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उपदेश मालायां
॥२१९॥
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कच्छुल्लो कच्छु, कंडुयमाणो दुहं मुणइ सुक्खं । मोहाउरा मणुस्सा, तह कामदुहं सुहं चिंति ॥ २१२ ।। बिसयविसं हालहलं, विस-दि अनित्यता, | यविसं उकडं पियंताणं । विसयविसाइबंपिव, विसयविसविसूइया होई ॥ २१३ ।। एवं तु पंचहिं आसवेहिं रयमायणित्तु अणुसमयं । कामः, चउगइहपेरंत, अणुपरियट्ठति संसारे ।। २१४ ॥ सव्वगईपक्खंदे, काहति अर्णतए अकयपुण्णा । जे य न सुणति धम्मं, सोऊण य|8|कुशालसंगः जे पमायति ॥ २१५ ॥ अणुसिट्ठा य बहुविहं, मिच्छद्दिट्टी य जे नरा अहमा । बद्धनिकाइयकम्मा, सुणति धम्मं न य करंति | | श्राद्धः ॥ २१६ ॥ पंचेव उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेणं । कम्मरयविप्पमुक्का, सिद्धिगइमणुत्तरं पत्ता ।। २१७ ।। नाणे दसणचरणे, | तवसंजमसमिइगुत्तिपच्छित्ते । दमउस्सग्गववाए, दवाइअभिग्गहे चेव ।। २१८ ।। सद्दहणायरणाए, निच्च उज्जुत्त एसणाइ ठिओ। | तस्स भवोअहितरणं, पधज्जाए य (स) म्मं तु ॥२१९।। जे घरसरणपसत्ता, छक्कायरिऊ सकिंचणा अजया । नवरं मुत्तूण घरं, घर-* का संकमणं कयं तेहिं ।। २२० ।। उस्सुत्तमायरंतो, बंधइ कम्म सुचिकणं जीवो । संसारं च पपडद, मायामोसं च कुबइ य ।। २२१ ॥18॥
जइ गिण्हइ वयलोवो, अहव न गिण्हइ सरीरवुच्छेओ । पासत्थसंगमोऽविय, वयलोवो तो वरमसंगो ।। २२२ ।। आलावो संवासो, वीसंभो संथवो पसंगो अ । हीणायारेहिं समं, सबजिणिंदेहिं पडिकुट्टो ॥ २२३ ॥ अन्नुनजंपिएहिं हसिउद्धसिएहिं खिप्पमाणो अ । पासत्थमज्झयारे, बलाऽवि जइ वाउलीहोइ ।। २२४ ॥ लोएऽवि कुसंसग्गीपियं जणं दुनियच्छमइवसणं । निंदइ निरुज्जमं पियकुसीलजणमेव साहुजणो ॥ २२५ ॥ निच्चं संकिय भीओ गम्मो सबस्स खलियचारित्तो । साहुजणस्स अवमओ, मओऽवि | पुण दुग्गई जाइ ॥ २२६ ।। गिरिसुअपुष्फमुआणं, सुविहिय ! आहरणकारणविहन्नू । वज्जेज्ज सीलविगले उज्जुयसीले हविज्ज | जई ॥ २२७ ॥ ओसन्नचरणकरणं, जइणो वंदंति कारणं पप्प । जे सुविइयपरमत्था, ते बंदंते निवारंति ॥ २२८ ॥ सुविहिय बंदा
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