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उपदेश मालायां
सूरिः
॥२०७॥
पुरुषत्वं
वेषः मदः
नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सबअज्जाणं ॥ १४ ॥ वरिसमयदिक्खिआए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू । अभिगमणवंदण| नमसणेण विणएण सो पुज्जो ॥ १५ ॥ धम्मो पुरिसप्पभवो, पुरिसवरदेसिओ पुरिसजिट्ठो। लोएवि पह पुरिसो, किं पुण लोगुत्तमेत धम्मे ॥ १६ ॥ संवाहणस्स रण्णो, तइया वाणारसीए नयरीए । कन्नासहस्समहि, आसी किर रूबवंतीणं ।। १७ ।। तहविय सा रायसिरी, उल्लुटुंती न ताइया ताहिं । उयरहिएण इकेण, ताइया अंगवीरेण ॥१८॥ महिलाम सुबहुआणवि, मज्झाओ इह समतघरसारो | रायपुरिसेहिं निज्जइ, जणेवि पुरिसो जहिं नत्थि ॥ १९ ॥ किं परजणबहूजाणावणाहिं वरमपसक्खियं सुकयं । इह भरहचकवट्टी, पसन्नचंदो य दिट्ठता ॥ २० ॥ वेसोऽवि अप्पमाणो, असंजमपहेसु बट्टमाणस्स । किं परिअत्तिअवेस, विसं न मारेइ खज्जतं ? २१॥ धम्मं रक्खड वेसो, संकइ वेसेण दिक्खिओ म्हि अहं । उम्मग्गेण पडतं, रक्खइ राया जणवउन्ध ॥ २२ ॥ अप्पा जाणइ अप्पा, जहडिओ अप्पसक्खिओ धम्मो । अप्पा करेइ तं तह, जह अप्पसुहावहं होइ ।। २३ ॥ जं जं समयं जीवो, आविसइ जेण जेण भावेण । सो तम्मि तम्मि समये, सहासुहं बंधए कम्मं ॥ २४ ॥ धम्मो मएण हुँतो, तो नवि सोउण्हवायविज्झडिओ । | संवच्छरम (रं अ) णसिओ, बाहुबली तह किलिस्संतो ॥२५॥ निअगमइविगप्पिअचितिएण सच्छंदबुद्धिरइएणं । कत्तो पारत्तहि कीरइ गुरुअणुवएसेणं ? ॥ २६ ॥ थद्धा निरोवयारी, अविणीओ गपिओ निरुवणामो । साहुजणस्स गरहिओ, जणेऽवि वयणिज्जय लहइ ॥ २७ ॥ थोवणवि सप्पुरिसा, सणकुमारुव केइ बुझंति । देहे खणपरिहाणी, जं किर देवेहिं से कहिया ।। २८ ॥ जइ ता लवसत्तमसुरविमाणवासीवि परिवडंति सुरा । चिंतिज्जतं सेस, संसारे सासयं कयरं? । २९ ।। कह तं भण्णइ सुक्खं? सुचिरणाव जस्स दुक्खमल्लिअइ । जं च मरणावसाणे, भवसंसाराणुबंधिं च ॥ ३० ॥ उवएससहस्सेहिवि, बोहिज्जतो न बुज्झइ कोई । जह
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