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उपदेश मालायां
॥२२॥
श्राद्धः
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वंतो, नासेई अप्पयं तु सुपहाओ । दुविहपहविप्पमुक्को, कहमप्प न याणई मूढो ।। २२९ ॥ वंदइ उभओ कालंपि चेइयाई थइथुईअनित्यता, (थवत्थुई ) परमा । जिणवरपडिमाघरधूवपुप्फगंधच्चणुज्जुत्तो ॥ २३० ॥ सुविणिच्छियएगमई, धम्मम्मि अननदेवओ अ पुणो । कामः न य कुसमएस रज्जइ, पुवावरवाहियत्थेसु ॥ २३१ ॥ दट्टण कुलिंगीणं, तसथावरभूयमदणं विविहं । धम्माओ न चालिज्जइ, कुशालसगः देवेहिं सईदएहिपि ॥ २३२॥ वंदइ पडिपुच्छइ पज्जुवासई साहुणो सययमेव । पढइ सुणइ गुणेइ अ, जणस्स धर्म परिकहेइ ॥ २३३ ॥ दढसीलव्वयनियमो, पोसहआवस्सएसु अक्खलिओ । महुमज्जमंसपंचविहबहुवीयफलेसु पडिकतो ॥ २३४ ॥ नाहम्मकम्मजीवी, पच्चक्खाणे अभिक्खमुज्जुत्तो । सव्वं परिमाणकडं, अवरज्जइ तंपि संकंतो ॥ २३५ ॥ निक्खमणनाणनिबाणजम्म| भूमीउ चंदइ जिणाणं । न य वसइ साहुजणविरहियम्मि देसे बहुगुणेऽवि ॥ २३६ ॥ परतित्थियाण पणमण, उब्भावण Oणण
भत्तिरागं च | सक्कारं सम्माणं, दाणं विणयं च वज्जेइ ॥ २३७ ।। पढमं जईण दाऊण, अप्पणा पणमिऊण पारेइ । असई अ सुविहिआणं, भुजेई कयदिसालोओ ।। २३८ ॥ साहूण कप्पणिज्ज, नवि दिन्नं कहिंपि किंचि तहिं । धीरा जहुत्तकारी, सुसावगा तं न भुजंति ॥२३९।। वसहीसयणासणभत्तपाणभेसज्जवत्थपत्ताई । जइऽवि न पज्जत्तधणो थोवाऽबिहु थोवयं देई ॥२४०॥ संवच्छरचाउम्मासिएसु अट्ठाहियासु अ तिहीसु । सव्वायरेण लग्गइ जिणवरपूयातवगुणेसु . ॥ २४१ ॥ साहूण चेइयाण य पडिणीयं तह अवण्णवायं च | जिणपवयणस्स अहि, सव्वत्थामेण वारेहे ॥ २४२॥ विरया पाणिवहाओ, विरया निच्चं च अलियायणाओ। विरया चोरिकाओ, विरया परदारगमणाओ ॥ २४३ ।। विरया परिग्गहाओ, अपरिमिआओ अणंततण्हाओ । बहुदोससंकुलाओ, ॥२२ ॥ | नरयगइगमणपंथाओ ॥ २४४ ॥ मुक्का दुज्जणमित्ती, गहिया गुरुवयणसाहुपडिवत्ती । मुक्को परपरिवाओ गहिओ जिणदेसिओ
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