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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie २ धमे. %2-44% 181 दशशास्यां है | यणमभावतो तस्स तं दुर्दु ॥ १०९८ ॥ ता इय पत्तग्गहणं जुज्जइ जिणवयणमुणियसारस्स । दावभयरक्खणहूँ जलोघगहणं व वस्त्रारूप कतारे ॥१०९९ ॥ निस्संगतावि हिंसारक्खणहेउत्ति तस्म य अभावे । पुत्तहिसंढवरचेट्टियं व सा निष्फला चेव ॥ ११०० ।। करणसिद्धि संग्रहणी. अनिवारियगहणं पुण परिभोगे चेव वारियं समए । पत्तम्मि य सइ करणे करेहि तुल्लं इमं होइ ॥११०१ ॥ रयहरणम्मिवि पडिबालहिऊण विहिणा पमज्जमाणस्स । कीडघरखुज्झणादी (ण) होंति दोसा गुणो होइ ।। ११०२ ॥ आयाण गहण (मोक्ख) म्मि| य कस्सइ रयणीएँ काइगादिम्मि । तेणं पमज्जिऊणं पवत्तमाणस्स वहविरती ॥ ११०३ ॥ साणादिरक्खणट्ठा विधाएँ इह डंडगं दधरेंतस्स । कह हथियारसावेक्खयाइया होंति दोसा उ? || ११०४॥ण य कज्जमंतरणवि कहंचि पीडा इमस्स इट्टत्ति । आयपरो-16 भयविसया जं वहकिीरया सुते भणिया ।। ११०५ ।। भावियजिणवयणाणं ममत्तरहियाण नत्थि हु विससो। अप्पाणम्मि परम्मि IP 18 य तो वज्जे पीडमुभयोऽपि ॥ ११०६ ।। रयहरणादिसमेतं दट्टणं किं न होइ संवेगो । अप्पाणं पचइओ तब्भणियगुणागमाता य ४ ॥११०७ ॥ निग्गंथया य भणिया ममत्तचाएण पुब्वमेव इहं । किमिणा विचिन्तिएण? तुह एवं मनसे अह उ ॥ ११०८ ॥ | जारिसयं गुरुलिंगं सीसेणवि तारिसेण होयव्वं । नहु होइ बुद्धसीसो सेयवडो नग्गखवणो वा ॥११०९॥ निग्गंथो य जिणो जं एगतेणेव लोगसिद्धमिणं । तम्हा तस्सीसावि हु निग्गंथा चेव जुज्जंति ॥ १११० ॥ जारिसयं गुरुलिंग इच्चादसमिक्खिताभिहाणं तु । न हि तारिसेण होउं तीरइ सइ दुविहलिंगेऽवि ॥ ११११ ।। अह तल्लिंगसमं चिय लिंगं तेणावि होइ कायव्यं । सियवाए सिद्ध है ॥१२॥ चिय एगतेणं तु तदजुत्तं ।। १११२ ॥ तित्थगरलिंगमणघं तेसिं चेव अविगलं परं होइ । पाययगुण जुत्ताण य अहवा ण उ सेसजी-15॥१२६।। वाणं ॥ १११३ ।। रहिया य सेसजीवा तित्थगरगुणेहिं परमपुन्नेहिं । नियमेण सिद्धमयं दोण्हवि अम्हाण समएसुं ॥ १११४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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