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उपदेश मालायां
मत्सरः हा अज्ञानं.
दीक्षा,गुरुः
॥२१२॥
वंति । दत्तुव्व धम्मवीमंसएण दुस्सिक्खियं तंपि ॥ ९९ ॥ आयरिअभत्तिरागो, कस्स सुनक्खत्तमहरिसीसरिसो। अवि जीविअं बवसिकं, न चेव गुरुपरिभवो सहिओ॥ १०० ॥ पुण्णेहिं चोइआ पुरक्खडेहिं सिरिभायणं भविअसत्ता । गुरुमागमेसिभहा, देवयमिव पज्जुवासंति ॥१०१॥ बहुसुक्खसयसहस्साण दायगा मोअगा दुहसयाणं । आयरिआ फुडमेअं, केसिपएसीअ (क) ते हेऊ ॥१०२॥ नरयगइगमणपडिहत्थए कए तह पएसिणा रण्णा । अमरविमाणं पत्तं, तं आयरिअप्पभावेणं ॥ १०३ ॥ धम्ममइएहिं अइसुंदरेहिं कारणगुणावणीएहिं । पल्हायंतो य मणं, सीस चोएइ आयरिओ ॥ १०४ ।। जीअं काऊण पणं, तुरमिणिदत्तस्स कालिअज्जेणं । अविअ सरीरं चत्तं, न य भणिअमहम्मसंजुत्तं ॥ १०५ ॥ फुडपागडमकहंता, जहडिअं बोहिलाभमुवहणइ । जह भगवओ विसालो, जरमरणमहोअही आसि ॥ १०६ ।। कारुण्णरुण्णसिंगारभावभयजीविअंतकरणाह । साहू अविअ मरंति, न य निअनिअमं विरा| हंति ॥ १०७ ॥ अप्पहियमायरंतो अणुमाअंतो अ सुग्गई लहइ । रहकारदाणअणुमोअगो मिगा जह य बलदेवो ॥१०८ ॥ जंतं
कयं पुरा पूरणेण अइदुकरं चिरं कालं । जइ तं दयावरो इह. करिंतु तो सफलयं हुंतं ॥ १०९ ॥ कारणनीयावासी, सुट्टयरं उज्ज| मेण जइयच्वं । जह ते संगमथेरा, सपाडिहेरा तया आसी ॥ ११० ॥ एगंतनियावासी, घरसरणाईसु जइ ममत्तपि । कह न पडि| हंति कलिकलुसरोसदोसाण आवाए ॥१११॥ अवि कत्तिऊण जीवे, कत्तो घरसरणगुत्तिसंठप्पं । अवि कत्तिआ य तं तह, पडिआ | अस्संजयाण पहे ॥११२ ॥ थोवोऽवि गिहिपसंगो, जइणो सुद्धस्स पंकमावहई । जह सो वारत्तरिसी, हसिओ पज्जोअनरवइणा
॥ ११३ ।। सब्भावो वीसंभो, नेहो रहवइयरो अ जुबइजणे । सयणघरसंपसारो, तवसीलवयाई फेडिज्जा ॥ ११४ ॥ जोइसनिमित्त
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॥२१२॥
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