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उपदेश मालायां
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॥२२॥
धम्मो ॥ २४५ ॥ तवनियमसीलकलिया, सुसावगा जे हवंति इह सुगुणा । तेसिं न दुल्लहाई, निब्याणविमाणसुक्खाई ॥२४६ ॥3
संक्लिष्टः, सीइज्ज कयावि गुरू, तपि सुसीसा सुनिउणमहुरेहिं । मग्गे ठवंति पुणरवि, जह सेलगपंथगो नायं ॥ २४७ ॥ दस दस दिवसे
क्रिया, दिवसे, धम्मे बोहेइ अहव अहिअयरे । इअ नंदिसेणसत्ती, तहविय से संजमविवत्ती ॥२४८॥ कलुसीकओ अ किट्टीकओ अ विनयः | खयरीकओ मलिणिओ अ । कम्मेहिं एस जीवो, नाऊणऽवि मुज्झई जेणं ॥ २४९ ॥ कम्मेहिं वज्जसारोवमेहिं जउनंदणोऽवि | पडिबुद्धो । सुबहुंपि विसूरंतो, न तरइ अप्पक्खमं काउं ॥ २५० ॥ वाससहस्संऽपि जई, काऊणं संजम सुविउलंपि । अंते किलिट्ठभावो, न विसुज्झइ कंडरीउ ब्व ॥२५१।। अप्पेणऽवि कालेणं, केइ जहागहियसीलसामण्णा । साहंति निययकज्ज, पुंडरियमहारिसि
ब्ब जहा ।। २५२ ॥ काऊण संकिालटुं, सामण्णं दुल्लहं विसोहिपयं । सुज्झिज्जा एगयरो, करिज्ज जइ उज्जम पच्छा ।। २५३ ॥ ४ा उज्झिज्ज अंतरि च्चिय, खडिय सबलादउ ख दुज्ज खणं । ओसन्नो सुहलेहडन तरिज्ज व पच्छ उज्जमिउं ॥ २५४ ॥ अविर | नाम चक्कवट्टी, चइज्ज सव्वंपि चकवट्टिसुहं । न य ओसन्नविहारी, दहिओ ओसत्रयं चयई ॥२५५ ॥ नरयत्थो ससिराया, बहु भणई देहलालणासुहिओ । पडिओ मि भए भाउअ ! तो मे जाएह तं देहं ।। २५६ ।। को तेण जीवरहिएण, संपयं जाइएण हुज्ज गुणो? । जइऽसि पुरा जायतो, तो नरए नेव निवडतो ॥ २५७ ॥ जावाऽऽउ सावसेस, जाव य थोवोऽवि अत्थि ववसाओ । ताव | करिज्जप्पहियं, मा ससिराया व सोइहिसि ॥ २५८ ।। चित्तगवि सामण्णं, संजमजोगेसु होइ जो सिढिलो । पडइ जई वयणिज्जे
१ ॥२२ ॥ सोअइ अगओ कुदेवत्तं ।। २५९ ॥ सुच्चा ते जिअलोए, जिणवयणं जे नरा न याणति । सुच्चाणवि ते सुच्चा, जे नाऊणं नवि | करेंति ॥ २६० ।। दावेऊण धणनिहि, तेसिं उप्पाडियाणि अच्छीणि । नाऊणवि जिणवयणं, जे इह विहलंति धम्मधणं ।।२६१॥
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