥ १६९ ।। संसारवंचणा नवि, गणंति संसारसूअरा जावा । सुमिणगएणऽवि केई, बुज्झति पुष्फचूला वा ॥१७०॥ जो अविकलं तवं संजमं च साहू करिज्ज पच्छाऽवि । आनियसुयव्य सो नियगमट्ठमचिरेण साहेइ ।।१७१।। सुहिओ न चयइ भोए, चयइ जहा दुक्खिओत्ति अलियमिणं । चिक्कणकम्मोलित्तो न इमो न इमो परिच्चयई ।। १७२ ।। जह चयइ चक्कवट्टी, पवित्थरं तत्तियं मुहुत्तेणं । न चयइ तहा अहनो, दुब्बुद्धी खप्परं दमओ ॥ १७३ ॥ देहो पिपीलियाहिं, चिलाइपुत्तस्स चालणी बकओ। तणुओवि मणपओसो, न चालिओ तेण ताणुवरि ॥१७४ ॥ पाणच्चएऽवि पार्व, पिवीलियाएऽवि जे न इच्छति । ते कह जई अपावा, पावाइँ करंति अन्नस्स? ॥ १७५ ॥ जिणपहअपंडियाण, पाणहराणऽपि पहरमाणाणं । न करंति य पावाई, पावस्स फलं वियाणंता ॥ १७६ ॥ बहमारणअब्भक्खाणदाणपरधणविलोवणाइणं । सव्वजहन्नो उदओ, दसगुणिओ इकसि कयाणं ॥ १७७॥ तिब्बयरे उ पओसे, सयगुणिओ सयसहस्सकोडि णो । कोडा MARKES ॥२१६॥ For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां विपाका, आत्मदमः, प्रमादो, भवः, ॥२१७॥ कोडिगुणो वा, हुज्ज विवागो बहुतरो वा ॥ १७८ ॥ केइत्थ करतालंबणं इमं तिहुयणस्स अच्छेरं । जह नियमा खवियंगी, मरुदेवी | भगवई सिद्धा ।। १७९ ।। किंपि कहिंपि कयाई, एगे लद्धीहि केहिऽवि निभेहिं । पत्तेअबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयम्भूया ॥ १८० ॥ निहिसंपत्तमहन्नो, पत्थितो जह जणो निरुत्तप्पो । इह नासह तह पत्तेअबुद्धलद्धि(च्छि)पडिच्छतो ।। १८१ ॥ सोऊण गई सुकुमालियाए तह ससगभसगभइणीए । ताव न वीसासयब्वं, सेयट्ठी धम्मिओ जाव ॥ १८२ ॥ खरकरहतुरयवसहा, मत्तगईदावि नाम दम्मति । इको नवरि न दम्मइ, निरंकुसो अप्पणो अप्पा ॥ १८३ ॥ वरं मे अप्पा दंतो, संजमेण तवेण य । माऽहं परेहिं दमतो, बंधणेहिं वहेहि अ॥ १८४ ॥ अप्पा चव दमेयव्यो, अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य॥१८५।। निच्चं दोससहगओ, जीवो अविरहियमसुहपरिणामो । नवरं दिने पसरे, तो देइ पमायमयरेसु ॥ १८६ ॥ अच्चिय वंदिय पूइअ, सकारिय पणमिओ महग्घविओ । तं तह करेइ जीवो, पाडेइ जहप्पणो ठाण ॥१८७॥ सीलब्बयाई जो बहुफलाइँ हंतूण सुक्खमहिलसइ । धिइदुबलो तवस्सी, कोडीए कागिणिं किणई ॥ १८८ ।। जीवो जहामणसियं, हियइच्छियपत्थिरहिं सुक्खेहिं । तोसेऊण न तीरई, जावज्जीवेण सव्वेण ॥१८९॥ सुमिणंतराणुभूयं, सुक्खं समइच्छियं जहा नत्थि । एवमिमपि अईयं, सुक्खं सुमिणो| वमं होई ॥ १९० ॥ पुरनिद्धमणे जक्खो, महुरामंगू तहेव सुयनिहसो । बोहेई सुविहियजणं, विसरइ बहुं च हियएण ।। १९१ ।। निग्गंतूण घराओ, न कओ धम्मो मए जिणक्खाओ । इड्डिरससायगुरुयत्तणेण न य चेइओ अप्पा ॥ १९२ ॥ ओसन्नविहारेणं, | हा जह झीणम्मि आउए सब्धे । किं काहामि अहलो ? संपइ सोयामि अप्पाणं ॥१९३॥ हा जीव ! पाव भमिहिसि, जाईजोणीसयाई बहुयाई । भवसयसहस्सदुलहपि जिगमयं एरिसं लधु ॥ १९४ ॥ पावो पमायवसओ, जीवो संसारकज्जमुज्जुत्तो । दुक्खेहि CREAM-StsACREAM SHARECHES 15॥२१७॥ For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२१८॥ भवः, न निविण्णो सुक्खेहिं न चेव परितुट्ठो ॥ १९५ ॥ परितप्पिएण तणुओ, साहारो जइ घणं न उज्जमइ । सेणियराया तं तह, परि-10 विपाकः, आत्मदमः, तप्पंतो गओ नरयं ॥१९६ ॥ जीवेण जाणि विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि । थोवेहिं तओ सयलंपि तिहुयण हुज्ज पडि-18 प्रमादा, हत्थं ॥१९७ ॥ नहदंतमंसकेसट्ठिएसु जीवेण विप्पमुक्केपु । तेसुवि हविज्ज कइलासमेरुगिीरसीनमा कूडा ॥ १९८ ।। हिमवंतमलयमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ । अहिअयरो आहारो, छुहिएणाहारिओ होज्जा ॥१९९ ॥ जंण जलं पीयं, धम्मायवजगडिएण तंपि इहं । सव्वेसुवि अगडतलायनइसमुद्देसु नवि हुज्जा ॥२०० ॥ पीयं थणयच्छीरं, सागरसलिलाओ होज्ज बहुअयरं । संसारम्मि अणते, माऊणं अन्नमन्नाणं ।। २०१ ॥ पत्ता य कामभोगा, कालमणंतं इह सउवभोगा । अप्पुबंपि व मन्नई, | तहवि य जीवो मणे सुक्खं । २०२ ॥ जाणइ अ जहा भोगिड्डिसंपया सब्वमेव धम्मफलं । तहवि दढमूढहियओ, पावे कम्मे जणा रमई ॥२०३ ।। जाणिज्जइ चिंतिज्जइ, जम्मजरामरणसंभवं दुक्खं । न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी ।। २०४ ॥ जाणइ य जह मरिज्जइ, अमरंतंपि हु जरा विणासेई । न य उद्विग्गो लोओ, अहो रहस्सं सुनिम्मायं ।। २०५ ॥ दुपयं चउप्पयं बहुपयं च अपयं समिद्धमहणं वा । अणवकएवि कयंतो, हरइ हयासो अपरितंतो ॥२०६ ।। न य नज्जइ सो दियहो, मरियव्यं |चावसेण सव्वण | आसापासपरदो, न करेह य जं हियं बोज्झो(बोहो)॥२०७|| संझरागजलबुब्बुओवमे, जीविए अ जलबिंदुचंचले।। जुव्वणे य नहवेगसनिमे, पाव जीव ! किमयं न बुज्झसि ॥ २०८ ॥ जज नज्जड असई, लज्जिज्जह कुच्छणिज्जमयति । तं तं | ॥२१८॥ मग्गइ अंगं, नवरमणंगुत्थ पडिकूलो ॥२०९ ॥ सब्बगहाणं पभवो, महागहो सधदोसपायट्टी । कामग्गहो दुरप्पा, जेणभिभूयं तू |जगं सव्वं ।। २१० ।। जो सेवइ किं लहइ, थाम हारेइ दुब्बलो होइ । पावेइ वेमणसं, दुक्खाणि अ अत्तदोसणं ॥२११ ।। जह 426 For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२१९॥ IA कच्छुल्लो कच्छु, कंडुयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं चिंति ॥ २१२ ।। बिसयविसं हालहलं, विस-दि अनित्यता, | यविसं उकडं पियंताणं । विसयविसाइबंपिव, विसयविसविसूइया होई ॥ २१३ ।। एवं तु पंचहिं आसवेहिं रयमायणित्तु अणुसमयं । कामः, चउगइहपेरंत, अणुपरियट्ठति संसारे ।। २१४ ॥ सव्वगईपक्खंदे, काहति अर्णतए अकयपुण्णा । जे य न सुणति धम्मं, सोऊण य|8|कुशालसंगः जे पमायति ॥ २१५ ॥ अणुसिट्ठा य बहुविहं, मिच्छद्दिट्टी य जे नरा अहमा । बद्धनिकाइयकम्मा, सुणति धम्मं न य करंति | | श्राद्धः ॥ २१६ ॥ पंचेव उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेणं । कम्मरयविप्पमुक्का, सिद्धिगइमणुत्तरं पत्ता ।। २१७ ।। नाणे दसणचरणे, | तवसंजमसमिइगुत्तिपच्छित्ते । दमउस्सग्गववाए, दवाइअभिग्गहे चेव ।। २१८ ।। सद्दहणायरणाए, निच्च उज्जुत्त एसणाइ ठिओ। | तस्स भवोअहितरणं, पधज्जाए य (स) म्मं तु ॥२१९।। जे घरसरणपसत्ता, छक्कायरिऊ सकिंचणा अजया । नवरं मुत्तूण घरं, घर-* का संकमणं कयं तेहिं ।। २२० ।। उस्सुत्तमायरंतो, बंधइ कम्म सुचिकणं जीवो । संसारं च पपडद, मायामोसं च कुबइ य ।। २२१ ॥18॥ जइ गिण्हइ वयलोवो, अहव न गिण्हइ सरीरवुच्छेओ । पासत्थसंगमोऽविय, वयलोवो तो वरमसंगो ।। २२२ ।। आलावो संवासो, वीसंभो संथवो पसंगो अ । हीणायारेहिं समं, सबजिणिंदेहिं पडिकुट्टो ॥ २२३ ॥ अन्नुनजंपिएहिं हसिउद्धसिएहिं खिप्पमाणो अ । पासत्थमज्झयारे, बलाऽवि जइ वाउलीहोइ ।। २२४ ॥ लोएऽवि कुसंसग्गीपियं जणं दुनियच्छमइवसणं । निंदइ निरुज्जमं पियकुसीलजणमेव साहुजणो ॥ २२५ ॥ निच्चं संकिय भीओ गम्मो सबस्स खलियचारित्तो । साहुजणस्स अवमओ, मओऽवि | पुण दुग्गई जाइ ॥ २२६ ।। गिरिसुअपुष्फमुआणं, सुविहिय ! आहरणकारणविहन्नू । वज्जेज्ज सीलविगले उज्जुयसीले हविज्ज | जई ॥ २२७ ॥ ओसन्नचरणकरणं, जइणो वंदंति कारणं पप्प । जे सुविइयपरमत्था, ते बंदंते निवारंति ॥ २२८ ॥ सुविहिय बंदा ॥२१९॥ For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AK उपदेश मालायां ॥२२॥ श्राद्धः SE%E5% वंतो, नासेई अप्पयं तु सुपहाओ । दुविहपहविप्पमुक्को, कहमप्प न याणई मूढो ।। २२९ ॥ वंदइ उभओ कालंपि चेइयाई थइथुईअनित्यता, (थवत्थुई ) परमा । जिणवरपडिमाघरधूवपुप्फगंधच्चणुज्जुत्तो ॥ २३० ॥ सुविणिच्छियएगमई, धम्मम्मि अननदेवओ अ पुणो । कामः न य कुसमएस रज्जइ, पुवावरवाहियत्थेसु ॥ २३१ ॥ दट्टण कुलिंगीणं, तसथावरभूयमदणं विविहं । धम्माओ न चालिज्जइ, कुशालसगः देवेहिं सईदएहिपि ॥ २३२॥ वंदइ पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययमेव । पढइ सुणइ गुणेइ अ, जणस्स धर्म परिकहेइ ॥ २३३ ॥ दढसीलव्वयनियमो, पोसहआवस्सएसु अक्खलिओ । महुमज्जमंसपंचविहबहुवीयफलेसु पडिकतो ॥ २३४ ॥ नाहम्मकम्मजीवी, पच्चक्खाणे अभिक्खमुज्जुत्तो । सव्वं परिमाणकडं, अवरज्जइ तंपि संकंतो ॥ २३५ ॥ निक्खमणनाणनिबाणजम्म| भूमीउ चंदइ जिणाणं । न य वसइ साहुजणविरहियम्मि देसे बहुगुणेऽवि ॥ २३६ ॥ परतित्थियाण पणमण, उब्भावण Oणण भत्तिरागं च | सक्कारं सम्माणं, दाणं विणयं च वज्जेइ ॥ २३७ ।। पढमं जईण दाऊण, अप्पणा पणमिऊण पारेइ । असई अ सुविहिआणं, भुजेई कयदिसालोओ ।। २३८ ॥ साहूण कप्पणिज्ज, नवि दिन्नं कहिंपि किंचि तहिं । धीरा जहुत्तकारी, सुसावगा तं न भुजंति ॥२३९।। वसहीसयणासणभत्तपाणभेसज्जवत्थपत्ताई । जइऽवि न पज्जत्तधणो थोवाऽबिहु थोवयं देई ॥२४०॥ संवच्छरचाउम्मासिएसु अट्ठाहियासु अ तिहीसु । सव्वायरेण लग्गइ जिणवरपूयातवगुणेसु . ॥ २४१ ॥ साहूण चेइयाण य पडिणीयं तह अवण्णवायं च | जिणपवयणस्स अहि, सव्वत्थामेण वारेहे ॥ २४२॥ विरया पाणिवहाओ, विरया निच्चं च अलियायणाओ। विरया चोरिकाओ, विरया परदारगमणाओ ॥ २४३ ।। विरया परिग्गहाओ, अपरिमिआओ अणंततण्हाओ । बहुदोससंकुलाओ, ॥२२ ॥ | नरयगइगमणपंथाओ ॥ २४४ ॥ मुक्का दुज्जणमित्ती, गहिया गुरुवयणसाहुपडिवत्ती । मुक्को परपरिवाओ गहिओ जिणदेसिओ For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां M ॥२२॥ धम्मो ॥ २४५ ॥ तवनियमसीलकलिया, सुसावगा जे हवंति इह सुगुणा । तेसिं न दुल्लहाई, निब्याणविमाणसुक्खाई ॥२४६ ॥3 संक्लिष्टः, सीइज्ज कयावि गुरू, तपि सुसीसा सुनिउणमहुरेहिं । मग्गे ठवंति पुणरवि, जह सेलगपंथगो नायं ॥ २४७ ॥ दस दस दिवसे क्रिया, दिवसे, धम्मे बोहेइ अहव अहिअयरे । इअ नंदिसेणसत्ती, तहविय से संजमविवत्ती ॥२४८॥ कलुसीकओ अ किट्टीकओ अ विनयः | खयरीकओ मलिणिओ अ । कम्मेहिं एस जीवो, नाऊणऽवि मुज्झई जेणं ॥ २४९ ॥ कम्मेहिं वज्जसारोवमेहिं जउनंदणोऽवि | पडिबुद्धो । सुबहुंपि विसूरंतो, न तरइ अप्पक्खमं काउं ॥ २५० ॥ वाससहस्संऽपि जई, काऊणं संजम सुविउलंपि । अंते किलिट्ठभावो, न विसुज्झइ कंडरीउ ब्व ॥२५१।। अप्पेणऽवि कालेणं, केइ जहागहियसीलसामण्णा । साहंति निययकज्ज, पुंडरियमहारिसि ब्ब जहा ।। २५२ ॥ काऊण संकिालटुं, सामण्णं दुल्लहं विसोहिपयं । सुज्झिज्जा एगयरो, करिज्ज जइ उज्जम पच्छा ।। २५३ ॥ ४ा उज्झिज्ज अंतरि च्चिय, खडिय सबलादउ ख दुज्ज खणं । ओसन्नो सुहलेहडन तरिज्ज व पच्छ उज्जमिउं ॥ २५४ ॥ अविर | नाम चक्कवट्टी, चइज्ज सव्वंपि चकवट्टिसुहं । न य ओसन्नविहारी, दहिओ ओसत्रयं चयई ॥२५५ ॥ नरयत्थो ससिराया, बहु भणई देहलालणासुहिओ । पडिओ मि भए भाउअ ! तो मे जाएह तं देहं ।। २५६ ।। को तेण जीवरहिएण, संपयं जाइएण हुज्ज गुणो? । जइऽसि पुरा जायतो, तो नरए नेव निवडतो ॥ २५७ ॥ जावाऽऽउ सावसेस, जाव य थोवोऽवि अत्थि ववसाओ । ताव | करिज्जप्पहियं, मा ससिराया व सोइहिसि ॥ २५८ ।। चित्तगवि सामण्णं, संजमजोगेसु होइ जो सिढिलो । पडइ जई वयणिज्जे १ ॥२२ ॥ सोअइ अगओ कुदेवत्तं ।। २५९ ॥ सुच्चा ते जिअलोए, जिणवयणं जे नरा न याणति । सुच्चाणवि ते सुच्चा, जे नाऊणं नवि | करेंति ॥ २६० ।। दावेऊण धणनिहि, तेसिं उप्पाडियाणि अच्छीणि । नाऊणवि जिणवयणं, जे इह विहलंति धम्मधणं ।।२६१॥ For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R उपदेश मालायां ॥२२२॥ ठाणं उच्चुच्चयर, मझं होणं च हीणतरगं वा । जेण जहिं गंतव्वं, चिट्ठाऽवि से तारिसी होई ॥ २६२ ॥ जस्स गुरुम्मि परिभवो,51 संक्लिष्टः | साहूसु अणायरो खमा तुच्छा । धम्मे य अणहिलासो, अहिलासो दुग्गईए उ ॥ २६३ ।। सारीरमाणसाणं, दुक्खसहस्साण वसण क्रिया, परिभीया । नाणंकुसेण मुणिणो, रागगईदै निरुभति ॥ २६४ ॥ सुग्गइमग्गपईवं, नाणं दितस्स हुज्ज किमदेयं । जह तं पुलिंद विनयः एणं, दिनं सिवगस्स नियगच्छि ॥ २६५ ।। सिंहासणे निसणं सोवागं सेणिओ नरवरिंदो । विज मग्गइ पयओ, इअ साहुजणस्स सुअविणओ ।। २६६ ॥ विज्जाए कासवसंतिआए दगसूअरो सिरिं पत्नो । पडिओ मुसं वयंतो, सुअनिण्हवणा इय अपत्था ।। २६७॥ सयलम्मिवि जियलोए, तेण इहं घोसिओ अमाघाओ । इकंऽपि जो दुहत्तं, सत्तं बोहेइ जिणवयणे ।। २६८ ॥ सम्मत्तदायगाणं, दुप्पडियारं भवेसु बहुएसु । सव्वगुणमेलियाहिऽवि, उवयारसहस्सकोडीहिं ।। २६९ ।। सम्मत्तम्मि उ लद्धे, ठड्याई नरयतिरियदाराई । दिव्याणि माणुसाणि य मोक्खसुहाई सहीणाई ।। २७० ।। कुसमयसुइण महणं, सम्मत्तं जस्स सुट्टियं हियए। तस्स | जगुज्जोयकर, नाणं चरणं च भवमहणं ।।२७१।। सुपरिच्छियसम्मत्तो, नाणेणालोइयत्थसब्भावो । निव्वणचरणाउत्तो, इच्छियमत्थं पसाहेइ ।। २७२ ।। जह मूलताणए पंडुरम्मि दुव्वण्णरागवण्णेहि । बीभच्छा पडसोहा, इय सम्मत्तं पमाएहिं ।। २७३ ।। नरएसु सुरवरेसु य, जो बंधइ सागरोवम इकं । पलिओवमाण बंधइ, कोडिसहस्साणि दिवसेण ॥ २७४ । पलिओवमसंखिज्जं, भागं जो बंधई सुरगणेसु । दिवसे दिवसे बंधइ, स वासकोडी असंखिज्जा ॥ २७५ ।। एस कमो नरएसुवि, बुहेण नाऊण नाम एयंमि ।। धम्मम्मि कह पमाओ, निमेसमित्तंपि कायव्यो। २७६ ॥ दिव्वालंकारविभूसणाई रयणुज्जलाणि य घराई । रूवं भोगसमुदओ, ॥२२२॥ सुरलोगसमो कओ इहयः॥२७७||देवाण देवलोए जे सुक्खं तं नरो सुभणिओऽविन भणइ वाससएणऽवि जस्सऽवि जीहासयं हुज्जा।।२७८॥ For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie उपदेश मालायां सम्यक्त्वं, चतुर्गति ॥२२३॥ स्थाम, समितयः नरएसु जाई अइकक्खडाइँ दुक्खाई परमतिक्खाई । को वण्णेही ताई?, जीवंतो वासकोडीऽवि ॥२७९॥ कक्खडदाहं सामलि असिवणवेयरणिपहरणसएहिं । जा जायणाउ पावंति, नारया तं अहम्मफलं ॥ २८० ॥ तिरिया कसंकुसारानिवायवहबंधमारणसयाई । नऽवि इहयं पावेंता, परत्थ जइ नियमिया हूंता ॥ २८१ ॥ आजीव संकिलेसो, सुक्खं तुच्छं उबद्दवा बहया । नीयजणासट्टणावि य, अणिट्ठवासो अ माणुस्से ॥ २८२ ॥ चारगनिरोहवहबंधरोगधणहरणमरणवसणाई । मणसंतावो अजसो, विग्गोवणया य माणुस्से ।। २८३ ॥ चिंतासंतावहि य, दरिद्दरूआहिं दुप्पउत्ताहिं । लघृणवि माणुस्सं, मरंति केई सुनिविष्णा ।। २८४ ।। देवाऽवि देवलोए, दिब्बाभरणाणुरंजियसरीरा । जं परिवति तत्तो, तं दुक्खं दारुणं तेसिं ॥ २८५ ॥ तं सुरविमाणविभवं, चितिय चवणं च देवलोगाओ। अइबलिय चिय जनवि, फट्टा सयसकर हिययं ।। २८६ ।।ईसाविसायमयकोहमायालोभेहिं एवमाइहिं ।। देवाऽवि समभिभूया, तेसि कत्तो सुहं नाम ? ॥२८७|| धम्मपि नाम नाऊग, कीस पुरिसा सहति पुरिसाणं । सामिते साहीणे, को | नाम करिज्ज दासत्तं ? || २८८ ॥ संसारचारए चारए व्ध आवालियस्स बंधेहिं । उधिग्गो जस्स मणो, सो किर आसमसिद्धिपहो ॥ २८९ ॥ आसन्नकालभवसिद्धियस्स जीवस्स लक्खणं इणमो । विसयसुहेसु न रज्जइ, सव्वत्थामेसु उज्जमइ ॥ २९० ।। हुज्ज वन व देहबलं, धिइमइसत्तेण जइ न उज्जमसि । अच्छिहिसि चिरं कालं, बलं च कालं च सोअंतो ॥ २९१ ॥ लमिल्लियं च बोहिं, अकरितोऽणागयं च पत्थितो । अन्नं दाई बोहिं, लब्भिास कयरेण मुल्लण? ॥ २९२ ।। संघयणकालबलदूसमारुयालंबणाई | चित्तूणं । सव्वं चिय नियमधुरं, निरुज्जमाओ पमुच्चति ।। २९३ ॥ कालस्स य परिहाणी, संजमजोगाई नत्थि खित्ताई । जयणाइ व वट्टियव्वं, नहु जयणा भजए अंगं ॥ २९४ ॥ सभिईकसायगारवइंदियमयवंभचेरगुत्तीसु । सज्झायविणयतवसत्तिओ अ जयणा ॥२२३॥ For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां दुःखं, ॥२२४ ॥ सुविहियाणं ॥ २९५ ।। जुगमित्तंतरदिट्ठी, पयं पयं चक्खुणा विसोहितो । अव्वक्खित्ताउत्तो, इरियासमिओ मुणी होई ॥ २९६ ॥15 सम्यक्त्वं, कज्जे भासइ भासं, अणवज्जमकारणे न भासइ य । विगहविसुत्तियपरिवज्जिओ अ जइ भासणासमिओ ॥ २९७ ॥ बायालमेस चतुर्गतिणाओ, भोयणदोसे य पंच सोहेइ । सो एसणाइसमिओ, आजीवी अन्नहा होइ ॥ २९८ ।। पुब्धि चक्खु परिक्खिय, पमज्जिउं जो स्थाम, ठवेइ गिण्हइ वा । आयाणभंडनिक्खेवणाइ समिओ मुणी होइ ॥ २९९ ॥ उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणए य पाणविही । सुवि समितयः वेइए पएसे, निसिरंतो होइ तस्समिओ ॥ ३०० ।। कोहो माणो माया, लोभो हासो रई य अरई य । सोगो भयं दुगुंछा, पच्चक्खकली इमे सव्वे ॥३०१।। कोहो कलहो खारो, अवरुप्परमच्छरो अणुसओ अ । चंडत्तणमणुवसमो, तामसभावो अ संतावो ॥३०२।। निच्छोडण निभंछण निराणुवत्तित्तणं असंवासो । कयनासो अ असम्म, बंधइ घणचिकणं कम्मं ।। ३०३ ॥ युग्मम् ।। माणो |मयऽहंकारो, परपरिवाओ अ अत्तउकरिसी । परपरिभवोऽवि य तहा, परस्स निंदा असूआ य ॥ ३०४ ॥ हीला निरुवयारितणं निरवणामया अविणओ अ । परगुणपच्छायणया, जीवं पाडंति संसारे ।। ३०५ ।। युग्मम् ॥ माया कुडंग पच्छन्नपावया कूड कवड वंचणया । सव्वत्थ असम्भावो, परनिक्खेवावहारो अ ॥३०६॥ छल छोम संवइयरो, गूढायारत्तणं मई कुडिला । वीसंभघायणंपिय भवकोडिसएसुवि नडंति ॥ ३०७ ॥ युग्मम् ।। लोभो अइसंचयसीलया य किलिट्ठत्तणं अइममत्तं । कप्पन्नमपरिभोगो, नट्ठविनडे काय आगलं ।। ३०८ ॥ मुच्छा अइबहुधणलाभया य तब्भावभावणा य सया । बोलंति महाघोरे, जरमरणमहासमुदंमि ।। ३०९॥18 ॥२२४। &॥ युग्मम् ।। एएसु जो न वट्टिज्जा ( वट्टे), तेणं अप्पा जहडिओ नाओ । मणुआण माणणिज्जो, देवाणवि देवयं हुज्जा ॥३१०॥ जो भासुरं भुअंग, पयंडदाढाविसं विघट्टेइ । तत्तो चिय तस्संतो रोसभुअंगोवमाणमिणं ॥ ३११ ॥ जो आगलेइ मत्तं, कयंतकालो For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir X कषायाः उपदेश मालायां ॥२२५॥ हुपादि, वर्म वणगईंदं । सो तेणं चिय छुज्जइ, माणगईदेण इत्थुवमा ॥ ३१२॥ विसवाल्लिमहागहणं, जो पविसइ साणुवायफरिसविसं । सो अचिरेण विणस्सइ, माया विसवल्लिगहणसमा ॥ ३१३ ॥ घोरे भयागरे सागरम्मि तिमिमगरगाहपउरम्मि । जो पविसइ सो पवि-10 सइ, लोभमहासागरे भीमे ॥ ३१४ ॥ गुणदोसबहुविसेसं, पयं पयं जाणिऊण नीसेसं । दोसेसु जणो न विरज्जइत्ति कम्माण | गौरवाणि, अहिगारो ॥ ३१५ ॥ अट्टहासकलीकिलत्तणं हासखिड्डजमगरुई । कंदप्पं उवहसणं, परस्स न करति अणगारा ॥ ३१६ ॥ साहूर्ण इन्दियाणि, अप्परुई, ससरीरपलोअणा तवे अरई । सुस्थिअवनो अइपहरिसो य नत्थी सुसाहूणं ॥ ३१७ ॥ उब्बेयओ अ अरणामओ अ अर-! मदाः |मंतिया य अरई य । कलिमलओ अ अणेगग्गया य कत्तो सुविहियाणं? ॥३१८॥ सोगं संतावं अधिई च मन्नु च वेमणस्सं च । कारुन रुनभावं, न साहु धम्मम्मि इच्छति॥३१९॥ भयसंखोहविसाओ, मग्गविभेओ विभीसियाओ अपरमग्गर्दसणाणि य. दढधम्माण कओ हुँति ? ॥ ३२० ।। कुच्छा चिलीणमलसंकडेसु उव्वेयओ अणिद्वेमु । चक्खुनियत्तणमसुभेसु नत्थि दब्बेसु दंताणं ॥३२॥ | एयपि नाम नाऊण, मुज्झियव्वंति नूण जीवस्स । फेडेऊण न तीरइ, अइबलिओ कम्मसंघाओ ॥३२२॥ जह जह बहुस्सुओ सम्मओ असीसगणसंपरिवुडो अ । अविणिच्छिओ अ समए, तह तह सिद्धतपडिणीओ ॥ ३२३ ।। पवराई वत्थपायासणोवगरणाई एस | विभवो मे । अविय महाजणनेया, अहंति अह इड्गिारविओ ॥ ३२४ ॥ अरसं विरसं लूहं जहोववनं च निच्छए भुत्तुं । निद्वाणि पेसलाणि य, मग्गइ रसगारवे गिद्धो ॥ ३२५ ।। सुस्सूसई सरीरं, सयणासणवाहणापंसगपरो । सायागारवगुरुओ दुक्खस्स न दइ अप्पाणं ॥ ३२६ ।। तवकुलछायाभंसो, पंडिच्चफसणा अणिट्ठपहो । बसणाणि रणमुहाणि य, इंदियवसगा अणुहवंति ।। ३२७ ।।। | सद्देसु न रंजिज्जा, स्वं दटुं पुणो न इक्खिज्जा । गंधे रसे अ फासे, अमुच्छिओ उज्जमिज्ज मुणी ॥३२८॥ निहयाणि हयाणि य| For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२२६॥ इंदिआणि धाएहऽणं पयत्तेणं । अहियत्थे निहयाई, हियकज्जे पूयणिज्जाई ।। ३२९ ।। जाइकुलरूवबलसुअतवलाभिस्सरिय अटुमयमत्तो । एयाई चिय बंधइ, असुहाइ बहुं च संसारे ॥ ३३० ॥ जाईए उत्तमाए, कुले पहाणम्मि रूवमिस्सरियं । बलविज्जाय तवेण य, लाभमएणं च जो खिंस ॥ ३३१ ॥ संसारमणवयग्गं, नीयट्ठाणाई पावमाणो य । भमइ अणंतं कालं, तम्हा उ मए विवज्जिज्जा ॥ ३३२ ।। युग्मम् ।। सुटुंऽपि जई जयंतो, जाइमयाइसु मज्जई जो उ । सा मेअज्जरिसि जहा, हरिएसबलु व्ध परिहाई न्दियाणि, ॥ ३३३ ।। इत्थिपसुसंकिलिहूं, वसहिं इत्थीकहं च बज्जतो । इत्थिजणसंनिसिम्जं, निरूवणं अंगुवंगाणं ।। ३३४ ॥ पुब्बरयाणुस्स मदाः रणं, इत्थीजणविरहरूबविलय च । अइवह अइबहुसो, विवज्जयंतो अ आहारं ।। ३३५ ।। बज्जतो अ विभूसं, जइज्ज इह बंभचर-14 गुत्तीसु । साह तिगुत्तिगुत्तो, निहुओ दंतो पसंतो अ॥३३६।। त्रिभिर्विशेषकम् ॥ गुज्झारुवयणकक्खोरुअंतरे तह अणंतर दटुं। साहरइ तओ दिहूिँ, न य बंधइ दिट्टिए दिदि ।। ३३७ ॥ सज्झाएण पसत्थं, झाणं जाणइ य सब्वपरमत्थं । सज्झाए बर्दृतो, खणे। खणे जाइ वेरग्गं ॥ ३३८ ॥ उड्डमहतिरियलोए, जोइसवेमाणिया य सिद्धी य । सब्बो लोगालोगो, सज्झायविउस्स पच्चक्खो ॥ ३३९ ।। जो निच्चकाल तवसंजमुज्जओ नवि करेइ सज्झाय | अलसं सुहसील जणं, नवि तं ठावइ साहुपए ॥ ३४०॥विणओर सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । विणयाओ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तबो ? ॥ ३४१ ।। विणओ आवहइ सिरिं, लहइ हविणीओ जसं च कित्तिं च । न कयाइ दुबिणीओ, सकज्जसिद्धिं समाणइ ।। ३४२ ॥ जह जह खमइ सरीरं, धुवजोगा जह जहा नाम हायति । कम्मक्खओ अ विउलो, विवित्तया इंदियदमो अ ॥३४३ ॥ जइ ता असक्कणिज्ज, न तरसि काऊण तो इमं कीस । ॥२२६॥ अ-पायत्तं न कुणसि, संजमजयणं जईजोगं ? ॥ ३४४ ॥ जायम्मि देहसंदेहयम्मि जयणाइ किंचि सेविज्जा । अह पुण सज्जो अ For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश | मालायां RSS निरुज्जमो अ तो संजमो कत्तो ? ॥ ३४५ ॥ मा कुणउ जइ तिगिच्छं, अहियासेऊण जइ तरह सम्मं । अहियासितस्स पुणो, जह | गुप्तयः, +से जोगा न हायं.ते ॥ ३४६ ॥ निच्चं पवयणसोहाकराण चरणुज्जुआण साहणं । संविग्गविहारीणं, सव्वपयत्तेण कायब्ध ॥३४॥ स्वाध्यायः, हीणस्सऽवि सुद्धपरूवगस्स नाणाहियस्स कायब्वं । जणचित्तग्गहणत्थं, करिति लिंगावससेवि ॥ ३४८ ॥ दगपाणं पुप्फकलं, विनयः अणे सणिज्जं गिहत्थकिच्चाई । अजया पडिसेवंती, जइवेसविडबगा नवरं ॥ ३४९ ॥ ओसनया अबाही, पवयणउम्भावणा य यतना, बाहिफलं । ओसनोऽपि वरपिह पवयणउब्भावणापरमो ॥३५॥ गणहीणो गुणरयणायरेम जो कुणइ तल्लमप्पाणं। सुतवास्सिणो मायावृत्य, अहीलइ, सम्मत्तं कोमलं तस्स ॥ ३५१ ॥ ओसबस्स गिहिस्सव, जिणपवयणतिब्बभावियमइस्स । कोरइ जे अणवज्ज, दढसम्म- | पाश्वेस्थत्वं तस्सऽवस्थासु ।। ३५२ ॥ पासत्थोसन्नकुसीलनीयसंसत्तजणमहाच्छंदं । नाऊग तं मुविहिया, सवपयसेण वज्जति ।। ३५३ ॥ | बायालमेसणाओ, न रक्खइ धाइसिज्जापेंडं च । आहारेइ अभिक्ख, विगईओ सन्निहि खाई ।। ३५४ ।। सरप्पमाणभोजी, आहारई | अभिनखमाहारं । न य मंडलीइ भुंजइ, न य भिक्खं हिंडई अलसो ॥ ३५५ ।। कीवो न कुणइ लोअं, लज्जई पडिमाइ जल्लमवणेइ । सोवाहणो अ हिंडइ, बंधइ कडिपट्टयमकज्जे ॥ ३५६ ॥ गाम देसं च कुलं, ममायए पीठफलगपडिबद्धो । घरसरणेसु पसज्जइ, विहरइ य सकिंचणो रिको ॥ ३५७ ॥ नहदंतकेसरोमे, जमइ उच्छोलधोअणो अजओ । वाहेइ य पलियंकं, अइरेगपमाणमत्थुरइ ॥ ३५८ ॥ सोवई य सब्बराई, नीसट्टमचेयणी न वा झरइ । न पमज्जतो पविसइ, निसिहीयावस्सियं न करे ॥ ३५९ ॥ पाय पहे. Vान पमज्जइ, जुगमायाए न सोहए इरियं । पुढवादगअगाणिमारुअवणस्सइतससु निरविक्खा ।। ३६० ॥ सव्वं थो उबहि, न पेहए न य करेइ सज्झायं । सद्दकरो झंझकगे, लहुओ गण प्रयतत्तिल्लो ॥ ३६१ ॥ खिताइयं भुंजइ, कालाइयं तहेब अविदिनं । गिण्हइ का॥२२७॥ For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश अणुइयसूरे, असणाई अहव उवगरणं ॥ ३६२ ॥ ठवणकुले न ठवेई, पासत्थेहिं च संगयं कुणई। निच्चमवज्याणरओ, न य पेहपम-18 गुप्तयः, मालायां ज्जणासीलो ॥३६३॥ रीयइ य दवदवाए, मूढो परिभवइ तहय रायणिए । परपरिवायं गिर्हई, निठुरभासी विगहसीलो ॥३६४॥ स्वाध्यायः | विज्जं मंतं जोगं, तेगिच्छ कणइ भइकम्मं च । अक्खरनिमित्तजीवी, आरंभपरिग्गहे रमइ ।। ३६५ ॥ कज्जेण विणा उग्गहमणु विनयः ॥२२८॥ जाणावेइ दिवसओ सुअइ । अज्जियलाभं भुंजइ, इत्थिनिसिज्जासु अभिरमइ ॥ ३६६ ॥ उच्चारे पासवणे, खेले सिंघाणए अणा यतना, वयावृत्य, उत्तो । संथारग उवहीणं, पडिक्कमइ वा सपाउरणो ।। ३६७ ॥ न करेइ पहे जयणं, तलियाणं तह करेइ परिभोग । चरइ अणुबद्ध पाश्वस्थत्वं, चासे, सपक्खपरपक्खओमाणे ॥ ३६८ ॥ संजोअइ अइबहुअं, इंगाल सधूमगं अणट्ठाए । भुंजइ रूवबलट्ठा, न घरेइ अ पायपुंछणयं | ।। ३६९ ।। अट्ठम छट्ठ चउत्थे, संवच्छर चाउमास पक्खसु । न करेइ सायबहुलो, न य विहरइ मासकप्पेणं ॥३७०॥ नीयं गिण्हइ पिंडं, एगागी अच्छए गिहत्थकहो । पावसुआणि अहिज्जइ, अहिगारो लोगगहणम्मि ॥ ३७१ ॥ परिभवइ उग्गकारी, सुद्धं मग्गं | निगृहए बालो । विहरइ सायागुरुओ, संजमविगलेसु खित्तेसु ।। ३७२ ।। उग्गाइ गाइ हसई, असंवुडो सइ करइ कंदप्पं । गिहिकज्जचिंतगोविय, ओसने देइ गिण्हइ वा ॥ ३७३ ।। धम्मकहाओ अहिज्जइ, घराघरं भमइ परिकहंतो अ । गणणाइ पमाणेण य, ति॥२२८|| Mअइरित्तं वहइ उवगरणं ॥ ३७५ ॥ बारस चारस तिण्णि य, काइयउच्चारकालभूमीओ | अंतो बहिं च अहियासि अणहियासे न पडिलहे ।। ३७५ ।। गीयत्थं संविग्ग, आयरिअं मुअइ वलइ गच्छस्स । गुरुणो ये अणापुच्छा, जं किंचिवि देइ गिण्हइ वा ॥३७६।। गुरुपरिभोगं भुंजइ, सिज्जासंथारउवकरणजायं । किन्तिय तुमंति भासई, अविणीओ गविओ लुद्धो ॥३७७।। गुरुपच्चक्खाणगिलामसेहवालाउलस्स. गच्छस्स । न करेइ नेव पुच्छइ, निद्धम्मो लिंगमुवजीवी ।। ३७८ ॥ पहगमणवसहिआहारसुयणथंडिल्लविहिपरि For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit मालायां ॥२२९॥ ढवणं । नायरइ नेव जाणइ, अज्जावट्टावणं चेव ॥ ३७९ ॥ सच्छदगमणउहाणसोअणो अप्पणेण चरणण । समणगुणमुक्कजोगी, | बहुजीवखयंकरो भमइ ॥३८०॥ वत्थिन्च वायपुष्णो, परिभमई जिणमयं अयाणतो । थद्धो निबिन्नाणो, नय पिच्छइ कंचि अप्प गुप्तयः, स्वाध्यायः | समं ॥ ३८१ ॥ सच्छेदगमणउट्ठाणसाअणो भुजई गिहीणं च । पासत्थाइट्ठाणा, हवंति एमाइया एए ॥ ३८२ ॥ जो हुज्ज उ81 विनयः असमत्थो, रोगण व पिल्लिओ उरियदेहो । सबमवि जहाभणिय, कयाइ न तरिज्ज काउंजे ॥ ३८३ ॥ सोऽविय निययपरक्का यतना, ववसायधिईबलं अगृहंतो । मुचूण कूडचरिय, जई जयतो अवस्स जई ।। ३८४ ।। युग्मम् ।। अलसो सढोऽवलितो, आलंबणतप्परो| वैयावृत्यं अइपमाई । एवंठिओऽवि मबई, अप्पाणं सुट्टिओमि (म्हि )त्ति ।। ३८५ ।। जोऽवि य पांडऊण, मायामोसेहि खाइ मुद्धजण । पार्श्वस्थत्वं तिग्गाममज्झवासी, सो सोअइ कवडखवगु व्य ।। ३८६ ॥ एगागी पासत्थो, सच्छंदो ठाणवासि ओसनो । दुगमाईसजोगा, जह बहुआ तह गुरू हुति ॥ ३८७ ।। गच्छगओ अणुओंगो, गुरुसेवी अनियओ गुणाउत्तो । संजोएण पयाणं, संजमआराहगा भणिया | ॥ ३८८ ।। निम्ममा निरहंकारा, उवउत्ता नाणदंसणचरित्ते । एगखि (क्खे ) तेऽवि ठिया, खवंति पोराणयं कम्मं ।। ३८९ ॥ जियकोहमाणमाया, जियलोहपरीसहा य जे धारा । बुड्ढावासेऽवि ठिया, खवंति चिरसनिय कम्मं ।। ३९० ।। पंचममिया तिगुत्ता, उज्जुत्ता संजमे तवे चरणे । वाससयपि वसंता, मुणिणो आराहगा भणिया ॥ ३९१ ॥ तम्हा सव्वाणुना, सब्बनिसेहो य पवयणे नत्थि । आयं वयं तुलिज्जा, लाहाकखि व वाणियओ ॥३९२ ॥ धम्मम्मि नत्थि माया, न य कवडं आणुवतिभाणियं वा । फुडपागडमकुडिल्लं, धम्मवयणमुज्जुयं जाण ॥ ३९३ ॥ नवि धम्मस्स भडका, उक्कोडा बंचणा व कवर्ड वा । निच्छम्मो किर धम्मो ॥२२९॥ सदेवमणुआसुरे लोए ॥ ३९४ ।। भिक्खू गीयमगीए, अभिसेए तहय चेव रायणिए । एवं तु पुरिसवत्थु, दब्बाइ चउनिहं सेस For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुत्वं, वृद्धवावासः, धर्म, गीतार्थः उपदेश १॥ ३९५॥ चरणइयारो दुविहो, मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य । मूलगुणे छट्ठाणा, पढमो पुण नवविहो तत्थ ॥ ३९६ ॥ सेसुक्कोसो मालायां माझम जहन्नओ वा भवे चउद्धा उ । उत्तरगुणऽण गविहो, दंसणनाणेमु अट्ठऽट्ठ ॥ ३९७ ॥ जं जयइ अगीयत्थो, जं च अगीयत्थ निस्सिओ जयइ । वट्टावेइ य गच्छं, अणंतसंसारिओ होइ ॥३९८|| कह उ ? जयंतो साह, बट्टावई य जो उ गच्छं तु । संजमजुत्तो ॥२३॥ | होउं, अणंतसंसारिओ होइ? ॥ ३९९ ॥ दवं खित्तं कालं, भावं पुरिस पडिसेवणाओ य । नवि जाणइ अग्गीओ, उस्सग्गववाइयं | चेव ।। ४००। जहठियदब्ध न याणइ, सच्चित्साचित्तमीसियं चेव । कप्पाकप्पं च तहा, जुग्ग वा जस्स जे होई ॥ ४०१ ।। जहठियखित्त न जाणइ, अद्धाणे जणवए अजं भणियं । कालंपि अनवि जाणइ, सुभिक्खदुभिक्ख जं कप्पं ॥ ४०२ ।। भावे हट्ठगिलाणं, नवि याणइ गाढऽगाढकप्पं च । सहुअसहुरिसरूवं, वत्थुमवत्थु च नवि जाणे ॥ ४०३ ॥ पडिसवणा चउद्धा, आउट्टिपमायदप्पकप्पेसु । नवि जाणइ अग्गीओ, पच्छित्तं चेव जंतस्थ ॥ ४०४ ।। जह नाम कोइ पुरिसो, नयणविहूणो अदेसकुलो य । कंताराडविभीमे, मग्गपणहस्स सत्थस्स ॥ ४०५ ॥ इच्छइ य देसियत्तं, किं सो उ समत्थ देसियत्तस्स। दुग्गाई अयाणतो, नयण विहूणो कहं देसे? ॥ ४०६॥ युग्मम् ।। एवमगीयत्थोऽविहु, जिणवयणपईवचक्खुपरिहीणो ! दब्बाइँ अयाणंता, उस्सग्गववाइयं वाचे ॥४०७।। कह सो जयउ अगीओ? कह वा कुणऊ अगीयनिस्साए ?। कह वा करे उ गच्छं? सबालवुड्डाउलं सो उ ॥४०८॥ मुत्ते य इमं भणियं, अप्पच्छित्ते य देइ पच्छित्तं । पच्छित्ते अइमत्तं, आसायण तस्स महई उ ॥४०९ आसायण मिच्छत्तं, आसायणवज्जणा उ सम्मत्तं । आसायणानिमित्तं, कुव्वइ दीहं च संसारं ॥ ४१० ॥ एए दोसा जम्हा. अगीय जयंतस्सऽगीयनिस्साए । वडावय गच्छस्स य, जो अगणं देयगीयस्स ।। ४११ ।। अबहुस्सुओ तबस्सी, विहरिउकामो अजाणिऊण पहं । अवराहपयसयाई, RAMAC-%CE HDarikARI ॥२३॥ For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा उपदेश मालायां साधुत्वं, वृद्धावासः, धमे ॥२३॥ गीतार्थः काऊणवि जो न याणेइ ॥ ४१२ ॥ देसियराइयसोहिय, वयाइयारे य जो न याणेइ । अविसुद्धस्स न वड्डइ, गुणसेढी तत्तिया ठाइ ॥ ४१३ ॥ युग्मम् ॥ अप्पागमो किलिस्सइ, जइवि करेइ अइदुक्करं तु तवं । सुंदरबुद्धीइ कयं, बहुयपि न सुंदरं होई ॥ ४१४ ॥ अपरिच्छियसुयनिहसस्स केवलमभिन्नसुत्तचारिस्स । सव्वुज्जमणऽवि कयं, अन्नाणतवे बहुं पडई ॥ ४१५ ॥ जह दाइयम्मिऽवि & पहे, तस्स विसेसे पहस्सध्याणतो । पहिओ किलिस्सइ च्चिय, तह लिंगायारसुअमित्तो ।। ४१६ ।। कप्पाकप्पं एसणमणेसणं चरण करणसेहविहिं । पायच्छित्तविहिंऽपि य, दयाइगुणेसु असमग्गं ॥ ४१७ ॥ पचावणविहिमुडावणं च अज्जाविहिं निरवसेसं। उस्सग्गववायविहिं, अयाणमाणो कहं जयउ ? ॥ ४१८ ॥ सीसायरियकमेण य, जण गहियाइँ सिप्पसत्थाई । नजंति बहुविहाई न चक्खुमित्ताणुसरियाई ॥ ४१९ ॥ जह उज्जमिउं जाणइ, नाणी तब संजमे उवायविऊ । तह चक्खुमित्तदरिसणसामायारी न याणति ॥ ४२० ।। सिप्पाणि य सत्थाणि य, जाणतोऽविनय जुजइ जो ऊ । तेसि फलं न भुंजइ, इअ अजयंतो जई नाणी ॥ ४२१ ।। गारवतियपडिबद्धा, संजमकरणुज्जमम्मि सीअंता । निग्गंतूण गणाओ (घराओ) हिंडति पमायरण्णम्मि ॥ ४२२ ॥ नाणाहिओ वरतरं, हीणोऽविहु पवयणं पभावंतो । नय दुकरं करंतो, सुठ्ठवि अप्पागमो पुरिसो ॥ ४२३ ॥नाणाहियस्स नाणं, पुज्जइ नाणा पवत्तए चरणं । जस्स पुण दुण्ह इकपि, नस्थि तस पुज्जए काई ? ॥४२४|| नाणं चरितहीणं, लिंगग्गहणं च दसणविहीणं । संजमहीणं च तवं, जो चरइ निरन्थयं तस्स ।। ४२५ ।। जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी नहु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, नाणस्स भागी नहु सुग्गईए ॥ ४२६ ॥ संपागडपडिसेवी, काएसु वएसु जो न उज्जमई । पवयणपाडणपरमो, सम्मत्तं कोमलं तस्स ॥ ४२७ ॥ चरणकरणपरिहीणो, जइवि तवं चरइ सु? अइगुरु । सो तिल्लं व किणंतो, कंसियबुद्दो RECa ॥२३॥ For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit R उपदेश मालायां साधुत्वं, वृद्धाबासः, CAE-% A गीताथे: ॥२३२॥ Bामुणेयब्बो ॥ ४२८ ।। छज्जीवनिकायमहव्वयाण परिपालणाइ जइधम्मो । जइ पुण ताई न रक्खइ, भणाहि को नाम सो धम्मो? |॥ ४२९ ॥ छज्जीवनिकायदयाविवज्जिओ नेव दिक्खिओ न गिही । जइधम्माओ चुक्को, चुक्कइ गिहिदाणधम्माओ ॥ ४३० ॥ सब्बाओगे जह कोई, अमच्चो नरवइस्स चित्तूणं । आणाहरणे पावइ, वहबंधण दब्बहरण च ॥४३१॥ तह छकायमहब्बयसव्वनिवितीउ गिहिऊण जई । एगमवि विराहतो, अमच्चरणो हणइ बोहिं ।। ४३२ ॥ तो हयबोही य पच्छा, कयावराहाणुसरिसमियममियं । पुणवि भवोअहिपडिओ, भमइ जरामरणदुग्गम्मि ॥ ४३३ ॥ जइयाऽणेणं चत्तं, अप्पणयं नाणदंसणचरितं । तइया तस्स परेसु, अणुकंपा नत्थि जीवेसु ।। ४३४ ॥ छकायरिऊण अस्संजयाण लिंगावसेसमित्ताणं । बहुअस्संजमपवहो, खारो मइलेइ सु?अरं ॥ ४३५ ।। किं लिंगमिडरीधारणेण कज्जम्मि अट्ठिए ठाणे । राया न होइ सयमेव, धारय चामराडोवे ।। ४३६ ॥ जो सुत्तत्थविणिच्छियकयागमो मूलउत्तरगुणोहं । उन्बहइ सयाऽखलिओ, सो लिक्खइ साहुलिक्खम्मि ॥ ४३७ ॥ बहुदोससकिलिट्ठो, नवरं मइलेइ चंचलसहावो । सुट्ठवि वायामितो, कायं न करेइ किंचि गुणं ॥४३८॥ केसिंचि वरं मरणं, जीवियमसिमुभयमनसिं । ददुरदेविच्छाए, अहियं केसिंचि उभयंपि।४३९। केसिंचि य परलोगो, अमेसि इत्थ होइ इहलोगो । कस्सवि दुण्णिवि लोगा, दोऽवि हया कस्सई लोगा ।। ४४० ॥ छज्जीवकायविरओ, कायकिलेसेहिं सुटु गुरुएहिं । नहु तस्स इमो लोगो, हवइऽस्सेगो परो लोगो ॥ ४४१ ॥ नरयनिरुद्धमईणं, दंडियमाईग जीवियं सेयं । बहुवायम्मिवि देहे, विसुज्झमाणस्स वर मरणं ॥४४२॥ तवनियमसुट्टियाणं, कल्लाणं जीविअंपि मरणंपि । जीवंतऽज्जति गुणा, मयाऽवि पुण सुग्गई जति ॥४४३।। अहिय मरण अहिअंच जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसम्मि पडति मया, बेरं वटुंति जीवंता ।४४४। अवि इच्छंति अ मरण, नय परपीडं करति मणसावि । जे सुबिइय R iteAeSTERESit A5% & ॥२३२॥ For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां ॥२३३॥ सुगइपहा, सोयरियसुओ जहा सुलसो ॥ ४४५ ॥ मूलग कुदंडगा दामगाणि उच्छूलपंटिआओ य । पिंडेइ अपरितंतो, चउप्पया संयमः नत्थि य पमूऽवि ॥ ४४६ ॥ तह वत्थपायदंडगउवगरणे जयणकज्जमुज्जुत्तो । जस्सऽढाए किलिस्सई, तं चिय मूढो नवि करेई जीवनमरणे | ॥ ४४७ ।। अरिहंता भगवंतो, अहिय व हियं व नचि इहं किंचि | वारंति कारवेंति य, चित्तण जणं बला हत्थे ।। ४४८ ॥ उवएस हितं. पुण तं दिति जेण चरिएण कित्तिनिलयाणं | देवाणवि इंति पह, किमंग पुण मणुअमित्ताणं? ॥ ४४९ ।। वरमउडकिरीडधरो, |चिचइओ चवलकुंडलाहरणो । सको हिओवएसा, एरावणवाहणो जाओ॥ ४५० ।। रयणुज्जलाइँ जाई, बत्तीसविमाणसयसहस्साई। वज्जहरेण वराइँ, हिओवएसेण लद्धाई ॥४५१॥ सुरवइसम विभूई, जं पत्तो भरहचकवडीऽवि । माणुसलोगस्स पहू, तं जाण हिओवएसेण ॥ ४५२ ।। लघृण तं सुइसुहं, जिणवयणुवएसममयबिंदुसमं । अप्पहियं कायव्वं, अहिएसु मणं न दायव्यं ।। ४५३ ॥ हियमप्पणो करितो, कस्स न होइ गरुओ गुरू गणो !। अहियं समायरंतो, कस्स न विप्पच्चओ होइ ? ॥४५४॥ जो नियमसीलतवसंजमेहिं जुत्तो करेइ अप्पहियं । सो देवयं व पुज्जो, सीसे सिद्धत्थओब्ध जणे ।। ४५५ ।। सब्वो गुणेहिं गण्णो, गुणाहिअस्स | | जह लोगवीरस्स । संभंतमउडविडवो, सहस्सनयणो सययमेइ ।। ४५६ ।। चोरिक्कवंचणाकूडकवडपरदारदारुणमइस्स । तस्स च्चिय पूत अहियं, पुणोऽवि वेरं जणो वहइ ।। ४५७ ।। जइ ता तणकंचणलट्टरयणसरिसोवमो जणो जाओ । तइया नणु वुच्छिन्नो, अहि-14 | लासो दब्बहरणम्मि ॥ ४५८ ॥ आजीवगगणनेया, रज्जसिरिं पयहिऊण य जमाली । हियमप्पणो करितो, नय वयणिज्जे इह ॥२३३॥ पडतो ।। ४५९ ॥ इंदियकसायगारवमएहि सययं किल्लिट्ठपरिणामो । कम्मघणमहाजालं, अणुसमयं बंधई जीवो ॥ ४६० ॥ परप| रिवायविसाला, अणेगकंदप्पविसयभोगेहिं । संसारत्था जीवा, अरइविणोअं करतेवं ॥ ४६१ ॥ आरंभपायनिरया, लोइअरिसिणो ४ RE-ECREX For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir संयमः उपदेश मालायां ॥२३४॥ तहा कुलिंगी अ । दुहओ चुक्का नवरं, जोवंति दरिद्दजियलोए ॥४६२ ॥ सब्बो न हिंसियव्वो, जह महिपालो तहा उदयपालो । | नय अभयदाणवइणा, जणोवमाणेण होयव्वं ॥ ४६३ ।। पाविज्जइ इह वसणं, जणेण तं छगलओ असत्तुत्ति । न य कोइ सोणिय जीवनमरणे हितं. बलिं, करेइ वग्घेण देवाणं ॥ ४६४ ॥ वच्चइ खणेण जीवो, पित्तानिलधाउसिंभखोभेहिं । उज्जमह मा विसीअह, तरतमजोगो इमो दुलहो ॥ ४६५ ॥ पंचिंदियत्तणं माणुसत्तणं आरिए जणे सुकुलं । साहुसमागम सुणणा, सद्दहणाऽरोग पधज्जा ।। ४६६ ॥आउं ला संविल्लतो, सिढिलंतो पंधणाई सम्बाई । देहदि मुयंतो, झायह कलणं बह जीवो ॥ ४६७ ।। इऽपि नथि जे सुट्ठ सुचरियं जहाला इमं बलं मज्झ । को नाम दढकारी, मरणते मंदपुण्णस्स ? ॥ ४६८ ॥ युग्मम् ॥ मूलविसअहिविसूईपाणीसत्थीग्गसंभमेहिं च । देहतरसंकमणं, करेह जीवो मुहत्तेण ॥ ४६९ ।। कत्तो चिंता सुचरियतवस्स गुणसुहियस्स साहस्स' । सोगइगमपडिहत्थो, जो अच्छइ नियमभरियभरो ॥ ४७० ।। साहति अ फुडविअर्ड, मासाहससउणसरिसया जीवा । न य कम्मभारगरुयत्तणेण तं आयरंति तहा ॥ ४७१ ॥ बग्घमुहम्मि अहिगओ, मंसं दंतंतराउ कड्डेइ । मा साहसति जंपइ, करेइ न य तं जहाभणियं ॥ ४७२ ।। परिअट्टिऊण गंथत्थवित्थरं निहसिऊण परमत्थं । तं तह करेह जह तं, न होइ सव्बंपि नडपढियं ॥ ४७३ ॥ पढइ नडो वेरग्गं, निम्विीज्जज्जा य बहुजणो जेण । पढिऊण तं तह सढो, जालेण जलं समोअरइ ॥ ४७४ ॥ कह कह करेमि कह मा करेमि कह कह कयं बहुकयं मे । जो हिययसंपसार, करेइ सो अइकरेइ हिय।।४७५||सिढिलो अणायरकओ, अवसवसकओ तहा कयावकओ। सयर्य पमत्तसी-18 लालस्स, संजमो केरिसो होज्जा ॥४७६॥चंय कालपक्खे, परिहाइ पए पए पमायपरो । तह उग्घरविघरनिरंगणो य णय इच्छिया ॥२३४॥ लहइ ।। ४७७ ॥ भीओविग्ग निलुको, पागडपच्छन्नदोससयकारी | अप्पच्चयं जणतो, जणस्स धी जीवियं जियइ ॥ ४७८ ॥ न" %81559 For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश तहिं दिवसा पक्खा, मासा वरिसावि संगणिज्जंति । जे मूल उत्तरगुणा, अक्खलिया ते गणिज्जति ॥ ४७९ ।। जो नवि दिणे अहिंसा मालायां दिणे संकलेइ के अज्ज अज्जिया मि गुणा ? | अगुणेसु अ नहु खलिओ, कह सो उ करिज्ज अप्पहिरं? ॥ ४८०॥ इय गणियं स्खलना दइय तुलिअं इय बहुआ दरािसयं नियमियं च । जइ तहविन पडिबुज्झइ, किं कीरइ ? नूण भवियब्वं ॥