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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie धर्म असंगतातिप्पसंगाओ ॥ ४६९ ॥ पाणाइवायविरहसिक्खावतदेसगामहा एवं । निविसपत्ता जगगो हिंसागारित्ति पंडिच्चं लातत्ववाद संग्रहणी IP॥ ४७० ॥णहि सुयजम्मे पिउणो सिद्धं लोगम्मि हिंसगो एस । समएवि णावि सिक्खावयभंगो तस्स जम्मम्मि ॥ ४७१ ।। परिणामाओ हिंसा सोवि कहं खणिगपक्खवायम्मि ? | परिणमणं परिणामो जम्हावत्थंतरावती ॥ ४७२ ॥ निरहेउगो तओ अह | निचं भावो ण वा कदाचिदवि । तस्सेबपि हु सिक्खावतदेसणमणुववतु ॥ ४७३ ॥ इय परिणामंतवयदरिसणपमुहावि हेयवा | सव्वे । एगंतखणिगपक्खे अहेतवो चेव ददुव्वा ॥४७४ ॥ तम्हा परिणामी खलु जीवो लोगप्पमाणओ सिद्धो । अधुणा जहेस णाता ६ तह सुत्तादेसतो वोच्छं ।। ४७ ॥ द्र णाता संवित्तीओ जीवो नहि नाणभिन्नरूवाणं । सा अस्थि घडादीणं तकज्जाऽदरिसणाउत्ति ॥ ४७६ ॥ तेर्सि हैन तेण जोगो अन्नगुणत्तातो तेण सा नत्थि । अविसिढे अन्नत्ते एतपि य किंकयं एत्थ ॥ ४७७ ॥ अह उ सहावकर्त चिय पतिणियता चेव जं. गुणा लोए । एसोऽवि हु अनिमित्तो सहावपक्खो सपडिवक्खो ॥ ४७८ ॥ एगतेण विभिन | नाणं आयाउ तग्गुणो तहवि । एत्ताच्चिय णनगुणो तहासहावातो किं माणं ? ॥ ४७९ । पतिणियतता तु लोए गुणाण दिहा | निमित्तभेदेण | एगंतभेदपक्खे ण य जुज्जइ तमविसेसाओ ॥ ४८० ॥ समवाया संबंधो तेसिं तस्सेव तेहि णणु केण? | जति अन्नेणणवत्था अह उ सयं किन्न तेसिपि ॥ ४८१ ।। सिय सो उभयसहावो अप्पाणं ते य संघडावेति । सपरप्पकासधम्मो तहासहावा ॥८८॥ पदीवोव्व ॥ ४८२ ॥ ते चेव किंन एवं तहासहावविरहाण माणमिह । न घडइ चिंतिज्जतं तुह पक्खे दीवणातंपि ।। ४८३ ॥ SHRSI-SACARE ॥८८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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