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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेश अणुइयसूरे, असणाई अहव उवगरणं ॥ ३६२ ॥ ठवणकुले न ठवेई, पासत्थेहिं च संगयं कुणई। निच्चमवज्याणरओ, न य पेहपम-18 गुप्तयः, मालायां ज्जणासीलो ॥३६३॥ रीयइ य दवदवाए, मूढो परिभवइ तहय रायणिए । परपरिवायं गिर्हई, निठुरभासी विगहसीलो ॥३६४॥ स्वाध्यायः | विज्जं मंतं जोगं, तेगिच्छ कणइ भइकम्मं च । अक्खरनिमित्तजीवी, आरंभपरिग्गहे रमइ ।। ३६५ ॥ कज्जेण विणा उग्गहमणु विनयः ॥२२८॥ जाणावेइ दिवसओ सुअइ । अज्जियलाभं भुंजइ, इत्थिनिसिज्जासु अभिरमइ ॥ ३६६ ॥ उच्चारे पासवणे, खेले सिंघाणए अणा यतना, वयावृत्य, उत्तो । संथारग उवहीणं, पडिक्कमइ वा सपाउरणो ।। ३६७ ॥ न करेइ पहे जयणं, तलियाणं तह करेइ परिभोग । चरइ अणुबद्ध पाश्वस्थत्वं, चासे, सपक्खपरपक्खओमाणे ॥ ३६८ ॥ संजोअइ अइबहुअं, इंगाल सधूमगं अणट्ठाए । भुंजइ रूवबलट्ठा, न घरेइ अ पायपुंछणयं | ।। ३६९ ।। अट्ठम छट्ठ चउत्थे, संवच्छर चाउमास पक्खसु । न करेइ सायबहुलो, न य विहरइ मासकप्पेणं ॥३७०॥ नीयं गिण्हइ पिंडं, एगागी अच्छए गिहत्थकहो । पावसुआणि अहिज्जइ, अहिगारो लोगगहणम्मि ॥ ३७१ ॥ परिभवइ उग्गकारी, सुद्धं मग्गं | निगृहए बालो । विहरइ सायागुरुओ, संजमविगलेसु खित्तेसु ।। ३७२ ।। उग्गाइ गाइ हसई, असंवुडो सइ करइ कंदप्पं । गिहिकज्जचिंतगोविय, ओसने देइ गिण्हइ वा ॥ ३७३ ।। धम्मकहाओ अहिज्जइ, घराघरं भमइ परिकहंतो अ । गणणाइ पमाणेण य, ति॥२२८|| Mअइरित्तं वहइ उवगरणं ॥ ३७५ ॥ बारस चारस तिण्णि य, काइयउच्चारकालभूमीओ | अंतो बहिं च अहियासि अणहियासे न पडिलहे ।। ३७५ ।। गीयत्थं संविग्ग, आयरिअं मुअइ वलइ गच्छस्स । गुरुणो ये अणापुच्छा, जं किंचिवि देइ गिण्हइ वा ॥३७६।। गुरुपरिभोगं भुंजइ, सिज्जासंथारउवकरणजायं । किन्तिय तुमंति भासई, अविणीओ गविओ लुद्धो ॥३७७।। गुरुपच्चक्खाणगिलामसेहवालाउलस्स. गच्छस्स । न करेइ नेव पुच्छइ, निद्धम्मो लिंगमुवजीवी ।। ३७८ ॥ पहगमणवसहिआहारसुयणथंडिल्लविहिपरि For Private and Personal Use Only
SR No.020535
Book TitlePanchashak Mulam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherRushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publication Year1928
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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