________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पश्चाशकमुलम्
| ६ स्तवपञ्चाशकम्.
॥१५॥
भाषणमुचियजोगं अणवरयं जो करेइ अब्बहिओ। णियभूमिगाय सरिसं एत्थं अणुबंधभावविही ॥२३८ ॥ गुरुआएसेणं वा जोगंतरगपि तदहिगं तमिह । गुरुआणाभंगम्मि य सब्वेऽणत्था जओ भणितं ॥२३९॥ छट्टमदसमदुवालसेहिं मासद्धमासखमणेहिं । अकरितो गुरुवयणं अणंतसंसारिओ होति ।। २४० ॥ बज्झाभावेऽवि इमं पञ्चक्खंतस्स गुणकरं चेव । आसवनिरोहमावा आणाआराहणाओ य ।। २४१ ।। न य एत्वं एगंतो सगडाहरणादि एत्थ दिहतो । संतपि णासइ लहुं होइ असंतंपि एमेव ॥ २४२ ॥ ओहेणाविसयपि हु ण होइ एयं कहिंचि णियमेण । मिच्छासंसज्झियकम्मओ तहा सव्वभोगाओ ॥ २४३ ॥ विरईए संवेगा
तक्खयओ भोगविगमभावण । सफलं सब्वत्थ इमं भवविरहं इच्छमाणस्स ।। २४४ ।। इति प्रत्याख्यानपश्चाशकम् ५॥ x नमिऊण जिणं वीरं तिलोगपुज्ज समासओ वोच्छं । थयविहिमागमसुद्धं सपरेसिमणुग्गहडाए ॥ २४५ ॥दब्बे भावे य थओ
दव्वे भावथयरागओ सम्म । जिणभवणादिविहाणं भावथओ चरणपडिवत्ती ।। २४६ ॥ जिणभवणबिंबठावणजत्तापूजाइ सुत्तओ | विहिणा | दबत्थउत्ति नेयं भावत्थयकारणत्तेण ॥ २४७ ॥ विहियाणुट्ठाणमिणंति एवमेवं सया करताणं । होइ चरणस्स हेऊ | णो इहलोगादवेक्खाए ।। २४८ ॥ एवं चिय भावथए आणाआराहणाउ रागोऽवि । जं पुण इयबिवरीयं तं दवथओऽवि णो होइ
॥२४९ ॥ भावे अइप्पसंगो आणाविवरीयमेव जं किंचि । इह चित्ताणुढाणं तं दवथओ भवे सव्वं ॥ २५० ॥ जं वीयरागगामी ४ अह तं णणु गरहितंपि हु स एवं । सिय उचियमेव जंतं आणाआराहणा एवं ॥२५१॥ उचियं खलु कायव्वं सव्वत्थ सया णरेण
बुद्धिमता । इइ फलसिद्धी णियमा एस चिय होइ आणति ॥ २५२ ।। जं पुण एयविउत्तं एमंतेणेव भावसुण्णति । तं विसयम्मिवि पतओ भावथयाहेउतो णेयं।।२५३॥ समयम्मि दचसद्दो पायं जं जोग्गयाए रूढोत्ति । णिरुवचरितो उ बहुहा पओगभेदोवलंभाओ
For Private and Personal Use Only