४८१॥ किमगंतु पुणो भवमोक्ष ॥२३५।। जेणं, संजमसेढो सिढिलीकया होई । सो तं चिअ पडिबज्जइ, दुक्खं पच्छा उ उज्जमई ।। ४८२ ॥ जइ सव्वं उबलद्धं, जइ अप्पा मागो ४ाभाविओ उवसमेणं । कायं वायं च मणं, उप्पहणं जह न देई ॥ ४८३ ॥ हत्थे पाए निखिवे, कार्य चालिज्ज तंपि कज्जर्ण ।मा अर्चा कुम्मो व्व सए अंगे, अंगोवंगाई गोविज्जा ॥४८४ । विकहं विणायभासं अंतरभासं अवक्कभासं च । जं जस्स अणिहमपुच्छिओ PIय भासं न भासिज्जा ।।४८५॥ अणवट्ठियं मणो जस्स, झायइ बहुयाई अट्टमट्टाई । तं चिंति च न लहइ, संचिणइ अ पावकम्माई ४॥ ४८६ ॥ जह जह सव्वलद्धं, जह जह सुचिरं तवोवणे बुच्छं । तह तह कम्मभरगुरू, संजमनिब्बाहिरो जाओ ॥ ४८७॥४ विज्जप्पो जह जह ओसहाई पिज्जेह वायहरणाई । तह तह से अहिययर, वारणाऊरिअं पुढें ॥ ४८८ ॥ दड्वजउमकज्जकर, भिन्न संखं न होइ पुण करणं । लोहं च तंबविद्धं, न एइ परिकम्मणं किंचि ॥ ४८९ ॥ को दाही उवएसं, चरणालसयाण दुधिअड्डाणं । इंदस्स देवलोगो, न कहिज्जइ जाणमाणस्स ॥ ४९०॥ दो चेव जिणवरेहि, जाइजरामरणविप्पमुकेहिं । लोगम्मि पहा भणिया, सुस्समण सुसावगो वावि ॥ ४९१ ॥ भावच्चणमुग्गविहारया य दबच्चणं तु जिणपूआ । भावच्चणाउ भट्ठो, हविज्ज दवच्चणुजुत्तो ॥ ४९२ ॥ जो पुण निरच्चणो च्चिअ, सरीरसुहकज्जमित्ततल्लिच्छो । तस्स नहि बोहिलाभो, न सुग्गई नेय परलोगो ॥२३५॥ | ।। ४९३ ॥ कंचणमणिसोवाणं, थंभसहस्सूसिअं सुवण्णतलं । जो करिज्ज जिणहरं, तओवि तवसंजमो अहिओ ।। ४९४ ।। निब्बीए For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मालायां अहिंसा स्खलना भवमोक्ष मागोः अचर्चा ॥२३६॥ दुभिक्खे, रण्णा दीवतराओ अनाओ । आणेऊणं बीअं, इह दिन कासवजणस्स ॥४९५।। केहिवि सव्यं खइयं, पइन्नमहिं सव्वमद्धं च । वुत्तं गयं च केई, खित्ते खुट्टति संतत्था ॥ ४९६ ॥ राया जिणवरचंदो, निब्बीयं धम्मविरहिओ कालो । खित्ताई कम्मभूमी, | कासववग्गो य चत्तारि ॥४९७ ।। अस्संजएहिं सब खइ अद्धं च देसविरएहिं । साहूहिं धम्मबीअं, उत्तं नीच निष्फत्ति ॥ ४९८ ।। जे ते सव्वं लहिउं, पच्छा खुटुंति दुब्बलधिईया । तबसंजमपरितंता, इह ते ओहरिअसालभरा ॥ ४९९ ॥ आणं सबजिणाणं, भंजइ दुविहं पहं अइकंतो। आणं च अइकतो, भमइ जरामरणदुग्गम्मि ॥५००। जइन तरसि धारेउं, मूलगुणभरं सउत्तरगुणं च । मुत्तूण तो तिभूमी, सुसावगत्तं वरतराग।५०१।।अरिहंतचेइआणं, सुसाहुपूयारओ दढायारो । सुस्सावगो वरतरं, न साहुवेसेण चुअधम्मो ॥ ५०२ । सर्वति भाणिऊणं, विरई खलु जस्स सब्बिया नत्थि । सो सव्वविरहवाई, चुक्कड़ देसं च सव्वं च ॥ ५०३ ॥ | जो जहवायं न कुणइ, मिच्छद्दिट्ठी तओ हु को अनो? । वड्इ अ मिच्छत्तं, परस्म संकं जणेमाणो ॥ ५०४ ।। आणाए चिय चरणं, तब्भंगे जाण किन भग्गंति ? । आण च अइक्कतो, कस्साएसा कुणइ सेसं ? ।। ५०५॥ संसारो अ अणंतो, भट्टचरित्तस्स | लिंगजीविस्स । पंचमहत्वयतुंगा, पागारो भल्लिओ जेण ॥ ५०६ ॥ न करेमित्ति भणित्ता, तं चेव निसेवए पुणो पावं । पच्चक्खमुसावाई, मायानियडीपसंगो य ।। ५०७॥ लोएऽवि जो ससूगो, अलिअंसहसा न भासए किंचि । अह दिक्खिओऽवि अलियं, भासइ तो किंच दिक्खाए ? ॥ ५०८ ।। महवयअणुब्बयाई, छंडेउं जो तवं चरइ अन्नं । सो अनाणी मूढो, नावाबु, (छु) डो मुणेयब्यो ॥ ५०९ ॥ सुबहुं पासत्थजणं, नाऊणं जो न होइ मज्झत्थो । नय साहेइ सकजं, कागं च करेइ अप्पाणं ॥ ५१० ।। परिचिंतिऊण निउणं, जइ नियमभरो न तीरए वोढुं । पचित्तरंजणेणं, न वेसमित्तेण साहारो ॥ ५११ ॥ निच्छयनयस्स चरणस्सुव ४॥२३६॥ For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश घाए नाणदंसणवहोऽवि । बबहारस्स उ चरणे, हयम्मि भयणा उ सेसाणं ॥ ५१२ ॥ सुज्झइ जई सुचरणो, सुज्झइ सुस्सावओऽविटा मालायां संविनः गुणकलिओ। ओसन्नचरणकरणो, सुज्झइ संविग्गपक्खरुई ।। ५१३ ।। संविग्गपक्खियाण, लक्खणमेयं समासओ भणियं । ओसन- ग्रन्थयोग्या ॥२३७|| चरणकरणाऽवि जेण कम्मं विसोहंति ॥ ५१४ ॥ सुद्धं सुसाहुधम्म, कहेइ निदइ य निययमायारं । सुतवस्सियाण पुरओ, होइ य! ★सब्बोमरायणीओ ।। ५१५ ॥ वंदइ नय वंदावइ, किइकम कुणइ कारवे नेय । अत्तट्ठा नवि दिक्खइ, देइ सुसाहण बोहेउं ॥५१६॥ ओसन्नो अत्तट्ठा, परमप्पाणं च हणइ दिक्खंतो । तं छुहइ दुग्गइए, अहिययरं बुइ सयं च ॥५१७॥ जह सरणमुवगयाणं, जीवाण निकिंतए सिरे जो उ। एवं आयरिओऽपिहु, उस्मुत्तं पन्नवतो य॥५१८||सावज्जजोगपरिवज्जणा उ सब्बुत्तमो जईधम्मो। बीओ सावगधम्मो, तइओ संविग्गपक्खपहो ।।१९।। सेसा मिच्छद्दिट्ठी, गिहिलिंगकुलिंगदम्बलिंगेहिं । जह तिणि य मुक्खपहा संसारपहा तहा तिण्णि ।। ५२० ॥ संसारसागरमिगं, परिब्भमतेहिं सधजीवेहिं । गहियाणि य मुक्काणि य अंणतसो दव्बलिंगाई | ॥ ५२१ ।। अच्चणुरत्तो जो पुण, न मुयइ बहुसोऽवि पनविज्जतो । संविग्गपक्खियत्तं, करिज्ज लम्भिहिसि तेण पहं ॥ ५२२ ।। कंताररोहमदाणओमगेलनमाइकज्जेसु । सब्वायरेण जयणाइ कुणइ जं साहुकरणिज्जं ॥ ५२३ ॥ आयरतरसंमाणं, सुदुक्कर माणसंकडे लोए । संविग्गपक्खियत्तं, ओसनेणं फुडं काउं ॥ ५२४ ॥ सारणचइआ जे गच्छनिग्गया पविहरंति पासत्था । जिणवयणबाहिरावि य, ते उ पमाण न कायब्बा ॥ ५२५ ॥ हीणस्सवि मुद्धपरूवगस्स संविग्गपक्खवायस्स । जा जा हविज्ज जयणा, सा सा से निज्जरा होइ ।। ५२६ ॥ मुक्काइयपरिसुद्धे, सइ लाभे कुणइ वाणिओ चिटुं । एमेव य गीयत्थो, आयं दटुं समायरह ॥२३७|| ॥ ५२७ ॥ आमुकजोगिणो पिचञ, हवइ थोवाऽवि तस्स जीवदया । संविग्गपक्खजयणा, तो दिट्ठा साहुबग्गस्स ।। ५२८ ॥ किं For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश मूसगाण अत्येण ? किं वा कागाण कणगमालाए ? | मोहमलखवलिआणं, किं कज्जुवएसमालाए ? ॥ ५२९ ॥चरणकरणालसाणं, 18 संविनः मालायां | अविणयबहुलाण सययज्जोगमिणं । न मणी सयसाहस्सो, आबज्झइ कुच्छभासस्स ॥ ५३० ।। नाऊण करयलगयाऽऽमलं व सम्भा ग्रन्थयोग्या वओ पहं सव्वं । धम्मम्मि नाम सीइज्जइत्ति कम्माई गुरुआई ॥ ५३१ ।। धम्मत्थकाममुक्खेसु जस्स भावो जहि जहिं रमइ । ॥२३८॥ वेरग्गे यगतरसं, न इमं सव्वं सुहावइ॥५३२शसिंजमतवालसाणं, वेरग्गकहा न होइ कण्णसुहा । संविग्गपक्खियाणं, हज्ज व केसिंचि नाणीण।।५३३॥ सोऊण पगरणमिणं, धम्मे जाओ न उज्जमो जस्स । न य जणियं वेरग्गं, जाणिज्ज अणंतसंसारी।।५३४॥कम्माण सुबहुआणुवसमेण उवगच्छई इमं सव्वं । कम्ममलचिक्कणाणं, वच्चइ पासेण भन्नत॥५३५।। उवएसमालमेयं जो पढइ सुणइ कुणइ वा हियए । सो जाणइ अप्पयिं नाऊण सुहं समायरई ॥५३६।। धंतमणिदामससिगयणिहिपयपढमक्खराभिहाणेणं । उचएसमालपगरणमिणमो रइ हिअट्ठाए ॥५३७|| जिणवयणकप्परुक्खो, अणेगमुत्तत्थसालविच्छिन्नो । तवनियमकुसुमगुच्छो, मुग्गइफलबंधणो जयइ ॥५३८।। जुग्गा सुसाहुवेरग्गिआण परलोगपत्थिआणं च । संविग्गपक्खिआणं, दायव्वा बहुमुआणं च।।५३९।।इय धम्मदासगणिणा जिणहैवयणुवएसकज्जमालाए । मालव्व विविहकुसुमा, कहिआ य सुसीसवग्गस्स॥५४॥संतिकरी बुडिकरी, कल्लाणकरी सुमंगलकरी य। | होइ कहगस्स परिसाए, तह य निव्याणफलदाई ॥ ५४१ ॥ इत्थ समप्पइ इणमो, मालाउवएसपगरणं पगयं । गाहाणं सव्वाणं, पंचसया चेव चालीसा ।।५४२।। जाव य लवणसमुद्दो, जाव य नक्खत्तमंडिओ मेरू । ताव य रइया माला, जयम्मि थिरथावरा होउ | ।। ५४३ ॥ अक्खरमत्ताहीणं, जे चिय पढियं अयाणमाणेणं । तं खमह मज्झ सव्वं, जिणवयणविणिग्गया वाणी ॥ ५४४ ।। ॥ इति श्रीधर्मदासगणिविरचितमुपदेशमालाप्रकरणम् ॥ ४ ॥२३८॥ CAKACARSA For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ पूर्वभृत्सूरिसूत्रितः श्रीजीवसमासः कहकर जीवसमास है अनुयोग१सत्पद 8 द्वाराणि प्ररूपणाया ॥२३७॥ दस चोद्दस य जिणवरे चोदसगुणजाणए नमंसित्ता । चोद्दस जीवसमासे समासओऽणुकमिस्सामि ॥ १॥ निक्लेवनिरुत्तीहिं छहिं अट्ठहि याणुओगदारेहिं । गइयाइमग्गणाहि य जीवसमासाऽणुगंतव्वा ॥२॥ नामंठवणा दब्बे भावे य चउव्विहो उ निक्खेवो । कत्थइ | य पुण बहुविहो तयासय पप्प कायन्बो ॥३॥ किं कस्स केण कत्थ व केवचिरं कइविहो उ भावोत्ति । छहिं अणुओगदारेहिं सब्बे भावाऽणुगतब्वा ।। ४ ।। संतपयपरूवणया दवपमाणं च खित्तफ़सणा य । कालंतरं च भावो अप्पाबहुयं च दाराई ।।५।।गह इंदिए य काए जोए वेए कसाय नाणे य । संजम दंसण लेसा भव सम्मे सन्नि आहारे ॥६॥ आहारभव्वजोगाइएहिं एगुत्तरा बहू | भेया । एत्तो उ चउदसण्हं इहाणुगमणं करिस्सामि ॥ ७॥ मिच्छा १ऽसायण २ मिस्सा ३ अविरयसम्मा ४ य देसविरया ५ य । विरया पमत्त ६ इयरे ७ अपुन्च ८ आणयाट्टि ९ सुहमा १० य ॥ ८॥ उवसंत ११ खीणमोहा १२ सजोगिकवलिजिणो १३ | अजोगी १४ य । चोद्दस जीवसमासा कमेण एएऽणुगंतव्वा ॥९॥ । दुविहा होंति अजोगी सभवा अभवा निरुद्धजोगी य । इह सभवा अभवा उण सिद्धा जे सव्वभवमुक्का ॥१०॥निरयगई तिरि 81 मणुया देवगई चेव होइ सिद्धिगई । नेरइया उण नेया सत्तविहा पुढविभेएण ॥ ११ ॥ घम्मा वंसा सेला होइ तहा अंजणा य रिट्ठा SAHARASREXAKCEAES For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नारकादि भेदाः HERSAR. जीमसमास काय | मघवत्ति माधवत्ति य पढवीणं नामधेयाई ॥ १२ ॥ रयणप्पभा य सकरवालुयपंकप्पभा य धूमपहा । होइ तम तम१सत्पद | तमाविय पुढवीण नामगोत्ताई ।। १३ ॥ तिरियगइया पंचिंदिया य पज्जत्तया तिरिक्खीओ | तिरिया य अपज्जत्ता मनुया प्ररूपणायाँ पजत्त इयरे य ॥ १४ ॥ ते कम्मभोगभूमिय अंतरदीवा य खित्तपविभत्ता । सम्मुच्छिमा य गन्भय आरिमिलक्खुत्ति य सभेया ॥२३८॥ | ॥ १५ ॥ देवा य भवणवासी वंतरिया जोइसा य वेमाणी । कप्पोवगा य नेया गेविज्जाणुत्तरसुरा य ।। १६ ॥ असुरा नागसुवना दीवोदहिथणियविज्जुदिसिनामा । वायाम्गकुमाराविय दसेव भणिया भवणवासी ॥ १७ ॥ किंनरकिंपुरिसमहोरगा य गंधव्य रक्खसा जक्खा । भूया य पिसायाविय अट्ठविहा वाणमंतरिया ॥ १८ ॥ चंदा मुरा य गहा नक्खत्ता तारगा य पंचविहा । जोइसिया नरलोए गइरयओ संठिया सेसा ॥ १९ ॥ सोहम्मीसाणसणंकुमारमाहिंदवंभलंतयया । सुक्कसहस्साराणयपाणय तह आरणच्चुयया ॥ २० ॥ हेटिममज्झिमउवरिमगेविज्जा तिण्णि तिणि तिण्णेव । सबढविजयविजयंतजयंत अपराजिया अवरे ॥२१॥ सुरनारएसु चउरो जीवसमासा उ पंच तिरिएसु । मणुयगईए चउदस मिच्छद्दिट्ठी अपज्जत। ॥ २२ ॥ एगिदिया य बायरसुहुमा पज्जत्तया अपज्जत्ता । बियतियचउरिदिय दुविहभेय पज्जत्त इयरे य ॥ २३ ॥ पंचिंदिया असण्णी सण्णी पज्जत्तया अपज्जत्ता । | पंचिदिएसु चोदस मिच्छट्ठिी भवे सेसा ॥२४॥ आहारसरीरिंदियपज्जत्ती आणपाण भासमणे । चत्तारिपंच छप्पिय एगिदियवि गलसण्णीणं ।। २५ ।। पुढविदगअगणिमारुय साहारणकाइया चउद्धा उ। पत्तेय तसा दुविहा चोद्दस तस सेसिया मिच्छा ।। २६ ॥ | पुढवी य सक्करा वालुया य उवल सिला य लोणूसे । अयतंबतउयसीसय रुप्पसुवण्णे य वइरे य ।। २७ ॥ हरियाले हिंगुलए मणोसिला सासगंजणपवाले । अब्भपडलऽभवालय बायरकाए मणिविहाणा ॥ २८ ॥ गोमेज्जए य रुयए अंके फलिहे य लोहियक्खे य ।। RECAACAREERICA ર૩૮ REKAR For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir K पृथ्व्यादि मेदाः जीवसमासे है चंदप्पह वेरुलिए जलकंते सूरकते य॥२९॥ गेरुय चंदण वध(प्पोगे भुयमोए तह मसारगल्ले य । वण्णाईहि य भेदा सुहमाण नत्थिते (मे) १ सत्पद: भेया ।। ३० ॥ ओसा य हिम महिगा हरतणु सुद्धोदए घणोए य । वष्णाईहि य भेया सुहमाण नत्थि ते भेया ॥ ३१ ॥ इंगाल प्ररूपणायां | जाल अच्ची मुम्मुर सुद्धागणी य अगणी य । वण्णाईहि य भेया सुहमाणं नात्थ ते भेया ।। ३२ ।। बाउन्भामे उक्कलिमंडलिगुंजा | ॥२३९॥ | महा घणतणू या । वण्णाईहि य भेया सुहुमाणं नत्थि ते भेया ॥ ३३ ॥ मूलग्गपोरबीया कंदा तह खंधवीय बीयरुहा। समुच्छिमा | | य भणिया पत्तेय अणंतकाया य ॥ ३४ ॥ कंदा मूला छल्ली कट्टा पत्ता पवाल पुप्फ फला । गुच्छा गुम्मा वल्ली तणाणि तह | पब्बया चेव ।। ३५ ।। सेवालपणगकिण्हग कवया कुहुणा य बायरो काओ । सब्यो य सुहुमकाओ सब्बत्थ जलत्थलागासे ।। ३६ ॥ | गूढसिरसंधिपव्वं समभंगमहीरयं च छिन्नरुहं । साहारणं सरीरं तन्विवर्गयं च पत्तेयं ।। ३७ ।। दुविहा तसा य वुत्ता वियला सय|लिंदिया मुणेयव्वा । बितिचउरिदिय वियला सेसा सयलिंदिया नेया ॥ ३८॥ संखा गोम्मी भमराइया उ विगलिंदिया मुणेय व्या । पंचिंदिया य जलथलखहयरसुरनारयनरा य ।। ३९ ।। बारस सत्त य तिनि य सत्त य कुलकोडि सयसहस्साई । नेया पुढविदगागणिवाऊणं चेव परिसंखा ॥ ४०॥ कुलकोडिसयसहस्सा सचट्ठ य नव य अट्ठवीसं च । बेईदियतेइंदियचउरिदियहरियकायाणं ॥ ४१ ॥ अद्धत्तेरस बारस दस दस कुलकोडिसयसहस्साई । जलयरपक्खिचउप्पयउरभुयसप्पाण नव हुँति ।। ४२ ॥ छब्बीसा पणवीसा सुरनेरइयाण सयसहस्साई । बारस य सयसहस्सा कुलकोडीणं मणुस्साणं ॥ ४३ ॥ एगा कोडाकोडी सत्ताणउई भवे सयसहस्सा । पन्नासं च सहस्सा कुलकोडीओ मुणेयव्वा ॥४४॥ एगिदियनरइया संवुडजोणी य हुंति देवा य । विगलिंदियाण वियडा ट्रा संवुडवियडा य गम्भमि ॥ ४५ ॥ अचित्ता खलु जोणी नेरइयाणं तहेव देवाणं । मीसा य गन्भवसही तिविहा जोणी उ सेसाणं ॥२३९॥ For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit 18/ कुलकोटी जीवसमासे |॥ ४६॥ सीओसिणजोणीया सब्वे देवा य गम्भवक्ता । उसिणा य तेउकाए दुह नरए तिविह सेसाणं ॥४७॥ वज्जरिसह१ सत्पदः तनारायं वज्ज नाराययं च नारायं । अद्ध चिय नारायं खीलिय छेवटु संघयणं ॥४८॥ रिसहो य होइ पट्टो वजं पुण कीलिया दयानिसहनरूपणापावियाणाहि । उभओ मकडबंध नारायं तं वियाणाहि॥४९॥ नरतिरियाणं छप्पिय हवइ हु विगलिँदियाण छेवढे । सुरनेरइया बननसस्थान | एगिदिया ये सव्वे असंघयणी ।। ५०॥ समचउरंसा नग्गोह साइ खुज्जा य वामणा हुंडा । पंचिंदियतिरियनरा सुरा समा सेसया 8 तियोगबाजेषु ॥२४॥ जीवगुणाः |हुंडा ॥५१॥ मस्सूरए य थियुगे सह पडागा अणेगसंठाणा । पुढविदगअगणिमारुयवणस्सईणं च संठाणा ॥५२॥ ओरालिया। | वेउब्विय आहारय तेयए य कम्मयए । पंच मणुएसु चउरो वाऊ पंचिंदियतिरिक्खे ॥ ५३ ।। वेउबियतेए कम्मए य सुरनारया | य तिसरीरा । सेसेगिंदियवियला ओरालियतेयकम्मइगा ॥५४॥ सच्चे मीसे मासे असच्चमोसे मणे य वाया य । ओरालियवेउब्विय आहारयमिस्सकम्मइए ॥ ५५ ॥ सच्चे असच्चमोसे सणी उ सजोगिकेवली जाव । सण्णी जा छउमत्थो सेस संखाइ अंतवउ ॥ ५६ ।। सुरनारया विउब्वी नर तिरि ओरालिया सवेउव्वी । आहारया पमत्ता सव्वेऽपज्जचया मीसा ॥ ५७ ॥ मिच्छा सासण अविरय भवंतरे केवली समुहया य । कम्मयओ काओगो न सम्ममिच्छो कुणइ कालं ॥ ५८ ॥ नेरइया य नपुंसा तिरिक्खमणुयाल तिवेयया हुंति । देवा य इत्थिपुरिसा गेविाई पुरिसवेया ॥ ५९॥ अनियट्टन्त नपुंसा सन्नीपंचिदिया य थीपुरिसा । कोहो | माणो माया नियट्टि लोभो सरागंतो ॥६० ॥ आभिणिसुओहिमणकेवलं च नाणं तु होइ पंचविहं । उग्गह ईह अवाया धरणाऽऽभिणिबोहियं चउहा ।। ६१ ॥ पंचहिवि इंदिएहिं मणसा अत्थोग्गहो मुणेयब्यो । चक्खिदियमणरहियं वंजणमीहाइयं छद्धा ।। ६२ ॥ २४॥ अंगपविडियरसुय ओहि भवे पतिगुणं च विन्नेयं । सुरनारएसु य भवे भवं पति सेसमियरेसुं ॥ ६३ ॥ अणुगामि अवडिय हीयमा SAGARCASKAR For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमासे ढ़ाणमिइ तं भवे सपडिवक्खं । उज्जुमई विउलमई मणनाणे केवल एक ॥ ६४ ॥ मइय मिच्छा साणा विभंग समणे य मीसए| चारित्रनि१सत्पदमीसं । सम्मच्छउमाभिणिसुओहि विरयमण केवल सनामे ॥ ६५ ॥ अजया अविरयसम्मा देसे विरया य हुंति सहाणे । सामाइय-17 ग्रन्धदर्शप्ररूपणायां | छेयपरिहारसुहमअहक्खाइणो विरया ।। ६६ ।। सामाइयछेया जा नियट्टि परिहारमप्पमत्ता । सुहमा सुहुमसरागे उवसंताई परिहारसाणEEMAHIS &ानलेश्या सम्यक्त्व ॥२४॥ अहक्खाया ॥ ६७ ॥ समणा पुलाय बउसा कुसील निग्गंथ तह सिणाया य।आइतियं सकसाई विराय छउमा य केवलिणो॥६८॥ भव्याहारेषु चउरिंदियाइ छउमे चक्खु अचक्खू य सव्व छउमत्थे । सम्मे य ओहिदंसी केवलदंसी सनामे य ॥ ६९॥ किण्हा नीला काऊ | जीवगुणाः अविरयसम्मंत संजयंतऽपर । तेऊ पम्हा सण्णऽप्पमायसुक्का सजोगता ।। ७० ॥ पुढविदगहरिय भवणे वण जोइसिया असंखनर अजीवाश्च तिरिया । सेसेगिंदियवियला तियलेसा भावलेसाए ॥ ७१ ॥ काऊ काऊ तह काउनील नीला य नीलकिण्हा य । किण्हा य | परमकिण्हा लेसा रयणप्पभाईणं ।।७२।। तेऊ तेऊ तह तेऊ पम्ह पम्हा य पम्हसुक्का य । सुक्का य परमसुक्का सक्कादिविमाणवासीणं ॥७३॥ देवाण नारयाणं दब्बल्लेसा हवंति एयाउ । भवपरित्तीए उण नेरइयसुराण छल्लेसा॥७४|| मिच्छद्दिट्टि अभव्या भवसिद्धीया य सब्बठाणेसु । सिद्धा नेव अभव्या नवि भव्वा हुंति नायव्वा ।। ७५ ॥ मइसुयनाणावरणं दंसणमोहं च तदुवघाईणि । तप्फड्डगाई दुविहाई सव्वदेसोवघाईणि ॥ ७६ ॥ सव्वेसु सब्बधाइसु हएसु देसोवघाइयाणं च । भागेहि मुच्चमाणो समए समए अणंतेहिं ॥२४॥ ॥ ७७ ॥ खीणमुइण्णं सेसयमुवसंतं भण्णए खओवसमो । उदयविघाय उवसमो खओ य दंसणतिगाघाओ ॥ ७८ ॥ उवसमवेयग खइया अविरयसम्माइ सम्मदिट्ठीसु । उवसंतमप्पमत्ता तह सिद्धता जहाकमसो ।। ७९ ॥ वेमाणिया य मणुया रयणाए असंखवासतिरिया य । तिचिहा सम्मद्दिडी वेयगउवसामगा सेसा ।। ८० ।। अस्सण्णि अमणपंचिंदियंत सण्णी उ समण छउमत्था । नोसण्णि REKASASARASHRESS % % % % For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमासे 8 नो असण्णी केवलनाणी उ वियोआ ।। ८१ ॥ विग्गहगइमावन्ना केवलिणो समुहया अजोगी य । सिद्धा य अणाहारा सेसामानोन्मा२ प्रमाणे आहारगा जीवा ॥ ८२ ॥ नाणं पंचविहंपिय अण्णाणातिगं च सव्व सागारं । चउर्दसणमणगारं सव्वे तल्लक्खणा जीवा ॥८३ ॥ एवं जीवसमासा बहुभेया वनिया समासेणं । एवमिह भावरहिया अजीवदया उ विनेया ॥ ८४ ॥ ते उण धम्माधम्मा आगास परमाण्वा॥२४२॥ अरूविणो तहा कालो। खंधा देस पएसा अणुत्तिविय पोग्गला रूवी ॥८५॥ गइठाणवगाहणलक्खणाणि कमसो य वत्तणगुणो य। दिश्रेण्यन्तं दारूवरसगंधफासाइ कारणं कम्मबंधस्स ॥ ८६ ॥ सत्यप्ररूपणाद्वारं १ दब्वे खेत्ते काले भावे य चउव्विहं पमाणं तु । दव्य पएसविभागं पएसमेगाइयमणंतं ॥८७॥ माणुम्माणपमाणं पडिमाणं गणि-18 | यमेव य विभागं । पत्थ('एत्थ)कुडवाइ धन्ने चउभागविवडियं च रसे ।।८८॥ कंसाइयमुम्माणं अवमाणं चेव होइ दंडाई । पडिमाणं|४| धरिमेसु य भणियं एकाइयं गणिमं ।। ८९ ॥ दंडधणूजुगनालिय अक्खो मुसलं च होइ चउहत्थं । दसनालियं च रज्जु वियाण | अवमाणसण्णाए ॥९० ॥ खेत्तपमाणं दुविहं विभाग ओगाहणाए निप्फन्नं । एगपएसोगाढाइ होइ ओगाहणमणेग ॥ ९१ ॥ अंगुल विहत्थि रयणी कुच्छी धणु गाउयं च सेढी य । पयरं लोगमलोगो खत्तपमाणस्स पविभागा।। ९२ ।। तिविहं च अंगुलं पुण उस्सेहंगुल पमाण आय च । एकेकं पुण तिविहं सूई पयरंगुल घणं च ॥९३।। सत्येण सुतिक्खेणवि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सका ।। |ते परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥ ९४ ॥ परमाणू सो दुबिहो सुहुमो तह वावहारिओ चेव । सुहुमो य अप्पएसो ॥२४२॥ ववहारनएणणंतओ खंधो ॥९५॥ परमाणू य अणंता सहिया उस्सहसण्डिया एक्का । साऽणंतगुणा संती ससहिया सोऽणु वव-| 12 हारी ॥९६॥ खंधोऽणतपएसो अत्थेगइओ जयम्मि छिज्जेज्जा। भिज्जेज्ज व एवइओ ('एगयरो) नो छिज्जे नो य भिज्जेज्जा ॥९७॥२॥ SESS*** RECASSEASES For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमासे है परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा ज़्या य जवो अट्ठगुणविवाड्डिया कमसो ।। ९८ ॥ अद्वैब य जवमझाणि समयादि २ कालद्वार अंगुलं छच्च अंगुला पाओ । पाया य दो विहत्थी दो य विहत्थी भवे हत्थो ॥ ९९ ॥ चउहत्थं पुण धणुयं दुभि सहस्साई पल्योपम गाउयं तेसिं । चत्तारि गाउया पुण जोयणमेगं मुणेयव्वं ॥ १०॥ उस्सेहंगुलमेगं हवइ पमाणगुलं दुपंचसयं । ओसप्पिणीए 8 सागरोपमे ॥२४३॥ पढमस्स अंगुलं चक्कवट्टिस्स ।।१०।। तेणगुलेणं जं जोयणं तु एत्तो असंखगुणयारो (०एहिं)। सेढी पयरं लोगो लोगा गंतो अलोगो य ॥१०२ ॥ जे जम्मि जुगे पुरिसा अट्ठसयंगुलसमृसिया हुंति । तेसि सयमंगुलं जं तयं तु आयंगुलं होइ ॥ १०३ ॥ देहस्स8 ऊसएण उ गिहसयणाई य आयमाणणं । दीवुदहिभवणवासा खेत्तपमाणं पमाणेणं ॥ १०४ ।। प्रमाणद्वारं २ कालेत्ति य एगविहो कालविभागो य होइ णेगविहो । समयावलियाईओ अणंतकालोत्ति णायचो ॥१०५ ॥ कालो परमनिरुद्धो अविभागी तं तु जाण समओत्ति । तेऽसंखा आवलिया ता संखेज्जा य ऊसासो ॥ १०६ ॥ हहष्णगल्लुस्सासो एसो पाणुत्ति सनिओ एक्को । पाणू य सत्त थोवो थोवा सत्तेव लवमाहू ॥१०७ ॥ अद्वत्तीस तु लवा अद्धलवो चेव नालिया होइ । दो टू नालिया मुहुत्तो तीस मुहुत्ता अहोरत्तो ॥ १०८ ।। तिन्नि सहस्सा सत्त य सयाणि तेसत्तरी य उस्सासा । एकेकस्सेवइया हुँति || मुहुत्तस्स उस्सासा ॥ १०९ ॥ पन्नरस अहोरत्ता पकखो पक्खा य दो भवे मासो । दो मासा उउसना तित्रि य रियवो अयणमेग ॥११०॥ दो अयणाई वरिसं तं दसगणवड़ियं भवे कमसो । दस य सयं च सहस्सं दस य सहस्सा सयसहस्सं ॥ १११ ॥ वास-ICI0930 सयसहस्सं पुण चुलसीइगुणं हवेज्ज पुग्वंगं । पुव्वंगसयसहस्सं चुलसीइगुणं भवे पुव्वं ॥ ११२ ।। पुवस्स उ परिमाणं सारं खलु। दाहोंति कोडिलक्खाओ । छप्पन च सहस्सा बोद्धव्वा वासकोडीणं ॥११३ ।। पुर्वगं पुवंपि य नउयंग चेव होइ नउयं च । नालि ANSACTERCOSSASSES For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पल्योपम ३ कालद्वारा ता जीमसमासे ठाणंग नलिणंपि य महनलिणंगं महानलिणं ॥११४ ॥ पउमं कमलं कुमुयं तुडियमडडमवव हुहुयं चेव । अउयंग अउय पउय तह सीसपहेलिया चेव ॥ ११५ ॥ एवं एसो कालो वासच्छेएण संखमुवयाइ । तेण परमसंखेज्जो कालो उवमाए नायव्वो ॥ ११६ ॥ सागरोपमे ॥२४४॥ पलिओवमं च तिविहं उद्धारऽद्धं च खेत्तपलियं च । एकेकं पुण दुविहं बायर सुहुमं च नायब्वं ॥ ११७ ॥ जं जोयणविच्छिणं तं | तिउणं परिरएण सविसेस । तं चेव य उम्बिद्धं पल्लं पलिओवमं नाम ॥ ११८ ॥ एगाहियवेहियतेहियाण उकोस सत्तरत्ताणं । सम्मटुं संनिचियं भरियं वालग्गकोडीण ॥ ११९ ॥ तत्तो समए समए एकेके अवहियम्मि जो कालो । संखेज्जा खलु समया बायरउद्धारपल्लंमि ॥ १२० ॥ एक्केकमओ लोमं कटुमसंखेज्जखंडमहिस्सं । समछेयाणतपएसियाण पल्लं भरेज्जाहि ॥ १२१॥ तत्तो समए समए एकेके अवहियम्मि जो कालो । संखेज्जवासकोडी सुहुमे उद्धारपल्लम्मि ॥ १२२ ॥ एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं सागरोवमस्स उ एकस्स भवे परीमाणं ॥ १२३ ॥ जावइओ उद्धारो अड्राइज्जाण सागराण भवे । तावइया खलु | लोए हवंति दीवा समुद्दा य ॥ १२४ !! वाससए वाससए एकेके वायरे अवहियम्मि । बायरअद्धापल्ले संखेज्जा वासकोडीओ ॥ १२५ ।। वाससए वाससए एकेके अवहियम्मि सुहुमम्मि । सुहुमे अद्धापल्ले हवंति वासा असंखेज्जा ॥ १२६ ॥ एएसिं पल्लाणं | कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं सागरोवमस्स उ परिमाणं हवइ एकस्स ।। १२७ ॥ दस सागरोवमाणं पुनाओ हुँति को डि-18 कोडीओ। ओसप्पिणीपमाणं तं चेवुस्सप्पिणीएवि ।। १२८ ॥ उस्सप्पिणी अणंता पोग्गलपरियट्टओ मुणेयव्यो । तेऽणंता तीयद्धा ॥२४४॥ अणागयद्धा अणंतगुणा ॥ १२९ ।। सुहुमेण य अद्धासागरस्स माणेण सबजीवाणं । कम्मठिई कायठिई भावठिई यावि नायव्वा & ॥ १३० ॥ बायरसुहुमागासे खेत्तपएसाण समयमवहार । बायर सुहुमं खेत्तं उस्सप्पिणीओ असंखेन्जा ॥ १३१ ॥ एएसिं पल्लाणं For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 181 जीवसमासे है कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं सागरोवमस्स उ एकस्स भवे परीमाणं ॥ १३२ ॥ एएण खेत्तसागरउवमाणेणं हवेज्ज नायव्वं । नोगुण ३ कालद्वारा पुढविदगअगणिमारुयहरियतसाणं च परीमाणं ॥१३३।। गुणनोगुणनिप्फनं गुणनिप्फनं तु वनमाईयं । नोगुणनिप्फनं पुण संखाणं संख्याने ॥२४५॥ | नो य संखाण ॥१३४।। संखाणं पुण दुविहं सुयसंखाणं च गणणसंखाणं। अक्खरपयमाईयं कालियमुक्कालियं च सुयं ॥ १३५॥ संख्याता| संखेज्जमसंखज्ज अणतयं चेव गणणसंखाणं । संखेज्ज पुण तिविहं जहण्णयं मज्झिमुकोसं ॥ १३६ ॥ तिविहमसंखेज्जं पुण परित्त-18 परिन- संख्याता नन्ताः जुत्तं असंखयासंखं । एकेकं पुण तिविहं जहण्णयं मज्झिमुकोस ।। १३७ ॥ तिविहमणतंपि तहा परित्त जुत्तं अणतयाणंतं । एक्क-13 दपिय तिविहं जहण्णयं मज्झिमुक्कोसं ॥१३८ । जंबुद्दीवो सरिसवपुण्णो ससलागपडिमिह]सलागाहिं । जावइअं पडिपूरे तावइ होइटू संखेज्जं ॥ १३९ ॥ नोसंखाणं नाणं दंसण चरणं नयप्पमाणं च । पंच चउ पंच पंच य जहाणुपुब्बीए नायव्या ॥ १४० ॥ | पच्चक्खं च परोक्खं नाणपमाणं समासओ दुविहं । पच्चक्खमोहिमणकेवलं च पारोक्ख मइसुत्ते ॥ १४१ ।। इंदियपच्चक्खीप य दा अणुमाणं उवमयं च मइनाणं । केवलिभासियअस्थाण आगमो होइ सुयनाणं ॥ १४२ ॥ चक्खुइंसणाई सण चरणं च सामइय| माई । नेगमसंगहववहारुज्जुसुए चेव सद्द नया ॥ १४३ ॥ मिच्छादब्वमणंता कालेणोसप्पिणी अणताओ । खेत्तेण मिज्जमाणा हवंति लोगा अणंताओ॥ १४४ ॥ एगाईया भज्जा सासायण तहय सम्ममिच्छा य । उकोसेणं दुण्हवि पल्लस्स असंखभागो उ ॥ १४५ ।। पल्लाऽसंखियभागो अविरयसम्मा य देस 14॥२४५|| विरया य । कोडिसहस्सपुहुत्तं पमत्त इयरे उ संखेज्जा ॥ १४६ ।।एगाइय भयणिज्जा पवेसणेणं तु जाव चउपना । उवसामगोव|संता अद्ध पइ जाव संखेज्जा ॥ १४७ ॥ खवगा उ खीणमोहा जिणा उ पविसन्ति जाव अट्ठसयं । अद्धाए सयपुहुसं कोडिपुहुणे RECE%ACC For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ASAE जीमसमासे 8 सजोगीणं ॥ १४८ ॥ पढमाए असंखेज्जा सेढीओ सेसियासु पुढवीसु । सेढी असंखभागो हवंति मिच्छा उ नेरइया ॥ १४९ ॥ जीव-गुण३ कालद्वारा | तिरिया हुंति अणंता पयरं पंचिंदिया अवहरंति । देवावहारकाला असंखगुणहीण कालणं ॥ १५० ॥ पढमंगुलमूलस्सासंखतमो है समासानां | सूइसेढिआयामो । उत्तरविउब्बियाणं पज्जत्तयसनितिरियाणं ।। १५१ ॥ संखेज्जहीणकालेण होइ पज्जत्ततिरियअवहारो । संखेज्ज॥२४६॥ मानं गुणेण तओ कालेण तिरिक्खअवहारो ॥ १५२ ।। संखेज्जा पज्जत्ता मणुयाऽपज्जत्तया सिया नत्थि । उकोसेणं जइ भवे सेढीए असंखभागो उ ।।१५३।। उक्कोसेणं मणुया सेटिं च हरति रूवपक्खित्ता। अंगुलपढमयतियवग्गमूलसंवग्गपलिभागा ॥१५४|| सेढीओ असंखेज्जा भवणे वणजोइसाण पयरस्स । संखेज्जजोयणंगुलदोसयछप्पन्नपलिभागो ।। १५५ ।। सकीसाणे सेढीअसंख उवरिं असं-12 खभागो उ । आणयपाणयमाई पल्लस्स असंखभागो उ ॥१५६॥ सेढीसूइपमाणं भवणे घम्मे तहेव सोहम्मे । अंगुलपढम बियतियस| मणंतरवग्गमूलगुणं ॥१५७।। बारस दस अट्ठव य मूलाई छत्ति दुन्नि नरएसुं । एक्कारस नव सत्त य पणग चउक्कं च देवेसु ।।१५८॥ | वायरपुढवी आऊ पत्तेयवणस्सई य पज्जत्ता । ते पयरमवहरिजंसु अंगुलासंखभागेणं ॥ १५९ ॥ पज्जत्तबायराणल असंखया हुँति आवलियवग्गा । पज्जत्तवायुकाया भागो लोगस्स संखेज्जो ॥ १६० ॥ आवलिबग्गाऽसंखा घणस्स अंतो उ बायरा तेऊ। | पज्जत्तबायराणिल हवन्ति पयरा असंखेज्जा ।। १६१ ॥ सेसा तिण्णिवि रासी वीसु लोया भवे असंखेज्जा । साहारणा उ चउसुवि हावीस लोया भवेष्णता ।। १६२॥ वायरवाउ समग्गा भणिया अणुसमयमुत्तरसरीरा । पल्लासंखियभागेणध्वहीरंतित्ति सम्बयिका 3॥ १६३ ।। बेईदियाइया पुण पयरं पज्जत्तया अपज्जत्ता । संखेज्जा संखेज्जेणगुलभागेणध्वहरेज्जा ॥१६४।। मणुय अपज्जत्ताऽऽ ॥२४६॥ शहार मिस्सवेउवि छेय परिहारा । सुहुमसरागोवसमा सासण मिस्सा य भयणिज्जा ॥ १६५ ।। एवं जे जे भावा जहिं जहिं हुंति E For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमासे , पंचसु गईसु । ते ते अणुमज्जिता दव्वपमाण नए धीरा ॥१६६॥ तिनि खलु एकयाई अद्धासमया व पोग्गलाणंता । दुन्नि असंखे, नारकादी ३ क्षेत्रद्वारे |ज्जपएसियाणि सेसा भवेऽणंता ॥१६७।। प्रमाणद्वारं २ नामवगा हना ॥२४७॥ खेतं खलु आगास तब्विवरीयं च होइ नोखेत्तं । जीवा य पोग्गलावि य धम्माधम्मत्थिया कालो ।। १६८ ।। | सत्त धणु तिनि रयणी छच्चेव य अंगुलाई उच्च । पढमाए पुढवीए बिउणा बिउणं च सेसासु ॥ १६९ ।। बारस य | जोयणाई तिगाउयं जोयणं च बोद्धव्वं । बेईदियाइयाणं हरिएसु सहस्समब्भहियं ।।१७०।। जल-थल खह-सम्मुच्छिम तिरिय अपज्जतया विहत्थीओ । जलसंमुच्छिमपज्जत्तयाण अह जायणसहस्सं ॥१७१ ।। उरपरिसप्पा जोयण सहस्सिया गम्भया उउकोस ।। समुच्छिम पज्जत्तय तेसिं चिय जोयणपुहुत्तं ॥ १७२ ॥ भुयपरिसप्पा गाउयपुहुत्तिणो गम्भया व उक्कोस । समुच्छिम पज्जत्तय तेसि चिय धणुपुहत्तं च ॥ १७३ ।। जलथलगब्भपजत्ता खहथलसमुच्छिमा य पज्जत्ता । खहगब्भया उ उभये उकोसणं धणुपु. &ा हुत्तं ।। १७४ ॥ जलगब्भयपज्जत्ता उकोस हुँति जोयणसहस्सं । थलगम्भयपज्जत्ता छग्गाउकोसगुब्बेहा ॥ १७५ ।। अंगुलअसंखPIभागो बायरसुहुमा य सेसया काया। सब्वेसिं च जहणं मणुयाण तिगाउ उकोस ॥ १७६ ॥ भवणवइवाणमंतरजाइसवासा य | सत्तरयणीया । सक्काइ सत्तरयणी एकेका हाणि जावेका ॥१७७ ॥ मिच्छा य सबलोए असंखभागे य सेसया हुँति । केवलि असंखभागे भागेसु व सव्वलोए वा ॥ १७८ ॥ तिरिएगिदियसुहुमा सव्वे तह बायरा अपज्जता । सब्वेवि सबलोए सेसा उ ४॥२४७॥ DIअसंखभागम्मि ॥१७९।। पज्जत्तवायराणिल सट्ठाणे लोगऽसंखभागेसुं। उबवायसमुग्घाएण सव्वलोगम्मि होज्ज ण्ड ॥१८०ा खित्त ।। सट्ठाणसमुग्घाएणुववाएणं च जे जहिं भावा । संपइ काले खेत्तं तु फासणा होइ समईए ॥१८१।। लोए धम्माऽधम्मा लाया SSAGAR For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ स्पर्शना कादि संस्थानं समुद्घाताश्च जीवसमासे लोए य होइ आगासं । कालो माणुसलोए उ पोग्गला सबलोयम्मि ॥१८२।। आगासं च अणंतं तस्स य बहुमज्झदेसभागम्मि । | सुपइट्ठियसंठाणो लोगो कहिओ जिणवरेहिं ॥ १८३ ॥ हेट्ठा मज्झे उवारं वेत्तासणझल्लरीमुइंगनिभो । मज्झिमवित्थाराहियचोद्दसगुद्वार णमायओ लोओ ॥१८४ ॥ मज्झे य मझलोयस्स जंबूदीवो य वट्टसंठाणो । जोयणसयसाहस्सो विच्छिण्णो मेरुनामीओ॥१८५॥ ॥२४८॥ तं पुण लवणो दुगुणेण वित्थडो सचओ परिक्खिवइ । तं पुण धायइसंडो तदुगुणो तं च कालोओ ॥ १८६ ॥ तं पुण पुक्खरदीवो तम्मज्झे माणुसोत्तरो सेलो । एतावं नरलोओ बाहिं तिरिया य देवा य ।। १८७ ॥ एवं दीवसमुद्दा दुगुणदुगुणवित्थरा असंखेज्जा । एवं तु तिरियलोगो सयंभुरमणोदही जाब ।। १८८ ॥ तिरियं लोगायाम पमाण हेढा उ सयपुढवीणं । आगासंतरियाओ| विच्छिन्नयराउ हेडेट्ठा ॥ १८९ ॥ उड्डे पएसवुड्डी निद्दिट्ठा जाव बंभलोगोत्ति । अद्भुट्ठा खलु रज्जू तेण परं होइ परिहाणी॥१९०॥ INTईसाणम्मि दिवा अड्राइज्जा य रज्जु माहिदे । पंचेव सहस्सारे छ अच्चुए सत्त लोगते ।। १९१ ।। | वेयण कसाय मरणे बेउब्धिय तेयए य आहारे । केवलियसमुग्याए सत्त य मणुएसु नायब्वा ॥ १९२ ।। पज्जत्तबायरानिल दानेरइएसु य हवंति चत्तारि । पंचसुरतिरियपंचिदिएसुसेसेसु तिगमेव ॥ १९३ ॥ दंड कवाडे रुयए लोए चउरो य पडिनियते । केवलिय अट्ठसमए भिन्नमुहुत्तं भवे सेसा ॥ १९४ ॥ मिच्छेहिं सचलोओ सासणमिस्सेहिं अजयदेसेहिं । पुठा चउदसभागा बारस | अदृष्ट छच्चेव ॥ १९५ ।। सेसेहसंखभागो फुसिओ लोगो सजोगिकेवलिहिं । एगाईओ भागो चीयाइसु णरगपुढवीसु ॥१९६।। ईसाणंता मिच्छा सासण नव मिस्स अविरया अट्ठ । अट्ठ सहस्सारंतिय छलच्चुयाऽसंखभागुपि ॥ १९७ ।। नरतिरिएहि य लोगो सत्तासाणेहि छज्जयगिहीहिं । मिस्सेहऽसंखभागो विगलिंदीहिं तु सचजगं ।। १९८ ॥ बायरपज्जत्तावि य सयला वियला य समु CARECHAR ॥२४८॥ For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमासे ४ हउववाए । सर्व फोसति जगं अह एवं फोसणाणुगमो ॥ १९९ ।। आइदुर्ग लोगफुडं गयणमणागाढमेव सव्वगयं । कालो नरलोग-18 नारकादी५ कालद्वारा फुडो पोग्गल पुण सव्वलोगफुडा ॥ २० ॥ स्पर्शनाद्वारं ४। नां स्थितिः ॥२४९॥ - कालो भवाउकायट्टिई य तह गुणविभागकालं च । वोच्छामि एकजीव नाणाजीवे पडुच्चा य॥२०१।। एगं च तिणि सत्त य दस सत्तरसेव हुँति बावीसा । तेतीस उयहिनामा पुढवीसु ठिई कमुक्कोसा ।। २०२ ।। पढमादि जमुकोसं बीयादिसु सा जहणिया होइ । धम्माए भवणवंतर वाससहस्सा दस जहण्णा ॥ २०३ ।। असुरेसु सारमहियं सड्डे पल्लं दुवे य देसूणा । नागाईणुक्कोसा पल्लो पुणवंतरसुराणं ॥२०४।। पल्लट्ठभाग पल्लं च साहियं जोइस जहणियरं । हेडिल्लुकोसठिई सक्काईणं जहण्णा सा ॥२०५।। दो साहि सत्त साहिय दस चउदस सत्तरेव अट्ठारा । एक्काहिया य एत्तो सकाइसु सागरुवमाणा ।।२०६।। बावीस सत्त तिमि य वाससहस्साणि दस य उकोसा । पुढविदगानिलपत्तेयतरुसु तेऊ तिरायं च ॥ २०७ ।। बारस अउणापत्रं छप्पिय वासाणि दिवसमासा या बेइंदियाइयाणं नरतिरियाणं तिपलं च ।। २०८ ।। जलथलखहसंमुच्छिमपज्जत्तुकोस पुब्धकोडीओ । वरिसाणं चुलसीई बिसतरी चेव य सहस्सा ॥२०९ ।। तेसि तु गम्भयाणं उकोसं होइ पुवकोडाओ । तिष्णि य पल्ला भणिया पल्लस्स असंखभागो उ ||॥ २१॥ एएसिं च जहणं उभयं साहार सन्नमुहुमाण । अंतोमुहनमाऊ सब्यापज्जत्तयाणं च ।। २११ ।। एकगजीवाउठिई एसा बहुजीविया उ सम्बद्धं । मणुयअपज्जताणं असंखभागो उ पल्लस्स ॥२१२ ॥ एककभवं सुरनारयाओ तिरिया अणंतभवकालं | |॥२४९।। पंचिंदियतिरियनरा सत्तदुभवा भवग्गहणे ।। २१३ ॥ एगिदियहरियंति य पोग्गलपरियट्टया असंखेज्जा । अड्डाइज्ज निओया असंखलोया पुढविमाई ।। २१४ ॥ कम्मठिइबायराणं सुहुमा अस्संखया भवे लोगा । अंगुलअसंखभागो वायरएगिदियतरूणं ॥२१५॥ For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीमसमास बायरपज्जत्ताणं वियलसपज्जत्त इंदियाणं च । उकोसा कायठिई वाससहस्सा उ संखेज्जा ।। २१६ ॥ तिणि य पल्ला भणिया ४ मिथ्यात्वा५ कालद्वारे दीनां | कोडिपुहुत्तं च होइ पुयाणं । पंचिंदियतिरियनराणमेव उक्कोसकायठिई ॥२१७।। पज्जत्तयसयलिंदियसहस्समब्भहियमुयहिनामाणं । स्थितिः ॥२५०॥ दुगुणं च तसत्तिभवे सेसविभागो मुहुत्तंतो ॥२१८॥ मिच्छा अविरयसम्मा देसे विरया पमत्तु इयरे य । नाणाजीव पडुच्च उ सब्बे | कालं सजोगी य ॥२१९।। पल्लासंखियभागो सासणमिस्सा य हुँति उकोसं । अविरहिया य जहण्णेण एकसमयं मुहुर्ततो ॥२२०॥ सासायणेगजीविय एकगसमयाइ जाव छावलिया। सम्मामिच्छद्दिट्टी अवरुकोसं मुहत्तंतो ॥२२१ ॥ मिच्छत्तमणाईयं अपज्जवसियं सपज्जवसियं च । साइयसपज्जवसियं मुहुत्त परियट्टमघृणं ॥ २२२॥ तेत्तीस उयहिनामा साहीया हुँति अजयसम्माणं । | देसजइसजोगीण य पुब्याण कोडिदेसूणा ।। २२३ ॥ एएसिं च जहण्णं खबगाण अजोगि खीणमोहाणं । नाणाजीवे एग परापर| ठिई मुहुत्तो ।।२२४॥ एगं पमत्त इयरे उभए उवसामगा य उवसंता । एग समय जहनं भिन्नमुडुत्तं च उकोसं ॥२२५।। मिच्छा भवडिईया सम्म देसूणमेव उक्कोसं । अंतोमुहुत्तमवरा नरएसु समा य देवेसु ॥२२६|| मिच्छाणं कायठिई उकोस भवट्ठिई य सम्माणं। |तिरियनरेगिदियमाइएसु एवं विभइयव्वा ।।२२७|| सासायणमिस्साणं नाणाजीचे पडुच्च मणुए। अंतोमुहुत्तमुकोसकालमवरं जहुदिहूँ| है॥ २२८ ॥ काओगणंतकालं वाससहस्सा उराल बावीसं । समयतिग कम्मइओ सेसा जोगा मुहुत्तंतो ।। २२९ ।। देवी पणपण्णाऊ इत्थित्तं पल्लसयपुहत्तं तु । पुरिसत्तं सण्णित्तं च सयाहुत्तं च उयहीणं ।। २३० ॥ अंतमुहु तं तु परा जोगुवओगा कसाय लेसा य । | ॥२५॥ सुरनारएसु य पुणो भवडिई होइ लेसाणं ॥ २३१ ।। छावहिउयहिनामा साहिया महसुओहिनाणाणं । ऊणा य पुधकोडी मणसमइयछेयपरिहारे ।। २३२ ॥ विभंगस्स भवडिइ चक्खुस्सुदहीण चे सहस्साई । नाई अपज्जवसिओ सपज्जवसिओ त्तिय अचक्खू ROCIECCRECORRECAREER For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमास टा॥ २३३ ॥ भव्यो अणाइ संतो अणाइऽणतो भवे अभव्यो य । सिद्धो य साइऽणतो असंखभागंगुलाहारो ॥ २३४ ।। काओगी नर-नला गत्यादिषु ६ अन्तर मिथ्यात्वानाणी मिच्छं मिस्सा य चक्खु सण्णी य । आहारकसायीवि य जहण्णमंतोमुहुर्ततो ।। २३५ ।। मणवइउरलविउब्बिय आहारयकम्म [1] द्वारं दिषु जोग अणरित्थी । संजमविभागविभंग सासणे एगसमयं तु ।। २३६ ॥ अड्डाइज्जा य सया वीसपुत्तं च होइ वासार्ण । छयपरि-18 चान्तरं ॥२५॥ हारगाणं जहण्णकालाणुसारो उ ।। २३७ ॥ कोडिसयसहस्साई पन्नास हुँति उयहिनामाणं ।दो पुनकोडिऊणा नाणाजोवेहि उक्कोस्सं ॥ २३८ ॥ पल्लासंखियभागो वेउब्धियमिस्सगाण अणुसारो । भिन्नमुहुतं आहारमिस्ससेसाण सम्बद्धं ॥ २३९ ॥ एत्थ य जीवसमासे अणुमज्जिय सुहुमनिउणमइकुसले । सुहुमं कालविभागं विभएज्ज सुयम्मि उपउत्ती ।। २४० ॥ तिणि अणाइअणंता | हैतीयद्धा खलु अणाइया संता । साइअणंता एसा समओ पुण वट्टमाणद्धा ।। २४१ ।। कालो परमाणुस्स य दुपएसाईणमेव खंधाणं । ॐा समओ जहण्णमियरो उस्सप्पिणिओ असंखेज्जा २४२ ॥ कालद्वारं ५ जस्स गमो जत्थ भवे जेण य भावण विरहिओ वसइ । जाव न उघड भावो से। चेा तमंतरं हाई ॥ २४३ ॥ सबा गई नराणं सन्नितिरिक्खाण जा सहस्सारो । धम्माएं भवणवंतर गच्छइ सयलिंदिय असण्णी ।। २४४ ॥ तिरिएसु तेउवाऊ सेसति| रिक्खा य तिरियमणुएसु । तमतमया सयलपमू मणुयगई आणयाईया ॥ २४५ ॥ पंचेन्दियतिरियनरे सुरनेरइया य सेसया जंति । अह पुढविउदय हरिए ईसाणंता सुरा जति ।। २४६ ।। चयणुववाओ एगिदियाण अविरहियमेव अणुसमय । हरियाणंता लोगा | सेसा काया असंखेज्जा ॥ २४७ ॥ आवलियअसंखेज्जइभागो संखेज्जरासि उववाओ । संखियसमये संखज्जयाण अद्वेष ॥२५॥ सिद्धाणं ।। २४८॥ बत्तीसा अडयाला सट्ठी बावत्तरी य बोद्धव्वा । चुलसाई छण्णउइ दुरहिय अटुत्तरसयं च ॥२४९।। चउवीस For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीमसमास ६ अन्तर द्वारं ॥५२॥ मुत्ता सत्त दिवस पक्खो य मास दुग चउरो । छम्मासा रयणाइसु ('छप्पढमाइसुबारस) चउवीस मुहत्त सणियरे ॥ २५० ॥मागत्यादि थावरकालो तसकाइयाण एगिदियाण तसकालो। बायरसुहुमे हरिएअरे य कमसो पउंजेजा।। २५१ ॥ हरिएयरस्स अंतर असंखया मिथ्यात्वाहोंति पोग्गलपरहा । अड्डाइअपरट्टा पत्तेयतरुस्स उक्कोसं ॥ २५२ ॥ बायरसुहुमनिओया हरियात्ति असंखया भवे लोगा। उयहीण सयपुहुतं तिरियनपुंसे असण्णी य ॥ २५३ ।। जावीसाणं अंतोमुहुत्तमपरं सणकुसहसारो । नव दिण मासा वासा अणुत्तरोकोस दि चान्तरं उयहिदुर्ग ।। २५४ । नवदिण वीसमुहुत्ता बारस दिण दस मुहुत्तया हुँति । अद्धं तह बावीसा पणयालं असीइ दिवससयं । २५५ । संखेज्जमासवासा सया सहस्सा य सयसहस्सा य । दुसु २ तिसु २ पंचसु अणुत्तरे पल्लऽसंखइमा ॥ २५६ ॥ मिच्छस्स उहिनामा बे छावही परं तु देसूणा । सम्मत्तमणुगयस्स य पुग्गलपरियट्टमघृणं ॥ २५७ ॥ सासाणुवसमसम्मे पल्लासंखेअभागमवरं तु । अंतोमुहुत्तमियरे खवगस्स उ अंतरं नत्थि ॥ २५८ ।। पल्लाऽसंखियभागं सासणमिस्सासमत्तमणुएसु । वासपुहुत्तं उवसामएसु खवगेसु छम्मासा ।। २५९ ।। आहारमिस्सजोगे वासपुहुप्तं विउविमिस्सेसु । बारस हुंति मुहुत्ता सम्वेसु जहण्णओ समओ &॥ २६० ॥ तेवट्ठी चुलसीई वाससहस्साई छेयपरिहारे । अवरं परमुदहीणं अट्ठारस कोडीकोडीओ ।। २६१ ॥ सम्मत्तसत्तगं खलु विरयाविरईय होइ चोदसगं । विरईए पनरसगं विरहियकालो अहोरत्ता ॥२६२॥ भवभावपरिणिं कालविभागं कमेणऽणुगमित्ता। भावेण समुवउत्तो एवं कुज्जऽतराणुगमं ।। २६३ ॥ परमाणू दवाणं दुपएसाईणमेव खंधाणं । समओ अणतकालत्ति अंतरं नस्थि सेसाण ॥ २६४ ।। अन्तरदारं ६ । ॥२५२॥ उवसम खइओ मीसो उदओ परिणाम सनिवाओ य। छद्धा जीवसमासो परिणामुदओ अजीवाणं ॥ २६५ ॥ उदईओ For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औदयिक भेदादि जावसमासा उवसमिओ खइओ मीसो य मोहजा भावा । उवसमरहिया पाइसु हाँति उ सेसाई ओदइए ॥ २६६ ॥ केवलिय नाणदंसण ७ भावद्वारा खाइयसम्मं च चरणदाणाई । नव खइया लद्धीओ उवसमिए सम्म चरणं च ॥ २६७ ॥ नाणा चउ अण्णाषा तिमि उ ।।२५३॥ दंसण तिगं च गिहिधम्मो । बेयय चउ चारित्तं दाणाइग मिस्सगा भावा ॥ २६८॥ गइकायवेयलेसाकसाय अबाण अजय अस्स पणी । मिच्छाहारे उदया जियभवियरत्तियसहावो ।। २६९ ॥ धम्माधम्मागासा कालोति य पारिणामिओ भावो । खंधा देस 81 पएसा अणू य परिणाम उदएण ।। २७० ॥ भावदारं ।। थोवा नरा नरेहि य असंखगुणिया हवंति नेरइया । तत्तो सुरा सुरेहि य सिद्धार्णता तो तिरिया ।। २७१ ॥ थोवाउ मणुस्सीओ नरनरयतिरिक्खिओ असंखगुणा । सुरदेवी संखगुणा सिद्धा तिरिया अणतगुणा ।। २७२ ॥ थोवा य तमतमाए कमसो घम्मतया असंखगुणा । थोवा तिरिक्खपज्जत्तसंख तिरिया अणंतगुणा ॥२७३।। थोवाणुत्तरवासी असंखगुणवड्डी जाव सोहम्मो । भवणेसु वंतरेसु य संखेज्जगुणा य जोइसिया ॥ २७४ ॥ पंचिंदिया य थोवा विवज्जएण वियला विससहिया । तत्तो य अर्णतगुणा आणिदिएगिदिया कमसो ।। २७५ ।। थोवा य तसा तत्तो तेउ असंखा तओ विसेसहिया । कमसो भृदगवाऊ अकाय हरिया द्र अणंतगुणा ।। २७६ ।। उवसामगा य थोवा खवग जिणे अप्पमत्त इयरे य । कमसो संखेज्जगुणा देसविरय सासणेऽसंखा ॥२७७।। | मिस्साऽसंखेज्जगुणा अविरयसम्मा तओ असंखगुणा । सिद्धा य अणतगुणा तत्तो मिच्छा अणतगुणा ।। २७८ ।। सुरनरए सासाणा थोवा मीसा य संखगुणयारा । तत्तो अविरयसम्मा मिच्छा य भवे असंखगुणा ॥ २७९ ।। तिरिएसु देसविरया थोवा सासायणा असंखगुणा । मीसा य संख अजया असंख मिच्छा अणंतगुणा ।। २८०॥ मणुया संखेज्जगुणा गुणीसु मिन्छा भवे असंखंगुणा । ॥२५३॥ For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बहुत्वं जीमसमासे का एवं अप्पाबहुयं दव्वपमाणेहि साहेज्जा ॥ २८१ ॥ धम्माधम्मागासा तित्रिवि दबट्ठया भवे थोवा । तत्तो अणंतगुणिया पोग्गल८ अल्प दिब्या तओ समया ॥२८२ ॥ धम्माधम्मपएसा तुल्ला परमाणवो अणंतगुणा । समया तओ अर्णता तह खपएसा अणंतगुणा ॥२८३। बहुत्वं धम्माधम्मपएसेहिंतो जीवा तओ अणंतगुणा । पोग्गलसमया खपि य पएसओ तेणणंतगुणा ॥ २८४ ॥ ॥२५४॥ __बहुभंगदिट्ठिवाए दिठ्ठत्थाणं जिणोवइटाणं । धारणपत्तट्ठो पुण जीवसमासत्थउवउत्तो ।। २८५ ॥ एवं जीवाजीवे वित्थरभिहिए समासनिद्दिष्ठे । उवउत्तो जो गुणए तस्स मई जायए विउला ।। २८६ ॥ इति जीवसमाससूत्रं ॥ 'रिसहो ये त्यादिगाथायाः (४९) परतः नंगलियपट्ट खीलिय पट्टरिए पट्टखीलियारहियं । एग दुबंधे य तहा छई पुण कोडिए मिलियं ॥ ५० ॥ 'पुवस्स उ परिमाण' मित्यादिगाथायाः (११३) परतः पुब्ब १ तुडिया २ डडा ३ व ४ हुहुय ५ तह उप्पले ६ य पउमे ७य । नलिण ८ च्छनिउर ९ अउए १० नउए ११ मउए १२ य बोद्धव्वे ॥ ११४ ॥ चूलिय १३ सीसपहेलिय १४ चोद्दस ठाणा उ अंगसंजुत्ता । अट्ठावीसं ठाणा चउणउयं होइ अंकसयं ॥ ११५॥ 'एवं जीवाजीवे त्यादि (२८६) गाथात: जीवा १ पोग्गल २ समया३ दव४ पएसा५ य पज्जपा६ चेव । थोवा१ गंता२णेता विसेस अहिया४ दुवेऽणता ॥२८७॥ प्राचीन पुस्तके उपर्युक्ता गाथा अधिकाः पाठान्तररूपेण च, परमुपयुक्ताः CHAR ॥२५॥ For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org कर्मप्रकृतौ ४ ॥२५५॥ ॥ अथ श्रीमच्छिवशर्मसूरीश्वरप्रणीता कर्मप्रकृतिः ॥ 154% बन्धन करण ॐ% %A5 % बन्धनकरणम्-सिद्धं सिद्धत्थसुयं, बंदिय निद्धोयसब्बकम्ममलं । कम्मट्ठगस्स करणट्ठमुदयसताणि वोच्छामि ॥१॥ बंधण १ संकमणु २ व्वट्टणा य ३ अववट्टणा४ उदीरणया ५।उवसामणा ६ निहत्ती ७ निकायणा ८ चत्ति करणाई ॥२॥ विरियंतरायदेसक्खएण सव्वक्खएण वा लद्धी । अभिसंधिजमियरं वा सत्सो विरियं सलेसस्स ॥ ३ ॥ परिणामालंबणगहणसाहणं तेण लद्धनामतिग। कज्जऽम्भासऽनोनप्पवेसविसमीकयपरसं॥४॥अविभाग १ वग्ग २ फडग ३ अंतर ४ ठाणं ५ अणंतरोवणिहा६। जोगे परंपरा ७ बुड्डि८ | समय ९ जीवप्पबहुगं १० च ॥५॥ पण्णाछेयणछिन्ना, लोगासंखेज्जगप्पएससमा। अविभागा एक्केक्के, होति पएसे जहन्नेणं ॥६॥ जेसि पएसाण समा, अविभागा सव्वतो य थोवतमा । ते वग्गणा जहन्ना, अविभागहिया परंपरओ ॥ ७ ॥ सेढिअसंखिअमित्ता, फड्डगमेत्तो अणंतरा नत्थि । जाव असंखा लोगा, तो बीयाई य पुब्बसमा ॥८॥ सेढिअसंखिअमेत्ताई, फड्डगाई जहन्नय ठाणं । है फड्डगपरिवुड्डि अओ, अंगुलभागो असंखतमो ॥९॥ सेढिअसंखियभार्ग, गंतुं गंतुं हवंति दुगुणाई । पल्लासंखियभागो, नाणा| गुणहाणिठाणाणि ।। १० ।। वुड्डीहाणिचउक्कं तम्हा कालोऽत्थ अंतिमल्लीणं । अंतोमुहुत्तमावलि असंखभागो य सेसाणं ॥११॥ |चउराई जावट्ठगमित्तो जावं दुगंति समयाणं । पज्जत्तजहन्नाओ जावुक्कोसंति उकोसो ॥ १२ ॥ एगसमयं जहन्नं ठाणाणप्पाणि % RIA % ॥२५५॥ For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृति बन्धन करणं ॥२५६॥ ROSCORRECTREAM अट्ठ समयाणि । उभओ असंखगुणियाणि समयसो ऊण ठाणाणि ॥१३॥ सव्वत्थोवो जोगो साहारणसुहुमपढमसमयम्मि। बायरबियतियचउरमणसनपज्जत्तग जहनो ॥ १४ ॥ आइदुगुक्कोसो सिं पज्जत्तजहबगेयरे य कमा । उक्कोसजहनियरो असमत्तियरे असंखगुणो ॥ १५ ॥ अमणाणुत्तरगेविज्जभोगभूमिगय तइयतणुगेसुं । कमसो असंखगुणिओ सेसेसु य जोगु उक्कोसो ॥ १६ ॥ जोगेहिं तयणुरूवं परिणमई गिहिऊण पंच तणू । पाउग्गे वालंबइ भासाणुमणत्तणे खंधे ॥ १७॥ परमाणुसंखसंखाणंतपएसा | अभव्वऽणतगुणा । सिद्धाणणंतभागो आहारगवग्गणा तितणू ॥ १८ ॥ अग्गहणतरियाओ तेयग भासा मणे य कम्म य । धुव अधुव अच्चित्ता सुन्ना चउअंतरेसुप्पि ॥ १९ ॥ पत्तेगतणुसु वायरसुहुमनिगोए तहा महाखंधे। गुणनिष्फनसनामा असंखभागंगुलवगाहो ॥ २० ॥ एगमवि गहणदव्वं सवप्पणयाइ जीवदेसम्मि । सव्वप्पणया सव्वत्थ वावि सव्वे गहणखंधे ॥ २१ ॥ नेहप्पच्चयफह| गमेगं अविभागवग्गणा पंता । हस्सेण बहू बद्धा असंखलोगे दुगुणहीणा ॥ २२ ॥ नामप्पओगपच्चयगेसुवि नेया अणंतगुणणाए। धणिया देसगुणा सिं जहनजे? सगे कटु ॥ २३ ॥ मूलुत्तरपगईणं अणुभागविससओ हवइ भेओ। अविसेसियरसपगईउ, पगईबंधो मुणेयव्यो ॥ २४ ॥ ज सव्वघाइपत्तं सगकम्मपएसणंतमो भागो । आवरणाण चउद्धा तिहा य अह पंचहा विग्घे ॥२५॥ | मोहे दुहा चउद्धा य पंचहा वावि बज्झमाणीण । वेयणियाउयगोएसु वज्झमाणीण भागो सिं ॥ २६ ॥ पिंडपगइसु बज्झतिगाण | वण्णरसगंधफासाणं । सव्वासि संघाए तणुम्मि य तिगे चउक्के वा ॥ २७ ॥ सत्तेक्कारविगप्पा बंधणनामाण मूलपगईणं । उत्तरसगपगईण य अप्पबहुत्ता विसेसो सिं ।। २८ ।। गहणसमयाम्मि जीवो उप्पाएई गुणे सपच्चयो । सव्वजियाणंतगुणे कम्मपएसेसु सव्वेसु ॥ २९ ॥ सव्वप्पगुणा ते पढमवग्गणा सेसिया विसेसूणा । अविभागुत्तरियाओ सिद्धाणमणंतभागसमा ॥ ३० ॥ फड्डगम-10 -सर ॥२५६॥ For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती लणतगुणियं सव्वजिएहिपि अंतरं एवं । सेसाणि वग्गणाणं समाणि ठाणं पढममेत्तो ॥ ३१ ॥ अंतरतुल्ल अंतरमणंतभागुत्तरं बिइय मेवं । अंगुलअसंखभागो अणतभागुत्तरं कंडं ॥ ३२ ॥ एगं असंखभागेणणंतभागुत्तरं पुणो कंडं । एवं असंखभागुत्तराणि जा पुब्व॥२५७॥ | तुल्लाणि ।। ३३ ।। एग संखज्जुत्तरमेत्तो तीयाण तिच्छया बीयं । ताणवि पढमसमाई संखेज्जगुणोत्तरं एक ॥ ३४ ॥ एत्तो| तीयाणि अइच्छियाण विइयमवि ताणि पढमस्स । तुल्लाणसंखगुणियं एक्कं तीयाण एक्कस्स ।। ३५ ॥ बिइयं ताणि समाई पढम| स्साणतगुणियमेगं तो । तीयाणइच्छियाणं ताणवि पढमस्स तुल्लाई ॥ ३६ ॥ सव्वजियाणमसंखज्जलोग संखेज्जगस्स जेट्ठस्स । |भागो तिमु गुणणा तिसु छट्ठाणमसंखिया लोगा ।। ३७ ।। वुड्डी हाणी छक्कं तम्हा दोण्हंपि अंतमल्लीण । अंतोमुहुत्तमावलि | असंखभागा उ सेसाण ॥ ३८ ॥ चउराई जावट्ठगमेत्तो जावं दुगं तिसमयाणं । ठाणाणं उक्कोसो जहण्णओ सव्वहिं समओ ॥३९॥ दम जवमझ थोवाण असमयाणि दोसु पासेस । समऊणियाणि कमसो असंखगणियाणि उप्पि च ॥ ४० ॥ सुहमगणिपवेसठाणया अगणिकाया य तेसि कायठिई । कमसो असंखगुणियाणज्झवसाणाणि चऽणुभागे॥४१॥ कडजुम्मा अविभागा ठाणाणि य कंडगाणि अणुभागे । पज्जवसाणमणतगुणाओ उप्प नणंतगणं ॥ ४२ ॥ अप्पबहुमणतरओ असंखगुणियाणणतगुणमाई। तन्वि| वरीयमियरओ संखेज्जक्खेसु संखगुणं ।। ४३ ॥ थावरजीवाणता एक्केक्के तसजिया असंखज्जा । लोगा सिमसंखज्जा अंतरमह | थावरे नत्थि ॥ ४४ ॥ आवलिअसंखभागो तसा निरंतर अहेगठाणम्मि । नाणा जीवा एवइकालं एगिदिया निच्चं ॥४५॥ थोवा जहन्नठाणे जा जवमझ विसेसओ अहिया । एत्तो हीणा उक्कोसगंति जीवा अणंतरओ ।। ४६ ॥ गंतूणमसंखज्जे लोगे दुगुणाणि जाव जवमझं । एत्तो य दुगुणहीणा एवं उक्कोसग जाव ॥ ४७ ।। नाणंतराणि आवलियअसंखभागो तसेसु इयरसुं । एगंतरा असं ॥२५७|| For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती ॥२५८॥ खियगुणाई ठाणंतराई तु ॥ ४८ ॥ फासणकालो तीए थोवो उक्कोसगे जहन्ने उ । होइ असंखेज्जगुणो य [3] कंडगे तत्तिओ चैव बन्धन ॥ ४९ ॥ जवमज्झकंडगोवरि हेट्ठा जवमझओ असंखगुणो । कमसो जवमझुवरि कंडगडेट्ठा य तानइओ ॥ ५० ॥ जवमझुवीर करणं |विसेसो कंडगहेट्ठा य सव्वहिं चेव । जीवप्पाचहुमेवं अज्झवसाणेसु जाणेज्जा ॥५१॥ एक्केक्कम्मि कसायोदयम्मि लोगा असंखिया होति । ठिइबंधट्ठाणसुवि अज्झवसाणाण ठाणाणि ॥ ५२ ॥ थोवाणि कसाउदये अज्झवसाणाणि सब्बडहरम्मि । बिइयाइ विसेसहियाणि जाव उक्कोसगं ठाणं ॥ ५३॥ गंतूणमसंखेज्जे लोगे दुगुणाणि जाव उक्कोसं । आवलिअसंखभागो नाणागुणवुड्डिठाणाणि |॥ ५४ ॥ सव्वासुभपगईणं सुभपगईणं विवज्जयं जाण । ठिइबंधट्ठाणेसुवि आउगवज्जाण पगडीण ॥ ५५ ॥ पल्लासंखियभाग गंतुं दुगुणाणि आउगाणं तु । थोवाणि पढमबंधे विइयाइ असंखगुणियाणि ।। ५६ । घाईणमसुभवण्णरसंगंधफासे जहन्नठिइबंधे । जाणज्झवसाणाई तदेगदेसो य अन्नाणी ॥ ५७ ।। पल्लासंखिय भागो जावं बिइयस्स होइ बिइयम्मि । आउक्कस्सा एवं उवधाए | बावि अणुकड्डि ॥ ५८ ।। परघाउज्जोउस्सासायवधुवनामतणुउवंगाणं । पडिलोम सायस्स उ उक्कोसे जाणि समऊणे ॥ ५९ ॥2 | ताणि य अन्नाणेवं ठिइबंधो जा जहन्नगमसाए । हेठ्ठज्जोयसमेवं परत्तमाणीण उ सुभाणं ॥ ६० ॥ जाणि असायजहने उदहिपुर हुतंति ताणि अन्नाणि । आवरणसमं उम्पि परित्तमाणीणमसुभाण ॥ ६१ ।। सेकाले सम्म पडिवजंतस्स सत्तमखिइए । जो ठिइबंधो हस्सो इत्तो आवरणतुल्लो य ॥६२॥ जा अभवियपाउग्गा उप्पिमसायसमयाउ आ (जा) जेट्ठा। एसा तिरियगतिदुगे नीया| गोए य अणुकडी ॥ ६३ ॥ तसबायरपज्जत्तगपत्तेयगाण परघायतुल्ला उ । जावट्ठारसकोडाकाडा हेट्ठा य साएणं ॥ ६४॥ तणु-G॥२५८॥ तुल्ला तित्थयरे अणुकड्डी तिव्वमंदया एत्तो । सवपगईण नेया जहन्नयाई अणतगुणा ॥६५॥ निव्वत्तणा उ एक्किक्कस्स हेडोवरि + For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir करणं कर्मप्रकतीतु जट्टियेरे । चरमठिईणुक्कोसो परित्तमाणीण उ विसेसो ॥६६॥ ताणत्राणित्ति परं असंखभागाहिं कंडगेकाणं । उक्कोसियरा नेयादा बन्धन जा तक्कंडकुवरि समत्ती ॥ ६७ ॥ ठिहबंधट्ठाणाई सुहुमअपज्जतगस्स थोबाई । बायरसुहुमेयरबितिचउरिंदियअमणसबीणं ॥६८॥ ॥२५९॥ | संखेज्जगुणाणि कमा असमत्तियरे य बिंदियाइम्मि । नवरमसंखेज्जगुणा संकिलेसा य सव्वत्थ ।। ६९॥ एमेव विसाहीओ विग्घा वरणेसु कोडिकोडीओ । उदही तीसमसाते अद्धं थीमणुयदुगसाए ॥ ७० ॥ तिविहे मोहे सत्तरि चत्तालीसा य वीसई य कमा । हादस पुरिसे हासरई देवदुगे खगइचेट्टाए ॥ ७१ ॥ थिरसुभपंचगउच्च चेवं संठाणसंघयणमले । तबीयाइ विवड़ी अट्ठारस सुहमवि-12 | गलतिगे । ७२ ॥ तित्थगराहारदुगे अंतो वीसा सनिच्चनामाणं । तेत्तीसुदही सुरनारयाउ सेसाउ पल्लतिगं ।। ७३ ॥ आउचउक्कुक्कोसो पल्लासखेज्जभागममणेसु । सेसाण पुवकोडी साउतिभागो अबाहा सिं ।। ७४ ।। वाससहस्समबाहा कोडाकोडिदस-1 गस्स सेसाणं । अणुवाओ अणुवट्टणगाउसु छम्मासिगुकोसो ॥ ७५ ॥ भिन्नमुहत्तं आवरणविग्घदंसणचउकलोभते । वारस साय मुहुत्ता अट्ट य जसकित्तिउच्चेसु ।। ७६ ॥ दो मासा अद्धद्धं संजलणे पुरिस अट्ट वासाणि । भिन्नमुहुत्तमबाहा सव्वासि सबहिं हस्से ॥ ७७॥ खुड्डागभवो आउसु उववायाउसु समा दस सहस्सा । उक्कोसा संखेज्जा गुणहीण आहारतित्थयरे ।। ७८ ॥ वग्गुक्कोसठिईणं मिच्छत्तुकोसगेण जं लद्धो । सेसाणं तु जहन्नो पल्लासंखेज्जगेणूणो ॥ ७९ ॥ एसेगिंदियडहरो सव्वासिं ऊणसंजुओ जेट्ठो । पणवीसा पन्नासा सयं सहस्सं च गुणकारो॥८०॥ कमसो विगलअसत्रोण पल्लसंखेज्जभागहा इयरो । विरए देसजइदुगे सम्म ४ ॥२५९॥ | चउक्के य संखगुणो ।। ८१ ॥ सन्नीपज्जत्तियरे आभितरओ य कोडिकोडीओ । ओघुक्कोसो सन्निस्स होइ पज्जत्तगस्सेव ।। ८२ ।। मोत्तण सगमबाहं पढमाइ ठिईइ बहुतरं दवं । एत्तो विसेसहीणं जावुको संति सबसि ।। ८३ ।। पल्लासंखियभागं गंतुं दुगुणूणमे RECR-CRORSC सर For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्धन करणं ॥२६॥ GRICURREकर कर्मप्रकृती 15 वमुक्कोसा । नाणंतराणि पल्लस्स मूलभागी असंखतमो ॥ ८४ ।। मोत्तूण आउगाई समए समए अवाहहाणीए । पल्लासंखियभागं कंडं कुण अप्पबहुमेसि ।। ८५ ।। बंधाबाहाणुक्कस्स(इ)यरं कंडकअपाहबंधाणं । ठाणाणि एकनाणंतराणि अत्थेण कंडं च ।। ८६ ॥ ठिइबंधे ठितिबंधे अज्झवसाणाणसंखया लोगा । हस्सा विसेसवुड्डी आऊणमसंखगुणवुड्डी ।। ८७ ॥ पल्लासंखियभागं गंतुं दुगुणाणि जाव उक्कोसा । नाणंतराणि अंगुलमूलच्छेयणमसंखतमो ॥ ८८ ॥ ठिइदीहयाइ कमसो असंखगुणियाणि पंतगुणणाए । पढम जहण्णुकोसं वितिय जहभाइआ चरमा ।। ८९ ॥ बंधता धुवपगडी परित्तमाणिग सुभाण तिविहरसं । चउतिगबिट्ठाणगयं विवरीयतिगं च असुभाणं ॥ ९० ॥ सव्वविसुद्धा बंधंति मज्झिमा संकिलिद्वतरगा य । धुवपगडि जहन्नठिई सव्वविसुद्धा उ बंधंति ॥ ९१ ॥ तिहाणे अजहणं बिट्ठाणे जेडगं सुभाण कमा । सट्ठाणे उ जहनं अजहन्नुकोसमियरासिं ॥ ९२ ॥ थोवा जहानियाए होंति विसेसाहिओदहिसयाई । जीवा विसेसहीणा उदहिसयपुहुत्तमो जाव ॥ ९३ ।। एवं तिट्ठाणकरा बिट्ठाणकरा य आ सुभुक्कोसा । असुभाणं बिट्ठाणे तिचउट्ठाणे य उकोसा ॥ ९४ ॥ पल्लासंखियमूलाणि गंतुं दुगुणा य दुगुणहीणा य । नाणतराणि पल्लस्स मूलभागा| असंखतमो ॥ ९५ ॥ अणगारप्पाउगा बिट्ठाणगया उ दुविहपगडीणं । सागारा सव्वत्थवि हिट्ठा थोवाणि जवमझा ॥ ९६ ॥ | ठाणाणि चउट्ठाणा संखेज्जगुणाणि उवरिमे एवं । तिहाणे बिहाणे सुभाणि एगतमीसाणि ॥ ९७ ॥ उरि मिस्साणि जहबगो | सुभाणं तओ विसेसहिओ । होइऽसुभाण जहण्णो संखेज्जगुणाण ठाणाणि ॥ ९८ ॥ बिट्ठाणे जवमझा हेट्ठा एगंत मीसगाणुवरि । एवं तिचउट्ठाणे जवमझाओ य डायठिई ।। ९९ ।। अंतो कोडाकोडी सुभविट्ठाण जवमज्झओ उवरिं । एगंतगा विसिट्टा सुभजिट्ठा डायठिइजेहा ॥ १० ॥ संखेज्जगुणा जीवा कमसो एएसु दुविहपगईणं । असुभाणं तिट्ठाणे सव्वुवरि विसेसओ अहिया॥१०१॥ ॥२६॥ For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संक्रमकरणं ॥२६१॥ कर्मप्रकृतौ | है। एवं बंधणकरणे परूविए सह हि बंधसयगणं । बंधविहाणाहिगमो सुहमाभगंतु लहुं होई ॥१०२ ।। इति बन्धनकरणम् ।। म अथ संक्रमकरणम्-सो संकमोत्ति वुच्चइ जं बंधणपरिणओ पओगणं । पगयंतरत्थदलियं परिणमयइ तयणुभावे जं ॥१०३॥ दुसु वेगे दिट्ठिदुर्ग बंधण विणावि सुद्धदिहिस्स । परिणामह जीसे तं पगईइ पडिग्गहो एसा ।। १०४॥ मोहदुगाउगमूलपगडीण न परोप्परमि संकमणं । संकमबंधुदउबट्टणालिगाईणकरणाई ॥१०५।। अंतरकरणाम्म कए चरित्तमोहेऽणुपुब्बिसंकमणं । अन्नत्थ सेसिगाणं च सव्वहिं सब्वहाबंधे।।१०६॥ तिसु आवलियासु समऊणियासु अपाडग्गहा उ संजलण दुसु । आवलियासुं पढमठिईए | सेसासुवि य वेदो ॥१०७।। साइअणाईधुवअदुवा य सव्वधुवसंतकम्माणं । साइअधुवा य सेसा मिच्छावेयणियनीएहिं ।। १०८॥ | मिच्छत्तजढा य पडिग्गहम्मि सव्वधुवबंधपगईओ । नेया चउविगप्पा साई अधुवा य सेसाओ ॥१०९।। पगईठाणेवि तहा पडिग्गहो | संकमो य बोद्धब्बो । पढमंतिमपगईणं पंचसु पंचण्ह दोवि भवे ॥११०॥ नवगच्छक्कचउके नवगं छकंच चउसु बिइयम्मि । अनयरस्सि अन्नयरावि य वेयीयगोएसु ॥१११।। अढचउरहियवसिं सत्तरसं सोलसं च पनरसं । वज्जिय संकमठाणाइं होंति तेवीसई मोहे ॥११२।। सोलस बारसगड व वीसग तेवीसगाइगे छच्च । वज्जिय मोहस्स पडिग्गहा उ अट्ठारस हवन्ति ॥११३।। छव्वीससत्तवीसाण संकमो होइ चउसु ठाणेसु । बावीसपन्नरसगे एकारसइगुणवीसाए ॥११४ ॥ सत्तरस एकवीसासु संकमो होइ पन्नवीसाए। नियमा चउसु गईसु नियमा दिट्ठी कए तिविहे ॥ ११५ ॥ बावीसपनरसगे सत्तगएक्कारसिगुणवीसासु । तेवीसाए नियमा पंचवि पंचिं. दिएसु भवे ॥ ११६ ॥ चोदसगदसगसत्तगअट्ठारसगे य होइ बाचीसा। नियमा मणुयगईए नियमा दिट्ठी कए दुविहे ॥ ११७ ॥ तेरसगनवगसत्तगसत्तरसगपणगएक्कवीसासु । एकावीसा संकमइ सुद्धसासाणमीसेसु ॥ ११८ ।। एत्तो अविसेसा संकमंति उवसा CRECRUSALMAN 4%ARESCRECRACKR ॥२६॥ ॐ For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir कर कर्मप्रकृती मगे व खवगे वा । उवसामगेसु वीसा य सत्तगे छक्क पणगे य ।। ११९ ॥ पंचसु एगुणवीसा अट्ठारस पंचगे चउक्के य । चउ ॐ संक्रमकरणं ॥२६॥ दस छसु पगईसु तेरसगं छक पणगम्मि ॥ १२० ॥ पंच चउक्के वारस एकारस पंचगे तिग चउके । दसगं चउक्कपणगे नवगं च II तिगांम्म बाव्वं ॥ १२१ ॥ अट्ठ दुगतिगचउके सत्तचउक्के तिगे य बोद्धब्बा । छक्कं दुगम्मि नियमा पंच तिगे एक्कगद्गे य * | ॥ १२२ ॥ चत्तारि तिगचउके तिन्नि तिगे एक्कगे य बोद्धव्वा । दो दुसु एकाए विय एक्का एक्काए बोष्वा ।। १२३ ॥ अणुपुब्विअणणुपुब्बि झीणमझणेि य दिडिमोहम्मि । उवसामगे य खवगे य संकमे मग्गणोवाया ॥१२४।। तिदुगेगसयं छप्पणचउतिगनउई य इगुणनउईया । अट्ठचउदुगेकसीइय संकमा बारस य छटे ॥ १२५ ।। तेवीसपंचवीसा छव्वीसा अट्ठवीसगुणतीसा। तीसेकतीस | एग पडिग्गहा अट्ठ नामस्स ।। १२६ । एकगदुगसय पणचउनउई तो तेरमणिया बावि। परभवियबंधवोच्छेय उपरि सेढीइ एकस्स | ॥१२७।। तिगदुगसयं छपंचगनउई य जइस्स एकतीसाए। एगंतसेढिजोगे वज्जियती सिगुणतीसासु ।।१२८।। अट्ठावीसाए वि ते बासी-13 इतिसयवज्जिया पंच । ते च्चिय बासीइजुया सेसेसु छनउइ य वज्जा॥१२९।। ठिइसकमोत्ति वुच्चइ मूलुत्तरपगइओ य जा हि ठिई ।। | उब्वट्टिया व ओवाट्टिया व पगई निया वणं ॥१३०॥ तीसासचरि चत्तालीसावीसुदहिकोडिकोडिणं । जेट्ठा आलिगदुगहा सेसाण-1४ वि आलिगतिगृणा ॥ १३१ ॥ मिच्छत्तस्मुक्कोसो भिन्नमुहत्तूणगो उ सम्पत्ते । मिस्सेवंतोकोडाकोडी आहारतित्थयरे ॥ १३२ ॥ सव्वासिं जट्ठिइगो सावलिगो सो अहाउगाणं तु । बंधुकोसुक्कोसो साबाहठिई य जट्ठिइगो । १३३ ॥ आवरणविग्घदसणचउकलोभंतवेयगाऊणं । एगा ठिई जहन्ना जडिइ समयाहिगावलिगा ॥ १३४ ॥ निदादुरास्स एका आवलिगदुर्ग असंखभागो य । जट्टिइ ॥२६२॥ | हासच्छक्के संखिज्जाओ समाओ य ॥१३५ ।। सोणमुहुत्ता जट्ठिइ जहन्नबंधो उ पुरिससँजलणे । जट्ठिइ सगऊणजुत्तो आवलिंग For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती रिशा 15555 .. संक्रमकरणं दुगूणओ तत्तो ॥ १३६ ॥ जोगतियाण अंतोमुहुत्तिो सेसियाण पल्लस्स । भागो असंखियतमो जट्ठिइगो आलिगाइ सह ॥१३७॥ मूलठिई अजहन्नो सत्तण्ह तिहा चउब्बिहो मोहे । सेस विगप्पा तेसिं दुविगप्पा संकमे होति ॥ १३८ ॥ धुवसंतकम्मिगाणं तिहा| चउद्धा चरित्तमोहाणं । अजहन्नो सेसेसु य दुहेतरासिं च सव्वत्थ ॥ १३९ ।। बन्धाओ उक्कोसो जासिं गंतूण आलिंग परओ।।४॥ उकोससामिओ संकमेण जासिं दुगं तासि ।। १४० ॥ तस्संतकम्मिगो बंधिऊण उक्कोसगं मुहुर्ततो । सम्मत्तमीसगाणं आवलिया है सुद्धदिट्ठी उ ।। १४१ ।। दंसणचउकविग्यावरणं समयाहिगालिगा छउमो । निदाणावलिगद्गे आवलियअसंखतमसेसे ।। १४२ ॥ समयाहिगालिगाए सेसाए वेअगस्स कयकरणो । सक्खवगचरमखंडगसंछुभणादिडिमोहाणं ॥ १४३ ॥ समउत्तरालिगाए लोभे सेसाइ सुहुमरागस्स । पढमकसायाण विसंजोयणसंछोभणाए उ ॥ १४४ ॥ चरिमसजोगे जा अस्थि तासि सो चेव सेसगाणं तु । खवगकमेण अनियट्टिबायरो वेयगो वेए ॥ १४५ ॥ मूलुत्तरपगइगतो अणुभागे संकमो जहा बंधे । फड्डगनिदेसो सिं सव्वेयरघायघाईणं ॥१४६।। सब्बेसु देसघाइसु सम्मतं तदुवरि तु वा मिस्सं । दारुसमाणस्साणंतमोत्ति मिच्छत्तमुप्पिमओ ।।१४७।। तत्थट्ठपयं उव्वट्टिया व ओवट्टिया व अविभागा । अणुभागसंकमो एस अन्नपगई निया वावि ॥ १४८ ॥ दुविहपमाणे जेट्ठो सम्मत्तदेसघाइ दुट्ठाणा । नरतिरियाऊआयवमिस्सेऽविय सव्वघाइम्मि ॥ १४९ ॥ सेसासु चउट्ठाणे मंदो संमत्तपुरिससंजलणे । एगट्ठाणे सेसासु | सब्बघाइम्मि दुट्टाणे ॥ १५० ।। अजहण्णो तिण्ह तिहा मोहस्स चउबिहो अहाउस्स । एवमणुकोसी सेसिगाण तिविहो अणुकोसो ॥ १५१ ॥ सेसा मूलपगइसु दुविहा अह उत्तरासु अजहन्नो । सत्तरसह चउद्धा तिविकप्पो सोलसण्हं तु ॥ १५२ ॥ तिविहो ॥२६३॥ छत्तीसाए णुक्कोसो ह नवगस्स य चउद्धा । एयासि सेसा सेसगाण सव्वे य दुविगप्पा ॥ १५३ ॥ उक्कोसगं पबंधिय आवलिय For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A संक्रमकरणं कर्मप्रकृतौ ॥२६४॥ RROSALAROKAR मइच्छिऊण उक्कोसं । जाव न घाएइ तगं संकमइ य आमुहुत्तंतो ।। १५४ ॥ असुभाणं अन्नयरो सुहुम अपज्जत्तगाइ मिच्छो य ।। बज्जिय असंखवासाउए य मणुओववाए य ।। १५५ ।। सव्वत्थायावुज्जोयमणुयगइ पंचगाण आऊणं । समयाहिगालिगा सेसयत्ति सेसाण जोगंता ।। १५६ ॥ खवगस्संतरकरणे अकए घाइण सुहुमकम्मुवरि । केवलिणो णतगुणं असनिओ सेसअसुभाणं ॥ १५७ ।। सम्माद्दिट्टि न हणई सुभाणुभागे असम्मबिट्ठीवि । सम्मत्तमीसगाणं उक्कोसं वज्जिया खवणं ॥ १५८ ॥ अंतरकरणा उवरिं जहन्नठिइसंकमो उ जस्स जहिं । घाईणं नियगचरमरसखंडे दिट्ठिमोहदुगे ॥ १५९ ॥ आऊण जहन्नठिई बंधिय जावत्थि संकमो ताव । उव्वलणतित्थसंजोयणा य पढमालियं गंतुं ॥ १६० ॥ सेसाण सुहुम हयसंतकम्मिगो तस्स हेट्ठओ जाव । बंधइ तावं एगिदिओ वणेगिंदिओ वावि ॥१६१।। जं दलियमनपगई निज्जइ सो संकमो पएसस्स । उव्वलणो विज्झाओ अहापवत्तो गुणो सव्वो ॥१६२।। आहारतणू भिन्नमुहुत्ता अविरईगओ पउव्वलए । जा अविरतो त्ति उव्वलइ पल्लभागे असंखतमे ॥ १६३ ॥ अंतोमुहुत्तमद्धं पल्ला| संखिज्जमित्तठिइखंडं । उकिरइ पुणोवि तहा ऊणूणमसंखगुणहं जा ॥१६४॥ तं दलियं सहाणे समए समए असंखगुणियाए । सेढीए परठाणे विसेसहाणीए संछुभइ ॥ १६५ ॥ जं दुचरमस्स चरिमे अन्नं संकमइ तेण सव्वंपि । अंगुलअसंखभागेण हीरए एस उव्वलणा ॥ १६६ ॥ चरममसखिजगुणं अणुसमयमसंखगुणियसेढीए । देइ परत्थाणे एव संछुभतीणेवमवि कसिणो ॥ १६७ ॥ एवं मिच्छद्दिहिस्स वेयगं मीसगं ततो पच्छा । एगिदियस्स सुरदुगमओ सव्वेउव्वि निरयदुगं ।। १६८ ॥ सुहुमतसेगो उत्तममओ य नरदुगमहानियट्टिम्मि । छत्तीसाए नियगे संजोयण दिडिजुयले य ।। १६९ ॥ जासि न बंधो गुणभवपच्चओ तासि होइ विज्झाओ । अंगुलअसंखभागो ववहारो तेण सेसस्स ।। १७० ॥ गुणसंकमो अबझंतिगाण असुभाणपुव्वकरणाई । बंधे अहापवत्तो CARROR २६४॥ For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती संक्रमकरणं ॥२६५॥ ASEARSACARRESSES परित्तिओ वा अबंधेवि ॥ १७१ ॥ थोवोवहारकालो गुणसंकमणेणऽसंखगुणणाए । सेसस्स अहापवत्ते विज्झाए उब्वलणनामे ॥ १७२ ॥ पल्लासखियभागेणहापवत्तेण सेसगवहारो । उचलणेणीव थिबुगो अणुइन्नाए उ जं उदए ।। १७३ ।। धुवसंकमद अजहनोऽणुक्कोसो तासि वा विवज्जित्तु । आवरणनवगविग्धं ओरालियसत्तगं चेव १७४ ।। साइयमाइ चउद्धा सेसविगप्पा य सेसगाणं च । सबविगप्पा नेया साई अधुवा पएसम्मि ॥ १७५ ।। जो बायरतसकालेणूणं कम्मट्टिइं तु पुढवीए । बायरपज्जत्तापज्जनगदीहेयरद्धासु ॥ १७६ ।। जोगकसाउकोसो बहुसो निच्चमावि आउबंधं व | जोगजहण्णेणुवरिल्ल ठिइनिसेगं बहुं किच्चा | ॥ १७७ ॥ बायरतसेसु तकालमेवमंते य सत्तमखिइए । सबलहुं पज्जत्ता जोगकसायाहिओ बहुसो ॥ १७८ ।। जोगजवमज्झउवरि | मुहुत्तमच्छित्तु जीवियवसाणे । तिचरिमदुचरिमसमए पूरित्तु कसायउक्कस्सं ॥ १७९ ॥ जोगुक्कोसं चरिमदुचरिमे समए य चरिमस मयम्मि | संपुण्णगुणियकम्मो पगयं तेणेह सामित्ते ॥ १८० ॥ तत्तो उव्वट्टित्ता आवलिगासमयतब्भवत्थस्स | आवरणविग्घचोद्द| सगोरालियसत्त उक्कोसो ॥ १८१ ॥ कम्मचउक्के असुभाण बज्झमाणीण सुहुमरागते । संछोभणमि नियगे चउवीसाए नियहिस्स ॥ १८२॥ तत्तो अणंतरागयसमयादुक्कस्स सायबंधद्धं । बंधिय असायबंधालिगंतसमयम्मि सायस्स ।। १८३ ।। संछोभणाए दोटू ण्हं मोहाणं वेयगस्स खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छत्तगए तमतमाए ।। १८४ ।। भित्रमुहुत्ते सेसे तच्चरमावस्सगाणि किच्चे त्थ । संजोयणा विसंजोयगस्स संछोभणा एसें ॥१८५।। ईसाणागयपुरिसस्स इत्थियाए व अट्ठवासाए। मासपुहुत्तम्भहिए नपुंसगे सबसंकमणे ॥ १८६ ।। इत्थीए भोगभूमिसु जीविय वासाणसंखियाणि तओ । हस्सठिई देवत्ता सबलहुं सव्वसंछोभे ॥१८७॥ बरिसवरित्थिं पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लहिउँ । गंता मिच्छत्तमओ जहन्नदेवट्टिई भोच्चा ।। १८८ ॥ आगंतु लहुं पुरिसं संछु ।।२६५॥ For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृतौ8 भमाणस्स पुरिसवेयस्स । तस्सेव सगे कोहस्स माणमायाणमवि कसिणो ॥ १८९॥ चउरुवसमित्तु खिप्पं लोभजसाणं ससंकमस्संते । शासक्रम ॥२६६॥ सुभधुवबंधिगनामाणावालगं गंतु बंधता ।। १९०॥ निहसमा य थिरसुभा सम्माद्दहिस्स सुभधुवाओऽवि । सुभसंघयणजुयाओ बत्तीससयोदहिचियाओ ॥ १९१ ॥ पूरित्तु पुवकोडीपुहुत्त संछोभगस्स निरयदुर्ग । देवगईनवगस्स य सगबंधंतालिगं गतुं ॥ १९२॥है| सम्वचिरं सम्मत्तं अणुपालिय पूरइत्तु मणुयदुर्ग । सत्तमखिइनिग्गइए पढमे समए नरदुगस्स ।। १९३ ॥ थावरतज्जाआयावुज्जी-15 याओ नपुंसगसमाओ । आहारगतित्थयर थिरसममुक्कस्स सगकालं ॥१९४ ॥ चउरुवसमितु मोहं मिच्छत्तगयस्स नीयबंधतो । उच्चागोउक्कोसो तत्तो लहुसिज्झओ होइ ।। १९५ ।। पल्लासंखियभागोण कम्मठिइमच्छिओ निगोएसु । सुहुमेसुऽभवियजोग्गं जहअयं कटु निग्गम्म ॥१९६।। जोग्गेसु संखवारे सम्मत्तं लभिय देसविरयं च । अढुक्खुत्तो विरई संजोयणहा य तइवारे ॥ १९७।। चउरुवसमित्तु मोहं लहुं खतो भवे खवियकम्मो । पाएण तहिं पगयं पडच्च काईवि सविसेसं ॥ १९८ ॥ आवरणसत्तगम्मि उट सहोहिणा तं विणोहिजुयलाम्म । निहादुगंतराइयहासचउक्के य बंधते ।। १९९ ।। सायस्सऽणुवसमित्ता असायबंधाण चरिमबंधते । खवणाए लोभस्सवि अपुव्वकरणालिगाअंते ।। २०० ॥ अयरच्छावहिदुगं गालिय थीवेयथीणगिद्वितिगे। सगखवणहापवत्तस्संत एमेव मिच्छत्ते ॥ २०१ ॥ हस्सगुणसकमद्धाए पूरयित्ता समीससम्मत्तं । चिरसम्मत्ता मिच्छत्तगयस्सुब्बलणथोगो सिं ॥ २०२॥ संजोयणाण चतुरुवसमित्तु संजोजइत्तु अप्पद्धं । अयरच्छावविदुर्ग पालिय सकहप्पवत्तंते ॥ २०३ ॥ अट्ठकसायासाए य असुभधुव|बंधि अस्थिरतिगे य । सव्वलहुँ खवणाए अहापवत्तस्स चरिमम्मि ॥ २०४ ॥ पुरिसे संजलणतिगे य घोलमाणेण चरमबद्धस्स ।। & ॥२६६॥ सगअंतिमे असाएण समा अरई य सोगो य ॥२०५॥ वेउविक्कारसगं उबलियं बंधिऊण अप्पद्धं । जिट्ठठिई निरयाओ उव्वट्टित्ता For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir %A5 कर्मप्रकृती दा | अबन्धित्तु ॥२०६॥ थावरगयस्स चिरउव्वलणे एयस्स एव उच्चस्स | मणुयदुगस्स य तेउसु वाउसु वा मुहुमबद्धाणं॥२०७।। हस्सं उद्वर्तना .. कालं बन्धिय विरओ आहारसत्तगं गंतुं । अविरइमहब्बलंतस्स तस्स जा थोब उचलणा ।। २०८ ।। तेवढिसयं उदहीण स चउ-1 पवतेन ॥२६७॥ | पल्लाहियं अबन्धित्ता । अंते अहप्पवत्तकरणस्स उज्जोवतिरियद्गे ॥ २०९ ॥ इगविगीलंदियजोग्गा अट्ठ पज्जत्तगेण सह तासि ।।४ करणे पलायन तिरियगइसम नवरं पंचासीउदहिसयं तु ।। २१०॥ छत्तीसाए सुभाणं सेढिमणारुहिय सेसगविहीहिं । कट्टु जहन्न खवणं अपुवकरणालिया अंते ॥ २११ ॥ सम्मद्दिडिअजोग्गाण सोलसहंपि असुभपगईणं । थीवेएण सरिसगं नवरं पढमं तिपल्लेसु ॥ २१२॥ | नरतिरियाण तिपल्लस्संते ओरालियस्स पाउग्गा । तित्थयरस्स य बन्धा जहन्नओ आलिगं गंतुं ॥ २१३ ॥ इति संक्रमकरणम् अथ उद्वर्त्तनापवर्त्तनाकरणम्-उबट्टणा ठिईए उदयावलियाए बाहिरठिईणं । होइ अबाह अइच्छावणाउ जावालिया हस्सा ॥ २१४ ॥ आवलियअसंखभागाइ जाव कम्मट्टिइत्ति निक्खेवो । समउत्तरालियाए साबाहाए भवे ऊगे ॥ २१५ ॥ | निब्वाधाएणवं वाघाए संतकम्माहिगवन्धो । आवलिअसंखभागादि होइ अइच्छावणा नवरं ।। २१६ ॥ उब्बतो य ठिई उदया-18 वलिबाहिरा ठिइबिसेसा । निक्खिवइ तहअभागे समयहिए सेसमइवइ य ।। २१७ ॥ बड्डइ तओ अतिच्छावणा उ जावालिगा हवइ पुना । ता निक्खेवो समयाहिगालिग दुगूण कम्मठिई ॥ २१८ ॥ वाघाए समऊणं कंडगमुकस्सिया अइत्थवणा । डायठिई किंचूणा ठिइकंडुक्कस्सगपमाणं ।। २१९ ॥ चरम नोव्वट्टिज्जइ जावाणताणि फहगाणि ततो । उस्सकिय ओकड्डइ एवं उबट्टणाईओ ॥ २२० ॥ थोवं पएसगुणहाणि अंतरे दुसु जहननिक्खेवो । कमसो अणतगुणिओ दुसुवि अइत्थावणा तुल्ला ॥ २२१ ॥ वाघाए ॥२६७|| णणुभागक्कंडगमेकाए वग्गणाऊणं । उकोसो निक्खेवो ससंतबंधो य सविसेसो ।। २२२ ॥ आबन्धा उक्कड्डइ सवहितोकड्डणा %A5% For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदीरणाकरणं कर्मप्रकृती 18|ठिइरसाणं । किट्टीवज्जे उभयं किट्टिसु ओवट्टणा नवरं ।। २२३ ।। इति उद्वर्तनापवर्त्तनाकरणम् ।। ॥२६८॥ अथ उदीरणाकरणम्-जं करणेणोकड्डिय उदए दिज्जइ उदीरणा एसा । पगइठिइअणुभागप्पएसमूलुत्तरविभागा ॥२२४॥ |मूलपगईसु पंचण्ह तिहा दोण्डं चउब्विहा होइ । आउस्स साइ अधुवा दसुत्तरसउत्तरासिंपि ॥ २२५ ॥ मिच्छत्तस्स चउद्धा तिहा य आवरणविग्घचउदसगे । थिरसुभ सेयर उवघायवज्ज धुवबंधिनामे य ॥ २२६ । घाईणं छउमत्था उदीरगा रागिणो य मोहस्स । तइयाऊण पमत्ता जोगताउति दोहं च ॥ २२७ ॥ विग्यावरणधुवाणं छउमत्था जोगिणो उ धुवगाणं । उबघायस्स तणुत्था | तणुकिट्टीण तणुगरागा ॥२२८।। तसवायरपज्जत्तग सेयर गइजाइदिष्टिवेयाणं । आऊग य तमामा पत्तेगियरस्स उ तणुत्था ।।२२९।। आहारग नरतिरिया सरीरदुगवेयए पमोत्तूर्ण । ओरालाए एवं तदुवंगाए तसजियाओ ॥ २३० ।। वेउब्वियाए सुरनेरइया आहारगा नरो तिरिओ । सन्नी बायरपवणो य लद्धिपज्जत्तगो होज्जा ।। २३१ ।। वेउविउवंगाए तणुतुल्ला पवणबायरं हिच्चा । आहारगाए | विरओ विउब्वयंतो पमत्तो य॥ २३२ ॥छण्हं संठाणाणं संघयणाणं च सगलतिरियनरा । देहत्था पज्जत्ता उत्तमसंघयणिणो सेढी ।। २३३ ।। चउरंसस्स तणुत्था उत्तरतणु सगलभोगभूमिगया । देवा इयरे कुंडा तसतिरियनरा य सेवट्टा ॥ २३४ ॥ संघय.८ णाणि न उत्तरतणूसु तन्नामगा भवंतरगा । अणुपुवीणं परघ यस्स उ देहेण पज्जत्ता ॥ २३५॥ बायरपुढवी आयावस्स य वज्जित्तु सुडुमसुदुमतसे । उज्जोयस्स य तिरिए उत्तरदेहो य देवजई ॥ २३६ ।। सगलो य इट्ठखगई उत्तरतणुदेवभोगभूभिगया । इट्ठ. तिसराए तसोवि य इयरासि तसा सनेरइया ।। २३७ ।। उस्सासस्स सराण य पज्जत्ता आणपाणभासासु । सबन्नूणुस्सासो भासा- वि य जा न रुज्झति ॥२३८॥ देवो सुभगाएज्जाण गम्भवकंतिओ य कित्तीए । पज्जत्तो वज्जित्ता समुहुमनेरइयमुहुमतसे ॥२३९॥ RECORRECROCHE R S ॥२६८॥ For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir R- कर्मप्रकृती गोउत्तमस्स देवा नरा य वइगो चउण्हमियरासि । तबइरित्ता तित्थगरस्स उ सबन्नुयाए भवे ।।२४०॥ इंदियपज्जत्तीए दुसमय- उदीरणा | पज्जत्तगाए पाउग्गा । निद्दापयलाणं खीणरागखवगे परिच्चज्ज ॥ २४१ ॥ निहानिदाईणवि असंखवासा य मणुयतिरिया य । करणं ॥२६९॥ | वेउव्वाहारतणू वज्जित्ता अप्पमत्ते य ॥ २४२ ॥ वेयणियाण पमत्ता ते ते बंधतगा कसायाणं । हासाइछक्कस्स य अपुवकरणस्स चरमंते ॥ २४३ ॥ जावूणखणो पढमो सुहरइहासाणमेवामियरासिं । देवा नेरइयापि य भवट्टिई केइ नेरइया ॥ २४४॥ पंचण्हं च चउण्डं बिइए एक्काइ जा दसहं तु । तिगहीणाई मोहे मिच्छे सत्ताइ जाव दस ॥२४५॥ सासणमोसे नव अविरए य छाई परम्मि | पंचाई । अट्ट विरए य चउराइ सत्त छच्चोवरिल्लंमि ॥२४६|| अनियट्टिम्मि दुगेगं लोभो तणुरागेगो(गएग) चउवीसा । एक्कगछक्केकारस | दस सत्त चउक्क एकाओ ॥२४७॥ एग बियाला पण्णाइ मत्तपण्णत्ति गुणिसु नामस्स | नव सत्त तिनि अट्ट य छप्पंच य अप्पमत्ते | दो ।। २४८ ॥ एगं पंचसु एकम्मि अट्ठ ढाणक्कमेण भंगावि । एक्कग तीसेक्कारस इगवीस सवार तिसए य ।। २४९ ॥ इगवीसा दछच्च सया छहि अहिया नव सया य एगहिया । अउणुत्तराणि चउदस सयाणि गुणनउइ पंचसया ॥ २५० ॥ पंच नव नवगछ-15 काणि गईसु ठाणाणि सेसकम्मार्ण । एगेगमेव नेयं साहित्तगेगपगइउ ।। २५१ ॥ संपत्तिए अ उदए पओगओ दिस्सए उईरण सा। सेचीका ठिइहिंतो जाहिंतो तत्तिगा एसा ॥ २५२ ॥ मूलठिई अजहन्ना मोहस्स चउब्धिहा तिहा सेसा । वेयणियाऊण दुहा सेसविगप्पा उ सव्वासि ॥ २५३ ।। मिच्छत्तस्स चउद्धा अजहबा धुवउदीरणाण तिहा । सेस विगप्पा दुविहा सव्वविगप्पा य सेसाणंद ॥ २५४ ॥ अद्धाच्छेओ सामित्तंपि य ठिइसकमे जहा नवरं । तब्बेइसु निरयगईए वावि तिसु हिडिमखिइसु ॥ २५५ ॥ देवगति 18॥२६९॥ देवमणुयाणुपुब्बी आयाव विगलसुदुमातिगे । अंतोमुहुत्त भग्गा तावइगूणं तदुक्कस्सं ॥ २५६ ।। तित्थयरस्स य पल्लासंखिज्जइमे For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kcbatrth.org 15ॐ कर्मप्रकृतौ | जहन्नगे इत्तो । थावरजहन्नसतेण सम अहिंग व बन्धन्तो ॥ २५७ ॥ गन्तूणावलिमित्तं कसायबारसगभयदुगुंछाणं । निहाइपंचगस्स उदीरणा य आयावुज्जोयनामस्स ॥२५८|| एगिदियजोग्गाणं इयरा बंधितु आलिगं गन्तुं । एगिदियागए तट्टिईए जाईणमवि एवं ।।२५९॥ ॥२७॥ करणं वेयणिया नोकसाया समत्तसंघयणपंचनीयाण । तिरियदुग अयस दुभंगणाइज्जाणं च सनिगए ।। २६० ॥ अमणागयस्स चिरठिइ अंत सुरनरयगइउवंगाण । अणुपुब्धी तिसमइगे नराण एगिदियागयगे ।। २६१ ।। समयाहिगालियाए पढमठिईए उ सेसवेलाए । मिच्छत्ते वेएसु य संजलणासुवि य समत्ते ॥ २६२ ॥ पल्लासंखियभागूणुदही एगिदियागए मिस्से । बेसत्तभागवेउब्धियाए पवणस्स तस्संते ।। २६३ ॥ चउरुवसमेत्तु पेज्ज पच्छा मिच्छं खवेत्तु तेत्तीसा । उक्कोससंजमद्धा अंते सुतणूउवंगाणं ।। २६४ ॥ छउमत्थखीणरागे चउदस समयाहिगालिगठिईए । सेसाणुदीरणंते भिन्नमुहुत्तो ठिईकालो ।। २६५ ॥ अणुभागुदीरणाए सन्ना य सुभासुभा विवागो य । अणुभागबंधभणिया नाणत्तं पच्चया चेमे ।। २६६ ।। मीसं दुट्ठाणे सधघाइ दुट्ठाण एगठाणे य । सम्मत्तमंतरायंट च देसघाई अचक्खू य ॥ २६७ ।। ठाणेसु चउसु अपुर्व दुट्ठाणे ककर्ड च गुरुकं च । अणुपुब्धीओ तीसं नरतिरिएगंतजोग्गा य ॥ २६८ ॥ वेया एगट्ठाणे दुट्ठाणे वा अचक्खु चक्खू य । जस्सत्थि एगमवि अक्खरं तु तस्संगठाणाणि ॥ २६९ ॥ मणनाणं सेस-12 समं मीसगसम्मत्तमवि य पावेसु । छट्ठाणवडियहीणा संतुक्कस्सा उदीरणया ।।२७० ॥ विरियंतरायकेवलदंसणमोहणीयणाणवरणाणं । का असमत्तपज्जएसु सब्बदब्वेसु उ विवागो ॥ २७१ ।। गुरुलघुगा गंतपएसिएसु चक्खुस्स रूविदब्वेसु । ओहिस्स गहणधारणजोग्गे | सेसंतरायाणं ॥ २७२ ।। वेउब्वियतेयगकम्मवन्नरसगंधनिद्धलुक्खाओ । सीउण्हथिरसुभेयरअगुरुलघुगी य नरतिरिए ॥ २७३ ॥ चउरसमउयलहुगापरघाउज्जोयइट्ठखगइसरा । पत्तेगतणू उत्तरतणूसु दोसुवि य तणू तइया ॥२७४ ॥ देसविरयविरयाणं सुभगाएज्ज-2॥२७०॥ For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती ॥२७॥ जसकित्तिउच्चाणं । पुव्वाणुपुव्विगाए असंखभागो थियाईणं ॥२७५ ॥ तित्थयरं घाईणि य परिणाम(य)पच्चयाणि सेसाओ। भवपच्चइया लाउदीरणापुबुत्तावि य पुवृत्तसेसाणं ॥२७६॥ घाईणं अजहन्ना दोण्हमणुक्कोसियाओ तिविहाओ । वेयणिएणुक्कोसा अजहन्ना मोहणीए उ करणं | ॥२७७|| साइअणाई धुव अदुवा य तस्सेसिगाय दुविगप्पा । आउस्स साइ अधुवा सव्वविगप्पा उविनया ॥२७८।। मउलहुगाणुकोसार |चउव्विहा तिहमनि य अजहन्ना। णाइगधुवा य अधुवा वीसाए होयणुक्कोसा ।।२७९।। तेवीसाए अजहन्नाऽविय एयासिं सेसगविगप्पा । सम्वविगप्पा सेसाण वावि अधुवा य साई य ॥२८०।। दाणाइ अचक्खणं जेट्टा आइम्मि हीणलद्धिस्स । सुहमस्स चक्खुणा पुण| | तेइंदिय सव्वपज्जत्ते ॥२८१॥ निदाइपंचगस्स य मज्झिमपरिणामसंकिलिट्ठस्स । अपुमादि असायाणं निरए जेट्ठा ठिइसमत्ते ॥२८२॥ | पंचिंदियतसबायरपज्जत्तगसाइसुस्सरगईणं । वेउव्वुस्सासाणं देवो जेद्रुट्टिइसमत्तो ॥ २८३ ॥ सम्मत्तमीसगाणं सेकाले गहिहिइत्ति मिच्छत्तं । हासरईणं सहसारगस्स पज्जत्तदेवस्स ॥२८४॥ गइहुंडुवघायाणि खट्टगइनीयाण दुहचउक्कस्स । निरउक्कस्स समत्ते अस| मत्ताए नरस्सते ।। २८५ ॥ कक्खडगुरुसंघयणात्थीपुमसंठाणतिरियनामाणं । पंचिंदिओ तिरिक्खो अट्ठमवासहवासाओ ॥ २८६ ॥ मणुओरालियवज्जरिसहाण मणुओ तिपल्लपज्जत्तो । नियगठिई उक्कोसो पज्जत्तो आउगाणपि ॥ २८७ ।। हस्सटिइ पज्जत्तार तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं । थावरनिगोयएगिदियाणमवि बायरो नवरि ।। २८८ ॥ आहारतणू पज्जत्तगो य चउरंसमउयलहुगाणं । पत्तेयखगइपरघायाहारतणूण य विसुद्धो ॥ २८९ ॥ उत्तरवेउबिजई उज्जोवस्सायवस्स खरपुढवी । नियगगईणं भणिया तइए समएऽणुपुवीणं ॥ २९० ॥ जोगते सेसाणं सुभाणमियरासि चउसुवि गईसु । पज्जत्तुक्कडमिच्छस्सोहीणमणोहिलद्धिस्स ॥२७॥ ॥ २९१ ॥ सुयकेवलिणो महसुयचक्खुअचक्खुणुदीरणा मंदा । विपुलपरमोहिगाणं मणणाणोहीदुगस्सावि ॥ २९२ ॥ खव For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती करणं ॥