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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म संग्रहणी ॥१०॥ रई णु तओ जुत्तो ? तहेव किं वा न बज्झाओ? ॥ ६८५ ॥ अह उ अणागारं चिय विभाणं तहवि गाहगं तेमि ।। ४ बाह्याथअत्थस्सवि एवं चिय गाहणभावम्मि को दोसो ? ॥ ६८६ ॥ सागारअणागारं तु विरोहा कह णु जुज्जती मिद्भिः नाणं ? । भावेवि तदंतरगहणमो फडं अस्थतलं तु ॥ ६८७ ॥ अणुभयरूवमभावो तब्भावे सबसुन्नतावनी । सा अगुवमिद्धणं विरुज्झती निययनाणेगं ॥ ६८८ ॥ माणे इमीएँ भावो विणा तयं जइ इमीएँ सिद्धित्ति । तत्तोच्चिय अस्थम्मवि मिट्टीए निवारणमजुतं ॥ ६८९ ॥ न य स उपलद्धिलक्खगपत्ता जमदरिमणेऽवि ता तस्स । तदभावनिच्छयो । णणु एगनेणं कुतो सिद्धो ? ॥६२०॥ अह सो परस्म एवं तदभावो तस्स चेव सझोऽवि । तुह आयनिच्छयो कह ? अजुत्तितो सासमा णाणे ।। ६९१ ।। न य णाणायविरोहो सिद्धो अत्थस्स जणयतब्भावे । गम्मति इहराभावो सिद्धोए य कह तओ नन्थि ? *॥ ६९२ ।। गाहगपमाणविरहो एवं साधारणो उ नाणेवि । अस्थि य तं अत्थस्सवि सत्ता तह चेव अणिसेज्झा ॥ ६९३ ।। किंच इह नीलातो जायइ पीतादणेगधा णाणं । णय तं अहेतुगं चित्र को हेतू तस्स वनचं? ॥ ६९४ ॥ आलयगता अणेगा सत्तीओ पागसंपउनाओ। जणयति नीलपीतादिनाणमन्त्रो न हेतुत्ति ॥ ६५५ ।। ता आलयातो भिन्नाभिन्ना वा होज्ज' भेदपक्खम्मि । ता चेव उ बज्झत्थोऽभेदे सब्याणमगत्तं ॥ ६९६ ॥ एगो स आलयो जं तत्तोऽभिन्नाण णथि नाणतं । नाणत्तेवि य पावति तदभेदा 5. आलयबहुत्तं ॥ ६९७ ।। अह ता भिन्नाभिन्ना विरोहतो णेस संगतो पक्खो । ण य एगंतावच्चा अवञ्चसहप्पवित्तीओ।। ६९८॥ परि गप्पिता तु अह ता विसिफल कारणं कहन्नु मता ? । तभावा फलभावे आतिप्पमंगो स चाणिट्टो ।। ६९९ ॥ ता जो इमस्स हेतू ॥११॥ सो चिय बज्झत्थमोऽवमेणावि । अन्भुवगंतव्यमिदं एवं बज्झन्थमिद्वीओ।। ७०० ॥ अह तु सहायो हेऊ भावोऽभावो व होज्ज ? 9. Ch For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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