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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवसमास टा॥ २३३ ॥ भव्यो अणाइ संतो अणाइऽणतो भवे अभव्यो य । सिद्धो य साइऽणतो असंखभागंगुलाहारो ॥ २३४ ।। काओगी नर-नला गत्यादिषु ६ अन्तर मिथ्यात्वानाणी मिच्छं मिस्सा य चक्खु सण्णी य । आहारकसायीवि य जहण्णमंतोमुहुर्ततो ।। २३५ ।। मणवइउरलविउब्बिय आहारयकम्म [1] द्वारं दिषु जोग अणरित्थी । संजमविभागविभंग सासणे एगसमयं तु ।। २३६ ॥ अड्डाइज्जा य सया वीसपुत्तं च होइ वासार्ण । छयपरि-18 चान्तरं ॥२५॥ हारगाणं जहण्णकालाणुसारो उ ।। २३७ ॥ कोडिसयसहस्साई पन्नास हुँति उयहिनामाणं ।दो पुनकोडिऊणा नाणाजोवेहि उक्कोस्सं ॥ २३८ ॥ पल्लासंखियभागो वेउब्धियमिस्सगाण अणुसारो । भिन्नमुहुतं आहारमिस्ससेसाण सम्बद्धं ॥ २३९ ॥ एत्थ य जीवसमासे अणुमज्जिय सुहुमनिउणमइकुसले । सुहुमं कालविभागं विभएज्ज सुयम्मि उपउत्ती ।। २४० ॥ तिणि अणाइअणंता | हैतीयद्धा खलु अणाइया संता । साइअणंता एसा समओ पुण वट्टमाणद्धा ।। २४१ ।। कालो परमाणुस्स य दुपएसाईणमेव खंधाणं । ॐा समओ जहण्णमियरो उस्सप्पिणिओ असंखेज्जा २४२ ॥ कालद्वारं ५ जस्स गमो जत्थ भवे जेण य भावण विरहिओ वसइ । जाव न उघड भावो से। चेा तमंतरं हाई ॥ २४३ ॥ सबा गई नराणं सन्नितिरिक्खाण जा सहस्सारो । धम्माएं भवणवंतर गच्छइ सयलिंदिय असण्णी ।। २४४ ॥ तिरिएसु तेउवाऊ सेसति| रिक्खा य तिरियमणुएसु । तमतमया सयलपमू मणुयगई आणयाईया ॥ २४५ ॥ पंचेन्दियतिरियनरे सुरनेरइया य सेसया जंति । अह पुढविउदय हरिए ईसाणंता सुरा जति ।। २४६ ।। चयणुववाओ एगिदियाण अविरहियमेव अणुसमय । हरियाणंता लोगा | सेसा काया असंखेज्जा ॥ २४७ ॥ आवलियअसंखेज्जइभागो संखेज्जरासि उववाओ । संखियसमये संखज्जयाण अद्वेष ॥२५॥ सिद्धाणं ।। २४८॥ बत्तीसा अडयाला सट्ठी बावत्तरी य बोद्धव्वा । चुलसाई छण्णउइ दुरहिय अटुत्तरसयं च ॥२४९।। चउवीस For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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