________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पश्चाशक
मूलम्
A5%
॥ ३८॥
मीस चरमपाहुडिया । अज्झोयर अविसोही तिसोहिकाडी भवे सेसा ॥ ६१० ॥ उप्पायण संपायण णिवत्तणमो य होंति एगट्ठा । पिण्ड आहारस्सिह पगया तीए दोसा इमे होंति ।। ६११ ॥ धाती दृति णिमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया लोभ |
विशुद्धि य हवंति दस एते ॥६१२।। पुचि पच्छा संथव विज्जा मंते य चुण्ण जोगे य । उप्पायणयाएँ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥६१३।। |
पंचाशकं. घाइत्तणं करेति पिंडट्ठाए तहेव दृतित्तं । तीयादिणिमित्तं वा कहेइ जच्चाइ वाजीवे ॥ ६१४ ।। जो जस्स होइ भत्तो वणेइ तं तप्पसंसणेणेव । आहारट्टा कुणति व मूढो सुहुमेयरतिगिच्छं ।। ६१५ ॥ कोहफलसंभावणपडुपण्णो होइ कोहपिंडो उ । गिहिणो कुणदहिमाण |मायाए दवावए तह य ॥ ६१६ ॥ अतिलोभा परियडती आहारट्ठाएँ संथवं दुविहं । कुणइ पउंजइ विज्ज मंतं चुण्णं च जोगं च ।। ६१७ । अनमिह कोउगाइ व पिंडत्थं कुणइ मूलकम्मं तु । साहुसमुस्था एते भणिया उप्पायणादोसा ॥ ६१८ ॥ एसण गवेसणण्णेसणा य गहणं च होंति एगहा । आहारस्सिह पगया तीइ य दोसा इमे होंति ॥ ६१९ ॥ संकिय मक्खिय णिक्खित्त पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे । अपरिणय लित्त छड्डिय एमणदोसा दस हवंति ॥ ६२० ॥ कम्मादि संकति तय मक्खियमुदगादिणा उ जं जुत्तं । णिक्खित्तं सजियादो (दिइ ) पिहियं तु फलादिणा ठइयं ।। ६२१ ॥ मत्तगगयं अजोग्गं पुढवादिसु छोटु देइ साहरियं । दायग बालादीया अजोग्ग बीयादिउम्मीसं ।। ६२२ ।। अपरिणयं दत्वं चिय भावो वा दोहदाण एगस्स । लित्तं वसादिणा छड्डियं
तु परिसाडणावंतं ॥ ६२३ ॥ एयदोसविसुद्धो जतीण पिंडो जिणेहिऽणुण्णाओ । सेसकिरियाठियाणं एसो पुण तत्तओणेओ॥६२४ ॥ ४॥ ३८॥ व संपत्ते इच्चाइस मुत्तेसु णिदंसियं इमं पायं । जतिणो य एस पिंडो ण य अन्नह हंदि एयं तु ।। ६२५ ।। दोसपरिणाणं पि हु एत्थं है।
%%
A
CAT
5ॐ
For Private and Personal Use Only