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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18बुकिार AA-% IN दशशास्त्रीय | क्ख खररोमो । णो उत्तिमोत्ति णाणे पसायमाणादिवुद्धित्ति ॥ १५५ ॥ कन्नारयणे चवं वयणादारन्म सोणिछिवणंति । धीरत्तणउपदेश पदे ओ वेसा सुयणाणपसायबुड्डित्ति ॥ १५६ ।। कणसेइयं पलं तह घयस्स चत्तारि चेव य गुलस्स । वणियसुयपरिमाणा ण ताव कोवोलणानि बटु जणणिपुच्छा ।। १५७ ॥ वेसमणे अहिलासो उउण्हायाए उ सेट्टिपासणया । संभोगोच्चिय अनेण ताव एत्तो उ संसिट्ठो ॥१५८॥ | परीक्षा च ॥१५४॥ | पन्नवणमप्पगासण ण एत्थ दोसोत्ति कम्मभावाओ । कुसलोत्ति तेण ठवितो मंती सव्वेसिमुवरि तु ॥ १५९ ॥ दूरनिहितंपि निहिं | तणवाल्लिसमोत्थयाए भूमीए । णयणेहि अपेच्छंता कुसला बुद्धीऍ पेच्छंति ।। १६० ॥ कयमेत्थ पसंगणं एमादि सुणंतगाण पाएणं । भव्वाण णिउणबुद्धी जायति सम्वत्थ फलसारा ॥ १६१ ॥ भत्तीऍ बुद्धिमंताण तहय बहुमाणओ य एएसिं | अपओसपसंसाओ | एयाणवि कारणं जाण ॥ १२ ॥ कल्लाणमित्तजोगो एयाणमिमस्स कम्मपरिणामो । अणहो तहभव्बत्तं तस्सवि तह | पुरिसकारजुयं ।। १६३ ।। कालो सहाव नियई पुवकयं पुरिसकारणगंता । मिच्छत्तं ते चेव उ समासओ हॉति सम्मत्तं ॥ १६४ ॥ सव्वम्मि चेव कज्जे एस कलावो बुहेहिं निद्दिट्ठो । जणगत्तेण तओ खलु परिभावयव्वओ सम्मं ॥ १६५ ॥ एत्तोच्चिय जाणिज्जति | विसओ खलु दिव्यपुरिसगाराणं । एयं च उवरि वोच्छं समासतो तंतनीतीए ॥१६६ ॥ बुद्धिजुओ आलोयइ धम्मवाणं उवाहिपरि सुद्धं । जोमत्तमप्पणो च्चिय अणुबंधं चेव जत्तेण ।। १६७ ।। बुज्झति य जहाविसयं सम्मं सव्वति एत्थुदाहरणं । वेदज्झयणपरिच्छा |बड्डुगदुर्ग छागघातम्मि ॥ १६८ ।। वेयरहस्सपरिच्छा जोगच्छागत्ति तत्थ हंतव्यो । जत्थ ण पासति कोई गुरुआणा एत्थ जतितव्वं ॥ १६९ ॥ एगेणमप्पसारियदेसे वावादितो पयत्तण । अत्रेण उ पडिसेहो गुरुवयणत्थोत्ति नेव हतो॥१७० ॥ आढवति सम्ममेसो तहा जहा लाघवं न पावेति । पावेति य गुरुगत्तं रोहिणिवणिएण दिद्रुतो ॥१७१।। रायगिहे धणसेट्ठी धणवालाई सुता उ चत्तारि । %A5 । ॥१५४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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