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बन्धः
श्रीचन्द्र- जायइ जेट्ठा व इयरा वा ।। २६२ ।। ठिइठाणाई एगिदियाण थोवाई होंति सव्वाणं । बेंदीण असंखज्जाणि, संखगुणियाणि जह बन्धने र्षिकृते का
| उपि ॥ २६३ ।। सबजहन्नावि ठिई, असंखलोगप्पएसतल्लाह । अज्झवसाएहिं भवे, विसेसअहिएहिं उवरुवरि ॥ २६४ ॥ स्थितिपंचसंग्रहे
अस्संखलोगखपएसतुल्लया हीणमझिमुक्कोसा । ठिइबंधझवसाया तीए विसेसा असंखेज्जा ।। २६५।। सत्तण्डं अजहनी, चउहा[४] बन्धद्वारे
ठिइबंधु मूलपगईणं । सेसा उ साइअधुवा, चत्तारिवि आउए एवं ॥ २६६ ॥ नाणंतरायदंसणचउकसंजलणठिई अजहना । चउहा ॥२९९॥
| साई अधुवा, सेसा इयराण सव्वाओ ।। २६७ ॥ अट्ठारसण्ह खवगो, बायरएगिदि सेसधुवियाणं । पज्जो कुणइ जहनं साई अधुवो | अओ एसो ॥ २६८ ॥ अट्ठाराणज्जहनो, उवसमसेढीए परिवडंतस्स । साई सेसरियप्पा, सुगमा अधुवा धुवाणपि ॥ २६९।।। सब्वाणवि पगईण, उकोस समिणो कुणंति ठिई । एगिदिया जहन्न असनिखवगा य काणंपि ।। २७० ॥ सब्वाण ठिई असुभा, उक्कोसुकोसीकलेसेणं । इयरा उ विसोहीए, सुरनरतिरिआउए मोत्तुं ॥२७१।। अणुभागोऽणुक्कोसो, नामतइज्जाण घाइ अजहन्नो । गोयस्स दोवि एए, चउबिहा सेसया दुविहा ।। २७२ ।। सुभधुवियाणणुकोसो, चउहा अजहन्न असुमधुवियाणं । साई अधुवा सेसा, चत्तारिवि अधुवबंधीण ॥ २७३ ।। असुमधुवाण जहणं, बंधगचरमा कुगंति सुविसुद्धा । समयं परिवडमाणा, अजहणं | साइया दोवि ॥ २७४ ॥ सयलसुभाणुक्कोस, एवमणुकोसगं च नायब्बं । वनाई सुभअसुभा, तेणं तेयाल धुवअसुभा ॥ २७५ ॥ | सयलासुभायवाणं, उज्जोयतिरिक्खमणुयआऊणं । सन्नी करेइ मिच्छो, समयं उकोस अणुभाग ॥ २७६ ।। आहार अप्पमत्तो,
कुणइ जहनं पमत्तयाभिमुहो । नरतिरिय चोदसह, देवाजोगाण साऊण ।। २७७ ॥ ओरालियालेरियदुगे, नीउज्जोयाण तमतमा || | छण्डं । मिच्छनरयाणभिमुहो सम्मद्दिट्ठी उ तित्थस्स ।। २७८ ।। सुभधुवतसाइचउरो, परघायपाणिदिसास चउगइया । उकडमिच्छा
| ॥२९९॥
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