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पश्चाशकमूलम्.
॥ ३५ ॥
सेसमकज्ज ण तत्थ आवास्सिया सुद्धा ।। ५६३ ।। वइमेत्तं णिचिसयं दोसाय मुस त्ति एव विष्णेयं । कुसलेहिं वयणाओ वइरेगेणं द्वादशम् |जओ भणियं ॥५६४॥ आवस्सिया उ आवस्सिएहिं सब्वेहिं जुत्तजोगस्स । एयस्सेसो उचिओ इयरस्म ण चेव णस्थित्ति ॥५६५॥ एवोग्गहप्पवेसे णिसीहिया तह णिसिद्धजोगस्त । एयस्सेसो उचिओ इयरस्स ण चव नस्थिति ॥ ५६६ ॥ गुरुदेवोग्गहभूमिएँ जत्तओ चेव हॉति परिभोगो । इट्ठफलसाहगो सइ अणिट्ठफलसाहगो इहरा ।।५६७।। एतो ओसरणादिसु दंसणमत्ते गयादिओसरणं । सुच्चइ चेइयसिहराइएसु सुस्सावगाणंपि ॥ ५६८ ॥ जो होइ निसिद्धप्पा णिसीहिया तस्स भावतो होइ । आणसिद्धस्स उ एसाM
वइमेत्तं चेव दट्ठव्वा ।। ५६९ ।। आउच्छणा उ कज्जे गुरुणो गुरुमम्मयस्स वा णियमा । एवं खु तयं सेयं जायति सति णिज्जराहेउ | Pin५७०।। सो विहिनाया तस्साहणमि तज्जाणणासुणायंति । सन्नाणा पडिवत्ती सुहभावो मंगलो तत्थ।।५७१।। इट्ठपसिद्धणुबंधो धण्णो |
पावक्खयपुण्णबंधाओ। सुहगइगुरुलाभाओ एवं चिय सम्वसिद्धित्ति ॥५७२।। इहरा विवज्जतो खल इमस्स सव्वस्स होइ जं तेणं । ५ & बहुवेलाइकमेणं सब्वत्थापुच्छणा भणिया ।। ५७३ ॥ पडिपुच्छणा उ कज्जे पुन्वणिउत्तस्स करणकालम्मि । कज्जंतरादिहेउं णिहिट्ठा
समयकेऊाहं ॥ ५७४ ॥ कज्जंतरे ण कज्जं तेणं कालंतरे व कज्जंति । अण्णो वा तं काहिति कयं व एमाइया हेऊ ॥ ५७५ ॥ | अहवा वि पवित्तस्सा तिवारखलणाएँ विहिपओगे वि । पडिपुच्छणत्ति नेया तहिं गमणं सउणवुड्डीए ॥ ५७६ ॥ पुव्वणिसिद्धे अण्ण पडिपुच्छा किल उवहिए कज्जे । एवंपि नत्थि दोसो उस्सग्गाईहिं धम्मठिई ॥ ५७७ ॥ पुब्बगहिएण छंदण गुरुआणाए जहारिहं ॥३५॥ होति । असणादिणा उ एसा णेयेह विसेसविसउत्ति ॥ ५७८ ।। जो अत्तलदिओ खलु विसिट्ठखमगो व पारणाइत्तो। इहरा मंडाल
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