२७२।। CRECRUARCORRC णाए विग्धकेवलसंजलणाण य सनोकसायाणं । सयसयउदीरणते निदापयलाणमुवसंते ॥ २९३ ॥ निहानिदाईणं पमत्तविरए विसु-12 उदीरणाज्झमाणम्मि । बेयगसम्मत्तस्स उ सगखवणोदीरणाचरमे ॥ २९४ ॥ सेकाले सम्मत्तं ससंजमं गिण्हओ य तेरसगं । सम्मत्तमेव मीसे || आऊण जहन्नगठिईसु ॥ २९५ ॥ पोग्गलविवागियाणं भवाइसमये विसेसमवि चासिं । आइतणूणं दोण्हं सुहुमो वाऊ य अप्पाऊ ॥ २९६ ॥ बेइंदिय अप्पाउग निरय चिरठिई असभिगो वावि । अंगोवंगाणाहारगाए जइणोऽप्पकालम्मि ॥२९७।। अमणो चउरं-18 सुसभाणप्पाऊ सगचिरट्टिई सेसे । संघयणाण य मणुओ हुंडवघायाणमवि सुहुमो ॥ २९८ ।। सेवदृस्स बिइंदिय बारसवासस्स मउ| यलहुगाणं । सनि विसुद्धाणाहारगस्स वीसा अइकिलिडे ।। २९९ ।। पत्तेगमुरालसमं इयरं हुंडेण तस्स परघाओ । अप्पाउस्स य | आयावुज्जोयाणमवि तज्जोगो ॥ ३०० ॥ जा नाउज्जियकरणं तित्थगरस्स नवगस्स जोगते । कक्खडगुरूणमंते नियत्तमाणस्स केवलिणो ॥३०१।। सेसाण पगइवेई मज्झिमपरिण्णमपरिणओ होज्जा । पच्चयसुभासुभावि य चिंतिय नेओ विवागे य ॥३०२॥ पंचण्हमणुक्कोसा तिहा पएसे चउबिहा दोण्हं । सेसविगप्पा दुविहा सधविगप्पा य आउस्स ।। ३०३ ॥ मिच्छत्तस्स चउद्धा सगयालाए तिहा अणुक्कोसा । सेसविगप्पा दुविहा सम्धविगप्पा य सेसाण ॥ ३०४ ॥ अणुभागुदीरणाए जहन्न-5 सामी पएसजेट्टाए । घाईण अनयरो ओहीण विणोहिलंभेण ॥ ३०५ ॥ वेयणियाणं गहिहिई सेकाले अप्पमायमिय विरओ । संघयणपणगतणुदुगउज्जोया अप्पमत्तस्स ॥ ३०६ ॥ देवनिरयाउगाणं जहमजेदृढिई गुरुअसाए । इयराऊणवि अट्ठमवासे णेयोऽट्ठवासाऊ ।। ३०७ ॥ एगंत तिरियजोग्गा नियगविसिडेसु तह अपज्जत्ता । समुच्छिममणुयंते तिरियगई देसविरयस्स ॥ ३०८ ॥ ॥२७२॥ अणुपुबिमइदुगाणं सम्मद्दिडी उ दूभगाईणं । नीयस्स य से काले गहिहिइ विरयत्ति सो चेव ॥ ३०९ ॥ जोगंतुदीरगाणं जोगते । For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृतौ ॥२७॥ करणं ACCA5%ARE सरदुगाणुपाणूणं । नियगंते केवलिणो सव्वविसुद्धीए सव्वासि ।। ३१० ॥ तप्पगओदीरगतिसंकिलिट्ठभावो असव्वपगईणं । नेयो | जहन्नसामी अणुभागुत्तो य तित्थयरे ॥ ३११ ॥ ओहीर्ण ओहिजुए अइसुहवेई य आउगाणं तु । पढमस्स जहन्नठिई सेसाणुक्कोसग-1 |ठिईओ ।। ३१२ ।। इति उदीरणाकरणम् ।। अथ उपशमनाकरणम्-करणकयाऽकरणावि य दुविहा उवसामण स्थ बियाए । अकरणअणुइनाए अणुओगधरे पणिवमायामि ।। ३१३ ।। सच्चस्स य देसस्स य करणुवसमणा दूसन्नि एक्विका। सब्बस्स गुणपसत्था देसस्सवि तासि विवरीया ॥ ३१४।। | सव्वुवसमणा मोहस्सेव उ तस्सुवसमक्किया जोग्गो | पंचदिओ उ सन्नी पज्जत्तो लद्धितिगजुत्तो ।। ३१५ ।। पुव्वंपि विसुझंतो | गठियसत्ताणइक्कमिय सोहिं । अन्नयरे सागारे जोगे य विसुद्धलेसासु ॥ ३१६ ॥ ठिइ सत्तकम्म अंतोकोडीकोडी करेत्तु सत्तण्हं । | दुट्ठाणं चउठाणे असुभ सुभाणं च अणुभागं ॥ ३१७ ।। बंधतो धुवपगडी भवपाउग्गा सुभा अणाऊ य । जोगवसा य पएसं उक्को&|सं मज्झिम जहण्णं ॥३१८॥ ठिइबंधद्धापूरे नवबंधं पल्लसंखभागूणं । असुभमुभाणणुभागं अणंतगुणहाणिवुड्डोहिं ॥ ३१९ ॥ करणं अहापवत्त अपुवकरणमनियहिकरणं च । अंतोमुहुत्तियाई उवसंतद्धं च लहइ कमा ।। ३२० ।। अणुसमयं बटुंतो अज्झवसाणाणगंतगुणणाए । परिणामट्ठाणाणं दोसुवि लोगा असंखिज्जा ।। ३२१ ॥ मंदविसोही पढमस्स संखभागाहि पढमसमयम्मि । उक्क&स्सं उप्पिमहो एक्केकं दोण्ह जीवाणं ।। ३२२ ॥ आचरमाओ सेसुक्कोसं पुब्बप्पवत्तमिइनामं । बिइयस्स बिइयसमए जहण्णमवि अणंतरुक्कस्सा ।। ३२३ ॥ निव्वयणमवि ततो से ठिइरसघायठिइबंधगद्वा उ । गुणसेढीवि य समगं पढमे समये पवतंति ।। ३२४ ॥ उयहिपुहुत्तुक्कस्सं इयरं पल्लस्सऽसंखतमभागो । ठिइकंडगमणुभागाणणंतभागा मुहुर्तते ॥ ३२५ ॥ अणुभागकंडगाणं बहुहिं सह ॥२७३॥ For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandit कर्मप्रकृती 18| स्सेहिं पूरए एक्कं । ठिइकंड सहस्सेहिं तेसि वीयं समाणेहिं ।। ३२६ ।। गुणसढी निक्खेवो समये समये असंखगुणणाए । अद्धादु | सर्वोपगाइरित्तो सेसे सेसे य निक्खेदो ॥ ३२७ ॥ अनियट्टिम्मिवि एवं तुल्ले काले समा तओ नामं । संखिज्जइमे सेसे भिन्नमुहुत्तं अहो | शमना ॥२७४|| | मुच्चा ।। ३२८ ॥ किंचूणमुहुत्तसमं ठिइबंधद्धाइ अंतरं किच्चा । आवलिदुगेकसेसे आगाल उदीरणा समिया ॥ ३२९ ।। मिच्छत्तुदए खीणे लहए सम्मत्तमोवसमियं सो । लभेण जस्स लब्भइ आयहियमलद्धपुव्वं जं ॥ ३३० ॥ तं कालं बीयठिई तिहाणुभागेण देसघाइ स्थ । सम्मत्तं सम्मिस्स मिच्छत्तं सव्वघाईओ ॥ ३३१ ।। पढमे समए थोवो सम्मत्ते मीसए असंखगुणो। अणुसमयमवि य कमसो भिन्नमुहुत्ता हि विज्झाओ ।। ३३२ ॥ ठिइरसघाओ गुणसेढीविय तावपि आउवज्जाणं । पढमठिइए एगदुगावलिसेसम्मि | | मिच्छत्ते ॥ ३३३ ॥ उवसंतद्धा अंते विहिणा ओकड्डियस्स दलियस्स । अज्झवसाणणुरूवस्सुदओ तिसु एक्कयरयस्स ॥ ३३४ ॥ | सम्मत्तपढमलंभो सब्वोवसमा तहा विगिट्ठो य । छालिगसेसाइ परं आसाणं कोइ गच्छज्जा ॥३३५।। सम्मद्दिट्ठी जीवो उवइ8 पवयणं तु सद्दहइ । सद्दहइ असम्भावं अजाणमाणो गुरुनियोगा ॥३३६॥ मिच्छद्दिट्ठी नियमा उवइष्टुं पवयणं न सहइ । सद्दहइ असम्भावं | उवइ8 वा अणुबइ8 ॥३३७|| सम्मामिच्छद्दिट्ठी सागारे वा तहा अणागारे । अह वैजणोग्गहम्मि य सागारे होइ नायब्बो ।। ३३८॥ | वेयगसम्मद्दिट्ठी चरित्तमोहुवसमाए चिट्ठतो । अजओ देसजई वा विरतो व विसोहिअद्धाए ॥३३९।। अन्नाणाणब्भुवगमजयणाहजओ | अवज्जविरईए । एगव्बयाई चरिमो अणुमइमित्तोत्ति देसजई ॥ ३४०॥ अणुमइविरओ य जई दोण्हवि करणााणि दोण्णि न उ81 तइयं । पच्छा गुणसढी सिं तावइया आलिगा उप्पि ॥ ३४१ ॥ परिणामपच्चया उ णाभोगगया गया अकरणा उ ॥२७४।। 21 गुणसेढी सिं निच्चं परिणामा हाणिवुडिजुया ॥ ३४२ ॥ चउगइया पज्जता तिमिवि संयोयणा विजोयंति ।। RECECASTEROCALSCREEN ACCURACCA For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृती ॥२७५॥ रकम करणेहिं तीहिं सहिया नंतरकरणं उवसमो वा ॥ ३४३ ॥ दसणमोहेवि तहा कयकरणद्धाइ पच्छिमे होइ । सर्वोपजिणकालगो मणुस्सो पट्ठवगो अट्ठवासुप्पि ॥ ३४४ ।। अहवा दंसणमोहं पुव्वं उवसामइत्तु सामने । पढमठिईमावालयं करेइ दोहंका शमना अणुदियाणं ॥ ३४५ ॥ अद्धापरिवित्तीओ पमत्त इयरे सहस्ससो किच्चा । करणााण तिन्नि कुणए तइयविसेसे इमे सुणसु ॥३४६॥ अंतोकोडाकोडी संतं अनियट्टिणो य उदहीणं । बंधो अंतोकोडी पुवकमा हाणि अप्पबहू ॥ ३४७ ॥ ठिइकंडगमुक्कस्संपि तस्स पल्लस्सऽसंखतमभागो। ठिइबंधबहुसहस्से सेक्केक्कं जं भणिस्सामो ॥३४८।। पल्लादिवबिपल्लाणि जाच पल्लस्स संखगुणहाणी । मोहस्स जाव पल्लं संखज्जइभागहाऽमोहा ॥३४९|| तो नवरमसंखगुणा एकपहारेण तीसगाणमहो। मोहे वीसग हेडा य तीसगाणुप्पि तइयं च ॥ ३५० ॥ तो तीसगाणमुप्पि च वीसगाई असंखगुणणाए । तइयं च वीसगाहि य विसेसमाहियं कमणेति ॥ ३५१ ।। | अहुदीरणा असंखेज्जसमयबद्धाण देसघाइ स्थ । दाणंतराय मणपज्जवं च तो ओहिदुगलाभो ॥३५२॥ सुयभोगाचक्खूओ चक्खू य | ततो मई सपरिभोगा । विरियं च असेढिगया बंधंति उ सबघाईणि ।। ३५३ ।। संजमघाईणतरमेत्थ उ पढमट्टिई य अन्नयरे । | संजलणावेयाणं वेइज्जंतीण कालसमा ॥ ३५४ ।। झमयकयंतरे आलिगाण छहं उदीरणाभिनवे । मोहे एक्कट्ठाणे बंधुदया | संखवासाणि ।। ३५५ ॥ संखगुणहाणिबंधो एत्तो सेसाण संखगुणहाणी। पढमसमए नपुंसं असंखगुणणाइ जावंतो ।। ३५६ ।। | एवित्थी संखतमे गयम्मि घाईण संखवासाणि । संखगुणहाणि एत्तो देसावरणाणुदगराई ॥३५७॥ ता सत्तण्हं एवं संखतमे संखवा| सितो दोण्हं । बिइयो पुण ठिइबंधो सव्वेसि संखवासाणि ।। ३५८ ॥ छस्सुवसमिज्जमाणे सेक्का उदयट्टिई पुरिससेसा । समऊणा ॥२७५७ वलिगद्गे बद्धावि य तावदद्धाए ॥ ३५९ ॥ तिविहमवेओ कोहं कमेण सेसेवि तिविहतिविहेवि । पुरिससमा संजलणा पढमठिई है। For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Bा आलिगा अहिगा ।। ३६० ।। लोमस्स बे तिभागा ठिइय विभागोत्थ किट्टकरणद्धा । एगप्फडगवग्गणअणंतभागो उ ता हेट्ठा ॥३६१।। सर्वोपला अणुसमयं सेढीए असंखगुणहाणि जा अपुवाओ। तविवरीयं दलिय जहनगाई विसेसूणं ।। ३६२ ॥ अणुभागो गंतगुणो चाउ॥२७६॥ शमना सम्मासाइ संखभागूणो । मोहे दिवसपुहुत्तं किट्टीकरणाइसमयम्मि ।। ३६३ ।। भित्रमुहुत्तो संखिज्जेसु य घाईण दिणपुहुत्तं तु । वाससहस्सपुहुत्तं अतोदिवसस्स अंते सि ॥ ३६४ ॥ वाससहस्सपुहुत्ता बिवस्स अंतो अघाइकम्माणं । लोभस्स अणुवसंतं किट्टीओ जं च पुव्वुत्तं ।। ३६५ ॥ सेसद्धं तणुरागो तावइया किडिओ य पढमठिई । वज्जिय असंखभागं हेडुवरिमुदीरई सेसा ॥ ३६६ ॥ गिण्हंतो य मुयंतो असंखभागं तु चरमसमयम्मि । उवसामेइ य बिईयठिइंपि पुब्धं व सव्वद्धं ॥ ३६७॥ उवसंतद्धा मित्रमुहुत्तो तीसे य संखतमतुल्ला । गुणसेढी सव्वद्धं तुल्झा य पएसकालहिं ॥ ३६८ ॥ उवसंता य अकरणा संकमणोवट्टणा य दिहितगे। | पच्छाणुपुन्विगाए परिवडइपमत्तविरतोत्ति ॥३६९।। ओकड्डित्ता बिइटिइहिं उदयादिसुं खिवह दव्वं । सेढीइ विसेसूर्ण आवलि उप्पि असंखगुणं ॥ ३७० ॥ वेइज्जंदीण इयरासिं आलिगाइ बाहिरओ । न हि संकमोणुपुचि छावलिगोदीरणाउप्पिं ॥ ३७१ ॥ वेइज्जमाणसंजलणद्वाए अहिगा उ मोहगुणसेढी । तुल्ला य जयारूढो अतो य सेसेहि से तुल्ला ॥ ३७२ ॥ खवगुवसामगप| डिवयमाणदुगुणो तहिं तहिं बंधो । अणुभागो तगुणो असुभाण सुभाण विवरीओ ॥ ३७३ ॥ किच्चा पमत्ततदियरठाणे परिवत्ति बहुसहस्साणि | हिडिल्लाणंतरदुगं आसाणं वावि गच्छिज्जा ॥३७४।। उसमसम्मसद्धा अंतो आउक्खया धुवं देवो। तिसु आउगेसु | बढेसु जेण सेटिं न आरुहइ ॥३७५।। उग्घाडियाण करणाणि उदयष्टिइमाइग इयरतुल्लं। एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमेइ।।३७६४ उदयं वज्जी इत्थी इत्थि समयइ अवेयगा सत्त | तह वरिसवरो वरिसवरि इत्थिं समगं कमान्छे ।। ३७७ ॥ इति सर्वोपशमना ॥2॥२७६॥ REAK AR. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandit कर्मप्रकृती ॥२७७॥ अथ देशोपशमना-पगइठिई अणुभागप्पएसमृलुत्तराहि पविभत्ता । देसकरणोवसमणा तीए समियस्स अट्ठपयं ।। ३७८॥ दशापशमउबट्टणओवट्टणसंकमणाई च तिन्नि करणाई । पगईतयासमईओ पहू नियट्टिमि बट्टतो ॥ ३७९ ॥ दंसणमाहाणताणुबंधिणं ना निधत्ति सगनियाट्टो णुप्पि । जा उवसमे चउद्धा मूलुत्तरणाइसंताओ ॥ ३८ ॥ चउरादिजुया वीसा एकवीसा य मोहठाणाणि । संकम है निकाचने नियट्टिपाउग्गाई सजसाई नामस्स ।। ३८१ ॥ ठिइसकम व ठिइउवसमणा णवरिं जहनिया कज्जा । अब्भवसिीद्ध जहन्ना उपलगनियढिगे वियरा ॥ ३८२ ॥ अणुभागसंकमसमा अणुभागुवसामणा नियट्टिीम्म । संकमपएसतुल्ला पएसुवसामणा चेत्थ ॥ ३८३ ॥ इति देशोपशमना ।। अथ निद्धत्तिनिकाचनाकरणम्-देसोवसमणतुल्ला होइ निहत्ती निकाइया नवरं । संकमणपि निहत्तीइ नत्थि | सेसाण वियरस्स ॥३८४।। गुणसेढिपएसग्गं थोवं पत्तेगसो असंखगुणं । उवसमणाइसु तीसुवि संकमणेहप्पवत्ते य।।३८५।। थोवा कसायउदया ठिइबंधोदीरणा य संकमणा । उवसमणाइसु अज्झवसाया कमसो असंखगुणा ।।३८६॥ इति निद्धत्तिनिकाचनाकरणम् ।। अथ उदयः-उदओ उदीरणाए तुल्लो मोत्तण एकचत्वालं। आवरणविग्घसंजलणलोमवेए य दिट्ठिदुर्ग ।। ३८७ ॥ आलिगमहिगं वेएति आउगाणंपि अप्पमत्तावि । वेयणियाण य दुसमय तणुपज्जत्ता य निहाओ ॥ ३८८ ॥ मणुयगइजाइतसबायरं |च पज्जत्तसुभगमाएज्ज । जसकित्तिमुच्चगोयं चाजोगी केइ तित्थयरं ॥३८९ ।। ठिाउदओवि ठिइक्खयपओगसा ठिइउदीरणा ॥२७७॥ अहिंगो । उदयठिईए हस्सो छत्तीसा एग उदयठिई ॥ ३९० ।। अणुभागुदओवि जहन्न नवरि आवरण विग्यवेयाणं । संजलणलोभसम्मत्ताण य गंतूणमावलिगं ।। ३९१ ॥ अजहन्नाणुकोसा चउ तिहा छण्ह चउब्बिहा मोहे । आउस्स साइ अधुवा सेसविगप्पा CA%ACARRANG For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie कर्मप्रकृती ॥२७८॥ 564561599 य सम्बेसि ॥ ३९२ ।। अजहन्नाणुक्कोसो सगयालाए चउत्तिहा चउहा । मिच्छत्ते सेसासि दुविहा सध्वे य सेसाणं ॥३९३ ॥ सम्मतुप्पा सावय विरए संजोयणाविणासे य । दसणमोहक्खवगे कसाय उवसामगुवसंते ॥ ३९४ ॥ खवगे य खीणमोहे जिणे य दुविहे | असंखगुणसेढी । उदओ तधिवरीओ कालो संखेज्जगुणसेढो ॥ ३९५ ।। तित्रिवि पढमिल्लाओ मिच्छत्तगएवि होज्ज अनभवे । पगयं तु गुणियकम्मे गुणसेढीसीसगाणुदये॥ ३९६ ।। आवरणविग्धमोहाण जिणोदइयाण वावि नियगते । लहुखवणाए ओहीण:&ाणोलिद्धिस्स उक्कस्सो ॥३९७॥ उवसंतपढमगुणसेढोए निदादुगस्स तस्सेव । पावइ सीसगमुदयंति जा य देवस्स सुरनवगे ॥३९८॥ मिच्छत्तमीसणंताणुबंधिअसमत्तथोणगिद्धोणं । तिरिउदएगताण य विइया तइया य गुणसेढी ।। ३९९ ॥ अंतरकरणं होहित्ति जा य XT देवस्स तं मुहुर्ततो । अट्ठण्ह कसायाणं छहंपि य नोकसायाण ॥४०॥ हस्सठिई बंधित्ता अद्धाजोगाइठिहानिसेगाणं । उकस्सपए | पढमोदयम्मि सुरनारगाऊणं ॥ ४०१ ॥ अद्धाजोगुकोसो बंधित्ता भोगभूमिगेसु लहुँ । सबप्पजीवियं वज्जइत्तु ओवट्टिया दोण्हं ॥ ४०२ ॥ भगणाएज्जाजस गइदुगअणुपुचितिगसनीयाणं । दसणमोहक्खवणं देसविरइ विरइ गुणसेढी ॥ ४०३ ॥ संघयणपंचगस्स य विइयाई तिनि होति गुणसेढी । आहारगउज्जोयाणुत्तरतणु अप्पमत्तस्स ॥४०४॥ बेइंदिय थावरगो कम्मं काऊण तस्सम खिप्पं । आयावस्स उ तब्बेइ पढमसमयम्मि बट्टतो ॥ ४०५ ॥ पगयं तु खवियकम्मे जहनसामी जहन्नदेवाठिइ । भिन्नमुहुत्ते सेसे मिच्छत्तगतो अतिकिलिट्ठो ॥ ४०६ ॥ कालगएगिदियगो पढमे समये व मइसुयावरणे । केवलदुगमणपज्जवचक्खुअचक्खूण आवग्णा ॥ ४.७ । ओहाण संजमाओ देवत्तगए गयस्स मिच्छत्तं । उकोसठिईबंधे विकड्डणा आलिगं गंतुं ॥ ४०८ ॥ | वेयणियंतरसोगारउच्च ओहि ब्व निद्दपयला य । उकस्स ठिईबंधा पडिभग्गपवेइया नवरं ॥ ४०९ ॥ वरिसवरतिरियथावरनीयपि ॥२७८॥ For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir CRAS कर्मप्रकृतोदय मइसमं नवरि तिन्नि । निहानिद्दा इंदियपज्जत्ती पढमसमयम्मि ॥ ४१० ।।दसणमोहे तिविहे उदीरणुदए उ आलिगं गंतुं । 18 उदयकरणं सत्तरसण्हवि एवं उवसमइत्ता गए देवे ॥ ४११ ॥ चउरुवसमित्तु पच्छा संजोइय दहिकालसम्मत्ता । मिच्छ तगए आवलिगाए। ॥२७९॥ [ संजायणाणं तु ॥ ४१२ ।। इत्थीए संजमभवे सव्वनिरुद्धम्मि गंतु मिच्छत्तं । देवीए लहमिच्छी जेट्ठठिइ आलिगं गतुं ॥ ४१३ ।। अप्पद्धाजोगचियाणाऊणुक्कस्सगठिईणते । उवरिं थोवनिसेगे चिरतिव्वासायवेईणं ॥ ४१४ ॥ संजोयणा विजोजिय देवभव जहन्नगे अइनिरुद्धे । बंधिय उक्कस्सठिई गंतूणेगिदिया सन्नी ।। ४१५ ॥ सव्वलहुं नरयगए निरयगई तम्मि सव्वपज्जते । अणुपुव्वीओ य गईतुल्ला नेया भवादिम्मि ॥ ४१६ ।। देवगई ओहिसमा नवीरं उज्जोयवेयगो ताहे । आहार जाय अइचिरसंजममणुपालिऊगते ॥४१७॥ ससाणं चक्खुसमं तमि व अनमि व भवे अचिरा | तज्जोगा बहगीओ पवेययंतस्स ता ताओ॥४१८॥ इति उदयः अथ सत्ता-मूलुत्तरपगइगयं चउबिहं संतकम्ममवि नेयं । धुवम वणाईयं अगुहं मूलपगईणं ।। ४१९ ।। दिट्ठिदुगाउगछग्गति तणुचोद्दसगं च तित्थगरमुच्चं । दुविहं पढमकसाया होति चउद्धा तिहा सेसा ॥४२०॥ छउमत्थंता चउदस दुचरमसमयंमि अस्थि दो निद्दा | बद्धाणि ताव आऊणि वेइयाई ति जा कसिणं ॥ ४२१ ॥ तिसु मिच्छत्तं नियमा अट्ठसु ठाणेसु होइ भइयव्यं । आसाणे सम्मत्तं नियमा सम्मं दससु भज्जं ॥४२२।। बिइयतईएसु मिस्सं नियमा ठाणनवगम्मि भयणिज्ज । संजोयणा उ नियमा दुसु पंचसु होइ भझ्यव्वं ॥ ४२३ ॥ खवगानियट्टिअद्धा संखिज्जा होति अट्ठवि कसाया। निरयतिरियतेरसर्ग निद्दानिद्दातिगेणुवरि ॥ ४२४ ॥ अपमित्थीए समं वा हासच्छकं च परिससंजलणा । पत्तेग तस्स कमा तणरागतोत्ति लोभो य ॥ ४२५ ॥॥२७॥ मणुयगइजाइतसबायरं च पज्जत्तसुभगआएज्ज । जसकित्ती तित्थयरं वेयणिउच्चं च मणुयाणं ॥ ४२६ ॥ भवचरिमस्समयम्मि उ %AikORGHAREL For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मप्रकृतौ ॥२८॥ RECORRESEARSA तम्मग्गिल्लसमयम्मि सेसाउ । आहारगतित्थयरा भज्जा दुसु नत्थि तित्थयरं ॥ ४२७ ॥ पढमचरिमाणमेगं छन्नवचत्तारि बोयगे उदयकरणं तिनि । वेयणियाउयगोएसु दोन्नि एगोत्ति दो होति ॥ ४२८ ।। एगाइ जाव पंचगमेकारस बार तेरसिगवीसा । बिय तिय चउरो छस्सत्त अट्ठवीसा य मोहस्स ॥४२९|| तिनेग तिगं पणगं पणगं पणगं च पणगमह दोनि । दस तिनि दोनि मिच्छाइगेसु छ जावोवसंतोत्ति ॥४३०॥ संखीणदिट्ठिमोहे केई पणवीसइंपि इच्छति । संजोयणाण पच्छा नासं तेसिं उवसमं च ॥४३१॥ तिदुगसयं छप्पंचगतिगनउई नउइ इगुणनउई य । चउतिगदुगाहिगासी नव अट्ठ य नामठाणाई॥४३२।। एगे छ दोसु दुगं पंचसु चत्तारि | अट्टगं दोसु । कमसो तीसु चउकं छत्तु अजोगम्मि ठाणाणि ॥४३३॥ मूलठिई अजहनं तिहा चउद्धा य पढमगकसाया। तित्थयरु व्वलणायुगवज्जाणि तिहा दुहाणुतं ॥४३४|| जेट्ठठिई बंधसमं जेटुं बंधोदया उ जासि सह । अणुदयबंधपराणं समऊगा जट्टिई जेहूं | ॥४३५।। संकमओ दीहाणं सहालिगाए उ आगमो संतो । समऊणमणुदयाणं उभयासि जट्टिई तुल्ला।।४३६।। संजलणतिगे सत्तसु य | नोकसाएसु संकम जहनो । सेसाण ठिई एगा दुसमयकाला अणुदयाणं ॥ ४३७ ॥ ठिइसंतढाणाई नियगुकस्सा हि थावरजहन्न । नेरंतरेण हेट्ठा खवणाइसु संतराइंपि ॥ ४३८ । संकमसममणुभागे नवरि जहबं तु देसघाईणं । छन्बोकसायवज्जाण एगट्ठाणंमि | देसहरं ॥ ४३९ ।। मणनाणे दुट्ठाणं देसहरं सामिगो य सम्मत्ते । आवरणविग्यसोलसग किट्टिवेएसु य सगते ॥ ४४० ॥ मइसुयचक्खुअचक्खूण सुयसंमत्तस्स जेट्ठलद्धिस्स । परमोहिस्सोहिदुगं मणनाणं विउलनाणस्स ॥ ४४१॥ बंधहयहउप्पत्तिगाणि कमसो8 असंखगुणियाणि । उदयोदीरणवज्जाणि होति अणुभागठाणाणि ॥ ४४२ ॥ सत्तहं अजहनं तिविहं सेसा दुहा पएसम्मि । मूल ॥२८॥ पगईसु आउसु साई अधुवा य सव्वेवि ॥ ४४३ ।। बायालाणुक्कस्मं चउवीससया जहन्न चउतिविहं । होइह छह चउद्धा अजहन्न AACARECECARE For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कमप्रकृती सत्ताकरणं Ress मभासियं दुविहं ॥ ४४४ ।। संपुनगुणियकम्मो पएसउक्कस्ससंतसामी उ । तस्सेव उ उप्पिविणिग्गयस्स कासिंचि वन्नेहिं ॥४४५॥ II मिच्छत्ते मीसम्मि य संपक्खित्तम्मि मीससद्धाण । बरिसवरस्स उ ईसाणगस्स चरमम्मि समयम्मि ॥ ४४६ ॥ ईसाणे पूरित्ता ॥२८॥ नपुंसगं तो असंखवासासु । पल्लासंखियभागेण पूरिए इत्थिवेयस्स ।। ४४७ ।। पुरिसस्स पुरिससंकमपएसउक्कस्स सामिगस्सेव । इत्थी जं पुण समयं संपक्खित्ता हवइ ताहे ॥ ४४८॥ तस्सेब उ संजलणा पुरिसाइकमेण सव्वसंछोभे । चउरुवसमित्तु खिप्प रागते सायउच्चजसा ॥४४९ ॥ देवनिरयाउगाण जोगुक्कस्सेहिं जेट्टगद्धाए । बद्धवाणि ताव जावं पढमे समए उदिनाणि ॥ ४५० ।। सेसाउगाणि नियगेसु चेव आगम्म पुव्वकोडीए । सायबहुलस्स अचिरा बंधते जाव नोवट्टे ॥ ४५१ ॥ पूरित्तु पुब्बकोडीपुहुत्त | नारगदुगस्स बंधते । एवं पल्लतिगंते वेउव्विय सेसनवगम्मि ।। ४५२ ॥ तमतमगो सबलहुं सम्मत्तं लभिय सवचिरमद्धं । पूरित्ता मणुयदुगं सवज्जरिसहं सबंधते ॥ ४५३ ॥ सम्मद्दिटि धुवाणं बत्तीसुदहीसयं चउक्खुत्तो । उवसामइत्तु मोहं खतगे नियगबंधते ॥ ४५४ ।। धुवबन्धीण सुभाणं सुभत्थिराणं च नवरि सिग्धयरं । तित्थगराहारगतणू तेत्तीसुदही विरचिया य ।। ४५५ ॥ तुल्ला | नपुंसवेएणेगिंदिय थावरायवुज्जोवा । विगलसुहुमत्तियाविय नरतिरियचिरजिया होति ॥ ४५६ ॥ खवियंसम्मि पगयं जहन्नगे नियगसंतकम्मते । खणसंजोइयसंजोयणाण चिरसम्मकालंते ॥ ४५७ ॥ उबलमाणोण उब्बलणा एगट्टिई दुसामइगा । दिट्ठिदुगे बत्तीसे उदहिसए पालिए पच्छा ।। ४५८ ॥ अंतिमलोभजसाणं मोहं अणुवसमइत्तु खीणाणं । नेयं अहापवत्तकरणस्स चरमम्मि समयम्मि ॥ ४५९ ।। वेउविकारसगं खणबंध गते उ नरय जिट्टट्टिई । उन्चट्टित्तु अबंधिय एगेंदिगए चिरुव्वलणे ॥ ४६० ॥ | मणुयदुगुच्चागोए सुहुमखणबद्धगेसु सुहुमतसे । तित्थयराहारतणू अप्पद्धा बंधिया सुचिरं ।। ४६१ ।। चरमावलियपविट्ठा गुणसेढी ARRRRRRR ॥२८॥ For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्ताकरणं कर्मप्रकृतौ जासिमत्थि न य उदओ। आवलिगासमयसमा तासिं खलु फहगाई तु॥४६२।। संजलणतिगे चेव अहिगाणि य आलिगाए समएहिं।। ॥२८२॥ दुसमयहीणेहिं गुणाणि जोगट्ठाणाणि कसिणाणि ॥ ४६३ ॥ वेएसु फड्डगदुर्ग अहिगा पुरिसस्स चे उ आवलिया । दुसमयहीणा | गुणिया जोगट्ठाणेहिं कसिणेहिं ॥ ४६४ ॥ सवजहन्नाढतं खंधुत्तरओ निरंतरं उप्पि । एग उव्वलमाणी लोभजसा नोकसायाणं ॥ ४६५ ॥ ठिइखंडगविच्छेया खीणकसायस्स सेसकालसमा । एगहिया घाईण निदापयलाण हिच्चेकं ॥ ४६६ ॥ सेलेसिसंतिगाणं उदयवईणं तु तेण कालेणं । तुल्ला गहियाई सेसाणं एगऊणाई ॥ ४६७ ॥ संभवतो ठाणाई कम्मपएसेहिं होति नेयाई । करणेसु य उदयम्मि य अणुमाणेणेवमेएणं ॥ ४६८ ॥ करणोदयसंताणं पगइट्ठाणेसु सेसयतिगे य । भूयकारऽप्पयरो अवडिओ तह अवत्तव्यो ॥ ४६९ ॥ एगादहिगे पढमो एगाई ऊणगम्मि बिइओ उ । तत्तियमेत्तो तइओ पढमे समये अवत्तव्यो । ४७० ॥ करणोदयसंताणं सामित्तोघेहिं सेसग नेयं । गइयाइमग्गणासुं संभवओ सुठु आगमिय ॥ ४७१ ॥ बंधोदीरणसंकमसंतुदयाणं जहन्नगाईहिं । संवेहो, पगइ ठिई अणुभागपएसओ नेओ ॥ ४७२॥ करणोदयसंतविऊ तन्निजरकरणसंजमुजोगा । कम्मट्ठगुदयनिट्ठाजणियमणिटुं सुहमु४ति ॥ ४७३ ॥ इय कम्मप्पगडीओ जहासुयं नीयमप्पमइणावि । सोहियणाभोगकयं कहंतु वरदिद्विवायन्नू ॥४७४|| जस्स वर-12 सासणावयवफारसपविकसियविमलमइकिरणा । विमलंति कम्ममइले सो मे सरणं महावीरो ॥ ४७५ ॥ ॥ इति श्रीमच्छिवशर्मसूरीश्वरप्रणीता कर्मप्रकृतिः ॥ CONOUREGARNE ॥२८२॥ For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्रर्षिकृते पंचसंग्रहे ॥२८॥ ॥ अथ श्रीमच्चन्द्रर्षिमहत्तरसङ्कलितः पञ्चसङ्ग्रहः ॥ योगोपयोगमागेणा नमिऊण जिणं वीरं सम्म दुहृदुकम्मनिट्ठवगं । वोच्छामि पंचसंगहमेयमहत्थं जहत्थं च ॥१॥ सयगाइ पंच गंथा जहारिहं जेण | एत्थ सखित्ता । दाराणि पंच अहवा तेण जहत्थाभिहाणमिणं ।। २ ।। एत्थ य जोगुवयोगाण मग्गणा बंधगा य वत्तव्वा । तह चंधियब्व य बंधहेयवो बंधविहिणो य ॥३॥ सच्चमसच्चं उभयं असच्चमोस मणो वई अट्ठ । वेउबाहारोरालमिस्ससुद्धाणि कम्मयगं ॥ ४॥ अन्नाणतिगं नाणाणि पंच इइ अट्ठहा उ सागारो । अचखुदंसणाई चउहुवओगो अणागारो ॥५॥ विगलासन्नीपज्जत्तएसु लभंति कायवइयोगा । सव्वेवि सनिपज्जत्तएसु सेसेसु काओगो ।। ६ ॥ लद्धीए करणेहि य ओरालियमीसगो अपज्जत्ते । पजत्ते | ला ओरालो वेउव्विय मीसगो वावि ॥ ७॥ (कम्मुरलदुगमपजे वेउविदुगं च सनिलद्धिल्ले । पज्जेसु उरालोच्चिय वाए वेउव्विय-14 दुगं च ॥१॥) महसुयअन्नाणअचक्खुदंसणेकारसेसु ठाणेसु । पज्जतचउपणिदिसु, सचक्खुसन्नीसु बारसवि ॥ ८ ॥ इगविगलथावरेसुं, न मणो दोभेय केवलदुगम्मि । इगथावरे न वाया, विगलेसु असच्चमोसेव ॥ ९ ॥ सच्चा असच्चमोसा, दो दोसुविठा | ॥२८३॥ केवलेसु भासाओ । अंतरगइकेवलिएसु, कम्मयऽनत्थ तं विवक्खाए ॥१०॥ मणनाणविभंगेसु, मीसं उरलंपि नारयसुरेसु । केवल For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र्षिकृते | श्रीचन्द्र-18 | थावरविगले वेउबिदुगं न संभवइ ॥ ११ ॥ आहारदुर्ग जायइ, चोद्दसपुव्विस्स इइ विसेसणओ। मणुगइपंचेन्दियमाइएसु समईए योगोपयोजोएज्जा ।। १२ ।। मणुयगईए बारस, मणकेवलवजिया नवन्नासु । इगिथावरेसु तिन्नि उ, चउ विवले बार तससगले ॥ १३॥ द्र गमार्गणा पंञ्चसंग्रहे जोए वेए सनी, आहारगभब्धसुक्कलसासु । बारस संजमसम्मे, नव दस लेसाकसाएसु ॥ १४ ॥ सम्मत्तकारणेहि, मिच्छनिमित्ता* ॥२८४॥ न होंति उवओगा । केवलदुगेण सेसा संतेव अचक्खुचक्खूसु ॥ १५ ॥ जोगाहारदुगूणा मिच्छे सासायणे अविरए य । अपुव्वाइसु पंचसु नव ओरालो मणवई य॥१६॥ वेउव्विणा जुया ते, मीसे साहारगेण अपमत्ते। देसे दुविउविजुया, आहारदुगेण य पमत्ते ॥१॥ | अज्जोगो अज्जोगी सत्त सजोगंमि होंति जोगाउ। दो दो मणवइजोगा, उरालदुगं सकम्मइगं ।।१८।। अचक्खुचखुर्दसणमन्त्राण-12 तिगं च मिच्छसासाणे । विरयाविरए सम्मे, नाणतिगं देसणतिगं च ॥ १९ ॥ मिस्समी वामिस्सं, मणनाणजुयं पमत्तपुव्वाणं । केवलियनाणदंसणउवओग अजोगिजोगीसु ॥२०॥ गइ इंदिए य काए, जोगे वेए कसाय नाणे य। संजमदसणलेसा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥२१॥ तिरियगईए चोद्दस, नारयसुरनरगईसु दो ठाणा । एगिदिएसु चउरो, विगलपणिंदीसु छच्चउरो॥२२॥ दस तसकाए | चउ चउ, थावरकाएसु जीवठाणाई । चत्तारि अट्ठ दोन्निय, कायवईमाणसेसु कमा ।। २३ ।। चउ चउ पुमिथिए, सव्वाणि | नपुंससंपराएसु । किण्हाइतिगाहारगभव्वाभव्वे य मिच्छे य ॥ २४ ॥ तेऊ लेसाइसु दोन्नि संजमे एक्कमट्ठमणहारे । सण्णी सम्ममि | य दोन्नि सेसयाई असंनिम्मि ॥ २५ ॥ दुसु नाणदंसणाई, सव्वे अन्नाणिणो य विनया । सनिमि अयोगिअवेइ एवाई मुणेयव्वं ॥ २६ ॥ दो महसुयओहिदुगे, एक मणनाणकेवलविभंगे । छ तिगं च चकखुदंसण चउदस ठाणाणि सेसतिगे ॥२७॥ सुरनारएमाला ॥२८४॥ चत्तारि, पंच तिरिएसु चोद्दस मणूसे । इगिविगलेसुं जुयलं, सव्वाणि पणिदिसु हवंति ॥ २८ ॥ सव्वेसुवि मिच्छो वाउतेउसुहु २८ CREATECAREEREST K For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिकृते श्रीचन्द्र- पंचसंग्रहे ॥२८५॥ RSSIS मतिमं पमोत्तूण । सासायणो उ सम्मो, सन्निदुगे सेस सन्निमि ॥२९।। जा बायरो ता वेएसु तिसुवि तह तिसु य संपराएसु ।। लोभामि जाब सुहुमो, छल्लेसा जाव सम्मोत्ति ॥ ३० ॥ अप्पुब्वाइसु सुक्का, नत्थि अजोगिम्मि तिनि सेसाणं । मीसो एगो चउरो, किमादीनि हा असंजया संजया सेसा ॥ ३१॥ अम्भविएसु पढम, सव्वाणियरेसु दो असन्नीसु । सन्नीसु बार केलि नोसन्नीनोअसणीवि | द्वाराणि ॥ ३२ ॥ अपमत्तुवसन्त अजोगि जाव सब्वेवि अविरयाईया । वेयगउवसमखाइयदिट्ठी कमसो मुणेयव्या ॥ ३३ ॥ आहारगेसु तेरस शरीराणि |संख्याच |पंच अणाहारगेसुवि भवति । भणिया जोगुवयोगाण मग्गणा बंधगे भणिमो॥३४॥ इति योगोपयोगमार्गणाख्यं प्रथम द्वारम् ॥ अथ द्वितीयं बधकद्वारम्-चउदसविहा य जीवा, विबंधगा तेसिमंतिमो भेओ। चोद्दसहा सब्वेवि हु, किमाइसंताइपयनेया ॥३५॥ किं जीवा? उवसममाइएहिं भावहिं संजय दव्वं । कस्स? सरूवस्स पहू, केणन्तिीन केणइ कया उ॥३६।। कत्थ? सरीरे लोए व हुंति | केवचिर ? सव्वकालं तु । कइभावजुया जीवा ? दुगतिगचउपंचमीसेहिं ॥३७॥ सुरनेरइया तिसु तिसु, वाउपणिदीतिरिक्ख चउ चउसु । मणुया पंचसु सेसा, तिसु तणुसु अविग्गहा सिद्धा ।। ३८ ॥ पुढवाई चउ चउहा साहारणवणंपि संतयं सययं । पत्तेय पञ्जऽपज्जा, दुविहा सेसा उ उववना ।। ३९ ॥ मिच्छा अविरयदेसा पमत्तअपमत्तया सजोगी य । सबद्धं इयरगुणा, नाणाजीवेसुवि न उ होंति ॥ ४०॥ इगदुगजोगाईणं, ठवियमहो एगणेग इइ जुयलं । इगि जोगाउ दुदुगुणा, गुणियविमिस्सा भवे भंगा । ४१ ।। अह्वा एकपईया, दो भंगा इगिवहुत्तसना जे । एए चिय पयवुड्डीए, तिगुणा दुगसंजुया भंगा ॥ ४२ ॥ साहारणाण भेया, चउरो अणंता असंखया सेसा | मिच्छाणता चउरो, पलियासंखंस सेस संखेजा ॥ ४३ ॥ पत्तेय पञ्जवणकाइआओ पयरं हरंति लोगस्स । ।।२८५॥ अंगुलअसंखभागेग, भाइयं भूदगतणू य ॥ ४४ ॥आवलिवग्गो अ उणावलीए गुणिो हु बायरा तेऊ । वाऊ य लोगसंख, सेसतिग For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र्षिकृते श्रीचन्द्र- पञ्चसंग्रहे ॥२८६॥ कसCRECAR मसंखिया लोगा ॥ ४५ ॥ पञ्जत्तापञ्जत्ता, बितिचउअस्समिणो अवहरति । अंगुलंसंखासंखप्पएसभइयं पुढो पयरं ॥ ४६॥ सन्नी ज्योतिष्काचउसु गईसु, पढमाए असंखसेढिनेरइया । सेढिअसंखेजंसो, सेसासु जहोत्तरं तह य ।। ४७ ॥ संखेजजोयणाणं, सहपएसेहिं भाइओ 16 दिसंख्या पयरो । वंतरसुरेहिं हीरइ, एवं एकेकमेएणं ॥४८॥ छप्पनदोसयंगुलमूहपएसेहिं भाइओ पयरो । जोइसिएहिं हीरह, सहाणे त्थीय संखगुणा ॥ ४९ ॥ अस्सखसेढिखपएसतुल्लया पढमदुइयकप्पेसु । सेढिअसंखंससमा, उरिं तु जहोत्तरं तह य ।। ५० ॥ सेढिएकेक|पएसरइयसईणमंगुलप्पमियं । घम्माए भवणसोहम्मयाण माणं इमं होइ।।५१।। छप्पन्नदोसयंगुल भूओ भूओ विगज्झ मूलतिगं । गुणिया है | जहुत्तरत्था, रासीओ कमेण सूईओ ॥५२॥ अहवंगुलप्पएसा, समूलगुणिया उ नेरइयसूई । पढमदुइयापयाई समूलगुणियाई इयराणं ॥५३ ॥ अंगुलमूलासंखियभागप्पमियाउ होंति सेढीओ । उत्तरविउब्बियाणं, तिरियाण य सनिपज्जाणं ॥ ५४ ॥ उक्कोसपए मणुया, सेढीरूवाहिया अवहरंति । तइयमूलाहएहिं, अंगुलमूलप्पएसेहिं ॥ ५५ ॥ सासायणाइ चउरो, होति असंखा अणतया मिच्छा । काडिसहस्सपुहुत्तं, पमत्त इयरे उ थोवयरा ।। ५६ ॥ एगाइ चउप्पण्णा, समगं उवसामगा य उवसंता । अद्धं पडुच्च, | सेढीए, होति सब्वेवि संखज्जा ।। ५७ ॥ खवगा खीणा जोगी, एगाई जाव होंति अढसयं । अद्धाए सयपुहुत्तं, कोडिपुहुत्तं सजोगीओ ॥ ५८ ॥ अप्पज्जत्ता दोनिवि, सुहुमा एगिदिया जए सब्बे । सेसा य असंखज्जा, वायरपवणा असंखसु ॥ ५९॥ सासायणाइ सव्वे, लोयस्स असंखयंमि भागम्मि । मिच्छा उ सबलोए, होइ सजोगी समुग्घाए ॥ ६० ॥ वेयणकसायमारणवेउब्बियतेउहारकेवलिया । सग पण चउ तिमि कमा, मणुसुरनेरइयतिरियाणं ॥ ६१ ॥ पंचेंदियतिरियाणं, देवाण व होंति पंच सन्नीणं । २॥२८६॥ वेउव्वियवाऊणं, पढमा चउरो समुग्घाया ॥ ६२ ॥ चउदसविहावि जीवा, समुग्घाएणं फुसंति सव्वजगं | रिउसढिए व केई, एवं RECRUARCLASACCA. For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- मिच्छा सजोगीया ॥ ६३ ॥ मीसा अजया अड अड, बारस सासायणा छ देसजई । सग सेसा उ फुसंति, रज्जू खीणा असंखसं । समुद्घापिकृते | ।। ६४ ।। सहसारंतियदेवा, नारयनेहेण जति तइयभुवं । निजति अच्चुयं जा अच्चुयदेवेण इयरसुरा ॥६५॥ छट्ठाए नेरइओ, तास्पर्शना पश्चसंग्रहे | सासणभावेण एइ तिरिमणुए । लोगंतनिकखुडेसुं जंतऽन्ने सासणगुणत्था ॥ ६६ ।। उवसामगउवसंता, सबढे अप्पमत्तविरयाद्रपुद्गलपरा य । गच्छंति रिउगईए, पुंदेसजया उ बारसमे ।। ६७ ॥ सत्तण्हमपज्जाणं, अंतमुहुत्तं दुहावि सुहुमाणं । सेसाणपि जहन्ना, भवट्टिई वत्तेभेदाः ॥२८७॥ | होइ एमेव ।। ६८ ॥ बावीससहस्साई, बारस वासाई अउणपत्र दिणा । छम्मास पुवकोडी तेत्तीसयराई उकोसा ।। ६९॥ होइ अणाइअणतो, अणाइसंतो य साइसंतो य । देसूणपोग्गल , अंतमुहुर्त चरिममिच्छो ॥ ७० ॥ पोग्गलपरियट्टो इह, दब्बाइ चउबिहो मुणेयव्यो । एकेको पुण दुविहो, बायरसुहुमत्तभेएणं ॥ ७१ ॥ संसारमि अडतो, जाव य कालेण फुसिय सव्वाणू । इगु जीवु मुयह वायर, अन्नयरतणुडिओ सुहुमो ॥ ७२ ॥ लोगस्स पएसेसु अणंतरपरंपराविभत्रीहि । खत्तमि बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ॥ ७३ ॥ उस्सप्पिणिसमएसु अणंतरपरंपराविभत्तीहिं । कालाम्म बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ।। ७४ ।। अणुभागट्ठाणेसुं अणंतरपरंपराविभीहिं । भावंमि बायरो सो, सुहुमो सव्वसुऽणुकमसो ॥ ७५ ॥ अवलियाणं छकं, समयादारम्भ सासणो होइ । मीसुवसम अंतमुहू, खाइयदिट्ठी अणंतद्धा ॥ ७६ ॥ वेयगअविरयसम्मो, तेत्तीसयराई साइरेगाई । अंतमुहुत्ताओ पुवकोडी देसो उ देसूणा ॥ ७७ ॥ समयाओ अंतमूह, पमत्तअपमत्तयं भयंति मुणी । देसूणपुब्बकोडिं, अन्नोन चिट्ठति भयंतो | २८७|| | ॥ ७८ ।। समयाओ अंतमुहू, अपुवकरणाउ जाव उवसंतो । खीणाजोगीणतो, देसस्सव जोगिणो कालो ॥ ७९ ।। एगिदियाणCणता, दोणि सहस्सा तसाण कायठिई । अयराण इगपणिदिसु, नरतिरियाणं सगट्ठभवा ॥ ८० ॥ पुब्बकोडिपुहुत्तं, पल्लतिय KESARSANESS For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिकृते । श्रीचन्द्र- तिरिनराण कालेणं । नाणाइगपजमणूण पल्लसंखंस अंतमुहू ॥ ८१ ॥ पुरिसत्तं सन्नित, सयप्पुहुत्तं तु होइ अयराणं | थीभवस्थिति लापलियसयपुहुत्तं, नपुंसगत्तं अणंतद्धा ।। ८२ ।। बायरपज्जेगिदियविगलाण य वाससहस्स संखेज्जा । अपज्जत्तसुहमसाहारणाण | पास्यात पंञ्चसंग्रहे पत्तेगमंतमुहू ।। ८३ ॥ पत्तेयवायरस्स उ, परमा हरियस्स होइ कायठिई । ओसप्पिणी असंखा, साहारत्तं रिउगइत्तं ॥८४ ॥ ॥२८८॥ मोहठिइ बायराणं, सुहमाण असंखया भवे लोगा । साहारणेसु दो सद्धपुग्गला निब्बिसेसाणं ।। ८५ ॥ सासणमीसाओ हवंति | सन्तया पलियसंखइगकाला । उवसामगउवसंता, समयाओ अंतरमुहुत्तं ।। ८६ ।। खवगा खीणा जोगी होंति अणिच्चावि अंतरमुहुत्तं । नाणाजीचे तं चिय, सत्तहिं समएहिं अब्भाहियं ॥ ८७ ।। एगिदित्तं सययं तसत्तणं सम्मदेसचारितं । आवलियासंखसं, अडसमय चरित्तसिद्धी य ।।८८।। उवसमसेढीउबसतया य मणुयत्तणुत्तरसुरत्तं । पडिवज्जते समया संखेया खवगसेढी य ।। ८९ ॥ बत्तीसा अडयाला, सट्ठी बावत्तरी य चुलसीई । छन्नउइ दुअट्ठसयं, एगाए जहुत्तरे समए ॥ ९० ॥ गब्भयतिरिमणुसुरनारयाण विरहो मुहुत्तबारसगं । मुच्छिमनराण चउवीस, विगलअमणाण अंतमुह ॥ ९१ ॥ तसबायरसाहारणअसनिअपुमाण जो ठिईकालो। ॥२८॥ सो इयराणं विरहो, एवं हरियेयराणं च ।। ९२ ॥ आईसाणं अमरस्स अंतरं हणियं महत्तो । आसहसारे अच्चुयणुत्तर दिणY मास वास नव ।। ९३ ॥ थावरकालुकोसो, सबढे बीयओन उववाओ। दो अयरा विजयाइसु नरएसुवि याणुमाणेणं ।। ९४ ॥ पलियासंखो सासायणंतरं सेसयाण अंतमु । मिच्छस्स बे छसट्ठी, इयराणं पोग्गलद्धंतो ॥ ९५ ।। वासपुहुत्तं उवसामगाण विरहो छमास खवगाणं । नाणाजिएसु सासणमीसाणं पल्लसंखंसो ॥ ९६ ॥ सम्माई तिनि गुणा, कमसो सगचोदपन्नरदिणाणि । या छम्मास अजोगितं, न कोवि पडिवज्जए सययं ॥ ९७ ॥ सम्माइचउसु तिय चउ, उबसमगुवसंतयाण चउ पंच । चउ खीणअ-1 For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र र्षिकृते ल्पबहुत्वं पश्चसंग्रहे ॥२८९॥ CARE पुव्वाणं, तिनि उ भावाऽवसेसाणं ॥९८॥ थोवा गब्भयमणुया, तत्तो इत्थीउ तिघणगुणियाओ । बायरतेउकाया, तासिमसंखेज्ज है जीवानाम: पज्जत्ता ।। ९९ ॥ तत्तोऽणुत्तरदेवा, तत्तो संखेज्ज जाऽऽणओ कप्पो । तत्तो असंखगुणिया, सत्तमछट्ठी सहस्सारो ।।१००॥ सुकमि | |पंचमाए, लंतय चोत्थाए बंभताए । माहिंदसणंकुमरे, दोच्चाए मुच्छिमा मणुया ॥ १०१ ॥ ईसाणे सव्वत्थपि, बत्तीसगुणाओ | होंति देवीओ । संखेजा सोहम्मे, तओ असंखा भवणवासी ॥ १०२ ॥ रयणप्पभिया खहयरपणिदि संखेज तत्तिरिक्खीओ । | सव्वत्थ तओ थलयरजलयरवणजोइसा चेवं ॥ १०३ ।। तत्तो नपुंसखहयरसंखेज्जा थलयरजलयरनपुंसा । चउरिदितओ पणबितिई| दियपज्जत्त किंचिहिया ॥ १०४ ॥ अस्संखा पण किंचिहिय, सेस कमसो अपज ओभयो । पंचेंदिय विसेसहिया, चउतियबेइंदिया तत्तो ।। १०५ ॥ पज्जत्तबापॅरपत्तेयतरू असंखेज्ज इति निगोयाओ । पुढवी आऊ वाऊ, बायरअपजत्ततेउ तओ ॥१०६ ॥ चादरतरू निगोया, पुढवीजलवाउतेउ तो सुहुमा । तत्तो विसेसअहिया, पुढवीजलपवणकाया उ ॥ १०७॥ संखेज्जसु| हुमपज्जत्त, तेउ किंचि (च) हियभूजलसमीरा । तत्तो असंखगुणिया, सुहुमनिगोया अपज्जत्ता ॥ १०८ ॥ संखेज्जगुणा तत्तो | पज्जत्ताणतया तओ भव्वा । पडिवडियसम्मसिद्धा, वणवायरजीवपज्जत्ता ।। १०९ ॥ किंचि (च) हिया सामन्ना एए उ असंखवण | अपज्जता । एए सामन्त्रेण, विसेसअहिया अपज्जत्ता ॥ ११० ।। सुहुमा वणा असंखा, विसेसअहिया इमे उ सामन्ना। सुहुमवणा संखेज्जा, पज्जत्ता सब किंचि (ग) हिया ।। १११ । पज्जत्तापज्जत्ता, सुहुमा किंचि (च) हिंय भव्वसिद्धीया। तत्तो बायरसुहुमा, निगोयवणसह जिया तत्तो ॥११२॥ एगिंदिया तिरिक्खा, चउगइमिच्छा य अविरइजुया य । सकमाया छउमत्था, सजो-18 ४॥२८९॥ गसंसारि सब्वेवि ।।११३ ।। उवसंतखवगजोगी अपमत्तपमचदेससासाणा । मीसा विरया चउ चउ जहुत्तरं संखऽसंखगुणा॥११४ - - For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र्षिकृते पत्रसंग्रहे ॥२९॥ श्रीचन्द्र-18 उकोसपए संता मिच्छा तिसु गईसु होतऽसंखगुणा । तिरिएसज्णतगुणिया सविसु मणुएसु संखगुणा ॥ ११५ ॥ एगिदियमुहुमि- का यरा सनियर पणिदिया सबितिचऊ । पज्जत्तापज्जत्ताभेएणं चोइसग्गामा ॥ ११६ ॥ मिच्छा सासण मिस्सा अविरय देसा पमत्त कर्मभेदाः अपमत्ता । अपुन्वबायरसुहुमोवसंतखीणा सजोगियरा ॥११७|| तेरसवि बंधगा ते अट्ठविहं बंधियव्वयं कम्मं । मूलुत्तरमेयं ते (तस्स) बन्धद्वारे साहिमो ते निसामेह ॥ ११८ ।। इति द्वितीयं बन्धकद्वारं समाप्तम् ।। अथ तृतीयं बन्दव्यद्वारं प्रारभ्यते-नाणस्स दंसणस्स य आवरणं चेयणीय माहणीयं । आउ य नाम गोयं तहंतराय च | पयडीओ ॥ ११९ ॥ पंच नव दोभि अट्ठावीसा चउरो तहेव बायाला । दोनि य पंच य भणिया, पयडीओ उत्तरा नेव ॥ १२०॥ मइसुयओहीमणकेवलाण आवरणयं भवे पढम । तह दाणलाभभोगोवभोगविरियंतराययं चरिम।।१२१॥(गीतिः) नयणेयरोहिकेवल दंसणआवरणयं भवे चउहा । निद्दापयलाहि छहा निदाइदुरुत्तथीणी ॥ १२२।। सोलस कसाय नव नोकसाय दंसणतिगं च मोहणीय । सुरनरतिरिनिरयाऊ सायासायं च नीउच्च ॥ १२३ ॥ गइजाइसरीरंग, बंधणसंघायणं च संघयण । संठाणवन्नरसगंधफासअणुपुव्विविहगगई ।। १२४ ॥ अगुरुयलहु उवघाय, परघाउस्सास आयबुज्जोयं । निम्माण तित्थनामं च, चोद्दस अड पिंडपत्तेया | ।। १२५ ॥ तस बायर पज्जतं, पत्तेय थिरं सुमं च नायव्वं । सुस्सर सुभगाइज्ज, जसकित्ता सेयरा वीसं ॥ १२६ ॥ गइयाइयाण भेया, चउ पण पण ति पण पंच छच्छकं । पण दुग पणट्ठ चउ दुग, पिंडुत्तरभेय पणसट्टा ॥ १२७॥ ससरीरंतरभूया, बंधणसंघा २९॥ यणा उ बंधुदए। वण्णाइविगप्पावि हु, बंधे नो सम्ममीसाई ॥ १२८ ।। वेउब्वाहारोरालियाण सगतेयकम्मजुत्ताणं । नव बंधणाणि इयरदुजुत्ताणं तिण्णि तेसिं च ।। ।। १२९ ।। ओरलियाइयाणं, संघाया बंधणाणि य सजोगे । बंधसुभसंतउदया, आसज्ज SARKHERERAKA For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पंचसंग्रहे बन्धद्वारे ॥२९१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणेगहा नामं ॥ १३० ॥ नीलकसिणं दुगंधं, तित्तं कडुयं गुरुं खरं रुक्खं । सीयं च असुभनवर्ग, एगारसगं सुभं सेसं ॥ १३१ ॥ ध्रुवबंधिधुवोदयसव्वघाइपरियत्तमाणअसुभाओ । पंच य सप्पडिवक्खा, पगई य विवागओ चउहा ॥ १३२ ॥ नाणंतरायदंसण, ध्रुवबंधि कसायमिच्छभय कुच्छा । अगुरुलघुनिमिणतेयं, उवघायं वण्णचउकम्मं ॥ १३३ ॥ निम्माणथिराथिरतेय क्रम्मवण्णाइअगुरुसुहमसुहं । नाणंतरायदसगं, दंसणचउमिच्छ निच्चुया || १३४|| केवलियनाणदंसणआवरणं वारसाइमकसाया । मिच्छत्तं निहाओ इय वीसं सव्वधाईओ ।। १३५ ।। सम्मत्तनाणदंसणचरितघाइत्तणा उ घाईओ । तस्सेस देसघाइत्तणा उ पुण देसघाईओ ।। १३६ ।। नाणावरणचउक्कं दंसणतिगनोकसायविग्धपणं । संजलण देसघाई तइयविगप्पो इमो अन्नो ।। १३७ ।। नाणंतरायदंसणचउक्क परघायतित्थउस्सासं । मिच्छभयकुच्छधुवबंधिणी उ नामस्स अपरियता ।। १३८ ॥ मणुयतिगं देवतिगं, तिरियाऊसास अद्भुतणुयंग | विहगइवण्णाइसुभं, तसाइदस तित्थनिम्माणं ।। १३९ ।। चउरंसउसभआयवपरघायपणिंदिअगुरुसाउच्चं । उज्जोयं च पसत्था, सेसा बासीइ अपसत्था || १४० ॥ आयावं संठाणं, संघयण सरीरअंगउज्जोयं । नामधुवोदय उचपरघायं पत्तेयसाहारं ।। १४१ ।। उदयभावा पोग्गलविवागिणो आउ भवविवागीणि । खेत्तविवागऽणुपुच्ची जीवविवागा उसेसाओ ।। १४२ || मोहस्सेवोवसमो खाओवसमो चउण्ह घाईं । खयपरिणामियउदया अट्ठण्हवि होंति कम्माणं ।। १४३ ।। सम्मत्ताइ उवसमे खाओवसमे गुणा चरित्ताई । खइए केवलमाई तव्ववएसो उ ओदइए ॥ १४४ ॥ नाणंतरायदंसणवेयणियाणं तु भंगया दोनि । साइसपज्जवसाणोऽवि होइ सेसाण परिणामो ।। १४५ ।। चउतिट्ठाणरसाई, सव्वविघाईणि होंति फड्डाई । दुट्ठाणियाणि मीसाणि देसघाईणि सेसाणि ।। १४६ ।। निहएसु सव्वधाईरसेसु फड्डेसु देसघाईणं । जीवस्स गुणा जायंति ओहिमणचक्खुमाईया ॥ १४७ ॥ आवरणमसव्वग्धं, पुंसंजलणं For Private and Personal Use Only घात्यघा तिदेशसर्वघातिन्यः ॥२९१॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit S र्षिकृते श्रीचन्द्रपञ्चसंग्रहे बन्धद्वारे ॥२९॥ A CROREOCN तरायपयडीओ । चउठाणपरिणयाओ, दुतिचउठाणाउ सेसाओ ॥ १४८॥ उप्पलभूर्मावालुयजलरेहासारससंपराएमुं । चउठाणाई ४ारसबन्धः असुभाण, सेसयाणं तु वच्चासो ।। १४९ ॥ घोसाडइनिंबुवमो, असुभाण सुभाण खीरखंडुवमो । एगट्ठाणो उ रसो, अणं गुणियात ध्रुवा| कमेणियरे ॥ १५० ।। उच्चं तित्थं सम्मं, मीसं वेउव्विछक्कमाऊणि । मणुदुगआहारदुर्ग, अट्ठारस अधुवसत्ताओ ।। १५१ ॥ पढम-12 ध्रुवादि | कसायसमेया, एयाओ आउतित्थवज्जाओ । सत्तरसुब्बलणाओ, तिगेसु गइआणुपुब्बाऊ ॥ १५२ ॥ नियहेउसंभववि हु, भय-18 णिज्जो जाण होइ पयडीणं । बंधो ता अधुवाओ, धुवा अभयणिज्जबंधाओ ।। १५३ ॥ दब्बं खेतं कालो, भवो य भावो य हेयवो ते | पंच । हेउसमासेणुदओ, जायइ सव्वाण पगईणं ।। १५४ ॥ अघोच्छिन्नो उदओ, जाणं पगईण ता धुवोदइया । वोच्छिन्नोऽवि हु संभवइ, जाण अधुवोदया ताओ ।। १५५ ।। असुभसुभत्तणघाइत्तणाइं रसभेयओ मुणिज्जाहि । सविसयघायणभेएण वावि घाइ-IK त्तणं नेयं ।। १५६ ॥ जो घाएइ सविसयं, सयलं सो होइ सव्वघाइरसो। सो निच्छिद्दो निद्धो,तणुओ फलिहम्भहरविमलो ॥१५७॥ देसविघाइत्तणओ, इयरो कडकंबलंसुसंकासो। विविहबहुछिद्दभरिओ, अप्पसिणेहो अविमलो य ॥१५८ ॥ जाण न विसओ घाइत्तणमि ताणंपि सब्बघाइरसो । जायइ घाइगगासेण, चोरया वेह चोराणं । १५९ ।। घाइखओवसमेणं, सम्मचरित्ताई जाई | जीवस्स । ताणं हणंति देस, संजणा नोकसाया य ।। १६० ॥ विणिवारिय जा गच्छइ, बंधं उदयं च अभपगईए । सा हु परियत्तमाणी, अणिवारेंती अपरिवत्ता ॥ १६१ ।। दुविहा विवागओ पुण, हेउविवागाउ रणविवागाउ । एकेकावि य| चउहा, जओ चसद्दो विगप्पेण ।। १६२ ॥ जा जं समेच्च हेउं, विवागउदयं उर्वति पगईओ । ता तविवागसना सेसाभहाणाई । सुगमाई ॥ १६३ ।। अरइरईणं उदओ, किन्न भवे पोग्गलाणि संपप्प | अप्पुढेहिवि किन्नो एवं कोहाइयाणपि ॥ १६४ ' आउव्व। For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- भवविवागा, गई न आउस्स परमवे जम्हा । नो सन्बहावि उदओ, गईण पुण संकमेणत्थि ।। १६५ ॥ अणुपुवीणं उदओ, किंपन्य द्वार पिकृते संकमणेण नत्थि संतेवि? | जह खेत्तहउआ ताण न तह अन्नाण सविवागो ।। १६६ ।। संपप्प जीयकाले, उदय काओ न जंतिम पंचसंग्रहाला पगईओ । एवमिणमोहहेउं, आसज्ज विसेसयं नत्थि ।। १६७॥ केवलदुगस्स सुहुमो हासाइसु कह न कुणइ अप्पुव्वा । सुभगाईण | बन्धद्वार नमिच्छो, किलिट्ठओ एगठाणिरसं? ॥१६८ ।। जलरेहसमकसाएरीव, एगट्ठाणी न केवलदुगस्स । जे अणुयंपि हु भाणयं आवरण ॥२९३।। सव्वघाई से ॥ १६९ ॥ सेसासुभाणवि न जं, खवगियराणं न तारिसा सुद्धी । न सुभाणंपि हु जम्हा, ताणं बंधो विसुझंते ॥ १७० ।। उक्कोसठिई अझवसाणेहिं एगठाणिओ होहा । सुभियाण तन्न जं ठिइअसंखगुणियाउ अणुभागा ॥ १७१ ॥ दुविहामिह संतकम्म, धुवाधुवं सूइयं चसद्देण । धुवसन्तं चिय पढमा, जओ न नियमा विसंजोगो ॥ १७२ ॥ (अणुदयउदओभयबंधणी उ उभबंधउदयवोच्छेया । संतरउभयनिरंतरबंधा उदसंकमुक्कोसा ॥ १ ॥ अणुदयसंकमजेट्ठा, उदएणुदए य बंधउक्कोसा । उदयाणुदयवईओ, तितितिचउदुहाउ सव्वाओ ॥ २ ॥) दयनिरयाउबेउबिछक्कआहारजुयलतित्थाणं । बंधो अणुदयकाले, धुवोदयाणं तु उदयम्मि ।। १७३ ।। गयचरिमलोभधुवबंधिमोहहासरइमणुयपुवीणं । सुहुमतिगआयवाणं, सपुरिसवेयाण बधुदया ॥ १७४ ।। वोच्छिज्जति समं चिय, कमसो सेसाण उक्कमेणं तु । अट्ठण्हमजससुरतिगवेउव्याहारजुयलाणं ॥ १७५ ॥ धुवबंधिणी उ तित्थूगरनाम आउय चउक्क बावन्ना । एया निरंतराउ, सगवीसुभ सतरा सेसा ॥ १७६ ॥ चउरंस उसभपरघाउसासपुंसगलसायसुभखगई । वेउबिउरलसुरनरतिरिगोयदुसुसरतसतिचऊ ॥ १७७ ।। समयाओ अंतमुहू, उक्कोसो जाण संतरा ताओ। बन्धेहियमि उभया, निरंतरा तम्मि उ जहन्ने ॥ १७८ ॥ उदए व अणुदए वा, बन्धाओ अन्नसकमाओ वा । ठिइ संतं जाण भवे, उक्कोसं For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- ता तयक्खाओ ॥ १७९ ॥ मणुगइ सायं सम्म, थिरहासाइछ वेयसुभखगई । रिसहचउरंसगाई, पणुच्च उदसंकमुक्कोसा ॥ १८० ॥3 पिकृते । | मणुयाणुपुस्विमीसगाहारगदेवजुगलविगलाणि । सुहुमाइतिग तित्थं, अणुदयसंकमण उक्कोसा ॥ १८१॥ नारयतिरिउरलदुर्ग, पञ्चसंग्रहे बन्धद्वारे छेबट्ठगिदिथावरायावं । निद्दा अणुदयजेट्ठा, उदउक्कोसा पराणाऊ ॥१८२ ॥ चरिमसमयंमि दलियं जासिं अन्नत्थ संकम ताओ | अणुदयवइ इयरीओ, उदयवई होंति पगईओ ॥१८३॥ नाणंतरायआउगदंसणचउवेयणीयमपुमित्थी। चरिमुदयउच्चवेयग, ॥२९४॥ उदयवई चरिमलोभो य ॥ १८४ ॥ इति बन्दव्याभिधानं तृतीयं द्वारम् ॥ अथ बंधहेतुलक्षणं चतुर्थं द्वारम्-बंधस्स मिच्छअविरइकसायजोगा य हेयवो भणिया। ते पंचदुवालसपन्नासपनरस| भेइल्ला ।। १८५ ॥ आभिग्गहियमणाभिग्गह च अभिनिवेसियं चेव । संसइयमणाभोग, मिच्छत्तं पंचहा होइ ॥ १८६ ॥ छक्कायवहो मणइंदियाण अजमो असंजमो भणिओ । इइ बारसहा सुगमो, कसाय जोगा य पुबुता ॥१८७।। चउपच्चइओ मिच्छे, तिपचओ मीससासणाविरए । दुगपचओ पमत्ता, उवसंता जोगपच्चइओ ॥ १८८ ।। पणपन्न पन्न तिय छहिय चत्त गुणचत्त छक्कचउसहिया । दुजुया य वीस सोलस, दस नव नव सत्त हेऊ य ॥ १८९ ॥ दस दस नव नव अड पंच, जइतिगे दु दुग सेसयाणेगो । अड सत्त सत्त सत्तग, छ हो दो दो इगि जुया वा ।। १९० ॥ मिच्छत्तकायएगाइघायअन्नयरअक्खजुयलुदओ। वेयस्स कसायाण साय, जोगस्सऽणभयदगंछा वा ।। १९१ ।। इसिमेगगहणे तस्संखा भंगया उ कायाणं । जुयलस्स जुयं चउरो, सया ठवेज्जा कसादायाणं ।। १९२ ।। जा बायरो ता घाओ, विगप्प इइ जुगवबन्धहेऊणं । अणबन्धिभयदुगुंछाण चारणा पुण विमझेसु ॥ १९३ ॥ अणउदयरहियमिच्छे, जोगा दस कुणइ जन्न सो कालं । अणणुदओ पुण तदुवलगसम्मदिहिस्स मिच्छुदए ॥१९४॥ सासायणम्मि | ॥२९४॥ For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वार पिकृते श्रीचन्द्र-टरूवं, चय वेयहयाण नियगजोगाणं । जम्हा नपुंसउदए, वेउश्चियमीसगो नत्थि ॥१९५।। चत्तारि अविरए चय, थीउदए विउव्वि- बन्धहेतु शमीसकम्मइया । इत्थिनपुंसगउदए, ओरालियमीसगो नत्थि ॥ १९६ ॥ दो रूवाणि पमत्ते, चयाहि एगं तु अप्पमत्तम्मि । जं पश्चसंग्रहे इत्थिवेयउदए, आहारगीसगा नत्थि ॥१९७ ।। सब्बगुणठाणगेसुं, विसेसहेऊण एत्तिया संखा | छायाललक्ख बासीई, सहस्सा बन्धद्वारे सय सत्तसयरी य ॥ १९८ ॥ सोलसठारस हेऊ, जहन्न उक्कोसया असन्नीण । चोइसठारसऽपज्जस्स समिणो सनिगुणगाहओ ॥२९५॥ DI|| १९९ ।। मिच्छत्तं एग चिय, छक्कायवहो तिजोगसनिम्मि | इंदियसंखा सुगमा, असन्निविगलेसु दो जोगा ॥ २००॥ एवं चार अपज्जाणं, बायरसुहुमाण पज्जयाण पुणो । तिण्णेक्ककायजोगा, सण्णिअपज्जे गुणा तिनि ॥ २०१॥ उरलेण तिनि छण्हं, सरीरपज्जत्तयाण मिच्छाणं । सविउब्वेण सनिस्स, सम्ममिच्छस्स वा पंच ॥ २०२ ॥ सोलस मिच्छनिमित्ता, बज्झहि पणतीस अविरईए य । सेसा उ कसाएहिं, जोगेहि य सायवेयणियं ।। २०३ ॥ तित्थयराहाराणं, बंधे सम्मत्तसंजमा हेऊ । पयडी-18 पएसबंधा, जोगेहिं कसायओ इयरे ।। २०४ ॥ खुप्पिवासुण्हसीयाणि, सेज्जा रोगो वहो मलो । तणफासो चरीया य, दंसेक्कार सजोगिसु ।। २०५ ।। वेयणीयभवा एए, पनानाणा उ आइमे। अट्ठमंमि अलाभोत्था, छउमत्थेसु चोद्दसा ।।२०६|| निसेज्जा जायहणाऽऽकोसो, अरई इत्थिनग्गया । सकारो दंसणं मोहा, बावीसा चेव रागिसु ॥ २०७ ।। इति बंधहेतुलक्षणं चतुर्थ द्वारम् ।। अथ बंधविधिलक्षणं पंचमं द्वारम्-बद्धस्सुदओ उदए, उदीरणा तदवसेसयं संतं । तम्हा बंधविहाणे, भन्नते ईइ भणिप्रायव्वं ॥२०८॥ जा अपमत्तो सत्तट्ठबंधगा सुहुम छण्हमेगस्स । उवसंतखीणजोगी, सत्तण्हं नियट्टिमीसअनियट्टी (गीतिः)।२०९।। जा ॥२९५॥ सुहुमसंपराओ, उइन्न संताई ताव सव्वाइं । सत्तढुवसंते खीण, सत्त सेसेसु चत्तारि ॥ २१० ॥ बंधंति सत्त अट्ठ व, उइन्नसत्तद्गा सलमान For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्धहेतुद्वार श्रीचन्द्र-ॐउ सब्वेवि । सत्तट्ठछगबंधगभंगा पज्जत्तसंनिमि ।। २११ ॥ जाव पमत्तो अट्ठण्हुदीरगो वेयाउबज्जाणं। सुहुमो मोहेण य जा, र्षिकृते | खीणो तप्परओ (उ) नामगोयाणं (गीतिः) ॥२१२॥ जावुदओ ताव उदीरणा वि वेयणीयआउवज्जाणं । अद्धावलियासेसे उदए उ पश्चसंग्रहे | उदीरणा नत्थि ।। २१३ ।। सायासायाऊणं, जाव पमत्तो अजोगि सेसुदओ। जा जोगि उईरिज्जइ, सेसुदया सोदयं जाव ॥२१४।। बन्धद्वारे | निदाउदयवईणं, समिच्छपुरिसाण एगचत्ताणं । एयाणं चिय भज्जा, उदीरणा उदए नबासि ॥ २१५ ॥ होइ अणाइअणंतो, ॥२९६॥ अणाइसंतो य साइसंतो य । बंधो अभवभयोवसंतजीवेसु इइ तिविहो ॥ २१६ ॥ पयडीठिईपएसाणुभागभेया चउबिहेक्केको । उकोसाणुकोसगजहन्नअजहन्नया तेसिं ।। २१७ ।। तेऽवि हु साइअणाईधुवअद्धवभेयओ पुणो चउहा । ते दुविहा पुण नेया, मूलुत्तर|पयइभेएणं ॥२१८ ॥ भूओगारप्पयरग, अव्यत्त अवडिओ य विनेया । मूलुत्तरपगईबंधणासिया ते इमे सुणसु ॥ २१९ ॥ इगछाइ मूलियाण, बंधट्ठाणा हवंति चत्तारि । अब्बंधगो न बंधइ, इइ अब्बत्तो अओ नस्थि ॥ २२० ॥ भूओगारप्प घरगअव्वत्तअवट्ठिया जहा बंधे । उदए उदीरणाए, संते जहसंभव नेया ॥ २२१ ।। बंधट्ठाणा तिदसट्ठ दसणावरणमोहनामाणं । सेसाणेग| मवट्ठियबंधो सव्वत्थ ठाणसमो ॥ २२२ । भूओगारा दो नव, छ यप्पतरा दु अट्ठ सत्त कमा । मिच्छाओ सासणत्तं न एकतीसेक्कगुरु जम्हा ॥ २२३ ॥ चउ छ बिइए नामंमि एग गुणतीस तीस अब्बत्ता । इग सत्तरसयमोहे, एकेक्को तइयवज्जाणं ॥ २२४ ॥ इगसयरेगुत्तर जा, दुवीस छब्बीस तह तिपन्नाई। जा चोवत्तरि बावटिरहियबंधाओ गुणतीस ।। २२५ । एक्कार बार तिचउकवीस गुणतीसओ य चउर्तासा । चउआला गुणसट्ठी, उदयट्ठाणाई छब्बीस ॥२२६॥ भूयप्पयरा इगिचउवीसं जन्नेइ केवली छउमं । अजओ य केवलितं, तित्थयरियरा व अन्नोन्नं ॥ २२ ॥ एक्कारबारसासी, इगि चउ पंचाहिया य चउणउई । एत्तो ॥२९६॥ For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir र्षिकृते | बन्धने स्थितिबन्धः श्रीचन्द्र- चउद्दहियसयं, पणवीसाओ य छायालं ॥ २२८ ॥ बत्तीसं नत्थि सयं, एवं अडयाल संतठाणाणि । जोगिअघाइचउक्के, भण* खविउं घाइसंताणि ।। २२९ ॥ साई अधुवो नियमा, जीवविसेसे अणाइ अधुव धुवो । नियमा धुवो अणाई, अधुवो अधुवो व साई पञ्चसंग्रहे वा ।। २३० ॥ उक्कोसा परिवडिए, साइ अणुक्कोसओ जहन्नाओ | अब्बन्धाओ वियरो, तदभाव दो वि अविसेसा ॥ २३१ ॥ वन्धद्वारे तेणाई ओहेणं, उक्कोसजहन्नगो पुणो साई । अधुवाण साइ सव्वे, धुवाणणाइवि संभविणो ॥ २३२ ।। मूलुत्तरपगईणं, जहन्नओ ॥२९७॥ |४|पगइबन्ध उवसंते । तभट्टा अजहन्नो, उक्कोसो सनिमिच्छीम ॥ २३३ ।। आउस्स साइअधुवो, बन्धो तइयस्स साइअवसेसो ।। सेसाण साइणाइ, भव्याभव्वेसु अधुवधुवो ॥ २३४ ।। साई अधुवो सब्याण, होइ धुवबन्धियाण णाइधुवो । निययअबन्धचुयाण साइ अणाई अपत्ताणं ॥ २३५ ।। नरयतिगं देवतिगं, इगिविगलाणं विउधि नो बन्धे । मणुयतिगुच्चं च गईतसंपि तिरि तित्थआहारं ॥ २३६ ॥ वेउव्वाहारदुर्ग, नारयसुरसुहुमविगलजाइतिगं । बन्धहि न सुरा सायवथावरएगिदि नेरझ्या ॥ २३७॥ मोहे सयरी कोडाकोडीओ वीस नामगोयाणं । तीसियराण चउण्हं, तेत्तीसयराई आउस्स ॥ २३८ ।। मोत्तुमकसाइ तणुयी, ठिइ वेयणि| यस्स बारस मुहुत्ता । अट्ठट्ठ नामगोयाण, सेसयाणं मुहुत्तंतो ।। २३९ ।। सुकिलसुरभीमहुराण दस उ तह सुभचउण्ह फासाणं ।। अड्डाइज्जपवुड्डी, अंबिलहालिद्दपुव्वाणं ॥ २४० ॥ तीसं कोडाकोडी, असायआवरणअंतरायाणं । मिच्छे सयरी इत्थीमणुदुगसायाण पन्नरस ॥ २४१ ।। संघयणे संठाणे, पढमे दस उवरिमेसु दुगवडी। सुहमतिवामणविगले द्वारस चत्ता कसायाणं ।। २४२ ।। पुंहासरईउच्चे, सुभखगतिथिराइछक्कदेवदुगे । दस सेसाण वीसा, एवइयाबाहवाससया ॥ २४३ ॥ सुरनारयाउयाणं, अयरा तेत्तीस तिनि पलियाई । इयराणं चउसुवि पुवकोडितसो अबाहा उ ।। २४४ ।। वोलीणेसुं दोसुं, भागेसु आउयस्स जो बन्धो । For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie श्रीचन्द्र-४ा मणिओ असंभवाओ, न घडइ सो गइचउक्केवि ॥ २४५॥ पलियासंखेजसे, बंधंति न साहिए नरतिरिच्छा। छम्मासे पुण बन्धने र्षिकृते स्थितिइयरा, तदाऽऽउतंसो बहुं होइ ॥ २४६ ।। पुव्वा कोडी जेसि, आऊ अहिकिच्च ते इमं भणिय । भणिपि नियअबाहं, आउंबंधीत पञ्चसंग्रहे बन्धः अमुयंता ॥ २४७ ॥ निरुवकमाण छमासा, इगिविगलाणं भवडिईतंसो। पलियासंखेज्जसं, जुगधम्मीणं वयंतने ॥ २४८ ॥ अंतो बन्धद्वारे कोडीकोडी, तित्थयराहार तीए संखाओ । तेतीसपलियसंख, निकाइयाणं तु उक्कोसा ।। २४९ ।। अंतोकोडाकोडी, ठिइएवि कह ॥२९८॥ न होइ ? तित्थयरे । संते कित्तियकाल, तिरिओ अह होइ उ विरोहो ॥ २५० ॥ जमिह निकाइयतित्थं, तिरियभवे तं निसहियं संत । इयरमि नत्थि दोसो, उबट्टणुवट्टणासज्झे ।।२५१॥ पुचकोडीइ परओ इगि विगलो वा न बन्धए आउं। अंतो कोडाकोडीए आरओ अभवसनी उ ॥२५२।। सुरनारयाउयाणं, दसवाससहस्स लघु सतित्थाण । इयरे अंतमुहुर्त, अंतमुहुर्त अबाहाओ ॥ २५३ ॥ पुंवेय अट्ठ वासा अट्ट मुहुत्ता जसुच्चगोयाण । साए वारसहारगविग्घावरणाण किंचूणं ॥ २५४ ॥ दोमास एग अर्द्ध, अंतमुहुत्तं च कोह पुव्वाणं । ससाणुकोसाओ, मिच्छत्तठिईए जं लद्धं ।। २५५ ॥ वेउविछकि तं सहसताडियं जं असन्निणो तेसि । पलियासंखंसूणं ठिइ अबाहूणियनिसेगो ॥२५६।। मोत्तुमबाहासमए, बहुगं तयणतरे रयइ दलियं । तत्तो विसेसहीणं, कमसो नेयं ठिई जाव ॥२५७॥ आउस्स पढमसमया, परभविया जेण तस्स उ अबाहा । पल्लासंखियभाग, गंतु अद्धयं दलियं ॥२५८॥ पलिओ| वमस्स मूला, असंखभागम्मि जत्तिया समया। तावइया हाणीओ, ठिबन्धुक्कोसए नियमा ॥ २५९ ॥ उकोसठिबन्धा, पल्लासंखे-४२९८॥ ज्जभागमित्तहिं । हसिएहि समएहिं हसइ अबाहाए इगसमओ ॥ २६० ॥ जा एगिदिजहना, पल्लासखंससंजुया सा उ । तेर्सि जेट्ठा सेसाण संखभागहिय जा सन्नी ।। २६१ ॥ पणवीसा पन्नासा, सय दससयताडिया इगिदिठिई। विगलासन्नीण कमा, 94 (4 For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kcbatrth.org बन्धः श्रीचन्द्र- जायइ जेट्ठा व इयरा वा ।। २६२ ।। ठिइठाणाई एगिदियाण थोवाई होंति सव्वाणं । बेंदीण असंखज्जाणि, संखगुणियाणि जह बन्धने र्षिकृते का | उपि ॥ २६३ ।। सबजहन्नावि ठिई, असंखलोगप्पएसतल्लाह । अज्झवसाएहिं भवे, विसेसअहिएहिं उवरुवरि ॥ २६४ ॥ स्थितिपंचसंग्रहे अस्संखलोगखपएसतुल्लया हीणमझिमुक्कोसा । ठिइबंधझवसाया तीए विसेसा असंखेज्जा ।। २६५।। सत्तण्डं अजहनी, चउहा[४] बन्धद्वारे ठिइबंधु मूलपगईणं । सेसा उ साइअधुवा, चत्तारिवि आउए एवं ॥ २६६ ॥ नाणंतरायदंसणचउकसंजलणठिई अजहना । चउहा ॥२९९॥ | साई अधुवा, सेसा इयराण सव्वाओ ।। २६७ ॥ अट्ठारसण्ह खवगो, बायरएगिदि सेसधुवियाणं । पज्जो कुणइ जहनं साई अधुवो | अओ एसो ॥ २६८ ॥ अट्ठाराणज्जहनो, उवसमसेढीए परिवडंतस्स । साई सेसरियप्पा, सुगमा अधुवा धुवाणपि ॥ २६९।।। सब्वाणवि पगईण, उकोस समिणो कुणंति ठिई । एगिदिया जहन्न असनिखवगा य काणंपि ।। २७० ॥ सब्वाण ठिई असुभा, उक्कोसुकोसीकलेसेणं । इयरा उ विसोहीए, सुरनरतिरिआउए मोत्तुं ॥२७१।। अणुभागोऽणुक्कोसो, नामतइज्जाण घाइ अजहन्नो । गोयस्स दोवि एए, चउबिहा सेसया दुविहा ।। २७२ ।। सुभधुवियाणणुकोसो, चउहा अजहन्न असुमधुवियाणं । साई अधुवा सेसा, चत्तारिवि अधुवबंधीण ॥ २७३ ।। असुमधुवाण जहणं, बंधगचरमा कुगंति सुविसुद्धा । समयं परिवडमाणा, अजहणं | साइया दोवि ॥ २७४ ॥ सयलसुभाणुक्कोस, एवमणुकोसगं च नायब्बं । वनाई सुभअसुभा, तेणं तेयाल धुवअसुभा ॥ २७५ ॥ | सयलासुभायवाणं, उज्जोयतिरिक्खमणुयआऊणं । सन्नी करेइ मिच्छो, समयं उकोस अणुभाग ॥ २७६ ।। आहार अप्पमत्तो, कुणइ जहनं पमत्तयाभिमुहो । नरतिरिय चोदसह, देवाजोगाण साऊण ।। २७७ ॥ ओरालियालेरियदुगे, नीउज्जोयाण तमतमा || | छण्डं । मिच्छनरयाणभिमुहो सम्मद्दिट्ठी उ तित्थस्स ।। २७८ ।। सुभधुवतसाइचउरो, परघायपाणिदिसास चउगइया । उकडमिच्छा | ॥२९९॥ For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-18 पिंकृते पश्चसंग्रहे बन्धद्वारे CTERSTAR ते च्चिय, थीअपुमाणं विसुझंता ॥ २७९ ॥ थिरमुभजससायाणं सप्पडिवक्खाण मिच्छ सम्मो वा । मज्झिमपरिणामो कुणइ थावरे-18) बन्धन गिदिए मिच्छो ॥ २८० ॥ सुसराइतिन्नि दुगुणा, सठिइसंघयणामणुयविहजुयले । उच्चे चउगइमिच्छा, अरईसोगाण उ पमत्तो । ॥ २८१ ॥ सीढअसंखेज्जंसो, जोगट्ठाणा तओ असंखज्जा । पयडीभआ तत्तो, ठिइभेया होंति तत्तोवि ॥ २८२ ॥ ठिइबंधज्झवसाया, तत्तो अणुभागबंधठाणाणि । तत्तो कम्मपएसाणंतगुणा तो रसच्छया ॥ २८३ ॥ एगपएसोगाढे, सव्वपएसेहिं कम्मणो जोगे । जीवो पोग्गलदब्वे, गिण्हइ साई अणाई वा ।। २८४ ।। कमसो वुड्डठिईणं, भागो दलियस्स होइ सविमेसो । तइयस्स सन्चजेट्ठो, तस्स फुडतं जओ णप्पे ।। २८५ ।। जं समयं जावइयाई, बंधए ताण एरिसविहीए । पत्तेयं पत्तेयं, भागे निव्वत्तए जीवो ।। २८६ ।। जह जह य अप्पपगईण बंधगो तह तहत्ति उक्कोसं । कुवइ पएसबंधं, जहन्नयं तस्स वच्चासा ॥ २८७ ॥ नाणंतराइयाण, परभागा आउगस्स नियगाओ । परमो पएसबंधो सेसाणं उभयओ होइ ।। २८८ ॥ उकोसमाइयाण, आउम्मि न संभवो | विसेसाणं । एवमिणं किंतु इमो, नेओ जोगट्ठिइविसेसा ॥ २८९ ॥ मोहाउयवज्जाणं, णुकोसो साइयाइओ होइ । साई अधुवा 8 सेसा, आउगमोहाण सम्बेवि ॥ २९० ॥ छब्बन्धगस्स उक्कस्स, जोगिणो साइअधुवउकोसो। अणुकोस तच्चुयाओ अणाइअधुवा धुवाद सुगमा । २९१ ॥ होइ जहन्नोऽपज्जत्तगस्स सुहुमगनिगोयजीवस्स । तस्समउप्पन्नगसत्तबंधगस्सप्पविरियस्स ॥ २९२ ॥ एक्कं | समयं अजहन्नओ तओ साइअदुवा दोवि । मोहेवि इमे एवं, आउम्मि य कारणं सुगम ॥ २९३ ॥ मोहस्स अइकिलिट्टे उक्कोसो का |सत्तबंधए मिच्छे । एक समयंणुकोसओ तओ साइअधुवाओ ।। २९४ ॥ नाणंतरायनिहाअणबज्जकसायभयदुगुंछाण । दसणचउपयलाणं, चउवि (व्यि गप्पो अणुकोसा ।। २९५ ।। सेसा साई अधुवा, सब्वे सव्वाण सेसपर्यईणं । जाण जहिं बंधतो उक्कोसो | RECRBARA For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- र्षिकृते पञ्चसंग्रहे बन्धद्वारे RECENECES CCI ॥३०॥ ताण तत्थेव ॥ २९६ ।। निययबंधचुयाणं, णुकोसो साइ णाइ तमपचे । साई अधुवोऽधुवबंधियाण धुवबंधणा चेव ॥२९७॥ उदयअप्पतरपगइबन्धे, उकडजोगी उ सन्निपज्जत्तो । कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स बच्चासे ।। २९८ ।। सत्तविहबन्ध मिच्छे, परमो निरूपणं अणमिच्छथीणगिद्धीर्ण । उकोससंकिलिटे, जहन्नओ नामधुवियाणं ।। २९९ ।। समयादसंखकाल, तिरिदुगनीयाणि जाव बझंति । वेउब्बियदेवदुर्ग, पल्लतिग आउ अंतमुहू ।। ३०० ।। देसूणपुचकोडी, सायं तहऽसंखपोग्गला उरलं । परघाउस्सासतसचउपणिदि पणसीय अयरसयं ॥ ३०१ ॥ चउरंसउच्चसुभखगइपुरिससुस्सरतिगाण छावट्ठी । बिउणा मणुदुगउरलंगरिसहतित्थाण तेत्तीसा |॥ ३०२ ॥ ससाणतमुहुर्त, समया तित्थाउगाण अंतमुह । बन्धो जहन्नओवि ह, भंगतिग निच्चबन्धीण ।। ३०३॥ हाइ अणाइ अणंतो, अणाइसंतो धुवोदयाणुदओ । साइसपज्जवसाणो, अधुवाणं तह य मिच्छस्स ।। ३०४ ॥ पयडिठिईमाईया, भेया पुव्वुत्तया इहं नेया । उद्दीरणउदयाणं, जे नाणत्तं तयं वोच्छं ।। ३०५ ॥ चरमोदयमुच्चाणं, अजोगिकालं उदीरणाविरहे । देसूणपुब्बकोडी, मणुयाउगवेयणीयाण ।। ३०६ ॥ तइयच्चिय पज्जत्ती, जा ता निद्दाण होइ पंचण्डं। उदओ आवलिअंते, तेवीसाए उ सेसाण ॥ ३०७ ॥ मोहे चउहा तिविहो व सेससत्तण्ह मूलपगईणं । मिच्छत्तुदओ चउहा, अधुवधुवाणं दुविहतिविहो । ३०८ ॥ उदओ ठिइक्खएण, संपत्तीए सभावतो पढमो । सति तम्मि भवे बीओ, पओगओदीरणा उदओ ।। ३०९ ।। उद्दीरणजोग्गाण, अब्भहियठिईए उदयजोग्गाओ । हस्सुदओ एगठिइणं, निद्णाए गियालाए ॥ ३१० ।। अणुभागुदओवि उदीरणाए तुल्लो जहन्नयं| नवरं । आवलिगंते सम्मत्तवेयखीणतलोभाण ॥ ३११ ॥ अजहन्नोऽणुक्कोसो, चउह तिहा छण्ह चउविहो मोहे । आउस्स साइ अधुवा, 18॥३०॥ सेसविअप्पा य सव्वेसि ॥ ३१२ ।। अजहन्नाणुकोसो, धुवोदयाणं चओ तिहा चउहा । मिच्छत्ते सेसासिं, दुविहा सव्वे य सेसाणं 56 For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चसंग्रह 18॥ ३१३ ॥ संमत्तदेससंपुनविरह उप्पत्तिअणविसंजोग । दसणखवणे मोहस्स, समणे उवसंत खवगे य ॥३१४ ॥ खीणाइतिगे अस्संख- उदयर्षिकृते गुणियगुणसेढिदलिय जहकमसो । सम्मत्ताईणकारसह कालो उ संखसे ।। ३१५ ॥ झत्ति गुणाओ पडिए, मिच्छत्तगयंमि आइमा निरूपणं | तिनि । लब्भंति न सेसाओ, जे झीणासु असुभमरणं ॥ ३१६ । उक्कोसपएसुदयं, गुणसेढीसीसगे गुणियकम्मो । सब्बासु कुणइ बन्धद्वारे ओहेण, खवियकम्मो पुण जहन्न ।। ३१७ ॥ सम्मतवेयसंजलणयाण खीणतदुजिणअंताण | लहु खवणाए अंत, अवहिस्स अणो॥३०॥ हिणुक्कोसो ॥ ३१८ ॥ पढमगुणसढिसीसे, निद्दापयलाण कुणइ उवसंतो । देवत्तं झत्ति गओ, बेउब्बियसुरदुगस्सेव ॥ ३१९ ॥ तिरिएगंतुदयाणं, मिच्छत्तणमीसथीणगिद्धीण । अपजतस्स य जोगे, दुतिगुणसेढीण सीसाणं ।। ३२० ॥ से कालेऽतरकरणं, होही अमरो य अंतमुहुपरओ । उकोसपएमुदओ हासाइसु मज्झिमट्टण्हं ।। ३२१ ॥ हस्सठिई बंधित्ता अद्धाजोगाइराठइनिसगाणं । उकोसपए पढमोदयम्मि सुरनारगाऊण ।। ३२२ ॥ अद्धाजोगुक्कोसे, बंधित्ता भोगभूमिगसु लहुं । सम्बप्पजीवियं वज्जइत्तु ओवट्टिया दोण्हें ।। ३२३ ॥ नारयतिरिदुगदुभगाइनीयमणुयाणुपुब्विगाणं तु । दंसणमोहक्खवगो, तइयगसेढीउ पडिभग्गो ॥ ६२४ ।। संघ| यणपंचगस्स उ, बिझ्यादितिगुणसेढिसीसम्मि । आहारुज्जोयाणं, अपमत्तो आइगुणसीसे ॥ ३२५ ॥ गुणसेढीए भग्गो, पत्तो बेई| दिपुढविकायत्तं । आयावस्स उ तव्वेइ, पढमसमयमि वÉतो ॥ ३२६ ॥ देवो जहन्नयाऊ, दीहुबट्टित्तु मिच्छ अन्तम्मि । चउना णदंसणतिगे, एगिदिगए जहन्नुदयं ।। ३२७ ।। कुब्वइ ओहिदुगस्स उ देवत्तं संजमाउ संपत्तो। मिच्छुकोसुकट्टिय, आवलिगंते | पएमुदयं ।। ३२८ ।। बेयणियउच्चसोयंतरायअरईण होइ ओहिसमो । निदादुगस्स उदए, उक्कोसठिईउ पडियस्स ।। ३२९ । मइ ३०२॥ सरिसं वरिसधरं, तिरियगई थावरं च नीयं च । इंदियपज्जत्तीए, पढमे समयंमि गिद्धितिगे ॥ ३३० ॥ अपुभित्थिसोगपढमिल्लअ-14 For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit श्रीचन्द्र-1 र्षिकृते | पंचसंग्रह बन्धद्वारे ॥३०॥ रइरहियाण मोहपगईण । अंतरकरणाउ गए, सुरसु उदयावलीअंते ॥ ३३१ ॥ उवसंतो कालगओ, सबढे जाइ भगवई सिद्धं । उदयतत्थ न एयाणुदओ, असुभुदए होइ मिच्छस्स ॥ ३३२ ।। उवसामइत्तु चउहा, अन्तमुहू बंधिऊण बहुकाल । पालिय सम्म पढ-14 निरूपणं माण, आवलीअंतमिच्छगए ॥ ३३३ ।। इत्थीए संजमभवे, सव्वनिरुद्धीम गंतु मिच्छत्तं । देवो लहु जिट्ठठिई, उव्वट्टिय आवलीअंते ॥ ३३४ ॥ अप्पद्धाजोगसमज्जियाण आऊण जिट्ठठिइअंते । उवारं थोवनिसेग, चिर तिव्यासायवेईणं ॥ ३३५ ॥ संजोयणा | विजोजिय, जहन्नदेवत्तमंतिममुहुत्त । बंधिय उकोस्सठिई, गंतूणेगिदियासन्नी ॥ ३३६ ।। सब्बलहुं नरयगए नरयगई तम्मि सव्व| पज्जत्त । अणुपुच्चि सगइतुल्ला, ता पुण नेया भवाइम्मि ॥ ३३७॥ देवगई ओहिसमा, नवरं उज्जायवेयगो जाहे। चिरसंजमिणो & | अंते, आहारे तस्स उदयाम्म ।। ३३८ ।। सेसाणं चकखुसम, तमि व अन्नंमि वा भवे अ चिरा। तज्जोगा बहुयाओ, ता ताओ | वेयमाणस्स ।। ३३९ ।। पढमकसाया चउहा तिहा धुवं साइ अदुवं संतं । दुचरिमखीणभवन्ता निहादुगचोदसाऊणि ॥ ३४० ॥ तिमु मिच्छत्तं नियमा, अट्ठसु ठाणेसु होइ भइयनं । सासायणमि नियमा, सम्म भज्ज दससु संत ॥ ३४१ ॥ सासणमीसे मोसं सन्तं नियमेण नवसु भइयव्वं । सासायणंत नियमा, पंचसु भज्जा अओ पढमा ।। ३४२ ।। मज्झिल्लढुकसाया, ता जा आणिय- |ट्टिखवगसखेया । भागा तो संख्या, ठिइखंडा जाव गिद्धितिगं ॥ ३४३ ।। थावरतिरिगइदोदो, आयावेगिदिविगलसाहार । नरयदुगुज्जोयाणि य, दसाइमेगततिरिजोग्गा ॥ ३४४ ॥ एवं नपुंसइत्थी सन्तं छक्कं च बार पुरिसुदए । समऊणाओं दोन्नि उ, IN आवलियाओ तओ पुरिसं ।। ३४५ ।। इत्थीउदएँ नपुंस, इत्थीवयं च सत्तगं च कमा । अपुमोदयंमि जुगवं, नपुंसइत्थी पुणो सत्ता ॥३०३ ।। ३४६ ॥ संखेज्जा ठिइखंडा, पुणोवि कोहाइलोभमुहुमत्ते । आसज्ज खवगसेढी, सव्वा इयराइ जा संतो ।। ३४७ ॥ सव्वाणविद CXRASAR For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-18 आहारं, सासणमीसेयराण पुण तित्थं । उभये सति न मिच्छे, तित्थगरे अंतरमुहुत्तं ॥ ३४८ ॥ अन्नयरवेयणीयं, उच्चं नामस्स 8/ सत्तोत्कपिंकते है चरमउदयाओ । मणुयाउ अजोगता सेसा उ दुचरिमसमयंता ॥ ३४९ ।। मूलठिई अजहन्ना तिहा चउद्धा उ पढमयाण भवे । दायाद पञ्चसंग्रहे धुवसंतीणंपि तिहा, सेसविगप्पाऽधुवा दुविहा ।। ३५० ॥ बंधुदउकोसाणं उकोसठिई उ संतमुकोसं । तं पुण समयेणूण अणुदय-11 बन्धद्वारे उक्कोसबंधीण ॥ ३५१ ॥ उदसंकमउकोसाण आगमो सालिगो भवे जेट्ठो । सन्तं अणुदयसंकमउक्कोसाणं तु समऊणो ॥ ३५२॥ ॥३०४॥ उदयवईणेगठिई अणुदयवइयाण दुसमया एगा। होइ जहन्नं सन्तं दसह पुण संकमो चरिमो ॥ ३५३ ॥ हासाइ पुरिसकोहाइ, |तिनि संजलण जेण बंधुदए । वोच्छिन्ने संकामइ तेण इहं संकमो चरिमो ॥ ३५४ ।। जावेगिंदिजहन्ना नियगुकोसा हि ताव ठिइ-10 ठाणा । नेरंतरेण हेट्ठा खवणाइसु संतराइपि ॥ ३५५ ॥ संकमतुल्लं अणुभागसंतयं नवरि देसघाइणं । हासाइरहियाणं जहन्नयं एगठाणं तु ॥ ३५६ ॥ मणनाणे दुट्टाणं देसघाई य सामिणो खवगा। अंतिमसमये सम्मत्तवेयखीणन्तलोभाणं ।। ३५७ ॥ मइसुयचक्खुअचक्खू, सुयसम्मत्तस्स जेट्ठलद्धिस्स । परमोहिस्सोहिदुगे, मणनाणे विपुलनाणिस्स ॥ ३५८ ॥ अणुभागट्ठाणाई तिहा5 कमा ताणऽसंखगुणियाणि । बंधा उव्वट्टोबट्टणाउ अणुभागघायाओ ॥ ३५९ ॥ सत्तण्हं अजहन्नं, तिविहं सेसा दुहा पएसंमि । मूलपगईसु आउस्स, साइ अधुवा य सव्वेवि ।। ३६० ।। सुभधुवबंधितसाई, पणिदिचउरंसरिसभसायाण । संजलणुस्पाससुभखगइपुंपराघायणुक्कोसं ॥३६१॥ चउहा धुवसंतीणं, अणजससंजलणलोभवज्जाणं । तिविहमजहण्ण चउहा, इमाण छण्हं दुहाणुत्तं ॥३६२॥8 ॥३०४॥ HE संपुण्णगुणियकम्मो, पएसउकस्ससंतसामीओ। तस्सेव सत्तमीनिग्गयस्स काणं विसेसोवि ।। ३६३ ॥ मिच्छमीसेहिं कमसो, लि। संपक्खित्तेहिं मीससम्मसु । वरिसधरस्स उ ईसाणगस्स चरिमम्मि समयम्मि ॥ ३६४ ॥ ईसाणे पूरित्ता, नपुंसगं तो असंखवासीसु । KARANG For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsul Gyanmandie श्रीचन्द्र-16 पल्लासंखियभागेण, पूरिए, इत्थवियस्स ।। ३६५ ॥ जो सव्वसकमेण इत्थी परिसम्मि छह सो सामी। पुरिसस्स कम्मसंजलणयाण उद्वलनादि र्षिकृते | सो चेव संछोभ ।। ३६६ ॥ चउरुवसामिय मोह, जसुच्चसायाण सुहमखवगते । जं असुभपगइदलियस्स सकमा हाइ एयासू पञ्चसंग्रहे F॥३६७ ॥ अद्धाजोगुक्कोसेहि देवनिरयाउगाण परमाए । परमं पएस सतं, जा पढमो उदयसमओ सा ।। २५८ ।। ससाउगाण बन्धद्वारे | नियगेसु चेव आगंतु पुब्धकोडीए । सायबहुलस्स अचिरा, बंधत जाव नोबट्टे ।। ।। ३६९ ॥ पूरित्तु पुब्बकोडीपुहुत्तनारयदुगस्स ॥३०५॥ बंधते । एवं पलियतिगते, सुरदुगवेउब्धियदुगाणं ॥ ३७० ॥ तमतमगो आइखिप्पं, सम्मत्तं लभिय समि बहुगर्छ । मणुयदुगस्सु कोस, सवज्जरिसभस्स बंधत ।। ३७१ ॥ बेछावादृचियाणं, मोहस्सुवसामगस्स चउखत्तो। सम्मधनबारसहं, खवगाम सबंधHI अंतम्मि ॥ ३७२ ॥ सुभथिरसुभधुबियाणं, एवं चिय होइ संतमुक्कोस । तित्थयराहाराण, नियनिया कोसबंधते ॥ ३७३ ।। तुल्ला हानपुंसगेणं, एगिदियथावरायवुज्जोया । मुहुमतिगं विगलावि य, तिरिमणुयचिरच्चिया नवरि ।। ३७४ ॥ आहण खावयकम्म, वापएससंतं जहन्नयं होड । नियसकमस्स विरमे, तस्सेव पिसेसियं मणस ॥ ३७५ ।। उबलमाणीणेगठि? उब्धलए जया दुसामइगा। थोवद्धमज्जियाणं, चिरकालं पालिआ अंते ॥ ३७६ ।। अंतिमलोभजसाणं, असेढिगाहापवत्तअन्तंमि । मिच्छत्तगए आहारगस्सा | सेसाणि नियगंते ॥ ३७७ ॥ चरमावलिप्पविट्ठा, गुणसेढी जासि अस्थि न य उदओ । आवलिगासमयसमा तासिं खलु फडड| गाई तु ।। ३७८ ॥ सब्बजहन्नपएसे, पएसडीएणतया भेया । ठिइठाणे ठिहठाणे, विनया खषियक माओ॥ ३७१।। एगढिइयं । एगाए फड्डग दासु होइ दोटिइगं । तिगमाईसुवि एवं, नेयं जावंति जासिं तु ।। ३८० ।। आवलिमेतुकास, फड्डगमाहस्स सब-II घाइण । तेरसनामतिनिहाण, जाव नो आवली गलइ ।। ३८१ ।। खीणद्धासंखंसं, खीणताणं तु फडडगुकास । उदयवइणगहिय, TEACHECRCHOREOGRESS For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit रूपणं श्रीचन्द्र-18 निदाणं एगहीणं तं ।। ३८२ ॥ अज्जोगिसतिगाणं, उदयवईणं तु तस्स कालेणं । एगाहिंगेण तुल्लं, इयराणं एगहीणं तं ॥ ३८३॥ठावर्गणानिपिकृत ठिइखंडाणइखुडं, खीणसजोगीण होइ जं चरिमं । तं उदयवईणहियं, अन्नगए तूणमियराणं ॥ ३८४ ॥ जं समयं उदयवई, I8| पञ्चसंग्रहेका | खिज्जइ दुच्चरिमयन्तु ठिइठाण । अणुदयवइए तम्मी, चरिमं चरिमंमि जं कमइ ।। ३८५ ॥ जावइयाउ ठिईओ जसंतलोभाणहाकमप्रकृतील पवर्तते । तं इगिफड्टुं संते, जहन्नयं अकयसढिस्स ॥ ३८६ ॥ अणुदयतुल्लं उव्वलणिगाण जाणिज्ज दीहउव्वलणे । हासाईणं एगं, ॥३०६॥ | संछोभे फडडुगं चरम ।। २८७ ।। बन्धावलियाईयं, आवलिकालेण बीइठिइहितो । लयठाणं लयठाणं, नासेई संकमेण तु ॥३८८।। | संजलणतिगे दुसमय हीणा दो आवलीण उक्कोसं । फड्डु बिईय ठिइए, पढमाए अणुदयावलिया ।। ३८९ ।। आवलियदुसमऊणा |मेत फड्डु तु पढमठिइविरमे । वेयाणवि चे फड्डा ठिईदुगं जेण तिण्हंपि ।। ३९० ॥ पढमठिईचरमुदये, बिइयठिईए व चरमसं| छोभे । दो फड्डा वेयाणं, दो इगि संतऽहवा एए ॥ ३९१ ॥ चरमसंछोभसमए, एगा ठिइ होइ थीनपुंसाणं । पढमठिईए तदंते, | पुरिसे दोआलिदुसमणं ।। ३९२ ॥ इति श्रीपंचमं बन्धविधिद्वारम् ॥ ॥ अथ कर्मप्रकृतिसंग्रहः ॥ बंधणकरणम्-णमिऊण सुयहराणं वोच्छ करणाणि बंधणाईणि । संकमकरण बहुसो अइदि| सिय उदयसंते जे ॥ ३९३ ॥ आवरणदेससव्वक्खएण दुविहेह वीरियं होइ । अहिसंधिअणहिसंधी अकसाइ सलेस उभयपि ॥३९४॥ | होइ कसाइवि पढम इयरमलेसीवि जं सलेसं तु | गहणपरिणामफंदणरूवं तं जोगओ तिविहं ॥ ३९५ ॥ जोगो विरियं थामो ||३०६॥ उच्छाह परकमो तहा चेट्ठा । सत्ती सामत्थंति य जोगस्स हवंति पज्जाया ॥ ३९६ ॥ पनाए अविभाग जहन्नविरियस्स बीरियं / | छिन्नं । एकेकस्स पएसस्स असंखलोगप्पएससमं ॥ ३९७ ॥ सव्वप्पवीरिएहिं जीवपएसेहिं वग्गणा पदमा। बीयाइ वग्गणाओ For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्र र्षिकृते पंचसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३०७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूबुत्तरिया असंखाओ ।। ३९८ ।। ताओ फट्टगमेगं अओ परं नत्थि स्ववुडीए | जाव असंखा लोगा पुव्वविहाणेण तो फड्डा ।। ३९९ ।। सेठी असंखभागियफड्डेहिं जहण्णयं हवइ ठाणं । अंगुलअसंखभागुत्तराहिं भूओ असंखाई ।। ४०० ।। सेढीअसंखियभागं गंतुं गन्तुं भवंति बुगुणाई । फड्डाई ठाणेसुं पलियासंखं सगुणयारा ॥ ४०१ ॥ वङ्कंति व हायंति व चउहा जीवस्स जोगठाणाई । आवलिअसंखभागतमुत्तमसंखगुणहाणी ।। ४०२ ।। जोगट्टाणठिईओ चउसमया अट्ठ दोण्णि जा तत्तो । अट्ठगुभयठि जाओ जहा परमसंखगुणियाणं ॥ ४०३ || सुहुमेयराइयाणं जहण्णउकोसपज्जऽपज्जाणं । आसज्ज असंखगुणाणि होंति इह जोगठाणाणि ॥ ४०४ ॥ जोगणुरूवं जीवा परिणामंतीह गिहिउं दलियं । भासाणापाणमणोचियं च अवलंबए दव्वं ॥ ४०५ ।। एकपएसाइअगंतजाओ होऊण होंति उरलस्स । अज्जोगंतरिआओ वग्गणाओ अनंताओ ।। ४०६ ।। ओराल १ बिउब्बा २ हार ३ ते ४ भासा ५ पाण ६ मण ७ कम्मे ८ । अह दव्ववग्गणाणं कमो विवज्जासओ खित्ते ||४०७|| कम्मोवरिं धुवेयर सुना पत्तेय सुन्नबायरगा । सुन्ना सुहुमे सुन्ना महखंधे सगुणनामाओ ।। ४०८ ।। सिद्धाणंतसेणं अहव अभव्वेऽणंतगुणिएहिं । जुत्ता जहन्नजोग्गा उरलाईणं भवे जेट्ठा ॥ ४०९ ।। पंचरस पंचवण्णेहिं परिणया अडफासदोगंधा । जावाहारगजोग्गा चउफासविसेसिया उवरिं ।।४१०।। अविभागाईनेहेण जुत्तया ताव पोग्गला अत्थि । सव्वजियाणंतगुणेण जाव नेहेण संजुत्ता ॥ ४११ ॥ जे एगनेहजुत्ता ते बहवो तेहिं वग्गणा पढमा । जे दुगनेहाइजुआ असंखभागूण ते कमसो ॥ ४९२ ॥ इय एरिसहाणीए जंति अनंता वग्गणा कमसो । संखसूणा तत्तो संखगुणूणा तओ कमसो || ४१३ ।। ततोऽसंखगुणूणा अनंतगुणऊनियावि तत्तोऽवि । गंतुमसंखा लोगा अद्धद्धा पोग्गला भूय ॥ ४१३ ॥ पढमहाणीए एवं बीयाएऽसंखवग्गणा गंतुं । अद्धं उवरित्थाओ For Private and Personal Use Only वर्गणायाफड्डुगानां - च निरूपणं ॥३०७॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चसंग्रहे श्रीचन्द्र-18 हाणीओ हॉति जा तीए ॥ ४१५॥ थोवाओ वग्गणाओ पढमहाणीए उवरिमासु कमा । होति अणंतगुणाओ अणंतभागो पएसाणं भावाणुर्षिकृते । ॥४१५ ॥ पंचण्ह सरीराणं परमाणूणं मतीए अविभागो । कप्पिययाणेगंसो गुणाणु भावाणु वा हाँति ॥ ४१७॥ जे सव्वजहण्ण निरूपणं गुणा जोग्गा तणुबंधणस्स परमाणू । तेवि उ य संखासंखगुणपलिभागा अइक्ता ॥४१८॥ सव्वजियाणंतगुणेण जे उ नेहेण पोग्गला कर्मप्रकृती जुत्ता । ते वग्गणा उ पढमा बंधणनामस्स जोग्गाओ ॥ ४१९ ॥ अविभागुत्तरियाओ सिद्धाणमणंतभागतुल्लाओ । ताओ फड्डग॥३०८॥ मेगं अणंतविवराई इय भूय ।। ४२० ।। जइम इच्छसि फडं तत्तियसंखाए वग्गणा पढमा । गुणिया तस्साइल्ला रूवुत्तरियाओ |ऽणंताओ ।। ४२१ ।। अभवार्णतगुणाई फड्डाई अंतराउ रूवुणा दोऽणंतरवुडीओ परंपरा हाँति सब्बाओ ।। ४२२ ॥ पढमा उ8 अणंतेहिं सरीरठाणं तु होइ फडेहिं । तयणंतभागवुड्डी कंडगमेत्ता भवे ठाणा ॥ ४२३॥ एकं असंखभागुत्तरेण पुण गंतभागवुड्डीए । | कंडगमेत्ता ठाणा असंखभागुत्तरं भूय ।। ४२४ ॥ एवं असंखभागुत्तराणि ठाणाणि कंडमेत्ताणि । संखेज्जभागवुडू पुण अनं उद्दए ठाणं ।। ४२५ ॥ अमुयंतो तह पुबुत्तराई एयंपि नेसु जा कंडं । इय एयविहाणेणं छबिहवुड्डी उ ठाणेसु ॥ ४२६ ।। अस्संखलोगतुल्ला अणंतगुणरसजुया य इयठाणा । कंडंति एत्थ भन्नइ अंगुलभागो असंखेज्जो ॥ ४२७ ॥ होति पओगो जोगो तट्ठाणविवड्डगाए जो उ रसो । परिवड्ढेई जीवो पओगफई तयं बेंति ॥ ४२८ ॥ अविभागवग्गफहगअंतरठाणाई एत्थ जह पुधि । ठाणाई वग्गणाओ अणंतगुणणाए गच्छति ॥ ४२९ ।। विहंपि फड्डगाणं, जहण्णउक्कोसगा कमा ठविउं । णेया णतगुणाओ वग्गणा |॥३०८॥ णेहफडाओ ॥ ४३० ॥ अणुभागविसेसाओ मूलुत्तरपगइभेयकरणं तु । तुल्लस्सावि दलस्सा पयईओ गोणनामाओ॥ ४३१ ॥ ठितिबंधो दलस्स ठिई पएसबंधो पएसगहणं जं । ताण रसो अणुभागो तस्समुदाओ पगतिबंधो ॥ ४३२ ॥ मूलुत्तरपगईणं पुचि दल SCIENCECTORATECRENCE For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- भागसंभवो वुत्तो । रसमेएणं इत्तो मोहावरणाण निसुणेह ।। ४३३ ॥ सबुक्कोसरसो जो मूलविभागस्सणंतिमो भागो । सव्वघाईण अनुभागः | दिज्जइ सो इयरो देसघाईणं ॥४३४।। उकोसरसस्सद्धं मिच्छे अद्धं तु इयरघाईणं । सञ्जलणनोकसाया सेसं अद्धयं लेति ॥४३५।।। पञ्चसंग्रहे जीवस्सऽज्झवसाया सुभासुभाऽसंखलोगपरिमाणा । सबजियाणन्तगुणा एकेके होंति भावाणू ॥४३६॥ एकझवसायसमज्जियस्स कमप्रकृता दलियस्स किं रसो तुल्लो? । न हु होति णन्तभेया साहिज्जन्ते निसामेह ।। ४३७ । सव्वप्परसे गेण्हइजे बहवे तेहिं वग्गणा पढमा। II अविभागुत्तरिएहिं अन्नाओ विसेसहीणेहिं ॥ ४३८ ॥ दव्वेहि वग्गणाओ सिद्धाणमणन्तभागनुल्लाओ । एयं पढम फई अओं परं | नत्थि रूवहिया ॥ ४३९ ॥ दारं ॥ सबजियाणतगुणा पलिभागा लंघिउं पुणो अन्नो । एवं हवंति फडा सिद्धाणमणतभागसमा || ४४० ॥ एवं पढमं ठाणं एवमसंखज्जलोगठाणाणं । सममग्गणाणि फडाणि तेसिं तुल्लाणि विवराणि ॥ ४४१॥ ठाणाण परिवुड्डी छट्ठाणकमेण तं गयं पुब्धि । भागो गुणो य कीरति जहुत्तरं एत्थ ठाणाणं ॥ ४४२ ॥ छट्ठाणगअवसाणे अन्न छट्ठाणयं पुणो अनं । एवमसंखा लोगा छट्ठाणाणं मुणेयन्वा ।। ४४३ ॥ सव्वासिं बुडणं कंडगमेत्ता अणंतरा बुड्डी । एगंतरा उ वुड्डी वग्गो कंडस्स कंडं च ॥ ४४४ ॥ कंडं कंडस्स घणो वग्गो दुगुणो दुगंतराए उ । कंडस्स वग्गवग्गो घणवग्गा तिगुणिआ कंडं ॥४४५।। | अडकंड वग्गवग्गा वग्गा चत्तारि छग्घणा कंडं । चउअन्तरवुडीए हेदृट्ठाणपरूवणया ।। ४४६ ॥ परिणामपच्चएणं एसा णेहस्स|४ छव्विहा बुड्डी । हाणी व कुणंति जिया आवलिभागं असंखेज ॥४४७॥ अन्तमुहुत्तं चरिमा दोवि उ समयं तु पुण जहण्णणं । DIजवमझविहाणणं एत्थ विगप्पा बहुठिईया ।। ४४८ ॥ कलिदावरतेयकडजुम्मसन्निया होति रासिणो कमसो । एगाइसेसगा ॥२०॥ चउहियमि कडजुम्म इह सब्वे ॥ ४४९ ॥ सुहमगणिं पविसन्ता चिटुंता तेसि कायठितिकालो । कमसो असंखगुणिया तत्तो SECRECORRC । For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- र्षिकृते । पश्चसंग्रहे कमप्रकृती ॥३१०॥ अणुभागठाणाई। ४५० ॥ सव्वत्थोवा ठाणा अणंतगुणणाए जे उ गच्छति । तत्तो असंखगुणिया अंतरवुड्डीए जह हेट्ठा ॥४५॥ अनुभागः होंति परंपरवुड्डीए थोवगाणंतभागवुड्डा जे । अस्संखसंखगुणिआ एक दो दो असंखगुणा ॥ ४५२ ।। एगट्ठाणपमाणं अंतर ठाणा निरन्तरा ठाणा । कालो बुड्डी जवमझ फासणा अप्पबहु दारा ॥ ४५३ ॥ एकेकंमि असंखा तसेयराणतया सपाउग्गे । एगाइ | जाव आवलिअसंखभागो तसा ठाणे ।। ४५४ ॥ तसजुत्तठाणविवरेसु सुण्णया होति एकमाईआ । जाव असंखा लोगा निरन्तरा ४ | थावरा ठाणा ॥४५५॥ दो आइ जाव आवलि असंखभागो निरन्तरतसेहिं । नाणाजिएहिं ठाणं असुण्णय आवलिअसंखं ॥४५६॥14 जवमज्झम्मि य बहवो विसेसहीणाओ उभयओ कमसो । गंतुमसंखा लोगा अद्भुद्धा उभयओ जीवा ॥ ४५७ ॥ आवाल असंखभागं | तसेसु हाणीण होइ परिमाणं । हाणिदुगन्तरठाणा थावरहाणी असंखगुणा ॥ ४५८ ।। जवमज्झे ठाणाई असंखभागो उ सेसठा|णाणं । हेट्ठमि होंति थोवा उवरिमि असंखगुणियाणि ॥ ४५९ ॥ दुगचउरदृतिसमइग ससा य असंखगुणणया कमसो। कालेऽईए पुट्ठा जिएण ठाणा भमतणं ।। ४६० ॥ तत्तो विसेसअहियं जवमज्झा उवरिमाई ठाणाई । तत्तो कंडगहेट्ठा तत्तोवि हु सव्वठाणाई | | ।। ४६१ ।। फासणकालप्पबहू जह तह जीवाण भणसु ठाणेसु । अणुभागबन्धठाणा अज्झवसाया व एगट्ठा ॥ ४६२ ॥ ठितिठाणे ठिइठाणे कसायउदया असंखलोगसमा । एक्केक्ककसायुदए एवं अणुभागठाणाई ।। ४६३ ॥ थोवाणुभागठाणा जहण्णठितिपढमबंधहेउम्मि । तत्तो विसेसअहिया जाचरमाए चरमहेऊ ॥ ४६४॥ गंतुमसंखा लोगा पढमाहिंतो भवंति दुगुणाणि । आवलिअसंखभागो दुगुणठाणाण संवग्गो ॥ ४६५ ॥ असुभपगईणमेवं इयराणुक्कोसगम्मि ठिइबन्धे । सबुक्कोसगहेऊ उ होइ एवांचिय असेल.३१०॥ ॥४६६ ॥ थोवाणुभागठाणा जहण्णठितिबंध असुभपगईणं । समयबुड्डीए किंचि हियाई सुहियाण विवरीयं ॥ ४६७ ।। पलिया For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रपिंकृते पंचसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३१९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संखियमेत्ता ठितिठाणा गंतु गंतु दुगुणाई । आवलिअसंखमेत्ता गुणा गुणंतरमसंखगुणं ॥ ४६८ ॥ सव्वजहण्णठिईए सव्वाणवि आउगाण थोवाणि । ठाणाणि उत्तरासुं असंखगुणणाए सेटीए ॥ ४६९ ॥ गंठदिसे सण्णी अभब्वजीवस्स जो ठिईबंधो। ठिइबुड्डीए तस्स उ बन्धा अणुकड्डिओ तत्तो ॥ ४७० ॥ वग्गे वग्गे अणुकाड्ढे तिव्वमंदत्तणाई तुल्लाई । उवघाय घाइपयडी कुवण्णनवगं असुभवग्गो ।। ४७१ ॥ परघाय बन्धणतणू अंगसुवण्णाइतित्थनिम्माणं । अगुरुलहूसासतिगं संघाय छयाल सुभवग्गो ॥। ४७२ ।। सायं थिराइ उच्च सुरमणु दो दो पर्णिदि चउरंसं । रिसहपसत्थाविहगइ सोलस परियत्त सुभवग्गो || ४७३ || अस्सायथावदसं नरयदुगं विहगई य अपसत्था । पंचिदिरिसभचउरंसगेयरा असुभ घोलणिया ।। ४७४ ।। मोत्तुमसंखं भागं जहन्न ठिठाणगाण सेसाणि । गच्छति उवरिमाए तदक्कदेसेण अण्णाणि ।। ४७५ ।। एवं उवरिं हुत्ता गंतूणं कंडमेत्तठितिबंधा । पढमठितिट्ठणाणं अणुकड्डी जाइ परिणि ।। ४७६ ।। तदुरिम आइयासुं कमसो बीयाईयाण निडाइ । ठितिठाणाणणुकड्डी आउकस्सं ठिई जाव ॥ ४७७ ।। उबघायाईणेवं एसो परघायमाइसु विसेसो । उक्कोसठिईहितो हेडमुहं कीरइ असे ।। ४७८ ।। सप्पडिवक्खाणं पुण असायसायाइयाण पगईणं । ठावेत्थ ठिईठाणा अन्तोकोडीइ नियनियगा ॥। ४७९ ।। जा पडिवक्खक्कता ठिइओ ताणं कमो इमो होइ । ताणन्नाणि य ठाणा सुद्धठिईणं तु पुव्वकमो ॥। ४८० || मोण नीयमियराऽसुभाण जो जो जहन्नठितिबन्धो । नियपडिवखसुभाणं ठावेयब्बो जहणयरो || ४८१ ।। पडिवक्खजहन्नयरो तिरिदुगनीयाण सत्तममहीए । सम्मताईए तओ अणुकड्डी उभयवग्गे ।। ४८२ ।। अट्ठारस कोडीओ परघायकमेण तसचउक्केवि । कंडे निवत्तणकंडगं च पल्लस्सऽसंखंसो ॥ ४८३ ॥ जा निव्वत्तणकंडं जहण्णठितिपढमठाणगेहिंतो । गच्छंति उवरितं अनंतगुणणाए सेढीए । ४८४ ॥ तत्तो पढमठितीए उक्कोसं ठाणगं अनंतगुणं । तत्तो For Private and Personal Use Only अनुभागः ॥३११॥ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 25% श्रीचन्द्र | कंडग उवरिं आउकस्सं नए एवं ॥ ४८५ ॥ उकोसाणं कंडं अणन्तगुणणाए तभए पच्छा । उवधायमाइयाणं इयराणुकोसगाहिंतोकाअनुभाग र्षिकृते ॥४८६ ।। अस्सायजहण्णठिइठाणेहिं तुल्लयाई सब्वाणं । आपडिवक्खक्कंतगठिईण ठाणाई हीणाई ॥ ४८७ ॥ ततो अणंतगुणपञ्चसंग्रहे |णाए जति कंडस्स संखिया भागा | तत्तो अणंतगुणिय जहण्णठिति उकसं ठाणं ।। ४८८ ।। एवं उकस्साणं अर्णतगुणणाए कंडगे कर्मप्रकृतीत वयइ । एकं जहण्णठाणं जाइ परक्कंतठाणाणं ॥ ४८९ ।। उवरि उवघायसमं सायस्सपि नवरि उक्कसठिईओ। अंतसुवधायसम मझे ॥३१२॥ नीयस्स सायसमं ॥ ४९० ॥ संजयबायरसुहुमग पज्जअपज्जाण हीणमुकोसो । एवं विगलाऽसभिसु संजयउक्कोसगो बन्धो ॥ ४९१ ॥ देसदुगविरय चउरो सणीपंचन्दियस्स चउरो य । संखेज्जगुणा कमसो संजयउकोसगाहिंतो ॥ ४९२ ॥ थोवा जहन्नबाहा उक्कोसाबाहठाण कंडाणि । उक्कोसिया अबाहा नाणपएसन्तरा तत्तो ।। ४९३ ॥ एगं पएसविवरं आबाहाकण्डगस्स ठाणाणि । हीणठिई ठिइठाणा उकोसठिई तओ अहिया ॥ ४९४ ।। आउसु जहनवाहा जहन्नबन्धो अबाह ठाणाणि । उकोसबाह| णाणतराणि एगन्तरं तत्तो ॥ ४९५॥ ठितिबन्धट्ठाणाई उक्कोसठिई तओवि अब्भहिआ। सण्णिसु अप्पाबहुयं दसट्ठभेयं इमं भणिय ।। ४९६ ॥ ठिइठाणे ठिइठाणे अज्झवसाया असंखलोगसमा। कमसो विसेसअहिया सत्तण्हाउस्सऽसंखगुणा ॥ ४९७ ॥ पल्लासंखसमाओ गन्तूण ठिईइ होंति ते दुगुणा । सत्तण्हज्ज्झवसाया गुणगाग ते असंखज्जा ॥४९८॥ ठितिदीहयाए कमसो | असंखगुणणाए होंति पगईणं । अज्झवसाया आउगनामट्ठगदुविहमाहाणं ॥ ४९९ ॥ सव्वजहन्नस्स रसो अणंतगुणिओ य तस्स ॥३१२॥ उकोसो। ठितिबन्धे ठिइबन्धे अज्झवसाओ जहाकमसो ॥ ५०० ॥ धुवपगडी बन्धंता चउठाणाई सुभाण इयराण । दो ठाणगाइ तिविहं सट्ठाणजहन्नगाईसु ॥ ५०१॥ चउदुट्ठाणाइ सुभासुभाण बन्धे जहन्नधुवठिईसु । थोवा विसेसअहिया पुहुत्तपरओ विसेसूणा CRECOREAM S5644 For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र र्षिकृते | पञ्चसंग्रहे | कर्मप्रकृतो ॥३१३॥ | ॥ ५०२ ॥ पल्लाऽसंखियमृला गन्तुं दुगुणा हवन्ति अद्धा य । नाणा गुणहाणीणं असंखगुणमेगगुणविवर ।। ५०३ ॥ चउठाणाई-है। प्रकृति| जवमझ हेट्ठउवरिं सुभाण ठितिबन्धा । सखेज्जगुणा ठिइठाणगाई असुभाण मीसा य ॥ ५०४ ॥ इति बन्धनकरणम् ॥ संक्रमः ___अथ संक्रमकरणम् - बझंतियासु इयरा ताओवि य संकमंति अनोऽनं । जा संतयाए चिट्ठहि बंधाभावेवि दिट्ठीओ | ॥ ५०५ ॥ संकमइ जासु दलियं ताओ उ पडिग्गहा समक्खाया । जा संकमावलिय करणासझं भवे दलिय ॥ ५०६ ॥ नियनिय दिढेि न केइ दुइय तइज्जा न दंसणतिगंपि । मीसम्मिन सम्मत्तं दसकसाया न अभोमं ॥ ५०७॥ संकामति न आउं | उवसंतं तहय मूलपगइओ । पगइट्ठाणविभेया संकमणपडिग्गहा दुविहा ॥ ५०८॥ खयउवसमदिट्ठीणं सेढीए न चरिमलोभसंक| मणं । खवियदृगस्स इयराइ जंकमा होइ पंचण्हं ॥ ५० ॥ मिच्छे खविए मीसस्स नत्थि उभए वि नस्थि सम्मस्स । उबलिएK | दोसुं पडिगहया नस्थि मिच्छस्स ।। ५१० ॥ दुसु तिसु आपलियासुं समयविहीणासु आइमठिईए । सेसासु पुंसंजलणयाणं न भवे | पडिग्गहया ॥ ५११ ॥ धुवसंतीणं चउहेह संकमो मिच्छणीयवेयणीए । साईअधुवो बंधोच्च होइ तह अधुवसंतीणं ॥५१२ ॥ साअणजसदुबिहकसायसेसदोदसणाणजइपुब्बा । संकामगंत कमसो समुच्चाणं पढमदुइया ।। ५१३ ।। चउहा पडिग्गहरी धुवबंधीर्ण विहाय मिच्छत्तं । मिच्छाऽधुवबंधीणं साई अधुवा पडिग्गहया ।। ५१४ ॥ संतढाणसमाई संकमठाणाई दोण्णि बीयस्स | बंधसमा पडिगया अट्टहिया दो वि मोहस्स ॥ ५१५ ।। पण्णरस सोलसत्तर अडचउवीसा य संकम नत्थि । अदृद्वालस सोलस बीसा य पडिग्गहे नत्थि ।। ५१६ ॥ संकमणपडिग्गहया पढमतइज्जङमाण चउभेया । इगवीसो पडिगहगो पणवीसो संकमा मोहे ॥३१३॥ | ॥ ५१७॥ दंसणवरणे नवगो संकमणपडिग्गही भवे एवं । साई अधुवा सेसा संकमणपडिग्गहट्ठाणा ॥ ५१८ ॥ नवछक्कचउक्केसुं| For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कमप्रकृती प्रकृतिसंक्रमः ॥३१४॥ 45 नवगं संकमइ उक्समगयाणं । खवगाण चउसु छक्कं दुइए मोहं अओ वोच्छं ।। ५१९ ।। लोभस्स असंकमणा उव्वलणा खवणतो छ सत्तहँ । उवसंताणवि दिट्ठीण संकमासंकमा नेया ॥ ५२० ॥ आमीसं पणवीसो इगवीसो मीसगाओ जा पुग्यो। मिच्छखवगे दुवीसो मिच्छे य तिसत्तछब्बीसा ।। ५२१ ।। खवगस्स सबन्धच्चिय उवसमसेढीए सम्ममीसजुया। मिच्छखवगे ससम्मा अट्ठारस इय पडिग्गहया ।। ५२२ ।। दसगट्ठारसगाई चउचउरो संकमंति पंचंमि । सत्तड चउ दसिगारस बारसठारा चउक्कम्मि ॥ ५२३ ॥ तिनि तिगाईसत्तट्ट नव य संकममिगारस तिगंमि । दोसु छगट्ठदुपंच य इगि एक्कं दोणि तिण्णि पणा ॥५२४॥ पण|वीसो संसारिस इगवीसे सत्तरसे य संकमइ । तेरस चोइस छके वीसा छक्के य सत्ते य ।। ५२५ ।। बावीसे गुणवीसे पारसक्कार-12 सेसु छब्बीसा । संकमइ सत्तवीसा मिच्छे तह अविरयाईणं ॥ ५२६ ।। बावीसेगुणवीसे पण्णरसेक्कारसे य सत्ते य । तेवीसा संकमई मिच्छा विरयाइयाण कमा ।। ५२७ ॥ अट्ठारसचोदसदससत्तगेसु बावीस खीणमिच्छाणं । सत्तरस तेरनवसत्तगेसु इगवीस संकमइ ॥ ५२८ ॥ दसगाइ चउक्कं एकवीसखवगस्स संकमहि पंचे। दस चत्तारि चउक्के तिसु तिनि दु दोसु एकेकं ।। ५२९ ॥ | अट्ठाराइ चउकं पंच अट्ठार बार एकारा। चउसु इगारस नव अड तिगे दुगे अट्ठ छप्पंच ।। ५३०॥ पण तिण्णि दोणि एके उवसमसेढीए खइयदिहिस्स । इयरस्स उ दो दोसु सत्सु वीसाइ चत्तारि ।। ५३१ ।। छसु वीस चोदतेरस तेरेकारस य दस य पंचम्मि । दस अड सत्त चउक्के तिगम्मि सग पंच चउरो य ।। ५३२ ॥ गुणवीस पन्नरेक्कारसाइ तिति सम्मदेसविरयाणं । सत्त पणाइ छ पंच उ पडिग्गहा उभयसेढीसु ।। ५३३ ।। पढमचउकं तित्थयरवज्जियं अधुवसंततियजुत्तं । तिगपणछब्बीसेसु संकमइ | पडिग्गहेसु तिसु ॥ ५३४ ।। पढम संतचउकं इगतीसे अधुवतिगजुअंतं तु । गुणतीसतीसएमुं जसहीणा दो चउक्क जसे ॥ ५३५ ॥ R555 ॥३१ For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थितिसंक्रमः श्रीचन्द्र- पढमचउकं आइल्लवज्जियं दो अणिच्च आइल्ला । संकमहि अट्ठवीसे सामी जहसंभवं नेया ॥ ५३६ ॥ संकभइ नन्नपगई पगईओ पिकृते पगइसंकमे दलियं । ठितिअणुभागा चेवं ठंति तहत्था तयणुरूवं ।। ५३७ ॥ दलियरसाणं जुत्तं मुत्तत्ता अन्नभावसंकमणं । ठितिपंचसंग्रहेलिकालस्सन एवं उउसंकमणंपिव अदुटुं॥ ५३८ ।। इति प्रकृतिसंक्रमः॥ उव्वट्टणं च ओवट्टणं च पगईतरम्मि वा नयणं । बंधे व अबन्धे वा जे संकामो इइ ठिईए ॥ ५३९ ।। जासिं बन्धनिमित्तो उकोसो बन्ध मूलपगईणं । ता बन्धुक्कोसाओ सेमा पुण संकमुक्कोसा ॥ ५४० ॥ बन्धुकोसाण ठिई मोत्तुं दो आवलीए | संकमइ । सेसा इयराणं पुण आवलियतिगं पमोत्तणं ।। ५४१ ॥ तित्थयराहाराण संकमणे बन्धसन्तएसुपि । अन्तो | कोडाकोडी तहावि ता संकमुकोसा ।। ५४२ ।। एवइयसंतया जे सम्मद्दिट्ठीण सम्बकम्मेसु । आऊणि बन्धुकोसगाणि जे ननसंकमणं ॥ ५४३ ॥ गंतुं सम्मो मिच्छं तस्सुक्कोसं ठिई च काऊग । मिच्छियराणुकोसं करेति ठितिसंकर्म सम्मो ॥ ५४४ ॥ अंतो| मुहुत्तहीणं आवलियदुहीण तेसु सट्ठाणे । उक्कोससंकमपहू उक्कोसगबन्धगन्नासु ।। ५४५॥ बन्धुकोसाणं आवलिए आवलिदुगेण इयराण । हीणा सव्वावि ठिई सो जटिइसकमो भणिओ ।। ५४६ ॥ साबाहा आउठिई आवलिगूणा उ जट्टि इसठाणे । एका ठिई जहन्नो अणुदइयाणं नियसेसा ॥ ५४७ ।। जो जो जाणं खवगो जहनठिइसकमस्स सो सामी । सेसाणं तु सजोगी अंतमुहुत्तं जओ तस्स ।। ५४८ ॥ उदयावालिए छोभो अन्नपगईए जो उ अतिमओ। सो संकमो जहनो तस्स पमाण इमं होइ ।। ५४९ ।। संजलणलोभनाणंतरायदंसणचउक्कआऊणं । सम्मत्तस्स य समओ सगआवलियातिभागम्मि ॥ ५५० ॥ खविऊण मिच्छमीसे मणुओ सम्मंमि खविय सेसम्मि । चउगईओवि उ होउं जहन्नठिति संकमस्सामी ॥५५१ ॥ निदादुगस्स साहिय आवलियदुर्ग ॥३१५॥ For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंकृते श्रीचन्द्र- तु साहिए तंसे । हासाईणं संखेज्ज बच्छरा ते य कोहम्मि ॥ ५५२ ॥ पुंसंजलणाण ठिई जहाणया आवलिदुगेणूणा | अंतो जोग- 11 | तीणं पलियासंखंस इयराणं ।। ५५३ ।। मूलठिईण अजहण्णा सत्तह तिहा चउव्विहो माहे। सेसविगप्पा साईअधुवा ठितिसंकमेल पञ्चसंग्रह होति ।। ५५४ ॥ तिविहो धुवसंतीणं चउव्विहो तह चरित्तमोहाणं । अजहमो सेसासुं दुविहा सेसावि दुविगप्पा ॥ ५५५ ॥ कर्मप्रकृती इति स्थितिसंक्रमः ॥३१६॥ | ठितिसंकमोव्व तिविहो रसंमि उबट्टणाई विबेओ । रसकारणओ नेयं घाइत्तविसेसणऽभिहाणं ॥५५६॥ देसग्घाइरसणं पग ईओ होंति देसघाईओ । इयरेणियरा एमेव ठाणसम्मावि नेयव्वा ।। ५५७ ॥ सव्वघाई दुठाणो मीसायवमणुयतिरियआऊणं । इग दुट्ठाणो सम्मम्मि तदियरोऽबासु जह हेट्ठा ॥ ५५८ ॥ दुट्ठाणो चिय जाणं ताणं उक्कोसओवि सो चेव । संकमइ वेयगेवि हु ★ासेसासुकोसओ परमो ।। ५५९ ।। एगट्ठाणजहवं संकमइ पुरिससम्मसंजलणे | इयरामुं दोठाणिय जहन रससंकमे फडं ।। ५६०।।* बंधिय उक्कोसरसं आवलियाओ परेण संकामे । जावंतमुहू मिच्छो असुभाणं सव्वपयडीणं ।। ५६१ । आयात्रुज्जोवोरालपढमसंघयणमणुदुगाऊणं । मिच्छसम्मा य सामी सेसाण जोगि सुभियाणं ॥ ५६२ ॥ खवगस्संतरकरणे अकए घाईण जो उ अणुभागो। तस्स अणंतो भागो सुहुमेगिदिय कए थोवो ।। ५६३ ।। सेसाणं असुभाणं केवलिणो जो उ होइ अणुभागो। तस्स अणंतो भागो | असण्णिपंचिदिए होइ ॥ ५६४॥ सम्मदिट्ठी न हणइ सुभाणुभागं दुवेवि दिहोणं । सम्मत्तमीसगाणं उकोसं हणइ खवगोवि ॥३१६॥ ॥ ५६५ ।। घाइणं जे खवगा जहण्णरससंकमस्स ते सामी । आऊण जहण्णठिईबन्धाओ आवली सेसा ॥ ५६६ ॥ अणतित्थुव्वलणाणं संभवणा आवलीइ परएणं । सेसाणं इगि सुहुमो घाइयअणुभागकम्मंसो ॥ ५६७ ।। साइयवज्जो अजहण्णसंकमो पढमदुइय सलमान RARY - -- For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie श्रीचन्द्र- % % पञ्चसंग्रहे कमप्रकृती ॥३१७॥ % % चरिमाणं । मोहस्स चउविगप्पो आउस्सऽणुकोसओ चउहा ॥ ५६८ ॥ साइयवज्जो वेयणियनामगोयाण होइ अणुकोसो। सव्वेसु। प्रदेश संक्रमः | सेसभेया साई अधुवा य अणुभागे ।। ५६९ ॥ अजहन्नो चउभेओ पढमगसंजलणनांकसायाणं । साइयवज्जो सोच्चिय जाण खवगो | | खवियमोहो ॥ ५७० ॥ सुभधुवचउवीसाए होइ अणुकोस साइपरिवज्जो । उज्जोयरिसभओरालियाण चउहा दुहा सेसा ॥ ५७१ ॥ | इति रससंक्रमः | विज्झाउव्वलणअहापवत्तगुणसव्वसंकमेहि अणू । जन्नेह अण्णपगई पएससंकामणं एयं ॥ ५७२ ॥ जाण न बन्धो जायइ आसज्ज गुणं भवं च पगण । विज्झाओ ताणंगुलअसंखभागेण अन्नत्थ ॥ ५७३ ।। पलियस्सऽसंखभाग अंतमुहुत्तेण ठिइइ उव्वलइ । एवं पलियासंखियभागेणं कुणइ निल्लवं ।। ५७४ ॥ पढमाओ बीयखंड विसेसहीण ठिईए अवणेइ । एवं जाव दुचरिमं असंखगुणियं तु | अंतिमयं ॥ ५७५ ।। खंडदलं सट्ठाणे समए समए असंखगुणणाए। सेढीए परठाणे विसेसहीणाए संछुभइ ।। ५७६ ॥ दुचरिम| खडस्स दलं चरिमे जं देइ सपरठाणम्मि । तम्माणेणऽस्स दलं पल्लंगलऽसंखभागेहिं ।। ५७७ ॥ एवं उब्बलणासंकमेण णासइ अवि-18 रओ हारं । सम्मोऽणमिच्छमीसे छत्तीस नियट्टि जा माया ॥ ५७८ ॥ सम्ममीसाई मिच्छो सुरदुगवेउबिछक्कमेगिदी। सुहुमतसुच्चमणुदुर्ग अंतमुहुत्तेण अनिअट्टी ॥ ५७९ ॥ संसारत्था जीवा सबन्धजोगाण तद्दलपमाणा । संकामंतऽणुरूवं अहापवत्तीए तो नाम ॥ ५८० ॥ असुभाण पएसग्गं बझंतीसु असंखगुणणाए । सेढीए अपुयाई छुभन्ति गुणसंकमो एसो ॥ ५८१ ।। चरमठिईए| रइयं पइसमयमसंखियं पएसग्गं । ता छुभइ अन्नपगई जावते सब्बसंकामो ॥ ५८२ ।। बाहिय अहापवत्तं सहेउणाहो गुणो वा विज्झाओ । उव्वलणसंकमस्सवि कसिणो चरमम्मि खंडम्मि ।। ५८३ ॥ पिंडपगईण जा उदयसंगया तीए अणुदयगयाओ । संका % % For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३१८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिऊण वेयइ जं एसो थियुगसंकामो || ५८४ | गुणमाणेणं दलिअं हीरन्तं थोवरण निट्ठाइ । कालोऽसंखगुणेणं अह विज्झाउव्वलणगाणं ।। ५८५ ॥ जं दुरिमस्स चरिमे सपरट्ठाणेसु देइ समयम्मि । ते भागे जहकमसो अहापवत्तुव्वलणमाणे ।। ५८६ ।। चउहा ध्रुव छव्वीस सयस्स अजहन्न संकमो होइ । अणुकोसोविद्दु वज्जिय ओरालावरणनवविग्धं ॥ ५८७ || सेसं साई अधुवं जहन्न सामी य खवियकम्मंसो । ओरालाइसु मिच्छो उक्कोसस्सा गुणियकम्मो ॥ ५८८ ।। बायरतसकालूगं कम्मठिई जो उ बारपुढवीए । पज्जत्तापज्जत्तगदीहेयर आउगो बसिउं ॥ ५८९ || जोगकसाउकोसो बहुसो आउं जहन्नजोगेण । बन्धि उवरिल्लासुं ठिइसु निसगं बहु किच्चा || ५९० ।। बायरतसकालमेवं वसित्तु अंत य सत्तमखिईए । लहु पज्जत्तो बहुसो जोगकसायाहिओ होइ ॥ ५९९ || जोगजवमज्झ उवीरं मुहुत्तमच्छित्तु जो विअवसाणे । तिचरिमदुचरिमसमए पूरितु कसायमुकोसं ।। ५९२ ।। जोगुकोसं दुरिमे चरिमसमए उ चरिमसमयम्मि | संपुन्नगुणियकम्मो पगयं तेणेह सामित्ते ॥ ५९३ ॥ तत्तो तिरियागय आलिगोवरिं उरलएकवीसाए । सायं अनंतर बन्धिऊण आलीपरमसाए || ५९४ ॥ कम्मचउके असुभाण बज्झमाणीण सुडुमरागन्ते । संछोभणम्मि नियगे चवीसाए नियट्टिस्स ।। ५९५ ।। संछोभणाए दोहं मोहाणं वेयगस्त खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छतगए तमतमाए ।। ५९६ ।। भिन्नमुहुत्ते सेसे जोगकसाउकसाई काऊण । संजोअणाविसंजोयगस्स संछोभणा एसि ।। ५९७ ॥ ईसाणा गयपुरिसस्स इत्थियाए व अट्ठवासाए । मासपुडुत्तन्भहिए नपुंसगे चरिमसंछोभो ।। ५९८ ।। पूरितु भोगभूमीसु जीविय वासाणि संखयाणि तओ । हस्सठिई देवागय लहुछोभे इथिवेयस्स ।। ५९९ ।। वरिसवरिस्थि पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लभिय । गन्तुं मिच्छत्तमओ जहन्नदेवहिं भोच्चा ।। ६०० || आगन्तुं लहु पुरिसं संछुभमाणस्स पुरिसवेअस्स । तस्सेव सगे कोहस्स माण For Private and Personal Use Only प्रदेशसंक्रमः ॥३१८॥ Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रद श्रीचन्द्र- मायाणमपि कसिणो ॥ ६०१॥ चउरुवसमित्तु खिप्पं लोभजसाणं ससंकमस्संते । चउसमगो उच्चस्सा खवगो नीया चरिमबन्धे में पिंकृते । संक्रमः ॥ ६०२ ॥ परघायसकलतसचउसुसरादितिसासखगतिचउरंसं । सम्मधुवा रिसमजुया संकामइ विरचिया सम्मो ॥६०३ ॥ पंचसंग्रह नरयदुगस्स विछोभे पुचकोडीपुहुत्तनिचियस्स । थावरउज्जोयायवएगिदाणं नपुंससमं ।। ६०४ ॥ तेत्तीसयरा पालिय अंतमुहुत्तूणकमप्रकृती गाई सम्मत्तं । बन्धित्तु सत्तमाओ निग्गमसमए नरदुगस्स ॥ ६०५॥ तित्थयराहाराणं सुरगइनवगस्स थिरसुभाणं च । सुमधुवकाबन्धीण तहा सगवन्धा आलिगं गन्तुं ।। ६०६ ॥ सुहमेसु निगोएसं कम्मठिति पलियऽसंखभागणं । वसिउ मंदकसाओ जहन्नम जागो उ जो एह ।। ६०७॥ जोग्गेम तो तसेसु सम्मत्तमसंखवार संपप्प । देसविरहं च सव्वं अगउचलणं च अडवारा ॥ ६०८॥13 चउरुवसमित्तु मोहं लहुं खतो भवे खवियकम्मो । पाएण तेण पगयं पडुच्च काओवि सविसेस ॥ ६०९॥ हासदुभयकुच्छाणं खीणताण च बन्धचरिमम्मि । समए अहापवत्तेण ओहिजुगले अणोहिस्स ॥६१० ॥ थीणतिगइस्थिमिच्छाणं पालिय बे छसट्टिा: | सम्मत्तं । सगखवणाए जहन्नो अहापवत्तस्स चरमम्मि ॥ ६११ ॥ अरइ सोगट्टकसाय असुमधुवबन्धिअथिरतियगाणं । अस्सायस्साल. य चरिमे अहापदत्तस्स लहु खवगे ॥ ६१२ । हस्सद्धं गुण पूरिय सम्म मीसं च धरिय उक्कोस । कालं मिच्छत्तगए चिरउव्वलगस्स चरिमम्मि ॥ ६१३ ।। संजोयणाए चउरुवसमित्तु संजोयइत्तु अप्पद्धं । छावट्ठिदुगं पालिय अहापयत्तस्स अंतम्मि ॥ ६१४ ।। हस्सं | कालं बंधिय विरओ आहारमविरई गन्तुं । चिरउव्वलणे थोवा तित्थं बन्धालिगा परओ ॥ ६१५॥ वेउधिकारसग उन्वलियं बन्धिऊण अप्पळ् । जेहितिनारयाओ उचट्टित्ता अबन्धित्तुं ॥ ६१६ ॥ थावरगसमुव्वलणे मणुदुगउच्चाण सुहुमबद्धाणं । एमेव | समुन्बलणे तेऊबाऊसुवगयस्स ।। ६१७ ॥ अणुवसमित्ता मोहं सायस्स असायअंतिमे बन्धे । पणतीसाए सुभाणं अमुबकरणालि CSCARSCRX For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %AN श्रीचन्द्र-1 | गाअंते ॥ ६१८ ॥ तेवढे उदहिसयं गेविज्जाणुत्तरे अबन्धित्ता । तिरिदुग उज्जोयाई अहापवत्तस्स अन्तम्मि ॥ ६१९ । इगिवि-18 उद्वत्तनार्षिकृते | गलायवथावरचउक्कमबन्धिऊण पणसीयं । अयरसयं छट्ठीए बावीसयरे जहा पुव्वं ।। ६२० ।। दुसराइतिनिनीयासुभखगइसंघयणसं पवत्तने पञ्चसंग्रहे | ठिअपुमाणं । सम्मा जोगाणं सोलसह सरिसस्थिवेएणं ॥६२१ ॥ समयाहिआवलीए आऊण जहन्नजोगबद्धाणं । उक्कोसाऊअंते कर्मप्रकृतौल | नरतिरिया उरलसत्तस्स ॥ ६२२ ।। पुंसंजलणतिगाणं जहन्नजोगिस्स खवगसेढोए । सगचरिमसमयबद्धं जं छुमइ सगतिमे समए ॥३२०॥ ॥ ६२३ ।। संक्रमकरणं समाप्तम् ॥ अथ उद्वर्तनाऽपवर्त्तनाकरणम् - उदयावलिबज्झाणं ठिईण उबट्टणा उ ठितिविसया । सोकोसअबाहाओ जावावलि होइऽइत्थवणा ॥ ६२४ ॥ इच्छियठितिठाणाओ आवलियं लंघिऊण तद्दलियं । सम्धेसु विनिक्खिप्पइ ठितिठाणेसुं उबरिमेसु | M॥ ६२५ ।। आवलिअसंखभागासु जाव कम्मद्वितित्ति निक्खेवो । समउत्तरावलीए साबाहाए भवे ऊणो।। ६२६ ॥ अब्बाहोवरि-1 | ठाणगदलं पडुच्चेह परमनिक्खेवो । चरिमुन्वट्टणठाणं पडच्च इह जायइ जहण्णो ।। ६२७ ॥ उक्कोसगठितिवन्धे बन्धावलिया अबाहमेत्तं च । निक्खेवं च जहन्नं मोत्तुं उबट्टए सेसं ॥ ६२८ ॥ निवाघाए एवं वाघाओ संतकम्महिगवन्धो । आवलिअसंखभागा जावावलि तत्थाइत्थवणा ।। ६२९ । आवलिदोसंखंसा जति वड्इ अहिणवो उ ठितिबन्धो । उव्वद्दति तो चरिमा एवं जावलिय अइत्थवणा ।। ६३० ॥ अइत्थावणालियाए पुण्णाए वड्डइत्ति निक्खेवो । ठितिउबट्टणमेवं एत्तो ओव्वट्टणं वोच्छं ४ ॥३२॥ | ॥ ६३१ ॥ ओवÉतो उ ठिीत उदयावलिबाहिरा ठिईठाणा । निक्खिवति से तिभाग समयहिगे लंघिउं सेस ॥ ६३२ ॥ उदयावलि उवरित्था एमेवोवट्टए ठितिढाणा | जावावलीतिभागो समयहिगो सेसठितिण तु ॥ ६३३ ।। इच्छोवद्गृणठिइठाणगाओ उल्लंघिऊण For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रपिंकृते पंचसंग्रहे कमप्रकृतो ॥३२१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवलियं । तद्दालियं निक्खिवई अह ठितिठाणेसु सव्र्व्वसु ।। ६३४ ॥ उदयावलिउवरित्थं ठाणं अहिकिच्च होइ अइहीणो । निक्खेवो सव्वोवरि ठिठाणवसा भवे परमो ॥ ६३५ ।। समयाहियऽइत्थवणा बन्धावलिया य मोत निक्खेवो । कम्मठिई बन्धोदय आवलिये मोतु ओढे ।। ६३६ || निव्वाघाए एवं ठितिघाओ एत्थ होइ वाघाओ । वाघाए समऊगं कंडगमइथावणा होइ ।। ६३७ ।। उक्कोसं डायटिई किंचूणा कंडगं जहण्णं तु । पल्लासंखस डायठिईउ जत्त परमबन्धो || ६३८ || चरमं नोवट्टिज्जइ जाव अणंताणि फड्डगाणि तओ । उस्सक्किय उव्बट्टइ उदया ओवट्टणा एवं ।। ६३९ ।। अइत्थावणाइयाओ सन्नाओ सुविपुववृत्ताओ । किंतु अणतभिलावेण फडगा तासु वत्तव्या ।। ६४० ॥ थोवं पएसगुणहाणि अंतरे दुसुवि हीणानक्खेवो । तुल्लो अनंतगुणिओ दुवि अइत्थावणा चैवं ।। ६४१ ।। तत्तो वाघायणुभागकंडगं एकत्रग्गणाहीणं । उकोसो निक्खेचो तुल्लो सविसेससंतं च ।। ६४२ ॥ आबन्धं उब्वट्टइ सव्वत्थोवट्टणा ठितिरसाणं । किट्टीवज्जे उभयं किट्टिस ओवट्टणा एक्का || ६४३ ॥ इति उद्वर्त्तनाऽपवर्त्तने ॥ अथ उदीरणा - जं करणेणोकाड्डय दिज्जड उदए उदीरणा एसा । पगइ ठिइमाइ चउहा मूलुत्तरभेयओ दुविहा ।। ६४४ ॥ वेयणियमोहणीयाण होइ चउहा उदीरणाउस्स । साई अधुवा सेसाण साइवज्जा भवे तिविहा ।। ६४५ ।। अधुवोदयाण दुविहा मिच्छस्स चउव्विहा तिहन्नासु । मृलुत्तरपगईणं भणामि उदीरगा तो || ६४६ ।। घाईणं छउमत्था उदीरगा रागिणो उ मोहस्स । | वेयाऊण पमत्ता सजोगिणो नामगोयाणं ॥ ६४७ ॥ उवपरघायं साहारणं च इयरं तणूए पज्जत्ता । छउमत्था चूउदंसणनाणावरणंतरायाणं ॥ ६४८ ।। तस्थावराइ तिगतिगआउगईजातिदिट्टिवेयाणं । तन्नामणुपुब्वणिपि किंतु ते अंतरगईए ॥ ६४९ ॥ आहारी उत्तरतणुनतिरितव्वेयए पमोत्तूर्णं । उद्दीरंती उरलं ते चैव तसा उवंग से ॥ ६५० ।। आहारी सुरनारगसन्नी इयरे For Private and Personal Use Only प्रकृत्यु दीरणा ॥३२१ ॥ Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- पिंकृते पञ्चसंग्रहे। प्रकृत्युदीरणा कमग्रकृता ॥३२२॥ निलो उ पज्जत्तो । लद्धीए बायरोदीरगो उ बउब्बियतणुस्स ॥ ६५१॥ तदुवंगस्सावि तेच्चिय पवणं मोत्तूग केइ नरतिरिया । आहारसत्तगस्सवि कुणइ पमत्तो विउर्वतो ।। ६५२ ॥ तेत्तीस नामधुवोदयाण उद्दीरगा सजोगाओ । लोभस्स य तणुकिट्टीण होंति | तणुरागिणो जीवा ।। ६५३ ॥ पंचेदियपज्जत्ता नरतिरि चउरंस उसभपुवाणं । चउरंसमेव देवा उत्तरतणुभोगभूमा य ॥ ६५४ ॥ आइमसंघयणं चिय सढीमारूढगा उदीरेंति । इयरे हुंडं छेवढगं तु विगला अपज्जत्ता ।। ६५५ ।। वेउब्धियाहारगउदये न नरा| वि होंति संघयणी । पज्जत्त बायरोच्चिय आयाबुद्दीरगो भोमो ।। ६५६ ।। पुढवी आउवणस्सइ बायरपज्जत्तउत्तरतणू य । विग लपणिदियतिरिआ उज्जोवुद्दीरगा भणिया ।। ६५७ ।। सगला सुगतिसराण पज्जत्ताऽसंखवासदेवा य । इयरार्ण गरइया नरतिार। | सुसरस्स विगला य ।। ६५८ ॥ उस्सासस्स सरस्स य पज्जत्ता आणपाणभासासु । जान निरंभइ ते ताव होंति उद्दीरगा जोगी ।। ६५९ । नेरइआ सुहुमतसा वज्जिय सुहमा य तह अपज्जत्ता । जसकीत्तुदीरगाएज्जसुभगनामाण सण्णिसुरा ।। ६६० ।। उच्च चिय जइ अमरा केई अणुआ व नीयमेवण्णे । चउगइआ दुभगाई तित्थयरी केवली तित्थं ।। ६६१ ।। मोत्तूण खीणरागं इंदियपज्जत्तगा उदीरेंति । निद्दा पयला सायासायाई जे पमत्तत्ति ॥ ६६२ ।। अपमत्ताई उत्तरतणू य अस्संखया उ वज्जित्ता । सेसनिदाण सामी सबंधगंता कसायाणं ।। ६६३ ॥ हासरईसायाण अन्तमुहुत्तं तु आइम देवा। इयराणं नेरइया उर्दु परियत्तणविहीए ॥ ६६४ ।। हासाइछक्कस्स उ जाव अपुब्यो उदीरगा सब्वे । उदउबुदीरणाए ओघणं होइ नायब्वो ॥ ६६५ ॥ पगईठाणविगप्पा जे सामी होति उदयमासज्ज । तेच्चिय उदोरणाए नायब्धा घातिकम्माणं ।। ६६६ ॥ मोत्तुं अजोगिठाण सेसा नामस्स उदयवनेया । गोयस्स य सेसाण उदीरणा जा पमत्तोत्ति ।। ६६७॥ इति प्रकृत्युदीरणा ।। ॥३२२॥ For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थित्युदीरणा श्रीचन्द्र-11 अथ स्थित्युदीरणा-पत्तोदयाए इयरा सह वेयइ ठिइउदीरणा एसा । बेआवलियाहीणा जावुक्कोसत्ति पाउग्गा पिकृत ॥ ६६८ ।। वेयणियाऊण दुहा चउन्विहा मोहणीय अजहण्णा । पंचण्ह साइ वज्जा सेसा सब्बेसु दुविगप्पा ॥ ६६९ ॥ मिच्छपञ्चसंग्रहे | तस्स चउद्धा धुवोदयाणं तिहा उ अजहण्णा । सेसविगप्पा दुविहा सव्वविगप्पा उ सेसाण ।। ६७० ॥ सामित्तद्धाछेया इह ठिइ | संकमेण तुल्लाओ । बाहुल्लेण विसेसं जं जाणं ताण तं वोच्छं ॥६७१ ॥ अंतोमुहत्तहीणा सम्म मिस्संमि दोहि मिच्छस्स । ॥३२३॥ आवलिवुगेण हीणा बन्धुकोसाण परमठिई ।। ६७२ ॥ मणुयाणुपुधिआहारदेवदुगसुहमविगलतियगाणं । आयावस्स य परिवड णमंतमुहुहीणमुकोसा ॥ ६७३ ।। हयसेसा तित्थठिई पल्लासंखेज्जमेत्तिया जाया। तीसे सजोगिपढमे समए उद्दीरणुकोसा ॥ ६७४ ।। भयकुच्छआयवुज्जोयसव्वघाईकसायनिहाण । अतिहीणसंतबन्धो जहण्णउद्दीरगो अतसो ॥ ६७५ ॥ एगिदियजोगाणं पडिवक्खा बंधिऊण तव्वेई । बन्धालिचरमसमए तदागए सेसजाईणं ॥ ६७६ ॥ दुभगाइणीयतिरिदुगअपढमसंघयण| नोकसायाणं । मणुपुवऽपज्जतइए सन्निस्सेवं इगागयगे ॥ ६७७ ॥ अमणागयस्स चिरठिइते देवस्स नारयस्सा वा । वेउव्वं| गगईणं अणुपुवीण तइयसमये ॥ ६७८ ।। वेयतिगं दिहिदुगं संजलणाणं च पढमगठितीए। समयाहिगालियाए सेसाए उवसमे| वि दुसु ॥ ६७९ ।। एगिंदागय अइहीणसंत सण्णी मीस उदयंते । पवणो सठिइजहण्णग समसंत विउब्वियस्संते ॥ ६८० ॥ चउरुवसमित्तु मोहं मिच्छं खविउं सुरोत्तमो होउं । उक्कोससंजमते जहण्णगाहारगदुगाणं ॥ ६८१ ॥ खीणताणं खीणे मिच्छत्तक- मेण चोद्दसई पि । सेसाण सजोगते भिन्नमुहुत्तट्टिईगाणं ।। ६८२ ॥ इति स्थित्युदीरणा ।। CERIES RDC REACTERROR ॥३२३॥ For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रपिंकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३२४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ रसोदीरणा - अणुभागुदीरणाए घाईमण्णा य ठाणसष्णाय । सुभया विवागहेऊ जोऽत्थ विसेसो तयं वोच्छं ॥ ६८३ ॥ पुरिसित्थिविग्धअचक्खु चक्खुसम्माणइगिठाणे वा । मणपज्जनपुंसाणं वच्चासो सेस बन्धसमा ||६८४|| देसोवघाइयाणं उद देसो व होइ सब्वो वा । देसोवघायओ च्चिय अचक्खुसम्मत्तविग्वाणं ||६८५ || घायं ठाणं च पडुच्च सव्वधारण होइ जह बन्धे । अग्घाईणं ठाणं पडुच्च भणिमो विसेसोत्थ ।। ६८६ ॥ थावरचआयवउरलसत्तत्तिरिविगलमणुयतियगाणं । नग्गोहाइ चउन्हें इगिदिउसभाइछपि ॥ ६८७ ॥ तिरिमणुओगाणं मीसगुरुयखरनरयदेवपुब्वणिं । दुट्ठाणिउ च्चिय रसो उदए उदीरणाए य ।। ६८८ ॥ सम्मत्तमसिगाणं असुभरसो सेसयाण बन्धुतं । उक्कोसुदीरणा संतयंमि छट्टाणवडिएवि ।। ६८९ ।। मोहणियनाणवरणं केवलियं दंसणं विरयविग्धं । संपुत्रजीवदच्वे न पज्जवेसुं कुणइ पार्क ॥ ६९० ॥ गुरुलहूगाणंतपएसिएस चक्खुस्स सेसविग्घाणं । जोग्गेसु गहणधरणे ओहीणं रूविदव्वे ॥ ६९१|| साणं जह बन्धे होइ विवागो उ पच्चओ दुविहो । भवरिणामकओ वा निग्गुणसगुणाण परिणइओ ।। ६९२ ।। उत्तरतणुपरिणामे अहिय अहतावि हुंति सुसरजुया । मिउलहुपरघा उज्जोव खगड़चउरंस पत्तेया ।। ६९३ || सुभगाइ उच्चगोयं गुणपरिणामा उ देसमाईणं । अइहीणफडगाओऽणतंसो नोकसायाणं ।। ६९४ ।। जा जम्मि भवे नियमा उदीरए ताओ भवनिमित्ताओ । परिणामपच्चयाओ सेमाओ सई स सव्वत्थ ।। ६९५ ।। तित्थयरं घाईणि य आसज्ज गुणं पूहाणभावेण । भवपच्चइआ सव्वा तहेव परिणामपच्चइया ।। ६९६ ।। वेयणीएणुककोसा अजहण्णा मोहणीए चउभेया । सेसघाईण तिविहा नामागोयाण णुक्कोसा ।। ६९७ || सेसविगप्पा दुबिहा सच्चे आउस्स होउमुवसंतो। सव्वगओ | साए उक्कोसुद्दीरणं कुणइ ।। ६९८ ।। कक्खडगुरुमिच्छाणं अजहण्णा मिउलहूणऽणुक्कोसा । चउहा साइयवज्जा वीसा धुवोदय For Private and Personal Use Only रसोदीरणा ॥३२४॥ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org अनुभागोदीरणा श्रीचन्द्र- सुभाण ॥ ६९९ ॥ अजहण्णा असुभ धुवोदयाण तिबिहा भवे तिवीसाए । साई अधुवा सेसा सव्वे अधुवोदयाणं तु ।। ७००॥ पिकते दाणाइ अचक्खूणं उक्कोसाइम्मि हीणलद्धिस्स । मुहुमरस चक्खुणो पुण तिइंदिए सव्वपज्जत्ते ॥ ७०१ ॥ निदाणं पंचण्हवि मज्झि- पञ्चसंग्रहे | मपरिणाम सकिलिट्ठस्स । पण नोकसायऽसाये नरए जेट्ठिति समत्तो ।। ७०२ ।। सम्मत्तीसगाणं सेकाले गाहहितित्ति मिच्छत्तं । कर्मप्रकृती हासरइणं पज्जत्तगस्स सहसारदेवस्स ।। ७०३॥ पंचिंदी तसवायर पज्जत्तगसायमुस्सरगईणं । वेउब्बुस्सासस्स य देवो जेट्ठट्ठिति | | सहसारदेवस्स ।। ७०४ ॥ गइहंडुवघायाणिदुखगतिदुभगाइ (चउ) नायगोयाणं । रइओ जेदुठिई मणुओ अंते अपज्जन्स ॥७०५।। ॥३२॥ | कक्खडगुरुसंघयणाथी' संठाणतिरिगईणं च । पंचिंदिओ तिरिक्खो अट्ठमवासेऽट्ठवासाऊ ॥ ७०६ ॥ तिगपलियाउ समत्तो | मणुअगतिउसभउरलसत्ताणं । ( मणुओ मणुयगइउसभउरलार्ण पाठांतरं ) पज्जत्ता चउगइआ उक्कोससगाउयाणं तु ॥ ७०७ ॥ हस्सठिईपज्जत्ता तन्नामा विगलजाइसुहुमाणं । थावरानगोअएगिदिआणमिह वायरा नवरि ।। ७०८ ॥ आहारतणु पज्जत्तगो य चउरंसमउयलढ्याणं । पत्तेयखगइपरथाय तइयमुत्तीण य विसुद्धो ॥ ७०९॥ उत्तरखेउबिजई उज्जोवस्सायवस्स खरपुढवी ।।3 नियगगइणं भणिया तइए समएऽणुपुब्बीण ॥ ७१० ॥ जोगते सेसाण सुभाणमियराण चउसुवि गईसु । पज्जत्तुकडमिच्छे सुलद्धि होणेसु ओहीणं ।। ७११॥ सुयकेवलिणो महसुयचक्खुअचक्खूणुदीरणा मंदा । विपुलपरमोहिगाणं मणनाणोहीदुगस्सावि।। ७१२॥ * खवगम्मि विग्यकेवलसंजलणाणं सनोकसायाणं । सगसगउरिणते निद्दापयलाणमुवसंते ।। ७१३ ॥ निद्दानिद्दाईणं पमत्तविरए ४ |विसुज्झमाणम्मि । वेयगसम्मत्तस्स उ सगखवणोदीरणा चरमे ॥ ७१४ ॥ सम्मपडिवत्तिकाले पंचण्हवि संजमस्स चउचउसु ।। सम्माभिमुहो मीसे आऊण जहण्णठितिगोत्ति ॥ ७१५॥ पोग्गलविवागियार्ण भवाइसमए विसेसमुरलस्स । सुहुमापज्जो वाऊ | ॥३२५॥ For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-ठा बादरपज्जत्त वेउव्वे ॥ ७१६ ॥ अप्पाऊ बेइंदी उरलंगे नारओ तदियरंगे । निल्लेवियवेउव्वा असण्णिणो आगओ कूरो ॥ ७१७॥8/प्रदेशोपर्षिकृते । शमना मिच्छोंतरे किलट्ठो वीसाए धुवोदयाण सुभियाणं । आहारजई आहारगस्स अविसुद्धपरिणामी ॥ ७१८ ।। अप्पाउरिसभचउरंस-ल पञ्चसंग्रहे। गाण अमणो चिरट्ठिइ चउण्हं । संठाणाण मणूओ संघयणाणं तु सुविसुद्धा ॥७१९।। हुंडोवघायसाहरणाण सुहुमो सुदीहपज्जत्तो । कमप्रकृतोद परघाए लहुपज्जो आयावुज्जोय तज्जोगो ॥ ७२० । छेवट्ठस्स बिइंदी बारसवासाऊ मउयलहुआणं । सण्णिविसुद्धो णाहारगो य ॥३२६॥ पत्तेयमुरलसमं ॥ ७२१ ॥ कक्खडगुरूण मंथे विणियट्टे णाम असुहधुवियाणं । जोगतमि नवण्हं तित्थस्साउज्जियाइम्मि ॥७२२॥ सेसाणं वेयंतो मज्झिमपरिणामपरिणओ कुणइ । पच्चयसुभासुभावि य चिंतिय णेआ विवागीओ ॥७२३।। इत्यनुभागोदीरणा॥ अथ प्रदेशोदीरणा-पंचण्हमणुकोसा तिहा चउद्धा य वेयमोहाणं । सेसविगप्पा दुविहा सव्वविगप्पाओ आउस्स ॥ ७२४ ॥ तिविहा धुवोदयाणं मिच्छस्स चउबिहा अणुक्कोसा । सेसविगप्पा दुविहा सव्वविगप्पा य सेसाणं ।। ७२५ ॥ अणु|भागुदीरणाए हॉति जहणाए सामिणो जे उ । जेट्ठपएसुद्दीरणसामी ते घाइकम्माणं ॥ ७२६ ॥ वेयणियाण पमत्तो अपमत्तत्तं जया उ पडिवज्जे । संघयणपणगतणुदुगउज्जोयाणं तु अपमत्तो ॥ ७२७ ॥ तिरियगईए देसो अणुपुब्बिगईण खाइओ सम्मो । दुभगाईनीयाणं विरईअब्भुडिओ सम्मो ॥ ७२८॥ देवनिरयाउयाणं जहनजेट्ठट्ठिई गुरुअसाए । इयराऊणं इयरा अट्ठमवासेऽट्ठवासाऊ ॥३२६॥ | ।। ७२९ ॥ एगतेण चिय जा तिरिक्खजोग्गाओ ताण ते चेव । नियनियनामविसिट्ठा अपज्जनामस्स मणु सुद्धो ।। ७३० ।। जोग-18 | तुदीरगाणं जोगते दुसरसुसरसासाणं । नियगंतकेवलीणं सव्वविसुद्धस्स सेसाणं ।। ७३१ ॥ तप्पाओगकिलिट्ठा सवाणं होंति | खवियकम्मंसा । ओहीणं तब्बेई मंदाइ सुही य आऊणं ॥ ७३२ ॥ इति उदीरणा ।। RANDARASAIReache 5-- 0 45 For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्रपिकृते । पञ्चसंग्रहे कमप्रकृतो ॥३२७॥ SASARAGARLS सर्वोपअथ उपशमनाकरणम्-देसुवसमणा सव्वाण होइ सव्वोवसामणा मोहे । अपसत्थपसत्था जा करणुवसमणाए अहि-& शमना गारो ॥ ७३३ ॥ सव्वुवसमणा जोगो पज्जत्तपणिदिसण्णिसुभलेसो । परियत्तमाणसुभपगइबन्धओऽतीव सुझंतो ॥ ७३४ ॥ असुभसुभे अणुभागे अणंतगुणहाणिवुड्डिपरिणामो । अंतो कोडाकोडी ठिइओ आउं अबंधतो ॥ ७३५ ॥ बंधादुत्तरबंधं पलिओवमसंखभागऊणूणं । सागारे उवओगे वट्टतो कुणइ करणाई ।। ७३६ ।। पढमं अहापवत्तं बीयं तु नियट्टि तइयमणियट्टी । अंतोमुहुत्तियाई उवसमअद्धं च लहइ कमा ।। ७३७ ।। आइल्लेखं दोसुं जहण्णउक्कोसिआ भवे सोही । जं पइसमयं अज्झवसाया लोगा असंखेज्जा ।। ७३८ ।। पइसमयमणतगुणा सोही उड्ढामुही तिरिच्छाओ । छट्ठाणा जीवाणं तइएवुड्डामुही एका ॥ ७३९ ।। गंतुं | संखिज्जंसं अहापवत्तस्स हीण जा सोही । तीए पढमे समए अणंतगणिआ उ उकोसा ।। ७४०॥ एवं एकंतरिया हेढुवार जाव || हीण पज्जत्ते । तत्तो उक्कोसाओ उवरुवार होइ गंतगुणा ।। ७४१ ॥ जा उकोसा पढमे तीसे गंता जहानिया बीए । करणे तीए जेट्ठा एवं जा सव्वकरणंपि ॥ ७४२ ॥ अपुचकरणसमग कुणइ अपुब्बे इमे उ चत्तारि। ठितिघायं रसघायं गुणसेढी बंधगद्धा य ।।७४३।। उक्कोसेणं बहुसागराणि इयरेण पल्लऽसंखंसं । ठितिअग्गाओ घायइ अंतमुहुत्तेण ठितिखंडं ।।७४४॥ असुभाणंतमुहुत्तेण हणइ रसखंडगं अणंतसं । करणे ठितिखंडाणं तम्मि उ रसकंडगसहस्सा ॥ ७४५ ॥ घाइयठिइओ दलिय घेत्तं घेतुं असंखगुणणाए । साहिय दुकरणकाले उदयाओ रयइ गुणसीढ ॥ ७४६ ॥ करणाइए अपव्वो जो बन्धो सो न होइ जा अण्णो । बंधगअद्धा सा * तुल्लिगा उ ठिइकंडगाए ।। ७४७ ।जा करणाईऍ ठिई करणते तीए होइ संखंसो । अनियट्टीकरणमओ मुत्तावलिसंठियं कुणइ ॥३२७॥ ॥ ७४८ ।। एवमणियट्टिकरणे ठितिघायाईणि हुंति चउरोऽवि । संखेनंसे सेसे पढमठिई अंतरं च भवे ।। ७४९ ॥ अंतमुहुत्तिय RECORRECRUSRAEX For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंकृते श्रीचन्द्र-छा मेत्ताई दोवि निम्मवइ बन्धगद्धाए । गुणसढीसंखभागं अंतरकरणेण उकिरइ ।। ७५० ॥ अंतरकरणस्स विही घेत्तुं घेत्तुं ठिईउIDI सर्वोप | मज्झाओ । दलिय पढमठिईए विछुब्भइ तहा उवरिमाए ॥७५१॥ इगदुग आवलिससाए णत्थि पढमा उदीरणागालो । पढमठिईए शमना पञ्चसंग्रहे उदीरण बीयाओ एइ आगालो ।। ७५२ ॥ आवलिमेत्तं उदएण वेइउं ठाइ उवसमद्धाए । उवसामयं तत्थ भवे सम्मत्तं मोक्खबीयं कर्मप्रकृती जं ॥ ७५३ ॥ उवरिमठिइअणुभागं तिहा तओ कुणइ चरिममिच्छुदए । देसघाएण सम्म इयरेणं मिच्छमीसाई ॥ ७५४ ॥ सम्मे ॥३२८॥ | थोवो मीसे असंखओ तस्स संखओ सम्मे । पइसमयं इइ खवो अंतमुहुत्ताउ विज्झाओ ।। ७५५ ॥ गुणसंकमेण एसो संकमो होइ सम्ममासेसु । अंतरकरणम्मि ठिओ कुणइ जओ सप्पसत्थगुणो ॥ ७५६ ॥ गुणसंकमेण समगं तिण्णिवि थक्कंति आउवज्जाणं । मिच्छत्तस्स उ इगिदुगावलिसेसाए पढमाए ॥ ७५७ ॥ उवसंतद्धाअंते विहीए उक्कड्डियस्स दलियस्स । अज्झवसाणविसेसा एकस्सुदओ भवे तिण्हं ।। ७५८ ॥ छावलिए सेसाए उवसमअद्धाए जाव इगिसमयं । असुहपरिणामतो कोइ जाइ इह सास| णतंपि ॥७५९।। सम्मत्तेणं समगंसव्वं देस च कोइ पडिवज्जे । उवसंतदंसणी सो अंतरकरणडिओ जाव ।७६०। सम्मत्तुप्पायणा ॥ वेयगसम्मदिट्टी सोहीअद्धाए अजयमाईआ। करणदुगेण उवसमं चरित्तमाहेस्स चेट्ठति ।।७६१॥ जाणण गहणणुपालणविरओ विरईइ अविरओऽनसिं । आइमकरणदुर्गणं पडिवज्जइ दोण्हमण्णयरं ॥ ७६२ ॥ उदयावलिए उप्पि गुणसेढिं कुणइ सह चरित्तेण । अंतो ॐा असंखगुणणाए तात्तियं वड्डए कालं ।। ७६३ ॥ परिणामपच्चएणं गमागमं कुणइ करणरहिओपि । आभोगनट्ठचरणो करणे काऊण | पावेइ ।।७६४॥ परिणामपच्चएणं चउब्विहं हाइ वडई वावि । परिणामवठ्ठयाए गुणसेढिं तत्तियं रयइ ॥७६५॥ चरित्तुप्पत्ती॥ सम्मुप्पा ॥३२८॥ यणविहिणा चउगइआ सम्मदिट्ठी पज्जत्ता । संजोयणा विजोयंति न उण पढमठितिं करेंति ।। ७६६ ॥ उवरिमगे करणद्गे दलियं For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वोपशमना CAMERA श्रीचन्द्र- गुणसंकमेण तेसिं तु । नासेइ तओ पच्छा अंतमुहुत्ता सभावत्थो ।। ७६७ ॥ दसणखवगस्सऽरिहो जिणकालीओ पुमट्ठवासुवरि । पिकृते । | अणणासकमा करणाई करिअ गुणसकर्म तह य ।। ७६८ ।। अप्पुब्बकरणसमगं गुणउव्वलणं करेइ दोण्हपि । तकरणाई जंतं ठितिपञ्चसंग्रहालसंत संखभागोऽते ॥ ७६९ ।। एवं ठितिबंधोऽवि हुपविसह अणियट्टिकरणसमयाम्म । अपुच्वं गुणसेडिं ठितिरसकंडाणि बन्धं च ४ कमप्रकृता ।। ७७० ॥ देसुवसमणनिकायण निहत्तिरहियं च होइ दिहितिगं। कमसो असण्णिचरिंदियाइ तुलं च ठिइसंतं ॥ ७७१ ।। ।।३२९॥ काठितिखंडसहस्साई एकेके अंतरंमि गच्छंति । पलिओवमसंखसे दंसणसंते तओ जाए ॥ ७७२ ॥ संखज्जा संखेज्जा भागा खंडेइ सहससो तेवि । तो मिच्छस्स असंखा संखेज्जा सम्ममीसाणं ।। ७७३ ॥ तत्तो बहुखंडते खंडइ उदयावलीरहिअमिच्छं। तत्तो असंखभागा सम्मामीसाण खंडइ ।। ७७४ ।। बहखंडते मीसं उदयावलि बाहिर खिवइ सम्मे । अडवाससंतकम्मो दंसणमोहस्स सो खवगा ।। ७७५ ।। अंतमुहुत्तियखंडं तत्तो उकिरइ उदयसमयाओ। निक्खिवइ असंखगुणं जा गुणसेढी परे हीणं ॥ ७७६ ॥ काउकिरह असंखगुणं जाव दुचरिमंति अंतिमे खडे । संखेज्जं सो खंडइ गुणसढीए तहा देह ।। ७७७॥ कयकरणो तकाले कालपित Pा.करेइ चउसुवि गईसु । वेइअसेसो सेढी अण्णयरं वा समारुहइ ।। ७७८ ॥ तइयचउत्थे तंमि व भवम्मि सिझंति दंसणे खीणे । जं | देवनिरयसंखाउ चरमदेहेसु ते हुति ।। ७७९ ॥ अहबा दंसणमोहं पढमं उवसामइत्तु सामण्णे । ठिच्चा अणुदइयाणं पढमठितीNआवली नियमा ।। ७८० ॥ पढमुवसमुब सेसं अंतमुहुत्ताओ तस्स विज्झाओ । संकसविसोहीओ पमत्त इयरत्तणं बहुसो ॥७८१।।।। पुण तिण्णि उ करणाई करेइ तइयम्मि एत्थ पुण भेओ। अंतो कोडाकोडी बंधं संतं च सत्तण्हें ॥ ७८२ ।। ठितिखंडं उकस्सपि तस्स पल्लस्स संखतमभागं । ठितिखंड बहुसहस्से से केकं जं भणिस्सामो ॥७८३॥ करणस्स संखभागे सेसे (य) असण्णिमाइयाण CIRCRACRECRky For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ना सर्वोपशमना कर्मप्रकृती श्रीचन्द्र-18 समो । बन्धो कमेण पल्लं वीसगतीसाण उ दिवढे ।। ७८४ ॥ मोहस्स दोणि पल्ला संतेवि हु एवमेव अप्पबहू । पलियमित्तम्मि | र्षिकृते 18 बन्धे अण्णो संखेज्जगुणहीणो ॥ ७८५ ॥ एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवढे । एवं मोहे पल्लं सेसाणं पल्लसंखंसो पञ्चसंग्रहे | | ७८६ ॥ वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । पल्लअसंखेज्जंसो नामागोयाण तो बन्धा ॥ ७८७ ॥ एवं तीसाणंपि | हु एक्कपहारेण मोहणीयस्स । तीसगअसंखभागो ठितिबन्धो संतयं च भवे ।। ७८८ ॥ वीसग असंखभागे मोहं पच्छाओ घाइ तइ यस्स । वीसाण तओ घाई असंखभागम्मि बझंति ॥७८९|| अस्संखसमयबद्धाणुदीरणा होइ तम्मि कालम्मि । देसे घाइरसं तो | मणपज्जवअंतरायाणं ।। ७९० ॥ लाभाहीणं पच्छा भोगअचक्खूसुयाण तो चक्खू । परिभोगमईणं तो विरियस्स असेढिगा घाई ॥ ७९१ ।। संजमघाईण तओ अंतरमुदओ उ जाण दोण्हं तु । वेयकसायण्णयरे सोदयतुल्ला य पढमठिई ।। ७९२ ॥ थीअपुमोदय-14 | काला संखेज्जगुणो उ पुरिसवेयस्स । तस्सवि विसेसअहिओ कोहे तत्तोवि जहकमसो ॥ ७९३ ॥ अंतकरणेण समं ठितिखंडगवंधगद्धनिष्फत्ती । अंतरकरणाणंतरसमये जायंति सत्त इमे ॥ ७९४ ॥ एगट्ठाणणुभागो बंधो उद्दीरणा य संखसमा । अणुपुब्बीसंकमणं लोहस्स असंकमो मोहे ॥ ७९५ ।। बद्धं बद्धं छसु आवलीसु उवरेणुदीरणं एइ । पंडगवेउवसमणा असंखगुणणाए जावंतं ।। ७९६ ॥ अंतरकरणपविट्ठो संखासखंस मोह इयराणं । बंधादुत्तर बंधं एवं इत्थीए संखसे ।। ७९७ ॥ उवसंते घाईण संखेज्जसमा परेण संखंसो । बन्धो सत्तण्हेवं संखेज्जतमंमि उवसंते ॥ ७९८ ॥ नामगोयाण संखा बन्धो वासा असंखिया तइए । तो सव्वाणवि | संखा तत्तो संखेज्जगुणहाणी ॥ ७९९ ॥ जं समए उवसंतं छकं उदयट्टिई तया सेसा । पुरिसे समऊणावलिदुगेण बद्धं अणुवसंत ८०० ।। आगालेणं समगं पडिगया फिडइ पुरिसवेयस्त । सोलसवासियवन्धो चरमो चरमेण उदयेण ॥ ८०१॥ तावइ RAHARASEX ॥३०॥ For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३३१॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काले चि पुरिसं उवसामए अवेदो सो । बन्धो बत्तीससमा संजलणियराण उ सहस्सं । ८०२ || अव्वेय पढमसमया कोहतिगं आढवेह उवसमिंउ । तिसु पडिगहया एक्का उदओ य उदीरणा बन्धो ।। ८०३ ।। फिड्डति आवलीए सेसाए सेसयं तु पुरिससमं । एवं सेस कसाया वेयइ थिबुगेण आवलिया || ८०४ ॥ चरिमुदयम्मि जहण्णो बन्धो दुगुणो उ होइ उवसमगे । तयणंतरपगईए चउग्गुणोऽन्नेसु संखगुणो ।। ८०५ ।। लोहस्स उ पढमठिहं बीयठिईओ उ कुणइ तिविभागं । दोसुं दलनिक्खवो तइओ पुण किट्टि वेयद्धा ।। ८०६ || संताणि बज्झमाणगसरूवओ फड्डगाणि जं कुणइ । सा अस्सकण्णकरणद्ध मज्झिमा किट्टिकरणद्धा ॥ ८०७ ॥ अप्पुव्वविसोहीए अणुभागो णूणीवभयणं किट्टी । पढमसमयम्मि रसफड्डवग्गणाणत भागसमा ||८०८|| सव्वजहण्णगफड्डग अणंतगुणहीणियाउ ता रसओ । पइसमयम संखसो आइमसमयाउ जावंतो ||८०९ || अणुसमयमसंखगुणं दलियमणंतंसओ उ अणुभागो । सव्वेसु मंदरसमाइयाण दलियं विसेसूणं ।। ८१० || आइमसमयकयाणं मंदाईणं रसो अगंतगुणो । सब्बुकस्सरसावि हु उवरिमसमयस्तं ।। ८११ ।। किट्टीकरणद्ध। ए तिसु आवलियासु समयहीणासु । न पडिग्गहया दोन्हवि सङ्काणे उपसमिज्जति ।। ८१२ ।। | लोभस्स अणुवसंत किट्टी उदयावली य पुब्वृत्तं । बायरगुणेण समगं दोण्हवि लोभा समुवसंता ।। ८१३ || सेसद्धं तणुरागे तावइआ किडिओउ पढमठिई । वज्जिय असंखभागं हेट्ठवरिमुदीरए सेसा ।। ८१४ ॥ गेव्हंतो य मुयंतो असंखभांग तु चरिमसमयम्मि | उवसामिय बीयठि उवसंतं लभइ गुणठाणं ।। ८१५ ।। अन्त| मुहुत्तमेतं तस्सवि संखेज्जभागतुल्लाओ । गुणसेढी सब तुला य पएसकालेहिं ॥ ८१६ ।। करणाय नोवसंतं संकमणोवट्टणं तु दिट्ठितिगं । मोत्तृण विलोमेणं परिवडई जा पमत्तोत्ति ॥ ८१७ ॥ उक्कड्डित्ता दलियं पढमठिति कुणड़ बीयठितिर्हितो । उदयाइ विसेमूर्ण आवलिउप्पि असंखगुणं ।। ८१८ ॥ जावइया गुणसेढी For Private and Personal Use Only सर्वोप शमना ||३३१ ॥ Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4%A5. श्रीचन्द्र-४ उदयवई तासु हीणगं परओ । उदयावलीमकाउं गुणसेढी कुणइ इयराणं ॥ ८१९ ।। संकमाउदीरणाणं णस्थि विसेसो उ एत्था 1 देशोपपिंकृते पुच्चुत्तो । जे जत्थ उ वोच्छिण्णं जायं वा होइ तं तत्थ ।। ८२० ॥ वेइज्जमाणसंजलण कालओ अहिअमोहगुणसढी । पडिवत्ति शमना पञ्चसंग्रहे कसाउदए तुल्ला सेसेहिं कम्मेहिं ।। ८२१ ॥ खवगुवसामगपच्चागयाण दुगुणो तहिं तहिं वन्धो । अणुभागोऽणतगुणो असुभाण निधत्तनिकर्मप्रकृतो | काचने सुभाण विवरीओ ॥८२२।। परिवाडीए पडिउं पमत्तइयरत्तणेण बहु किच्चा । देसजइ संजमं वा सासणभावं च कोइ वये ॥८२३॥ ॥३३२॥ उवसमसम्मत्तद्धा अंतो आउक्खया धुवं देवो । जण तिसु आउएमुं बद्धेमु न सेढिमारुहइ ।। ८२४ । सेढी पडिओ तम्हा छडा | वली सासणोवि देवेसु । एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमज्जा ॥ ८२५ ।। दुचरिमसमये नियगोदयस्स इत्थी नपुंसगोऽन्नोन्नं । समइत्तु सत्त पच्छा किंतु नपुंसो कमारदे ।। ८२६ ।। इति सर्वोपशमना ॥ अथ देशोपशमना-मूलुत्तरकम्माणं पगडीठितिमादि होइ चउभेया । देसकरणेहिं देसं समेइ जं देससमणा तो ॥८२७।। उव्वट्टणओवट्टणसंकमकरणाई हुंति नन्नाई । देसोवसामिअस्सा जाऽपुन्चो सव्वकम्माणं ॥ ८२८ ॥ खवगो व सामगो वा पढमकसायाण दंसणतिगस्स । देसोवसामगो सो अपुव्वकरणतगो जाव ॥ ८२९ ॥ साइयमाइ चउद्धा देसुवसमणा अणाइसंतीणं । मूलुत्तरपगईणं साईअधुवाओ धुवाओ ॥८३०॥ गोयाउयाण दोण्हं चउत्थ छट्ठाण होइ छ सतण्हं । साइयमाइ चउद्धा सेसाणं एगठा- ॥३३२॥ णस्स ॥८३१।। उवसामणा ठिईए उक्कोसा संकमेण तुल्लाओ । इयरावि किंतु अभवी उबलग अपुवकरणेसु ॥८३२॥ अणुभागपएसाणं सुभाण जा पुव्वामित्थ इयराणं । उक्कोसियरं अभविय एगिंदी देससमणाए ॥ ८३३ ॥ इति देशोपशमनाकरणम् ॥ 15 For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kobatirth.org सप्ततिकायां संवेधः श्रीचन्द्र- अथ निद्धत्तिनिकाचनाकरणम् -देसवसामणतुल्ला होइ निहत्ती निकायणा नवरं । संकमणपि निहत्तीए नत्थि सव्वाणि & र्षिकृते इयरीए ।। ८३४ ॥ गुणसेढिपएसग्गं थोवं उवसामियं असंखगुणं । एवं निहयनिकाइय अहापवत्तेण संकंतं ।। ८३५ ।। ठितिबंध पञ्चसंग्रह उदीरण तिविहसंकमे होंतिऽसंखगुण कमसो । अज्झवसाया एवं उबसामणमाइएमु कमो ॥८३६ ।। इत्यष्टी करणानि । समाप्तः कर्मप्रकृत। कर्मप्रकृतिसंग्रहः ॥ ॥३३३॥ अथ सप्ततिकासंग्रहः-मूलुत्तरपगईणं साइअणाईपरूवणाणुगयं । भाणयं बंधविहाणं अहुणा संवेहगं भणिमो ।। ८३७ ॥ आउम्मि अट्ठ मोहेऽढ सत्त एकं व छाइवा तइए । बज्झतयंमि बज्झति सेसएसु छ सत्तट्ठ ।।८३८॥ मोहस्सुदये अट्ठवि सत्त व लब्भति सेसयाणुदए । संतोइण्णाणि अघाइयाण अड सत्त चउरो य ॥८३९।। बंधइ छ सत्त अट्ठ य मोहुदए सेसयाण एकं च । पत्तेयं संतेहिं | बंधइ एर्ग छ सत्तट्ठ ॥ ८४० ।। सत्तट्ठछबंधसुं उदओ अट्ठण्ह होइ पयडीण । सत्ताह चउण्हं वा उदओ सायस्स बंधम्मि ।। ८४१॥ दो संतट्ठाणाई बंधे उदए य ठाणयं एकं । वेयणियाउयगोए एग नाणंतराएसु ।। ८४२ ॥ नाणंतरायबंधो आसुहुमं उदयसंतया | खीण । आइमदुगचउसत्तमनारयतिरिमणुसुराऊणं ।। ८४३ ॥ नारयसुराउ उदओ चउ पंचम तिरि मणुस्स चोद्दसमं । आसम्मदेस| जोगी उवसंता संतयाऊणं ॥ ८४४ ।। अब्बंधे इगिसंतं दो दो बद्धाउ बज्झमाणाणं । चउसुवि एकस्सुदओ पणनवनव पंच इइ है भेया ॥ ८४५ ॥ नव छच्चउहा बज्झइ दुगट्ठदसमेसु दंसणावरणं । नव बायरम्मि संत छकं चउरो य खोणम्मि ।। ८४६ ।। नव काभेए भंगतियं बेच्छावट्ठी उ छब्धिहस्स ठिई । चउसमयाओ अंतो अंतमुडुत्ताउ नवछके ।। ८४७ ॥ दंसणसनिबर्दसणउदओ समकं ट्रातु होइ जा खीणो । जाव पमत्तो नवण्ह उदओ छसु चउसु जा खीणो ।। ८४८॥ चउपण उदओ बंधेसु तिसुवि अबंधगेवि ॥३३३॥ For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ' उवसंते । नव संतं अद्वेवं उइण्णसंताई चउ खीणे ॥ ८४९ ॥ खवगे सुहुमंमि चउबंधगम्मि अबंधगम्मि खीणम्मि । छस्सतं चउरुदओ पंचहवि के इच्छंति ॥ ८५० ॥ बन्धो आदुगदसगं उदओ पणचोदसं तु जा ठाणं । निच्चुच्चगोत्तकम्माण संतया होइ | सव्वे ॥ ८५१ ॥ बन्ध उइण्णयं चिय इयरं वा दौवि संत चउभंगो । नीएसु तिसु वि पढमो अबंधगे दोण्णि उच्चदए ॥ ८५२ || | तेरसमछट्ठएसुं सायासायाण बंधवुच्छेओ । संतउइण्णाई पुण सायासायाई सव्वेसु ।। ८५३ ।। बंधह उइण्णयं चिय इयरं वा दोवि संत चउभंगा | संतमुष्णमबंधे दो दोणि दुसंत इइ अट्ठ ॥ ८५४ ॥ दुगइगवीसासत्तर तेरस नवपंचचउरतिदुएगो । बंधो इगिदुचउत्थय पणडनवमेसु मोहस्स ।। ८५५ ।। हासरइअरइसोगाण बंधगा आनवं दुहा सव्वे । वेयविभज्जता पुण दुगइगवीसा छहा चहा || ८५६ ॥ मिच्छाबन्धिगवीसो सत्तरतेरो नवो कसायाणं । अरईदुगं पमत्ते ठाइ चउकं नियमि ॥ ८५७ ॥ देसूण पुव्वकोडी नवतेरे सत्तरे य तेत्तीसा । बावीसे भंगतिगं ठिति सेसेसुं मुहुत्तो ।। ८५९ ।। इगिदुगचउएगुत्तर आदसगं उदयमाहु | मोहस्स । संजलणवेयहासरह भयदुर्गुछतिकसायदिडीए ।। ८५९ ।। दुगआइ दसंतुया कसायभेया चउब्विहा ते उ । बारसहा वेयवसा अदुगा पुण जुगलओ दुगुणा ॥। ८६० ।। अणसम्मभयदुर्गुछाण गोदओ संभवेवि वा जम्हा । उदया चवीसाविय एकेक - गुणे अओ बहुहा || ८६१ || मिच्छे सगाइ चउरो सासणमीसे सगाइ तिष्णुदया। छप्पंचचउरपुव्वा चउ चउरो अविरयाईणं ।। ८६२ ।। दसगाइसु चउवीसा एक्काछेकारदससगचउकं । एक्का य नवसयाई सट्टाई एवमुदयाणं ॥ ८६३ ॥ बारस चउरो तिदुएकगाओ पंचाइ बन्धगे उदया । अब्बंन्धगेवि एक्को तेसीया नवसया एवं ॥ ८६४ ॥ चउबन्धगेऽवि बारस दुगोदया जाण तेहि छूटेहिं । बन्धगभेएणेवं पंचूणसहस्समुदयाणं ॥। ८६५ || बारस दुगोदएहिं भंगा चउरो य संपराएहिं । सेसा तेच्चिय भंगा नव For Private and Personal Use Only सप्ततिकायां संवेधः ॥३३४॥ Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३३५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सयछावत्तरा एवं ८६६ ॥ मिच्छाइ अप्पमत्तंतयाण अट्ठट्ठ हुंति उदयाणं । चउवीसाओ सासणमीसअपुव्वाण चउचउरो ॥। ८६७ ॥ चडवीसगुणा एए बायरसुहुमाण सत्तरस अन्ने । सब्वेसुवि मोहुदया पण्णट्ठा बारससयाओ || ८६८ ।। उदयविगप्पा जे जे उदीरणावि हुँति ते ते उ । अंतमुहुत्तिय उदया समयादारम्भ भंगा य || ८६९ || मिच्छत्तं अणमीसं चउरो चउरो कसाय वा सम्मं । ठाइ अपुव्वे छकं वेयकसाया परे तओ लोभो ||८७० || (गीतिः) अट्ठगसत्तगछक्कग चउतिगदुगएकगाहिया वीसा । तेरस बारेकारस संते पंचाई जा एकं ॥ ८७१ || अणमिच्छमीससम्माण अविरया अप्पमत्त जा खवगा । समकं अट्ठकसाए नपुंस इत्थी कमा छकं ॥ ८७२ ॥ पुंवे कोहाई नियट्टि नासेर सुहुमतणुलोभं । तिन्नगति पण चउसुं तिकारस चउवि सताणि ।। ८७३ ।। छब्बीसणाइमिच्छे उच्चलणा एव सम्ममीसाणं । चउवीस अणविजोए भावो भूओवि मिच्छाओ || ८७४ | सम्ममीसाण मिच्छो सम्मो पढमाण होइ उब्वलगो । बन्धावलिआ उप्पि उदओ संकेतदलिअस्स ।। ८७५ ।। बावीसं बन्धंते मिच्छे सत्तादयंमि अडवीसा । संत छ सत्त मीसा य होंति सेसेसु उदयसु ॥ ८७६ || सत्तरसबन्धगे छोदयम्मि संत इगट्टचउवसा । सगतिदुवीसा य सगड़गोदए यरिगवीसा ।। ८७७ ।। देसाइसु चरिमुदए इगवीसा वज्जियाई संताई । सेसेसु होंति पंचवि तिसुवि अपुव्वंभि संततिगं ॥ ८७८ ॥ पंचाइ बन्धगेसुं इगट्ठचउवीसम्बन्धगेकं च । तेरस बारेकारस य होंति पण बन्धि खवगस्स ।। ८७९ ।। एगाहिया य बन्धा चउबन्धगमाइआण संतसा । बन्धोदयाण विरमे जं संतं छुभइ अण्णत्थ ॥ ८८० ॥ सत्तावीसे पल्लासंखसो पोग्गलद्ध | छव्वीसे । बे छावडी अडचउवीसिगवीसे उ तित्तीसा ||८८१|| अंतमुहुत्ता उ ठिई तमेव दुहओऽवि सेससंताणं । होइ अणाइ अणतं अणाइसंतं च छब्बीसा ।। ८८२ ।। अप्पज्जत्तग जाई पज्जत्तगईहिं पेरिआ बहुसो । बन्धं उदयं च उति सेसपगईओ नामस्स For Private and Personal Use Only सप्तप्ति कायां संवेधः ॥३३५॥ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पञ्चसंग्रहे | श्रीचन्द्र- ॥ ८८३ ॥ उदयप्पत्ताणुदओ पएसओ अणुवसंतपगईणं । अणुभागोदय निच्चोदयाण सेसाण भइयव्वा ॥ ८८४ ॥ अथिरासु-181 सप्ततिर्षिकृते | भचउरंसं परघाइदुगं तसाइधुवबन्धी । अजसपणिदिवउब्वाहारगसुखगइसुरगइया ।। ८८५ ।। बन्धइ तित्थनिमित्तामणुउरलदुरिस कायां भदेवजोगाओ । नो सुहुमतिगण जसं नो अजसथिरासुभाहारे ।। ८८६ ॥ अप्पज्जत्तगवन्धं दूसरपरषायसासपज्जतं । तस अप संवेधः कर्मप्रकृतौल सत्था खगई वेउव्वं नरयगइहेऊ ।। ८८७ ॥ हुंडोरालं धुवबन्धिणीओ अथिराइ दूसरविहूणा | गइआणुपुग्विजाई बायरपत्तेय॥३३६॥ अपजत्ते ॥ ८८८ ॥ बन्धइ सुहुमं साहारणं च थावर तसंगछेवटुं । पज्जत्ते उसथिरसुभजससासुज्जीवपरघायं ॥ ८८९ ॥ आयावं एगिदिय अपसत्थविहदूसरं च विगलेसु । पंचिदिएसु सुसराइखगइसंघयणसंठाणा ।। ८९० ॥ तेवीसा पणवीसा छब्बीसा | अट्ठवीसिगुणतीसा । तीसेगतीस एगा बन्धट्ठाणाई नामेष्ट ।। ८९१ ॥ मणुअगईए सब्वे तिरिय गईए छ आइमा बन्धा । नरएगु| तीसतीसा पण छब्बीसा य देवेसु ।। ८९२ ॥ अडवीस नरयजोग्गा अडवीसाई सुराण चत्तारि । तिगपणछव्वीसगिदियाण तिरि-1* | मणुण बन्धतिगं ।। ८९३ ॥ मिच्छमि सासणाइसु तिअट्ठवीसादिनामबन्धाओ। छत्तिण्णि दोति दोदो चउपण सेसेसु जसबन्धो | &|॥८९४ ॥ तग्गयणुपुव्विजाई थावरमाई य दूसरविहूणा । धुवबन्धि हुंडविग्गह तेवीसाऽपज्जथावरए ।। ८९५ ॥ पगईणं वच्चासो | होइ गईइंदियाई आसज्ज । सपराघाऊसासा पणवीसछवीस सायावा ।। ८९६ ॥ तग्गइयाइ दुवीसा संघयणतसंगतिरियपणुवीसा ।। ॥३३६॥ दूसरपरघाऊसास खगइगुणतीस तीसमुज्जोबा ।।८९७।। (गीतिः) तिरि बन्धा मणुआणं तित्थयरं तीसमंति इइ भेओ । संघयणणिगुण-४ तीसा अडवीसा नारए एक्का ।। ८९८ ॥ तित्थयराहारगदो तिसंजुओ बन्धु नारयसुराणं । अनियट्टीसुहुमाणं जसकित्तीए स इगPा बन्धो ॥ ८९९ ।। साहारणाइ मिच्छो सुहुमायक्थावरं सनरयदुगं । इगिविगलिंदियजाई हुंडगपज्जत्तछेवट्ठ ।। ९००॥ सासायणो| SHARE RUARRIA For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- पसत्था विहगगईदुसरभगुज्जीवं । अणएज्जं तिरियदुगं मज्झिमसंघयणसंठाणा || ९०१ || मीसो सम्मो ओरालमणुयदुवयाई आइर्षिकृते संघयणं । बंधह देसो विरओ अथिरासुभअज सपुव्वाणि ।। ९०२ ॥ अपमत्तो सनियट्टी सुरदुगवेउब्वजुगलध्रुवबन्धी । परघाउसासपञ्चसंग्रहे खगई तसाइचउरंस पंचेंदी ॥ ९०३ ॥ विरए आहारुदआ बन्धो पुण जा नियट्टि अपमत्ता । तित्थस्स अविरयाओ जा सुमो ताव कर्मप्रकृतौ + कित्तीए ॥ ९०४ ॥ उज्जोय अभ्यवाणं उदओ पुव्विपि होइ पच्छावि । ऊसाससरेहितो सुहुमतिगुज्जोय नायावं ।। ९०५ ।। उज्जोवे ॥३३७॥ नायावं सुहुतिगेणं न बज्झए उभयं । उज्जोवजसाऽणुदए जायह साहारणस्सुदओ ।। ९०६ ॥ दुभगाईं उदए बायरपज्जो विउव्वए पवणो । देवगईए उदओ दुभगअणा एज्जउदरवि ।। ९०७ ॥ सुस्सरउदओ विगलाण होइ विरयाण देसविरयाणं । उज्जोबुदओ जायद वेउव्वाहारगडाए ।। ९०८ ।। अडनववीसिगवीसा चउवीसेगहिय जाव इगतीसा । चउगइएसुं वारस उदयद्वाणाई नामस्स ।। ९०९ | मणुसु य चउवीसा वीसडनववज्जियाओ तिरिएसु । इगपण सगट्ट नववीस नारए सुरे सतीसा ते ॥ ९१० ॥ इगिवीसाई मिच्छे सगट्ट वीसाए सासणे हीणा । चउवीभ्रूणा सम्मे सपंचवीसाए जोगिम्मि ।। ९११ ॥ पणवीसाई देसे छब्बीसूणा पमत्ति पुण पंच । गुणतीसाई मीसे तीसुगतीसा य अपमत्ते ।। ९९२ ।। अट्ठो नवो अजोगिस्स बीसओ केवलीसमुग्धाए । इगवीसो पुण उदओ भवंतरे सव्वजीवाणं ॥ ९९३ ॥ चउवीसाईचउरो उदया एगिदिएसु तिरिमणुए। अडवीसाइछवीसा एकेक्कूणा विउ ।। ९९४ ॥ गइआणुपुब्विजाई थावरदुभगाइ तिष्णि धुवउदया । एगिंदिय इगवीसा सेसाणवि पगइवच्चासो ।। ९१५ ।। सा आणुपुच्विहीणा अपज्ज एगिदितिरियमणुआणं । पत्तेउवघायसरीर हुंडसहिआ उ चवीसा ।। ९१६ ।। परघाय सास आयवजुत्ता पणछकसत्तावीसा सा । संघयणअंगजुत्ता चउवीस छवीस मणुतिरिए ॥ ९९७ ॥ परघायखगइजुत्ता अडवीसा गूणतीस For Private and Personal Use Only सप्तति कायां संवेधः ॥३३७॥ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir X ॥३३८॥ श्रीचन्द्र-13 सासेणं । तीसा सरेण सुज्जोव तित्थ तिरिमणुअ इगतीसा ॥ ९१८ ॥ तिरिउदयछवासाइ संघयणविवाज्जिआओ ते चव । उदया | सप्ततिपिंकृते | नरतिरियाणं विउविगाहारगजईणं ॥ ९१९ ॥ देवाणं सब्वेवि हु त एव विगलोदया असंघयणा । संघयणुज्जोव विवज्जियाउ ते | कायां संवेधः पञ्चसंग्रहे। नारएसु पुणो ॥ ९२० ॥ तसबायरपज्जत्तं सुभगाएज्जं पणिदिमणुयगई । जसकित्ती तित्थयरं अजोगिजिण अडगं नवगं ॥९२१॥ कमत्रता निच्चोदयपगइजुया चरिमुदया केवलीसमुग्घाए । संठाणेसुं सब्वेसु होंति दुसरावि केवलिणो ।। ९२२ ॥ पत्तेउवघायउरालदुवय संठाणपढमसंघयणे । छूढे छसत्तवीसा पुव्वुत्ता सेसया उदया ।। ९२३ ॥ तित्थयरे इगतीसा तीसा सामण्णकेवलीणं तु । खीणसरे | गुणतीसा खीणुस्सासंमि अडवीसा ।। ९२४ । साहारणाउ मिच्छे सुहुमअपज्जत्तआयवाणुदओ । सासायणम्मि थावरएगिदियविगलजाईणं ॥९२५ ॥ सम्मे विउबिछक्कस्स दुभगअणाएज्जअजसपुवीणं । विरयाविरए उदओ तिरिगइउज्जोवपुव्वाणं | ॥ ९२६ ॥ विरयापमत्तएसुं अंततिसंघयणपुव्वगाणुदओ। अप्पुयकरणमादिसु दुइयतइज्जाण खीणाओ॥ ९२७ ।। नामधुवोदय| सूसरखगईओरालदुवयपत्तय । उवघायतिसंठाणा उसभमजोगिम्मि पुवुत्ता ।। ९२८ ॥ पिंडे तित्थगरूणे आहारूणे तहोभयविहूणे ।। | पढमचउकं तस्स उ तेरसगखए भवे बीयं ॥ ९२९ ॥ सुरदुगवेउव्वियगइदुगे य उव्वट्टिए चउत्थाओ । मणुयदुगे य नवट्ठयदुहा | भवे संतयं एकं ।। ९३० ॥ थावरतिरिगइ दोदो आयावेगिदिविगलसाहारं । नरयदुगुज्जोवाणि य दसाइमेगततिरिजोग्गा ॥९३१॥ | एगिदिसु पढमदुर्ग वाऊतेऊसु तइयगमणिच्चं । अहवा पण तिरिएमुं तस्संतीगदियाईसु ॥ ९३२॥ पढमं पढमगहीणं नरए ॥३३८॥ मिच्छम्मि अधुवतिगजुत्तं । देवे सा (आ) इचउकं तिरिएमु अतित्थमिच्छसंताणि ॥९३३।। (गीतिः) पढमचउकं सम्मा बीयं खीणाओ बाऽरसुहुमे य । सासणि मीसिवि तित्थं पढममजोगिम्मि अट्ठ नव ॥९३४ ॥ नवपंचोदयसंता तेवीसे पण्णवीसछब्बीसे । अट्ठ For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kcbatrth.org T संबंध: श्रीचन्द, चउरहवीसे नवसत्तिगुतीसतोसे य ॥ ९३५ ॥ एकेकं इगितीसे एके एक्कुदय अट्ठसंतसा । उवरयबंधे दसदस नामोदयसंतठाणाणि | सप्तप्तिपिंकृते ॥ ९३६ ॥ बन्धोदयसंतेमु पणपण पढमंतिमाण जा मुहमी । संतोइण्णाई पुण उवसमखीणे परे नत्थि ॥ ९३७॥ मिच्छा सास कायां पञ्चसंग्रहे | यणेसु नववन्धुवलक्खियाउ दो भंगा । मीसाओ य नियट्टी जा छब्बंधेण दो दो उ ॥ ९३८ ॥ चउबंधे नवसंते दोण्णि अपुवाउ कर्मप्रकृतौ सुहुमरागं जा । अब्बन्धे नवसंते उवसंते हुँति दो भंगा ॥ ९३९ ।। चउबन्धे छस्संते बायरसुहुमाणमेगखवगाणं । छमु चउमु व संतसु दोण्णि अबन्धम्मि खीणस्स ॥ ९४०॥ चत्तारि जा पमत्तो दोण्णि उ जा जोगि सायबन्धेणं सेलेसि अबन्धे चउ इगिसंते ॥३३९॥ चरमसमए दो ॥ ९४१ ॥ अट्ठछलाहियवीसा सोलसवीसं च बारस छ दोसु । दो चउसु तीसु एकं मिच्छ.इसु आउए भंगा ॥ ९४२॥ नरतिरिउदए नारयबन्धविहूणा य सासणि छवीसा । बन्धसमऊण सोलस मीसे चउबन्धजुअ सम्मे ॥ ९४३ ॥ देसविरयम्मि बारस तिरिमणुभंगा छ बन्धपरिहीणा | मणुभंग तिबन्धूणा दुसु सेसा उभयसढीसु ॥ ९४४ ॥ पंचादिमा उ मिच्छर | आदिमहीणाउ सासणे चउरो । उच्चबन्धेण दोन्नि उ मीसाओ देसविरयं जा ॥ ९४५ ॥ उच्चणं बन्धुदए जा सुहुमो अबन्धिछद्रुओ भंगो । उवसंता जा जोगी दुचरिम चरमम्मि सत्तमओ ॥ ९४६ ॥ ओहम्मि मोहणीए बंधोदयसंतयाणि भणियाणि । अहुणाऽवोग्गडगुणउदय पयसमूह पवक्खामि ॥ ९४७ ॥ जा जम्मि चउव्वीसा गुणियाओ ताओ तेण उदएण। मिलिया चउवीसगुणा इयरपएहिं च पयसंखा ॥९४८ ।। सत्तसहस्सा सट्ठीए वज्जिया अहव ते तिवण्णाए । गुणतीसाए अहवा बंधगभेएण मोहणिए ॥ ९४९ ।। अट्ठट्ठी बत्तीसा बत्तीसा सहिमेव बावण्णा । चोयाला चोयाला वीसा मिच्छा उ पयधुवगा ।। ९५० ॥ तिथि ४॥३३९॥ सया बावना मिलिया चउवीस ताडिया एए । बायर उदयपएहि य सहियाउ गुणेसु पयसंखा ॥९५१ ॥ तेवीसूणा सत्तरस CAKCHR CAMERIC 3 For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्ततिकायां संवेधः श्रीचन्द्र- वज्जिया अहव सत्त अहियाई । पंचासीइ सयाई उदयपयाई तु मोहस्स ।। ९५२ ॥ एवं जोगुवओगा लेसाईभेयओ बहू भेया । जा पिकृतल जस्स जम्मि उ गुणे संखा सा तम्मि गुणगारो ॥ ९५३ ॥ उदयाणुवओगसुं सगसयारसया तिउत्तरा हुंति । पण्णासपयसहस्सा पञ्चसंग्रहे संग्रतिणि सया चेव पण्णारा ।। ९५४ ॥ तिगहीणा तेवण्णा सया उ उदयाण होति लेसाणं । अडतीस सहस्साई पयाण सगदोयकर्मप्रकृती | सगतीसा ॥ ९५५ ।। चोद्दस उ सहस्साई सयं च गुणहत्तरं उदयमाणं । सत्तरसा सत्तसया पणनउइसहस्सपयसंखा ॥ ९५६ ॥ ॥३४०॥ &ामीसदुगे कम्मइए अणउदयविवज्जियाउ मिच्छस्स । चउवीसा उण चउरो तिगुणाओ तो रिणं ताओ ॥ ९५७ ॥ वेउब्वियमी सम्मि नपुंसवेओ न सासणे होइ। चउवीस चउक्काओ अओ तिभागो रिणं तस्स ॥ ९५८ ॥ कम्मयविउव्विमीसे इत्थीवेओ न होइ सम्मस्स । अपुमित्थिउरलमीसे तच्चउवीसाण रिणमेयं ॥९५९ ॥ आहारगमीसेसुं इत्थीवेओ न होइ उ पमत्ते । दोण्णि तिभागा उ रिणं अपमत्तजइस्स उ तिभागो ॥ ९६० ॥ उदएसुं चउवीसा धुवगाउ पदेसु जोगमाईहिं । गुणिया मिलिया चउवीस ताडिया इयरसंजुत्ता ॥ ९६१ ॥ अपमत्तसासणेसुं अड सोल पमत्त सम्मि बचीसा । मिच्छम्मि य छन्नउई ठावेज्जा सोहणनिमित्तं ॥ ९६२ ।। जोगतिगेणं मिच्छे नियनियचउवीसगाहिं सेसाणं । गुणिऊणं फेडेज्जा सेसा उदयाण परिसंखा ॥ ९६३ ।। चउवीसाएँ गुणेज्जा पयाणि अहिकिच्च मिच्छछण्णउई । सेसाणं धुवगेहिं एगीकिच्चा तओ सोहे ॥ ९६४ ॥ बन्धोदयसंताई गुणेसु कहियाई नामकम्मस्स । गइसु य अव्वगडंमी वोच्छामी इंदिएसु पुणो ।। ९६५ ॥ इगि विगले पण बंधा अडवीसूणाउ अट्ट इयरम्मि । पंच छ एक्कारुदया पण पण बारस उ संताणि ॥ ९६६ ॥ नाणंतरायदंसण बन्धोदयसंतभंग जे मिच्छे । ते तेरस ठाणेसुं सनिम्मि गुणासिया सब्वे ॥ ९६७ ।। तेरससु वेयणीयस्स आइमा हुंति भंगया चउरो। निच्चुदए तिण्णि गोए सव्वे दोण्हंपि सण्णिस्स | ॥३४०॥ २. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सप्ततिकायां संवेध: पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृती श्रीचन्द्र-R॥९६८ ॥ तिरिउदए नव भंगा जे ते सव्वे असण्णिपज्जते । नारयसुरचउ भंगा रहिया इगविगलदुविहाणं ॥ ९६९ ।। अस्सण्णि हैं। र्षिकृते | अप्पज्जत्ते तिरिउदए पंच जह य तह मणुए। मणपज्जत्ते सव्वे इयरे पुण दस उ पुच्चुत्ता ॥९७० ॥ बन्धोदयसंताई पुण्णाई सनिणो उ मोहस्स । वायरविगलासण्णिसु पज्जेसु दु आइमा बंधा ।। ९७१ ॥ अट्ठसु बावीसोच्चिय बन्धो अट्ठाइ उदय तिन्नव । सत्तगजुया उ पंचसु अडसत्तछचीससंतम्मि ॥ ९७२ ॥ सण्णिामि अट्ठ असण्णिम्मि छाइमा तेऽट्ठबीस परिहीणा । पज्जत्तविगल॥३४॥ बायर सुहुमेसु तहा अपज्जाणं ।। ९७३ ।। इगवीसाई दो चउ पणउदयाऽपज्जसुहुमबाऽराणं । सण्णिस्स अचउवीसा इगछडवीसाइसेसाण ॥ ९७४ ॥ तेरससु पंच संता तिण्णि धुवा अडसीइ बापउई । सण्णिस्स होति बारस गुणठाणकमेण नामस्स ॥ ९७५ ॥ बझंति सत्त अट्ठ य नारयतिरिसुरगईसु कम्माई । उद्दीरणावि एवं संतोइण्णाई अट्ठ तिसु ॥ ९७६ ॥ गुणभिहिय मणुएसु सग| लतसाणं च तिरिय पडिवक्खा । मणजोगी छउमा इव कायवइ जहा सजोगीणं ॥ ९७७ ॥ वेई नवगुणतुल्ला तिकसाइवि लोभे | दसगुणसमाणो । सेसाणिवि ठाणाई एएण कमेण नेयाणि ।। ९७८ ॥ सत्तरसुत्तरमेगुत्तर तु चोहत्तरी उ सगसयरी । सत्तट्ठी तिग| सट्ठी गुणसट्ठी अट्ठवण्णा य ॥९७९ ॥ निदादुगे छवण्णा छव्वीसा तीस बंधविरमम्मि । हासरईभयकुच्छा विरमे बावीसऽपूब्वम्मि | ॥ ९८० ॥ पुंवेयकोहमाइसु अबज्झमाणेसु पंच ठाणाणि । बारे सुहुमे सत्तरस पगतीओ सायमियरेसु ॥ ९८१॥ मिच्छो नरएसु | सयं छमवई सासणो सयरि मीसो । बावतरं तु सम्मो चउराइसु बंधति अतित्था ॥ ९८२ ।। मणुयदुगुच्चागोयं भवपञ्चयओ न होइ चरिमाए । गुणपच्चयं तु बज्झइ मणुआउन सब्वहा तत्थ ।। ९८३ ॥ सामण्णसुरा जोग्गा आजोइसिया न बंधहि सतित्था । इगिथावरायवजुया सणकुमारा न बंधति ९८४ ॥ तिरितिगउज्जोवजुआ आणयदेवा अणुत्तरसुरा उ । अणमिच्छणीयभग थीण-14 AHARHAAL ॥३४॥ For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-१ र्षिकृते पञ्चसंग्रहे कमेप्रकृती परिशिष्टं अधिकाश्च IWASIF%-5 ॥३४२॥ KAKCACAREERCRACK तिग अपुमथीवेयं ॥ ९८५ ॥ संघयणा संठाणा पणपण अपसत्थविहगइ न तेसिं । पज्जत्ता बन्धंति उ देवाउमसंखवासाऊ ॥९८६॥ तित्थायवउज्जोवं नारयतिरिविगलतिगतिगेगिदी । आहारथावरचऊ आऊण असंखऽपज्जत्ता ॥ ९८७ ॥ पज्जत्तिगया दुभगतिगणीयअपसत्थविहनपुंसाणं । संघयणउरलमणुदुगपणसंठाणाण अब्बंधी ।। ९८८ ॥ किण्हाइतिगे अस्संजमे य वेउबिजुगे न आहारं । बन्धइ न उरलमीसे नरयतिग छट्ठममराउं ॥ ९८९ ।। कम्मगजोगे अणहारगे य सहिया दुगाउ णेयाओ । सगवण्णा तेवट्ठी बन्धइ आहार उभयेसु ॥ ९९० ॥ तेऊलेसाईया बंधति न नरयविगलसुहुमतिगं । सेगिंदिथावरायव तिरियतिगुज्जोय नव बार ॥ ९९१ ॥ सुयदेविपसायाओ पगरणमेयं समासओ भणियं । समयाओ चंदरिसिणा समहीवभवाणुसारेणं ॥ ९९२ ।। ॥ इति पंचसंग्रहः समाप्तः॥ अथ परिशिष्टम्- चत्तारि वीस सोलस भंगा एगिदियाण चत्ताला । एगट्ठ अट्ठ विगलिंदियाण इगवण्ण तिण्डंपि ॥१॥ गुणतीसे तसिवि य भंगाणवाहिया छयालसया । पंचिदियतिरिजोगे पणुवीसे बन्धभंगकं ॥ २॥ पणवीसयम्मि एको छायालसया अडुत्तरिगुणतांसे । मणुजोगट्ठ उ सव्वे छायालसया य सत्तरसा ॥३॥ अहट्ट एक एक्कग भंगा अट्ठार देवजोगेसु । एको नारयजोगे एको उ सकित्तिभंगाओ ॥ ४॥ तेरस सहस्सनवसय पणयालं भंगयाण बन्धम्मि । नामस्स उदयसंखा पणयालद्वत्तरिसयाओ ॥५॥ एगिदिय उदएसं पंच य एक्कार सत्ततेरसयं । छकं कमसो भंगा बायाला हुं सब्वेवि ॥६॥ तिगतिगद्गचउछच्चउ विगलाण छसहि होइ तिण्हंपि । अहट्ट सोल सोलस अट्ठ वेउन्वितिरियस्स ॥७॥ नव नव सीया दोसय पंचच्छावत्तरीय पण तिरिए। ते A ॥३४२॥ For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र पिकृते | पञ्चसंग्रह कमेप्रकृतो ॥३४३॥ CACAKACCX दुगुणतिगुणदुगुणा गुणतीसाईसु उदएसु ॥ ८॥ नव-नव सीया दोसय छावत्तर पंचपंच उदयदुगे । एकारस्स य बावन नराण परिशिष्टं उदएसु मंगसया ॥९॥ अड अड नव नव एके वेउब्बिनराण होइ पणतीसा । एकेकदोदुगेक्के आहारजईण सत्तेव ।। १०॥ अटुट्ठ| अधिकाश्च अट्ठ सोलस सोलट्ठ य देवओ य भंगाओ । नारयफेवलिउदएसु पंचवावट्ठिभंगाओ॥११॥ लिखित आदर्श अधिका एता गाथा:-गइ इन्दिए य काए जोए वेए कसाय नाणे य। संजम दंसण लेसा भवसम्मे सन्नि आहारे ॥१॥(८ गाथातः पश्चात्) संतपयपरूबणया दव्वपमाणं च खेत्त फुसणा य । कालो य अंतरं भाग भावे अप्पाबहुं चेव ॥१॥ | (३८ गाथातः) छत्तिन्नि तिनि सुणं पंचेव य नव य तिनि चत्तारि । पंचव तिथि नव पंच सत्त तिन्नेव २ ॥१॥ चउ छ दो चउ8 एक्को पाण दो छक्केकगो य अद्वेव दो दो नव सत्तेव य अंकट्ठाणाई गुणतीसं ॥२॥ (५५ गाथातः ) उदए च्चिय अविरुद्धो | खाओक्समो अणेगमेओत्ति । जइ भवइ तिण्ड एसो पएसउदयमि मोहस्स ॥१॥ (१४५ गाथातः) बग्गुक्कोसठिईण मिच्छत्तुक्को| सगेण जं लद्धं । सेसाणं तु जहन्नो पल्लासंखिज्जागेणूणे ॥१॥ ( २५५ गाथातः) ४ ॥३४३।। For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालप्रमाण श्रीज्योतिष्करंडके ॥३४४॥ पूर्वभृद्वालभ्यप्राचीनतराचार्यरचितं ज्योतिष्करण्डकम् प्राभृतं १ सुण ताव सूरपन्नत्तीवण्णणं वित्थरेण जे निउण | थोगुच्चएण तत्तो वोच्छं उल्लोगमेत्तागं ॥ १ ॥ कालपमाणं १ माण २ निप्फत्तिं अहिगमासगस्सवि ३ य । वोच्छामि ओमरत्तं ४ पव्वतिहिणो समात्तिं च ५ ॥ २ ॥ नक्खत्तपरीमाणं ६ परिमाण वावि चंदसूराणं ७ । नक्खत्तचंदसूराण गई ८ नक्खत्तजोगं च ९ ॥३॥ मंडलविभाग १० मयणं ११ आउट्टी १२ मंडले मुहु|त्तगई १३ । उउ १४ विसुव १५ वईवाए १६ तावं १७ वुड्ड च दिवसाण १८॥ ४ ॥ अवमासपुण्णमासी १९ पणछपव्वं २० च पोरिसिं २१ वावि । ववहारनयमएणं तं पुण सुण मे अणनमणो ॥५॥ लोगाणुभावजणियं जोइसचकं भणति अरिहंता । ठा सव्वे कालविसेसा जस्स गइविसेसनिष्फना ॥ ६॥ संखेवण उ कालो अणागयातीतवट्टमाणो य । संखेजमसंखेजो अणंतकालो) उ निद्दिष्ठों ॥ ७॥ कालो परमनिरुद्धो अविभज्जो तं तु जाण समयं तु । समया य असंखेज्जा हवा हु उस्सासनिस्सासो ॥ ८ ॥ उस्सासो निस्सासो यदो (दुवे )ऽवि पाणुत्ति भन्नए एको । पाणा य सत्त थोवा थोवावि य सत्त लवमाहु ॥९॥ अकृत्तीसं तु लवा अद्धलवो चेव नालिया होइ तीसे पुण संठाणं छिडे उदकं च वोच्छामि ॥ १० ॥ इइ कालपमाणपाहुडं ११ दालिमपुप्फागारा लोहमई नालिगा उ कायब्वा। तीसे तलंमि छिदं छिद्दपमाणं च मे सुणह ॥११॥ छनउयमूलवालेहि तिवस्सजायाए गयकुमारीए । उज्जुकयपिंडिएहि उ कायन्वं नाडियाछिदं ॥ १२ ॥ अहवा दुवस्सजायाए गयकुमारी' पुच्छ ॐRA ॥३४४॥ For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A %AE प्राभृतं % श्रीज्योति-1 करंडके वालेहिं । विहिं विहिं गुणेहिं तेहि उ कायनाडियाछिदं ॥ १३ ॥ अहवा सुवणमासेहिं चउहिं चतुरंगुला कया सई । नालि-|| मानं २ यतलंमि तीए उ कायव्वं नालियाछिदं ॥१४॥ एवं छिद्दपमाणं धरिमं मेजं च मे निसामह । एत्तो उदगपमाणं वोच्छं उदगं ॥३४५॥ च जं भणियं ॥ १५ ॥ चत्तारि मधुरगनणफलाणि सो सेयसासवो एको । सोलस य सासवा पुण हवंति मासप्फलं एकं ॥ १६॥ दो चेव धन्नमासप्फलाणि गुंजाफलं हवइ एकं । गुंजाफलाणि दोन उ रुप्पियमासो हवइ एको ॥ १७ ॥ सोलस रुप्पियमासा एक्को धरणो हवेज सखित्तो। अड्डाइज्जा धरणा य सुवण्णो सो य पुण करिसो ॥ १८॥ करिसा चत्तारि पलं पलाणि पुण अद्धतेरस उ पत्थो । भारो य तुला वीसं एस विही होइ धरिमस्स ॥ १९॥ पणतास लोहपलिया बट्टा बावत्तरंगुला दहा । पंचपलधरणगस्स | य समायकरणे तुला होइ ॥ २० ॥ सव्वग्गेण तुलाए लेहाओ पण्णवीसई होति । चत्तारि य लेहाओ जाओ नंदीपिणद्धाओ ॥२१॥ समकरणि अद्धकरिसो तत्तो करिसुत्तरा य चत्तारि । तत्तो पलुत्तराओ जाव य दसगोत्ति लेहाओ ॥ २२ ॥ बारस पन्नरस वीसगे य एत्तो दसुत्तरा अट्ठ । एवं सव्वसमासो लेहाणं पन्नीसं तु ॥२३ ।। पंचसु पनारसगे तीसग पन्नासगे य लेहाओ । नंदीपिणद्धकाओ सेसाओ उज्जुलेहाओ ॥ २४ ॥ तिनि उ पलाणि कुलवो करिसर्दू चव होइ बोध्धव्यो । चत्तारि चेव कुलवा पत्थो पुण मागहो होइ ॥ २५ ॥ चउपत्थमाढगं पुण चत्वारि य आढगाणि दोणा उ । सोलस दोणा खारी खारीओ वसिई बाहो ॥ २६ ॥ धरिमस्स य मेयस्स एस विहीं नालिगाए उदगस्स । उद्देसे उवइदं उदगपमाणं अओ वोच्छं ॥ २७ ॥ उदगस्स नालियाए हवंति दो आढगा उ परिमाणं । उदगं च इच्छियव्वं जारिसगं तं च वोच्छामि ॥ २८ ॥ एयस्स उ परिकम्मं कायव्वं x ॥३४५|| | दूसपट्टपरिपूतं । महोदयं पसन्नं सारइयं वा गिरिनईणं ॥ २९ ॥ ये नालिया मुहुत्तो सष्टुिं पुण नालिया अहोरत्तो । पनरस KARMARititi % For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति- अहोरत्ता पक्खो तीसं दिणा मासो ॥ ३० ॥ संवच्छरो उ बारस मासो पक्खा य ते चउबसि । तिन्नेव सया सट्ठा हवंति राइंदि-15 मान २ ष्करंडके लियाणं तु ॥ ३१ ॥ इय एस कमो भणिओ नियमा संवच्छरस्स कम्मस्स । कम्मोत्ति सावणोत्ति य उउत्ति य तस्स नामाणि प्राभृतं ॥३४६॥ P॥ ३२ ॥ आइच्चो उडु चंदो रिक्खो अभिवडिओ य पंचए । संवच्छरा जिणमए जुगस्स माणे विधीयते ॥ ३३ ॥ छप्पि उऊ ४ा परियड्ढा एसा संवच्छरो उ आइच्चो । पुव्वं भणिओ कम्मो एत्तो चंदं पवुच्छामि ॥ ३४ ॥ पुण्णिमपरियट्टा पुण बारस &ा संवच्छरा हवइ चंदो । नक्खत्तचंदजोगो बारसगुणिओ उ नक्खत्तो ॥ ३५ ॥ तेरस य चंदमासा एसो अभिवाड्डओ उ नायब्यो । मासाणं तु पमाणं वोच्छं सवसि वासाणं ॥ ३६ ॥ आइच्चो खलु मासो तीसं अद्धं च सावणो तीसा । चंदो एगुणतीसं चिसट्ठिभागा य बत्तीसा ॥ ३७॥ नक्खत्तो खलु मासो ससावीसं भवे अहोरत्ता । अंसा य एकसिं सत्तढिकरण छेएण ॥ ३८ ॥ अभिवडिओ उ मासो एक्कत्तीसं भवे अहोरत्ता। भागसयमेगवीसं चउवीससएण छेएणं ॥३९॥ तिनि अहोरत्तसया छावट्ठा भक्खरो हवइ वासो । तिनि सया पुण सट्ठा कम्मो संवच्छरो हवा ॥४०॥ तिमि अहोरत्तसया चउपण्णा नियमसो लाहवह चंदो | भागा य बारसेव य बावढिकएण छएण ॥४१॥(अ)। तिण्णि अहोरत्तसया सत्तावीसा य होन्ति नक्खत्ते । एका वनं भागा सत्तद्विकएण छेएण ॥ ४१ ॥ (ब) तिण्णि अहोरत्तसया तेसीई चेव होइ अभिवड्डे । चोयालसिं भागा बावट्टिकरण छएण ॥ ४२ ॥ दस चेव सहस्साई नव चेव सया हवंतऽसीया य । एयं मुहुत्तगाणयं नेयध्वं सूरवासस्स ।। ४३ ।। दस चेव सह ॥३४६॥ स्साइं अट्ठव सया हवंति संपुण्णा । एयं मुहुत्तगणिय नायव्वं कम्मवासस्स ॥४४ । चंदे मुहुत्तगणितं सयाणि छच्चेव पण्णवीसाणि । दस य सहस्सा पुण्णा बिसद्विभागा य पन्नासं ॥४५।। नव चेव सहस्साई सयाणि अद्वेव होंति बत्तीसा । नक्खत्ते खलु वासे GREENA.COM For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मानं २ प्राभृतं ॥३४७॥ श्रीज्योति- छप्पण सगसट्ठिभागा य॥४६ ॥ एकारस य सहस्सा पंचव सया हवंति एकारा । अभिवहिए मुहुत्ता वाले अट्ठारस य भागा। करंडके R॥ ४७ ।। एए पमाणवासा पंचवि उववणिया जहुद्दिट्ठा । एत्तो जुगवासाणि य वोच्छामि अहाणुपुवीए ॥४८॥ चंदो चंदो अभिवडिओ यचंदमभिवडिओ चेव । पंचहिं सहियं जुगमिणं दिदं तेलोकदंसीहिं ।। ४९ ॥ पढमबिइया उ चंदा तइयं अभिवड्डिय. विजाणाहि । चंद चेव चउत्थं पंचममभिवाड्डियं जाण ॥ ५० ॥ चंदमभिवड्डियाणं वासाणं पुव्ववनियाणं च । तिविहंपि तं पमाणं जुगंमि सव्वं निरवसेसं ॥ ५१ ॥ आदी जुगस्स संवच्छरोउ मासस्स अद्धमासा उ । दिवसा भरहेरवए राई य विदेहवासेसु ॥ ५२ ॥ दिवसाइ अहोरत्ता बहुलाईयाणि होति पव्वाणि । अभिई नक्खत्ताई रुद्दो आई मुहुत्ताणं ॥ ५३॥ सावणबडुलपडिवए | बालवकरणे अभीइनक्खत्ते । सब्बत्थ पढमसमये जुगस्स आई वियाणाहि ॥ ५५ ॥ अट्ठारस सहिसया तिहीण नियमा जुगमि | नायव्वा । तत्थेव अहोरत्ता तसिा अट्ठारस सया उ॥ ५६ ॥ तत्थ पडिमिज्जमाणे पंचहिं माणेहिं पुव्वगणिएहिं । मासेहिं विभ& जित्ता जइ मासा होति ते वोच्छं ।। ५७ ।। आइच्चेण उ सट्ठी मासा उउणो उ होति एगट्ठी। चंदण य बावड़ी सत्तद्वी होति । नक्खत्त ।। ५८ ।। सत्तावन मासा सत्त य राईदियाई अभिवड्डे । एक्कारस य मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य तेवीसं ॥ ५९ ॥ सव्वे कालविसेसा आउपमाणा ठिई य कम्माण । सव्वे समाविभागा सूरपमाणेण नायव्वा ॥ ६० ॥जं किर सूरेण जुगं अणूणमहिगाणि पंच वासाणि । ता किर जुगेण सव्वं गणंति अद्धाविसेसं तु ॥६१ ॥ वाससयसहस्साई चुलसीइगुणाई होज्ज पव्वंगं । | पुव्वंगसयसहस्सा चुलसीइगुणं हवइ पुव्वं ॥ ६२ ॥ पुवस्स उ परिमाणं सयरी खलु होंति सबसहस्साई । छप्पणं च सहस्सा ला बोद्धव्वा वासकोडीणं । ६३ ।। पुवाण सयसहस्सं [पुव्व ] चुलसीइगुणं भवे लयंगमिह [ हमेगं] | तेसिपि सयसहस्सं चुलसी CANCE ॥३४७॥ For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री ज्योतिष्करंडके ||३४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इगुणं लया होइ ॥ ६४ ॥ तत्तो महालयाणं चुलसीई चैत्र सय सहस्त्राणि । नलिंगं नाम भवे एसो वोच्छं समासेणं ॥ ६५ ॥ नलिण महानलिणंग हवइ महानलिणमेव नायव्वं । पउमंगं तह पउमं ततो य महापउमअंगं ।। ६६ ।। हवइ महापउमं चिय तत्तो कमलंगमेव नायव्वं । कमलं च महाकमलंगमेव परतो महाकमलं ॥ ६७ ॥ कुमुयंगं तह कुमुयं तत्तो य तहा महाकुमुयअंगं । तत्तो परतो य महाकुमुयं तुडियंग बोद्धव्वं ॥ ६८ ॥ तुडिय महातुडियंगं महातुडियं अडडंगमडड परं । परतो य महाडडअंग तत्तो य महाअडडमेव ।। ६९ ।। ऊहंगंपिय ऊई हवइ महल्लं च ऊहगं तत्तो । महऊई सीसपहेलियंग सीसपहेलिया होइ नायव्वा ॥ ७० ॥ एत्थं |सयसहस्साणि चुलसीई चेव होइ गुणकारो । एकैकमि उ ठाणे अह संखा होइ कालमि ॥ ७१ ॥ एसो पण्णवणिज्जो कालो संखेज्जओ मुणेयव्वो । वोच्छामि असंखज्जं कालं उवमा विसे सेणं ॥ ७२ ॥ सत्थेण सुतिक्खेणवि छित्तुं भित्तुं व जं किर न सका । तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥ ७३ ॥ परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा ज्या य जवो अट्ठगुणविवडिया कमसो ॥ ७४ ॥ जबमज्झा अड्ड हवन्ति अंगुलं छच्च अंगुला पाओ। पाया य दो विहत्थी दो य विहत्थी हवइ हत्थो || ७५ || दंडं धणुं जुग नालिया य अक्ख मुसलं च चउहत्था । अट्ठेव धणुसहस्सा जोयणमेगं च माणणं ॥ ७६ ॥ एयं धणुष्पमाणं नायव्वं जोयणस्स य पमाणं । कालस्स परीमाणं एत्तो उद्धं पवक्खामि ॥ ७७ ॥ जं जोयणविच्छिष्णं तं तिगुणं परिरएण सविसेसं । तं जोयणमुव्विद्धं जाण पलिओचमं नाम ॥ ७८ ॥ एकाहियचेहियतेहियाण उक्कोससत्तरत्ताणं । सम्म सन्निचियं भरियं वालग्गकोडीणं || ७६ || ओगाहणा उ तेसिं अंगुलभागो भवे असंखञ्जा । एवं लोमपमाणं एत्तो वोच्छामि अवहारं ॥ ८० ॥ बाससए वाससए एकेके अवहियंमि जो कालो । सो कालो नायव्वो माणं एकस्स पल्लस्स ॥ ८१ ॥ एएसिं पल्लाणं कोडीकाडी हवेज्ज दसगुणिया । तं For Private and Personal Use Only कालमानं २ प्राभृतं ॥३४८ ॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति- सागरोवमस्स उ एकस्स भवे परीमाणं ॥ ८२ ॥ दससागरोवमाणं पुण्णाओ होंति के डीकोडीओ । ओसप्पिणीपमाणं तं चेवुस्स-पल अधिककरंडकेप्पिणीएवि ॥ ८३ ॥ छच्चेव य कालसमा भणिया ओसप्पिणिए भरहमि । तासि नामविहति परिमाणविहिं च वोच्छामि ।। ८४ ॥ मासः ३ सुसमसुसमा य सुसमा हवई तह सुसमदुस्समा चेव । दूसमसुसमा य तहा दूसम अइदुस्समा चेव ॥८५ ॥ सुसमसुसमाएँ कालो १ तिथि ॥३४९॥ चत्तारि हवंति कोडिकोडीओ। सुसमाए तिणि भवे सुसमदुसमाए दो होंति ॥ ८६ ॥ एक्का य कोडिकोडी बायालीसं भवे सह- निष्पत्तिः४ लास्साई । वासेहिं जेहि ऊणा दुसमहदुसमाएँ सो कालो ।। ८७1 (अह दसमाए कालो वाससहस्साई इकवीसाई । तावइओ चेव भवे | कालो अइदूसमाएवि ॥१॥ एए चैव विभागा हवंति ओसप्पिणीए उ नायब्वा । पडिलामा परिवाडी नवरि विभागसु नायव्या ॥८८ ॥ एसो उ असंखेज्जो [ कालो ] एयस्स विहाणगा असंखज्जा । एत्तो होइ अणंतो कालो कालंतरगुणेणं ॥८९ ॥ एए कालविभागा पडिवज्जते जुगमि खलु सब्बे । पत्तेयं पत्तेयं जुगस्स अंते समप्पंति ॥९॥ एए कालविभागा नायव्वा होंति काल-] कुसलेणं । इति जोइसकरंडे कालमाणं नाम पाहुडं बिईयं । एत्तो उ अहिगमासगनिष्फत्तिं मे निसामेह ॥ ९१ ॥ चंदस्स जो विसेसो आइचस्स य हवेज्ज मासस्स । तीसइगुणिओ | संतो हवइ हु अहिमासगो एको ॥ ९२॥ सट्ठीए अइयाए हवइ हु अहिमासगो जुगद्धमि । बावीसे पव्वसए हवई विइओ जुगं| तंमि ।। ९३ ।। मासविसेसुप्पण्णा निप्फत्ती अहिगमासगस्सेसा । इति अहिगमासगपाहुडं तइयं । कम्म। निरंसयाए मासो ववहारको लोए ।।९४ ॥ (आइच्च कम्मचन्दानक्खत्तभिवतियाण मासाणं) सेसा उ संसयाएमा ॥२४॥ | ववहारे दुकरा चित्तुं ॥ ९५ ।। सूरस्स गमणमंडलविभागनिफाइया अहोरत्ता । चंदस्स हाणिवुड्डीकएण निष्फज्जए उ तिही CHERCHOCAL For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir HI श्र.ज्याति-॥ ९६ ॥ चंदस्स नेव हाणी नवि वुड्डी वा अपट्टिओ चंदो । सुकिलभावस्स पुणो दीसइ बुड्डी य हाणी य ॥ ९७ ॥ किण्हं करंडके | राहुविमाणं हेट्ठा चउरंगुलं च चंदस्स । तेणोबट्टा चंदो परिवइ वावि नायव्वो ॥ ९८ ॥ तं रययकमुयसरिसप्पहस्स चंदस्स 5 निष्पत्तिः४ ॥३५॥ | राइसुभगस्स । लोए तिहित्ति निययं भण्णइ वुड्डीए हाणीए ॥ ९९ ।। सोलस भागे काऊण उडुवई हायतेऽत्थ पन्नरस । तत्तिय मेत्ते भागे पुणोवि परिवड्डई जुण्हे ॥१००।। कालेण जेण हायइ सोलसभागो उ सो तिही होइ । तह चेव य वुड्डीए होई तिहिणो | समुप्पत्ती ।। १०१ ॥ जावइए परिहायइ भागे बड्डइ य आणुपुवीए । तावइया होति तिही तेसिं नामाणि वोच्छामि ॥ १०२ ॥ पीडवग बिइय तइया य चउत्थी पंचमी य छवी या । सत्तमि अट्ठामि नवमी दसमी एकारसी चेव ॥ १०३ ॥ बारसि तेरसिर चाउद्दसी य निट्ठवणिगा य पारसी। किण्हंमि य जोण्हंमि य एसेव विही मुणेयवो ॥ १०४ ॥ अउणत्तीसं पुण्णा उ मुहुत्ता सोमतो तिही होइ । भागा य उ बत्ती बावाट्टकरण छएणं ॥१०५ ।। तिहिरासिमेव बावट्ठी भइय सेसमेगसटिगुणं । बावट्ठीठा विभत्तीए सेसे अंसा तिहिसमत्ती ॥ १०६ ।। इइ तिहिनिप्फत्तिनाम पाहुडं चउत्थं। ला एसा तिहिनिफत्ती भणिया मे वित्थर पयहिऊणं । वोच्छामि ओमरति उल्लिंगन्तो समासेणं ॥ १०७ ॥ कालस्स नेव हाणी || नवि वुड्डी वा अवडिओ कालो । जाइ य वुड्डोवुड्डी मासाणं एकमेकाउ ॥ १०८॥ चंदउमासाणं अंसा जे दिस्सए विससम्मि । ते ओमरत्तभागा भवंति मासस्स नायव्वा ॥ १०९ ॥ बावट्ठीभागमेगं दिवसे संजाइ ओमरत्तस्स । बावट्ठीए दिवसेहि आमरत्तं तओ भवह ॥ ११० ॥ एकंमि अहोरले दोवि तिही जत्थ निहणमेज्जासु । सोऽत्थ तिही परिहायइ सुहुमेण हविज्ज सो चरिमोटा ॥३५०॥ ॥१११॥ तइयंमि ओमरत्तं कायव्वं सत्तमंमि पक्खमि । वासहिमगिम्हकाले चाउम्मासे विधीयन्ते ॥ ११२ ॥ पाडिवय ओमरत्ते For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति कइया विइया समप्पिहिइ तिही । बिइयावाए तइया तइयाए वा चउत्थीओ॥ ११३ ।। सेसासु चेव काहिइ तिहिसु ववहारग- अवमरात्राः करंडकेणियदिट्ठासु । सुहमेण परिल्लतिही संजायइ कम्मि पव्वमि? ॥ ११४ ।। रूवाहिगा उ ओया बिगुणा पवा हवंति कायब्वा ||४| ५ ज्योतिएमेव हवइ जुम्मे एक साजुया पव्वा ॥ ११५॥ इइ ओमरत्तनिप्फत्ती नाम पाहुड पंचमं ॥ कमानं ६ ॥३५१॥ चंदा सूरा तारागणा य नक्खत्त गहगणा चेव । पंचविहा जोइसिया ठिया विचारी य ते दुविहा ॥ ११६ ॥ जंबूदीवो लवणोदही य दीवो य धायईसंडे । कालोदही समुद्दो पुक्खरदीवस्स अद्धं च ।। ११७ ॥ एए अड्डाइज्जा दीवा दो उदहि माणुसं खत्तं | एत्थं समाविभागा देवारणं परं तत्तो ।। ११८ ।। एवं माणुसखित्तं एत्थ विचारीणि जोइसगणाणि । परतो दीवसमुद्द | अवट्टियं जोइसं जाण ॥ ११९ ।। दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए । धायइसंडे दीवे वारस चंदा य सूरा य ॥ १२० ॥धायइसंडप्पभिइ उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया तइ होंति अणंतरे परतो ।। १२१ ।। आइच्चाणंपि भवे | एसेव विही अणूणगो सब्यो । दीवेसु समुद्देसु य धायइसंडेहिं जे परतो ।। १२२ ॥ नक्खत्तट्ठावीसं अट्ठासीई महम्गहा भणिया । एगससीपरिवारो एत्तो तारावि मे सुणसु ॥ १२३ ॥ छावडिं च सहस्सा नव य सया पंचसत्तरा होति । एगससीपरिवारों तारा| गणकोडिकोडीणं ॥ १२४ ॥ जइ चंदा तइगुणिओ खेत्ते खेत्तम्मि एस परिवारो। चंदेसु समा सूरा नायव्वा सबखेत्तेसु ॥ १२५ ॥ तेसिं नक्खत्ताण संठाणमहकमेण वोच्छामि | माणं च तारगाण य जह दिदं सम्बदंसीहिं ॥१२६ ॥ गोसीसावली १ काहार २ | सउणि ३ पुप्फोवयार ४ वावी ५-६ य । नावा ७ आसक्खंधे ८ भग ९ छुरधारा १० य सगड्डद्धी ११ ॥ १२७ ।। मिगसीसा 18॥३५॥ वली १२ रुहिरबिंदु १३ तुल १४ वद्धमाणग १५ पडागा १६ । पागारे १७ पलियंके १८-१९ हत्थे २० मुहपुप्फए २१ चेव ANSARASAR RASHARESCARSANSKR For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥३५२११ तिग १२. श्रीज्योति ॥१२८ ॥ कीलग २२ दामाण २३ एगावली २४ य गयदंत २५ विच्छुयअली य २६ । गयविक्कमे २७ य तत्तो सीहनिसाई नक्षत्राणां करडका २८ य संठाणा ॥१२९ ॥ तिग १ तिग २पंचे ३ गसयं ४ दुग दुग ६ बत्तीस ७ तिगं ८ तह तिगं ९ च । छ १० पंचगाद परिमाणा११ तिग १२ एक्कग १३ पंचग १४ तिग १५ छक्कग १६ चेव ॥ १३० ॥ सत्तग १७ दुग १८ दुग १९पंचग २० एके २१ कग दि प्रा. ६ 18.२२ पंच २३ चउ २४ तिग २५ चेव । एकारसग २६ चउकं २७ चउककं चेव तारग्गं ॥१३१॥ एवं नक्खत्ताणं संठाणा तारगाण य पमाणं । भाणियं एत्तो वोच्छं नामाणि य देवयाओ य ॥ १३२ ।। अभिई सवण धणिट्ठा सयभिसया दो य होंति भद्दवया । रेवई अस्सिाणि भरणी य कत्तिया रोहिणी चेव ।। १३३ ॥ मिगसिर अद्दा य पुणव्वसू य पूसो य तहऽसिलेसा य । मघ पुनफग्गुणी उत्तरा य हत्थो य चित्ता य ॥ १३४ ॥ साइ विसाहा अणुराह चेव जेट्ठा तहेव मूलो य । पुच्चुत्तरा असाढा य जाण नक्खत्तनामाणि ॥ १३५ ।। बम्हा विण्हू य वम् वरुणो तहजो अणंतरो होई । अभिवुड्डि पूस गंधव्वमेव परतो जमो होइ ।। १३६ ॥ अग्गि पयावइ सोमे रुद्दे अदिई विहस्सई चेव । नागे पिइ भग अज्जम सविया तट्ठा य वाऊ य ।। १३७ ।। इंदग्गी मित्तोऽविय इंदे निरई य आउ विस्सा य । नामाणि य देवाणं एत्तो सीमंपि मे सुणसु ॥ १३८ । एगं च सयसहस्सं अट्ठाणउई सया वा पडिपुण्णा । एसो मंडलछओ सीमाणं होइ नायव्यो ।। १३९ ॥छच्चेव सया तीसा भागाणं अभिइसीमविक्खंभे । दिट्ठो सव्वडहरगो सव्वेहि अणंतनाणीहि ॥ १४० ।। सयभिसया भरणीए अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठाए। पंचुत्तरं सहस्सं भागाणं सीमविक्खंभो ॥ १४१ ।। एयं चेव य तिगुणं पुणव्वसूरोहिणीविसाहाणं । तिण्डं च उत्तराणं अवसेसाणं भवे दुगुणं ॥ १४२ ॥ विक्खम्भसीम भणिया ॥३५२॥ नक्खचाणं च अपरिसेसाणं । इइ नखत्तपरिमाणं छ8 पाहुडं। CALCACACANCIENCE RRCIEWAROOMCN For Private and Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * श्रीज्योति- एत्तो परं तु वोच्छ विक्खभ चंदसूराणं ॥ १४३॥ एगविभाग छेत्तूण जोयणं तस्स होति जे भागा । ते चंदा छप्पन्नं नक्षत्र चन्द्र करंडके अडयालीसं भवे सूरा ।। १४४ ।। एवं चदिमसूराण पमाणं वणियं समासेणं । हह चंदसरपरिमाणं सत्तमं पाहडं ॥ याग९प्रा. ॥३५३॥ नक्खत्तचंदसूराण गई च वोच्छं समासेणं ॥ १४५ ॥ चंदेहिं सिग्घयरा सूरा सूरेहिं होंति नक्खत्ता । अणिययगइपथाणा : हवंति सेसा गहा सव्वे ।। १४६ ।। अट्ठारस भागसए पणतीसे गच्छई मुहुत्तेणं । नक्खत्तं चंदो पुण सत्तरस सए उ अट्ठढे ॥१४७॥ काअट्ठारस भागसए तीसे गच्छइ रखी मुहुत्तेण । नक्खत्तसीमछेदो सो चव इहपि नायब्बो ॥ १४८ ॥ जायणगणणारहिया एस दगई वण्णिया अहाथूरा । इइ नक्खत्तचंदसूरगइनामं अट्ठमं पाहुडं ॥ . नक्खत्तचंदजोगे एत्तो वोच्छ समासेणं ॥ १४९ ॥ अभिइस्स चंदजोगो सत्तट्ठीखंडिओ अहोरत्तो । भागा य एकवीसं ते पुण 8. अहिमा नव मुहुत्ता ॥ १५० ॥ सयभिसय भरणि अद्दा अस्सेसा साइ तह य जेट्ठा य । एते छनक्खत्ता पन्नरसमुहुत्तसंजोगा ॥१५१ । तिनव उत्तराओ पुणब्वम् रोहिणी बिसाहा य । एते छनक्खत्ता पणयालमुहुत्तसंजोगा ॥ १५२ ॥ अवसेसा नक्खत्ता | पणरसवि होंति तीसइमुहुत्ता । चंदमि एस जोगो नक्खत्ताणं समक्खातो ॥ १५३ ।। एएसिं रिक्खाणं आयाणविसग्गजाणणा करणं । चंदमि य सूरंमि य वोच्छामि अहाणुब्बीए ॥ १५४ ॥ पव्वं पन्नरसगुणं तिहिसहियं ओमरत्तपरिहीणं । बासीइए विभत्ते Iलद्धे असे वियाणाहि ॥ १५५ ॥ जे हवह भागलद्रं कायव्वं तं चउग्गुण नियमा । अभिहस्स एकवीसा भागे सोहेहि लद्धमि ।। १५६ ।। सेसाणं रासीणं सत्तावीस तु मंडला: सोज्झा । अमिइस्स सोहणासंभवे उ इणमो विही होइ ॥ १५७ ॥ सेसाओ ॥३५३।। हिरासीओ रूवं घेत्तूण सत्तसट्टिकका । पक्लिव लद्धेसु पुणो अभिजि सोहेउ पुवकमा ॥ १५८ ॥ पंच दस तेरसट्ठारसव बाबीस For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति- सत्तवीसा य । सोझा दिवड्डोतंत भहवाई असाढता ॥ १५९ ॥ एयाणि सोहइत्ता जं सेसं तं हविज्ज नक्खत्तं । सोज्झा तीसगु-18 मंडल करंडके Mणाओ सत्तट्ठिहिते मुहुत्ताओ ।। १६० ॥ अभिई छच्च मुहुत्ते चत्तारि य केवल अहोरत्ते । सूरेण समं वच्चइ एत्तो सेसाण वाच्छामि १.प्रा. ॥३५४॥ ॥१६१ ॥ जे रिक्ख जावइए बच्चइ चंदण भाग सत्तट्ठी । तं पणभागे राइंदियस्स सूरेण तावइए ॥ १६२ ॥ सयभिसया । भरणीए अद्दा अस्सस साइ जेट्ठा य । वच्चति मुहुत्ते एक्कर्वास छच्चेवऽहोरत्ते ॥ १६३ ॥ तिन्नेव उत्तराई पुणव्वसू रोहिणी विसहा य । वच्चंति मुहुत्ते तिण्णि चेव वीसं अहोरत्ते ॥ १६४ ॥ अवसेसा नक्खत्ता पनरसवि सूरसहगया जात । बारस चेव मुहुचे तेरस य समे अहोरत्ते ॥ १६५ ।। पव्वं पारसगुणं तिाहसहियं ओमरत्तपरिहीणं । तीहिं छावडेहिं सहिए सेसमि सोहणगं ॥ १६६ ॥ चउर्वासं च मुहुत्ता अद्वेव य केवला अहोरत्ता । एए पुस्से सेसा एत्तो सेसाण वोच्छामि ॥ १६७ ॥ राइंदिया || बिसट्ठी य, मुहुत्ता बारसुत्तरा । सोलस सयं विसाहा, वीसदेवा य तेसीयं ॥१६८ ॥ दो चउपना छच्चेव मुहुत्ता उत्तरा उ पोटुवया । IN तिण्णव एकर्वासा छच्च मुहुत्ता उ रोहिणिया ।। १६९ ॥ [जोगो तिबेगट्ठा वारस य मुहुत्ता सोहणं पुणब्वसुणो । जे सोहणं न गच्छइ तं नक्खत्तं तु सूरगयं ॥ १७० ॥ नक्खत्तचंदजोगे नियमा सत्तट्ठिए पडुप्पन्ने । पण्णेण सएण भए लद्धं सूरस्स सो जोगो ॥ १७१॥ नक्खत्तमूरजोगो मुहुत्तरासीकओ उ पंचगुणो । सत्तट्ठीऍ विभत्तो लद्धो चंदस्स सो जोगो ॥ १७२ ॥ नखत्ताणं जोगा चंदाइच्चेसु करणसंजुत्ता । भणिया । इइ नम्वत्तजोगनाम नवमं पाहुडं ॥ . & सुणाहि एत्तो पविभाग मंडलाण तु ।। १७३ ।। इणमो उ समुहिट्ठो जंबुद्दीवो रहंगसंठाणो । विक्खंभ सयसहस्सं जोयणाणं ४ भवे एकं ॥ १७४ ॥ भरहं तह हेमवयं हरिवासं तह विदेहवासं च । रम्मग हेरण्णवतं एरवयं सत्तमं वासं ॥ १७५ ॥ चुल्लमहाहि For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करंडके ॥३५५॥ 8 मवंतो निसढो तह नीलवंत रुप्पी य । सिहरी य नाम सेलो छब्बासहरा भवतेए ॥ १७६ ॥ वासा वासहराविय हवंति पुवावरा मंडल यता सव्वे । भरहं दक्षिणपासे उत्तरतो होइ एरवयं ॥१७७ ॥ भरहेरवयप्पभिई दुगुणाद्गुणो उ होइ विक्खंभो । वासाबासहराणं 12 विभागं १० जावइ (य) वासं विदेहित्ति ॥ १७८ ।। पंचव जोयणसया छब्बीसा होति भरहविक्खंभा । छच्चेव य होति कला एगुणवीसेण छेएण ॥ १७९ ॥ ओगाहणं विक्खंभमो उ उग्गाहसंगुणं कुजा । चउहिं गुणियस्स मूलं मंडलखेत्तस्स अवगाहो ॥१८॥ पाउसुवग्गं छग्गुणियं जीवावग्गमि पक्खिवित्ताणं । जं तस्स वग्गमूलं तं धणुपटुं वियाणाहि ॥ १८१ ॥ धणुवग्गाओ नियमा जीवालावग्गं विसोहइत्ताणं । सेसस्स य छब्भागे जं मूलं तं उसू होइ॥ १८२ ।। छग्गुणमुसुस्स वग्गं धणुबग्गाओ विसोहइत्ताणं । सेसस्सद विग्गमूलं तं खलु जीवं वियाणाहि ॥ १८३ ।। महयो घणुपट्ठातो डहरागं सोहिही धणुह पढे । जं इत्थ हवइ सेस तस्सद्ध निहिसे बाहं ।। १८४ विक्खंभवग्गदहगुणकरणी वट्टस्स परिरओ होइ । विक्खभपायगुणिओ परिरओ तस्स गणियपयं ।। १८५ ।। है! जंबुद्दीवे परिरओ तिनि य सोलाणि सयसहस्साणि । वे य सया पडिपुण्णा सत्तावीसा समहिया य ॥१८६॥ तिणि य कोसा, य तहा अट्ठावीसं च धणुसयं एकं । तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलयं च सविसेसं ॥ १८७ ॥ (सत्तेव य कोडिसया नउया छप्पन सयसहस्साई । चउणउई उ सहस्सा सर्य दिवटुं च साहीयं । १। इयं गाथा क्वचिदधिका) जंबुद्दीवस्स भवे बहुमज्झे सव्वरयणधातु-द्र! चितो । मेरू नाम नगवरो सुकीलो देवराईणं ।। १८८|| नवनउई च सहस्सा उव्विद्धो अह सहस्समोगाढो । धरणियले वित्थिण्णो ॥३५५।। जोयणाणं दससहस्सा ॥१८९॥ जस्थिच्छसि विक्खंभं मंदरसिहराउ ओवइत्ताणं । इक्कारसहियलद्धो सहस्ससहिओ उ विक्खंभो॥१९०॥5 मूलग्गविसेसंमि उ उस्सयभइयंमि जं भवे लद्धं । सा हरनदीनगाणं पएसबुड्डी उ सा उभओ ॥ १९१ ॥ चंदा मूरा तारागणा याद For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit श्रीज्योति- करंडके ॥३५६॥ AACKET नक्खत्तगहगणा चैव । तं ते पदक्षिणगई परति मेरुं गइरई य॥१९२ ॥ पन्नरस मंडलाई चंदस्स महेसिणो उवदिसंति । चुल-1 मंडल सीई मंडलसयं अणूणगं बिति सूरस्स ॥ १९३ ।। जोयणसय असीय अंतो ओगाहिऊण दीवंमि । तस्सारं तु सपरिहिं अम्भितर- 1 वमागर मंडलं रविणो ॥१९४ ॥ तीसाई तिन्नि जोयण सयाणि ओगाहिऊण लवणंमि । तस्सुवरि तु सपरिहिं बाहिरगं मंडलं रविणो ॥१९५॥ तिवेव सयसहस्सा पण्णरस य होंति जोयणसहस्सा । अउणानवइ परिरओ अधिभतरमंडले रविणो । १९६ ॥ तिनव सयसहस्सा | अट्ठारस होंति जोयणसहस्सा । तिनि सया पन्नासा बाहिरए मंडले रविणो ॥ १९७ ॥ दस चेव मंडलाई अम्भितरवाहिरा रविससीणं । सामन्त्राणि उ नियमा पत्तयं पंच चंदस्स ॥ १९८ ॥ चंदंतरेसु असु अभितरवाहिरेसु सरस्स । चारस बारस मग्गा छ । तेरस तेरस भवति ।। १९९ ।। चंदविकंपं एक सूरविकंपेण भायए नियमा। जं हवइ भागलद्धं सूरविकंपा उ ते होंति ।। २०० ।। बे जोयणाणि सूरस्स मंडलाणं त हवड अंतरिया। चंदस्सवि पणतीस साहिया होइ नायव्वा ।। २०१॥ सूरविकंपो एको समंडला का होइ मंडलंतरिया । चंदविकंपो य तहा समंडला मंडलंतरिया ॥२०२ ॥ पंचव जोयणसया दसुत्तरा जत्थ मंडला होति । जे अक्क| मेइ तिरियं चंदो सूरो य अयणेणं ।। २०३ ।। सगमंडलहिं लद्धं सगकट्ठाओ हवंति सविकम्पा । जे सगविक्खंभजुया हवंति सगमंडलंतरिया ।। २०४ ॥ इच्छामण्डलरूवूणगुणियं अभंतरं तु सूरस्स । तस्सेसं सामण्णं सामण्णावसेसियं ससिणो । २०५॥ छट्ठाइसुम रविसेस रविससिणो अंतरं त नायच्वं । तं च ससि सद्ध सरंतराहियं अंतरं बाहिं ।। २०६ ॥ जत्थ न सुज्झइ सोमो तं ससिणो " तत्थ होइ पत्तेयं । तस्ससं सामने सामनविससियं रविणो । २०७ ।। अट्ठवेगारस चउ छत्तीसा तिमि र उगणवीस चत्तारि। ॥३५६॥ | तेवीसेग । चउर्वास छक्कर इगतीस एकं च ॥ २०८ ॥ चोत्तीस पंच तेरस दुगं च ई बायाल पंचभागाणि । छायालदुगे For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीज्योति करंडके ॥३५७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गं पण डे चउपणे चैव दो भागा ॥ २०९ ॥ नव छच्छप्पण्णेगं ई एकावसिं च तिष्णि बोद्धव्या । चत्तालीस तिगहिय तेत्तीसा चैव तेत्तीसा ॐ । २१० ॥ चउयाला चइगवीसं ति छप्पण्ण एग नव छकं । चउपण दुगे 들 पण छायालीस च दो चैव ॥ २११ ॥ बायाल पंच तेरस दुगं च चोत्तीस पंचभागा य है । इगतीसेगं चउवीस छक रैं तेवीस एकं च ॥ २१२ ।। गुणवीसा च छत्तीस तिथि में एकारसेव चउर । दो दो तेत्तीसह नत्थि चउपि सतंसा || २१३ || नवनउई य सहस्सा छच्चेव सया हवन्ति चत्ताला । सूराण ऊ अवाहा अग्भितरमंडलट्ट(णं ।। २१४ ॥ एकं च संयसहस्सं छच्चेव सया य होंति सट्टीया । सूराण ऊ अबाहा बाहिरगे मंडले नेया ।। २१५ ।। पंचव जोयणाई पणतीसं एगसट्टिभागा य । एस अबाहादुड्डी एकेके मंडले रविणो ॥ २१६ ॥ चन्दस्स जोयणाणि य विसत्तरी एकवण्ण असा य । एगडिकते छेए नायव्वा सत्तभागा य ।। २१७ ।। सत्तरस जोयणाणि य परिश्यवुडी उ मण्डले नियमा । अट्ठत्तीसं भागा एगट्टिकएणं छेएण ॥२१८॥ रुवूणमंडलगुणं परिही बुद्धिं तु पक्खिवे नियमा । पढमपरिहपिमाणे सो परिही मंडले तम्मि ।। २१९ ।। चंदस्सवि नायव्वा परिरयबुड्डा उ मंडले नियमा । दो चैव जोयणसया तीसा खलु होंति साहीया ||२२० || इइ मंडलविभागनामं दसमं पाहुडं । छहिं मासेहिं दिणयरो तेसीयं चरइ मंडलसयं तु । अयणम्मि उत्तरे दाहिणे य एसो विही होइ ।। २२१ ।। तेसीयं दिवससयं अयणे सूरस्स होइ पडिपुन्नं । सुण तस्स कारगविहिं पुव्वायरिओवरसेणं ।। २२२ ॥ सूरस्स अयणकरणं पव्वं पनरससंगुणं नियमा । तिहिसंखित्तं संत बावडी भागपरिहीणं ।। २२३ ।। तेसीयस्यविभत्तमि तम्मि लद्धं तु रूवमा एज्जा । जह लद्धं होइ समं नायब्वं उत्तरं अयणं ||२२४|| अह हवइ भागलद्धं विसमं जाणाहि दक्खिणं अयणं । जे असा ते दिवसा होंति पवत्तस्स अयणस्स ॥ २२५ || For Private and Personal Use Only मंडल मानं ११ चन्द्र ६. यावृत्तयः १२ ॥३५७॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir साणं ससिस्सा १३ श्रीज्योति- तेरस य मंडलाई चउचत्ता सत्तसट्ठिभागा य । अयणेण चरइ सोमो नक्खत्ते अद्धमासेणं ॥ २२६ ॥ चंदायणस्स करणं पव्वं 3 आवृत्तिः करंडके पन्नरससंगुणं नियमा । तिहिसंखित्तं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥ २२७ ।। नक्खत्तअद्धमासेण भइए लद्धं तु रूवमाएज्जा । जइ १२, Vलद्ध हवइ समं नायव्वं दक्खिणं अयणं ।। २२८ ।। अह हवइ भागलद्धं विसमं जाणाहि उत्तरं अयण । सेसाणं अंसाणं ससिस्स मिडलगातः 18 इणमो भवे करणं ॥ २२९ ।। सत्तट्ठिए विभत्ते जलद्धं तइ हवंति दिवसा उ | अंसा य दिवसभागा पवत्तमाणस्स अयणस्स ॥२३०॥४॥ है। इइ अयण पइपादगं एगारसं पाहुडं० ११ ॥ एत्तो आउट्टीओ वोच्छं जह यकमेण सूरस्स । चंदस्स य लुहुकरणं जहदिट्ठ पुब्बसूरीहिं ( सव्वदरिसीहिं ) ॥ २३१ ॥ सूरस्स य अयणसमा आउट्टीओ जुगम्मि दस होति । चंदस्स य आउट्टी सयं च चोत्तीसयं चेव ।। २३२ ॥ पढमा बहुलपडिवए बिइया बहुलस्स तेरसीदिवसे । सुद्धस्स य दसमीए बहुलस्स य सत्तमीए उ ॥ २३३ ॥ सुद्धस्स चउत्थीए पवत्तए पंचमी उ | आउट्टी। एया आउट्टीओ सब्बाओ सावणे मासे ।। २३४ ॥ पढमा होइ अभिइणा संठाणाहि य तहा विसासाहिं । रेवतिए उI चउत्थी पुव्वाहिं फग्गुणीहि तहा ।। २३५ ॥ बहुलस्स सत्तमीए पढमा सुद्धस्स तो चउत्थीए । बहुलस्स य पाडिवए बहुलस्सल य तेरसीदिवसे ।। २३६ ।। सुद्धस्स य दसमीए पवत्तए पंचमी उ आउट्टी। एया आउट्टीओ सव्वाओ माघमासमि ।। २३७ ॥ ६ हत्थेण होइ पढमा सयभिसयाहि य ततो य पुस्सेण । मूलेण कत्तियाहि य आउट्टीओ य हेमंते ।। २३८ । आउट्टिएहिं एगृणि-81 ॥३५८॥ याहि गुणियं सयं तु तेसीयं । जेण गुणं तं तिगुणं रूवहिगं पक्खिवे तत्थ ॥ २३९ ॥ पन्नरसभाइयंमि उजं लद्धं तं ततिसु ४ [ होइ ] पब्वेसु । जे अंसा ते दिवसा आउट्टी तत्थ बोद्धब्बा ॥ २४० ॥ पंच सया पडिपुन्ना तिसत्तरा नियमसो मुहुत्ताणं । छत्तीस CASSEARCAScore RECARRASSACROR For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीज्योतिष्करंडके ॥३५९॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बिसट्ठि (तीय ) भागा छच्चेव य चुनिया भागा ।। २४१ ।। आवट्टिएहिं एगूणियाहिं गुणितं हवेज्ज ध्रुवरासी । एयं मुहुत्तगणियं एतो वोच्छामि सोहणगं ।। २४२ ।। अभिहस्स नव मुहुत्ता बिसट्टिभागा य हुति चउवीसं । छावट्ठी य समग्गा भागा सत्तविछेयकया || २४३ ॥ उगुणङ्कं पोडवया तिसु चैव नवेोत्तरेसु रोहिणिया । तिसु नवनउईसु भवे पुणव्वम् उत्तराफग्गू || २४४ ॥ पंचेच अउणपन्नासयाई उगुणत्तराई छच्चेव । सोज्झाणि विसाहाणं मूले सत्तेव चोयाला ।। २४५ ।। अट्ठसय उगुणवीसा सोहणगं उत्तराअसाढाणं । चउवसिं खलु भागा छावट्टी चुण्णियाभाया ॥ २४६ ॥ एयाई सोहइत्ता जं सेसं तं हविज्ज नक्खत्तं । चंदेण समाउत्तं आउट्टीए उ बोद्धव्वं ॥ २४७ ॥ अतिराहि नितो आइच्चो पुस्सजोगमुवगम्म । सव्वा आउट्टीओ करेइ सो सावणे मासे || २४८ || बाहिरओ पविसतो आइच्चों अहिइजोगमुवगम्म । सव्वा आउट्टीओ करेइ सो माघमासम्मि ।। २४९ । अट्ठारस य मुहुत्ते चत्तारि य केवले अहोरत्ते । पूसस्स विसयमहगतो बहिया अभिनिक्खमइ सूरो ।। २५० ॥ वसिं च अहोरत्ते जोइता उत्तराअसाढाओ । तिष्णि मुहुत्ते पविसर ताहे अभंतरे सूरो ।। २५१ ।। चंदस्सवि नायव्वा आउट्टीओ जुगम्मि जा दिट्ठा। अभिईए पुस्सेण य निययं नक्खत्तसेसेणं ॥ २५२ ॥ दस य मुहुत्ते सगले मुहुत्तभागे य वसई चैव । पुस्सस्स विसयमभिगतो हियाऽभिनिक्खमः चंदो || २५३ ।। एया आउट्टीओ भणिया मे वित्थरं पमोत्तूर्णं । इइ आउट्टि पडिवाययं बारसं पाहुडं ॥ १२ ॥ नक्खत्तरससिणो गईउ सुण मंडलेसुं तु ॥ २५४ ॥ एगूणसविरूवा सत्तहि अहिगा उ तिण्णि अंससया । तिष्णवं सत्तट्ठा छेओ पुण तेसि बोद्धव्वो ।। २५५ ।। एएण उ भइयव्वो मंडलरासी हविज्ज जं लद्धं । सा होइ मुहुत्तगई रिक्खाणं मंडले नियये ।। २५६ ।। मंडलपरिरयरासी सट्ठीए भाइयंमि जं लद्धं । सा सूरमुहुत्तगई तहिं तहिं मंडले नियया ॥ २५७॥ बावट्ठी पुण रूवा तेवीसं For Private and Personal Use Only पडिवाययं बारसं (पाहुडे १२ ॥ ॥३५९॥ Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ऋतुरिमाणं १४ श्रीज्योति- असगा य बोद्धव्या।दो चेव एकवीसा छओ पुण तास बोद्धव्यो ।। २५८ ।। एएण उ भइयव्यो मंडलरासी हविज्ज जं लद्धं । सा करंडके सोममुहुत्तगई तहिं तहि मंडले नियया ।।२५९॥ नक्खत्तसूरससिणो भणिया एसा उमंडलंमि गई। इइनक्वत्तसुरशशिगतिः१३।। 1. एत्तो उउपरिमाणं वोच्छामि अहाणुपुच्चीए ॥ २६० ।। वे आइच्चा मासा एकट्ठी ते भवंतहोरत्ता । एयं उउपरिमाणं अव-12 ४ गयमाणा जिणा बिंति ॥ २६१ ।। सूरउउस्साणयणे पव्वं पारससंगुणं निपमा । तिहिसंखित्तं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ।। २६२ ।। दुगुणेगट्टीए जुयं बावीससएण भाइए नियमा । जे लद्धं तस्स पुणो छहि हिय सेसं उऊ होइ ।। २६३ ।। सेसाणं अंसाणं बेहि उ | भागेहिं तेसि जं लद्धं । ते दिवसा नायव्वा होंति पवत्तस्स अयणस्स ।। २६४ ॥ पाउस वासारत्तो सरओ हेमंत वसंत गिम्हा य ।। एए खलु छप्पि उऊ जिणवरदिट्ठामए सिट्ठा ।। २६५ ॥ इच्छाउऊविगुणिओरूवूणावगुणिओ उ पव्वाणि । तस्सद्धं होइ तिही जत्था । समत्ता उऊ जिणवरादिट्ठा मए सिट्ठा।।२६५॥ इच्छाउऊबिगुणिओ रुवोणविगुणिओ उपव्वाणि । तस्सद्ध होइ तिही जत्थ समत्ता उऊ में छातीसं ॥ २६६ ॥ तइयंमि उ कायध्वं अतिरत्तं सत्तमे उ पव्वमि । वासहिमगिम्हकाले चाउम्मासे बिहीयते ॥ २६७ ।। उउसहिया अतिरत्तं जुगसहियं होइ ओमरत्तं तु । रविसहियं अइरतं ससिसहियं ओमरत्तं तु ।। २६८ ॥ एकंतरिया मासा तिही य जासु ता 18 उऊ समप्पंति । आसाढाई मासा भद्दवयाई तिही सव्वा ॥ २६९ ।। तिनि सया पंचहिगा अंसा छेओ सयं च चोत्तीसं । एगाइ18 बिउत्तरगुणो धुवरासी एस बोद्धब्बो ।। २७० ॥ सत्तट्टि अद्धखेत्ते दुगतिगगुणिया समे दिवढखित्ते । अट्ठासीई पुस्से सोज्झा अभिइम्मि बायाला ॥ २७१ ।। एयाणि सोहइत्ता 5 सेसं तं तु होइ नक्खत्त । रविसोमाण नियमा तीसाए उऊसमत्तीसु॥२७२॥ - चत्तारि उउसयाई बिउत्तराई जुगंमि चंदस्स । तेसिपि य करणविहिं वोच्छामि अहाणुपुब्धीए ॥ २७३ ।। चन्दस्सुउपरिमाणं चत्तारि For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योतिकरंडके ॥३६॥ 15251517CHR य केवला अहोरत्ता । सत्तत्तीस अंसा सत्तढिकरण छेएण ।। २७४ ।। चंदउऊआणयणे पव्वं पनरससंगुणं नियमा । तिहिसंखित्तं | व्यतिपात| संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ॥२७५।। चोत्तीससयाभिहयं पंचुत्तरतिमयसंजुयं विभए। छहि उदसुत्तरेहि य सएहि लद्धा उऊ होइ ।।२७६।।11 रविधुवरासी पुव्वं व गुणिय भइए सगेण छएण । जं लद्धं सो दिवसो सोमस्स उउसमत्तीए ॥२७७॥ सो चेव धुवो रासी गुणरा-18 सीवि य हवंति ते चेव । नक्खत्तसोहणाणि य परिजाणसु पुव्वभाणयाणि॥२७८।। इइ उउपरिमाणं नाम चउदसं पाहुडं १४॥ आसोयकत्तियाणं मज्झे वइसाहचित्तमझे य । एत्थ सममहारत्तं तं विसुवं अयणमझसु ॥ २७९ ।। पन्नरसमुहुत्तदिणो दिवसेण समा य जा हवइ राई । सो होइ विसुवकालो दिणराइणं तु संधिम्मि ॥ २८० ॥ इच्छियविसुवा बिगुणा रूचूणा छग्गुणा भव-दा (करे)यव्वा । पन्बद्धे होंति तिही नायव्वा सव्वविसुवेमु ॥२८१।। रूवूणविसुवगुणिए छलसीइसय पक्खिवाहि तेणउई । पनरसभाइ लद्धा पब्वा सेसा तिही होइ ।। २८२ । इगतीसा ओयगुणा पंचहि भइयव्व तिगुण अंसा उ । तिहिओ भवन्ति सब्वेसु चेव विसुवेसु नायव्वा ॥२८३।। पब्वा य छडादिका दुवालसाहिय दसावसाणा उ। तिगमाइगावि य तिही छडुत्तरा सव्वाविसुवेसुं ॥२८४॥ छक्कट्ठारस तीसा तेयाला पंचवण्ण अट्ठट्ठी। तह य असीइ विणउइ पंचहिय सयं च सत्तरसं ॥ २८५॥ तइया नवमी य तिही पत्ररसी छट्ठी बारसी चेव । जुगपुव्वद्धे एया ता चेव हवंति पच्छद्धे ॥ २८६ ॥ रोहिणि वासव साई अदीइ अभिवड्ड मित्त पिउ-14 देवा । आसिणिवीसूदेवा अज्जमणा इइ विसुवरिक्खा ।। २८७ ॥ दक्षिणअयणे सूरो पंच विसुवाणि वासुदेवेण । जोएइ उत्तरेणवि ॥३६१॥ आइच्चो आसदेवेण ।। २८८ ।। अ॥ लग्गं च दक्षिणायण विसुवेसुवि अस्स उत्तरं अयणे । लग्गं साई विसुवेसु पंचसुवि दक्षिणं अयणे ॥ २८८ ॥ ब । दक्षिणमयणे विसुवेसु नयले भिजि रसायले पुस्से । उत्तरअयणे अभिइ रसायले नहयले पुस्से For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति-१ ॥२८९।। मंडलमज्झत्थंमि य चक्खुविसयं गमि सूरांमि । जो खलु मत्ताकाला सो कालो होइ विसुवस्स ॥२९०॥ इइ विसुवं १५॥४ तापक्षेत्रष्करंडके अयणाणं संबंधे रविसोमाणं तु बेहि य जुगम्मि । जं हवइ भागलद्धं वइवाया तत्तिया होति ॥ २९१ ॥ बावत्तरीपमाणो मुहूर्त्तवृध्य फलरासी इच्छिते उ जुगए । इच्छियवइवायपि य इच्छं काऊग आणहि ॥ २९२ ॥ जं भवइ भागलद्धं तं इच्छं निद्दिसाहि ॥३६२॥ पवृद्धिसव्वत्थ सेसेवि तस्स भेए फलरासिस्साणए सिग्धं ॥ २९३ ॥ इइ वईवायं नाम सालसमं पाहुडं १६ ॥ प्राभृतं । अट्ठसु सएसु सूरा चन्दा अभिएसु अट्ठसु सएमु (वीसई तारा) तारा उवीर हिट्ठा समा य चंदस्स नायव्वा ।। २९४ ।। छच्चेव | उ दसभाग जंबुद्दीवस्स दोषि दिवसयरा । तावति दित्तलेसा अधिभतरमण्डले सन्ता ।। २९५ ॥ चत्तारि य दस भाग जंबुद्दीवस्सा" दोवि दिवसयरा । तावति मंडले सम्बबाहिरे मंडले संता ।। २९६ ॥ मरुस्स मज्झयारे जाव य लवणस्स रुंदछब्भागो । तावायामोर | एसो सगड्डद्धीसंठिओ नियमा ॥ २९७ ॥ छत्तीसे भागसए सट्टे काऊण जंघुदीवस्स । तिरियं तत्तो दो दो भागे वड्डइ व हायइ वा ॥ २९८ ।। मंदरपरिरयरासी तिगुणे दसभाइयंमि जं लद्धं । तं हवइ तावखित्तं अधिभतरमंडलगयस्स ।। २९९ ॥ मंदरपरिरयरासी | दि| विगुणे दस भाइयंमि जलद्धं । तं हवइ तावखित्तं बाहिरए मंडले रविणो ।। ३०० ॥ आइममंडलपरिही तिगुणे दसभाइयंमि जं | लद्धं । तं हवइ तावखेत बाहिरगे मंडले रविणो ॥ ३०१॥ बाहिरपरिरयरासो विगुणे दसभाइयंमि जं लद्धं । तं होइ तावखेत्तं बाहिरए मंडले रविणो ॥ ३०२ ॥ सूरस्स मुहुनगई दिवसस्सऽभ्रूण होइ अब्भत्था । तत्तियमित्ता (दिट्ठी विगुणं दिवसप्पमाणं तु) ॥३०३ ॥ सा चेव मुहुत्तगई गुणिया दिवसेण होइ पुण्णेण । सो आयवविक्खंभो तहिं तहिं मण्डले रविणो ॥ ३०४ ॥ ॥३६२।। इइताव खित्तपमाणं १७ ॥ CAKCARRORSCORREARS For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir T श्रीज्योति करंडके ॥३६३॥ बारस धुवा मुहुत्ता दिवसे रत्तीवि होइ बारसिगा। छच्च उ चरा मुहुत्ता अयंति रत्तिं च दिवसं च ।। ३०५॥ रतिं अयति & अमावस्याअयणमि दक्खिणा उत्तरे दिणमयति । एवं तु अहोरत्तो तीसमुडुत्तो हवइ सब्बो ॥ ३०६ ॥ तेसीएण सएणं छण्डं भागे चरमुहु पूर्णिमे ताण | जलद्धं सा वुड्डी छओ व दिणस्स विबेओ ॥ ३०७॥ आइच्चेण स मासेण वडए हायए य तह चेव । एक्को चव मुहुत्तो पविसंते निक्खमंते य ।। ३०८ ॥ अभितरंमि उ गए आइच्चे हवइ बारस मुहुत्ता । रयणी अह दिवसो पुण अट्ठारसओ मुणेयव्वो | ॥ ३०९ ।। बाहिरओ निखते आइच्चे हवह बारसमुहुत्तो । दिवसो अह रत्ती उण होइ उ अहारसमुहुत्ता ॥ ३१० ।। पव्वं पन्न| रसगुणं तिहिसंखित्तं बिसट्ठिभागूणं । तेसीयसएण भए जं सेस तं वियाणहि ।। ३११ ॥ तं विगुणमेव सट्ठीऍ भाइयं जं भवे तहिं लद्धं । तं दक्खिणम्मि अयणे दिवसा सोहे खिवे रत्तिं ॥ ३१२ ॥ तं चेव अयणे उत्तरंमि दिवसंमि होइ पक्खेवो । रत्तीओ वोसर्ट जाणसु राइंदियपमाणं ।। ३१३ ॥ इइ मुहुत्तवुड्डोवुड्डी१८॥ नाउमिह अमावासं जइ इच्छसि कम्मि होइ रिक्खंमि? | अवहारं ठावेज्जा तत्तियरूवेहिं संगुणए ॥ ३१४ ॥ छावट्ठी य मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य पंच पडिपुण्णा । बावविभाग सत्तद्विगोत्थ एको भवइ भागो।। ३१५॥ एयमवहाररासिं इच्छामावाससंगुणं कुज्जा । नक्खत्ताणं एत्तो सोहणगविहिं निसामेह ।। ३१६ ।। बावीसं च मुहुत्ता छायालीसं विसट्ठिभागा य । एयं पुणव्वसुस्स य सोहेपव्वं हवइ पुण्णं ॥ ३१७ ।। बावत्तरं सयं फग्गुणीण बाणउय वे विसाहासुं। चत्तारि य बायाला सोज्झा अह उत्तरासाढा | ॥ ३१८ ।। एयं पुणव्वसुस्स य बिसट्ठिभागसहियं तु सोहणगं । एत्तो अभीइआई बिइयं वोच्छामि सोहणगं ।। ३१९ ॥अभिइस्स ४॥३६३॥ नव मुहुत्ता बिसट्ठिभागा य हॉति चउसिं । छावट्ठी य समचा भागा सत्तहिछेयकया ।। ३२० ॥ इगुणटुं पोट्ठवया तिसु चेव नबु For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करंडके INI श्रीज्योति- नरेसु रोहिणिया । तिसु नवनउइएतु भवे पुणवसूफग्गुणीओ य ॥ ३२१ ## पञ्चेव- उगुणवन्नं सयाई उगुणत्तराई छच्चेव । अमावस्याट्रिा सोज्झाणि विसाहासुं मूले सत्तेव चोयाला ॥ ३२२ ॥ अहसय उगुणवीसा सोहणगं उत्तराणऽसाढाणं । चउवीसं खलु भागा छावठी पूर्णिमे चुण्णियाओ य ।। ३२३ ।। एयाई सोहइत्ता जं सेस तं हवेज्ज नक्ख । एत्थं करेइ उडवह सूरेण समं अमावासं ॥ ३२४ ॥ इच्छापुण्णिमगुणिओ अवहारो सोत्थ होइ कायव्यो । तं चैव य सोहणगं अभिईआई तु कायव्वं ॥ ३२५ ॥ सुद्धंमि य सोहणगे & सेसं तं हवेज्ज नक्खत्तं । तत्थ य करेइ उडुवइ पडिपुण्णं पुण्णिम विमलं ॥ ३२६ ॥ सत्तरस सए पुण्णे अट्ठढे चेव मंडले चरइ । चंदो जुगेण नियमा सूरो अट्ठारस उ तीसे ।। ३२७॥ तेरस य मण्डलाइं तेरस सत्तट्ठी चेव भागा य । अयणेण चरइ सोमो नक्ख| तेणऽद्धमासेणं ॥ ३२८ ॥ चोद्दस य मंडलाई बिसहिभागा य सोलस हवेज्जा । मासद्धेणं उडुवइ एतियमित्तं चरइ खत्तं ॥३२९॥ | एगं च मंडलं मंडलस्स सत्तविभाग चत्तारि । नव चेव चुण्णियाओ इगतीसकएणं छेएण ॥ ३३० ॥ इच्छापव्वेहिं गुणे अयणं रूवाहियं तु कायव्यं । सोकं च हवइ एत्तो अयणक्खेत्तं उडुवइस्स ।। ३३१ ॥ जइ अयणा सुझंती तइ पब्बजुया उरूवसंजुत्ता । नायव्वं तं अयणं नत्थि निरंसं हि रूवजयं ।। ३३२ ।। कसिणंमि होइ रू पक्खवा दो य होति भिमि । जावइअ तावइये पव्वे ! ससिमंडला होति।। ३३३ ।। ओयंमि उ गुणकारे अभितरमंडले हवइ आई । जुम्ममि य गुणकारे बाहिरगे मंडले आई ।। ३३४ ॥ चउवीससयं काऊण पमाणं सत्तसाट्टिमेव फलं । इच्छापव्वेहि गुणं काऊणं पज्जया लद्धा ॥ ३३५ ।। अट्ठारसहि सएहिं तीसेहिं सेस गमि गणियंमि । तेरस बिउत्तरेहिं सएहिं अभिजिमि सुद्धूमि ॥ ३३६ ।। सत्तट्टि बिसट्टेणं सव्वग्गेण ततो उजं सेसं । तं रिक्खं ॥३६॥ Piनायव्वं जत्थ समत्तं हवइ पव्वं ॥ ३३७ ।। सप्प १ धणिट्ठा २ अज्जम ३ अभिड्डि ४ चित्त ५ आस ६ इंदग्गी ७ । गहिणि ८ For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री ज्योतिष्करंडके ॥३६५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिट्ठा ९ मिगसर १० विस्सा ११ ऽदिति १२ सवण १३ पिउदेवा १४ ॥ ३३८ ॥ अज १५ अज्जम १६ अभिवुड्डी १७ चित्ता १८ आसो १९ तहा विसाहाओ २० । रोहिणि २१ मूलो २२ अद्दा २३ व २४ पुस्सो २५ धणिट्ठा २६ य ॥ ३३९ ॥ भग २७ | अज २८ अज्जम २९ पूसा ३० साई ३१ अग्गी ३२ य मित्तदेवा ३३ य । रोहिणि ३४ पुव्वासाठा ३५ पुणन्वसू ३६ वीसदेवा ३७ य ॥ ३४० ॥ अहि ३८ वसु ३९ भगा ४० भिवुढि ४१ हत्थ ४२ ऽस्स ४३ विसाह ४४ कत्तिया ४५ जेट्टा ४६ । सोमा ४७SS ४८ रवी ४९ समणो ५० पिउ ५१ वरुण ५२ भगा ५३ भिवुड्डी ५४य ॥ ३४९ ॥ चित्ता ५५ स ५६ विसाह ५७ गी ५८ मूलो ५९ अद्दा ६० य विस्त ६१ पुस्सो ६२ य । एए जुगपुव्वद्धे विसट्टिपव्वेसु नक्खत्ता ॥ ३४२ ॥ सूरस्सवि नायव्वो | सगेण अयण मंडलविभागो । अयणमि उ जे दिवसा रूवहिए मंडले हवः || ३४३ || चउवीससयं काऊण पमाणं सत्तसट्ठिमेव फलं । इच्छापव्वेहिं गुणं काउणं पज्जया लद्धा || ३४४ || अट्ठारसहि सएहिं तीसेहिं से सगार्म गुणियंमि । सत्तावीससएसुं अट्ठावीसेसु पुसांम ॥ ३४५ || सतट्ठबिसट्ठीणं सव्वग्गेणं ततो उ जो सेसो । तं रिक्खं सूरस्स उ जत्थ समत्तं हवइ पव्वं ॥ ३४६ ॥ चो दिवसा बावीस मुहुत्ता चुण्णिया य तेवीसं । एक्कावीसहभागा पथ्वीकयरिक्खघुवरासी । ३४७ ।। इच्छियपव्त्रगुणाओ धुवरासओ उ सोहणं कुणसु । रविरिक्खकरण विहिणा पूसाईणं जहाकमसो ॥ ३४८ ॥ चउवसिं च मुहुत्ता अद्वेष य केवला अहोरता । पूसविलग्गे एवं एतो वोच्छामि सेसाणं ॥ ३४९ ॥ बावट्टि अहोरसा बारस य मुहुत्त उत्तराफग्गू | सोलस्यं च विसाहा वासुदेवाय तेसीयं ॥ ३५० ॥ वे चउपण्णा छच्चेव मुहुत्ता उत्तरा य पुट्ठयया । तिष्णेव एकवीसा छच्च मुहुत्ता उ रोहिणिया ।। ३५१ ।। तिन्निगिट्ठा बारस य मुहुत्ता सोहणं पुणन्त्रसुणो । तिन्नेव उ छावडा पुस्सस्स उ होइ सोहणगं ।। ३५२ ।। सप्प १ भग २ अज्जमदुगं ३-४ For Private and Personal Use Only अमावस्या पूर्णिमे | ॥३६५॥ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandit करंडके % E%- श्रीज्योति- हत्थो ५ चित्ता ६ विसाह ७मित्तो ८ य । जट्ठाइगं च छकं १४ अजा १५ भिवुड्डी दु१६-१७ पूसा १८ सा १९॥३५३।। छकं च प्रणष्टपर्व| कत्तियाई २५ पिइ २६ भग २७ अज्जमदुर्ग २९ च चित्ता ३० य । वायु ३१ बिसाहा ३२ अणुराह ३३ जेट्ठ ३४ आउं ३५ चढ़ा पौरुषी| वीसदुर्ग ३७ ॥ ३५४ ॥ सवण ३८ धणिट्ठा ३९ जमदेव ४० अभिवड्डा ४१-४२ दुगस्स ४३ यम ४४ बहुला ४५ । रोहिणि ४६ प्राभृते ॥३६६॥ सोम ४७ दितिदुर्ग ४९ पुस्सो ५० पिति ५१ भग ५२ ज्जमा ५३ हत्थो ५४ ॥ ३५५ ॥ चित्ताइ जेट्ठवज्जाणि अभिईअंताणि अट्ट रिक्खाणि ६२ । एए जुगपुग्वद्धे बिसद्दिपव्वेसु रिक्खाणि ॥ ३५६ ॥ चउहिं भइयंमि पब्वे एको सेसम्मि होइ कलिओगा। बेसु य दावरजुम्मो तिसु तेया चउसु कयजुम्मो ॥ ३५७॥ कलिओगे तेणवई पक्खेवो दावरमि बावट्ठी । तेउए एकतीसा कडजुम्मे नित्थि पक्खेवो ॥ ३५८ ॥ सेसछत्तीसगुणे बावट्ठीभाइयंमि जं लद्धं । जाणे तइसु मुहुत्तेसु अहोरत्तस्स तं पव्वं ॥ ३५९ ॥ अवमासपुण्णमासी एवं विविहा मए समक्खाया। इइ अमावासीपुण्णमासीपडियाययं एगूणवीसइम पाहई संमत्तं १९। एत्तो पणटुपव्वं वोच्छामि अहाणुपुबीए ॥३६०॥ जइ कोई पुच्छेज्जा सूरे उद्वितयंमि अभिइस्स । एककला पडिपुण्णा किं पव्वं? का तिही होइ? ॥३६॥ इच्छारूवूणाओ अभिजिमुपादाय संखियेऊगं । इच्छाकलूणकाले कयंमि इणमो भवे करणं ॥३६२।। छत्तण य| Vछेयं तेरसेहि तिनउइ ठितं तु संगुणए। अट्ठारसहि सरहिं तीसाए भइय सेसंमि ॥३६३॥ एगट्ठीउ विभत्ते जे लद्धा तेय होंति पक्खेवा। 18. पन्नरसभागलद्धा पव्वगा अंसगा य तिही ॥३६४॥ समइच्छिएसु वासेसु कोई पुच्छज्ज जम्मनक्खतं । जायस्स परिससंखं पब्वाणि ॥३६६॥ तहिं च ठाविज्जा ।। ३६५ ॥ छित्तूण परिससंखं पंचसु सेसाणि कुणसु पव्वाणि । तत्तो उवट्टमाणं सोहेज्ना एवं तिहिरासिं । ॥३६६।। अवसेस सोहिंतो संपयकालमिव आणए सव्वं । जं जं इच्छसि किंचि अणागयं वावि खवेणं ॥३६७। इइ गट्ठपव्वं २० CAREERCORRECRACK 5 For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीज्योतिष्करंडके ॥३६७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पव्वे पन्नरसगुणा तिहिसहिए पोरसीए आणयणे । छलसयसयविभत्ते जं लद्धं तं वियाणाहि ॥ ३६८ ॥ जइ होइ विसमलद्धं दक्खिणमयणं हविज्ज नायव्यं । अह हवइ समं लद्धं नायव्वं उत्तरं अयणं ।। ३६९ ।। अयणगए तिहिरासी चउरंगुणो पव्वपायभइयम्मि । जं लद्धमंगुलाण य खयबुड्डी पोरसीए उ || ३७० ॥ दक्खिणवुड्डी दुपया उ अंगुलाणं तु होइ नायव्वा । उत्तरअयणा हाणी कायव्वा चउहिं पायाहिं ।। ३७२ ।। सावणबहुलपडिवर दुपया पुण पोरसी धुवं होइ । चत्तारि अंगुलाई मासेणं बढए तत्तो ॥ ३७२ ॥ एकतीसहभागा तिहिए पुण अंगुलस्स चत्तारि । दक्खिण अयणे बुड्डी जाव चत्तारि उ पयाई ॥ ३७३ ॥ उत्तरअयणे हाणी चउहिं पायाहिं जाव दो पाया । एवं तु पोरसीए बुढिखया होंति नायव्वा ॥ ३७४ ॥ हाणी वा बुड्ढी वा जावइया पोरसीए दिट्ठा उ । तत्तो दिवसगएणं जं लद्धं तं खु अयणगयं ॥ ३७५ ॥ कालष्णाणसमासो पुव्वायरिएहि आणिओ एसो । दिणकरपण्णत्तीओ सीसजणविबोहणडाए || ३७६ || पोरिसीमाणं २१ । इति ज्योतिष्करण्डकप्रकीर्णकं समाप्तं ॥ For Private and Personal Use Only प्रणष्टपर्वपौरुषीप्राभृते ॥३६७॥ Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीज्योति करंडके // 368 // श्री जितनागरजीहान पंचाशक 1 धर्मसंग्रहणी 2 उपदेशपद 3 उपदेशमाला जीवसमास 5 कर्मप्रकृति 6 पंचसंग्रह 7 ज्योतिष्करंडक 8 शास्त्राणि समाप्तानि // // 368 // For Private and Personal Use Only