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श्रीचन्द्र-४ा मणिओ असंभवाओ, न घडइ सो गइचउक्केवि ॥ २४५॥ पलियासंखेजसे, बंधंति न साहिए नरतिरिच्छा। छम्मासे पुण
बन्धने र्षिकृते
स्थितिइयरा, तदाऽऽउतंसो बहुं होइ ॥ २४६ ।। पुव्वा कोडी जेसि, आऊ अहिकिच्च ते इमं भणिय । भणिपि नियअबाहं, आउंबंधीत पञ्चसंग्रहे
बन्धः अमुयंता ॥ २४७ ॥ निरुवकमाण छमासा, इगिविगलाणं भवडिईतंसो। पलियासंखेज्जसं, जुगधम्मीणं वयंतने ॥ २४८ ॥ अंतो बन्धद्वारे
कोडीकोडी, तित्थयराहार तीए संखाओ । तेतीसपलियसंख, निकाइयाणं तु उक्कोसा ।। २४९ ।। अंतोकोडाकोडी, ठिइएवि कह ॥२९८॥ न होइ ? तित्थयरे । संते कित्तियकाल, तिरिओ अह होइ उ विरोहो ॥ २५० ॥ जमिह निकाइयतित्थं, तिरियभवे तं निसहियं
संत । इयरमि नत्थि दोसो, उबट्टणुवट्टणासज्झे ।।२५१॥ पुचकोडीइ परओ इगि विगलो वा न बन्धए आउं। अंतो कोडाकोडीए आरओ अभवसनी उ ॥२५२।। सुरनारयाउयाणं, दसवाससहस्स लघु सतित्थाण । इयरे अंतमुहुर्त, अंतमुहुर्त अबाहाओ ॥ २५३ ॥ पुंवेय अट्ठ वासा अट्ट मुहुत्ता जसुच्चगोयाण । साए वारसहारगविग्घावरणाण किंचूणं ॥ २५४ ॥ दोमास एग अर्द्ध, अंतमुहुत्तं च कोह पुव्वाणं । ससाणुकोसाओ, मिच्छत्तठिईए जं लद्धं ।। २५५ ॥ वेउविछकि तं सहसताडियं जं असन्निणो तेसि । पलियासंखंसूणं ठिइ अबाहूणियनिसेगो ॥२५६।। मोत्तुमबाहासमए, बहुगं तयणतरे रयइ दलियं । तत्तो विसेसहीणं, कमसो नेयं ठिई जाव ॥२५७॥ आउस्स पढमसमया, परभविया जेण तस्स उ अबाहा । पल्लासंखियभाग, गंतु अद्धयं दलियं ॥२५८॥ पलिओ| वमस्स मूला, असंखभागम्मि जत्तिया समया। तावइया हाणीओ, ठिबन्धुक्कोसए नियमा ॥ २५९ ॥ उकोसठिबन्धा, पल्लासंखे-४२९८॥ ज्जभागमित्तहिं । हसिएहि समएहिं हसइ अबाहाए इगसमओ ॥ २६० ॥ जा एगिदिजहना, पल्लासखंससंजुया सा उ । तेर्सि जेट्ठा सेसाण संखभागहिय जा सन्नी ।। २६१ ॥ पणवीसा पन्नासा, सय दससयताडिया इगिदिठिई। विगलासन्नीण कमा,
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