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धर्म
श्रीमदहरिभद्रसूरिविरचिताधर्मसंग्रहणिः ।
संग्रहणी ॥ ५९॥
निक्षेपादि
नमिऊण वीयरागं सव्वन्नु तियसपूइयं विहिणा । जहणायवत्थुवादि, अचितसत्ति महावीरं ॥१॥ सुहभावज्जियतित्थगरणामकम्मस्स सुहविवागातो । अणुवगियपरहियरयं तित्थगरमिमस्स तित्थस्सा२॥ जुम्मं सपरुवगारट्टाए जिणवयणं गुरुवदेसतो जाउं । वोच्छामि समासेणं पयडत्थं धम्मसंगहणि || धम्मो खलु पुरुसत्थो सपरुवयारो यसो मुणेयो। उवगारोऽविय दुविहो दब्बे भावे |य नायव्यो ।। ४॥ दवम्मि अन्नपाणादिदाणरूवो तु होइ विबेओ । नेगंतिओ अणचंतिओ य ज दयतो तेणं ।।५॥ इहपरलोगहा तह जो कीरइ अविहिणा व भत्तीए । एसोऽवि दबओ च्चिय मोक्खंगाभावतो जाण ॥६॥ भावुवयारो सम्मत्तणाणचरणेसु जमिह
संठवणं । सइ अप्पणो परस्स य अणियाणं तं जिणा बिति ।।७॥ इहपरलोगासंसं मोत्तुं जो कीरते अविहिणा तु । भत्तीए दबतोऽ. है विहु एसो भावम्मि बोद्धब्धो ॥८॥ आहऽनवत्थलयणादिदाणतो भोगतो य इह सिद्धी । गिहिसंजयाण सुच्चइ सुच्चइ णणु भावतो
सावि ॥ ९॥ आहरणं सेहिदुर्ग जिणिंदपारणगदाणदाणेसु । विहिभत्तिभावभावा मोक्खंगं तत्थ विहिभत्ती ॥ १०॥ वेसालि P॥ ५९
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