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उपदेश
घाए नाणदंसणवहोऽवि । बबहारस्स उ चरणे, हयम्मि भयणा उ सेसाणं ॥ ५१२ ॥ सुज्झइ जई सुचरणो, सुज्झइ सुस्सावओऽविटा मालायां
संविनः गुणकलिओ। ओसन्नचरणकरणो, सुज्झइ संविग्गपक्खरुई ।। ५१३ ।। संविग्गपक्खियाण, लक्खणमेयं समासओ भणियं । ओसन- ग्रन्थयोग्या ॥२३७|| चरणकरणाऽवि जेण कम्मं विसोहंति ॥ ५१४ ॥ सुद्धं सुसाहुधम्म, कहेइ निदइ य निययमायारं । सुतवस्सियाण पुरओ, होइ य! ★सब्बोमरायणीओ ।। ५१५ ॥ वंदइ नय वंदावइ, किइकम कुणइ कारवे नेय । अत्तट्ठा नवि दिक्खइ, देइ सुसाहण बोहेउं ॥५१६॥
ओसन्नो अत्तट्ठा, परमप्पाणं च हणइ दिक्खंतो । तं छुहइ दुग्गइए, अहिययरं बुइ सयं च ॥५१७॥ जह सरणमुवगयाणं, जीवाण निकिंतए सिरे जो उ। एवं आयरिओऽपिहु, उस्मुत्तं पन्नवतो य॥५१८||सावज्जजोगपरिवज्जणा उ सब्बुत्तमो जईधम्मो। बीओ सावगधम्मो, तइओ संविग्गपक्खपहो ।।१९।। सेसा मिच्छद्दिट्ठी, गिहिलिंगकुलिंगदम्बलिंगेहिं । जह तिणि य मुक्खपहा संसारपहा तहा तिण्णि ।। ५२० ॥ संसारसागरमिगं, परिब्भमतेहिं सधजीवेहिं । गहियाणि य मुक्काणि य अंणतसो दव्बलिंगाई | ॥ ५२१ ।। अच्चणुरत्तो जो पुण, न मुयइ बहुसोऽवि पनविज्जतो । संविग्गपक्खियत्तं, करिज्ज लम्भिहिसि तेण पहं ॥ ५२२ ।। कंताररोहमदाणओमगेलनमाइकज्जेसु । सब्वायरेण जयणाइ कुणइ जं साहुकरणिज्जं ॥ ५२३ ॥ आयरतरसंमाणं, सुदुक्कर माणसंकडे लोए । संविग्गपक्खियत्तं, ओसनेणं फुडं काउं ॥ ५२४ ॥ सारणचइआ जे गच्छनिग्गया पविहरंति पासत्था । जिणवयणबाहिरावि य, ते उ पमाण न कायब्बा ॥ ५२५ ॥ हीणस्सवि मुद्धपरूवगस्स संविग्गपक्खवायस्स । जा जा हविज्ज जयणा, सा सा से निज्जरा होइ ।। ५२६ ॥ मुक्काइयपरिसुद्धे, सइ लाभे कुणइ वाणिओ चिटुं । एमेव य गीयत्थो, आयं दटुं समायरह ॥२३७|| ॥ ५२७ ॥ आमुकजोगिणो पिचञ, हवइ थोवाऽवि तस्स जीवदया । संविग्गपक्खजयणा, तो दिट्ठा साहुबग्गस्स ।। ५२८ ॥ किं
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